Sunday, July 31, 2016

अध्यापिका हू तो क्या हुआ साहब......मै भी मां हू -राशी राठौर देवास

राशी राठौर  -विद्वानों ने कहा " भगवान हर जगह हमारे साथ नही हो सकते, इसलिए भगवान ने माँ बनायी "

संघर्षो का इतिहास रचने वाली आधुनिक नारी आज हर क्षेत्र में कडा संघर्ष कर  खुद साबित करने की भरसक  प्रयास  कर रही है। घर और बाहर दोनो जगह बेहतर   उत्कृष्ट प्रबन्धन और परिणाम देने वाली नारी जो इस समाज मै खुद के अस्तित्व को तलाश रही। पंचायत कर्मी अध्यापिका माँ को संतान पालन अवकाश से वंचित रखने का हिटलरी फरमान ऐसी संघर्षरत नारी को हतोत्साहित करने के लिए पर्याप्त है।
साथ ही उन सेकडो योजनाओं की पोल भी खोल देता है जिनके आधार पर महिला सशक्तीकरण और महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाने के खोखले दावे किये जाते है। शिक्षक और अध्यापक मै भेदभाव तो वर्षो से चला आ रहा है किन्तु इस बार बात एक मां की ममता में  भेदभाव कि है। माँ तो सिर्फ माँ होती है। उसकी ममता मै कोई भेद नही होता चाहे वो कोई भी माँ हो। पंचायत कर्मी होने से क्या माँ की ममता और उत्तरदायित्व महत्त्वहीन हो जाते है।क्या अध्यापिका मां की ममता का कोई महत्व नही। क्या अध्यापिका के नाबालिक बच्चो उन नाजुक मुश्किल स्थिति मै अकेला छोडा जाना चाहिए जब उसे सबसे ज्यादा सिर्फ मा की आवश्यकता होती हैं। हर बच्चे के लिए उसकी मां लाइफलाइन होती है चाहे वह पांच महीने का हो या पचास साल का। आज के समय में मां की भूमिका और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। बदलते परिवेश में अपने बच्चे को सही लालन पालन किसी चुनौती से कम नहीं। माएं कामकाजी हो रही हैं इसीलिए काम के साथ-साथ उसे अपने बच्चों का भी ख्याल रखना होता है। ऐसे मै ये हिटलरी फरमान ,ये विसंगती माँ के ह्रदय गहरी चोट पहुचाती।उनके संघर्ष को और जटिल बना देती है।नाबालिक बच्चों को ममता के आंचल की छाव की आवश्यकता कदम कदम पर पडती। बच्चे बीमार भी हो जाये सिर्फ़ माँ को पुकारते है।पर ये कैसी विडंबना है यहाँ तो सिर्फ इसलिए एक मां को अपने बच्चे के लालन पालन से दूर किया जा रहा क्यू की वो अध्यापिका है। राष्ट्र निर्माता है। वो करोडो बच्चो को भविष्य  तो बना सकती किन्तु अपने बच्चों को लालन पालन हेतु अवकाश हेतु पात्रता नही रखती। माँ की ममता पर इस हिटलरी फरमान का प्रहार असहनीय है।

अध्यापिका की ममता और उसके नाबालिग बच्चे का पूरा हक बनता है संतान पालन अवकाश पर। 
माँ की ममता पर ओछी मानसिकता घटिया राजनीती कतई शोभा नही देती। अध्यापिका हू तो क्या हुआ मै भी एक माँ हू। देश की भविष्य निर्माता हू। बस और कोई कसूर नही है मेरा। विदेश मै तो शिक्षको को वी आई पी का दर्जा दिया जाता है। मुझे तो सिर्फ माॅ होने की जिम्मेदारी निभाने का दर्जा चाहिए। साहब मुझे संतान पालन अवकाश से वंचित ना करे।
(लेखिका स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं।)

कारणों को समझे बिना लड़ोगे तो निराशा ही आएगी भाई- वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वासुदेव शर्मा-एक अध्यापक संघ के नेता  की पोस्ट से निराशा हुई। निराशा इसलिए भी हुई कि जिस ने, अपने नेता  की ब्रांडिग शेर की तस्वीर के साथ की, अब वही मैदान छोडऩे की बात कह रहा है।  मैं आप  की निराशा के कारणों को समझ सकता हूं। ऐसा अक्सर उन लोगों के साथ होता है, जो समस्या के वास्तविक कारणों को समझे बिना उसके समाधान का रास्ता खोजते हैं। आप  को यह समझना होगा कि अध्यापकों या अन्य अस्थाई कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान की ताकत किसी नेता में नहीं हैं, खुद मुख्यमंत्री में भी नहीं। मुख्यमंत्री भी एक-दो हजार रुपए तो बढ़ा सकते हैं, लेकिन वह नहीं दे सकते, जो आप लोग चाहते हैं।
आप  या उनसे दूसरे अध्यापक नेताओं को समझना होगा कि, सरकार और उसकी पोषक विचारधारा  जिस राजनीति को आगे बढ़ाती हैं, वह सरकारी क्षेत्र को कमजोर करने वाली राजनीति हैं। सरकार  की विचारधारा समाज में असमानता को बढ़ाने वाली विचारधारा है, यह जानते हुए भी शिवराज सिंह से यह उम्मीद करना कि वे सरकारी स्कूलों को ताकतवर बनाएंगे, उनमें पढ़ाने वाले अध्यापकों, अतिथि शिक्षकों या दूसरे शिक्षकों के जीवन में निश्चिंतता लाएंगे, मूर्खता होगी।  भाई आपने संगठन बनाने से लेकर उसे चलाने के  एक-डेढ़ साल में यही गलती की कि आप सरकार के असली इरादों को नहीं समझ सके,  जिस कारण ही आप शिव चौबे एवं रमेश शर्मा जैसे सरकारी लोगो के झांसे में आकर सरकार की गोद में जा बैठे, जबकि आपको अध्यापकों ने सरकार की गोद में बैठने के लिए नहीं बल्कि उससे लड़कर जीत हासिल करने के लिए नेता माना था। इस स्थिति पर विचार किए बिना आपने तो मैदान छोडऩे की ही घोषणा कर डाली, जो न तो आपके खुद के और न ही अध्यापकों के हित में है। इसीलिए यह समय मैदान से भागने का नहीं बल्कि मैदान में डटे रहने का है। आने वाले सालों में स्थिति सुधरने की वजाय बिगड़ेगी, आज आपकी लड़ाई छठवें वेतनमान की है, कल नौकरी बचाने की लड़ाई भी तो लडऩी है।
विधानसभा के इसी सत्र में 5,000 हजार सरकारी स्कूल बंद करने की जानकारी आई है। बंद होने वाले स्कूलों की संख्या हर शिक्षण सत्र में बढ़ेगी। सरकार जिस रफ्तार से स्कूलों को बंद करने की दिशा में बढ़ रही है, उससे ऐसा लगता है कि हम लोग सरकारी स्कूलों की समाप्ति का आदेश पढ़ लेंगे। सरकार जिनके लिए काम कर रही है, उनका दबाव है कि जितनी जल्दी हो सके, सरकारी स्कूलों को कमजोर किया जाए, उन्हें अविश्वसनीय बनाया जाए, उनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को नकारा-निकम्मा साबित किया जाए। सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है, इसीलिए जावेद भाई आप लोगों को भोपाल में बैठने के लिए जगह नहीं दी जाती, रैली नहीं निकालने दी जाती और  आप ऐसा करने की जिद करते हैं तो खदेड़ दिए जाते हो।  कभी आपने सोचा कि लोकतंत्र में आपके पास अपनी बात कहने का जो अधिकार हैं शिवराज सिंह सरकार ने आपसे वही छीन लिया है? इसके बाद भी आप बातचीत से समस्या के समाधान की उम्मीद लगाए हो, तब निराशा होना स्वाभाविक है और आपके साथ ऐसा हुआ भी, शायद इसीलिए आपने आंदोलनों से खुद को अलग करने लेने का इशारा किया है।     
              भाई यदि आपको जीतना है तो खुलकर बोलना होगा। जिस दिन आप शिव चौबे या रमेश शर्मा जैसे लोगों को उनके मुंह पर सरकारी आदमी  कहने की हिम्मत कर लोगे, उस दिन से शिक्षाकर्मियों की तरह अध्यापकों के जीतने का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। ये , दो व्यक्तिभर नहीं हैं, यह लोग उस शिक्षामाफिया तंत्र की मजबूत कड़ी हैं, जो समूची सरकरी स्कूली शिक्षा को कब्जाना चाहती है। अलग-अलग नामों की हजारों शिक्षा समितियों के जरिए इन लोगों ने  निजी स्कूलों का विशाल नेटवर्क तैयार कर लिया है, जहां एक खास मकसद और खास विचारधारा की शिक्षा दी जाती है, यही वो विचारधारा है, जो सरकारी स्कूलों में ताले लगवाना चाहती है, जिससे उनके स्कूल वहां भी खुल जाएं, जहां वे अब तक नहीं पहुंचे हैं। अरे भाई, सर पर आ चुके इस खतरे को जब तक आप जैसे लोग नहीं पहचानेंगे, तब तक सरकारी स्कूलों को बचाने का रास्ता भी नहीं निकाल पाएंगे।


           2005  में शिक्षाकर्मियों का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर पचमढ़ी में हुआ था, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा. संजीव कुमार ने कहा था कि आप लोग वेतन बढ़ाने की मांग जितनी ताकत से उठाते हैं उतनी ही ताकत से स्कूली शिक्षा के सामने मौजूद सरकार की विचारधारा वाले स्कुल के खतरे को भी उठाना चाहिए यानि स्कूली शिक्षा के निजीकरण की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ी जानी चाहिए, स्कूल रहेंगे, तो उनमें शिक्षकों की जरूरत भी रहेगी और यदि स्कूल नहीं रहे, तब क्या करेंगे ? भाई आप इस सवाल पर गंभीरता से सोचिए और आंदोलनों से खुद को दूर करने के इरादे को त्यागिए।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,यह इनके निजी विचार हैं।)

अब पछताय होत का, जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत-सियाराम पटेल, नरसिंहपुर (अध्यापक हित में एक चिंतन)

सियाराम पटेल - वर्तमान परिस्थिति में अध्यापक संवर्ग में व्याप्त आक्रोश को आज एक सही दिशा देने की महती आवश्यकता है।
अध्यापक संवर्ग आज अपने भविष्य और अधिकारों को लेकर चिंतित एवं आक्रोशित तो हैं, लेकिन शासन की फुट डालो और राज करो की नीति के चलते आज शासन के विरुद्ध व्याप्त आक्रोश को कुछ इस प्रकार की नीतियों एवं सेवाशर्तों के मकड़जाल ने संघवाद की राह पर खड़ा कर ठंडा कर दिया है कि आज अध्यापक शासन के विरुद्ध मुखर कम आपस में संघवाद के चलते ज्यादा मुखर दिखाई दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा विगत 6 माह पूर्व छटे वेतन का आर्डर और घोषणा कर मीडिया के माध्यम से आमजन के मध्य अध्यापक हितैषी बनकर वाहवाही बटोरी और वास्तव में स्थिति आज भी वही के वहीँ धाक के तीन पात वाली ही है।
आमजन तक तो सन्देश पहुँच गया कि अध्यापको को छटा वेतन मिल रहा है। लेकिन हम आमजनों के बीच रहते हुए भी हम उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराने में अक्षम हैं। आज शासन द्वारा हमारी फूट का फायदा उठाते हुए हमे बदनाम करते हुए दिशाहीन व दिग्भ्रमित कर हमारे आक्रोश को आपसी आक्रोश में बखूबी तब्दील किया जा रहा है।
इसीलिए आज अध्यापको में व्याप्त आपसी आक्रोश को सही दिशा व दशा देते हुए शासन के विरुद्ध तब्दील किये जाने की महती आवश्यकता है।
इतिहास गवाह है कि जब जब अध्यापको का आक्रोश शासन के विरुद्ध सही मायने में उभरकर सामने आया है, तब तब हमने कुछ न कुछ सार्थक परिणाम अवश्य प्राप्त किये हैं। किन्तु लगभग 2 से 3 वर्षों के दौरान अध्यापक संवर्ग के हित में एक भी आर्डर नही हुआ, घोषणाएं तो बहुत हुई पर परिणाम कुछ नजर नही आया। सरकार अध्यापक हित में बार बार घोषणा कर, तारीख पर तारीख देकर आमजन के बीच अध्यापक हितेषी बन हमारा शोषण करते हुए आये दिन पूर्व में स्वीकृत नियमो एवं सुविधाओं में कटौती करते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही है और हम संघर्ष करते हुए भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

आज हमे आत्मचिंतन करते हुए हमारी वास्तविक दुर्दशा एवं हालातों से आमजन को अवगत कराकर अपने पक्ष में करते हुए सही दिशा में अपने आक्रोश को शासन के विरुद्ध मुखर करने की महती आवश्यकता है।
हम सभी को आपसी मतभेदों, मनभेदों व आपसी आक्रोश को एक नई दिशा देने के बारे में आत्मचिंतन करना ही पडेगा, नहीं वो दिन दूर नही जब हमे कहना पड़े की-
"अब पछताय होत का, जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत"

Saturday, July 30, 2016

अध्यापकों के खिलाफ माहौल बना रही सरकार-वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वासुदेव शर्मा - एक डेढ़ साल में सरकार 5-7 बार छठवां वेतनमान दे चुकी है। इस तरह की खबरें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे आकर चलवाईं। बंबई से छठवां वेतनमान दिया गया। उज्जैन से आदेश निकाले गए। अब सरकार की ही ओर से वरिष्ठता के आधार पर संविलियन का फितूर छोड़ा गया है। इस तरह की खबरों के जरिए शिवराज सिंह चौहान जनता के अंदर यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि उन्होंने अध्यापकों की सभी मांगों को पूरा कर दिया है। सरकार की ओर से इस तरह की कोशिश इसलिए की जा रही है कि जिससे अध्यापकों को जनता का नैतिक समर्थन हासिल न हो सके और वे अलग-थलग पढ़ जाएं। अध्यापकों को अलग-थलग करने का काम कर्मचारियों के दूसरे संगठन भी कर रहे हैं। पिछले दिनों राज्य कर्मचारी संघ के बड़े नेता ने मंच से कहा भी कि सीएम सिर्फ अध्यापकों की समस्याओं का ही निराकरण कर रहे हैं। अध्यापकों के खिलाफ यह खतरनाक साजिश रची जा रही है, जिसका जबाव तक अध्यापकों के नेताओं की ओर से नहीं दिया जाता, उल्टे ऐसे नेताओं की गोद में बैठने की ही कोशिश की जाती है। 25 जुलाई को भोपाल में दर्शन सिंह ने सवाल किया था: सैकड़ों सभाओं के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल नहीं बन रहा? यही या ऐसे ही सवाल तमाम अध्यापक नेताओं के भी थे? तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल न बन पाने की वजह भी यही है कि सरकार ने जनता के बीच यह संदेश पहुंचा दिया है कि अध्यापकों के साथ सरकार न्याय कर चुकी है और इसे खुद अध्यापक नेता भी स्वीकार कर चुके हैं इसीलिए वे यदा-कदा सीएम को फूल-मालाएं पहनाने के लिए सीएम हाऊस पहुंचते भी रही हैं। अध्यापकों ने जितनी बार छठवां वेतनमान नहीं माांगा, उससे अधिकवार सरकार उन्हें दे चुकी है, यह प्रदेश की जनता को बताया भी जा चुका है।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला। लेखक वरिष्ठ पत्रकार है यह उनके निजी विचार है .

जब तक जिस्म में जान बाकी है......... एक ऊँची उड़ान बाकी है !- रिज़वान खान बैतूल


रिज़वान खान बैतूल - हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार अध्यापक हितैषी श्री वासुदेव शर्मा एवं आस के महामंत्री जी की पोस्ट को पड़ने के बाद मन में विगत डेढ़ वर्षो का समूचा घटनाक्रम घूम उठा और ना चाहकर भी आज इस बात पर विश्वास करना पड़ रहा है की 2015 के अध्यापक आंदोलन का पटाक्षेप हो गया लगता है ! कोई कुछ कहे आंदोलन आस ने खड़ा किया था अतः अध्यापक अंत तक उसी से आस लगाये बैठे थे. उन्ही के पदाधिकारियो की पोस्ट का इन्तेजार रहता था और सोशल मीडिया पर सार्वाधिक आलोचना भी उन्ही की हुई जो स्वाभाविक है.


अब आगे क्या !
आज वर्तमान स्तिथी में सरकार की मेहरबानी से विभिन्न अध्यापक नेताओ के बीच इतनी अधिक मतभिन्नता और अविश्वास बढ़ गया है की आगे कोई सार्थक एकता होना मुश्किल है. यदि हो भी गई तो ज्यादा कुछ हासिल होना सम्भव नही क्योकि आंदोलन के सभी अस्त्रों का हमारे नेता बारी बारी उपयोग कर उनको निष्प्रभावी कर चुके है. दूसरे समाज हमारे आंदोलनों को अब मजाक से ज्यादा कुछ नही समझता है यही वह बिंदु है जिसपर सरकार हमारे ऊपर हावी हो रही है. आगे नेता एक हो भी गए तो आंदोलन हड़ताल को कोर्ट से रुकवा दिया जायेगा. अब विकल्प बेहद सीमित है.

एक रास्ता निकला था पर वो लोकप्रियता की राजनीति की भेंट चढ़ गया !
आगे की लड़ाई अब जनता को साथ लेकर ही लड़ी जा सकती है. राजनीति परसेप्शन का खेल है. आज शासन आम जनता को समझाने में सफल रहा है की अध्यापक कामचोर, सदा असंतोषी और शिक्षा की दुर्दशा के जिम्मेदार है. इसी परसेप्शन को उलटा करना होगा. शिक्षा के व्यवसायीकरण, लगातार बन्द होते सरकारी स्कूल, प्राइवेट शिक्षा माफिया की अनवरत लूट और सरकारी स्कूलों को चोर रास्ते से निजी हाथो में बेचने का प्रयास एक ज्वलन्त मुद्दा है जो जनमानस को सीधे गहरे तक प्रभावित करता है. आज आवश्यकता इसको अपने पक्ष में भुनाने की है.

इन्ही मुद्दों को लेकर राज्य अध्यापक संघ शिक्षा क्रांति यात्रा के माध्यम से समूचे प्रदेश में यात्रा कर जनता के बीच इस लड़ाई को ले जाने का प्रयास कर रहा था. प्रत्येक जिले में बुद्धिजीवी पत्रकार सम्मेलन में उपस्तिथ होते थे. अध्यापको को भी विषय का ज्ञान मिल रहा था. इन सबसे शासन के विरुद्ध एक स्थाई विरोध आम जनता में पैदा हो रहा था जो की एक प्रकार का धीमा जहर था. किन्तु खेद की बात है की विभिन्न संघो की लोकप्रियता और श्रेय की राजनीति का शिकार होकर रास ने उक्त यात्रा को स्थगित करके एक लोकप्रिय जुमला नुमा यात्रा निकाली जो सर्वथा अनुपयुक्त है.

जनता चाहेगी तो उम्मीद से बढ़कर मिल सकता है !
हम साढे तीन लाख है जो प्रदेश के गांव गांव में जनता से सीधा सम्पर्क रखते है अतः हमसे बढ़कर परसेप्शन कौन किसका बना सकता है. तुम चाणक्य के अनुयायियों का जनसम्पर्क देखना चाहते हो तो अब यही सही......... शिक्षा में नित नए प्रयोगों और निजीकरण के चलते प्रदेश में प्रदेश भर में अजीब बेचैनी का वातावरण है.अतः शिक्षको को जन सरोकार से जुड़े सामाजिक मुद्दों के लिए लड़ने का समय आ गया है. हम समाज को यह बताये की हमारी वेतन विसंगतियों और सेवा शर्तों का सीधा सम्बन्ध शिक्षा के सरोकारों से है इससे हमारी माँगो को सामाजिक स्वीकृति और वैधता मिलेगी. इस प्रकार अपने आंदोलन से समाज को जोड़कर हम सदभावना पूर्वक माहौल में अपनी मांगे मनवा सकते है क्योकि जनमत की उपेक्षा कोई भी सरकार नही कर सकती. ( मेरे नितांत निजी विचार है अतः सहमति बिलकुल भी आवश्यक नही है )

अध्यापको की सुविधा पर कैंची चलाती सरकार और राजनेतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप बैठे अध्यापक -सुरेश यादव रतलाम

सुरेश यादव रतलाम - साथियो सर्वविदित है कि, किसी भी कर्मचारी वर्ग को प्रदान की गयी सुविधा में कोई भी सरकार कटौती नहीं करती अथवा ऐसा कोई नियम नहीं बनाती जिसके चलते प्राप्त हो रही सुविधा समाप्त हो जाए  या कम हो जाए  ,परन्तु अध्यापक संवर्ग  के साथ ऐसा ही हुआ है सरकार ने अपने ही बनाये नियमो का न सिर्फ उलंघन किया है ,वरन सरकार ने नियमो की मनगढ़ंत व्याख्या कर  विधान सभा में प्रस्तुत की ।

प्रकरण इस प्रकार हैं -आज तक के  इतिहास में  जिस दिनांक से भी कर्मचारियों को अंतरिम राहत प्रदान की जाती है उसी दिंनाक से  उनका नविन वेतन निर्धारण होता है ।

हमारे प्रकरण में यह हुआ की अंतरिम राहत 1 सितम्बर 13 से  प्रदान की गई और वेतन निर्धारण 1 जनवरी 2016 से होगा ,यही नही हम सब को मिल रहा वेतन भी कम हो रहा है ,हम  इसी को प्राप्त कर  खुशियां मना रहे हैं। यदि आप इसे लाभ  समझ  रहे है ,तो आप गलत हैं ,किसी परिचित विशेषज्ञ से उचित  जानकारी लीजिये । हमारे गणना पत्रक को सरकार ने स्थगित कर कर दिया है लेकिन विधान सभा में एक प्रश्न के जवाब में  " सरकार ने कहा कि वेतन के गणना पत्रक में हमने कोई विसंगती नहीं की  है । " यदि कोई विसंगती नही की तो आदेश स्थगित क्यों किया ? लेकिन अब  सब कुछ सही होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा  !


दूसरा प्रकरण - संतान देखभाल अवकाश का है,एक प्रश्न के जवाब में  सरकार ने विधान सभा में कहा कि अध्यापक  संवर्ग को संतान देखभाल अवकाश की पात्रता नहीं है ।

इसके बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के हवाले से समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ की  अध्यापक संवर्ग की महिला अध्यापको को आवकाश का लाभ देने से शैक्षणिक व्यवस्था प्रभावित हो जायेगी ।इस लिए उन्हें लाभ दिया जाना उचित नहीं है ।
देखने में  यह सामान्य सी प्रशासनिक प्रक्रिया लगती है  लेकिन प्रश्न यह है कि ,"अध्यापक भर्ती एवं सेवा की शर्तें नियम 2008" का क्या ? जो कहते हैं कि अध्यापक संवर्ग को शिक्षक संवर्ग के समान सभी अवकाश की पत्रता है । क्या सरकार स्वयं इन नियमो का उल्लंघन नही कर रही ? यदि ऐसा नही है तो क्या सरकार शिक्षक संवर्ग को भी इस अवकाश से वंचित कर रही है? क्योंकि पढ़ाई तो उस संवर्ग के अवकाश पर रहने पर भी प्रभावित होगी ।
यंहा यह बताना भी आवश्यक है कि , यह अवकाश छोटी संतान की  18 वर्ष की आयुपूर्ण करने  तक प्रदान किया जाता और आहरण अधिकारी द्वारा अवकाश स्वीकृत करने पर ही मिलता।  इतना ही नहीं  अवकाश पर जाने के लिए कई शर्ते थी व शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षक रखने की भी व्यवस्था है । तो पढाई प्रभावित होने का प्रश्न  ही नहीं है ,बात सिर्फ नियत की है ,जिसमे खोट है।


साथियो यह बात मुझे नही कहनी चाहिए परन्तु हम में से कई अध्यापक साथी ही नहीं चाहते की यह अवकाश अध्यापक संवर्ग पर लागू हो ।कई साथियो ने मुझे निजी मेसेज या मेरी पोस्ट पर टिपण्णी करते हुए कहा है कि ,फ्री में अवकाश क्यों ? पुरुषों को भी प्रदान किया जाए । महिलाओं को यह सुविधा नहीं मिलनी चाहिए ।घर बैठे बैठे अवकाश क्यों अथवा हम  इस अवकाश का विरोध करेंगें । अरे भाई महिला अध्यापक कँहा से आई वे हमारे घर की संदस्य ही तो होंगी ।स्वाभाविक रूप से इनके परिवार की संदस्य नहीं होंगी ।


आप क्या सोचते है सरकार सोश्यल मिडिया पर की गई हमारी पोस्ट या टीप्पणी पर नजर नहीं रखती ?  यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं । असलियत यह है की सरकार की हम पर हर समय नजर रहती  है। और सरकार हमारे क्रियाकलाप से जरा  भी भयभीत नहीं है उसे पूर्ण विश्वाश है कि अध्यापक हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मेरे मतानुसार संचार के इन माध्यमो से अध्यापको को लाभ कम हानि अधिक  हुई है ।


क्योंकि सरकार जानती है की 90 प्रतिशत अध्यापक सरकार की पोषक विचारधारा से ही पोषित हो रहे हैं । अध्यापक चाहता है कि उसकी मांग पूरी हो ,लेकिन वह सरकार के खिलाफ कुछ कहना और सुनना पसंद नहीं करता या यह चाहता है की इस सरकार की आलोचना न हो । अध्यापक यदि नाराज हो भी रहा है तो उनके निशाने पर सरकार नहीं है ,वह अपने गुस्से का शिकार  अध्यापक सगठनों और उसके नेतृत्व को बनाता है या उसके निशाने पर 2003 के पहले की सरकार होती है । सोश्यल मिडिया के इस कॉपी पेस्ट वाले युग में ,बहुत कम लोगो के विचार ही मौलिक विचार होते  है ,हमलोग सिर्फ मेंसेज को आगे बढ़ाते हैं। 90 प्रतिशत का आंकड़ा इस लिए कह रहा हूँ  क्योंकि प्रदेश में द्विदलीय व्यवस्था है जिसमे 50-50 प्रतिशत लोग सरकार और विपक्ष में बंटे हुए है ।लेकिन विपक्ष के 40 प्रतिशत लोग अभी  मौन  है ,यही लोग मौन रहकर सरकार को अतिरिक्त ताकत प्रदान कर रहे हैं ।


हम वास्तविकता को नजर अंदाज करते है, हमे  यह भी याद रखना होगा की विगत 13 वर्षो से प्रदेश में एक ही दल की सरकार काम कर रही है ,और अध्यपको के शोषण ने लिए यह सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है,जितनी इसकी पूर्ववर्ति सरकार ,क्योकी इन्होंने ही 2003 के घोषणा पत्र में नियमितीकरण का वादा किया था । जो अभी तक पूरा नहीं किया गया है ।


मेरा मानाना है पेट की आग से बढ़ कर राजनेतिक प्रतिबद्धता या राजनैतिक आस्था नहीं होती । अध्यापको को भी अपनी राजनेतिक प्रतिबद्धता को अपने रोजगार से और अपने अधिकार से अधिक महत्व नहीं देना चाहिए । और मुखर होकर सरकार का विरोध करना चाहिए अन्यथा हमारे अधिकारों और सुविधाओं में कटौती होना सामान्य बात हो जायेगी । और हम अपने नेताओं और संगठनो को ही कोसते रह जाएंगे ।


कहने को यह मामले सामान्य प्रशासनिक  प्रक्रिया लगते है , लेकिन दी हुई सुविधा को कम करने या वापस लेने के यह अनोखे प्रकरण है ,किसी भी संवर्ग ( अध्यापक संवर्ग ) को दी जा रही सुविधा में कटौती एवं नियमों को ही बदलने वाली यह  पहली सरकार बन गयी है  ,और  अपनी राजनैतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप रहने वाले हम  पहले कर्मचारी । इन निर्णयों को अध्यापक समाज को कतई स्वीकार नहीं करना चाहिये । (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

Friday, July 29, 2016

अध्‍यापक संवर्ग एवं संविदा शाला शिक्षको के वेतन/मानदेय के भुगतान हेतु बजट की व्‍यवस्‍था के संबंध में

अध्‍यापक संवर्ग एवं संविदा शाला शिक्षको के वेतन/मानदेय के भुगतान हेतु बजट की व्‍यवस्‍था के संबंध में ,गलत मद से आहरण किया तो DDO  से वसूला जाएगा पैसा  इसका आदेश  जारी  कर दिया गया है। आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें




शासकीय शालाओं में आहरण संवितरण की नवीन व्‍यवस्‍था लागू होने के फलस्‍वरूप अभिलेखों एवं लेखो का संधारण ।

शासकीय शालाओं में आहरण संवितरण की नवीन व्‍यवस्‍था लागू होने के फलस्‍वरूप अभिलेखों एवं लेखो का संधारण  कैसे किया जाएगा इसका आदेश आज जारी  कर दिया गया है। 
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें



Wednesday, July 27, 2016

प्रदेश में 1 से 15 अगस्त के बीच तबादले हो सकेंगे,अध्यापक आदेश की प्रतीक्षा करे

 सरकार ने मंगलवार को तबादलों पर से प्रतिबंध हटा लिया। प्रदेश में 1 से 15 अगस्त के बीच तबादले हो सकेंगे। जिलों में तबादले प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से होंगे, वहीं विभागों में तबादले मुख्यमंत्री समन्वय के माध्यम से होंगे। ये निर्णय मंगलवार को विधानसभा में हुई कैबिनेट की बैठक में लिए गए। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए कि तबादले न्यूनतम हों।

कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए जनसंपर्क मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि तबादलों से प्रतिबंध हटाने के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए कहा गया है कि इसे न्यूनतम ही किया जाए। राज्य स्तर के विभागों में तबादले समन्वय में जाएंगे।

साथियो इसके बाद अध्यापक  संवर्ग का भी संविलियन ( स्थांतरण ) होगा ,लेकिन नियम व शर्ते क्या होंगी यह अभी नहीं कहा जा सकता है ,इसके लीये हमें बिना मतलब कयास  लगाने के स्थान पर ,आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए। 






अध्यापक संवर्ग को संतान पालन अवकाश पर वित्त विभाग विभाग की आपत्ति का राज्य अध्यापक संघ करेगा कड़ा विरोध, 29 व 30 जुलाई 2016 को चलाया जाएगा पोस्ट कार्ड अभियान - जगदीश यादव


अध्यापक संवर्ग को संतान पालन अवकाश पर वित्त विभाग विभाग की आपत्ति का राज्य अध्यापक संघ करेगा कड़ा विरोध, 29 व 30 जुलाई 2016 को चलाया जाएगा  पोस्ट कार्ड अभियान  - जगदीश यादव
राज्य अध्यापक संघ के प्रांताध्यक्ष श्री जगदीश यादव ने कहा है कि लोकशिक्षण आयुक्त श्री नीरज दुबे से हुई चर्चा में उन्होंने बताया कि अध्यापक संवर्ग हेतु महिला अध्यापक साथियों को संतान पालन अवकाश की पात्रता हेतु वित्त विभाग की असहमति है इसीलिए अध्यापक संवर्ग को संतान पालन अवकाश की पात्रता नही होगी, जिस पर श्री यादव ने कहा कि राज्य अध्यापक म.प्र.शासन के इस निर्णय की घोर निंदा करता है और इसके विरुद्ध कड़ा संघर्ष करेगा,

संघ  दिनांक 29 व 30 जुलाई 2016 को पञ्च , सरपंच जनपद सदस्य के समर्थन पत्र के साथ राज्य अध्यापक संघ महिला मोर्चा के नेतृत्व में संपूर्ण प्रदेश की महिला अध्यापक साथी माननीय मुख्यमंत्री महोदय, माननीय वित्त मंत्री महोदय एवं माननीय शिक्षा मंत्री महोदय को संबोधित संतान पालन अवकाश की पात्रता हेतु मांग करते हुए पोस्ट कार्ड लिखकर प्रेषित कर विरोध प्रदर्शन करेंगी

 प्रांत प्रमुख महिला मोर्चा सुश्री सुषमा खेमसरा ने भी म.प्र.शासन की इस दोहरी नीति का कड़ा विरोध करते हुए प्रदेश की महिला अध्यापक साथियों का आह्वान करते हुए कहा है कि क्या केवल राज्य शासन एवं शिक्षा विभाग में कार्यरत महिला कर्मचारी ही मातृत्व अवकाश के लिए ही पात्र हैं, क्या म.प्र.शासन की नजर में केवल वही  महिलायें हैं, अध्यापक संवर्ग में कार्यरत महिला अध्यापक साथी क्या महिला नही हैं , क्या अध्यापक महिला साथियों को संतान पालन के दौरान अवकाश सुविधा की आवश्यकता नही है, तो फिर शासन की यह दोहरी नीति क्यों?
हम म.प्र. शासन के इस दोहरे एवं सौतेले मापदंड की घोर भर्त्सना करते हैं और समस्त महिला अध्यापक साथियों से विनम्र आग्रह करते हैं कि शासन की इस दोहरी नीति का हम डटकर मुकाबला करेंगे। आगामी 29 व 30 जुलाई 2016 को पोस्ट कार्ड अभियान चलाते हुए शासन को अपनी मातृशक्ति होने  का परिचय तो देंगे ही, साथ ही जिला, ब्लाक व प्रत्येक स्तर पर अपने हक़ के लिए संघर्ष करेंगें।



अध्यापक हित में एक चिंतन -सियाराम पटेल नरसिंहपुर

सियाराम पटेल - अध्यापक हितेषी सभी संघठन जो एकता की बात तो करते हैं पर वास्तव में क्या एकता के सच्चे हितेषी हैं, यदि एकता या अध्यापक हितेषी हैं तो-

*किसी संघठन विशेष या उसके नेतृत्व पर आपसी छीटाकशी क्यों ?
*यदि कोई संघ अध्यापक संघर्ष के लिए योजना या रणनीति की घोषणा करता है तो शेष दूसरे संघ आरोप प्रत्यारोप करने लगते हैं क्यों ?
*क्या हमारी वास्तविक लड़ाई शासन से है या आपसी ?
*क्या हम शासन से लड़ रहे हैं या आपस में  ?
*क्या सभी संघों का मुख्य उद्देश्य अध्यापक हित है या वर्चस्व की लड़ाई या स्वहित ?
*सभी अध्यापक हितेषी संघ बड़े जोर शोर से अध्यापक हित में संघर्ष व एक लक्ष्य की बात तो करते हैं, पर वास्तव में सभी सही दिशा में अग्रसर हैं क्या ?

सभी ज्येष्ठ, श्रेष्ठ विद्वान जनों से उपरोक्त कुछ प्रश्नों पर चिंतन करते हुए अनुरोध है कि हम एकता की ओर कदम बढ़ाने का प्रयास करें। यदि एकता नही भी होती है तो न सही, पर जब लक्ष्य एक है तो उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु शासन से अपने अपने स्तर से ईमानदारी से संघर्ष करें न कि अपने वर्चस्व की लड़ाई हेतु आपसी संघर्ष।

    अध्यापक हितेषी प्रदेश के सभी ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व विद्वत अध्यापक भाईयों व बहिनों से विनम्र आग्रह है कि घर बैठकर सोशल मीडिया पर टीका टिप्पणी करने की बजाय आपकी आस्था जिस किसी भी संघ या नेतृत्व में हो उस पर भरोसा करते हुए आह्वान पर संघर्ष में अपना सहयोग अवश्य प्रदान करें।

    मैं संघ विशेष का निष्ठावान कार्यकर्त्ता होने के कारण ये नही कहता हूँ कि राज्य अध्यापक संघ म.प्र. ही सर्वश्रेष्ठ है और दुसरे अन्य संघ श्रेष्ठ नही हैं। मेरा आग्रह तो बस इतना है कि केवल घर बैठे सोशल मीडिया पर टीका टिप्पणी करने से जंग नही जीती जाती, जंग तो जंग ए मैदान में संघर्ष से ही जीती जाती हैं।
   

    आशा है कि सभी सोशल मीडिया के जागरूक , निष्ठावान, संघर्षशील,  कर्मठ व जुझारू साथी एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करने की बजाय अध्यापक संवर्ग की लड़ाई व लक्ष्य प्राप्ति में अपना अमूल्य सहयोग पूर्ण निष्ठा सहित प्रदान करेंगे।

यह लेखक के  निजी विचार है 



95 हजार महिला अध्यापकों को नहीं मिलेगी चाइल्ड केयर लीव - सरकार दवरा ही अपने नियमो का उल्लंघन ,कथनी व करनी का अंतर उजागर

भोपाल, सौरभ खंडेलवाल। मप्र की 95 हजार महिला अध्यापकों को 730 दिन की चाइल्ड केयर लीव नहीं मिल सकेगी। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने असहमति जताते हुए इसे अव्यवहारिक माना है। सरकारी महिला कर्मचारियों के लिए चाइल्ड केयर लीव की शुस्र्आत 2015 में ही हुई थी, लेकिन महिला अध्यापकों को इससे वंचित रखा गया था। अध्यापकों की मांग के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने वित्त विभाग को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा था, लेकिन वित्त विभाग ने इसे मानने से इंकार कर दिया।

50 प्रतिशत महिलाएं

वित्त विभाग का कहना है कि स्कूल शिक्षा विभाग में 50 प्रतिशत महिलाएं हैं, इसलिए यहां चाइल्ड केयर लीव देना अव्यवहारिक है। स्कूल शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी एसआर मोहंती ने बताया कि हमने महिला अध्यापकों को चाइल्ड केयर लीव देने के लिए वित्त विभाग से बातचीत की थी, लेकिन वित्त विभाग इसके लिए राजी नहीं है। महिला अध्यापकों को 180 दिन का मातृत्व अवकाश मिलता रहेगा। स्कूल शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक महिला अध्यापकों को चाइल्ड केयर लीव देना इसलिए व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि इससे स्कूलों में पढ़ाई बाधित होगी। पिछले कुछ दिनों से अध्यापक संगठन चाइल्ड केयर लीव देने की मांग कर रहे थे।
वित्त विभाग का मत नगरीय प्रशासन और पंचायत विभाग को भेजा
सूत्रों के मुताबिक वित्त विभाग के जवाब को स्कूल शिक्षा विभाग ने नगरीय प्रशासन और पंचायत विभाग को भेज दिया। प्रदेश के सभी अध्यापक नगरीय प्रशासन और पंचायत विभाग के हैं। इस संबंध में कोई भी आदेश ये विभाग ही जारी करेंगे।

कुछ अध्यापकों को मिल चुकी है चाइल्ड केयर लीव

2015 में चाइल्ड केयर लीव की अधिसूचना जारी होने के बाद स्पष्ट निर्देश नहीं होने से प्रदेश के कई जिलों में महिला अध्यापकों को चाइल्ड केयर लीव दी जा चुकी है। इसके बाद जब विभाग से अध्यापकों के संबंध में स्पष्ट निर्देश मांगा गया तो फिर यह लीव देना बंद कर दिया गया। चाइल्ड केयर लीव के तहत 18 साल तक के दो बच्चों की देखभाल के लिए महिला सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी के दौरान 730 दिन तक का अवकाश ले सकती हैं।
 
स्त्रोत नईदुनिया

 
 "  साथियों विधान सभा में दी गयी जानकारी और जवाब से सरकार की कथनी और करनी का अंतर उजागर होता है साथ ही ,अपने ही बनाये नियमो का उल्लंघन भी सपष्ट नजर आता है ,नियमो में सरकार कहती है की अध्यापक संवर्ग  को शिक्षक संवर्ग के सामान हर अवकाश की पात्रता है ,वन्ही व्यवहारिक रूप से यह लागू नहीं किया जाता है ,संतान देखभाल  अवकाश के नियमो में सपष्ट है की DDO की स्वीकृति के पश्चात ही अवकाश लिया जा सकता है ,तो पढाई प्रभावित होने का तर्क ,तर्क कम कुतर्क  ज्यादा लगता है .आदेश होने के  पश्चात्  बहनों  को न्यायलय की शरण में जाना चाहिये  "सुरेश यादव रतलाम 

                                



Tuesday, July 26, 2016

अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु होगी कमेटी गठित - मुख्यमंत्री ,15 अगस्त तक सन्विलियन नहीं हुआ तो शिक्षक दिवस दिल्ली में मनाएंगे- जगदीश यादव


 अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु होगी कमेटी गठित - माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने किया आश्वस्त  ,संविलियन होने तक जारी रहेगा आंदोलन, यदि 15 अगस्त 2016 तक शिक्षा विभाग में संविलियन नही हुआ तो 5 सितम्बर 2016 को कूच करेंगे दिल्ली- जगदीश यादव

सुसनेर विधायक श्री मुरलीधर  पाटीदार की मध्यस्थता  एवं प्रांताध्यक्ष श्री जगदीश जी यादव के नेतृत्व में प्रांतीय उपाध्यक्ष शैलेन्द्र जी त्रिपाठी, प्रांतीय महासचिव दर्शन सिंह जी चौधरी, दिनेश जी शुक्ला, जिलाध्यक्ष मंडला एवं वरिष्ठ सलाहकार डी.के. सिंगौर जी, प्रांतीय प्रतिनिधि विपिन जी तिवारी, जिलाध्यक्ष जबलपुर नरेंद्र जी त्रिपाठी, अनिल जी पाटीदार ने राज्य अध्यापक संघ के प्रतिनिधिमंडल के रूप में आज अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन की प्रमुख मांग को लेकर माननीय मुख्यमंत्री महोदय से मुलाक़ात की। प्रतनिधिमंडल से मुलाक़ात के दौरान वार्ता में माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु कमेटी गठित करने की बात पर सहमति जताई। जगदीश जी यादव एवं प्रतिनिधि मंडल ने माननीय मुख्यमंत्री महोदय से 15 अगस्त 2016 तक अध्यापक संवर्ग में संविलियन किये जाने की मांग की। 


तत्पश्चात दूरभाष पर हुई चर्चा अनुसार  

श्री जगदीश  यादव ने बताया की अध्यापक संवर्ग को  शिक्षक संवर्ग के समान वेतन मान प्रदान करने व 2007 से शिक्षक संवर्ग के समान वेतन मान की काल्पनिक गणना कर के सेवा पुस्तिका में दर्ज  करने ( २०१३ के अंतरिम राहत के आदेश अनुसार ) की मांग भी की गयी जिस पर मुख्य मंत्री ने अधिकारियों से वार्ता करवाने का आश्वासन दिया 

श्री जगदीश यादव ने कहा , कि राज्य अध्यापक संघ द्वारा शिक्षा विभाग में संविलियन तक आंदोलन जारी रहेगा और 15 अगस्त 2016 तक यदि संविलियन नही किया जाता है तो 05 सितम्बर 2016 को दिल्ली कूच करने का एलान किया है , और राज्य अध्यापक संघ द्वारा शिक्षा विभाग में संविलियन तक  चरणबद्ध आंदोलन किये जाने की घोषणा भी की ।


Saturday, July 23, 2016

अधिकारीगण अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखें- अरविन्द रावल


 अरविन्द रावल - शिक्षक का मूल कार्य शिक्षा देना हे। एक आदर्श शिक्षक वही होता हे जो लिक से हटकर विद्यार्थियो की मनःस्थिति को समझकर अध्यापन कार्य करवाये। अध्यापन कार्य करवाने के कहने को एक हजार सरकारी नियम कायदे हे किन्तु इन सरकारी नियम कायदों से इतर जाकर भी अच्छा अध्यापन कार्य शिक्षक द्वारा करवाया जा सकता हे। बशर्ते यदि शिक्षक को इन अध्यापन के नियम कायदों के बंधनो से मुक्त कर दिया जाये तो।
अधिकारीगण बेशक स्कुलो का औचक निरीक्षण करे कोई हर्ज नही यह उनका दायित्त्व हे। लेकिन शिक्षक यदि संस्था में हे और वह अपना दायित्त्व ईमानदारी से निभाते हुए बच्चों को अध्यापन करवा रहा हे और बच्चे भी रुचिपूर्वक अध्यनन कर रहे हे तो अधिकारिगणो को अपने शिक्षक पर गर्व होना चाहिए उसकी प्रशंसा करना चाहिए। किन्तु दुःख इस बात का हे कि उचे ओहदे पर बेठे कुछ कतिपय अधिकारीगण पद के गुमान में उन शिक्षको की प्रशंशा या उन पर गर्व करना तो दूर उल्टे शिक्षको को पढाने के हजार नियमो का पालन नही करने के जुर्म में दण्डित करके चले जाते हे और अगले दिन अखबारो के पन्नों पर अपने दौरे का सरकारी बखान कर ईमानदार शिक्षक की इज्जत को तार तार करते हे।
आज आठवी तक सबको पास करो rte की नियमऔर शिक्षको की भारी कमी की वजह से नवमी के बच्चों को बेसिक ज्ञान सिखाना पड़ता हे। कुछ उच्च सरकारी या शहरी स्कुलो को छोड़कर पुरे प्रदेश में नवमी के बच्चों को न तो लेसनप्लांन के आधार पर न तो सिलेब्स के आधार पर और न ही शिक्षक डायरी के आधार पर अमूमन ईमानदारी से अध्ययन करवाया जा सकता हे। यदि इन सब नियमो का शिक्षक को उलझाकर रखेगे तो  वह बच्चों को बेसिक ज्ञान नही दे पायेगा। जब तक बच्चों को बेसिक ज्ञान ही समझ में नही आएगा तो वह कोर्स की किताबी भाषा को समझ ही नही सकेगा। शिक्षक से सिर्फ सरकारी नियम कायदों से कोर्स करवाना ही अधिकारियो का उद्देश्य होगा तो फिर निश्चित ही शिक्षक उसका पालन कर अपने कार्य की इतिश्री ही करेगा लेकिन बच्चों में गुणवत्ता नही आएगी जो उसके लिए सबसे अहम हे।
उक्त बातो से यहा मेरा आशय यही हे की शिक्षक यदि तमाम दायित्त्वो के निर्वहन करने साथ यदि बच्चों को ईमानदारी से जो भी उसके अनुसार अध्यापन करवा रहा हे उसे करवाने दे। क्योंकि एक शिक्षक ही पुरे वर्ष विद्यार्थियो के साथ रहता हे न की अधिकारीगण। शिक्षक को ही अपने विद्यार्थियो की गुणवत्ता और कमजोरी का पता होता हे न की निरीक्षणकर्ताओ को। स्कुल का निरीक्षण जो भी अधिकारीगण करे स्वागत हे लेकिन विद्यार्थीहित में एक निवेदन हे की आप शिक्षक और विद्यार्थियो से पुछ कर विद्यालय की समस्या और कमियो को दूर कर अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखिये।
लेखक स्वयं अध्यापक है यह उनके निजी विचार हैं .

Friday, July 22, 2016

अध्यापक संवर्ग का शिक्षा विभाग मे संविलियन क्यों जरूरी,-प्रशांत दीक्षित खण्डवा


प्रशांत दीक्षित -जिलाध्यक्ष राज्य अध्यापक संघ खण्डवा
1-जिस विभाग का हम मुख्य कार्य कर रहे है, उसकी संवैधानिक स्वीकार्यता के लिए जरुरी।

2-2022 के बाद केवल चुनिंदा शिक्षक विभाग मे शेष, स्वयं के साथ विभाग के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए जरुरी।

3-अनुदान मद की अपेक्षा कर्मचारी वेतन मद से वेतन भुगतान सम्भव।

4-शिक्षा विभाग की सुविधा के साथ पूर्ण शिक्षक का दर्जा,, अभी पैरा टीचर्स की श्रेणी है।

5-पुरानी पेंशन की मांग व उस पर विचार शिक्षा विभाग मे संविलियन पर ही सम्भव।

6-पेंशन के साथ ग्रेज्युटी की मांग भी उससे जुडी होगी, क्योकि2004-5 मे अंशु वैश्य कमेटी की सिफारिश पर केबिनेट का फैसला हो चुका है।nps के कारण ग्रेज्युटी(उपादान)बन्द हुआ।

7-hra, बीमा, अन्य भत्ते पर स्वतः लाभ मिलना चालु।

8-कम से कम सन् 2050 तक शिक्षा विभाग बना रहे, उसके लिए आवश्यक।

9-किसी भी नवीन प्रक्रिया  लागु होने पर कम संघर्ष की आवश्यकता।

10-क्रमोन्नति पदोन्नति के सामायिक लाभ, समयमान वेतनमान ।

11-सबसे महत्वपूर्ण हमारे सपने व संघर्ष की पूर्णता जिसे संजोकर हमने इस विभाग मे कार्य करना स्वीकार किया।

12-आप भी कोई बिंदु छूट गया हो तो जोड़ सकते है।,,,इसलिये आओ कदम आगे बढ़ाये मिलकर,, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए,,,संघर्ष हमारा अधिकार व कर्तव्य भी है,,उसमे सहभागिता करे।


Thursday, July 21, 2016

शाबाश दर्शन, तुम वाकई जगदीश के सारथी हो - वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वसुदेव शर्मा - बीते कुछ सालों में शिवाराज सिंह की सरकार ने भोपाल से हर उस प्रदर्शनकारी को खदेड़ा है, जो जिंदा रहने लायक वेतन मांगने वहां पहुंचा। जिन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं, जेलों तक जाना पड़ा उनमें अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी, अतिथि विद्वान जैसे वे सभी कर्मचारी शामिल हैं, जो सरकार के यहां संविदा की नौकरी कर रहे हैं। शिवराज की सरकार ने डंडों का उपयोग छोटे कर्मचारियों को डराकर शांत रहकर गुलामी करते रहने के मकसद से किया था। लाठियां खाकर जिस तरह शांत हो जाते थे, उससे शिवराज सिंह को लगता रहा होगा कि वह अपनी कोशिश में सफल हो रहे हैं, शायद इसीलिए उन्होंने इनके संगठनों को भोपाल में धरने की परमीशन देना ही बंद कर दी है। शिवराज सिंह सरकार की इस मनमानी का जबाव दिया जाना चाहिए था, यह इच्छा हर उस छोटे कर्मचारी की थी, जिसने सरकार की तानाशाही को झेला है। पुलिस के डंडे खाएं हैं। जेलों की असहनीय पीड़ा को सहा है।
3 जनवरी 2016 से 21 जुलाई के बीच यह काम सफलता के साथ किया गया है। इन 6 महीन में दर्शन सिंह चौधरी ने जगदीश यादव का सारथी बनकर प्रदेश के 51 जिलों में तावड़तोड़ सभाएं कर शिवराज की तानाशाह सरकार को करार जबाव दिया है। 3 जनवरी से शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ अभियान चलाया गया, जिसके दौरान 150 से अधिक सभाएं की गईं। 30 दिन से संविलियन यात्रा प्रदेश में घूम रही है, जिसके तहत अब तक 100 से अधिक सभाएं हो चुकी हैं। सभाओं का सिलसिला रात 9 बजे तक चलता रहता है। इन सभाओं में दर्शन सिंह चौधरी ने जिन तेवरों के साथ अपनी बात को रखा है, वह वाकई काविले तारीफ है। दर्शन सिंह की चिंता अध्यापकों तक ही सीमित नहीं रहती, वे इसके आगे जाकर उस नीति पर हमला करते हैं, जिसके कारण प्रदेश के युवाओं के 10, 15, 20 साल बर्बाद हो चुके हैं। जब दर्शन सिंह चौधरी युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने का आव्हान करते हैं, तब सभास्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठता है यानि अध्यापकों के बीच चल रहा यह अभियान आने वाले दिनों में जनांदोलन की बुनियाद रखेगा, हो सकता है 25 जुलाई को भोपाल में युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने के खिलाफ ऐसे किसी जनांदोलन की घोषणा हो जाए
अपने अध्यक्षीय भाषण में जगदीश यादव जब विस्तार से अध्यापकों के साथ हो रहे अन्याय के कारणों के बारे में बताते हैं, तब लगता है कि दर्शन सिंह और जगदीश यादव की जोड़ी वाकई अब तक हुए अन्याय का बदला लेने के लिए ही निकली है। अध्यापकों को संबोधित करते हुए जगदीश यादव जिन सवालों को उठाते हैं, उन सवालों पर चर्चा करना आज बेहद जरूरी है। जगदीश यादव बताते हैं कि ज्यादातर अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी या अतिथि विद्वान छोटे एवं निम्न किसान परिवारों, एवं मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं, सरकार इन परिवारों को आर्थिक बदहाली में पहुंचाने के लिए ही संविदाकरण की नीति को लागू किए हुए हैं। जगदीश यादव बताते हैं कि महंगाई बढ़ती है, तब इसका असर भी हमारे ही परिवारों पर पढ़ता है। जब सरकार तानशाही के रास्ते पर चलती है, तब इसका शिकार भी हम लोग ही होते हैं, क्योंकि हम लोग असमानता के शिकार है और इसे मिटाना चाहते हैं। सरकार ऐसा करने नहीं देगी, इसीलिए टकराव बढ़ेगा, जिसका मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि सरकार की तानाशाही के शिकार सभी लोग एकसाथ आएं और उस नीति को बदलने के लिए लड़ें, जिसके कारण हमारी जवानी बर्बाद हुई है। जगदीश एवं दर्शन सिंह का यह आव्हान भविष्य के बड़े जनांदोलन का आगाज भी है और अध्यापकों की जीत का भरोसा भी।
मंत्रियों से नजदीकियां बढ़ाने की आदत छोडि़ए !
बल्लवभवन के चक्कर लगाना बंद कीजिए !
अपने भविष्य की बेहतरी का रास्ता खुद बनाईए !
जो लड़े हैं, वे ही जीते हैं !
जो निहत्थे लड़े हैं, वे हारकर लौटे हैं !
असमानता को मिटाने वाले विचार को हथियार बनाईए !
सिर्फ जीतने के संकल्प के साथ 25 को भोपाल पहुंचिए ! 

लेखक पत्रकार हैं और यह उनके  निजी विचार हैं .


Wednesday, July 20, 2016

साथियो सभी के मन में जिज्ञासा है कि संविलियन की लड़ाई अभी से (जुलाई 2016 से) क्यों ?- सुरेश यादव रतलाम

साथियो सभी के मन में जिज्ञासा है कि संविलियन की लड़ाई अभी से (जुलाई 2016 से) क्यों ?
यह प्रश्न  हम से  कई लोगो ने  पूछा हैं ,और भी पूछे जाएगे । 
आप को क्या लगता है इस बारे में  हमने नहीं सोचा है ?  हमें इस प्रकार के सभी सवाल का जवाब भी देना है और संविलियन करवा  के भी बताना है । हम ही वो लोग है जो लड़ते आये है 2015 में भी लड़े (बस हमारा  सूझबूझ भरा नेतृत्व नहीं था )।
आप को याद है की पिछली बार अंदोलन सितम्बर 15 में हुआ था  जिसका  आदेश  31 मई को जारी हुआ अर्थात 8 महीने बाद लेकिन लाभ अब भी नहीं मिला ।
आप को और पीछे लिए चलते हैं 2012-13 में ,तब क्रमिक आंदोलन की शुरुवात सितम्बर 12 से हुई ,3 से 5 दिसम्बर को बडा आंदोलन हुआ । 13 जनवरी 2013 को भोपाल आये और 13 मार्च को अंदोलन समाप्त हुआ । समान वेतन मान को अंतरिम राहत में देने का आदेश हुआ 4 सितम्बर 13 को ।
मतलब की आन्दोलन समाप्त होने के 6 महीने बाद ।
अब  2010 में ले चलते है हमने 5 सितम्बर 10 को भोपाल में प्रदर्शन किया लाठीचार्ज हुआ ।अक्टूबर में हड़ताल हुई , nps का लाभ मिला मार्च-अप्रैल 11 से ,9 महीने बाद ।

 2005 का अंदोलन 54 दिन का हुआ ,इतिहास का पहला आंदोलन जब हड़ताल के दौरान ही आदेश हुए । इसी आंदोलन के कारण आज संविदा शिक्षक और गुरूजी  भी अध्यापक बन रहे हैं ।
 2005 का अंदोलन कई आदेशो के साथ ऑक्टोबर में समाप्त हुआ । फिर  दिसम्बर  05 में डी पि दुबे समिति बनी, जिसने 1 वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट दिस्म्बर 6 में सौंपी । 24 फरवरी 07 को  भोपाल में cm ने अध्यापक बनाने की घोषणा की सुभाष उत्कृष्ट स्कुल मैदान पर की ।  और आदेश हुए 26 जून 2007 के दिन ।
अब वापस जुलाई 16 में आते है यह विधानसभा का घेराव 25 जुलाई को है गणना पत्रक जारी हो भी जाये तब भी जारी रहेगा क्योकि गणना पत्रक तो सरकार को जारी  करना ही है  । हम  25 जुलाई को घेराव करेंगे कुछ
इस क्रमिक आंदोलन के कुछ दिनों बाद अंदोलन होगा जो सम्भतः 15,20 से 25 दिन चल सकता है । सरकार  कुछ  समय बाद बुला कर बात करेगी फिर संविलियन के लिए समिति बनाने का कहेगी तब तक दिसम्बर 16
हो जाएगा । 17 में समिति बनेगी जो 6 माह या 1 साल के लिए होंगी ।बाद में समिति अपनी  सिफारिश करेगी
। संविलियन के लिए कानून में बदलाव करना  होगा जो विधान सभा के बाद लोकसभा से  होगा । तो ऐसा
करते करते 18 आ जायेगा । और 18 में चुनाव है 2018 में मांनसुन  सत्र आखरी सत्र रहेगा । हम संविलियन
की इस लाड़ई को 2023 तक नही खींचना चाहते ।  
अब आप समझें । वेतन का आदेश तो 2013 में ही हो गया था । अभी भी आदेश हो ही जायेगा ।  हमारा
असली लक्ष्य संवलियन है । संविलियन ही हमारी हर समस्या का हल और अंत है । इस लिए कृपया 25 जुलाई
को एक दिवस का आकस्मिक अवकाश लेकर अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए भोपाल अवश्य पहुंचें
 संविलयन की लाड़ई हमारी अपनी लडाई है ।और हमारी संख्या बल पर ही इस लडाई में  हार जीत निर्भर है ।
अब आप स्वयं ही तय करें । आप को क्या करना है।
सुरेश यादव कार्यकारी जिलाध्यक्ष राज्य अध्यापक संघ जिला रतलाम 

शासकीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु मूल निवासी प्रमाण पत्र के संबंध में स्पष्टीकरण

शासकीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु मूल निवासी प्रमाण पत्र के संबंध में स्पष्टीकरण के संबंध में ,अब आधार कार्ड ,राशन कार्ड ,जिले से पास होने की अंक सूचि और SSSM ID को भी निमास प्रमाण पत्र के रूप में  स्वीकार किया जाएगा। आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करे



शासकीय एवं अशासकीय डी.एल.एड. संस्थानों/महविद्यालयों में प्रवेश अन्तर्गत विषय संकाय संशोधित करने के संबंध में

शासकीय एवं अशासकीय डी.एल.एड. संस्थानों/महविद्यालयों में प्रवेश के लिए प्रथम प्रतीक्षा सूचि जारी  होने के  पूर्व एक बार के लिए  विषय संकाय संशोधित करने के संबंध में आज आदेश जारी कर दिया गया है।
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें

Monday, July 18, 2016

शिक्षको को एप्रिन नही बच्चों को स्वेटर व् चप्पल दे सरकार - अरविन्द रावल झाबुआ

अरविन्द रावल- मध्यप्रदेश सरकार के माननीय मुख्यमंत्रीजी और शिक्षा मन्त्रीजी से निवेदन हे कि प्रदेश के शिक्षको को ड्रेस एप्रिन पहनाने या एम शिक्षा मित्र के माध्यम से अंगूठा लगवाने से पहले प्रदेश के ग्रामीण अंचल के गरीब वर्ग के बच्चों की हालत पर भी एक नज़र जरूर ध्यानपूर्वक डाले। प्रदेश सरकार प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक के बच्चों को निशुल्क किताबे निशुल्क गणवेश और मध्यान भोजन तो देती हे लेकिन इसके बाद की बच्चे की  स्थिति पर शायद सरकार का ध्यान अभी तक गया नही हे। माननीय मुख्यमंत्रीजी एवम् शिक्षा मन्त्रीजी प्रदेश में आज भी ग्रामीण क्षेत्रो के गरीब वर्ग के मासूम बच्चे अपनी आर्थिक स्थिति ठीक नही होने की वजह से नंगे पैर आग उगलती गर्मी में स्कुल आते हे। इतना ही नही कड़कड़ाती सर्दी में भी तन पर शर्ट या फ्राक पहनकर गरीब बच्चे कपकपाते हुए स्कुल आते हे। माननीय महोदय आप बहुत संवेदनशील हे आप इन गरीब बच्चों के दर्द को समझ सकते हे की कितनी पीड़ा होती होंगी सर्दी गर्मी में इन बच्चों को स्वेटर और चप्पल के अभाव में।

माननीय महोदय मेरा इतना भर निवेदन हे की सरकार शिक्षको की नियमितता  के लिए एम शिक्षा मित्र ऐप और ड्रेशकोड व् एप्रिन लागु करने जा रही हे माननीय महोदय यदि आपकी सरकार इन योजनाओ को लागु न करके इस पर व्यय होने वाली राशि से सरकारी स्कुल में पड़ने वाले गरीब मासूम बच्चों को चप्पल व् स्वेटर का शासन स्तर से इंतज़ाम किया जाता हे तो यह एक बहुत बड़ा परोपकारी कार्य होगा और आपकी सरकार का यह नेक कार्य देश की केंद्र व् राज्य सरकारो के लिए प्रेरणा दायक भी सिद्ध होगा।    

   माननीय मुख्यमंत्रीजी और शिक्षामंत्रीजी शिक्षको की नियमितता और निरीक्षण के लिए तो पहले से ही जिले व् ब्लाक स्तर पर कई अधिकारी नियुक्त हे । ऊपर से उपरोक्त योजनाओ को लागु कर धन खर्च करने से क्या मतलब ? यदि इन योजना को लागु ही करना हे तो फिर जिले व् ब्लाक में बेठे शिक्षको के इन अधिकारियो का क्या आचित्य हे ? महोदय शिक्षको पर तो बिना खर्च के     

    आसानी से नज़र रखी जा सकती हे । सरकार  शिक्षा से राजनीतिक दखलअंदाजी खत्म कर दे और शासन थोड़ी कसावट लाये तो बिना खर्च किये भी शिक्षक की  नियमितता और निरक्षण किया जा सकता हे।माननीय महोदय मेरा एक बार पुन निवेदन हे कि शिक्षको की नियमितता पर अनावश्यक खर्च करने की बजाय सरकार उक्त राशि से प्रदेश के गरीब बच्चों के लिए चप्पल व् स्वेटर देने की योजना लागु करे ताकि कोई मासूम आने वाली सर्दी व् गर्मी में अपनी बदकिस्मती को कोसे नही।

सरकारी स्कूल के बच्चे अब अपने गांव का भूगोल किताबों में पढ़ेंगे

भोपाल.प्रदेश के सरकारी स्कूल के बच्चे अब अपने गांव का भूगोल किताबों में पढ़ेंगे। इसकी शुरुआत हरदा के छिदगांव तमोली जैसे छोटे से गांव में हो चुकी है। इस शुरूआत से एक IAS इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने पूरे 1 घंटे छात्रों के साथ जमीन पर बैठकर क्लास ली।
क्या है मामला...
-हरदा के छिदगांव तमोली में दो साल पहले अस्तित्व में आए मिडिल स्कूल में लगभग एक साल से पटवारी पवन बांके बच्चों को गांव का आयात, त्रिभुज, वर्ग वृत, नजरी नक्शा सहित जमीन से संबंधित जानकारियां बता रहे हैं।
-पटवारी की क्लास में केवल लड़के ही नहीं, बल्कि लड़कियां भी अपने गांव का भूगोल समझ रही हैं।
-इसके लिए अब कक्षा छठवीं, सातवीं और आठवीं के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। पूरे प्रदेश में इसे जल्द लागू किया जाएगा।
बच्चों के साथ पढ़ चुकी हैं IAS जिला पंचायत सीईओ
-छिदगांव तमोली समिति की वार्षिक आमसभा हुई थी। इसमें पंचायत हरदा में सीईओ एवं आईएएस अफसर षण्मुख प्रिया मिश्रा भी पहुंची थीं।
-उन्हें पता चला कि स्कूल में पटवारी गांव का भूगोल पढ़ा रहे हैं। वे भी स्कूल पहुंच गईं।
-उनका कहना है कि यह मेरे लिए अच्छा अनुभव था। आईएएस में आने के बाद जमीनों से संबंधित बेसिक जानकारी मुझे मिली। मैने करीब एक घंटा क्लास में छात्रा की तरह बिताया था।
स्कूल के बच्चों को पटवारी ने भूगोल पढ़ाना शुरू किया
-स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप हमारी कोशिश मिडिल और हाईस्कूल के लिए गांव की ज्योग्राफी का पाठ्यक्रम जोड़ने की है।
-वैसे भी भू-राजस्व संहिता में अध्यापन कार्य का उल्लेख है, पर यह काम अभी तक नहीं हो रहा था। पूर्व राजस्व मंत्री रामपाल सिंह पटवारियों द्वारा बच्चों को भूगोल पढ़ाने पर सहमति दे चुके हैं।
- पिछले साल शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी अफसरों को अपने-अपने क्षेत्र के 

स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाने की अपील की थी।
-इस पर छिदगांव तमोली की समिति ने अमल शुरू कर दिया था। गांव के सरकारी मिडिल स्कूल के बच्चों को पटवारी ने भूगोल पढ़ाना शुरू किया था।
30 दिन में 20 घंटे क्लास लेंगे पटवारी
-गांव की सोसायटी के अध्यक्ष अशोक गुर्जर के मुताबिक मोदी की अपील के बाद स्कूल के बच्चों व उनके 

पालकों की संयुक्त बैठक हुई।
-इसमें गांव का भूगोल बच्चों को कैसे समझाया जाए, इसमें किन बातों को शामिल किया जाए?
-इन मुद्दों पर गहन विचार मंथन के बाद सर्व सम्मति से पाठ्यक्रम तय किया। इसके लिए कक्षा 6,7 व 8 की सामाजिक विज्ञान व अन्य विषयों की सरकारी किताबों का भी सहारा लिया।
-इस दौरान ही तय हुआ कि पटवारी गांव की सरकारी स्कूल में 30 दिन में से कभी भी 20 घंटे बच्चों को गांव का भूगोल पढ़ाएगा।
-गुर्जर के मुताबिक गांव का भूगोल बच्चों को पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इसकी प्रति राज्य सरकार को भी भेजी गई है।

प्रस्तावित पाठ्यक्रम
कक्षा छटवीं :गांव का भूगोल- एक परिचय एवं आवश्यकता, बसाहट की इकाइयां-टोला, मोहल्ला, ग्राम पंचायत, गांव के प्रकार-राजस्व, वन, आबाद और वीरान गांव, सीमा चिन्ह-चांदे, मीनारे, त्रिमेंडी, चौमेंडी, रुढि चिन्ह गोहा आदि। ग्राम पंचायत क्षेत्र की प्रमुख फसलें एवं वनस्पति, शासकीय पट्टा, भूमि स्वामित्व, कृषि भूमि, गैर कृषि भूमि, व्यवसायिक भूमि, हल्का व खसरा आदि।

कक्षा सातवीं : गांव व ग्राम पंचायत की सीमाएं, नजरी व मानक नक्शा, जल स्रोतों की जानकारी, नदी, नाले, तालाब व नहरों का सीमांकन, क्षेत्रीय मिट्टी के प्रकार और उसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व। मिट्टी की जांच- नमूने लेने की विधियां व जांच का तरीका।

कक्षा आठवीं : भू अधिकार एवं शासकीय पट्टा अधिकार पत्र, जिम्मेदार संस्था अथवा विभाग, शासकीय कार्यालय से दस्तावेज की नकल प्राप्त करना, विधियां, संशोधन पंजी खसरा प्राप्त करना। भू मापन आवश्यकता तकनीक, उपकरण- कंपास, जरीब, टोपो शीट, टोटल मशीन आदि। भू अभिलेख सेटेलाइट नक्शा व कृषि संबंधी ऑन लाइन सुविधाएं, प्रोजेक्ट वर्क, भू मापन नजरी नक्शा बनाना।

पटवारी, अफसर नहीं दे सकेंगे लोगों को झांसा
-भू-राजस्व संहिता को समझना आसान नहीं होता है।
-यदि स्कूली जीवन में बच्चे पटवारी के कामकाज के तौर-तरीके को समझेंगे तो उन्हें कॉलेज की पढ़ाई के बाद खेती-किसानी के लिए केसीसी बनवाते समय
अनावश्यक पटवारियों या राजस्व अधिकारियों द्वारा जरूरी दस्तावेजों की कमी का हवाला देकर बरगलाया नहीं जा सकेगा। इस पहल से उनका पैसा व समय बचेगा।

Saturday, July 16, 2016

काश मुरलीधर पाटीदार जैसा नेता अतिथि संवर्ग को मिल गया होता - अरविंद रावल झबुआ ...


अरविंद रावल झबुआ राज्य अध्यापक संघ एक शसक्त संग़ठन है। राज्य अध्यापक संघ जमीनी धरातल पर काम करके दिखाने वाला संग़ठन है न की संचार के माध्यम वाट्सएप या फेसबुक के जरिये चलने वाला संग़ठन है। हमारे साथी आलोचना या क्रिया प्रतिक्रियाओ में यकीन नही करते है बल्कि हम सभी को सांथ लेकर एकजुटता में विश्वास रखते है। हम कल भी सबको साथ लेकर चले थे आज भी चल रहे है और कल भी साथ लेकर चलेगे।राज्य अध्यापक संघ ने प्रांताध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार के नेतृत्व में जिस एकजुटता के साथ अपने साथियों के बूते जो अपने हक की अपने पेट की लड़ाईया लड़ी है उसके कसीदे कर्मचारी जगत में आज भी गाये जाते है। हम अध्यापक साथियों ने अपने संघर्ष के बल पर शासन प्रशासन और कर्मचारी जगत में एक सम्मानजनक मुकाम पाया है। हमारे आलोचक भाई वह दिन क्यों याद नही करते जब हम टीन शेड के नीचे बैठकर वल्लभ भवन में जाने और मंत्री या सचिव से मिलने तक के लिए हमे विधायको के चक्कर लगाने पड़ते थे।
हमारे आलोचक अब यह क्यों याद नही करते की वे भी तब एक स्वर में यह कहते थे की हमारे साथियो में से किसी को विधायक बन कर विधानसभा में अपनी बात उठाना चाहिए और अपनी मांगे मनवाना चाहिए। तब सब यही कहते थे की अपने लोगो में से किसी को विधायक बनना चाहिए। तब विधायक बनने से कोई किसी का विरोध नही था।आज जब हम अध्यापको का संघर्षशील नेता ही खुद विधायक बन गया है। अब मंत्री सचिव तो क्या सीधे हम मुख्यमंत्रीजी तक अध्यापको की बात रख सकते है तो इतना विरोध क्यों ? क्या मुरलीधर पाटीदार ने विधायक बनने के बाद कभी यह कहा है की वे अब अध्यापकों की पेट की लड़ाई नही लड़ेंगे ? फिर क्यों इतना विरोध मित्रो ? यह बड़े चिंतन का प्रश्न है साथियो की विरोध करने वाले सिर्फ इसलिए तो कही विरोध नही कर रहे हे की वे मुरलीधर जैसा मुकाम हासिल नही कर पाये।
जिन साथियो ने सड़को पर भूखे पेट संघर्ष किया है। जिन साथियो ने जेल की कोठरियों में कई दिन काटे है वे कभी भी मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण नही करेगे। मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण वही लोग करते हे जो संघर्ष के मैदान छोड़कर घरो में दुबके छुपे थे। मुरलीधर पाटीदार का विरोध करने वाले और अध्यापको के मसीहा बनने वाले यह तो बताये की वे स्वम कितनी बार जेल गए हैं? और कितनी बार अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए उन पर कितने प्रकरण दर्ज हुए है?
मुरलीधर पाटीदार पर तो अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए दर्जनों प्रकरण दर्ज है जिनसे बरी होने के लिए शायद यह जीवन भी कम पड़ जाये। अनगर्ल आरोप लगाने वाले से यह निवेदन है की वे एक भी प्रमाण सिद्ध कर दे की अध्यापको का सौदा कर पाटीदार ने स्वार्थ सिद्ध किया है ? बेवजह के आरोप प्रत्यारोप करने वालो से हमारा आज भी यही कहना है की मुरलीधर पाटीदार राज्य अध्यापक संघ के कल भी सर्वमान्य नेता थे आज भी है और कल भी रहेगे। हम अपने साथियो से सिर्फ इतना ही कहते हे की सड़को पर अध्यापको की लड़ाई लड़ने वाला हमारा यह नेता विधानसभा में भी अध्यापको की लड़ाई पूरे जोशो जुनून से लड़ेगा और शासन से हमारी मांगो का निराकरण करवाएगा।हम अध्यापक साथियो में विचारो का मतभेद होना जायज है लेकिन मतभेद के चलते हम किसी के चरित्र पर ऊँगली उठाये यह हमारी गरिमा के विपरीत है। हम राष्ट्र निर्माता हैं कोई राजनीतिक नही है जो दोषारोपण करके अपनी प्रतिष्ठता को धूमिल करे। हमारी लड़ाई शासन है न की अपनों से है। आज हमारे साथी झूठी उच्च महात्त्वकांक्षाओ के चलते शासन् से लड़ने कि बजाय अपनों को निचा दिखाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने पर तुले हुए है।
लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं .

मूल मातृ संगठन का यह नया रूप ( जगदीश यादव ) आश्वस्त करता है -विनोद कुमार शर्मा अशेाकनगर

विनोद कुमार शर्मा - शिक्षा संविलियन यात्रा के अंतर्गत श्री जगदीश यादव एवं श्री दर्शन सिंह चौधरी दिनांक 14.07.2016 को अशेाकनगर में थे । मैंने यह बात स्पष्टता से रखी कि पाटीदार अध्यापकों के मास लीडर थे, उनके नेतृत्व में अध्यापकों ने सरकारों की मक्कारी को कई बार झुकाया है । परन्तु अब जब वे विधायक हैं, तो साफ है कि सरकार का समर्थक संगठन विरोधी होगा ही । मुंह फुलाना एवं गाली बकना एक साथ नहीं किया जा सकता  । क्योंकि उन्होंने लाखों लोगों के प्रेम की तुलना में अपनी स्वाभाविक महत्वाकांक्षा को ही तरजीह दी है । पहले भी हम कई बार इस बात को कहते रहे हैं कि सरकार एवं सरकार विरोध दो अलग अलग दिशायें हैं । मैंने दोनो साथियों से कहा कि वे पूरा समय लें और हमें कन्वेंश करें कि वे किस तरह पाटीदार से अलग हैं । क्योंकि अभी तक मेरा यही मानना था कि जगदीश यादव एक डमी आदमी हैं । जो कि पाटीदार के संगठन को न छोड़ने के, विरोध के कारण फोटो की तरह लाये गये हैं । मैंने मेरे बोलने की शुरूआत में उनको संबोधित तक नहीं किया था परन्तु..............मुझे खुशी है जगदीश यादव, पाटीदार के संरक्षण में आंदोलन सीखने के बाद, पाटीदार समर्थन से ही अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद,  पाटीदार के सरकारी  प्रेम के प्रभाव में नहीं हैं । वे बेहतर ढंग से अपनी बात रखना जानते हैं । तार्किक हैं । साफ बात करते हैं ।  दर्शन सिंह चौधरी जी जनहित के लिए हौल टाईमर   हैं । एक अध्यापक का इस तरह जीवन चुनना हम सबके लिये गौरव देता है । दोनेां लोगों ने साफ बातें कीं, इतिहास को खंगाला गया, नये आंदोलन पर भी बात हुई, खूबियों खामियों का साफ जिक्र हुआ । सभी संगठनों के जिलाध्यक्ष इस कार्यक्रम में मौजूद थे । सभी लोग उनसे कन्वेंश हुये । कई उदाहरणों से  वे यह बताने में सफल हुये कि पाटीदार का सरकार में होना संगठन राज्य अध्यापक संघ को रत्ती मात्र भी उनसे प्रभावित नहीं करता । ...............मैं तो धार्मिक और कर्मकाण्डी आदमी नहीं हूं, मुझे तो इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु ये दोनों लोग पक्के धार्मिक लोग भी हैं । जगदीश यादव जब इस बात को समझा रहे थे कि उनकी प्रतिबद्धता अध्यापकों से कितनी है ? इसका पीक चढ़ते चढ़ते उन्होंने यहां तक कहा कि मैंने मैहर की शारदापीठ पर मां शारदा के सामने यह कसम खाई है कि मैं अपने संगठन के प्रति जीवन भर प्रतिबद्धता से काम करूंगा एवं संविलियन जैसे लक्ष्य पूरे नहीं हो जाने तक किसी भी सीमा तक जाकर काम करूंगा । कभी भी अध्यापक हित की तुलना में किसी भी तरह का लाभ संबंध एवं यश को महत्व नहीं दूंगा । ..........ये बात तो मैं भी जानता हूं कि पाटीदार का टिकिट एवं आंदोलन के समझाोंतों का आपस में कोई संबंध नहीं है । क्योंकि इनमें सात माह का अंतर है । जबकि टिकिट वितरण की एक रात के हर घंटे दस लोागेां के नाम उपर नीचे हो जाते हैं । ...........मैं पाटीदार पर यह आरोप कभी नहीं लगाता कि उन्होंने अध्यापक हितों के बदले विधायक पद लिया है । अध्यापक हित में उन्होंने बेहतर समझौते किये । उनमें जो खामियां बाद में आई वे सरकार की मक्कारी से पैदा हुई हैं । .......... मेरा यह मानना है कि शिवराज सिंह यह मानते थे कि पाटीदार मास लीडर है इसे तोड़ना अध्यापकों के आंदोलनों को वर्षों के लिये बिना रीढ़ का बना देगा । तथा शेष नेताओं में राजनीतिक महत्वाकांक्षा आ जायेगी जिससे कुर्सी को लार टपकाने वाले ही नेता बनेंगे, जिन्हे तोड़ना आसान होता है । पाटीदार के जाने से आम अध्यापक में अविश्वास घर कर गया । जिसको देखो वही कह देता है कि हम यहां आंदोलन करते हैं, नेता वहां हमें बेच देते हैं । यही मुख्य नुकसान है जो पाटीदार के विधायक बनने से आंदोलन को हुआ है । ........... ..... इस तरह मैं मानता हूं कि शिवराजसिंह की  राजनैतिक चतुराई जीती .....एवं सामान्य यश की महत्वाकांक्षा जिसका बीज हर आदमी में होता है ........ पाटीदार अपनी उस महत्वाकांक्षा को जीत नहीं सके । ......और उन्होंने लाखों लोागेां के प्रेम की तुलना में यश, पद एवं धन को महत्व दिया । .....यह भी सही है कि आज तक शिवराजसिंह जी जैसा आदमी प्रशासन में नहीं रहा कि खुद शोषित कहते हैं कि वे तो देना चाहते हैं अधिकारी या कोई दूसरे लोग उसे नहीं देने दे रहे । आम अध्यापक की वाल भी देखो तो साफ है कि बहुसंख्यक लोग उन्हे अच्छा मानते हैं एवं जिम्मदारी दूसरे लोागेां पर ही डालते हैं । यह राजनैतिक मक्कारी की पराकाष्ठा है । वे सब प्रकार के हमारे विभाजनों के लिये मेहनत करते हैं । ग्यारह संगठन, प्रत्येक को उनका आश्वासन, आशीर्वाद एवं पीठ पर हाथ । अपाक्स सपाक्स जैसा नाटक जो आंदेालनरत कर्मचारियों को जाति के आधार पर भी लड़वा दे । वे जितनी प्रकार से डिवाईड करवा सकते हैं करेंगे । .......... अर्थात वे सफल रहे और वे हमें जिस तरह चलाना चाह रहे हैं हम वैसे ही चल रहे हैं । मनोहर दुबे संयुक्त मोर्चा में हैं, जिनके अथक परिश्रम से 2013 के आंदेालन की कब्र खोदने का प्रयास हुआ । बृजेश  शर्मा जी अशोकनगर आये थे तो उनसे कहा था कि इसका जबाव दो कि आप अभी भी आंदोलन के रथ में दोनों तरफ घोड़े जोतोगे तो रथ आगे कैसे बढ़ेगा । चार आगे खींचने वाले चार पीछे खींचने वाले । .............. उन दिनों जो  सरकार के पांव चाटने की धुन बजाते थे आजकल संघर्ष का राग गा रहे हैं । ....... हर अध्यापक को यह साफ होना चाहिये की सरकार समर्थन एवं संघर्ष एक साथ्  कतई संभव नहीं हैं । ..... जगदीश यादव के अनुसार 25 का घेराव संविलियन के लिये शुरूआत का शंखनाद है । जिसे हम लगातार संघर्ष् के द्वारा प्राप्त करेंगे । संविलियन ही एक मात्र कुंजी जिसके मिलने पर सभी समस्यायें अपने आप खुल जायेंगी । सरकार भी हमें उलझाकर चुनाव तक छंटवा सांंतवा एवं गणनापत्रक जैसी चीजों तक सीमित करना चाहती है । इससे आगे बढ़कर हमें एक मात्र मांग संविलियन का राग शुरू करना चाहिये । यह बेहतर ढंग है ।
         मैं इन दोनों लोागेां से सहमत हुआ एवं मुझे उनकी बातेां से  हृदय की बात लगी । सभी संगठन प्रमुखों ने भी माना कि ये दोनों दिल से बात कर रहे हैं । प्रदेश के नये वातावरण में जब अच्छे, बुरे, गिरगिट सब तरह का नेतृत्व मौजूद है ...उन सबके बीच हमारे मूल मातृ संगठन का यह नया रूप आश्वासन देने वाला लगा । शुभकामनाएं ।।

लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं .

Friday, July 15, 2016

मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा सेवा एवं अधीनस्थ शिक्षा सेवा (शाला शाखा) भरती तथा पदोन्नति नियम, 2016 जारी नियम 2013 निरस्त


मध्यप्रदेश राज्य एवं अधीनस्थ शिक्षा सेवा (शाला शाखा) भरती तथा पदोन्नति नियम, 2016

राज्य शिक्षा सेवा नियम 2013 निरस्त ,क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी ( AEO ) की नियुक्ति ,में न्यूनतम और अधिकतम आयु का बंधन नही ,अनुभव के अंक का भी उल्लेख नही , परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए 5 वर्ष का अनुभव आवश्यक ,
प्राचार्य हाई  स्कुल के लिए 25 प्रतिशत पद वरिष्ठ अध्यापक की विभागीय परीक्षा से पूर्ति कीये  जायेगे , 
न्यूनतम और अधिकतम आयु का बंधन नही ,इसके अतिरक्त  क्या परिवर्तन हुआ है देखने के लिए  इस राज पत्र को देखें 

राज पत्र को पीडीऍफ़ में देखने या डाउन लोड करने के लिए इस लिंक को ओपन करें



Thursday, July 7, 2016

अभी मैं केजी का बच्चा हूं... चार दिन पहले ही मंत्री बना हूं...सीख रहा हूं... धीरे-धीरे सबको ठीक कर दूंगा -विजय शाह

इंदौर अभी मैं केजी का बच्चा हूं... चार दिन पहले ही मंत्री बना हूं...सीख रहा हूं... धीरे-धीरे सबको ठीक कर दूंगा।


- स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह ने शिक्षा विभाग के अफसरों की क्लास ली

- ई-अटेंडेंस पर बोले- जो पालन नहीं कर रहा, पहले उन्हें गुलाब दें, यह भी बताएं कि उसमें कांटे भी होते हैं

- प्रदेश में शिक्षा के अधिकार के तहत अब स्कूलों में 12 जुलाई तक होंगे प्रवेश



यह कहना था चार दिन पहले खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री से स्कूल शिक्षा मंत्री बने विजय शाह का। वे बुधवार को शिक्षा विभाग की बैठक लेने इंदौर आए थे।
उन्होंने ई-अटेंडेंस की समीक्षा करते हुआ जिला शिक्षा अधिकारी से कहा कि इस योजना को प्रदेश में अनिवार्य किया है, जो शिक्षक इसका पालन नहीं कर रहे, पहले उन्हें गुलाब के फूल दें। वे 31 जुलाई तक उसकी खुशबू लें। इसके बाद याद रखें कि फूल के नीचे कांटे भी होते हैं। पालन नहीं करने वालों पर सख्ती से कार्रवाई की जाएगी। शिक्षकों को अगर कोई दिक्कत आ रही है तो वे मुझे और अधिकारियों को बताएं कि क्या समस्या है। विभाग उन्हें ट्रेनिंग देगा। जहां मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है, उन जगहों को बताएं। समस्याओं को तत्काल हल किया जाएगा।

मंत्री ने प्रदेशभर में आरटीई के तहत निजी स्कूलों में होने वाले ऑनलाइन और ऑफ लाइन एडमिशन की तारीख को भी 12 जुलाई कर दी है।

बैठक में संयुक्त संचालक लोक शिक्षण इंदौर संभाग ओएल मंडलोई, अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक नरेंद्र जैन, जिला परियोजना समन्वयक अक्षय सिंह राठौर, उत्कृष्ट स्कूल व मॉडल स्कूल के प्राचार्य सहित अन्य मौजूद थे।

मेयर बोलीं- डीईओ साहब मैं आपसे बात कर रही हूं....बैठक पर ध्यान दीजिए
बैठक में महापौर मालिनी गाड भी थीं। उन्होंने जब डीईओ डॉ. अनुराग जायसवाल से कुछ कहा तो उनका ध्यान कहीं और था। इस पर महापौर ने नाराजगी जताते हुए कहा- डीईओ साहब मैं आपसे बात कर रही हूं... बैठक में ध्यान दीजिए। मैं खुद महापौर और विधायक हूं। कई बार डीईओ को फोन करते हैं तो वे फोन नहीं उठाते। उन्होंने मंत्री से कहा कि शहर के कई स्कूलों में अभी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हुई है। कुछ हाई स्कूलों को हायर सेकंडरी किया जाए। महापौर ने शिक्षा विभाग का निगम से संबंधित कोई भी काम हो तो उन्हें बताने को कहा।
फोन लगाकर पूछो कलेक्टर से उन्होंने मना किया क्या

बैठक में शाह ने सभी विकासखंड स्रोत समन्वयक (बीआरसी) से पूछा कि कितने दिन ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हो। वहां रात में रुकते हो? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि रोज चार से पांच स्कूलों का निरीक्षण करते हैं। कलेक्टर और कमिश्नर साहब दौरे पर जाते हैं तो रात में भी रुकते हैं। इस पर मंत्री ने कहा कि फोन लगाकर कलेक्टर से पूछते हैं कि क्या उन्होंने कहा है कि जब उनका दौरा हो, तभी रात में रुको। उन्होंने डीईओ को निर्देश दिए की सभी बीआरसी की डायरी को चेक की जाएं कि वे रोज कितने स्कूलों का निरीक्षण करते हैं, कितने दिन, रात में रुकते हैं। इसकी जानकारी विभाग को भी दें।


ये निर्देश भी दिए

- मंत्री ने जेडी और डीईओ को फटकार लगाते हुए कहा कि जिन स्कूलों के परीक्षा परिणाम कम आए, उनके प्राचार्यों को नोटिस अब तक क्यों नहीं दिए गए। उन्हें नोटिस दिए जाएं।

- प्राचार्य और हेड मास्टर रोज विभाग के अफसरों को एमएमएस कर जानकारी दें कि स्कूल में क्या हुआ। वहां की स्थिति कैसी है।

- सभी बच्चों के आधार कार्ड, बैंक में खाता और छात्रवृत्ति वितरण का काम 1 नवंबर तक पूरा किया जाए।

- ब्लॉक स्तर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था की जाए। हर सप्ताह वीसी ली जाएगी।

- आरटीई में प्रवेश की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए। स्कूल चले हम अभियान को प्राथमिकता से लें।


साभार नईदुनिया 


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Sunday, July 31, 2016

अध्यापिका हू तो क्या हुआ साहब......मै भी मां हू -राशी राठौर देवास

राशी राठौर  -विद्वानों ने कहा " भगवान हर जगह हमारे साथ नही हो सकते, इसलिए भगवान ने माँ बनायी "

संघर्षो का इतिहास रचने वाली आधुनिक नारी आज हर क्षेत्र में कडा संघर्ष कर  खुद साबित करने की भरसक  प्रयास  कर रही है। घर और बाहर दोनो जगह बेहतर   उत्कृष्ट प्रबन्धन और परिणाम देने वाली नारी जो इस समाज मै खुद के अस्तित्व को तलाश रही। पंचायत कर्मी अध्यापिका माँ को संतान पालन अवकाश से वंचित रखने का हिटलरी फरमान ऐसी संघर्षरत नारी को हतोत्साहित करने के लिए पर्याप्त है।
साथ ही उन सेकडो योजनाओं की पोल भी खोल देता है जिनके आधार पर महिला सशक्तीकरण और महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाने के खोखले दावे किये जाते है। शिक्षक और अध्यापक मै भेदभाव तो वर्षो से चला आ रहा है किन्तु इस बार बात एक मां की ममता में  भेदभाव कि है। माँ तो सिर्फ माँ होती है। उसकी ममता मै कोई भेद नही होता चाहे वो कोई भी माँ हो। पंचायत कर्मी होने से क्या माँ की ममता और उत्तरदायित्व महत्त्वहीन हो जाते है।क्या अध्यापिका मां की ममता का कोई महत्व नही। क्या अध्यापिका के नाबालिक बच्चो उन नाजुक मुश्किल स्थिति मै अकेला छोडा जाना चाहिए जब उसे सबसे ज्यादा सिर्फ मा की आवश्यकता होती हैं। हर बच्चे के लिए उसकी मां लाइफलाइन होती है चाहे वह पांच महीने का हो या पचास साल का। आज के समय में मां की भूमिका और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। बदलते परिवेश में अपने बच्चे को सही लालन पालन किसी चुनौती से कम नहीं। माएं कामकाजी हो रही हैं इसीलिए काम के साथ-साथ उसे अपने बच्चों का भी ख्याल रखना होता है। ऐसे मै ये हिटलरी फरमान ,ये विसंगती माँ के ह्रदय गहरी चोट पहुचाती।उनके संघर्ष को और जटिल बना देती है।नाबालिक बच्चों को ममता के आंचल की छाव की आवश्यकता कदम कदम पर पडती। बच्चे बीमार भी हो जाये सिर्फ़ माँ को पुकारते है।पर ये कैसी विडंबना है यहाँ तो सिर्फ इसलिए एक मां को अपने बच्चे के लालन पालन से दूर किया जा रहा क्यू की वो अध्यापिका है। राष्ट्र निर्माता है। वो करोडो बच्चो को भविष्य  तो बना सकती किन्तु अपने बच्चों को लालन पालन हेतु अवकाश हेतु पात्रता नही रखती। माँ की ममता पर इस हिटलरी फरमान का प्रहार असहनीय है।

अध्यापिका की ममता और उसके नाबालिग बच्चे का पूरा हक बनता है संतान पालन अवकाश पर। 
माँ की ममता पर ओछी मानसिकता घटिया राजनीती कतई शोभा नही देती। अध्यापिका हू तो क्या हुआ मै भी एक माँ हू। देश की भविष्य निर्माता हू। बस और कोई कसूर नही है मेरा। विदेश मै तो शिक्षको को वी आई पी का दर्जा दिया जाता है। मुझे तो सिर्फ माॅ होने की जिम्मेदारी निभाने का दर्जा चाहिए। साहब मुझे संतान पालन अवकाश से वंचित ना करे।
(लेखिका स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं।)

कारणों को समझे बिना लड़ोगे तो निराशा ही आएगी भाई- वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वासुदेव शर्मा-एक अध्यापक संघ के नेता  की पोस्ट से निराशा हुई। निराशा इसलिए भी हुई कि जिस ने, अपने नेता  की ब्रांडिग शेर की तस्वीर के साथ की, अब वही मैदान छोडऩे की बात कह रहा है।  मैं आप  की निराशा के कारणों को समझ सकता हूं। ऐसा अक्सर उन लोगों के साथ होता है, जो समस्या के वास्तविक कारणों को समझे बिना उसके समाधान का रास्ता खोजते हैं। आप  को यह समझना होगा कि अध्यापकों या अन्य अस्थाई कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान की ताकत किसी नेता में नहीं हैं, खुद मुख्यमंत्री में भी नहीं। मुख्यमंत्री भी एक-दो हजार रुपए तो बढ़ा सकते हैं, लेकिन वह नहीं दे सकते, जो आप लोग चाहते हैं।
आप  या उनसे दूसरे अध्यापक नेताओं को समझना होगा कि, सरकार और उसकी पोषक विचारधारा  जिस राजनीति को आगे बढ़ाती हैं, वह सरकारी क्षेत्र को कमजोर करने वाली राजनीति हैं। सरकार  की विचारधारा समाज में असमानता को बढ़ाने वाली विचारधारा है, यह जानते हुए भी शिवराज सिंह से यह उम्मीद करना कि वे सरकारी स्कूलों को ताकतवर बनाएंगे, उनमें पढ़ाने वाले अध्यापकों, अतिथि शिक्षकों या दूसरे शिक्षकों के जीवन में निश्चिंतता लाएंगे, मूर्खता होगी।  भाई आपने संगठन बनाने से लेकर उसे चलाने के  एक-डेढ़ साल में यही गलती की कि आप सरकार के असली इरादों को नहीं समझ सके,  जिस कारण ही आप शिव चौबे एवं रमेश शर्मा जैसे सरकारी लोगो के झांसे में आकर सरकार की गोद में जा बैठे, जबकि आपको अध्यापकों ने सरकार की गोद में बैठने के लिए नहीं बल्कि उससे लड़कर जीत हासिल करने के लिए नेता माना था। इस स्थिति पर विचार किए बिना आपने तो मैदान छोडऩे की ही घोषणा कर डाली, जो न तो आपके खुद के और न ही अध्यापकों के हित में है। इसीलिए यह समय मैदान से भागने का नहीं बल्कि मैदान में डटे रहने का है। आने वाले सालों में स्थिति सुधरने की वजाय बिगड़ेगी, आज आपकी लड़ाई छठवें वेतनमान की है, कल नौकरी बचाने की लड़ाई भी तो लडऩी है।
विधानसभा के इसी सत्र में 5,000 हजार सरकारी स्कूल बंद करने की जानकारी आई है। बंद होने वाले स्कूलों की संख्या हर शिक्षण सत्र में बढ़ेगी। सरकार जिस रफ्तार से स्कूलों को बंद करने की दिशा में बढ़ रही है, उससे ऐसा लगता है कि हम लोग सरकारी स्कूलों की समाप्ति का आदेश पढ़ लेंगे। सरकार जिनके लिए काम कर रही है, उनका दबाव है कि जितनी जल्दी हो सके, सरकारी स्कूलों को कमजोर किया जाए, उन्हें अविश्वसनीय बनाया जाए, उनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को नकारा-निकम्मा साबित किया जाए। सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है, इसीलिए जावेद भाई आप लोगों को भोपाल में बैठने के लिए जगह नहीं दी जाती, रैली नहीं निकालने दी जाती और  आप ऐसा करने की जिद करते हैं तो खदेड़ दिए जाते हो।  कभी आपने सोचा कि लोकतंत्र में आपके पास अपनी बात कहने का जो अधिकार हैं शिवराज सिंह सरकार ने आपसे वही छीन लिया है? इसके बाद भी आप बातचीत से समस्या के समाधान की उम्मीद लगाए हो, तब निराशा होना स्वाभाविक है और आपके साथ ऐसा हुआ भी, शायद इसीलिए आपने आंदोलनों से खुद को अलग करने लेने का इशारा किया है।     
              भाई यदि आपको जीतना है तो खुलकर बोलना होगा। जिस दिन आप शिव चौबे या रमेश शर्मा जैसे लोगों को उनके मुंह पर सरकारी आदमी  कहने की हिम्मत कर लोगे, उस दिन से शिक्षाकर्मियों की तरह अध्यापकों के जीतने का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। ये , दो व्यक्तिभर नहीं हैं, यह लोग उस शिक्षामाफिया तंत्र की मजबूत कड़ी हैं, जो समूची सरकरी स्कूली शिक्षा को कब्जाना चाहती है। अलग-अलग नामों की हजारों शिक्षा समितियों के जरिए इन लोगों ने  निजी स्कूलों का विशाल नेटवर्क तैयार कर लिया है, जहां एक खास मकसद और खास विचारधारा की शिक्षा दी जाती है, यही वो विचारधारा है, जो सरकारी स्कूलों में ताले लगवाना चाहती है, जिससे उनके स्कूल वहां भी खुल जाएं, जहां वे अब तक नहीं पहुंचे हैं। अरे भाई, सर पर आ चुके इस खतरे को जब तक आप जैसे लोग नहीं पहचानेंगे, तब तक सरकारी स्कूलों को बचाने का रास्ता भी नहीं निकाल पाएंगे।


           2005  में शिक्षाकर्मियों का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर पचमढ़ी में हुआ था, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा. संजीव कुमार ने कहा था कि आप लोग वेतन बढ़ाने की मांग जितनी ताकत से उठाते हैं उतनी ही ताकत से स्कूली शिक्षा के सामने मौजूद सरकार की विचारधारा वाले स्कुल के खतरे को भी उठाना चाहिए यानि स्कूली शिक्षा के निजीकरण की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ी जानी चाहिए, स्कूल रहेंगे, तो उनमें शिक्षकों की जरूरत भी रहेगी और यदि स्कूल नहीं रहे, तब क्या करेंगे ? भाई आप इस सवाल पर गंभीरता से सोचिए और आंदोलनों से खुद को दूर करने के इरादे को त्यागिए।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,यह इनके निजी विचार हैं।)

अब पछताय होत का, जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत-सियाराम पटेल, नरसिंहपुर (अध्यापक हित में एक चिंतन)

सियाराम पटेल - वर्तमान परिस्थिति में अध्यापक संवर्ग में व्याप्त आक्रोश को आज एक सही दिशा देने की महती आवश्यकता है।
अध्यापक संवर्ग आज अपने भविष्य और अधिकारों को लेकर चिंतित एवं आक्रोशित तो हैं, लेकिन शासन की फुट डालो और राज करो की नीति के चलते आज शासन के विरुद्ध व्याप्त आक्रोश को कुछ इस प्रकार की नीतियों एवं सेवाशर्तों के मकड़जाल ने संघवाद की राह पर खड़ा कर ठंडा कर दिया है कि आज अध्यापक शासन के विरुद्ध मुखर कम आपस में संघवाद के चलते ज्यादा मुखर दिखाई दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा विगत 6 माह पूर्व छटे वेतन का आर्डर और घोषणा कर मीडिया के माध्यम से आमजन के मध्य अध्यापक हितैषी बनकर वाहवाही बटोरी और वास्तव में स्थिति आज भी वही के वहीँ धाक के तीन पात वाली ही है।
आमजन तक तो सन्देश पहुँच गया कि अध्यापको को छटा वेतन मिल रहा है। लेकिन हम आमजनों के बीच रहते हुए भी हम उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराने में अक्षम हैं। आज शासन द्वारा हमारी फूट का फायदा उठाते हुए हमे बदनाम करते हुए दिशाहीन व दिग्भ्रमित कर हमारे आक्रोश को आपसी आक्रोश में बखूबी तब्दील किया जा रहा है।
इसीलिए आज अध्यापको में व्याप्त आपसी आक्रोश को सही दिशा व दशा देते हुए शासन के विरुद्ध तब्दील किये जाने की महती आवश्यकता है।
इतिहास गवाह है कि जब जब अध्यापको का आक्रोश शासन के विरुद्ध सही मायने में उभरकर सामने आया है, तब तब हमने कुछ न कुछ सार्थक परिणाम अवश्य प्राप्त किये हैं। किन्तु लगभग 2 से 3 वर्षों के दौरान अध्यापक संवर्ग के हित में एक भी आर्डर नही हुआ, घोषणाएं तो बहुत हुई पर परिणाम कुछ नजर नही आया। सरकार अध्यापक हित में बार बार घोषणा कर, तारीख पर तारीख देकर आमजन के बीच अध्यापक हितेषी बन हमारा शोषण करते हुए आये दिन पूर्व में स्वीकृत नियमो एवं सुविधाओं में कटौती करते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही है और हम संघर्ष करते हुए भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

आज हमे आत्मचिंतन करते हुए हमारी वास्तविक दुर्दशा एवं हालातों से आमजन को अवगत कराकर अपने पक्ष में करते हुए सही दिशा में अपने आक्रोश को शासन के विरुद्ध मुखर करने की महती आवश्यकता है।
हम सभी को आपसी मतभेदों, मनभेदों व आपसी आक्रोश को एक नई दिशा देने के बारे में आत्मचिंतन करना ही पडेगा, नहीं वो दिन दूर नही जब हमे कहना पड़े की-
"अब पछताय होत का, जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत"

Saturday, July 30, 2016

अध्यापकों के खिलाफ माहौल बना रही सरकार-वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वासुदेव शर्मा - एक डेढ़ साल में सरकार 5-7 बार छठवां वेतनमान दे चुकी है। इस तरह की खबरें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे आकर चलवाईं। बंबई से छठवां वेतनमान दिया गया। उज्जैन से आदेश निकाले गए। अब सरकार की ही ओर से वरिष्ठता के आधार पर संविलियन का फितूर छोड़ा गया है। इस तरह की खबरों के जरिए शिवराज सिंह चौहान जनता के अंदर यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि उन्होंने अध्यापकों की सभी मांगों को पूरा कर दिया है। सरकार की ओर से इस तरह की कोशिश इसलिए की जा रही है कि जिससे अध्यापकों को जनता का नैतिक समर्थन हासिल न हो सके और वे अलग-थलग पढ़ जाएं। अध्यापकों को अलग-थलग करने का काम कर्मचारियों के दूसरे संगठन भी कर रहे हैं। पिछले दिनों राज्य कर्मचारी संघ के बड़े नेता ने मंच से कहा भी कि सीएम सिर्फ अध्यापकों की समस्याओं का ही निराकरण कर रहे हैं। अध्यापकों के खिलाफ यह खतरनाक साजिश रची जा रही है, जिसका जबाव तक अध्यापकों के नेताओं की ओर से नहीं दिया जाता, उल्टे ऐसे नेताओं की गोद में बैठने की ही कोशिश की जाती है। 25 जुलाई को भोपाल में दर्शन सिंह ने सवाल किया था: सैकड़ों सभाओं के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल नहीं बन रहा? यही या ऐसे ही सवाल तमाम अध्यापक नेताओं के भी थे? तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल न बन पाने की वजह भी यही है कि सरकार ने जनता के बीच यह संदेश पहुंचा दिया है कि अध्यापकों के साथ सरकार न्याय कर चुकी है और इसे खुद अध्यापक नेता भी स्वीकार कर चुके हैं इसीलिए वे यदा-कदा सीएम को फूल-मालाएं पहनाने के लिए सीएम हाऊस पहुंचते भी रही हैं। अध्यापकों ने जितनी बार छठवां वेतनमान नहीं माांगा, उससे अधिकवार सरकार उन्हें दे चुकी है, यह प्रदेश की जनता को बताया भी जा चुका है।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला। लेखक वरिष्ठ पत्रकार है यह उनके निजी विचार है .

जब तक जिस्म में जान बाकी है......... एक ऊँची उड़ान बाकी है !- रिज़वान खान बैतूल


रिज़वान खान बैतूल - हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार अध्यापक हितैषी श्री वासुदेव शर्मा एवं आस के महामंत्री जी की पोस्ट को पड़ने के बाद मन में विगत डेढ़ वर्षो का समूचा घटनाक्रम घूम उठा और ना चाहकर भी आज इस बात पर विश्वास करना पड़ रहा है की 2015 के अध्यापक आंदोलन का पटाक्षेप हो गया लगता है ! कोई कुछ कहे आंदोलन आस ने खड़ा किया था अतः अध्यापक अंत तक उसी से आस लगाये बैठे थे. उन्ही के पदाधिकारियो की पोस्ट का इन्तेजार रहता था और सोशल मीडिया पर सार्वाधिक आलोचना भी उन्ही की हुई जो स्वाभाविक है.


अब आगे क्या !
आज वर्तमान स्तिथी में सरकार की मेहरबानी से विभिन्न अध्यापक नेताओ के बीच इतनी अधिक मतभिन्नता और अविश्वास बढ़ गया है की आगे कोई सार्थक एकता होना मुश्किल है. यदि हो भी गई तो ज्यादा कुछ हासिल होना सम्भव नही क्योकि आंदोलन के सभी अस्त्रों का हमारे नेता बारी बारी उपयोग कर उनको निष्प्रभावी कर चुके है. दूसरे समाज हमारे आंदोलनों को अब मजाक से ज्यादा कुछ नही समझता है यही वह बिंदु है जिसपर सरकार हमारे ऊपर हावी हो रही है. आगे नेता एक हो भी गए तो आंदोलन हड़ताल को कोर्ट से रुकवा दिया जायेगा. अब विकल्प बेहद सीमित है.

एक रास्ता निकला था पर वो लोकप्रियता की राजनीति की भेंट चढ़ गया !
आगे की लड़ाई अब जनता को साथ लेकर ही लड़ी जा सकती है. राजनीति परसेप्शन का खेल है. आज शासन आम जनता को समझाने में सफल रहा है की अध्यापक कामचोर, सदा असंतोषी और शिक्षा की दुर्दशा के जिम्मेदार है. इसी परसेप्शन को उलटा करना होगा. शिक्षा के व्यवसायीकरण, लगातार बन्द होते सरकारी स्कूल, प्राइवेट शिक्षा माफिया की अनवरत लूट और सरकारी स्कूलों को चोर रास्ते से निजी हाथो में बेचने का प्रयास एक ज्वलन्त मुद्दा है जो जनमानस को सीधे गहरे तक प्रभावित करता है. आज आवश्यकता इसको अपने पक्ष में भुनाने की है.

इन्ही मुद्दों को लेकर राज्य अध्यापक संघ शिक्षा क्रांति यात्रा के माध्यम से समूचे प्रदेश में यात्रा कर जनता के बीच इस लड़ाई को ले जाने का प्रयास कर रहा था. प्रत्येक जिले में बुद्धिजीवी पत्रकार सम्मेलन में उपस्तिथ होते थे. अध्यापको को भी विषय का ज्ञान मिल रहा था. इन सबसे शासन के विरुद्ध एक स्थाई विरोध आम जनता में पैदा हो रहा था जो की एक प्रकार का धीमा जहर था. किन्तु खेद की बात है की विभिन्न संघो की लोकप्रियता और श्रेय की राजनीति का शिकार होकर रास ने उक्त यात्रा को स्थगित करके एक लोकप्रिय जुमला नुमा यात्रा निकाली जो सर्वथा अनुपयुक्त है.

जनता चाहेगी तो उम्मीद से बढ़कर मिल सकता है !
हम साढे तीन लाख है जो प्रदेश के गांव गांव में जनता से सीधा सम्पर्क रखते है अतः हमसे बढ़कर परसेप्शन कौन किसका बना सकता है. तुम चाणक्य के अनुयायियों का जनसम्पर्क देखना चाहते हो तो अब यही सही......... शिक्षा में नित नए प्रयोगों और निजीकरण के चलते प्रदेश में प्रदेश भर में अजीब बेचैनी का वातावरण है.अतः शिक्षको को जन सरोकार से जुड़े सामाजिक मुद्दों के लिए लड़ने का समय आ गया है. हम समाज को यह बताये की हमारी वेतन विसंगतियों और सेवा शर्तों का सीधा सम्बन्ध शिक्षा के सरोकारों से है इससे हमारी माँगो को सामाजिक स्वीकृति और वैधता मिलेगी. इस प्रकार अपने आंदोलन से समाज को जोड़कर हम सदभावना पूर्वक माहौल में अपनी मांगे मनवा सकते है क्योकि जनमत की उपेक्षा कोई भी सरकार नही कर सकती. ( मेरे नितांत निजी विचार है अतः सहमति बिलकुल भी आवश्यक नही है )

अध्यापको की सुविधा पर कैंची चलाती सरकार और राजनेतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप बैठे अध्यापक -सुरेश यादव रतलाम

सुरेश यादव रतलाम - साथियो सर्वविदित है कि, किसी भी कर्मचारी वर्ग को प्रदान की गयी सुविधा में कोई भी सरकार कटौती नहीं करती अथवा ऐसा कोई नियम नहीं बनाती जिसके चलते प्राप्त हो रही सुविधा समाप्त हो जाए  या कम हो जाए  ,परन्तु अध्यापक संवर्ग  के साथ ऐसा ही हुआ है सरकार ने अपने ही बनाये नियमो का न सिर्फ उलंघन किया है ,वरन सरकार ने नियमो की मनगढ़ंत व्याख्या कर  विधान सभा में प्रस्तुत की ।

प्रकरण इस प्रकार हैं -आज तक के  इतिहास में  जिस दिनांक से भी कर्मचारियों को अंतरिम राहत प्रदान की जाती है उसी दिंनाक से  उनका नविन वेतन निर्धारण होता है ।

हमारे प्रकरण में यह हुआ की अंतरिम राहत 1 सितम्बर 13 से  प्रदान की गई और वेतन निर्धारण 1 जनवरी 2016 से होगा ,यही नही हम सब को मिल रहा वेतन भी कम हो रहा है ,हम  इसी को प्राप्त कर  खुशियां मना रहे हैं। यदि आप इसे लाभ  समझ  रहे है ,तो आप गलत हैं ,किसी परिचित विशेषज्ञ से उचित  जानकारी लीजिये । हमारे गणना पत्रक को सरकार ने स्थगित कर कर दिया है लेकिन विधान सभा में एक प्रश्न के जवाब में  " सरकार ने कहा कि वेतन के गणना पत्रक में हमने कोई विसंगती नहीं की  है । " यदि कोई विसंगती नही की तो आदेश स्थगित क्यों किया ? लेकिन अब  सब कुछ सही होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा  !


दूसरा प्रकरण - संतान देखभाल अवकाश का है,एक प्रश्न के जवाब में  सरकार ने विधान सभा में कहा कि अध्यापक  संवर्ग को संतान देखभाल अवकाश की पात्रता नहीं है ।

इसके बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के हवाले से समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ की  अध्यापक संवर्ग की महिला अध्यापको को आवकाश का लाभ देने से शैक्षणिक व्यवस्था प्रभावित हो जायेगी ।इस लिए उन्हें लाभ दिया जाना उचित नहीं है ।
देखने में  यह सामान्य सी प्रशासनिक प्रक्रिया लगती है  लेकिन प्रश्न यह है कि ,"अध्यापक भर्ती एवं सेवा की शर्तें नियम 2008" का क्या ? जो कहते हैं कि अध्यापक संवर्ग को शिक्षक संवर्ग के समान सभी अवकाश की पत्रता है । क्या सरकार स्वयं इन नियमो का उल्लंघन नही कर रही ? यदि ऐसा नही है तो क्या सरकार शिक्षक संवर्ग को भी इस अवकाश से वंचित कर रही है? क्योंकि पढ़ाई तो उस संवर्ग के अवकाश पर रहने पर भी प्रभावित होगी ।
यंहा यह बताना भी आवश्यक है कि , यह अवकाश छोटी संतान की  18 वर्ष की आयुपूर्ण करने  तक प्रदान किया जाता और आहरण अधिकारी द्वारा अवकाश स्वीकृत करने पर ही मिलता।  इतना ही नहीं  अवकाश पर जाने के लिए कई शर्ते थी व शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षक रखने की भी व्यवस्था है । तो पढाई प्रभावित होने का प्रश्न  ही नहीं है ,बात सिर्फ नियत की है ,जिसमे खोट है।


साथियो यह बात मुझे नही कहनी चाहिए परन्तु हम में से कई अध्यापक साथी ही नहीं चाहते की यह अवकाश अध्यापक संवर्ग पर लागू हो ।कई साथियो ने मुझे निजी मेसेज या मेरी पोस्ट पर टिपण्णी करते हुए कहा है कि ,फ्री में अवकाश क्यों ? पुरुषों को भी प्रदान किया जाए । महिलाओं को यह सुविधा नहीं मिलनी चाहिए ।घर बैठे बैठे अवकाश क्यों अथवा हम  इस अवकाश का विरोध करेंगें । अरे भाई महिला अध्यापक कँहा से आई वे हमारे घर की संदस्य ही तो होंगी ।स्वाभाविक रूप से इनके परिवार की संदस्य नहीं होंगी ।


आप क्या सोचते है सरकार सोश्यल मिडिया पर की गई हमारी पोस्ट या टीप्पणी पर नजर नहीं रखती ?  यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं । असलियत यह है की सरकार की हम पर हर समय नजर रहती  है। और सरकार हमारे क्रियाकलाप से जरा  भी भयभीत नहीं है उसे पूर्ण विश्वाश है कि अध्यापक हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मेरे मतानुसार संचार के इन माध्यमो से अध्यापको को लाभ कम हानि अधिक  हुई है ।


क्योंकि सरकार जानती है की 90 प्रतिशत अध्यापक सरकार की पोषक विचारधारा से ही पोषित हो रहे हैं । अध्यापक चाहता है कि उसकी मांग पूरी हो ,लेकिन वह सरकार के खिलाफ कुछ कहना और सुनना पसंद नहीं करता या यह चाहता है की इस सरकार की आलोचना न हो । अध्यापक यदि नाराज हो भी रहा है तो उनके निशाने पर सरकार नहीं है ,वह अपने गुस्से का शिकार  अध्यापक सगठनों और उसके नेतृत्व को बनाता है या उसके निशाने पर 2003 के पहले की सरकार होती है । सोश्यल मिडिया के इस कॉपी पेस्ट वाले युग में ,बहुत कम लोगो के विचार ही मौलिक विचार होते  है ,हमलोग सिर्फ मेंसेज को आगे बढ़ाते हैं। 90 प्रतिशत का आंकड़ा इस लिए कह रहा हूँ  क्योंकि प्रदेश में द्विदलीय व्यवस्था है जिसमे 50-50 प्रतिशत लोग सरकार और विपक्ष में बंटे हुए है ।लेकिन विपक्ष के 40 प्रतिशत लोग अभी  मौन  है ,यही लोग मौन रहकर सरकार को अतिरिक्त ताकत प्रदान कर रहे हैं ।


हम वास्तविकता को नजर अंदाज करते है, हमे  यह भी याद रखना होगा की विगत 13 वर्षो से प्रदेश में एक ही दल की सरकार काम कर रही है ,और अध्यपको के शोषण ने लिए यह सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है,जितनी इसकी पूर्ववर्ति सरकार ,क्योकी इन्होंने ही 2003 के घोषणा पत्र में नियमितीकरण का वादा किया था । जो अभी तक पूरा नहीं किया गया है ।


मेरा मानाना है पेट की आग से बढ़ कर राजनेतिक प्रतिबद्धता या राजनैतिक आस्था नहीं होती । अध्यापको को भी अपनी राजनेतिक प्रतिबद्धता को अपने रोजगार से और अपने अधिकार से अधिक महत्व नहीं देना चाहिए । और मुखर होकर सरकार का विरोध करना चाहिए अन्यथा हमारे अधिकारों और सुविधाओं में कटौती होना सामान्य बात हो जायेगी । और हम अपने नेताओं और संगठनो को ही कोसते रह जाएंगे ।


कहने को यह मामले सामान्य प्रशासनिक  प्रक्रिया लगते है , लेकिन दी हुई सुविधा को कम करने या वापस लेने के यह अनोखे प्रकरण है ,किसी भी संवर्ग ( अध्यापक संवर्ग ) को दी जा रही सुविधा में कटौती एवं नियमों को ही बदलने वाली यह  पहली सरकार बन गयी है  ,और  अपनी राजनैतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप रहने वाले हम  पहले कर्मचारी । इन निर्णयों को अध्यापक समाज को कतई स्वीकार नहीं करना चाहिये । (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

Friday, July 29, 2016

अध्‍यापक संवर्ग एवं संविदा शाला शिक्षको के वेतन/मानदेय के भुगतान हेतु बजट की व्‍यवस्‍था के संबंध में

अध्‍यापक संवर्ग एवं संविदा शाला शिक्षको के वेतन/मानदेय के भुगतान हेतु बजट की व्‍यवस्‍था के संबंध में ,गलत मद से आहरण किया तो DDO  से वसूला जाएगा पैसा  इसका आदेश  जारी  कर दिया गया है। आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें




शासकीय शालाओं में आहरण संवितरण की नवीन व्‍यवस्‍था लागू होने के फलस्‍वरूप अभिलेखों एवं लेखो का संधारण ।

शासकीय शालाओं में आहरण संवितरण की नवीन व्‍यवस्‍था लागू होने के फलस्‍वरूप अभिलेखों एवं लेखो का संधारण  कैसे किया जाएगा इसका आदेश आज जारी  कर दिया गया है। 
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें



Wednesday, July 27, 2016

प्रदेश में 1 से 15 अगस्त के बीच तबादले हो सकेंगे,अध्यापक आदेश की प्रतीक्षा करे

 सरकार ने मंगलवार को तबादलों पर से प्रतिबंध हटा लिया। प्रदेश में 1 से 15 अगस्त के बीच तबादले हो सकेंगे। जिलों में तबादले प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से होंगे, वहीं विभागों में तबादले मुख्यमंत्री समन्वय के माध्यम से होंगे। ये निर्णय मंगलवार को विधानसभा में हुई कैबिनेट की बैठक में लिए गए। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए कि तबादले न्यूनतम हों।

कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए जनसंपर्क मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि तबादलों से प्रतिबंध हटाने के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए कहा गया है कि इसे न्यूनतम ही किया जाए। राज्य स्तर के विभागों में तबादले समन्वय में जाएंगे।

साथियो इसके बाद अध्यापक  संवर्ग का भी संविलियन ( स्थांतरण ) होगा ,लेकिन नियम व शर्ते क्या होंगी यह अभी नहीं कहा जा सकता है ,इसके लीये हमें बिना मतलब कयास  लगाने के स्थान पर ,आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए। 






अध्यापक संवर्ग को संतान पालन अवकाश पर वित्त विभाग विभाग की आपत्ति का राज्य अध्यापक संघ करेगा कड़ा विरोध, 29 व 30 जुलाई 2016 को चलाया जाएगा पोस्ट कार्ड अभियान - जगदीश यादव


अध्यापक संवर्ग को संतान पालन अवकाश पर वित्त विभाग विभाग की आपत्ति का राज्य अध्यापक संघ करेगा कड़ा विरोध, 29 व 30 जुलाई 2016 को चलाया जाएगा  पोस्ट कार्ड अभियान  - जगदीश यादव
राज्य अध्यापक संघ के प्रांताध्यक्ष श्री जगदीश यादव ने कहा है कि लोकशिक्षण आयुक्त श्री नीरज दुबे से हुई चर्चा में उन्होंने बताया कि अध्यापक संवर्ग हेतु महिला अध्यापक साथियों को संतान पालन अवकाश की पात्रता हेतु वित्त विभाग की असहमति है इसीलिए अध्यापक संवर्ग को संतान पालन अवकाश की पात्रता नही होगी, जिस पर श्री यादव ने कहा कि राज्य अध्यापक म.प्र.शासन के इस निर्णय की घोर निंदा करता है और इसके विरुद्ध कड़ा संघर्ष करेगा,

संघ  दिनांक 29 व 30 जुलाई 2016 को पञ्च , सरपंच जनपद सदस्य के समर्थन पत्र के साथ राज्य अध्यापक संघ महिला मोर्चा के नेतृत्व में संपूर्ण प्रदेश की महिला अध्यापक साथी माननीय मुख्यमंत्री महोदय, माननीय वित्त मंत्री महोदय एवं माननीय शिक्षा मंत्री महोदय को संबोधित संतान पालन अवकाश की पात्रता हेतु मांग करते हुए पोस्ट कार्ड लिखकर प्रेषित कर विरोध प्रदर्शन करेंगी

 प्रांत प्रमुख महिला मोर्चा सुश्री सुषमा खेमसरा ने भी म.प्र.शासन की इस दोहरी नीति का कड़ा विरोध करते हुए प्रदेश की महिला अध्यापक साथियों का आह्वान करते हुए कहा है कि क्या केवल राज्य शासन एवं शिक्षा विभाग में कार्यरत महिला कर्मचारी ही मातृत्व अवकाश के लिए ही पात्र हैं, क्या म.प्र.शासन की नजर में केवल वही  महिलायें हैं, अध्यापक संवर्ग में कार्यरत महिला अध्यापक साथी क्या महिला नही हैं , क्या अध्यापक महिला साथियों को संतान पालन के दौरान अवकाश सुविधा की आवश्यकता नही है, तो फिर शासन की यह दोहरी नीति क्यों?
हम म.प्र. शासन के इस दोहरे एवं सौतेले मापदंड की घोर भर्त्सना करते हैं और समस्त महिला अध्यापक साथियों से विनम्र आग्रह करते हैं कि शासन की इस दोहरी नीति का हम डटकर मुकाबला करेंगे। आगामी 29 व 30 जुलाई 2016 को पोस्ट कार्ड अभियान चलाते हुए शासन को अपनी मातृशक्ति होने  का परिचय तो देंगे ही, साथ ही जिला, ब्लाक व प्रत्येक स्तर पर अपने हक़ के लिए संघर्ष करेंगें।



अध्यापक हित में एक चिंतन -सियाराम पटेल नरसिंहपुर

सियाराम पटेल - अध्यापक हितेषी सभी संघठन जो एकता की बात तो करते हैं पर वास्तव में क्या एकता के सच्चे हितेषी हैं, यदि एकता या अध्यापक हितेषी हैं तो-

*किसी संघठन विशेष या उसके नेतृत्व पर आपसी छीटाकशी क्यों ?
*यदि कोई संघ अध्यापक संघर्ष के लिए योजना या रणनीति की घोषणा करता है तो शेष दूसरे संघ आरोप प्रत्यारोप करने लगते हैं क्यों ?
*क्या हमारी वास्तविक लड़ाई शासन से है या आपसी ?
*क्या हम शासन से लड़ रहे हैं या आपस में  ?
*क्या सभी संघों का मुख्य उद्देश्य अध्यापक हित है या वर्चस्व की लड़ाई या स्वहित ?
*सभी अध्यापक हितेषी संघ बड़े जोर शोर से अध्यापक हित में संघर्ष व एक लक्ष्य की बात तो करते हैं, पर वास्तव में सभी सही दिशा में अग्रसर हैं क्या ?

सभी ज्येष्ठ, श्रेष्ठ विद्वान जनों से उपरोक्त कुछ प्रश्नों पर चिंतन करते हुए अनुरोध है कि हम एकता की ओर कदम बढ़ाने का प्रयास करें। यदि एकता नही भी होती है तो न सही, पर जब लक्ष्य एक है तो उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु शासन से अपने अपने स्तर से ईमानदारी से संघर्ष करें न कि अपने वर्चस्व की लड़ाई हेतु आपसी संघर्ष।

    अध्यापक हितेषी प्रदेश के सभी ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व विद्वत अध्यापक भाईयों व बहिनों से विनम्र आग्रह है कि घर बैठकर सोशल मीडिया पर टीका टिप्पणी करने की बजाय आपकी आस्था जिस किसी भी संघ या नेतृत्व में हो उस पर भरोसा करते हुए आह्वान पर संघर्ष में अपना सहयोग अवश्य प्रदान करें।

    मैं संघ विशेष का निष्ठावान कार्यकर्त्ता होने के कारण ये नही कहता हूँ कि राज्य अध्यापक संघ म.प्र. ही सर्वश्रेष्ठ है और दुसरे अन्य संघ श्रेष्ठ नही हैं। मेरा आग्रह तो बस इतना है कि केवल घर बैठे सोशल मीडिया पर टीका टिप्पणी करने से जंग नही जीती जाती, जंग तो जंग ए मैदान में संघर्ष से ही जीती जाती हैं।
   

    आशा है कि सभी सोशल मीडिया के जागरूक , निष्ठावान, संघर्षशील,  कर्मठ व जुझारू साथी एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करने की बजाय अध्यापक संवर्ग की लड़ाई व लक्ष्य प्राप्ति में अपना अमूल्य सहयोग पूर्ण निष्ठा सहित प्रदान करेंगे।

यह लेखक के  निजी विचार है 



95 हजार महिला अध्यापकों को नहीं मिलेगी चाइल्ड केयर लीव - सरकार दवरा ही अपने नियमो का उल्लंघन ,कथनी व करनी का अंतर उजागर

भोपाल, सौरभ खंडेलवाल। मप्र की 95 हजार महिला अध्यापकों को 730 दिन की चाइल्ड केयर लीव नहीं मिल सकेगी। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने असहमति जताते हुए इसे अव्यवहारिक माना है। सरकारी महिला कर्मचारियों के लिए चाइल्ड केयर लीव की शुस्र्आत 2015 में ही हुई थी, लेकिन महिला अध्यापकों को इससे वंचित रखा गया था। अध्यापकों की मांग के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने वित्त विभाग को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा था, लेकिन वित्त विभाग ने इसे मानने से इंकार कर दिया।

50 प्रतिशत महिलाएं

वित्त विभाग का कहना है कि स्कूल शिक्षा विभाग में 50 प्रतिशत महिलाएं हैं, इसलिए यहां चाइल्ड केयर लीव देना अव्यवहारिक है। स्कूल शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी एसआर मोहंती ने बताया कि हमने महिला अध्यापकों को चाइल्ड केयर लीव देने के लिए वित्त विभाग से बातचीत की थी, लेकिन वित्त विभाग इसके लिए राजी नहीं है। महिला अध्यापकों को 180 दिन का मातृत्व अवकाश मिलता रहेगा। स्कूल शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक महिला अध्यापकों को चाइल्ड केयर लीव देना इसलिए व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि इससे स्कूलों में पढ़ाई बाधित होगी। पिछले कुछ दिनों से अध्यापक संगठन चाइल्ड केयर लीव देने की मांग कर रहे थे।
वित्त विभाग का मत नगरीय प्रशासन और पंचायत विभाग को भेजा
सूत्रों के मुताबिक वित्त विभाग के जवाब को स्कूल शिक्षा विभाग ने नगरीय प्रशासन और पंचायत विभाग को भेज दिया। प्रदेश के सभी अध्यापक नगरीय प्रशासन और पंचायत विभाग के हैं। इस संबंध में कोई भी आदेश ये विभाग ही जारी करेंगे।

कुछ अध्यापकों को मिल चुकी है चाइल्ड केयर लीव

2015 में चाइल्ड केयर लीव की अधिसूचना जारी होने के बाद स्पष्ट निर्देश नहीं होने से प्रदेश के कई जिलों में महिला अध्यापकों को चाइल्ड केयर लीव दी जा चुकी है। इसके बाद जब विभाग से अध्यापकों के संबंध में स्पष्ट निर्देश मांगा गया तो फिर यह लीव देना बंद कर दिया गया। चाइल्ड केयर लीव के तहत 18 साल तक के दो बच्चों की देखभाल के लिए महिला सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी के दौरान 730 दिन तक का अवकाश ले सकती हैं।
 
स्त्रोत नईदुनिया

 
 "  साथियों विधान सभा में दी गयी जानकारी और जवाब से सरकार की कथनी और करनी का अंतर उजागर होता है साथ ही ,अपने ही बनाये नियमो का उल्लंघन भी सपष्ट नजर आता है ,नियमो में सरकार कहती है की अध्यापक संवर्ग  को शिक्षक संवर्ग के सामान हर अवकाश की पात्रता है ,वन्ही व्यवहारिक रूप से यह लागू नहीं किया जाता है ,संतान देखभाल  अवकाश के नियमो में सपष्ट है की DDO की स्वीकृति के पश्चात ही अवकाश लिया जा सकता है ,तो पढाई प्रभावित होने का तर्क ,तर्क कम कुतर्क  ज्यादा लगता है .आदेश होने के  पश्चात्  बहनों  को न्यायलय की शरण में जाना चाहिये  "सुरेश यादव रतलाम 

                                



Tuesday, July 26, 2016

अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु होगी कमेटी गठित - मुख्यमंत्री ,15 अगस्त तक सन्विलियन नहीं हुआ तो शिक्षक दिवस दिल्ली में मनाएंगे- जगदीश यादव


 अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु होगी कमेटी गठित - माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने किया आश्वस्त  ,संविलियन होने तक जारी रहेगा आंदोलन, यदि 15 अगस्त 2016 तक शिक्षा विभाग में संविलियन नही हुआ तो 5 सितम्बर 2016 को कूच करेंगे दिल्ली- जगदीश यादव

सुसनेर विधायक श्री मुरलीधर  पाटीदार की मध्यस्थता  एवं प्रांताध्यक्ष श्री जगदीश जी यादव के नेतृत्व में प्रांतीय उपाध्यक्ष शैलेन्द्र जी त्रिपाठी, प्रांतीय महासचिव दर्शन सिंह जी चौधरी, दिनेश जी शुक्ला, जिलाध्यक्ष मंडला एवं वरिष्ठ सलाहकार डी.के. सिंगौर जी, प्रांतीय प्रतिनिधि विपिन जी तिवारी, जिलाध्यक्ष जबलपुर नरेंद्र जी त्रिपाठी, अनिल जी पाटीदार ने राज्य अध्यापक संघ के प्रतिनिधिमंडल के रूप में आज अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन की प्रमुख मांग को लेकर माननीय मुख्यमंत्री महोदय से मुलाक़ात की। प्रतनिधिमंडल से मुलाक़ात के दौरान वार्ता में माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने अध्यापक संवर्ग के शिक्षा विभाग में संविलियन हेतु कमेटी गठित करने की बात पर सहमति जताई। जगदीश जी यादव एवं प्रतिनिधि मंडल ने माननीय मुख्यमंत्री महोदय से 15 अगस्त 2016 तक अध्यापक संवर्ग में संविलियन किये जाने की मांग की। 


तत्पश्चात दूरभाष पर हुई चर्चा अनुसार  

श्री जगदीश  यादव ने बताया की अध्यापक संवर्ग को  शिक्षक संवर्ग के समान वेतन मान प्रदान करने व 2007 से शिक्षक संवर्ग के समान वेतन मान की काल्पनिक गणना कर के सेवा पुस्तिका में दर्ज  करने ( २०१३ के अंतरिम राहत के आदेश अनुसार ) की मांग भी की गयी जिस पर मुख्य मंत्री ने अधिकारियों से वार्ता करवाने का आश्वासन दिया 

श्री जगदीश यादव ने कहा , कि राज्य अध्यापक संघ द्वारा शिक्षा विभाग में संविलियन तक आंदोलन जारी रहेगा और 15 अगस्त 2016 तक यदि संविलियन नही किया जाता है तो 05 सितम्बर 2016 को दिल्ली कूच करने का एलान किया है , और राज्य अध्यापक संघ द्वारा शिक्षा विभाग में संविलियन तक  चरणबद्ध आंदोलन किये जाने की घोषणा भी की ।


Saturday, July 23, 2016

अधिकारीगण अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखें- अरविन्द रावल


 अरविन्द रावल - शिक्षक का मूल कार्य शिक्षा देना हे। एक आदर्श शिक्षक वही होता हे जो लिक से हटकर विद्यार्थियो की मनःस्थिति को समझकर अध्यापन कार्य करवाये। अध्यापन कार्य करवाने के कहने को एक हजार सरकारी नियम कायदे हे किन्तु इन सरकारी नियम कायदों से इतर जाकर भी अच्छा अध्यापन कार्य शिक्षक द्वारा करवाया जा सकता हे। बशर्ते यदि शिक्षक को इन अध्यापन के नियम कायदों के बंधनो से मुक्त कर दिया जाये तो।
अधिकारीगण बेशक स्कुलो का औचक निरीक्षण करे कोई हर्ज नही यह उनका दायित्त्व हे। लेकिन शिक्षक यदि संस्था में हे और वह अपना दायित्त्व ईमानदारी से निभाते हुए बच्चों को अध्यापन करवा रहा हे और बच्चे भी रुचिपूर्वक अध्यनन कर रहे हे तो अधिकारिगणो को अपने शिक्षक पर गर्व होना चाहिए उसकी प्रशंसा करना चाहिए। किन्तु दुःख इस बात का हे कि उचे ओहदे पर बेठे कुछ कतिपय अधिकारीगण पद के गुमान में उन शिक्षको की प्रशंशा या उन पर गर्व करना तो दूर उल्टे शिक्षको को पढाने के हजार नियमो का पालन नही करने के जुर्म में दण्डित करके चले जाते हे और अगले दिन अखबारो के पन्नों पर अपने दौरे का सरकारी बखान कर ईमानदार शिक्षक की इज्जत को तार तार करते हे।
आज आठवी तक सबको पास करो rte की नियमऔर शिक्षको की भारी कमी की वजह से नवमी के बच्चों को बेसिक ज्ञान सिखाना पड़ता हे। कुछ उच्च सरकारी या शहरी स्कुलो को छोड़कर पुरे प्रदेश में नवमी के बच्चों को न तो लेसनप्लांन के आधार पर न तो सिलेब्स के आधार पर और न ही शिक्षक डायरी के आधार पर अमूमन ईमानदारी से अध्ययन करवाया जा सकता हे। यदि इन सब नियमो का शिक्षक को उलझाकर रखेगे तो  वह बच्चों को बेसिक ज्ञान नही दे पायेगा। जब तक बच्चों को बेसिक ज्ञान ही समझ में नही आएगा तो वह कोर्स की किताबी भाषा को समझ ही नही सकेगा। शिक्षक से सिर्फ सरकारी नियम कायदों से कोर्स करवाना ही अधिकारियो का उद्देश्य होगा तो फिर निश्चित ही शिक्षक उसका पालन कर अपने कार्य की इतिश्री ही करेगा लेकिन बच्चों में गुणवत्ता नही आएगी जो उसके लिए सबसे अहम हे।
उक्त बातो से यहा मेरा आशय यही हे की शिक्षक यदि तमाम दायित्त्वो के निर्वहन करने साथ यदि बच्चों को ईमानदारी से जो भी उसके अनुसार अध्यापन करवा रहा हे उसे करवाने दे। क्योंकि एक शिक्षक ही पुरे वर्ष विद्यार्थियो के साथ रहता हे न की अधिकारीगण। शिक्षक को ही अपने विद्यार्थियो की गुणवत्ता और कमजोरी का पता होता हे न की निरीक्षणकर्ताओ को। स्कुल का निरीक्षण जो भी अधिकारीगण करे स्वागत हे लेकिन विद्यार्थीहित में एक निवेदन हे की आप शिक्षक और विद्यार्थियो से पुछ कर विद्यालय की समस्या और कमियो को दूर कर अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखिये।
लेखक स्वयं अध्यापक है यह उनके निजी विचार हैं .

Friday, July 22, 2016

अध्यापक संवर्ग का शिक्षा विभाग मे संविलियन क्यों जरूरी,-प्रशांत दीक्षित खण्डवा


प्रशांत दीक्षित -जिलाध्यक्ष राज्य अध्यापक संघ खण्डवा
1-जिस विभाग का हम मुख्य कार्य कर रहे है, उसकी संवैधानिक स्वीकार्यता के लिए जरुरी।

2-2022 के बाद केवल चुनिंदा शिक्षक विभाग मे शेष, स्वयं के साथ विभाग के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए जरुरी।

3-अनुदान मद की अपेक्षा कर्मचारी वेतन मद से वेतन भुगतान सम्भव।

4-शिक्षा विभाग की सुविधा के साथ पूर्ण शिक्षक का दर्जा,, अभी पैरा टीचर्स की श्रेणी है।

5-पुरानी पेंशन की मांग व उस पर विचार शिक्षा विभाग मे संविलियन पर ही सम्भव।

6-पेंशन के साथ ग्रेज्युटी की मांग भी उससे जुडी होगी, क्योकि2004-5 मे अंशु वैश्य कमेटी की सिफारिश पर केबिनेट का फैसला हो चुका है।nps के कारण ग्रेज्युटी(उपादान)बन्द हुआ।

7-hra, बीमा, अन्य भत्ते पर स्वतः लाभ मिलना चालु।

8-कम से कम सन् 2050 तक शिक्षा विभाग बना रहे, उसके लिए आवश्यक।

9-किसी भी नवीन प्रक्रिया  लागु होने पर कम संघर्ष की आवश्यकता।

10-क्रमोन्नति पदोन्नति के सामायिक लाभ, समयमान वेतनमान ।

11-सबसे महत्वपूर्ण हमारे सपने व संघर्ष की पूर्णता जिसे संजोकर हमने इस विभाग मे कार्य करना स्वीकार किया।

12-आप भी कोई बिंदु छूट गया हो तो जोड़ सकते है।,,,इसलिये आओ कदम आगे बढ़ाये मिलकर,, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए,,,संघर्ष हमारा अधिकार व कर्तव्य भी है,,उसमे सहभागिता करे।


Thursday, July 21, 2016

शाबाश दर्शन, तुम वाकई जगदीश के सारथी हो - वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वसुदेव शर्मा - बीते कुछ सालों में शिवाराज सिंह की सरकार ने भोपाल से हर उस प्रदर्शनकारी को खदेड़ा है, जो जिंदा रहने लायक वेतन मांगने वहां पहुंचा। जिन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं, जेलों तक जाना पड़ा उनमें अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी, अतिथि विद्वान जैसे वे सभी कर्मचारी शामिल हैं, जो सरकार के यहां संविदा की नौकरी कर रहे हैं। शिवराज की सरकार ने डंडों का उपयोग छोटे कर्मचारियों को डराकर शांत रहकर गुलामी करते रहने के मकसद से किया था। लाठियां खाकर जिस तरह शांत हो जाते थे, उससे शिवराज सिंह को लगता रहा होगा कि वह अपनी कोशिश में सफल हो रहे हैं, शायद इसीलिए उन्होंने इनके संगठनों को भोपाल में धरने की परमीशन देना ही बंद कर दी है। शिवराज सिंह सरकार की इस मनमानी का जबाव दिया जाना चाहिए था, यह इच्छा हर उस छोटे कर्मचारी की थी, जिसने सरकार की तानाशाही को झेला है। पुलिस के डंडे खाएं हैं। जेलों की असहनीय पीड़ा को सहा है।
3 जनवरी 2016 से 21 जुलाई के बीच यह काम सफलता के साथ किया गया है। इन 6 महीन में दर्शन सिंह चौधरी ने जगदीश यादव का सारथी बनकर प्रदेश के 51 जिलों में तावड़तोड़ सभाएं कर शिवराज की तानाशाह सरकार को करार जबाव दिया है। 3 जनवरी से शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ अभियान चलाया गया, जिसके दौरान 150 से अधिक सभाएं की गईं। 30 दिन से संविलियन यात्रा प्रदेश में घूम रही है, जिसके तहत अब तक 100 से अधिक सभाएं हो चुकी हैं। सभाओं का सिलसिला रात 9 बजे तक चलता रहता है। इन सभाओं में दर्शन सिंह चौधरी ने जिन तेवरों के साथ अपनी बात को रखा है, वह वाकई काविले तारीफ है। दर्शन सिंह की चिंता अध्यापकों तक ही सीमित नहीं रहती, वे इसके आगे जाकर उस नीति पर हमला करते हैं, जिसके कारण प्रदेश के युवाओं के 10, 15, 20 साल बर्बाद हो चुके हैं। जब दर्शन सिंह चौधरी युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने का आव्हान करते हैं, तब सभास्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठता है यानि अध्यापकों के बीच चल रहा यह अभियान आने वाले दिनों में जनांदोलन की बुनियाद रखेगा, हो सकता है 25 जुलाई को भोपाल में युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने के खिलाफ ऐसे किसी जनांदोलन की घोषणा हो जाए
अपने अध्यक्षीय भाषण में जगदीश यादव जब विस्तार से अध्यापकों के साथ हो रहे अन्याय के कारणों के बारे में बताते हैं, तब लगता है कि दर्शन सिंह और जगदीश यादव की जोड़ी वाकई अब तक हुए अन्याय का बदला लेने के लिए ही निकली है। अध्यापकों को संबोधित करते हुए जगदीश यादव जिन सवालों को उठाते हैं, उन सवालों पर चर्चा करना आज बेहद जरूरी है। जगदीश यादव बताते हैं कि ज्यादातर अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी या अतिथि विद्वान छोटे एवं निम्न किसान परिवारों, एवं मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं, सरकार इन परिवारों को आर्थिक बदहाली में पहुंचाने के लिए ही संविदाकरण की नीति को लागू किए हुए हैं। जगदीश यादव बताते हैं कि महंगाई बढ़ती है, तब इसका असर भी हमारे ही परिवारों पर पढ़ता है। जब सरकार तानशाही के रास्ते पर चलती है, तब इसका शिकार भी हम लोग ही होते हैं, क्योंकि हम लोग असमानता के शिकार है और इसे मिटाना चाहते हैं। सरकार ऐसा करने नहीं देगी, इसीलिए टकराव बढ़ेगा, जिसका मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि सरकार की तानाशाही के शिकार सभी लोग एकसाथ आएं और उस नीति को बदलने के लिए लड़ें, जिसके कारण हमारी जवानी बर्बाद हुई है। जगदीश एवं दर्शन सिंह का यह आव्हान भविष्य के बड़े जनांदोलन का आगाज भी है और अध्यापकों की जीत का भरोसा भी।
मंत्रियों से नजदीकियां बढ़ाने की आदत छोडि़ए !
बल्लवभवन के चक्कर लगाना बंद कीजिए !
अपने भविष्य की बेहतरी का रास्ता खुद बनाईए !
जो लड़े हैं, वे ही जीते हैं !
जो निहत्थे लड़े हैं, वे हारकर लौटे हैं !
असमानता को मिटाने वाले विचार को हथियार बनाईए !
सिर्फ जीतने के संकल्प के साथ 25 को भोपाल पहुंचिए ! 

लेखक पत्रकार हैं और यह उनके  निजी विचार हैं .


Wednesday, July 20, 2016

साथियो सभी के मन में जिज्ञासा है कि संविलियन की लड़ाई अभी से (जुलाई 2016 से) क्यों ?- सुरेश यादव रतलाम

साथियो सभी के मन में जिज्ञासा है कि संविलियन की लड़ाई अभी से (जुलाई 2016 से) क्यों ?
यह प्रश्न  हम से  कई लोगो ने  पूछा हैं ,और भी पूछे जाएगे । 
आप को क्या लगता है इस बारे में  हमने नहीं सोचा है ?  हमें इस प्रकार के सभी सवाल का जवाब भी देना है और संविलियन करवा  के भी बताना है । हम ही वो लोग है जो लड़ते आये है 2015 में भी लड़े (बस हमारा  सूझबूझ भरा नेतृत्व नहीं था )।
आप को याद है की पिछली बार अंदोलन सितम्बर 15 में हुआ था  जिसका  आदेश  31 मई को जारी हुआ अर्थात 8 महीने बाद लेकिन लाभ अब भी नहीं मिला ।
आप को और पीछे लिए चलते हैं 2012-13 में ,तब क्रमिक आंदोलन की शुरुवात सितम्बर 12 से हुई ,3 से 5 दिसम्बर को बडा आंदोलन हुआ । 13 जनवरी 2013 को भोपाल आये और 13 मार्च को अंदोलन समाप्त हुआ । समान वेतन मान को अंतरिम राहत में देने का आदेश हुआ 4 सितम्बर 13 को ।
मतलब की आन्दोलन समाप्त होने के 6 महीने बाद ।
अब  2010 में ले चलते है हमने 5 सितम्बर 10 को भोपाल में प्रदर्शन किया लाठीचार्ज हुआ ।अक्टूबर में हड़ताल हुई , nps का लाभ मिला मार्च-अप्रैल 11 से ,9 महीने बाद ।

 2005 का अंदोलन 54 दिन का हुआ ,इतिहास का पहला आंदोलन जब हड़ताल के दौरान ही आदेश हुए । इसी आंदोलन के कारण आज संविदा शिक्षक और गुरूजी  भी अध्यापक बन रहे हैं ।
 2005 का अंदोलन कई आदेशो के साथ ऑक्टोबर में समाप्त हुआ । फिर  दिसम्बर  05 में डी पि दुबे समिति बनी, जिसने 1 वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट दिस्म्बर 6 में सौंपी । 24 फरवरी 07 को  भोपाल में cm ने अध्यापक बनाने की घोषणा की सुभाष उत्कृष्ट स्कुल मैदान पर की ।  और आदेश हुए 26 जून 2007 के दिन ।
अब वापस जुलाई 16 में आते है यह विधानसभा का घेराव 25 जुलाई को है गणना पत्रक जारी हो भी जाये तब भी जारी रहेगा क्योकि गणना पत्रक तो सरकार को जारी  करना ही है  । हम  25 जुलाई को घेराव करेंगे कुछ
इस क्रमिक आंदोलन के कुछ दिनों बाद अंदोलन होगा जो सम्भतः 15,20 से 25 दिन चल सकता है । सरकार  कुछ  समय बाद बुला कर बात करेगी फिर संविलियन के लिए समिति बनाने का कहेगी तब तक दिसम्बर 16
हो जाएगा । 17 में समिति बनेगी जो 6 माह या 1 साल के लिए होंगी ।बाद में समिति अपनी  सिफारिश करेगी
। संविलियन के लिए कानून में बदलाव करना  होगा जो विधान सभा के बाद लोकसभा से  होगा । तो ऐसा
करते करते 18 आ जायेगा । और 18 में चुनाव है 2018 में मांनसुन  सत्र आखरी सत्र रहेगा । हम संविलियन
की इस लाड़ई को 2023 तक नही खींचना चाहते ।  
अब आप समझें । वेतन का आदेश तो 2013 में ही हो गया था । अभी भी आदेश हो ही जायेगा ।  हमारा
असली लक्ष्य संवलियन है । संविलियन ही हमारी हर समस्या का हल और अंत है । इस लिए कृपया 25 जुलाई
को एक दिवस का आकस्मिक अवकाश लेकर अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए भोपाल अवश्य पहुंचें
 संविलयन की लाड़ई हमारी अपनी लडाई है ।और हमारी संख्या बल पर ही इस लडाई में  हार जीत निर्भर है ।
अब आप स्वयं ही तय करें । आप को क्या करना है।
सुरेश यादव कार्यकारी जिलाध्यक्ष राज्य अध्यापक संघ जिला रतलाम 

शासकीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु मूल निवासी प्रमाण पत्र के संबंध में स्पष्टीकरण

शासकीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु मूल निवासी प्रमाण पत्र के संबंध में स्पष्टीकरण के संबंध में ,अब आधार कार्ड ,राशन कार्ड ,जिले से पास होने की अंक सूचि और SSSM ID को भी निमास प्रमाण पत्र के रूप में  स्वीकार किया जाएगा। आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करे



शासकीय एवं अशासकीय डी.एल.एड. संस्थानों/महविद्यालयों में प्रवेश अन्तर्गत विषय संकाय संशोधित करने के संबंध में

शासकीय एवं अशासकीय डी.एल.एड. संस्थानों/महविद्यालयों में प्रवेश के लिए प्रथम प्रतीक्षा सूचि जारी  होने के  पूर्व एक बार के लिए  विषय संकाय संशोधित करने के संबंध में आज आदेश जारी कर दिया गया है।
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें

Monday, July 18, 2016

शिक्षको को एप्रिन नही बच्चों को स्वेटर व् चप्पल दे सरकार - अरविन्द रावल झाबुआ

अरविन्द रावल- मध्यप्रदेश सरकार के माननीय मुख्यमंत्रीजी और शिक्षा मन्त्रीजी से निवेदन हे कि प्रदेश के शिक्षको को ड्रेस एप्रिन पहनाने या एम शिक्षा मित्र के माध्यम से अंगूठा लगवाने से पहले प्रदेश के ग्रामीण अंचल के गरीब वर्ग के बच्चों की हालत पर भी एक नज़र जरूर ध्यानपूर्वक डाले। प्रदेश सरकार प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक के बच्चों को निशुल्क किताबे निशुल्क गणवेश और मध्यान भोजन तो देती हे लेकिन इसके बाद की बच्चे की  स्थिति पर शायद सरकार का ध्यान अभी तक गया नही हे। माननीय मुख्यमंत्रीजी एवम् शिक्षा मन्त्रीजी प्रदेश में आज भी ग्रामीण क्षेत्रो के गरीब वर्ग के मासूम बच्चे अपनी आर्थिक स्थिति ठीक नही होने की वजह से नंगे पैर आग उगलती गर्मी में स्कुल आते हे। इतना ही नही कड़कड़ाती सर्दी में भी तन पर शर्ट या फ्राक पहनकर गरीब बच्चे कपकपाते हुए स्कुल आते हे। माननीय महोदय आप बहुत संवेदनशील हे आप इन गरीब बच्चों के दर्द को समझ सकते हे की कितनी पीड़ा होती होंगी सर्दी गर्मी में इन बच्चों को स्वेटर और चप्पल के अभाव में।

माननीय महोदय मेरा इतना भर निवेदन हे की सरकार शिक्षको की नियमितता  के लिए एम शिक्षा मित्र ऐप और ड्रेशकोड व् एप्रिन लागु करने जा रही हे माननीय महोदय यदि आपकी सरकार इन योजनाओ को लागु न करके इस पर व्यय होने वाली राशि से सरकारी स्कुल में पड़ने वाले गरीब मासूम बच्चों को चप्पल व् स्वेटर का शासन स्तर से इंतज़ाम किया जाता हे तो यह एक बहुत बड़ा परोपकारी कार्य होगा और आपकी सरकार का यह नेक कार्य देश की केंद्र व् राज्य सरकारो के लिए प्रेरणा दायक भी सिद्ध होगा।    

   माननीय मुख्यमंत्रीजी और शिक्षामंत्रीजी शिक्षको की नियमितता और निरीक्षण के लिए तो पहले से ही जिले व् ब्लाक स्तर पर कई अधिकारी नियुक्त हे । ऊपर से उपरोक्त योजनाओ को लागु कर धन खर्च करने से क्या मतलब ? यदि इन योजना को लागु ही करना हे तो फिर जिले व् ब्लाक में बेठे शिक्षको के इन अधिकारियो का क्या आचित्य हे ? महोदय शिक्षको पर तो बिना खर्च के     

    आसानी से नज़र रखी जा सकती हे । सरकार  शिक्षा से राजनीतिक दखलअंदाजी खत्म कर दे और शासन थोड़ी कसावट लाये तो बिना खर्च किये भी शिक्षक की  नियमितता और निरक्षण किया जा सकता हे।माननीय महोदय मेरा एक बार पुन निवेदन हे कि शिक्षको की नियमितता पर अनावश्यक खर्च करने की बजाय सरकार उक्त राशि से प्रदेश के गरीब बच्चों के लिए चप्पल व् स्वेटर देने की योजना लागु करे ताकि कोई मासूम आने वाली सर्दी व् गर्मी में अपनी बदकिस्मती को कोसे नही।

सरकारी स्कूल के बच्चे अब अपने गांव का भूगोल किताबों में पढ़ेंगे

भोपाल.प्रदेश के सरकारी स्कूल के बच्चे अब अपने गांव का भूगोल किताबों में पढ़ेंगे। इसकी शुरुआत हरदा के छिदगांव तमोली जैसे छोटे से गांव में हो चुकी है। इस शुरूआत से एक IAS इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने पूरे 1 घंटे छात्रों के साथ जमीन पर बैठकर क्लास ली।
क्या है मामला...
-हरदा के छिदगांव तमोली में दो साल पहले अस्तित्व में आए मिडिल स्कूल में लगभग एक साल से पटवारी पवन बांके बच्चों को गांव का आयात, त्रिभुज, वर्ग वृत, नजरी नक्शा सहित जमीन से संबंधित जानकारियां बता रहे हैं।
-पटवारी की क्लास में केवल लड़के ही नहीं, बल्कि लड़कियां भी अपने गांव का भूगोल समझ रही हैं।
-इसके लिए अब कक्षा छठवीं, सातवीं और आठवीं के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। पूरे प्रदेश में इसे जल्द लागू किया जाएगा।
बच्चों के साथ पढ़ चुकी हैं IAS जिला पंचायत सीईओ
-छिदगांव तमोली समिति की वार्षिक आमसभा हुई थी। इसमें पंचायत हरदा में सीईओ एवं आईएएस अफसर षण्मुख प्रिया मिश्रा भी पहुंची थीं।
-उन्हें पता चला कि स्कूल में पटवारी गांव का भूगोल पढ़ा रहे हैं। वे भी स्कूल पहुंच गईं।
-उनका कहना है कि यह मेरे लिए अच्छा अनुभव था। आईएएस में आने के बाद जमीनों से संबंधित बेसिक जानकारी मुझे मिली। मैने करीब एक घंटा क्लास में छात्रा की तरह बिताया था।
स्कूल के बच्चों को पटवारी ने भूगोल पढ़ाना शुरू किया
-स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप हमारी कोशिश मिडिल और हाईस्कूल के लिए गांव की ज्योग्राफी का पाठ्यक्रम जोड़ने की है।
-वैसे भी भू-राजस्व संहिता में अध्यापन कार्य का उल्लेख है, पर यह काम अभी तक नहीं हो रहा था। पूर्व राजस्व मंत्री रामपाल सिंह पटवारियों द्वारा बच्चों को भूगोल पढ़ाने पर सहमति दे चुके हैं।
- पिछले साल शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी अफसरों को अपने-अपने क्षेत्र के 

स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाने की अपील की थी।
-इस पर छिदगांव तमोली की समिति ने अमल शुरू कर दिया था। गांव के सरकारी मिडिल स्कूल के बच्चों को पटवारी ने भूगोल पढ़ाना शुरू किया था।
30 दिन में 20 घंटे क्लास लेंगे पटवारी
-गांव की सोसायटी के अध्यक्ष अशोक गुर्जर के मुताबिक मोदी की अपील के बाद स्कूल के बच्चों व उनके 

पालकों की संयुक्त बैठक हुई।
-इसमें गांव का भूगोल बच्चों को कैसे समझाया जाए, इसमें किन बातों को शामिल किया जाए?
-इन मुद्दों पर गहन विचार मंथन के बाद सर्व सम्मति से पाठ्यक्रम तय किया। इसके लिए कक्षा 6,7 व 8 की सामाजिक विज्ञान व अन्य विषयों की सरकारी किताबों का भी सहारा लिया।
-इस दौरान ही तय हुआ कि पटवारी गांव की सरकारी स्कूल में 30 दिन में से कभी भी 20 घंटे बच्चों को गांव का भूगोल पढ़ाएगा।
-गुर्जर के मुताबिक गांव का भूगोल बच्चों को पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इसकी प्रति राज्य सरकार को भी भेजी गई है।

प्रस्तावित पाठ्यक्रम
कक्षा छटवीं :गांव का भूगोल- एक परिचय एवं आवश्यकता, बसाहट की इकाइयां-टोला, मोहल्ला, ग्राम पंचायत, गांव के प्रकार-राजस्व, वन, आबाद और वीरान गांव, सीमा चिन्ह-चांदे, मीनारे, त्रिमेंडी, चौमेंडी, रुढि चिन्ह गोहा आदि। ग्राम पंचायत क्षेत्र की प्रमुख फसलें एवं वनस्पति, शासकीय पट्टा, भूमि स्वामित्व, कृषि भूमि, गैर कृषि भूमि, व्यवसायिक भूमि, हल्का व खसरा आदि।

कक्षा सातवीं : गांव व ग्राम पंचायत की सीमाएं, नजरी व मानक नक्शा, जल स्रोतों की जानकारी, नदी, नाले, तालाब व नहरों का सीमांकन, क्षेत्रीय मिट्टी के प्रकार और उसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व। मिट्टी की जांच- नमूने लेने की विधियां व जांच का तरीका।

कक्षा आठवीं : भू अधिकार एवं शासकीय पट्टा अधिकार पत्र, जिम्मेदार संस्था अथवा विभाग, शासकीय कार्यालय से दस्तावेज की नकल प्राप्त करना, विधियां, संशोधन पंजी खसरा प्राप्त करना। भू मापन आवश्यकता तकनीक, उपकरण- कंपास, जरीब, टोपो शीट, टोटल मशीन आदि। भू अभिलेख सेटेलाइट नक्शा व कृषि संबंधी ऑन लाइन सुविधाएं, प्रोजेक्ट वर्क, भू मापन नजरी नक्शा बनाना।

पटवारी, अफसर नहीं दे सकेंगे लोगों को झांसा
-भू-राजस्व संहिता को समझना आसान नहीं होता है।
-यदि स्कूली जीवन में बच्चे पटवारी के कामकाज के तौर-तरीके को समझेंगे तो उन्हें कॉलेज की पढ़ाई के बाद खेती-किसानी के लिए केसीसी बनवाते समय
अनावश्यक पटवारियों या राजस्व अधिकारियों द्वारा जरूरी दस्तावेजों की कमी का हवाला देकर बरगलाया नहीं जा सकेगा। इस पहल से उनका पैसा व समय बचेगा।

Saturday, July 16, 2016

काश मुरलीधर पाटीदार जैसा नेता अतिथि संवर्ग को मिल गया होता - अरविंद रावल झबुआ ...


अरविंद रावल झबुआ राज्य अध्यापक संघ एक शसक्त संग़ठन है। राज्य अध्यापक संघ जमीनी धरातल पर काम करके दिखाने वाला संग़ठन है न की संचार के माध्यम वाट्सएप या फेसबुक के जरिये चलने वाला संग़ठन है। हमारे साथी आलोचना या क्रिया प्रतिक्रियाओ में यकीन नही करते है बल्कि हम सभी को सांथ लेकर एकजुटता में विश्वास रखते है। हम कल भी सबको साथ लेकर चले थे आज भी चल रहे है और कल भी साथ लेकर चलेगे।राज्य अध्यापक संघ ने प्रांताध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार के नेतृत्व में जिस एकजुटता के साथ अपने साथियों के बूते जो अपने हक की अपने पेट की लड़ाईया लड़ी है उसके कसीदे कर्मचारी जगत में आज भी गाये जाते है। हम अध्यापक साथियों ने अपने संघर्ष के बल पर शासन प्रशासन और कर्मचारी जगत में एक सम्मानजनक मुकाम पाया है। हमारे आलोचक भाई वह दिन क्यों याद नही करते जब हम टीन शेड के नीचे बैठकर वल्लभ भवन में जाने और मंत्री या सचिव से मिलने तक के लिए हमे विधायको के चक्कर लगाने पड़ते थे।
हमारे आलोचक अब यह क्यों याद नही करते की वे भी तब एक स्वर में यह कहते थे की हमारे साथियो में से किसी को विधायक बन कर विधानसभा में अपनी बात उठाना चाहिए और अपनी मांगे मनवाना चाहिए। तब सब यही कहते थे की अपने लोगो में से किसी को विधायक बनना चाहिए। तब विधायक बनने से कोई किसी का विरोध नही था।आज जब हम अध्यापको का संघर्षशील नेता ही खुद विधायक बन गया है। अब मंत्री सचिव तो क्या सीधे हम मुख्यमंत्रीजी तक अध्यापको की बात रख सकते है तो इतना विरोध क्यों ? क्या मुरलीधर पाटीदार ने विधायक बनने के बाद कभी यह कहा है की वे अब अध्यापकों की पेट की लड़ाई नही लड़ेंगे ? फिर क्यों इतना विरोध मित्रो ? यह बड़े चिंतन का प्रश्न है साथियो की विरोध करने वाले सिर्फ इसलिए तो कही विरोध नही कर रहे हे की वे मुरलीधर जैसा मुकाम हासिल नही कर पाये।
जिन साथियो ने सड़को पर भूखे पेट संघर्ष किया है। जिन साथियो ने जेल की कोठरियों में कई दिन काटे है वे कभी भी मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण नही करेगे। मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण वही लोग करते हे जो संघर्ष के मैदान छोड़कर घरो में दुबके छुपे थे। मुरलीधर पाटीदार का विरोध करने वाले और अध्यापको के मसीहा बनने वाले यह तो बताये की वे स्वम कितनी बार जेल गए हैं? और कितनी बार अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए उन पर कितने प्रकरण दर्ज हुए है?
मुरलीधर पाटीदार पर तो अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए दर्जनों प्रकरण दर्ज है जिनसे बरी होने के लिए शायद यह जीवन भी कम पड़ जाये। अनगर्ल आरोप लगाने वाले से यह निवेदन है की वे एक भी प्रमाण सिद्ध कर दे की अध्यापको का सौदा कर पाटीदार ने स्वार्थ सिद्ध किया है ? बेवजह के आरोप प्रत्यारोप करने वालो से हमारा आज भी यही कहना है की मुरलीधर पाटीदार राज्य अध्यापक संघ के कल भी सर्वमान्य नेता थे आज भी है और कल भी रहेगे। हम अपने साथियो से सिर्फ इतना ही कहते हे की सड़को पर अध्यापको की लड़ाई लड़ने वाला हमारा यह नेता विधानसभा में भी अध्यापको की लड़ाई पूरे जोशो जुनून से लड़ेगा और शासन से हमारी मांगो का निराकरण करवाएगा।हम अध्यापक साथियो में विचारो का मतभेद होना जायज है लेकिन मतभेद के चलते हम किसी के चरित्र पर ऊँगली उठाये यह हमारी गरिमा के विपरीत है। हम राष्ट्र निर्माता हैं कोई राजनीतिक नही है जो दोषारोपण करके अपनी प्रतिष्ठता को धूमिल करे। हमारी लड़ाई शासन है न की अपनों से है। आज हमारे साथी झूठी उच्च महात्त्वकांक्षाओ के चलते शासन् से लड़ने कि बजाय अपनों को निचा दिखाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने पर तुले हुए है।
लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं .

मूल मातृ संगठन का यह नया रूप ( जगदीश यादव ) आश्वस्त करता है -विनोद कुमार शर्मा अशेाकनगर

विनोद कुमार शर्मा - शिक्षा संविलियन यात्रा के अंतर्गत श्री जगदीश यादव एवं श्री दर्शन सिंह चौधरी दिनांक 14.07.2016 को अशेाकनगर में थे । मैंने यह बात स्पष्टता से रखी कि पाटीदार अध्यापकों के मास लीडर थे, उनके नेतृत्व में अध्यापकों ने सरकारों की मक्कारी को कई बार झुकाया है । परन्तु अब जब वे विधायक हैं, तो साफ है कि सरकार का समर्थक संगठन विरोधी होगा ही । मुंह फुलाना एवं गाली बकना एक साथ नहीं किया जा सकता  । क्योंकि उन्होंने लाखों लोगों के प्रेम की तुलना में अपनी स्वाभाविक महत्वाकांक्षा को ही तरजीह दी है । पहले भी हम कई बार इस बात को कहते रहे हैं कि सरकार एवं सरकार विरोध दो अलग अलग दिशायें हैं । मैंने दोनो साथियों से कहा कि वे पूरा समय लें और हमें कन्वेंश करें कि वे किस तरह पाटीदार से अलग हैं । क्योंकि अभी तक मेरा यही मानना था कि जगदीश यादव एक डमी आदमी हैं । जो कि पाटीदार के संगठन को न छोड़ने के, विरोध के कारण फोटो की तरह लाये गये हैं । मैंने मेरे बोलने की शुरूआत में उनको संबोधित तक नहीं किया था परन्तु..............मुझे खुशी है जगदीश यादव, पाटीदार के संरक्षण में आंदोलन सीखने के बाद, पाटीदार समर्थन से ही अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद,  पाटीदार के सरकारी  प्रेम के प्रभाव में नहीं हैं । वे बेहतर ढंग से अपनी बात रखना जानते हैं । तार्किक हैं । साफ बात करते हैं ।  दर्शन सिंह चौधरी जी जनहित के लिए हौल टाईमर   हैं । एक अध्यापक का इस तरह जीवन चुनना हम सबके लिये गौरव देता है । दोनेां लोगों ने साफ बातें कीं, इतिहास को खंगाला गया, नये आंदोलन पर भी बात हुई, खूबियों खामियों का साफ जिक्र हुआ । सभी संगठनों के जिलाध्यक्ष इस कार्यक्रम में मौजूद थे । सभी लोग उनसे कन्वेंश हुये । कई उदाहरणों से  वे यह बताने में सफल हुये कि पाटीदार का सरकार में होना संगठन राज्य अध्यापक संघ को रत्ती मात्र भी उनसे प्रभावित नहीं करता । ...............मैं तो धार्मिक और कर्मकाण्डी आदमी नहीं हूं, मुझे तो इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु ये दोनों लोग पक्के धार्मिक लोग भी हैं । जगदीश यादव जब इस बात को समझा रहे थे कि उनकी प्रतिबद्धता अध्यापकों से कितनी है ? इसका पीक चढ़ते चढ़ते उन्होंने यहां तक कहा कि मैंने मैहर की शारदापीठ पर मां शारदा के सामने यह कसम खाई है कि मैं अपने संगठन के प्रति जीवन भर प्रतिबद्धता से काम करूंगा एवं संविलियन जैसे लक्ष्य पूरे नहीं हो जाने तक किसी भी सीमा तक जाकर काम करूंगा । कभी भी अध्यापक हित की तुलना में किसी भी तरह का लाभ संबंध एवं यश को महत्व नहीं दूंगा । ..........ये बात तो मैं भी जानता हूं कि पाटीदार का टिकिट एवं आंदोलन के समझाोंतों का आपस में कोई संबंध नहीं है । क्योंकि इनमें सात माह का अंतर है । जबकि टिकिट वितरण की एक रात के हर घंटे दस लोागेां के नाम उपर नीचे हो जाते हैं । ...........मैं पाटीदार पर यह आरोप कभी नहीं लगाता कि उन्होंने अध्यापक हितों के बदले विधायक पद लिया है । अध्यापक हित में उन्होंने बेहतर समझौते किये । उनमें जो खामियां बाद में आई वे सरकार की मक्कारी से पैदा हुई हैं । .......... मेरा यह मानना है कि शिवराज सिंह यह मानते थे कि पाटीदार मास लीडर है इसे तोड़ना अध्यापकों के आंदोलनों को वर्षों के लिये बिना रीढ़ का बना देगा । तथा शेष नेताओं में राजनीतिक महत्वाकांक्षा आ जायेगी जिससे कुर्सी को लार टपकाने वाले ही नेता बनेंगे, जिन्हे तोड़ना आसान होता है । पाटीदार के जाने से आम अध्यापक में अविश्वास घर कर गया । जिसको देखो वही कह देता है कि हम यहां आंदोलन करते हैं, नेता वहां हमें बेच देते हैं । यही मुख्य नुकसान है जो पाटीदार के विधायक बनने से आंदोलन को हुआ है । ........... ..... इस तरह मैं मानता हूं कि शिवराजसिंह की  राजनैतिक चतुराई जीती .....एवं सामान्य यश की महत्वाकांक्षा जिसका बीज हर आदमी में होता है ........ पाटीदार अपनी उस महत्वाकांक्षा को जीत नहीं सके । ......और उन्होंने लाखों लोागेां के प्रेम की तुलना में यश, पद एवं धन को महत्व दिया । .....यह भी सही है कि आज तक शिवराजसिंह जी जैसा आदमी प्रशासन में नहीं रहा कि खुद शोषित कहते हैं कि वे तो देना चाहते हैं अधिकारी या कोई दूसरे लोग उसे नहीं देने दे रहे । आम अध्यापक की वाल भी देखो तो साफ है कि बहुसंख्यक लोग उन्हे अच्छा मानते हैं एवं जिम्मदारी दूसरे लोागेां पर ही डालते हैं । यह राजनैतिक मक्कारी की पराकाष्ठा है । वे सब प्रकार के हमारे विभाजनों के लिये मेहनत करते हैं । ग्यारह संगठन, प्रत्येक को उनका आश्वासन, आशीर्वाद एवं पीठ पर हाथ । अपाक्स सपाक्स जैसा नाटक जो आंदेालनरत कर्मचारियों को जाति के आधार पर भी लड़वा दे । वे जितनी प्रकार से डिवाईड करवा सकते हैं करेंगे । .......... अर्थात वे सफल रहे और वे हमें जिस तरह चलाना चाह रहे हैं हम वैसे ही चल रहे हैं । मनोहर दुबे संयुक्त मोर्चा में हैं, जिनके अथक परिश्रम से 2013 के आंदेालन की कब्र खोदने का प्रयास हुआ । बृजेश  शर्मा जी अशोकनगर आये थे तो उनसे कहा था कि इसका जबाव दो कि आप अभी भी आंदोलन के रथ में दोनों तरफ घोड़े जोतोगे तो रथ आगे कैसे बढ़ेगा । चार आगे खींचने वाले चार पीछे खींचने वाले । .............. उन दिनों जो  सरकार के पांव चाटने की धुन बजाते थे आजकल संघर्ष का राग गा रहे हैं । ....... हर अध्यापक को यह साफ होना चाहिये की सरकार समर्थन एवं संघर्ष एक साथ्  कतई संभव नहीं हैं । ..... जगदीश यादव के अनुसार 25 का घेराव संविलियन के लिये शुरूआत का शंखनाद है । जिसे हम लगातार संघर्ष् के द्वारा प्राप्त करेंगे । संविलियन ही एक मात्र कुंजी जिसके मिलने पर सभी समस्यायें अपने आप खुल जायेंगी । सरकार भी हमें उलझाकर चुनाव तक छंटवा सांंतवा एवं गणनापत्रक जैसी चीजों तक सीमित करना चाहती है । इससे आगे बढ़कर हमें एक मात्र मांग संविलियन का राग शुरू करना चाहिये । यह बेहतर ढंग है ।
         मैं इन दोनों लोागेां से सहमत हुआ एवं मुझे उनकी बातेां से  हृदय की बात लगी । सभी संगठन प्रमुखों ने भी माना कि ये दोनों दिल से बात कर रहे हैं । प्रदेश के नये वातावरण में जब अच्छे, बुरे, गिरगिट सब तरह का नेतृत्व मौजूद है ...उन सबके बीच हमारे मूल मातृ संगठन का यह नया रूप आश्वासन देने वाला लगा । शुभकामनाएं ।।

लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं .

Friday, July 15, 2016

मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा सेवा एवं अधीनस्थ शिक्षा सेवा (शाला शाखा) भरती तथा पदोन्नति नियम, 2016 जारी नियम 2013 निरस्त


मध्यप्रदेश राज्य एवं अधीनस्थ शिक्षा सेवा (शाला शाखा) भरती तथा पदोन्नति नियम, 2016

राज्य शिक्षा सेवा नियम 2013 निरस्त ,क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी ( AEO ) की नियुक्ति ,में न्यूनतम और अधिकतम आयु का बंधन नही ,अनुभव के अंक का भी उल्लेख नही , परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए 5 वर्ष का अनुभव आवश्यक ,
प्राचार्य हाई  स्कुल के लिए 25 प्रतिशत पद वरिष्ठ अध्यापक की विभागीय परीक्षा से पूर्ति कीये  जायेगे , 
न्यूनतम और अधिकतम आयु का बंधन नही ,इसके अतिरक्त  क्या परिवर्तन हुआ है देखने के लिए  इस राज पत्र को देखें 

राज पत्र को पीडीऍफ़ में देखने या डाउन लोड करने के लिए इस लिंक को ओपन करें



Thursday, July 7, 2016

अभी मैं केजी का बच्चा हूं... चार दिन पहले ही मंत्री बना हूं...सीख रहा हूं... धीरे-धीरे सबको ठीक कर दूंगा -विजय शाह

इंदौर अभी मैं केजी का बच्चा हूं... चार दिन पहले ही मंत्री बना हूं...सीख रहा हूं... धीरे-धीरे सबको ठीक कर दूंगा।


- स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह ने शिक्षा विभाग के अफसरों की क्लास ली

- ई-अटेंडेंस पर बोले- जो पालन नहीं कर रहा, पहले उन्हें गुलाब दें, यह भी बताएं कि उसमें कांटे भी होते हैं

- प्रदेश में शिक्षा के अधिकार के तहत अब स्कूलों में 12 जुलाई तक होंगे प्रवेश



यह कहना था चार दिन पहले खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री से स्कूल शिक्षा मंत्री बने विजय शाह का। वे बुधवार को शिक्षा विभाग की बैठक लेने इंदौर आए थे।
उन्होंने ई-अटेंडेंस की समीक्षा करते हुआ जिला शिक्षा अधिकारी से कहा कि इस योजना को प्रदेश में अनिवार्य किया है, जो शिक्षक इसका पालन नहीं कर रहे, पहले उन्हें गुलाब के फूल दें। वे 31 जुलाई तक उसकी खुशबू लें। इसके बाद याद रखें कि फूल के नीचे कांटे भी होते हैं। पालन नहीं करने वालों पर सख्ती से कार्रवाई की जाएगी। शिक्षकों को अगर कोई दिक्कत आ रही है तो वे मुझे और अधिकारियों को बताएं कि क्या समस्या है। विभाग उन्हें ट्रेनिंग देगा। जहां मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है, उन जगहों को बताएं। समस्याओं को तत्काल हल किया जाएगा।

मंत्री ने प्रदेशभर में आरटीई के तहत निजी स्कूलों में होने वाले ऑनलाइन और ऑफ लाइन एडमिशन की तारीख को भी 12 जुलाई कर दी है।

बैठक में संयुक्त संचालक लोक शिक्षण इंदौर संभाग ओएल मंडलोई, अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक नरेंद्र जैन, जिला परियोजना समन्वयक अक्षय सिंह राठौर, उत्कृष्ट स्कूल व मॉडल स्कूल के प्राचार्य सहित अन्य मौजूद थे।

मेयर बोलीं- डीईओ साहब मैं आपसे बात कर रही हूं....बैठक पर ध्यान दीजिए
बैठक में महापौर मालिनी गाड भी थीं। उन्होंने जब डीईओ डॉ. अनुराग जायसवाल से कुछ कहा तो उनका ध्यान कहीं और था। इस पर महापौर ने नाराजगी जताते हुए कहा- डीईओ साहब मैं आपसे बात कर रही हूं... बैठक में ध्यान दीजिए। मैं खुद महापौर और विधायक हूं। कई बार डीईओ को फोन करते हैं तो वे फोन नहीं उठाते। उन्होंने मंत्री से कहा कि शहर के कई स्कूलों में अभी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हुई है। कुछ हाई स्कूलों को हायर सेकंडरी किया जाए। महापौर ने शिक्षा विभाग का निगम से संबंधित कोई भी काम हो तो उन्हें बताने को कहा।
फोन लगाकर पूछो कलेक्टर से उन्होंने मना किया क्या

बैठक में शाह ने सभी विकासखंड स्रोत समन्वयक (बीआरसी) से पूछा कि कितने दिन ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हो। वहां रात में रुकते हो? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि रोज चार से पांच स्कूलों का निरीक्षण करते हैं। कलेक्टर और कमिश्नर साहब दौरे पर जाते हैं तो रात में भी रुकते हैं। इस पर मंत्री ने कहा कि फोन लगाकर कलेक्टर से पूछते हैं कि क्या उन्होंने कहा है कि जब उनका दौरा हो, तभी रात में रुको। उन्होंने डीईओ को निर्देश दिए की सभी बीआरसी की डायरी को चेक की जाएं कि वे रोज कितने स्कूलों का निरीक्षण करते हैं, कितने दिन, रात में रुकते हैं। इसकी जानकारी विभाग को भी दें।


ये निर्देश भी दिए

- मंत्री ने जेडी और डीईओ को फटकार लगाते हुए कहा कि जिन स्कूलों के परीक्षा परिणाम कम आए, उनके प्राचार्यों को नोटिस अब तक क्यों नहीं दिए गए। उन्हें नोटिस दिए जाएं।

- प्राचार्य और हेड मास्टर रोज विभाग के अफसरों को एमएमएस कर जानकारी दें कि स्कूल में क्या हुआ। वहां की स्थिति कैसी है।

- सभी बच्चों के आधार कार्ड, बैंक में खाता और छात्रवृत्ति वितरण का काम 1 नवंबर तक पूरा किया जाए।

- ब्लॉक स्तर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था की जाए। हर सप्ताह वीसी ली जाएगी।

- आरटीई में प्रवेश की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए। स्कूल चले हम अभियान को प्राथमिकता से लें।


साभार नईदुनिया