Saturday, July 23, 2016

अधिकारीगण अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखें- अरविन्द रावल


 अरविन्द रावल - शिक्षक का मूल कार्य शिक्षा देना हे। एक आदर्श शिक्षक वही होता हे जो लिक से हटकर विद्यार्थियो की मनःस्थिति को समझकर अध्यापन कार्य करवाये। अध्यापन कार्य करवाने के कहने को एक हजार सरकारी नियम कायदे हे किन्तु इन सरकारी नियम कायदों से इतर जाकर भी अच्छा अध्यापन कार्य शिक्षक द्वारा करवाया जा सकता हे। बशर्ते यदि शिक्षक को इन अध्यापन के नियम कायदों के बंधनो से मुक्त कर दिया जाये तो।
अधिकारीगण बेशक स्कुलो का औचक निरीक्षण करे कोई हर्ज नही यह उनका दायित्त्व हे। लेकिन शिक्षक यदि संस्था में हे और वह अपना दायित्त्व ईमानदारी से निभाते हुए बच्चों को अध्यापन करवा रहा हे और बच्चे भी रुचिपूर्वक अध्यनन कर रहे हे तो अधिकारिगणो को अपने शिक्षक पर गर्व होना चाहिए उसकी प्रशंसा करना चाहिए। किन्तु दुःख इस बात का हे कि उचे ओहदे पर बेठे कुछ कतिपय अधिकारीगण पद के गुमान में उन शिक्षको की प्रशंशा या उन पर गर्व करना तो दूर उल्टे शिक्षको को पढाने के हजार नियमो का पालन नही करने के जुर्म में दण्डित करके चले जाते हे और अगले दिन अखबारो के पन्नों पर अपने दौरे का सरकारी बखान कर ईमानदार शिक्षक की इज्जत को तार तार करते हे।
आज आठवी तक सबको पास करो rte की नियमऔर शिक्षको की भारी कमी की वजह से नवमी के बच्चों को बेसिक ज्ञान सिखाना पड़ता हे। कुछ उच्च सरकारी या शहरी स्कुलो को छोड़कर पुरे प्रदेश में नवमी के बच्चों को न तो लेसनप्लांन के आधार पर न तो सिलेब्स के आधार पर और न ही शिक्षक डायरी के आधार पर अमूमन ईमानदारी से अध्ययन करवाया जा सकता हे। यदि इन सब नियमो का शिक्षक को उलझाकर रखेगे तो  वह बच्चों को बेसिक ज्ञान नही दे पायेगा। जब तक बच्चों को बेसिक ज्ञान ही समझ में नही आएगा तो वह कोर्स की किताबी भाषा को समझ ही नही सकेगा। शिक्षक से सिर्फ सरकारी नियम कायदों से कोर्स करवाना ही अधिकारियो का उद्देश्य होगा तो फिर निश्चित ही शिक्षक उसका पालन कर अपने कार्य की इतिश्री ही करेगा लेकिन बच्चों में गुणवत्ता नही आएगी जो उसके लिए सबसे अहम हे।
उक्त बातो से यहा मेरा आशय यही हे की शिक्षक यदि तमाम दायित्त्वो के निर्वहन करने साथ यदि बच्चों को ईमानदारी से जो भी उसके अनुसार अध्यापन करवा रहा हे उसे करवाने दे। क्योंकि एक शिक्षक ही पुरे वर्ष विद्यार्थियो के साथ रहता हे न की अधिकारीगण। शिक्षक को ही अपने विद्यार्थियो की गुणवत्ता और कमजोरी का पता होता हे न की निरीक्षणकर्ताओ को। स्कुल का निरीक्षण जो भी अधिकारीगण करे स्वागत हे लेकिन विद्यार्थीहित में एक निवेदन हे की आप शिक्षक और विद्यार्थियो से पुछ कर विद्यालय की समस्या और कमियो को दूर कर अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखिये।
लेखक स्वयं अध्यापक है यह उनके निजी विचार हैं .

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Saturday, July 23, 2016

अधिकारीगण अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखें- अरविन्द रावल


 अरविन्द रावल - शिक्षक का मूल कार्य शिक्षा देना हे। एक आदर्श शिक्षक वही होता हे जो लिक से हटकर विद्यार्थियो की मनःस्थिति को समझकर अध्यापन कार्य करवाये। अध्यापन कार्य करवाने के कहने को एक हजार सरकारी नियम कायदे हे किन्तु इन सरकारी नियम कायदों से इतर जाकर भी अच्छा अध्यापन कार्य शिक्षक द्वारा करवाया जा सकता हे। बशर्ते यदि शिक्षक को इन अध्यापन के नियम कायदों के बंधनो से मुक्त कर दिया जाये तो।
अधिकारीगण बेशक स्कुलो का औचक निरीक्षण करे कोई हर्ज नही यह उनका दायित्त्व हे। लेकिन शिक्षक यदि संस्था में हे और वह अपना दायित्त्व ईमानदारी से निभाते हुए बच्चों को अध्यापन करवा रहा हे और बच्चे भी रुचिपूर्वक अध्यनन कर रहे हे तो अधिकारिगणो को अपने शिक्षक पर गर्व होना चाहिए उसकी प्रशंसा करना चाहिए। किन्तु दुःख इस बात का हे कि उचे ओहदे पर बेठे कुछ कतिपय अधिकारीगण पद के गुमान में उन शिक्षको की प्रशंशा या उन पर गर्व करना तो दूर उल्टे शिक्षको को पढाने के हजार नियमो का पालन नही करने के जुर्म में दण्डित करके चले जाते हे और अगले दिन अखबारो के पन्नों पर अपने दौरे का सरकारी बखान कर ईमानदार शिक्षक की इज्जत को तार तार करते हे।
आज आठवी तक सबको पास करो rte की नियमऔर शिक्षको की भारी कमी की वजह से नवमी के बच्चों को बेसिक ज्ञान सिखाना पड़ता हे। कुछ उच्च सरकारी या शहरी स्कुलो को छोड़कर पुरे प्रदेश में नवमी के बच्चों को न तो लेसनप्लांन के आधार पर न तो सिलेब्स के आधार पर और न ही शिक्षक डायरी के आधार पर अमूमन ईमानदारी से अध्ययन करवाया जा सकता हे। यदि इन सब नियमो का शिक्षक को उलझाकर रखेगे तो  वह बच्चों को बेसिक ज्ञान नही दे पायेगा। जब तक बच्चों को बेसिक ज्ञान ही समझ में नही आएगा तो वह कोर्स की किताबी भाषा को समझ ही नही सकेगा। शिक्षक से सिर्फ सरकारी नियम कायदों से कोर्स करवाना ही अधिकारियो का उद्देश्य होगा तो फिर निश्चित ही शिक्षक उसका पालन कर अपने कार्य की इतिश्री ही करेगा लेकिन बच्चों में गुणवत्ता नही आएगी जो उसके लिए सबसे अहम हे।
उक्त बातो से यहा मेरा आशय यही हे की शिक्षक यदि तमाम दायित्त्वो के निर्वहन करने साथ यदि बच्चों को ईमानदारी से जो भी उसके अनुसार अध्यापन करवा रहा हे उसे करवाने दे। क्योंकि एक शिक्षक ही पुरे वर्ष विद्यार्थियो के साथ रहता हे न की अधिकारीगण। शिक्षक को ही अपने विद्यार्थियो की गुणवत्ता और कमजोरी का पता होता हे न की निरीक्षणकर्ताओ को। स्कुल का निरीक्षण जो भी अधिकारीगण करे स्वागत हे लेकिन विद्यार्थीहित में एक निवेदन हे की आप शिक्षक और विद्यार्थियो से पुछ कर विद्यालय की समस्या और कमियो को दूर कर अध्यापन की बेहतर सुविधा और संशाधन की व्यवस्था कीजिये न कि शिक्षक डायरी लेशनप्लांन या ड्रेस की कमी देखिये।
लेखक स्वयं अध्यापक है यह उनके निजी विचार हैं .

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