सियाराम पटेल - वर्तमान परिस्थिति में अध्यापक संवर्ग में व्याप्त आक्रोश को आज एक सही दिशा देने की महती आवश्यकता है।
अध्यापक संवर्ग आज अपने भविष्य और अधिकारों को लेकर चिंतित एवं आक्रोशित तो हैं, लेकिन शासन की फुट डालो और राज करो की नीति के चलते आज शासन के विरुद्ध व्याप्त आक्रोश को कुछ इस प्रकार की नीतियों एवं सेवाशर्तों के मकड़जाल ने संघवाद की राह पर खड़ा कर ठंडा कर दिया है कि आज अध्यापक शासन के विरुद्ध मुखर कम आपस में संघवाद के चलते ज्यादा मुखर दिखाई दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा विगत 6 माह पूर्व छटे वेतन का आर्डर और घोषणा कर मीडिया के माध्यम से आमजन के मध्य अध्यापक हितैषी बनकर वाहवाही बटोरी और वास्तव में स्थिति आज भी वही के वहीँ धाक के तीन पात वाली ही है।
आमजन तक तो सन्देश पहुँच गया कि अध्यापको को छटा वेतन मिल रहा है। लेकिन हम आमजनों के बीच रहते हुए भी हम उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराने में अक्षम हैं। आज शासन द्वारा हमारी फूट का फायदा उठाते हुए हमे बदनाम करते हुए दिशाहीन व दिग्भ्रमित कर हमारे आक्रोश को आपसी आक्रोश में बखूबी तब्दील किया जा रहा है।
इसीलिए आज अध्यापको में व्याप्त आपसी आक्रोश को सही दिशा व दशा देते हुए शासन के विरुद्ध तब्दील किये जाने की महती आवश्यकता है।
इतिहास गवाह है कि जब जब अध्यापको का आक्रोश शासन के विरुद्ध सही मायने में उभरकर सामने आया है, तब तब हमने कुछ न कुछ सार्थक परिणाम अवश्य प्राप्त किये हैं। किन्तु लगभग 2 से 3 वर्षों के दौरान अध्यापक संवर्ग के हित में एक भी आर्डर नही हुआ, घोषणाएं तो बहुत हुई पर परिणाम कुछ नजर नही आया। सरकार अध्यापक हित में बार बार घोषणा कर, तारीख पर तारीख देकर आमजन के बीच अध्यापक हितेषी बन हमारा शोषण करते हुए आये दिन पूर्व में स्वीकृत नियमो एवं सुविधाओं में कटौती करते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही है और हम संघर्ष करते हुए भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा विगत 6 माह पूर्व छटे वेतन का आर्डर और घोषणा कर मीडिया के माध्यम से आमजन के मध्य अध्यापक हितैषी बनकर वाहवाही बटोरी और वास्तव में स्थिति आज भी वही के वहीँ धाक के तीन पात वाली ही है।
आमजन तक तो सन्देश पहुँच गया कि अध्यापको को छटा वेतन मिल रहा है। लेकिन हम आमजनों के बीच रहते हुए भी हम उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराने में अक्षम हैं। आज शासन द्वारा हमारी फूट का फायदा उठाते हुए हमे बदनाम करते हुए दिशाहीन व दिग्भ्रमित कर हमारे आक्रोश को आपसी आक्रोश में बखूबी तब्दील किया जा रहा है।
इसीलिए आज अध्यापको में व्याप्त आपसी आक्रोश को सही दिशा व दशा देते हुए शासन के विरुद्ध तब्दील किये जाने की महती आवश्यकता है।
इतिहास गवाह है कि जब जब अध्यापको का आक्रोश शासन के विरुद्ध सही मायने में उभरकर सामने आया है, तब तब हमने कुछ न कुछ सार्थक परिणाम अवश्य प्राप्त किये हैं। किन्तु लगभग 2 से 3 वर्षों के दौरान अध्यापक संवर्ग के हित में एक भी आर्डर नही हुआ, घोषणाएं तो बहुत हुई पर परिणाम कुछ नजर नही आया। सरकार अध्यापक हित में बार बार घोषणा कर, तारीख पर तारीख देकर आमजन के बीच अध्यापक हितेषी बन हमारा शोषण करते हुए आये दिन पूर्व में स्वीकृत नियमो एवं सुविधाओं में कटौती करते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही है और हम संघर्ष करते हुए भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
आज हमे आत्मचिंतन करते हुए हमारी वास्तविक दुर्दशा एवं हालातों से आमजन को अवगत कराकर अपने पक्ष में करते हुए सही दिशा में अपने आक्रोश को शासन के विरुद्ध मुखर करने की महती आवश्यकता है।
हम सभी को आपसी मतभेदों, मनभेदों व आपसी आक्रोश को एक नई दिशा देने के बारे में आत्मचिंतन करना ही पडेगा, नहीं वो दिन दूर नही जब हमे कहना पड़े की-
"अब पछताय होत का, जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत"
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