राशी राठौर -विद्वानों ने कहा " भगवान हर जगह हमारे साथ नही हो सकते, इसलिए भगवान ने माँ बनायी "
संघर्षो का इतिहास रचने वाली आधुनिक नारी आज हर क्षेत्र में कडा संघर्ष कर खुद साबित करने की भरसक प्रयास कर रही है। घर और बाहर दोनो जगह बेहतर उत्कृष्ट प्रबन्धन और परिणाम देने वाली नारी जो इस समाज मै खुद के अस्तित्व को तलाश रही। पंचायत कर्मी अध्यापिका माँ को संतान पालन अवकाश से वंचित रखने का हिटलरी फरमान ऐसी संघर्षरत नारी को हतोत्साहित करने के लिए पर्याप्त है।
साथ ही उन सेकडो योजनाओं की पोल भी खोल देता है जिनके आधार पर महिला सशक्तीकरण और महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाने के खोखले दावे किये जाते है। शिक्षक और अध्यापक मै भेदभाव तो वर्षो से चला आ रहा है किन्तु इस बार बात एक मां की ममता में भेदभाव कि है। माँ तो सिर्फ माँ होती है। उसकी ममता मै कोई भेद नही होता चाहे वो कोई भी माँ हो। पंचायत कर्मी होने से क्या माँ की ममता और उत्तरदायित्व महत्त्वहीन हो जाते है।क्या अध्यापिका मां की ममता का कोई महत्व नही। क्या अध्यापिका के नाबालिक बच्चो उन नाजुक मुश्किल स्थिति मै अकेला छोडा जाना चाहिए जब उसे सबसे ज्यादा सिर्फ मा की आवश्यकता होती हैं। हर बच्चे के लिए उसकी मां लाइफलाइन होती है चाहे वह पांच महीने का हो या पचास साल का। आज के समय में मां की भूमिका और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। बदलते परिवेश में अपने बच्चे को सही लालन पालन किसी चुनौती से कम नहीं। माएं कामकाजी हो रही हैं इसीलिए काम के साथ-साथ उसे अपने बच्चों का भी ख्याल रखना होता है। ऐसे मै ये हिटलरी फरमान ,ये विसंगती माँ के ह्रदय गहरी चोट पहुचाती।उनके संघर्ष को और जटिल बना देती है।नाबालिक बच्चों को ममता के आंचल की छाव की आवश्यकता कदम कदम पर पडती। बच्चे बीमार भी हो जाये सिर्फ़ माँ को पुकारते है।पर ये कैसी विडंबना है यहाँ तो सिर्फ इसलिए एक मां को अपने बच्चे के लालन पालन से दूर किया जा रहा क्यू की वो अध्यापिका है। राष्ट्र निर्माता है। वो करोडो बच्चो को भविष्य तो बना सकती किन्तु अपने बच्चों को लालन पालन हेतु अवकाश हेतु पात्रता नही रखती। माँ की ममता पर इस हिटलरी फरमान का प्रहार असहनीय है।
अध्यापिका की ममता और उसके नाबालिग बच्चे का पूरा हक बनता है संतान पालन अवकाश पर। माँ की ममता पर ओछी मानसिकता घटिया राजनीती कतई शोभा नही देती। अध्यापिका हू तो क्या हुआ मै भी एक माँ हू। देश की भविष्य निर्माता हू। बस और कोई कसूर नही है मेरा। विदेश मै तो शिक्षको को वी आई पी का दर्जा दिया जाता है। मुझे तो सिर्फ माॅ होने की जिम्मेदारी निभाने का दर्जा चाहिए। साहब मुझे संतान पालन अवकाश से वंचित ना करे।
(लेखिका स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं।)
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