Saturday, July 16, 2016

काश मुरलीधर पाटीदार जैसा नेता अतिथि संवर्ग को मिल गया होता - अरविंद रावल झबुआ ...


अरविंद रावल झबुआ राज्य अध्यापक संघ एक शसक्त संग़ठन है। राज्य अध्यापक संघ जमीनी धरातल पर काम करके दिखाने वाला संग़ठन है न की संचार के माध्यम वाट्सएप या फेसबुक के जरिये चलने वाला संग़ठन है। हमारे साथी आलोचना या क्रिया प्रतिक्रियाओ में यकीन नही करते है बल्कि हम सभी को सांथ लेकर एकजुटता में विश्वास रखते है। हम कल भी सबको साथ लेकर चले थे आज भी चल रहे है और कल भी साथ लेकर चलेगे।राज्य अध्यापक संघ ने प्रांताध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार के नेतृत्व में जिस एकजुटता के साथ अपने साथियों के बूते जो अपने हक की अपने पेट की लड़ाईया लड़ी है उसके कसीदे कर्मचारी जगत में आज भी गाये जाते है। हम अध्यापक साथियों ने अपने संघर्ष के बल पर शासन प्रशासन और कर्मचारी जगत में एक सम्मानजनक मुकाम पाया है। हमारे आलोचक भाई वह दिन क्यों याद नही करते जब हम टीन शेड के नीचे बैठकर वल्लभ भवन में जाने और मंत्री या सचिव से मिलने तक के लिए हमे विधायको के चक्कर लगाने पड़ते थे।
हमारे आलोचक अब यह क्यों याद नही करते की वे भी तब एक स्वर में यह कहते थे की हमारे साथियो में से किसी को विधायक बन कर विधानसभा में अपनी बात उठाना चाहिए और अपनी मांगे मनवाना चाहिए। तब सब यही कहते थे की अपने लोगो में से किसी को विधायक बनना चाहिए। तब विधायक बनने से कोई किसी का विरोध नही था।आज जब हम अध्यापको का संघर्षशील नेता ही खुद विधायक बन गया है। अब मंत्री सचिव तो क्या सीधे हम मुख्यमंत्रीजी तक अध्यापको की बात रख सकते है तो इतना विरोध क्यों ? क्या मुरलीधर पाटीदार ने विधायक बनने के बाद कभी यह कहा है की वे अब अध्यापकों की पेट की लड़ाई नही लड़ेंगे ? फिर क्यों इतना विरोध मित्रो ? यह बड़े चिंतन का प्रश्न है साथियो की विरोध करने वाले सिर्फ इसलिए तो कही विरोध नही कर रहे हे की वे मुरलीधर जैसा मुकाम हासिल नही कर पाये।
जिन साथियो ने सड़को पर भूखे पेट संघर्ष किया है। जिन साथियो ने जेल की कोठरियों में कई दिन काटे है वे कभी भी मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण नही करेगे। मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण वही लोग करते हे जो संघर्ष के मैदान छोड़कर घरो में दुबके छुपे थे। मुरलीधर पाटीदार का विरोध करने वाले और अध्यापको के मसीहा बनने वाले यह तो बताये की वे स्वम कितनी बार जेल गए हैं? और कितनी बार अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए उन पर कितने प्रकरण दर्ज हुए है?
मुरलीधर पाटीदार पर तो अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए दर्जनों प्रकरण दर्ज है जिनसे बरी होने के लिए शायद यह जीवन भी कम पड़ जाये। अनगर्ल आरोप लगाने वाले से यह निवेदन है की वे एक भी प्रमाण सिद्ध कर दे की अध्यापको का सौदा कर पाटीदार ने स्वार्थ सिद्ध किया है ? बेवजह के आरोप प्रत्यारोप करने वालो से हमारा आज भी यही कहना है की मुरलीधर पाटीदार राज्य अध्यापक संघ के कल भी सर्वमान्य नेता थे आज भी है और कल भी रहेगे। हम अपने साथियो से सिर्फ इतना ही कहते हे की सड़को पर अध्यापको की लड़ाई लड़ने वाला हमारा यह नेता विधानसभा में भी अध्यापको की लड़ाई पूरे जोशो जुनून से लड़ेगा और शासन से हमारी मांगो का निराकरण करवाएगा।हम अध्यापक साथियो में विचारो का मतभेद होना जायज है लेकिन मतभेद के चलते हम किसी के चरित्र पर ऊँगली उठाये यह हमारी गरिमा के विपरीत है। हम राष्ट्र निर्माता हैं कोई राजनीतिक नही है जो दोषारोपण करके अपनी प्रतिष्ठता को धूमिल करे। हमारी लड़ाई शासन है न की अपनों से है। आज हमारे साथी झूठी उच्च महात्त्वकांक्षाओ के चलते शासन् से लड़ने कि बजाय अपनों को निचा दिखाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने पर तुले हुए है।
लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं .

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Saturday, July 16, 2016

काश मुरलीधर पाटीदार जैसा नेता अतिथि संवर्ग को मिल गया होता - अरविंद रावल झबुआ ...


अरविंद रावल झबुआ राज्य अध्यापक संघ एक शसक्त संग़ठन है। राज्य अध्यापक संघ जमीनी धरातल पर काम करके दिखाने वाला संग़ठन है न की संचार के माध्यम वाट्सएप या फेसबुक के जरिये चलने वाला संग़ठन है। हमारे साथी आलोचना या क्रिया प्रतिक्रियाओ में यकीन नही करते है बल्कि हम सभी को सांथ लेकर एकजुटता में विश्वास रखते है। हम कल भी सबको साथ लेकर चले थे आज भी चल रहे है और कल भी साथ लेकर चलेगे।राज्य अध्यापक संघ ने प्रांताध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार के नेतृत्व में जिस एकजुटता के साथ अपने साथियों के बूते जो अपने हक की अपने पेट की लड़ाईया लड़ी है उसके कसीदे कर्मचारी जगत में आज भी गाये जाते है। हम अध्यापक साथियों ने अपने संघर्ष के बल पर शासन प्रशासन और कर्मचारी जगत में एक सम्मानजनक मुकाम पाया है। हमारे आलोचक भाई वह दिन क्यों याद नही करते जब हम टीन शेड के नीचे बैठकर वल्लभ भवन में जाने और मंत्री या सचिव से मिलने तक के लिए हमे विधायको के चक्कर लगाने पड़ते थे।
हमारे आलोचक अब यह क्यों याद नही करते की वे भी तब एक स्वर में यह कहते थे की हमारे साथियो में से किसी को विधायक बन कर विधानसभा में अपनी बात उठाना चाहिए और अपनी मांगे मनवाना चाहिए। तब सब यही कहते थे की अपने लोगो में से किसी को विधायक बनना चाहिए। तब विधायक बनने से कोई किसी का विरोध नही था।आज जब हम अध्यापको का संघर्षशील नेता ही खुद विधायक बन गया है। अब मंत्री सचिव तो क्या सीधे हम मुख्यमंत्रीजी तक अध्यापको की बात रख सकते है तो इतना विरोध क्यों ? क्या मुरलीधर पाटीदार ने विधायक बनने के बाद कभी यह कहा है की वे अब अध्यापकों की पेट की लड़ाई नही लड़ेंगे ? फिर क्यों इतना विरोध मित्रो ? यह बड़े चिंतन का प्रश्न है साथियो की विरोध करने वाले सिर्फ इसलिए तो कही विरोध नही कर रहे हे की वे मुरलीधर जैसा मुकाम हासिल नही कर पाये।
जिन साथियो ने सड़को पर भूखे पेट संघर्ष किया है। जिन साथियो ने जेल की कोठरियों में कई दिन काटे है वे कभी भी मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण नही करेगे। मुरलीधर पाटीदार पर दोषारोपण वही लोग करते हे जो संघर्ष के मैदान छोड़कर घरो में दुबके छुपे थे। मुरलीधर पाटीदार का विरोध करने वाले और अध्यापको के मसीहा बनने वाले यह तो बताये की वे स्वम कितनी बार जेल गए हैं? और कितनी बार अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए उन पर कितने प्रकरण दर्ज हुए है?
मुरलीधर पाटीदार पर तो अध्यापको की लड़ाई लड़ते हुए दर्जनों प्रकरण दर्ज है जिनसे बरी होने के लिए शायद यह जीवन भी कम पड़ जाये। अनगर्ल आरोप लगाने वाले से यह निवेदन है की वे एक भी प्रमाण सिद्ध कर दे की अध्यापको का सौदा कर पाटीदार ने स्वार्थ सिद्ध किया है ? बेवजह के आरोप प्रत्यारोप करने वालो से हमारा आज भी यही कहना है की मुरलीधर पाटीदार राज्य अध्यापक संघ के कल भी सर्वमान्य नेता थे आज भी है और कल भी रहेगे। हम अपने साथियो से सिर्फ इतना ही कहते हे की सड़को पर अध्यापको की लड़ाई लड़ने वाला हमारा यह नेता विधानसभा में भी अध्यापको की लड़ाई पूरे जोशो जुनून से लड़ेगा और शासन से हमारी मांगो का निराकरण करवाएगा।हम अध्यापक साथियो में विचारो का मतभेद होना जायज है लेकिन मतभेद के चलते हम किसी के चरित्र पर ऊँगली उठाये यह हमारी गरिमा के विपरीत है। हम राष्ट्र निर्माता हैं कोई राजनीतिक नही है जो दोषारोपण करके अपनी प्रतिष्ठता को धूमिल करे। हमारी लड़ाई शासन है न की अपनों से है। आज हमारे साथी झूठी उच्च महात्त्वकांक्षाओ के चलते शासन् से लड़ने कि बजाय अपनों को निचा दिखाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने पर तुले हुए है।
लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं .

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