Thursday, July 21, 2016

शाबाश दर्शन, तुम वाकई जगदीश के सारथी हो - वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वसुदेव शर्मा - बीते कुछ सालों में शिवाराज सिंह की सरकार ने भोपाल से हर उस प्रदर्शनकारी को खदेड़ा है, जो जिंदा रहने लायक वेतन मांगने वहां पहुंचा। जिन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं, जेलों तक जाना पड़ा उनमें अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी, अतिथि विद्वान जैसे वे सभी कर्मचारी शामिल हैं, जो सरकार के यहां संविदा की नौकरी कर रहे हैं। शिवराज की सरकार ने डंडों का उपयोग छोटे कर्मचारियों को डराकर शांत रहकर गुलामी करते रहने के मकसद से किया था। लाठियां खाकर जिस तरह शांत हो जाते थे, उससे शिवराज सिंह को लगता रहा होगा कि वह अपनी कोशिश में सफल हो रहे हैं, शायद इसीलिए उन्होंने इनके संगठनों को भोपाल में धरने की परमीशन देना ही बंद कर दी है। शिवराज सिंह सरकार की इस मनमानी का जबाव दिया जाना चाहिए था, यह इच्छा हर उस छोटे कर्मचारी की थी, जिसने सरकार की तानाशाही को झेला है। पुलिस के डंडे खाएं हैं। जेलों की असहनीय पीड़ा को सहा है।
3 जनवरी 2016 से 21 जुलाई के बीच यह काम सफलता के साथ किया गया है। इन 6 महीन में दर्शन सिंह चौधरी ने जगदीश यादव का सारथी बनकर प्रदेश के 51 जिलों में तावड़तोड़ सभाएं कर शिवराज की तानाशाह सरकार को करार जबाव दिया है। 3 जनवरी से शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ अभियान चलाया गया, जिसके दौरान 150 से अधिक सभाएं की गईं। 30 दिन से संविलियन यात्रा प्रदेश में घूम रही है, जिसके तहत अब तक 100 से अधिक सभाएं हो चुकी हैं। सभाओं का सिलसिला रात 9 बजे तक चलता रहता है। इन सभाओं में दर्शन सिंह चौधरी ने जिन तेवरों के साथ अपनी बात को रखा है, वह वाकई काविले तारीफ है। दर्शन सिंह की चिंता अध्यापकों तक ही सीमित नहीं रहती, वे इसके आगे जाकर उस नीति पर हमला करते हैं, जिसके कारण प्रदेश के युवाओं के 10, 15, 20 साल बर्बाद हो चुके हैं। जब दर्शन सिंह चौधरी युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने का आव्हान करते हैं, तब सभास्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठता है यानि अध्यापकों के बीच चल रहा यह अभियान आने वाले दिनों में जनांदोलन की बुनियाद रखेगा, हो सकता है 25 जुलाई को भोपाल में युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने के खिलाफ ऐसे किसी जनांदोलन की घोषणा हो जाए
अपने अध्यक्षीय भाषण में जगदीश यादव जब विस्तार से अध्यापकों के साथ हो रहे अन्याय के कारणों के बारे में बताते हैं, तब लगता है कि दर्शन सिंह और जगदीश यादव की जोड़ी वाकई अब तक हुए अन्याय का बदला लेने के लिए ही निकली है। अध्यापकों को संबोधित करते हुए जगदीश यादव जिन सवालों को उठाते हैं, उन सवालों पर चर्चा करना आज बेहद जरूरी है। जगदीश यादव बताते हैं कि ज्यादातर अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी या अतिथि विद्वान छोटे एवं निम्न किसान परिवारों, एवं मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं, सरकार इन परिवारों को आर्थिक बदहाली में पहुंचाने के लिए ही संविदाकरण की नीति को लागू किए हुए हैं। जगदीश यादव बताते हैं कि महंगाई बढ़ती है, तब इसका असर भी हमारे ही परिवारों पर पढ़ता है। जब सरकार तानशाही के रास्ते पर चलती है, तब इसका शिकार भी हम लोग ही होते हैं, क्योंकि हम लोग असमानता के शिकार है और इसे मिटाना चाहते हैं। सरकार ऐसा करने नहीं देगी, इसीलिए टकराव बढ़ेगा, जिसका मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि सरकार की तानाशाही के शिकार सभी लोग एकसाथ आएं और उस नीति को बदलने के लिए लड़ें, जिसके कारण हमारी जवानी बर्बाद हुई है। जगदीश एवं दर्शन सिंह का यह आव्हान भविष्य के बड़े जनांदोलन का आगाज भी है और अध्यापकों की जीत का भरोसा भी।
मंत्रियों से नजदीकियां बढ़ाने की आदत छोडि़ए !
बल्लवभवन के चक्कर लगाना बंद कीजिए !
अपने भविष्य की बेहतरी का रास्ता खुद बनाईए !
जो लड़े हैं, वे ही जीते हैं !
जो निहत्थे लड़े हैं, वे हारकर लौटे हैं !
असमानता को मिटाने वाले विचार को हथियार बनाईए !
सिर्फ जीतने के संकल्प के साथ 25 को भोपाल पहुंचिए ! 

लेखक पत्रकार हैं और यह उनके  निजी विचार हैं .


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Thursday, July 21, 2016

शाबाश दर्शन, तुम वाकई जगदीश के सारथी हो - वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वसुदेव शर्मा - बीते कुछ सालों में शिवाराज सिंह की सरकार ने भोपाल से हर उस प्रदर्शनकारी को खदेड़ा है, जो जिंदा रहने लायक वेतन मांगने वहां पहुंचा। जिन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं, जेलों तक जाना पड़ा उनमें अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी, अतिथि विद्वान जैसे वे सभी कर्मचारी शामिल हैं, जो सरकार के यहां संविदा की नौकरी कर रहे हैं। शिवराज की सरकार ने डंडों का उपयोग छोटे कर्मचारियों को डराकर शांत रहकर गुलामी करते रहने के मकसद से किया था। लाठियां खाकर जिस तरह शांत हो जाते थे, उससे शिवराज सिंह को लगता रहा होगा कि वह अपनी कोशिश में सफल हो रहे हैं, शायद इसीलिए उन्होंने इनके संगठनों को भोपाल में धरने की परमीशन देना ही बंद कर दी है। शिवराज सिंह सरकार की इस मनमानी का जबाव दिया जाना चाहिए था, यह इच्छा हर उस छोटे कर्मचारी की थी, जिसने सरकार की तानाशाही को झेला है। पुलिस के डंडे खाएं हैं। जेलों की असहनीय पीड़ा को सहा है।
3 जनवरी 2016 से 21 जुलाई के बीच यह काम सफलता के साथ किया गया है। इन 6 महीन में दर्शन सिंह चौधरी ने जगदीश यादव का सारथी बनकर प्रदेश के 51 जिलों में तावड़तोड़ सभाएं कर शिवराज की तानाशाह सरकार को करार जबाव दिया है। 3 जनवरी से शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ अभियान चलाया गया, जिसके दौरान 150 से अधिक सभाएं की गईं। 30 दिन से संविलियन यात्रा प्रदेश में घूम रही है, जिसके तहत अब तक 100 से अधिक सभाएं हो चुकी हैं। सभाओं का सिलसिला रात 9 बजे तक चलता रहता है। इन सभाओं में दर्शन सिंह चौधरी ने जिन तेवरों के साथ अपनी बात को रखा है, वह वाकई काविले तारीफ है। दर्शन सिंह की चिंता अध्यापकों तक ही सीमित नहीं रहती, वे इसके आगे जाकर उस नीति पर हमला करते हैं, जिसके कारण प्रदेश के युवाओं के 10, 15, 20 साल बर्बाद हो चुके हैं। जब दर्शन सिंह चौधरी युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने का आव्हान करते हैं, तब सभास्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठता है यानि अध्यापकों के बीच चल रहा यह अभियान आने वाले दिनों में जनांदोलन की बुनियाद रखेगा, हो सकता है 25 जुलाई को भोपाल में युवाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाली नीति को बदलने के खिलाफ ऐसे किसी जनांदोलन की घोषणा हो जाए
अपने अध्यक्षीय भाषण में जगदीश यादव जब विस्तार से अध्यापकों के साथ हो रहे अन्याय के कारणों के बारे में बताते हैं, तब लगता है कि दर्शन सिंह और जगदीश यादव की जोड़ी वाकई अब तक हुए अन्याय का बदला लेने के लिए ही निकली है। अध्यापकों को संबोधित करते हुए जगदीश यादव जिन सवालों को उठाते हैं, उन सवालों पर चर्चा करना आज बेहद जरूरी है। जगदीश यादव बताते हैं कि ज्यादातर अध्यापक, अतिथि शिक्षक, संविदाकर्मी या अतिथि विद्वान छोटे एवं निम्न किसान परिवारों, एवं मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं, सरकार इन परिवारों को आर्थिक बदहाली में पहुंचाने के लिए ही संविदाकरण की नीति को लागू किए हुए हैं। जगदीश यादव बताते हैं कि महंगाई बढ़ती है, तब इसका असर भी हमारे ही परिवारों पर पढ़ता है। जब सरकार तानशाही के रास्ते पर चलती है, तब इसका शिकार भी हम लोग ही होते हैं, क्योंकि हम लोग असमानता के शिकार है और इसे मिटाना चाहते हैं। सरकार ऐसा करने नहीं देगी, इसीलिए टकराव बढ़ेगा, जिसका मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि सरकार की तानाशाही के शिकार सभी लोग एकसाथ आएं और उस नीति को बदलने के लिए लड़ें, जिसके कारण हमारी जवानी बर्बाद हुई है। जगदीश एवं दर्शन सिंह का यह आव्हान भविष्य के बड़े जनांदोलन का आगाज भी है और अध्यापकों की जीत का भरोसा भी।
मंत्रियों से नजदीकियां बढ़ाने की आदत छोडि़ए !
बल्लवभवन के चक्कर लगाना बंद कीजिए !
अपने भविष्य की बेहतरी का रास्ता खुद बनाईए !
जो लड़े हैं, वे ही जीते हैं !
जो निहत्थे लड़े हैं, वे हारकर लौटे हैं !
असमानता को मिटाने वाले विचार को हथियार बनाईए !
सिर्फ जीतने के संकल्प के साथ 25 को भोपाल पहुंचिए ! 

लेखक पत्रकार हैं और यह उनके  निजी विचार हैं .


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