Saturday, July 30, 2016

अध्यापकों के खिलाफ माहौल बना रही सरकार-वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वासुदेव शर्मा - एक डेढ़ साल में सरकार 5-7 बार छठवां वेतनमान दे चुकी है। इस तरह की खबरें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे आकर चलवाईं। बंबई से छठवां वेतनमान दिया गया। उज्जैन से आदेश निकाले गए। अब सरकार की ही ओर से वरिष्ठता के आधार पर संविलियन का फितूर छोड़ा गया है। इस तरह की खबरों के जरिए शिवराज सिंह चौहान जनता के अंदर यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि उन्होंने अध्यापकों की सभी मांगों को पूरा कर दिया है। सरकार की ओर से इस तरह की कोशिश इसलिए की जा रही है कि जिससे अध्यापकों को जनता का नैतिक समर्थन हासिल न हो सके और वे अलग-थलग पढ़ जाएं। अध्यापकों को अलग-थलग करने का काम कर्मचारियों के दूसरे संगठन भी कर रहे हैं। पिछले दिनों राज्य कर्मचारी संघ के बड़े नेता ने मंच से कहा भी कि सीएम सिर्फ अध्यापकों की समस्याओं का ही निराकरण कर रहे हैं। अध्यापकों के खिलाफ यह खतरनाक साजिश रची जा रही है, जिसका जबाव तक अध्यापकों के नेताओं की ओर से नहीं दिया जाता, उल्टे ऐसे नेताओं की गोद में बैठने की ही कोशिश की जाती है। 25 जुलाई को भोपाल में दर्शन सिंह ने सवाल किया था: सैकड़ों सभाओं के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल नहीं बन रहा? यही या ऐसे ही सवाल तमाम अध्यापक नेताओं के भी थे? तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल न बन पाने की वजह भी यही है कि सरकार ने जनता के बीच यह संदेश पहुंचा दिया है कि अध्यापकों के साथ सरकार न्याय कर चुकी है और इसे खुद अध्यापक नेता भी स्वीकार कर चुके हैं इसीलिए वे यदा-कदा सीएम को फूल-मालाएं पहनाने के लिए सीएम हाऊस पहुंचते भी रही हैं। अध्यापकों ने जितनी बार छठवां वेतनमान नहीं माांगा, उससे अधिकवार सरकार उन्हें दे चुकी है, यह प्रदेश की जनता को बताया भी जा चुका है।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला। लेखक वरिष्ठ पत्रकार है यह उनके निजी विचार है .

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Saturday, July 30, 2016

अध्यापकों के खिलाफ माहौल बना रही सरकार-वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा

वासुदेव शर्मा - एक डेढ़ साल में सरकार 5-7 बार छठवां वेतनमान दे चुकी है। इस तरह की खबरें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे आकर चलवाईं। बंबई से छठवां वेतनमान दिया गया। उज्जैन से आदेश निकाले गए। अब सरकार की ही ओर से वरिष्ठता के आधार पर संविलियन का फितूर छोड़ा गया है। इस तरह की खबरों के जरिए शिवराज सिंह चौहान जनता के अंदर यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि उन्होंने अध्यापकों की सभी मांगों को पूरा कर दिया है। सरकार की ओर से इस तरह की कोशिश इसलिए की जा रही है कि जिससे अध्यापकों को जनता का नैतिक समर्थन हासिल न हो सके और वे अलग-थलग पढ़ जाएं। अध्यापकों को अलग-थलग करने का काम कर्मचारियों के दूसरे संगठन भी कर रहे हैं। पिछले दिनों राज्य कर्मचारी संघ के बड़े नेता ने मंच से कहा भी कि सीएम सिर्फ अध्यापकों की समस्याओं का ही निराकरण कर रहे हैं। अध्यापकों के खिलाफ यह खतरनाक साजिश रची जा रही है, जिसका जबाव तक अध्यापकों के नेताओं की ओर से नहीं दिया जाता, उल्टे ऐसे नेताओं की गोद में बैठने की ही कोशिश की जाती है। 25 जुलाई को भोपाल में दर्शन सिंह ने सवाल किया था: सैकड़ों सभाओं के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल नहीं बन रहा? यही या ऐसे ही सवाल तमाम अध्यापक नेताओं के भी थे? तमाम कोशिशों के बाद भी सरकार के खिलाफ माहौल न बन पाने की वजह भी यही है कि सरकार ने जनता के बीच यह संदेश पहुंचा दिया है कि अध्यापकों के साथ सरकार न्याय कर चुकी है और इसे खुद अध्यापक नेता भी स्वीकार कर चुके हैं इसीलिए वे यदा-कदा सीएम को फूल-मालाएं पहनाने के लिए सीएम हाऊस पहुंचते भी रही हैं। अध्यापकों ने जितनी बार छठवां वेतनमान नहीं माांगा, उससे अधिकवार सरकार उन्हें दे चुकी है, यह प्रदेश की जनता को बताया भी जा चुका है।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला।

गौरतलब है कि सरकारें उन्हीं आंदोलनों से डरती हैं, जो उनके खिलाफ माहौल बनाने की ताकत रखते हैं, टुकड़ों में बंट चुके अध्यापक अपनी इसी ताकत को गंवा चुके हैं। पूर्व में यह ताकत शिक्षाकर्मियों के पास थी, जिसके नतीजे जीत के रूप में आए। सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठने से पहले अध्यापकों के नेताओं को अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने का काम करना चाहिए, जब तक वह ऐसा नहीं करते हैं, तब तक उन्हें कुछ नहीं मिल सकता। 29 जुलाई को भी सरकार के साथ नेताओं के फोटुओं के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला। लेखक वरिष्ठ पत्रकार है यह उनके निजी विचार है .

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