Saturday, July 30, 2016

अध्यापको की सुविधा पर कैंची चलाती सरकार और राजनेतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप बैठे अध्यापक -सुरेश यादव रतलाम

सुरेश यादव रतलाम - साथियो सर्वविदित है कि, किसी भी कर्मचारी वर्ग को प्रदान की गयी सुविधा में कोई भी सरकार कटौती नहीं करती अथवा ऐसा कोई नियम नहीं बनाती जिसके चलते प्राप्त हो रही सुविधा समाप्त हो जाए  या कम हो जाए  ,परन्तु अध्यापक संवर्ग  के साथ ऐसा ही हुआ है सरकार ने अपने ही बनाये नियमो का न सिर्फ उलंघन किया है ,वरन सरकार ने नियमो की मनगढ़ंत व्याख्या कर  विधान सभा में प्रस्तुत की ।

प्रकरण इस प्रकार हैं -आज तक के  इतिहास में  जिस दिनांक से भी कर्मचारियों को अंतरिम राहत प्रदान की जाती है उसी दिंनाक से  उनका नविन वेतन निर्धारण होता है ।

हमारे प्रकरण में यह हुआ की अंतरिम राहत 1 सितम्बर 13 से  प्रदान की गई और वेतन निर्धारण 1 जनवरी 2016 से होगा ,यही नही हम सब को मिल रहा वेतन भी कम हो रहा है ,हम  इसी को प्राप्त कर  खुशियां मना रहे हैं। यदि आप इसे लाभ  समझ  रहे है ,तो आप गलत हैं ,किसी परिचित विशेषज्ञ से उचित  जानकारी लीजिये । हमारे गणना पत्रक को सरकार ने स्थगित कर कर दिया है लेकिन विधान सभा में एक प्रश्न के जवाब में  " सरकार ने कहा कि वेतन के गणना पत्रक में हमने कोई विसंगती नहीं की  है । " यदि कोई विसंगती नही की तो आदेश स्थगित क्यों किया ? लेकिन अब  सब कुछ सही होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा  !


दूसरा प्रकरण - संतान देखभाल अवकाश का है,एक प्रश्न के जवाब में  सरकार ने विधान सभा में कहा कि अध्यापक  संवर्ग को संतान देखभाल अवकाश की पात्रता नहीं है ।

इसके बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के हवाले से समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ की  अध्यापक संवर्ग की महिला अध्यापको को आवकाश का लाभ देने से शैक्षणिक व्यवस्था प्रभावित हो जायेगी ।इस लिए उन्हें लाभ दिया जाना उचित नहीं है ।
देखने में  यह सामान्य सी प्रशासनिक प्रक्रिया लगती है  लेकिन प्रश्न यह है कि ,"अध्यापक भर्ती एवं सेवा की शर्तें नियम 2008" का क्या ? जो कहते हैं कि अध्यापक संवर्ग को शिक्षक संवर्ग के समान सभी अवकाश की पत्रता है । क्या सरकार स्वयं इन नियमो का उल्लंघन नही कर रही ? यदि ऐसा नही है तो क्या सरकार शिक्षक संवर्ग को भी इस अवकाश से वंचित कर रही है? क्योंकि पढ़ाई तो उस संवर्ग के अवकाश पर रहने पर भी प्रभावित होगी ।
यंहा यह बताना भी आवश्यक है कि , यह अवकाश छोटी संतान की  18 वर्ष की आयुपूर्ण करने  तक प्रदान किया जाता और आहरण अधिकारी द्वारा अवकाश स्वीकृत करने पर ही मिलता।  इतना ही नहीं  अवकाश पर जाने के लिए कई शर्ते थी व शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षक रखने की भी व्यवस्था है । तो पढाई प्रभावित होने का प्रश्न  ही नहीं है ,बात सिर्फ नियत की है ,जिसमे खोट है।


साथियो यह बात मुझे नही कहनी चाहिए परन्तु हम में से कई अध्यापक साथी ही नहीं चाहते की यह अवकाश अध्यापक संवर्ग पर लागू हो ।कई साथियो ने मुझे निजी मेसेज या मेरी पोस्ट पर टिपण्णी करते हुए कहा है कि ,फ्री में अवकाश क्यों ? पुरुषों को भी प्रदान किया जाए । महिलाओं को यह सुविधा नहीं मिलनी चाहिए ।घर बैठे बैठे अवकाश क्यों अथवा हम  इस अवकाश का विरोध करेंगें । अरे भाई महिला अध्यापक कँहा से आई वे हमारे घर की संदस्य ही तो होंगी ।स्वाभाविक रूप से इनके परिवार की संदस्य नहीं होंगी ।


आप क्या सोचते है सरकार सोश्यल मिडिया पर की गई हमारी पोस्ट या टीप्पणी पर नजर नहीं रखती ?  यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं । असलियत यह है की सरकार की हम पर हर समय नजर रहती  है। और सरकार हमारे क्रियाकलाप से जरा  भी भयभीत नहीं है उसे पूर्ण विश्वाश है कि अध्यापक हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मेरे मतानुसार संचार के इन माध्यमो से अध्यापको को लाभ कम हानि अधिक  हुई है ।


क्योंकि सरकार जानती है की 90 प्रतिशत अध्यापक सरकार की पोषक विचारधारा से ही पोषित हो रहे हैं । अध्यापक चाहता है कि उसकी मांग पूरी हो ,लेकिन वह सरकार के खिलाफ कुछ कहना और सुनना पसंद नहीं करता या यह चाहता है की इस सरकार की आलोचना न हो । अध्यापक यदि नाराज हो भी रहा है तो उनके निशाने पर सरकार नहीं है ,वह अपने गुस्से का शिकार  अध्यापक सगठनों और उसके नेतृत्व को बनाता है या उसके निशाने पर 2003 के पहले की सरकार होती है । सोश्यल मिडिया के इस कॉपी पेस्ट वाले युग में ,बहुत कम लोगो के विचार ही मौलिक विचार होते  है ,हमलोग सिर्फ मेंसेज को आगे बढ़ाते हैं। 90 प्रतिशत का आंकड़ा इस लिए कह रहा हूँ  क्योंकि प्रदेश में द्विदलीय व्यवस्था है जिसमे 50-50 प्रतिशत लोग सरकार और विपक्ष में बंटे हुए है ।लेकिन विपक्ष के 40 प्रतिशत लोग अभी  मौन  है ,यही लोग मौन रहकर सरकार को अतिरिक्त ताकत प्रदान कर रहे हैं ।


हम वास्तविकता को नजर अंदाज करते है, हमे  यह भी याद रखना होगा की विगत 13 वर्षो से प्रदेश में एक ही दल की सरकार काम कर रही है ,और अध्यपको के शोषण ने लिए यह सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है,जितनी इसकी पूर्ववर्ति सरकार ,क्योकी इन्होंने ही 2003 के घोषणा पत्र में नियमितीकरण का वादा किया था । जो अभी तक पूरा नहीं किया गया है ।


मेरा मानाना है पेट की आग से बढ़ कर राजनेतिक प्रतिबद्धता या राजनैतिक आस्था नहीं होती । अध्यापको को भी अपनी राजनेतिक प्रतिबद्धता को अपने रोजगार से और अपने अधिकार से अधिक महत्व नहीं देना चाहिए । और मुखर होकर सरकार का विरोध करना चाहिए अन्यथा हमारे अधिकारों और सुविधाओं में कटौती होना सामान्य बात हो जायेगी । और हम अपने नेताओं और संगठनो को ही कोसते रह जाएंगे ।


कहने को यह मामले सामान्य प्रशासनिक  प्रक्रिया लगते है , लेकिन दी हुई सुविधा को कम करने या वापस लेने के यह अनोखे प्रकरण है ,किसी भी संवर्ग ( अध्यापक संवर्ग ) को दी जा रही सुविधा में कटौती एवं नियमों को ही बदलने वाली यह  पहली सरकार बन गयी है  ,और  अपनी राजनैतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप रहने वाले हम  पहले कर्मचारी । इन निर्णयों को अध्यापक समाज को कतई स्वीकार नहीं करना चाहिये । (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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Saturday, July 30, 2016

अध्यापको की सुविधा पर कैंची चलाती सरकार और राजनेतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप बैठे अध्यापक -सुरेश यादव रतलाम

सुरेश यादव रतलाम - साथियो सर्वविदित है कि, किसी भी कर्मचारी वर्ग को प्रदान की गयी सुविधा में कोई भी सरकार कटौती नहीं करती अथवा ऐसा कोई नियम नहीं बनाती जिसके चलते प्राप्त हो रही सुविधा समाप्त हो जाए  या कम हो जाए  ,परन्तु अध्यापक संवर्ग  के साथ ऐसा ही हुआ है सरकार ने अपने ही बनाये नियमो का न सिर्फ उलंघन किया है ,वरन सरकार ने नियमो की मनगढ़ंत व्याख्या कर  विधान सभा में प्रस्तुत की ।

प्रकरण इस प्रकार हैं -आज तक के  इतिहास में  जिस दिनांक से भी कर्मचारियों को अंतरिम राहत प्रदान की जाती है उसी दिंनाक से  उनका नविन वेतन निर्धारण होता है ।

हमारे प्रकरण में यह हुआ की अंतरिम राहत 1 सितम्बर 13 से  प्रदान की गई और वेतन निर्धारण 1 जनवरी 2016 से होगा ,यही नही हम सब को मिल रहा वेतन भी कम हो रहा है ,हम  इसी को प्राप्त कर  खुशियां मना रहे हैं। यदि आप इसे लाभ  समझ  रहे है ,तो आप गलत हैं ,किसी परिचित विशेषज्ञ से उचित  जानकारी लीजिये । हमारे गणना पत्रक को सरकार ने स्थगित कर कर दिया है लेकिन विधान सभा में एक प्रश्न के जवाब में  " सरकार ने कहा कि वेतन के गणना पत्रक में हमने कोई विसंगती नहीं की  है । " यदि कोई विसंगती नही की तो आदेश स्थगित क्यों किया ? लेकिन अब  सब कुछ सही होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा  !


दूसरा प्रकरण - संतान देखभाल अवकाश का है,एक प्रश्न के जवाब में  सरकार ने विधान सभा में कहा कि अध्यापक  संवर्ग को संतान देखभाल अवकाश की पात्रता नहीं है ।

इसके बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के हवाले से समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ की  अध्यापक संवर्ग की महिला अध्यापको को आवकाश का लाभ देने से शैक्षणिक व्यवस्था प्रभावित हो जायेगी ।इस लिए उन्हें लाभ दिया जाना उचित नहीं है ।
देखने में  यह सामान्य सी प्रशासनिक प्रक्रिया लगती है  लेकिन प्रश्न यह है कि ,"अध्यापक भर्ती एवं सेवा की शर्तें नियम 2008" का क्या ? जो कहते हैं कि अध्यापक संवर्ग को शिक्षक संवर्ग के समान सभी अवकाश की पत्रता है । क्या सरकार स्वयं इन नियमो का उल्लंघन नही कर रही ? यदि ऐसा नही है तो क्या सरकार शिक्षक संवर्ग को भी इस अवकाश से वंचित कर रही है? क्योंकि पढ़ाई तो उस संवर्ग के अवकाश पर रहने पर भी प्रभावित होगी ।
यंहा यह बताना भी आवश्यक है कि , यह अवकाश छोटी संतान की  18 वर्ष की आयुपूर्ण करने  तक प्रदान किया जाता और आहरण अधिकारी द्वारा अवकाश स्वीकृत करने पर ही मिलता।  इतना ही नहीं  अवकाश पर जाने के लिए कई शर्ते थी व शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षक रखने की भी व्यवस्था है । तो पढाई प्रभावित होने का प्रश्न  ही नहीं है ,बात सिर्फ नियत की है ,जिसमे खोट है।


साथियो यह बात मुझे नही कहनी चाहिए परन्तु हम में से कई अध्यापक साथी ही नहीं चाहते की यह अवकाश अध्यापक संवर्ग पर लागू हो ।कई साथियो ने मुझे निजी मेसेज या मेरी पोस्ट पर टिपण्णी करते हुए कहा है कि ,फ्री में अवकाश क्यों ? पुरुषों को भी प्रदान किया जाए । महिलाओं को यह सुविधा नहीं मिलनी चाहिए ।घर बैठे बैठे अवकाश क्यों अथवा हम  इस अवकाश का विरोध करेंगें । अरे भाई महिला अध्यापक कँहा से आई वे हमारे घर की संदस्य ही तो होंगी ।स्वाभाविक रूप से इनके परिवार की संदस्य नहीं होंगी ।


आप क्या सोचते है सरकार सोश्यल मिडिया पर की गई हमारी पोस्ट या टीप्पणी पर नजर नहीं रखती ?  यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं । असलियत यह है की सरकार की हम पर हर समय नजर रहती  है। और सरकार हमारे क्रियाकलाप से जरा  भी भयभीत नहीं है उसे पूर्ण विश्वाश है कि अध्यापक हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मेरे मतानुसार संचार के इन माध्यमो से अध्यापको को लाभ कम हानि अधिक  हुई है ।


क्योंकि सरकार जानती है की 90 प्रतिशत अध्यापक सरकार की पोषक विचारधारा से ही पोषित हो रहे हैं । अध्यापक चाहता है कि उसकी मांग पूरी हो ,लेकिन वह सरकार के खिलाफ कुछ कहना और सुनना पसंद नहीं करता या यह चाहता है की इस सरकार की आलोचना न हो । अध्यापक यदि नाराज हो भी रहा है तो उनके निशाने पर सरकार नहीं है ,वह अपने गुस्से का शिकार  अध्यापक सगठनों और उसके नेतृत्व को बनाता है या उसके निशाने पर 2003 के पहले की सरकार होती है । सोश्यल मिडिया के इस कॉपी पेस्ट वाले युग में ,बहुत कम लोगो के विचार ही मौलिक विचार होते  है ,हमलोग सिर्फ मेंसेज को आगे बढ़ाते हैं। 90 प्रतिशत का आंकड़ा इस लिए कह रहा हूँ  क्योंकि प्रदेश में द्विदलीय व्यवस्था है जिसमे 50-50 प्रतिशत लोग सरकार और विपक्ष में बंटे हुए है ।लेकिन विपक्ष के 40 प्रतिशत लोग अभी  मौन  है ,यही लोग मौन रहकर सरकार को अतिरिक्त ताकत प्रदान कर रहे हैं ।


हम वास्तविकता को नजर अंदाज करते है, हमे  यह भी याद रखना होगा की विगत 13 वर्षो से प्रदेश में एक ही दल की सरकार काम कर रही है ,और अध्यपको के शोषण ने लिए यह सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है,जितनी इसकी पूर्ववर्ति सरकार ,क्योकी इन्होंने ही 2003 के घोषणा पत्र में नियमितीकरण का वादा किया था । जो अभी तक पूरा नहीं किया गया है ।


मेरा मानाना है पेट की आग से बढ़ कर राजनेतिक प्रतिबद्धता या राजनैतिक आस्था नहीं होती । अध्यापको को भी अपनी राजनेतिक प्रतिबद्धता को अपने रोजगार से और अपने अधिकार से अधिक महत्व नहीं देना चाहिए । और मुखर होकर सरकार का विरोध करना चाहिए अन्यथा हमारे अधिकारों और सुविधाओं में कटौती होना सामान्य बात हो जायेगी । और हम अपने नेताओं और संगठनो को ही कोसते रह जाएंगे ।


कहने को यह मामले सामान्य प्रशासनिक  प्रक्रिया लगते है , लेकिन दी हुई सुविधा को कम करने या वापस लेने के यह अनोखे प्रकरण है ,किसी भी संवर्ग ( अध्यापक संवर्ग ) को दी जा रही सुविधा में कटौती एवं नियमों को ही बदलने वाली यह  पहली सरकार बन गयी है  ,और  अपनी राजनैतिक प्रतिबध्दता के चलते चुप रहने वाले हम  पहले कर्मचारी । इन निर्णयों को अध्यापक समाज को कतई स्वीकार नहीं करना चाहिये । (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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