Wednesday, November 30, 2016

आयुक्त लोक शिक्षण ने DEO को वेतन के आदेश जारी करने पर रोक लगायी

आयुक्त लोक शिक्षण ने जारी किया आदेश कोई भी deo शासन के आदेश के अतिरिक्त कोई दिशा निर्देश जारी नहीं करें। कुछ जिलो ने मार्गदर्शन माँगा है ।उसका निराकरण शासन स्तर से होगा ।
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Tuesday, November 29, 2016

,आयुक्त आदिबासी विकास ने अध्‍यापक संवर्ग को वेतनमान के आदेश 15 अक्टूबर को पृष्ठांकित किया

जनपद/ जिला पंचायत में कार्यरत अध्‍यापक संवर्ग को दिनांक01/01/2016 से निम्‍नानुसार वेतनमान स्‍वीक़त किया जाता है,आयुक्त आदिबासी विकास ने 15 अक्टूबर के आदेश को पृष्ठांकित किया।
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Monday, November 28, 2016

कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ मिलेगा और जायज माँगों पर होगा शीघ्र फैसला कर्मचारी संगठनों की महापंचायत में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने की घोषणा

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ दिया जायेगा। प्रदेश सरकार कर्मचारियों और उनकी दिक्कतों को भली-भाँति समझती है। कर्मचारियों की जायज़ माँगों पर शीघ्र फैसला किया जायेगा। सबको न्याय मिलेगा। श्री चौहान आज मंत्रालय पार्क में कर्मचारी संगठनों की महापंचायत को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कर्मचारियों को संकल्पित करवाया कि प्रदेश को दुनिया का सबसे अच्छा राज्य बनाने में पूरी निष्ठा और परिश्रम से कार्य करेंगे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश की सरकार एक नये भाव के साथ कार्य कर रही है। सब वर्गों की समस्यायें समझ कर, उनको दूर करने के प्रयास किये गये हैं। जनता के विकास और कर्मचारियों के कल्याण के अनेक कार्य किये हैं, आगे भी किये जायेंगे। सबका मान, सम्मान और सबका काम सरकार की रीति-नीति है। उन्होंने शिक्षकों को अल्प वेतन के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार संवेदनशील है। लाड़ली लक्ष्मी जैसी अभूतपूर्व योजनाएँ संचालित की गई हैं। कभी 500 रूपये वेतन पाने वाले शिक्षकों को आज करीब 35 हजार रूपये वेतन मिल रहा है। कर्मचारियों के न्यायोचित माँगे बिना माँग किये पूरी हो रही हैं।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कर्मचारियों को बधाई देते हुए कहा कि उनके सहयोग और परिश्रम का ही परिणाम है कि जिस राज्य की विकास दर कभी ऋणात्मक होती थी, आज वह देश में सबसे अधिक वृद्धि दर वाला राज्य है। लगातार 4 वर्षों से कृषि वृद्धि दर 20 प्रतिशत से अधिक है, जो दुनिया में अभूतपूर्व है। सिंचाई क्षमता 7.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 40 लाख हो गई है। सड़कों का जाल बिछा है। पॉवर सरप्लस है। सरकार के कार्यकाल में कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है, तो आम आदमी की प्रति व्यक्ति आय भी 13 हजार रूपये से बढ़कर 60 हजार रूपये हो गई है।
श्री चौहान ने कहा कि नोटबंदी का फैसला अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। ऐसा निर्णय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जैसे युग पुरूष ही कर सकते हैं। उनके फैसले से गरीब प्रसन्न हैं। देश की अर्थ-व्यवस्था को जाली नोटों से डुबाने की दुश्मन देश ने जो बिसात बिछाई थी, वह बिखर गई है। आतंकवाद की कमर टूटी है। काले धन की व्यवस्था को करारा झटका लगा है। इससे भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा। देश और मजबूत होकर निकलेगा। उन्होंने कहा कि कैशलेस ट्रांजेक्शन और प्लास्टिक मुद्रा समय की आवश्यकता है। इस ओर तेजी से बढ़ना होगा। उन्होंने नर्मदा जी के संरक्षण की आवश्यकता बताते हुए कहा कि नर्मदा तट के दोनों और वृक्षारोपण किया जाना है। तट के किसानों को भी फलदार वृक्षारोपण के लिये प्रेरित किया जायेगा। फल आने तक 20 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर के मान से उनके नुकसान की भरपाई की जायेगी। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा गरीब मेधावी बच्चों को प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों की फीस देने की भी योजना बनाई गई है।
राजस्व मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि प्रदेश सरकार के 11 वर्ष के कार्यकाल ने दिखाया है कि स्वर्णिम मध्यप्रदेश में क्या हो सकता है। सब वर्गों की चिंता और कल्याण के कार्य हुए हैं। जनता के लिए जनता के द्वारा जनता के शासन का स्वरूप साकार हुआ है।
सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री श्री लालसिंह आर्य ने कहा कि सरकार के ग्यारह वर्ष में खुशहाली, समानता और समरसता का वातावरण बना है। उन्होंने कर्मचारियों का आव्हान किया कि कभी भी ऐसा कोई भी कार्य नहीं करें जिससे आमजन का मन दु:खी हो।
मंत्रालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्री सुधीर नायक ने कहा कि सरकार के 11 वर्ष में कर्मचारियों को बिना माँगे मिलने लगा है। हर संवर्ग के कल्याण के कार्य हुए हैं। उन्होंने कहा कि संवाद सम्मेलन का आयोजन अब से प्रतिवर्ष दो दिवस का होगा। सम्मेलन के प्रथम दिवस कर्मचारियों के मध्य आपसी विचार-विमर्श होगा। दूसरे दिन मुख्यमंत्री के समक्ष उसे प्रस्तुत किया जायेगा। प्रांताध्यक्ष लिपिकवर्गीय कर्मचारी संघ श्री मनोज वाजपेयी ने भी संबोधित किया।
प्रारंभ में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने माँ नर्मदा और 11 कन्याओं का पूजन किया। वंदे-मातरम और मध्यप्रदेश गान का गायन सुश्री सुहासिनी जोशी और उनके दल ने किया। गढ़ाकोटा के लोक कलाकारों ने नर्मदा माँ की महिमा के लोकगीत बंबूलिया की प्रस्तुति दी। संचालन श्री सुभाष वर्मा ने किया।
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को संवर्गीय विसंगतियों पर उच्च-स्तरीय समिति का प्रतिवेदन सौंपा गया। इस अवसर पर खनिज विकास निगम के अध्यक्ष श्री शिव चौबे, राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री रमेश चंद्र शर्मा भी मौजूद थे।
          

विसंगती का निराकरण अब तक नहीं ज़िमेदार कौन ?-सियाराम पटेल

समस्त ज्येष्ठ श्रेष्ठ बुद्धीजीवी अपने आपको राष्ट्रनिर्माता या राष्ट्र का निर्माण करने वाले समस्त समूह के उन सभी नेतृत्वकर्ताओं व उनके सभी सहयोगियों को सादर वंदे।
हम कितना भी दम्भ भर लें कि मैंने ये करा दिया और वो दिया अपने समूह के लिए जिसका हम नेतृत्व कर रहे हैं, यदि समूह विशेष के लिए हमने सच्चे मन से लक्ष्य निर्धारित कर प्रयास किया है तो उस लक्ष्य विशेष के अनुरूप यदि परिणाम नही आये तो आज हम चुप क्यों और मूक दर्शक क्यों ?
शायद मेरी बात हो सकता है कुछ लोगों को पसंद न आये पर हम जिन लोगों के समर्थन के सहारे नेतृत्व करते यदि उनके भविष्य से जुड़े हुए किसी विशेष प्रयोजन को लेकर किये हुए संघर्ष का जब परिणाम आये और परिणाम भी ऐसा क़ि उस परिणाम का सही लाभ प्राप्त न हो उस स्थिति को में अर्थात सिक्स्थ पे अध्यापक संवर्ग का आर्डर 15 अक्टूबर 2016 को हुआ और उसके पालन को लेकर शासन द्वारा जारी टेबल के विरुद्ध जिला स्तर से वेतन तालिका जारी करने हेतु प्रयास करना पड़े और करा भी लें उसके बाद भी ऊहापोह की स्थिति निर्मित हो और शासन के आदेश का संपूर्ण प्रदेश में एकसमान पालन न होना या तो शासन की कार्यप्रणाली को दोषपूर्ण होना सिद्ध करता है या हमारे समस्त संघों के प्रान्त प्रमुख की कार्य प्रणाली को दोषपूर्ण सिद्ध करता है।
शासन द्वारा अध्यापक संवर्ग को प्रदत्त छटे वेतन की तालिका को जारी किये हुए डेढ़ माह हो गए और अभी भी संपूर्ण प्रदेश में समान रूप से वेतन फिक्सेशन नही हुआ तो इसके लिए जितना शासन दोषी उतना ही अध्यापक संवर्ग के समस्त संघों के प्रान्तीय अध्यक्ष भी उतने ही दोषी हैं क्योंकि किसी भी संघ विशेष के प्रांतीय नेतृत्व द्वारा डेढ़ माह की समयावधि उपरान्त भी आदेश के एकसमान वेतन फिक्सेशन में पालन न होने की स्थिति निर्मित होने पर भी कोई सकारात्मक प्रयास नही करना क्या प्रदर्शित करता है ?
आज अध्यापक संघर्ष समिति या किसी संघ विशेष के भरोषे प्रदेश के तीन लाख अध्यापक साथी के परिवार अपने भविष्य को लेकर आशान्वित है, पर जिस नेतृत्व के प्रति आज हम आशान्वित हैं और उसके द्वारा अपने संम्वर्ग के तीन लाख परिवारों के भविष्य को सुरक्षित करने हेतु कोई भी पहल न किया जाना प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
जागो साथियों जागो...
जितना दोषी शासन कही उससे ज्यादा दोषी हमारे भविष्य के निर्माता हमारे नेतृत्वकर्त्ता प्रान्त प्रमुख ही तो नही।
आपका साथी- सियाराम पटेल,
नरसिंहपुर
 

Saturday, November 26, 2016

अध्यापकों को छठवां वेतनमान दिया गया या अपमान -डी के सिंगौर

2009 में जब  प्रदेश के कई  लाख  अलग अलग केडर और  वेतनमान  वाले  कर्मचारियों  को छठवें  वेतनमान  का  लाभ दिया  गया  तो कही  भी किसी  भी जिले  या  ब्लाक  में  वेतन  निर्धारण  को  लेकर कोई   कमेटियां  नही बनीं और  न  ही  वेतन निर्धारण  को  लेकर इतनी  असमंजस की स्तिथि थी ....अध्यापक  जो  की  मात्र २ से २.५ लाख  की  संख्या  में  ही हैं और  ३ ही  कैडर  हैं  पर  इनके  वेतन  निर्धारन  को  लेकर  घमासान  मचा  हुआ  है ब्लाक  ब्लाक  और  जिले  स्तर पर ब्लाक  और  जिले  में  एकरूपता  के  साथ  वेतन  निर्धारण  को  लेकर  कमेटिया  बन  रही  हैं इतना  ही  नही  कई  कई  जिलो में  deo खुद  परम्परा से  हटकर वेतन निर्धारण  करके  भुगतान  हेतु  प्राचार्यो  को आदेशित  कर रहे  है  और मजे  की  बात  है कि उनका  वेतन  निर्धारण  पूरी  तरह  से  आदेश  की  भाषा  से हटकर  अपनी मर्जी  के  अनुसार है इतना  ही  नही  बावजूद  इसके  न  केवल  जिला  बल्कि एक  ही  ब्लाक  में  निर्धारण  के  अलग  अलग  फोर्मुले लग  रहे  हैं | रोज सोशल  मीडिया  में २-३ फिक्सेशन ये  कहकर  डाले  जा  रहे  हैं  ये  फँला जिले  का  fixaton  और  ये  फँला जिले  का  fixation ..इतना  ही  नही  साथ  ही  यह  भी  दावा  किया  जा  रहा  है  कि उनके  जिले  का  फिक्सेशन विसंगति रहित है | ये  जानते  हुए  भी  की  जारी  टेबल  के  मूल  आधार में  ही विसंगति  है फिर  भी  फिक्सेशन  हो  रहा  है  यहा  तक  कि फिक्सेशन का  कोई  फार्मूला  नही  होने  पर भी  फिक्सेशन का  काम  चल  रहा  है प्रदेश  के  सारे  संभागों के स्थानीय  निधि संपरीक्षक वेतन  निर्धारण के  सारे तरीकों को अमान्य कर रहे  हैं दिन  रात  फिक्सेशन  का ही   काम  करने  वाले  कोष  एवं  लेखा  के  अधिकारी  तक  इस  फिक्सेशन  आदेश  में खामियां बता रहे  हैं|  ताज्जुब  की  बात  हैं  कि इतने  सब  के  बाद  भी शासन  के कानों  में  जूं न  रेंगना ....सोची  समझी  चाल  ही  समझी  जा  सकती  है सरकार  के  साथ  साथ  अध्यापक  संगठनों की भूमिका भी  समझ  से  परे है प्रदेश  स्तर  पर एकरूपता  के  लिए  कोई  प्रयास  नही ...यहा  तक  कि किसी  एक  फोर्मुले  पर  सहमती  तक  नही ....कोई  हाथ  पर  हाथ  धरे  बैठा  है तो कोई  कहता  है  विसंगति  ही  नही  .... शासन  से  स्पष्टीकरण कराने  की  जगह खुद  स्पष्टीकरण देने  में  लगे  हुए  हैं | साल  भर  से  अपमान  का  सिलसिला  चल  रहा  है फिर  भी  सम्मान करना  याद  है  सरकार  और  संगठन में  सांठ  गांठ साफ़  नजर  आ  रही  है ..........  साफ़  कहें तो जान  बुझकर  ऐसा दिया  है कि लिया  ही  न  जा  सके | यह  अध्यापकों  को  छठवाँ वेतनमान  नही अपमान  हैं।(लेखक राज्य अध्यापक संघ मंडला  के जिलाध्यक्ष है ,और यह उनके निजी विचार हैं।)

Thursday, November 24, 2016

अध्यापक संवर्ग के साथ मध्यप्रदेश शासन द्वारा हुए भेदभाव का वृत्तांत एक नजर में-सियाराम पटेल


समस्त सम्मानीय साथियों
सादर वंन्दन।
1995 से कार्यरत शिक्षाकर्मी संम्वर्ग या माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 1995 में हुई भर्ती प्रक्रिया को अमान्य करने के उपरान्त  1998 से माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पुनः 1998 से कार्यरत शिक्षाकर्मी संम्वर्ग के तहत कार्यरत साथियों की नियुक्ति उपरान्त अपने हक़ की लड़ाई जब से प्रारम्भ हुई तब से एक ही मांग रही कि *समान कार्य का समान वेतन एवं शिक्षा विभाग में संविलियन* और इसी प्रमुख मांग को लेकर हम सतत संघर्षरत भी रहे।
संघर्ष के चलते हमें 2007 में बड़ी  किंतु अधूरी सफलता मिली कि शिक्षाकर्मी पदनाम बदलते हुए हमें शिक्षा विभाग में प्रदाय पाँचवे वेतन के स्केल -
सहायक शिक्षक - 4000-100-6000
शिक्षक-
5000-150-8000
व्यख्याता-
5500-175-9000 के स्थान पर
अध्यापक संम्वर्ग का गठन करते हुए
सहायक अध्यापक-
3000-100-5000
अध्यापक-
4000-125-6500
वरिष्ठ अध्यापक -
5000-175-9000
नवीन वेतनमान निर्धारित करते हुए अध्यापक संवर्ग में संविलियन कर
1998 से 2007 तक 09 वर्ष की सेवावधि की गणना कर प्रति 03 वर्ष की सेवावधि की गणना कर 750 से अधिक लाभ न हो को ध्यान में रखते हुए वर्गवार सेवावधि गणना अनुसार
सहायक अध्यापक को 03 वेतन  के हिसाब- 3300
अध्यापक को 03 वेतनवृद्धि के हिसाब से 4250
वरिष्ठ अध्यापक को 02 वेतनवृद्धि के हिसाब से 5350 पर फिक्स किया गया।
तदुपरान्त 2013 में 6थ पे के नाम पर शिक्षा विभाग के कर्मचारियों सहायक शिक्षक, शिक्षक एवं व्याख्याता को 2005- 2006 में लागू पाँचवे वेतन
सहायक शिक्षक - 4000-100-600
शिक्षक- 5000-150-8000
व्याख्याता - 5500 -175-9000 के तत्स्थानी मूलवेतन में 1.86 का गुणा कर +निर्धारित ग्रेड पे पर प्रचलित महंगाई भत्ता प्रदान कर 2006 से 6थ पे का निर्धारण कर  छटा वेतन प्रदाय करने के फार्मूले को छोड़ हमें हमारे तत्स्थानी मूल वेतन में 1.62 का गुणा कर प्राप्त होने वाले वर्गवार वेतन और सहायक शिक्षक , शिक्षक एवं व्याख्याता को प्राप्त 6थ पे के वेतन के अंतर की राशि को अंतरिम राहत की चार वार्षिक किस्तों के रूप में 2007 से 6थ पे लागु इस शर्त पर किया गया कि 2017 में अंतरिम राहत की किस्तों का समायोजन कर 2007 से गणना कर अध्यापक संवर्ग को छटा वेतन प्रदाय किया जाएगा।
2007 से इसीलिए अध्यापक संवर्ग का गठन 2007 में हुआ (नही तो 2006 से ही लागू होता)।
हमारे संघर्ष क़ि ये बहुत बड़ी किंतु अधूरी सफलता हमने प्राप्त की।
किंतु अब जब हमने अपने संघर्ष के बल पर 2016 में समान कार्य का समान वेतन की लड़ाई  जीत ली तो हमें वरिष्ठता अनुसार अर्थात
1998 (एवं2001, 2003 या इसके बाद वर्गवार नियुक्क्ति) प्राप्त साथियो के 2007 के वर्गवार तत्स्थानी मूल वेतन के 1.86 के गुणा अनुसार
सहायक अध्यापक - 3300x1.62=5350 यानि 8000+2400
अध्यापक - 4250x1.62= 6890 यानि 10070+3200
वरिष्ठ अध्यापक -
5300x1.62=8670 यानि 10890+3600  के अनुसार शुरुवात करते हुए 2007 से गणना करते हुए 6थ पे क्यों प्रदाय नही किया जा रहा है।
साथियों शासन द्वारा पुनः 2007, 2013 की तरह छलावा करते हुए हमें पुनः छलते हुए  अन्याय किया जा रहा है।
यदि हमें शासन वास्तव में समान कार्य का समान वेतन देना चाहता है तो 1998 के साथियों (सहित उसके पश्चात नियुक्त साथियों ) को   वर्गवार क्रमशः 2007 से छटे वेतन की गणना करते हुए 3 प्रतिशत वेतन वृद्धि के साथ  -
सहायक अध्यापक - 3300x1.62=5350 यानि 8000+2400
अध्यापक - 4250x1.62= 6890 यानि 10070+3200
वरिष्ठ अध्यापक -
8670x1.62 =10890+3600 कृमोन्नति प्राप्त वरिष्ठ अध्यापक को 4200 ग्रेड के साथ तत्स्थानी मूलवेतन पर वर्तमान महंगाई भत्ता सहित  प्रदान करेगा तो सही मायने में समान कार्य का समान वेतन की हमारी मांग पूरी होगी अन्यथा हम पूर्व की भाति ठगा महसूस करते रहेंगे चाहे कितना भी संघर्ष कर लें।
हमारे साथी कुछ जिलों में इस अनुसार फिक्सेशन जरूर करा रहे हैं पर जब तक वर्तमान जारी आदेश के तहत इस संबंध में मार्गदर्शन जारी नही होते हैं इस प्रकार के फिक्सेशन का कोई ओचित्य नही।
जागो साथियों जागो
आपका अपना साथी-
सियाराम पटेल
प्रदेश मीडिया प्रभारी
राज्य अध्यापक संघ म. प्र.

Tuesday, November 22, 2016

छत्तिसगढ़ में बिना परीक्षा शिक्षाकर्मी की पदोन्नति प्रधानपाठक और प्राचार्य के पद पर किये जाने का नियम बनाया गया ।

छत्तिसगढ़ प्राचार्य (पंचायत) और प्रधानपाठक (पंचायत) भर्ती और सेवा की शर्तें नियम 2013 का प्रारूप जारी किया गया है । 15 दिवस की दावे आपत्ति के बाद छत्तीसगढ़ में नियम लागू हो जाएंगे । यंहा बिना परीक्षा के पंचायत क्षेत्र में कार्यरत शिक्षाकर्मी  वर्ग 3 (सहायक शिक्षक पंचायत) शिक्षाकर्मी वर्ग 2 (शिक्षक पंचायत) और शिक्षाकर्मी वर्ग 1 (व्याख्याता पंचायत) को क्रमशः प्रधानपाठक प्राथमिक विद्यालय (पंचायत) ,प्रधान पाठक माध्यमिक विद्यालय(पंचायत) और प्राचार्य हाई स्कूल /हायरसेकेंडरी (पंचायत) के पद पर पदोन्नति प्रदान की जायेगी ।
          इस प्रकार पदोन्नति के लिए पंचायत अंतर्गत प्रधानपाठक और प्रचार्य के पद शासन स्तर से स्कुल शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा स्वरीकृत किये जायेंगे और पद स्वीकृति पश्चात नियुक्ति की कार्यवाही के लिए यह पद जिला पंचायत को सौंप दिए जाएंगे ।
       विदित रहे छत्तीसगढ़ में 2013 में राज्य शिक्षा सेवा का गठन किया गया था ।और विभिन्न पदों पर पदोन्नति के लिए  परीक्षा का प्रावधान किया गया था ।परंतु शिक्षाकर्मी संगठनों द्वारा इन नियमो के विरोध के बाद अब यह भर्ती और सेवा की शर्तें नियम बनाए गए है।इसमें  बिना परीक्षा के पात्र कर्मचारी को संबंधित पद पर नियुक्ति प्रदान की जायेगी ।
      इन नियामो में भी कुछ  कमियां रह गयी है , जैसे कि इस प्रकार पंचायत अंतर्गत नया कैडर बना कर शिक्षाकर्मियों को  संविलियन की मांग से दूर किया जा रहा है ।और इन पदों पर पदोन्नति नहीं कर के भर्ती की जा रही है। आहर्ताधारी पद पर न्यूनतम 8 वर्ष का अनुभव अनिवार्य है साथ ही नियुक्ति दिनाक से 13 वर्ष का  कार्यकाल आवश्यक है ।इस कारण संगठनों द्वारा भी इन नियमो पर भी कुछ  अपत्ति जताई गई है।
पोस्ट के साथ अधिसूचना के प्रारूप का पहला और अंतीम पेज आपके अवलोकन के लिए भेजा जा रहा है ।


Monday, November 21, 2016

फिर याचक की मुद्रा में लौटा अध्यापक....रिजवान खान बैतूल

         रिजवान खान- माह सितम्बर से लेकर अक्टूबर की शहडोल रैली तक प्रदेश भर में खम ठोककर सीना ताने घूमने वाला अपने अधिकारो के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार शासन की आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने का जस्बा रखने वाला अध्यापक आज फिर निरुत्साहित मनोबल हीन होकर याचक की मुद्रा में नज़र आता है.
           विगत वर्ष के घटनाक्रम पर दृष्टि डाले तो उसकी इस स्तिथि का कारण और निदान दोनों सामने आते है. पहले अध्यापक ने अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे विभिन्न संघो के आंदोलनों को बुरी तरह खारिज कर एकता के लिए मजबूर किया. यह आम अध्यापक का ही व्यापक दबाव था जो सभी संघ चाहे अनचाहे एक संघर्ष समिति के बैनर तले इकट्ठे हुए. इससे उत्साहित आम अध्यापक ने समिति को केवल एक माह में सफलता की वो बुलन्दियों पर पहुंचा दिया जिसका सपना सालो से संघर्षरत संघ और नेता देखते रहते है.शहडोल रैली का दबाव ऐसा बना की 24 घण्टे में गणना पत्रक जारी हो गए.
        
          इसी बिंदु पर आकर अध्यापको की आपार भीड़ और जोश को राजनैतिक लाभ के लिए भुनाने के आतुर तथाकथित लोगो ने जल्दबाजी में ऐसा मूर्खतापूर्ण कदम उठा लिया जिसकी भरपाई निकट भविष्य में सम्भव नही दिखती. अपने कृत्यों को सही साबित करने के लिए ऐसे तर्क वितर्क दिए गए जिससे अध्यापकओ की विराट एकता जो जाती धर्म वर्ग के परे सदैव रही है उसको भी छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया गया.
          आज आम अध्यापक ठगे जाने के अहसास से भरा अपने हितो के नाप पर हो रही उछलकूद को देखकर अचंभित है. सुदूर गाँवो में आम अध्यापक अलग अलग प्रकार के वेतन निर्धारण के बीच कभी डीईओ से निर्धारण समिति बनाने के लिए तो कभी बाबू से अपने क्रमोन्नति पदोन्नति की सही गणना के लिए तो कभी संकुल प्राचार्य के सामने बाबुओ की शिकायत लेकर याचक की मुद्रा में खड़ा है. जिनपर उसने विशवास किया वो या तो चुपचाप हो गए है या उलटी सीधी बचकाना बाते करके उसके दुःख को और अधिक बढ़ा ही रहे है. आगे कुछ भी सार्थक होने की

उम्मीद नज़र नही आती............
अध्यापक आंदोलन अपने अवसान की ओर बढ़ रहा है...........

                                                                                     

Saturday, November 19, 2016

नोट बंदी, क्या क्या सावधानियां बरते ग्रामीणों की सहायता किस प्रकार करें - सुरेश यादव रतलाम

सुरेश यादव रतलाम :- सम्माननीय साथियो देश में 500 और 1000 के नोट बंद करने का निर्णय एक बहुत बडा निर्णय है । इसके चलते देश का संचालन अभी केवल 14 प्रतिशत नगदी पर हो रहा है ।यह आर्थिक संक्रमण काल है । इन परिस्थीतियो में आज कई लोग परेशानियों का सामना कर रहे हैं ।
देश में 7 प्रतिशत परिवार में सरकारी खजाने से और 16 प्रतिशत परिवारों में निजी क्षेत्र से मासिक या नियमित आय होती है । इसके अतिरिक्त सभी 77 प्रतिशत परिवार  के पास नियमित आय का कोई जरिया नहीं है। कहने का आशय है की उनकी आय बाजार और कृषि पर निर्भर है । हमारे देश में केवल 60 प्रतिशत लोगो के पास ही बैंक खाता है ।इस नॉट बंदी का देश की समाजव्यवस्था  और अर्थशास्त्र  पर बहुत गहरा  प्रभाव पड़ेगा आप समाचार पत्रों में देख ही रहे होंगे ।लेकिन यह अलग विषय है ।
   हम शिक्षक हैं और हमारी गाँव गाँव तक पहुंच है ।हम इन परिस्थितियो में ग्रामीणों की किस प्रकार सहायता  सकते हैं  और हमे क्या क्या  सावधानियां बरतनी हैं । में यहाँ इस पॉस्ट के माध्यम से कहना चाहता हूँ ।
सर्वप्रथम एक सामान्य जानकारी यह है कि वित्त वर्ष 2016-17 में टेक्स छूट की सीमा 2 लाख 50 हजार है और टेक्स रिबिट 50 हजार। भारत में 2 रूपये से अधिक की मुद्रा लीगल टेंडर होती है ।इसका आशय है कि रिजर्व बैंक का गवर्नर हमे एक कागज को रुपए के रूप में सौंपता है ।

1 सर्वविदित है कि 8 नवम्बर 2016 की मध्यरात्रि से 500 और 1000 के पुराने नॉट लीगल टेंडर नहीं रहे हैं। बस कुछ स्थानों जैसे ,बस अड्डो, रेल्वे स्टेशन,सरकारी अस्पतालों ,दवाई की दुकानों ,बिजली पानी के बिल जमा करने,और पेट्रोल पम्प व गैस बुकिंग के स्थानों पर ही इनके उपयोग या इनके आधार पर भुगतान की सुविधा प्रदान की गयी है ।इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर इनके आधार पर लेंन देंन गैर कानुनी हो गया है । इस लिए अब पुराने नोट का लेन देन न करें।

2 सामान्य रूप से देखा जाता है कि ,एक छोटे परिवार में 10-15 हजार नगदी रहती है ।और एक बड़े परिवार में 40-50 हजार नगदी रहती है । वंही गृहणियों के पास या बच्चो के पास भी अपनी अपनी बचत का पैसा होता है ।लेकिन एक गृहणी (इसमें महिला कर्मचारी - अधिकारी नहीं आती)को अपने खाते में 2 लाख 50 हजार के पुराने नोट जमा करने पर आयकर विभाग की पूछताछ से मुक्ति प्रदान की गयी है अब समाचार मिला है की उनसे भी पूछताछ संभव है । नाबालिग बच्चो के खाते में जमा पैसा पालक की आय ही माना जाता है ।याद रहे 50 हजार और उस से बड़े हर लेन देन की जानकारी आयकर विभाग को पहुंचाई जाती है। आप घर में उपलब्ध पुराने नॉट को एक मुश्त ही अपने खातों में जमा कराएं बार बार बैंक में न जमा कराएं क्योकि 8 नवंबर के बाद  पुराने नॉट का लेनदेन बंद हो गया है ।इस प्रकार बैंकों में भीड़ न बढ़ाये।

3 अपने घर के  सोने के जेवर किसी लालच में आकर न बेचें । यह आप के आजीवन परिश्रम से अर्जित कि गयी सम्पत्ती है ।कुछ पैसो का लालच हमारी वर्षो की मेहनत पर पानी फेर सकता है ।

4 देखने में आ रहा है कि ग्रामीण इस नॉटबंदी के कारण ठगी का शिकार हो रहे हैं ।हम उन्हें सही जानकारियां दे कर इस ठगी के प्रति सचेत करें और बताएं कि आप किसी भी प्रकार से अपने जनधन खातों का दुरूपयोग न होने देवे और मुद्रा की खरीदी बिक्री से बचें ।

5 अब बैको में बिना जमा किये  ,2000 के पुराने नॉट बदले जा सकेंगे ।और वह भी एक व्यक्ति के एक बार इस लिए कृपया बार बार लाइन में न लगें ।खाता होने पर एक ही बार में पैसा अपने खातों में जमा कर देवे।

6 हम में से कई साथी कृषक  है और ,हंमारेे विद्यार्थी भी कृषक परिवार से होते हैं।कृषक अपने
kcc के पैसे एक मुश्त जमा कर सकते हैं।

7 किसी लालच में आकर अपने और अपने परिवार के खातों का दुरुयोग न होने देवें। यह अपराध की श्रेणी में आता है । अंतोगत्वा जवाब उसे ही देना हैं जिसका बैंक खाता है ।

8 यदी आपने 8 नवम्बर के पहले जमींन का कोई सौदा किया हो या ।कोई रकम उधार दी है या उधार ली है तो उसके दस्तावेज सुरक्षित रखें । ऐसे में आप पैसा जमा करते है तो आयकर विभाग की जानकारी मे आने पर आपसे जवाब तलब हो सकता हैं।कृपया नगदी से संबंधित सभी दस्तावेज पूर्ण और सुरक्षित रखें।

9 हम नोकरी पेशा है हमारी आय सिमित और निश्चित है ।इस लिए अपने खातों का संचालन सोच समझ कर ही करें ।

10 कृपया छोटे नोट को लगातार बाजार में चलाएं उनको जमा करके न रखें।

यह सूचना भी आम जन तक पहुंचायें की 500-1000 के पुराने नॉट बैंकों में जमा करने की सीमा 31 मार्च तक है ।

 एक कृषक kcc से सप्ताह में 25 हजार रूपये निकाल सकता है, बचत खाता धारक 20 हजार रूपये और चालू खाते से 50 हजार रूपये निकाले जा सकते हैं। किसी के घर में शादी है तो ,शादी का कार्ड दिखाकर माता पिता के बचत खातों से 2 लाख 50 रूपये तक निकाले जा सकतें हैं।
स्ममाननिय साथियो मैंने इस लेख की भूमिका में ही कहा था कि यह संक्रमण काल है और इसमें हमारे धैर्य की परीक्षा होनी है ।इस लिए  कृपया धीरज बनाये रखें ,ग्रामीणों तक सही सूचनाएं और जानकारी पहुँचाते रहें। शिक्षक की समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है । इस महत्वपूर्ण काल में अपने कर्तव्य का पालन करने से न चुकें।लोग निश्चित रूप से आप को दुवाएँ देगे।
धन्यवाद ।

Thursday, November 17, 2016

32 जिले में अध्यापको का वेतन निर्धारण नही हो पाया है !

भोपाल। ब्यूरो। भोपाल सहित प्रदेश के 32 जिलों में अध्यापकों को अक्टूबर महीने का वेतन 6वें वेतनमान के हिसाब से नहीं मिल पाया है। वजह है नई गणना के आधार पर बाबुओं द्वारा बिल न बना पाना। शासन ने 15 अक्टूबर को गणना पत्रक जारी करते हुए चालू माह से वेतनमान देने के आदेश जारी किए थे।

डेढ़ साल चले आंदोलन के बाद अध्यापकों को सरकार ने उनकी मांग के मुताबिक वेतनमान तो दिया, लेकिन उसका फायदा अभी तक नहीं मिल सका है। संकुल केंद्रों में आहरण संवितरण अधिकारी (डीडीओ) और बाबू वेतन की गणना नहीं कर पा रहे हैं, जिससे वेतन बिल बनने में देरी हो रही है। अक्टूबर में प्रदेश के महज 20 फीसदी अध्यापकों को छठवें वेतनमान का नकद लाभ मिला है, जबकि शेष को पहले जितना वेतन मिला है। प्रदेश में कुल दो लाख 84 हजार अध्यापक हैं।

ये आ रही दिक्कत

लिपिक बताते हैं कि गणना पत्रक में वेतन निर्धारण के टेबल स्पष्ट हैं, लेकिन जो अध्यापक क्रमोन्न्ति का लाभ ले चुके हैं, उनका क्या करना है, यह स्पष्ट नहीं हैं। एक संकुल में 50 से 125 तक अध्यापक हैं। जबकि लिपिक एक। उसे अध्यापकों का वेतन निर्धारित करना है और नियमित कर्मचारियों के वेतन बिल भी बनाना है। इसलिए दिक्कत हो रही है।

पत्रक में स्थिति स्पष्ट

राज्य शासन ने 15 अक्टूबर को अध्यापकों का वेतन गणना पत्रक जारी किया है। इसमें स्थिति स्पष्ट है। शासन ने पांचवें और छठवें वेतनमान का तुलनात्मक चार्ट दिया है। लिपिकों को वर्तमान मूलवेतन के सामने की तालिका में दर्शाए नए वेतन के हिसाब से वेतन की गणना करनी है। जैसे-सहायक अध्यापक का पांचवें वेतनमान में 4860 वेतन बैंड, 1250 संवर्ग वेतन था।

अब इस अध्यापक को 7440 वेतन बैंड और 2400 रुपए ग्रेड-पे दी जाना है। इसमें 125 फीसदी डीए जुड़कर वेतन तैयार किया जाता है। लोक शिक्षण के अपर संचालक वित्त मनोज श्रीवास्तव बताते हैं कि क्रमोन्नत या पदोन्नत हो चुके अध्यापकों को लेकर कहीं कोई दिक्कत है, तो लिपिक वरिष्ठ अधिकारी से बात करें।

इन जिलों में नहीं मिला नया वेतनमान

भोपाल, शहडोल, दमोह, सागर, रीवा, रायसेन, विदिशा, राजगढ़, जबलपुर, सतना, सीधी सहित 32 जिलों में अध्यापकों के वेतन की गणना में दिक्कत हो रही है। हालांकि इनमें से कुछ जिलों में एक-दो संकुल केंद्रों ने गणना कर वेतन बिल बना दिए हैं, लेकिन शेष में गणना ही नहीं हुई है। सूत्र बताते हैं कि इस मामले में लिपिक काम से बचने की कोशिश भी कर पाए हैं। 

वेतन निर्द्धारण के स्थान पर ,वेतन विसंगती दूर करने पर ध्यान दें -डी के सिंगौर

अध्यापक मेटर....अध्यापकों की एकता के चलते गणना पत्रक जारी हुआ यदि जल्दबाजी न दिखाकर एकता बनाये रखी जाती तो गणना पत्रक में अब तक सुधार भी हो चुका होता अफसोस एक अंधे गणना पत्रक में सभी आँखे फोड़ रहे हैं पर उसमे सुधार हेतु कोई प्रयास नहीँ किया जा रहा है वेतन निर्धारण करने से ज्यादा जोर उसकी विसंगतियों को दूर कराने में लगाना चाहिये
समस्या का हल आदेश में एक संशोधन से निकल सकता  है कि "कि छठवें वेतनमान की कल्पनिक गणना 2007 से करते हुए उसका निर्धारण 1-1-16 को किया जाये " आदेश में 2007 से वेतनमान की गणना न होकर सेवा अवधि की गणना हो रही है एक ओर मजे की बात लोग 2013 की I R की विसंगति का हवाला देकर इस आदेश की विसंगति कि बात करने पर मुँह बँद कराते है उस समय की विसंगति को दूर कराने क्या हुआ क्या नहीँ हुआ ये उससे जुड़े लोग जानते है पर अब जो विसंगति सामने है उसके सामने क्यों आँखे मुदां जा रहा है समझ से परे है पूरा जोर विसंगति से परिपूर्ण गणना पत्रक से वेतन लेने में लगाया जा रहा है पर उसमे सुधार कि तरफ़ किसी का ध्यान नहीँ है....प्रांतीय निकाय को इस पर ध्यान देना चाहिये लिखा सिर्फ इसलिये कि कोई पहल हो....अब पहल चाहे जो करे ।

Tuesday, November 15, 2016

अध्यापक स्थान्तरण ( संविलियन ) निति तैयार

पुरुष अध्यापकों के नियुक्ति के 18 साल बाद तबादले (अंतर निकाय संविलियन) तो होंगे, लेकिन उनकी शहरी क्षेत्रों में पोस्टिंग नहीं होगी। राज्य सरकार ने तबादला नीति में ये शर्त जोड़ दी है। हालांकि अध्यापक शहरी क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्रों में जा सकेंगे, पर ग्रामीण से शहर नहीं भेजे जाएंगे ( 2012 से ग्रामीण क्षेत्रों के अध्यापक नगरीय क्षेत्रो में नहीं आ सकते हैं ) इसी तरह शहर से शहर के लिए तबादला नहीं होगा। नीति का प्रारूप तैयार हो चुका है, जो अनुमोदन के लिए स्कूल शिक्षामंत्री को भेजा गया है। दिसंबर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसे घोषित कर सकते हैं।

सरकार अब तक महिला और विकलांग अध्यापकों के तबादले उनकी मांग पर करती रही है। पहली बार प्रशासनिक आधार पर तबादले की नीति बनाई गई है। तबादला नीति में अध्यापक संवर्ग में पांच साल की सेवा पूरी करने वाले अध्यापकों के तबादले का प्रावधान है,वर्ष 2008  में स्वेछिक आधार पर संविलियन हुआ था ।

यानी जो संविदा शिक्षक तीन-चार साल पहले अध्यापक संवर्ग में आए हैं, उन्हें तबादले के लिए इंतजार करना पड़ेगा। सरकार ने महिला, विकलांग और गंभीर बीमारियों से पीड़ित अध्यापकों को इस शर्त से बाहर रखा है। स्कूल शिक्षा विभाग ने नगरीय प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को प्रस्ताव भेजा था। इसमें से नगरीय प्रशासन की सहमति मिल गई है।

विषय के रिक्त पदों पर होंगे तबादले

तबादले में विषय का भी ध्यान रखा जाएगा। जैसे गणित विषय के अध्यापक का तबादला संबंधित स्कूल में तभी होगा, जब वहां गणित के शिक्षक का पद खाली होगा। अध्यापक को दूसरे पद के विरुद्ध आवेदन की पात्रता नहीं रहेगी।

ऑनलाइन करना होंगे आवेदन

अध्यापकों को तबादले के लिए आवेदन ऑनलाइन करना होंगे। इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग के पास सॉफ्टवेयर पहले से मौजूद है। अब तक इसके माध्यम से सिर्फ महिला और विकलांग अध्यापकों के तबादले के आवेदन आते थे। इसमें पुरुष अध्यापकों का विकल्प जोड़ा जा रहा है।

18 साल का इंतजार

अध्यापकों को 18 साल से तबादला नीति का इंतजार है। राज्य सरकार ने वर्ष 1998 में पहली बार शिक्षाकर्मी की भर्ती की थी। तब जिसे जहां जगह मिली, भर्ती हो गया। ये कर्मचारी अब पारिवारिक कारणों से अपने जिले में लौटना चाहते हैं। पिछले 10 साल से यह मांग चल रही है। इसके पहले स्वेछिक आधार पर संविलियन होते थे। 

‘शिक्षा की गुणवत्ता के लिए आज भी प्रासंगिक है गिजुभाई के विचार’’ - हीरालाल देवड़ा, शिक्षक (शिक्षाशास्त्री श्री गिजुभाई की जयंती 15 नवम्बर के अवसर पर)


च्चों को देवता मानने वाले शिक्षाशास्त्री श्री गिजुभाई
की जयंती (15 नवम्बर) के अवसर पर सादर नमन ...!!!
(15 नवम्बर 1885 - 23 जून 1939)
गिजुभाई बधेका अर्थात भारतीय शिक्षा को समर्पित एक ऐसा नाम, जिसने अपने काम से अपने  संकल्प को सार्थक किया। गिजुभाई बधेका महान शिक्षाशास्त्री थे। उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका था। अपने प्रयोगों और अनुभव के आधार पर उन्होंने निश्चय किया था कि बच्चों के सही विकास के लिए, उन्हें देश का उत्तम नागरिक बनाने के लिए, किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए। गिजुभाई  प्रत्येक बच्चे की स्वभाविक अच्छाई में गहरा विश्वास करते थे. इसका श्रेय रूसो के प्रभाव को जाता है। रूसो की तरह गिजुभाई भी मानते हैं कि सीखने का प्रमुख सिद्धांत खेल है। बच्चों का जीवन पढ़ाई से बोझिल नहीं होना चाहिए जो उनके लिए अरुचिकर और महत्वहीन है। स्वतंत्रता के माहौल में ही बच्चों की आंतरिक क्षमताओं का स्वतःस्फूर्त विकास संभव हो सकता है। उनको लगता था कि बच्चों को कभी दण्डित नहीं किया जाना चाहिए।
भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66 यह कहता है कि भारत का भविष्य उसकी शालाओं की कक्षाओं में आकार ले रहा है, तो हमें यह सोचना होगा कि वह भविष्य क्या है, कौन है और कक्षाओं में कैसे आकार ले रहा है ? वर्तमान में देश के स्कूलों की जो हालत है उसको देखकर गिजूभाई की आत्मा खुश तो नहीं होगी। सवाल है कि उनके सपने को कैसे पूरा किया जाए ? उन्होंने अपने जीवन में बच्चों के लिए जो किया वह अभूतपूर्व था। गांधीजी ने उनसे खुद कहा देखो मैं तो बच्चों के साथ इतना काम नहीं कर पाया, जितना तुमने किया।
‘‘शिक्षा में गुणवत्ता होनी चाहिए’’ यह बात आज बार-बार दोहराई जा रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब ऐसी शिक्षा है जो हर बच्चे के काम आये। इसके साथ ही हर बच्चे की क्षमताओं के संपूर्ण विकास में समान रूप से उपयोगी हो। बेहतर शिक्षा हर बच्चे की वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखती है। यह हर बच्चे को विभिन्न गतिविधियों, खेल और प्रोजेक्ट वर्क के माध्यम से सीखने का मौका देने वाली भी होती है।
एक सामान्य से सरकारी स्कूल में गिजुभाई ने जो नवाचार प्रारंभ किया था, वही तो आनंददायी बाल-केंद्रित शिक्षा है। शिक्षा परिवर्तन की सबसे अधिक प्रभावशाली प्रक्रिया है। गिजुभाई कोई नियमित शिक्षक नहीं थे और न उन्होंने शिक्षा का कोई प्रशिक्षण लिया था। गिजूभाई पेशे से तो वकील थे और गांधी जी की तरह कुछ वर्ष दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहे। वहां से वापस आने के बाद वह बंबई के हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। उसी समय उनके बेटे नरेंद्र भाई का जन्म हुआ और उसके  लालन-पालन के लिए वह शिक्षा साहित्य का अध्ययन करने लगे। उस समय 1910-15 में उन्होंने मांटेसरी का बहुत गहन अध्ययन किया और दक्षिणमूर्ति बाल मंदिर (गुजरात) में 20 साल तक बच्चों के साथ में प्रयोग किए। शिक्षक नहीं होते हुए भी उन्होंने अपने प्रयोगों से सभी को चकित किया और शिक्षण एवं शिक्षक दोनों को ही एक नई पहचान दी।
ब्रिटिश भारत में शिक्षा का स्वदेशी और पारंपरिक मॉडल लगभग लुप्त हो चुका था। अंग्रेजी प्रणाली के स्कूल जगह-जगह कायम हो गए थे और शिक्षक सरकारी नौकर के रूप में स्कूलों में शिक्षण कार्य करते थे। बहुत अधिक अंतर नहीं था उस समय के उन स्कूलों में जहाँ, गिजुभाई ने अपने प्रयोग और नवाचार किए थे और आज के उन स्कूलों में जो आज भी वैसे ही हैं जैसे गिजुभाई के जमाने के स्कूल थे। गिजुभाई के समक्ष स्कूल का कोई ऐसा मॉडल या आदर्श नहीं था, जिसे वे अपना लेते। गिजुभाई के समक्ष था एक छोटे से कस्बे का वह सरकारी स्कूल, जिसका भवन न भव्य था, न आकर्षक, न बच्चों के आनंद और किलकारी से गूंजती जगह। जिस स्कूल में गिजुभाई ने मास्टर लक्ष्मीशंकर के रूप में एक प्रयोगी शिक्षक की परिकल्पना की थी, वह स्कूल उदासीनता और उदासी की छाया से ग्रस्त था। । पूरी तरह नीरस स्कूल, जिसमें मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ कृति बालक जीवन-निर्माण के संस्कार और व्यवहार सीखने आते थे।
गिजुभाई ने स्कूल के तत्कालीन रूपक को उसकी जड़ता और गतिहीनता से मुक्त किया। प्राथमिक शिक्षा में आनन्द की नई वर्णमाला रची, बाल-गौरव की नई प्रणाली रची और शैक्षिक नवाचारों की वह दिशा एवं दृष्टि रची, जो आज भी प्रासंगिक एवं सार्थक है। एक व्यक्ति जो शिक्षक नहीं था, उसने स्वतंत्र किया था स्कूल को, उसकी  जड़ता और गतिहीनता से, उसने मुक्त किया था, और बच्चों को स्कूल के  भय से। गिजुभाई से पहले यह किसी ने सोचा भी नहीं था। बच्चे गिजुभाई के लिए बालदेवता थे । गाँधी जी और गिजुभाई दोनों वकील थे, मगर एक ने राष्ट्र की स्वतंत्रता की वकालत की, तो दूसरे ने शिक्षा की वकालत की। गिजूभाई की लंबी-लंबी मूछें थीं, महात्मा गांधी ने उनको मूँछ वाली माँ की उपाधि दी क्यूंकि उनमें बच्चों के प्रति माँ जैसी असीम ममता थी।
गिजुभाई बधेका की पुस्तक ‘दिवास्वप्न’ को शैक्षिक प्रयोगों की एक कालजयी पुस्तक है जिसमें प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए प्रयोगों का संकलन है। इस किताब ने शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े कई लोगों को प्रेरित किया है। गिजूभाई बधेका ने 20वीं शताब्दी के पहले दशकों में शिक्षा क्षेत्र में जो  प्रयोग किए, गंणवत्तापूर्ण षिक्षा हेतु हमें आज भी उसी दिषा में  चलते रहना होगा। गिजूभाई चाहते थे शिक्षा को बाल केंद्रित होने की आवश्यकता है। बदलते समय में हमारे भी लक्ष्य वहीं हैं, जो गिजुभाई के थे। ‘दिवास्वप्न’ यानि दिन में सपने देखना बहुत कठिन काम होता है उन्होंने दिन में सपने देखने की कोशिश की और एक असंभव लगने वाले काम को संभव बनाया।
गिजूभाई बधेका ने बच्चों को केंद्र में रखा। बच्चे को आनंद आता है या नहीं आता है, उनके लिए  यही मुख्य बात थी। बच्चों के आनंद के लिए उन्होंने कई प्रयोग किए, वो हारे नहीं और प्रयोग करते रहे। बच्चे सीखें, बच्चे करें, बच्चे खेलें, गिजूभाई का बच्चों के प्रति इतना लगाव था कि वह बच्चों को देवता मानते थे। आज शिक्षक यह सोचते हैं कि हमारा काम तो केवल पाठ्यपुस्तक से है। बच्चे के खुश होने या न होने या स्वच्छ होने या अस्वच्छ होने से हमारा क्या संबंध है ? लेकिन गिजूभाई ने इस नजरिये को  बदल दिया और बताया कि बच्चे का स्वस्थ और प्रसन्न रहना शिक्षा का पहला कदम है तथा इसमें शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण एवं विस्तृत है। गिजूभाई के समय गुजरात के अंदर बच्चों की बहुत ज्यादा पिटाई होती थी। ऐसा समझा जाता था कि जब तक छड़ी से मारोगे नहीं तब तक बच्चे सीखेंगे नहीं। गिजूभाई ने माता-पिता और शिक्षकों के लिए कई किताबें लिखीं और इस दृष्टि में बदलाव लाये। बच्चों के प्रति उनके भीतर समर्पण का भाव था। उनका दिल बच्चों जैसा था।
उन्होंने देखा होगा कि हमारी जो पूरी शिक्षा पद्धति थी वह बहुत ज्यादा रटंत पद्धति पर आधारित है। परीक्षा है, हाजिरी है, रचना है ये सब एक तरह के प्रतीक हैं। हमारे दिल में श्रद्धा हो या न हो, हम प्रतीकों का बहुत ध्यान रखते हैं जो कि पाखंड है। शिक्षा में आजकल प्रतीकों के ऊपर ज्यादा ध्यान है, इनका सीखने-सिखाने से कोई लेना-देना नहीं है। गिजूभाई की पुस्तक ‘दिवास्वप्न’ के प्रत्येक प्रयोग को हमारे स्कूलों में अपनाया जाए तो हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत सुधार आएगा, क्योंकि उससे गुजरे हुए विद्यार्थी अलग तरह के होंगे। उनकी सोच अलग तरह की होगी। उनका विकास अलग तरह का होगा । गिजुभाई के विचार समय से बहुत आगे थे. वे बहुत आगे की सोच रहे थे।
उनकी माने तो बच्चों को आज भी चर्चाओं के माध्यम से अपनी बात कहने और ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में भागीदारी का मौका देना चाहिए। इस प्रकार संचालित होने वाली कक्षाओं में गतिविधियों और विषयवस्तु में एक विविधता होगी।  हर बच्चे को साथ-साथ सीखने के अतिरिक्त खुद के प्रयास से भी सीखने का पर्याप्त मौका मिलेगा  और  बच्चों का आत्मविश्वास बढेगा। इस तरह  बच्चों को भी पूरा सम्मान मिलता है। गांधी ने कहा बहुत लेकिन गांधी ने कार्य दूसरे को सौंपा, गिजूभाई ने कहा कि नहीं मैं तो जिनके लिए बात कह रहा हूँ सीधा उनके पास जाऊंगा, तो वह पहले व्यक्ति थे जो स्वयं बच्चों में चले गए।
आज शिक्षा की गुणवत्ता के लिए हमें भी अपने बच्चों को समझना चाहिए। बच्चे ही देश हैं यह मान लें तो गिजूभाई सार्थक हो जाएंगे। गिजूभाई आज भी प्रासंगिक है। उनके जैसे संवेदनशील अध्यापकों की आवश्यकता हमारे समाज में आज भी है।
---०००---
हीरालाल देवड़ा, (शिक्षक)
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बडवानी,
(डाइट) जिला बडवानी मध्यप्रदेश.
9893844571
9617024140

अजीत पाल यादव ( महामंत्री ) आजाद अध्यापक संघ का अपने पदाधिकारियो के नाम खुला पत्र

प्रति,
समस्त जिला अध्यक्ष व प्रांतीय पदाधिकारी
आजाद अध्यापक संघ (म.प्र)
सादर वंदे,
        आपसे कुछ बातों पर सार्वजनिक चर्चा करना आवश्यक हो गया है ।  जैसा की विदित है की एकजुटता के दबा व और सटीक रणनीति के परिणाम स्वरूप 10 माह से लंबित गणना पत्रक जारी हुआ । इसके उपरांत भी अभी पूरी तरह से मामला नहीं निपटा है । शासन की मंशा ठीक नहीं लगती ।
       आजाद अध्यापक संघ के रजिस्ट्रेशन के पूर्व कुछ चंद साथियों द्वारा सोशल मीडिया पर अध्यापक कोर कमेटी के नाम से सभी संघों को एकजुट करने का प्रयास किया । पर असफल रहे । तदुपरांत 2015 का आंदोलन आजाद अध्यापक संघ द्वारा आरंभ किया गया । जिसको बात में सभी संघों द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ । इस आंदोलन को खड़ा करने में आस के भाई भरत पटेल और महासचिव जावेद खान की जी तोड़ मेहनत रही जिसको किसी भी कीमत पर भुलाया नहीं जा सकता । मैं व्यक्तिगत तौर पर दोनों को प्रणाम करता हूँ ।
सितंबर के आंदोलन के दौरान अस्पताल में भर्ती भरत भाई ने ही मुझसे कहा था कि सभी संघों को बुला लो हम मिलकर लडेंगे, वर्ना अकेले रह जाएंगे । भरत भाई की मंशा का सम्मान करते हुए सभी का आव्हान किया और सभी आंदोलन में कूद गए । मैं सभी का धन्यवाद देता हूँ, खासतौर पर ब्रजेश शर्मा जी और दिग्विजय  सिंह चौहान जी का  जिन्होंने मेरी एक बात पर खुला एलान किया था ।
            बाद में कुछ परिस्थितियों के चलते एकता विघटित हुई । इसके बाद फिर भरत भाई के ही कहने पर संघर्ष समिति के लिए प्रयास किया और एकजुटता कायम की । जैसा की संघर्ष समिति की मीटिंग में तय हुआ था की संविलियन के पहले टूटना और झुकना नहीं है, फिर आखिर क्यों अलग जाकर सम्मान किया गया? 

 कुछ प्रश्न हैं जिनपर आप चिंतन करना :-
(1) क्या संघर्ष समिति का हिस्सा रहते हुए आजाद अध्यापक संघ को अलग जाकर सम्मान समारोह का हिस्सा बनना चाहिए था?
(2) क्या बार बार एकजुटता कायम करके अलग जाना, अन्य संघों के साथ धोखा नहीं?
(3) क्या ये सम्मान केवल आजाद अध्यापक संघ द्वारा था?  था तो आमंत्रण तो सबको मिला था ।
(4) यदि सब आमंत्रित थे तो केवल आजाद अध्यापक संघ का कार्यक्रम कहकर क्यों प्रचारित किया गया?
(5) कार्यक्रम के पूर्व काफी आश्वासन दिए गए, पर मिला क्या?
(6) क्या आपको लगता है की बिना संघर्ष और एकजुटता के कुछ प्राप्त किया जा सकता है?
(7) क्या आपको लगता है का इन परिस्थितियों में आजाद अध्यापक संघ अकेले विरोध की रणनीति पर चलकर संघर्ष कर सकता है?
(8) क्या आपको लगता है की हम संपूर्ण अधिकार प्राप्त कर चुके हैं?
(9) क्या आपको लगता है की हम व्यक्तिवादी सोच के हो गए हैं?
(10) क्या आपको लगता है की व्यक्तिपूजा करके हम अधिकार प्राप्त कर लेंगे?
सभी साथियों से निवेदन है की समीक्षा और चिंतन करें । हमें एकजुटता पर कायम रहना होगा ।
अजीत पाल यादव   ( महामंत्री ) आजाद अध्यापक संघ

Saturday, November 12, 2016

सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक का वेतन गलत क्यों ? RTI की कोपी देखें -सुरेश यादव (रतलाम)

       मेरे द्वारा  लगतार यह बात कही जाती रही है कि ,सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक को गलत वेतन प्रदान किया गया है ।और 1998 वाले साथियो को 2-2 वेतन वृद्धि का लाभ मिलना चाहिये ।

उसके पीछे  कुछ कारण हैं ,

पहला यह की सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक को  1 जनवरी 16 में वह वेतन प्रदान किया गया है,जो सहायक शिक्षक और व्यख्याता को 1 जनवरी 2006 को प्रदान किया गया था ।
अर्थात  4000,4100,4200 और 5500,5675,5850 वेतन मान प्रदान कर के उसमे 1.86 का गुणा किया गया। और 10 स्टेप तय की गयी।

दूसरा अध्यापक को 9300+3200 प्रदान कर  हर स्टेप पर मूल वेतन और ग्रेड पे को जोड़ कर 3 प्रतिशत वेतन वृद्धि प्रदान कि गयी और 10 स्टेप तक वेतन दिया गया ।

तीसरा 2013 में जब अंतरिम राहत प्रदान की गयी थी तब  सहायक अध्यापक ,अध्यापक  और वरिष्ठ अध्यापक के वेतन में 8 स्टेप के आधार अंतर ज्ञात किया गया था ।और  मूल वेतन के साथ ग्रेड पे को जोड़कर  3 प्रतिशत के आधार पर वेतन वृद्धि प्रदान कर के  8 स्टेप तक वेतन आगे बढ़ाया गया था ।

चौथा कारण यह की जब अंतरिम राहत प्रदान की गई थी तब 8 वर्ष के आधार पर गणना की गयी थी जबकि 2008 से 2013 तक कुल 6 वर्ष ही हुए थे ।इस लिए 1998 के साथियो को 2-2वेतन वृद्धि प्रदान की जायगी।
हाँ तब वेतन की गणना गलत की गयी थी ,
        
         10230 और 7440 के स्थान पर 9300 और 5200 प्रदान किया गया था लेकिन यह अलग मामला है । उस से वेतन वृद्धि की गणना का कोई सम्बन्ध नहीं हैं।
         आप की सुविधा के लिए, 2013 मे अंतरिम राहत ज्ञात करने के लिए जो नोटशीट चली थी उसकी कॉपी इस पॉस्ट के साथ है आप अध्ययन कर सकते हैं ।
         साथ ही सहायक अध्य्यापक ,अध्यापक ,और वरिष्ठ अध्यापक  की भी एक -एक टेबल है जिस से आप सही प्रकार से समझ सकें की किस तरह की गड़बड़ की गयी है और आप को क्या हानी  हो रही है।
         हाँ क्रमोन्नति और पदोन्नति के लिए आज तक कभी कोई  टेबल नहीं बनायीं जाती इस लिए संभवतः  इस बार हमारे लिए भी नहीं बनाई गई है । इन सभी समस्याओं का एक ही हल है कि सरकार इस आदेश के एक लाइन जोड़ दे की 2007 से वेतन की काल्पनिक गणना की जायेगी । सभी समस्या अपने आप संमाप्त हो जाएंगी ।
  



Friday, November 11, 2016

अध्यापको के वेतन को लेकर सह्याक संचालक संपरीक्षा निधि ने संचालक संपरीक्षा निधि से मांगा मार्गदर्शन,पत्र ब्लॉग में


6वे वेतनमान के आदेश में वेतन निर्धारण का कोई फॉर्मूला ही नहीँ
स्थानीय संपरिक्षा निधि जबलपुर ने अध्यापकों के छठवें वेतन मान में निकाली 7 खामियां 8वी खामी पर भी उनकी नज़र थी पर जाने क्यों छुपा लिया । नये वेतनमान निर्धारण में स्थानीय संपरिक्षा निधि से अनुमोदन ज़रूरी है यदि ये बिना मार्गदर्शन के अनुमोदन नहीँ करेंगे तो अब शासन का मार्गदर्शन ज़रूर जारी होगा और बिन्दुवार होगा....यही हमारी 4 दिन तक स्थानीय संपरिक्षा निधि में चक्कर काटने   की  सफलता है । गौर करने की बात है कि स्थानीय संपरिक्षा निधि जबलपुर ने वेतन निर्धारण के मूल आधार पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया है यहाँ तक कह दिया है कि ऑर्डर में वेतन निर्धारण का कोई फॉर्मूला ही नहीँ है इससे साफ जाहिर होता है कि यदि कोई वेतन निर्धारण करता भी है तो वह मनगढ़ंत ही होगा । स्थानीय संपरिक्षा निधि ने सेवा काल की गणना 2007 से करने को गम्भीरता से लिया  है जिसके चलते मिली हुई क्रमोन्न्ती पर भी प्रश्न खड़ा हो गया है । कुल मिलाकर लगता नहीँ ये गणना पत्रक कुछ लाभ देने की नियत से बनाया गया है । यदि जल्दी और सार्थक मार्ग दर्शन नहीँ मिला तो पूरे प्रदेश में जितने जिले हैं उतने ही तरह के वेतन निर्धारण देखने को मिलेगा ।
डी के सिंगौर

Thursday, November 10, 2016

कूटनीति कर के अध्यापको के वेतन को वेतन में उलझा दिया सरकार ने - अजितपाल यादव (भोपाल)

       बेहद सरल कूटनीति होती है की अगर कोई संवर्ग मूल हक की और ध्यान केन्द्रित करने लगे तो उसे आर्थिक मामलों पर उलझा दो । और हुआ भी यही । अभी जैसे ही सरकार को लगा कि अरे ये संघर्ष समिति ने कैसा ज्ञापन दे दिया?  अरे ये तो मूल समस्याों को पकड़ रहे हैं । रोको रोको इनको ।
बस यहीं से शाकएब्जार्वर्स  का काम शुरू हुआ और स्वागत रूपी सम्मेलन और सम्मोहन  पर जाकर खत्म हुआ । दूसरी तरफ बड़ा वर्ग नाना प्रकार की गणना की टेबल, कुर्सी, सोफा में उलझा रहा और अपने ज्ञान का लोहा मनवाता रहा ।
         आप देखना की नवंबर माह के समाप्त होते होते बहुत कुछ जादूगरी हमें समझ आने वाली है  और ये समझ आते ही हम फिर खुद को भयंकर रूप से ठगा महसूस करेंगे । और फिर वही आर्थिक मामलों पर पूरा ध्यान अटक जाएगा ।

    एक अधिकारी से चर्चा का सार :-
(1)अंतरिम राहत किश्तों की वसूली (समायोजन) 2013 से होगी
(2) क्रमोन्नति प्राप्त को अगला वेतन बैंड नहीं मिलेगा
(3) सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक क 3 प्रतिशत की वेतनवृद्धि नहीं मिलेगी

           ये गणना पत्रक की भाषा अनुसार बताया गया है । इसके अलावा उनके द्वारा स्पष्ट किया गया की अब ये सारी विसंगतियाँ नगरीय व ग्रामीण एवं पंचायत विकास विभाग दूर करेगा । क्योंकि वित्त विभाग नियमित कर्मचारी के लिए स्पष्ट करता है और अध्यापक कर्मचारी नहीं है ।
           मेरा अनुमान है की एक बार फिर हमें बजट सत्र मार्च 2017 तक के लिए अटका दिया गया है और इस बार तो डाबर जन्मघुट्टी पिला कर घर भेजा गया है । मेरा सभी से अनुरोध है की सभी संघों से ऐसे शाकएब्जार्वर्स को निकाल बाहर किया जाए जो हमारे हितों के विरूद्ध शतरंज की बिसात बिछाते हैं और हमें मोहरों के रूप में इस्तेमाल करते हैं ।
    

जबलपुर में स्थानीय निधि संपरीक्षा ने नहीं किया अध्यापको के वेतन का अनुमोदन ,अध्यापकों को बैरंग लौटा दिया।

डीके सिंगोर/मंडला। अध्यापक संवर्ग को जनवरी 2016 से मिलने वाले 6पे के गणना पत्रक के आदेश को सरकार ने 10 महीने बाद जारी तो कर दिया और अनेक संकुलों मे नया वेतनमान आदेश मिल भी गया परंतु सही वेतन के निर्धारण का दायित्व निभाने की जिम्मेदारी जिस संपरीक्षा निधि कार्यालय को सौपी गई वह ,ही गणना पत्रक को समझ नहीं पा रहा है।
         जबलपुर संभाग के जिलों से सही निर्धारण कराने संपरीक्षा निधि कार्यालय जबलपुर ने अध्यापकों के गणना पत्रक के सम्बन्ध मे एक मार्गदर्शन पत्र जारी कर अध्यापकों को बैरंग लौटा दिया।

कहाँ हो रही कठिनाई
संपरीक्षा निधि कार्यालय मे विगत 5 दिनों से वेतन निर्धारण का अनुमोदन कराने जा रहे अध्यापक संघर्ष समिति के जिला अध्यक्ष डी के सिंगौर और नरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि संपरीक्षा के अधिकारी निम्न कठिनाइयों को बता रहे है-
1-सहायक अध्यापक,अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक की वेतन तालिका एक समान नियमों से नहीं बनी।
2-आदेश मे 2.1 और 2.3 मे वेतन निर्धारण को लेकर विरोधाभास है।
3-3000 -5000 वेतनमान वाले सहायक अध्यापक को क्रमोन्नति 3500-6000 के वेतनमान पर हुई जबकि तालिका मे 4000 रु का वेतनमान दिया गया है।
4-यही स्थिति क्रमोन्नत हुए अध्यापक के साथ है जारी तालिका मे उसका तदस्थानिक मूल वेतन तालिका से या तो मेल नहीं खाता या  कम है।
5-क्रमोन्नत वरिष्ठ अध्यापक के ग्रेड पे को 3600 से 4200 करने पर 4200 ग्रेड पे की तालिका ही आदेश मे मौजूद नहीं है।
6-यदि अध्यापक संवर्ग के तदस्थानिक वेतनमान के अनुरूप वेतन निर्धारण किया जाए तो एक साथ नियुक्त एक अध्यापक और अध्यापक से वरिष्ठ अध्यापक पद के वेतनमान मे पदोन्नति प्राप्त अध्यापक का वेतन गैर पदोन्नत या क्रमोन्नत अध्यापक से कम हो रहा है।
7. वेतन निर्धारण के लिये एक भी उदाहरण प्रारूप जारी नहीँ किया गया है वेतन निर्धारण को लेकर अध्यापक संकुल प्राचार्य से लेकर डी ई ओ और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगा रहे है
       लेकिन क्षेत्रीय स्थानीय निधि सम्परीक्षक  जिनका अनुमोदन अनिवार्य है के द्वारा स्पष्ट नियमों के अभाव में अनुमोदन नहीँ किये जाने से  अध्यापक एक बार फिर भोपाल की ओर रुख कर दिया है अध्यापक संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि अब वे संपरीक्षा निधि कार्यालय से प्राप्त मार्गदर्शन को लेकर DPI जाएंगे।

झबुआ का वेतंन निर्रधारण ,जिसके लिये कोषालय से सहमति मिली है ,वेतन निर्द्धारण पत्रक,अंडर टेकिंग,कार्यालयीन आदेश ,सेवा पुस्तिका ,विकल्प - अरविन्द रावल

      
अरविन्द रावल - मध्यप्रदेश में पहली बार आधिकारिक रूप से अध्यापक सवर्ग को देय छठे वेतनमान का वेतन निर्धारण झाबुआ जिले के शासकीय हाई स्कुल करडावद बड़ी के प्राचार्य श्री एस एल श्रीवास्तव एवम् लेखापाल शिक्षक श्री योगेन्द्र दीक्षित द्वारा अध्यापक अरविंद रावल का आज किया गया। छटे वेतनमान का सबसे पहले वेतन निर्धारण करने पर जिले के समस्त अध्यापको की और से प्राचार्य श्री एस एल श्रीवास्तव एव लेखापाल शिक्षक श्री योगेन्द्र दीक्षित का आभार व्यक्त किया गया और धन्यवाद ज्ञापित किया ।
             जिले के हम अध्यापक  साथी फ़िरोज़ खान, शरद गुप्ता, इलियास खान, मनीष पवार और मेरे द्धारा संशोधित गणना पत्रक जारी होने की दिनांक से ही इस पर अध्ययन करने लगे और जिले में एक समान रूप से वेतन निर्धारण हो सके इस उद्देश्य को लेकर जिले के वरिष्ठ अधिकारियो और लेखापालों से उक्त आदेश की हर तरह से व्याख्या कर समझाया गया ! हमने रतलाम के भाई सुरेश यादवजी से भी सही गणना पत्रक बनाने में सहयोग लिया ! पन्द्रह दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद हम साथियो दिन रात एक कर ने फाइनल एक टेबल बनाई जिसे जिले के अधिकारियो और लेखापालों द्धारा समझा गया ! हमारे बड़ेभाई स्वरुप श्री जफ़र खान वरिष्ठ लेखापाल द्धारा हमारे द्धारा बनाये गए गणना पत्रक सबसे पहले अध्ययन कर सहमति दी और उन्ही के नेतृत्व में हम सभी ने जिले के सभी वरिष्ठ अधिकारियो के साथ कई घण्टो की मैराथन बैठक करने बाद हमारे द्धारा बनाई गई तालिका के अनुसार झाबुआ जिले के अध्यापको का एक समान वेतन निर्धारण करने पर सहमति प्रदान की हे ! उसी परिपेक्ष्य में हाई  स्कुल करडावद बड़ी के प्राचार्य श्री एस एल श्रीवास्तव द्धारा न सिर्फ जिले में बल्कि प्रदेश सबसे पहले  अधिनस्त अध्यापको का नियमानुसार वेतन निर्धारण कर दिया गया हे और अध्यापको की सर्विस बुक अवलोकन हेतु संपरीक्षा निधि कार्यालय इंदौर भेजी जा रही हे !
           हम साथियो द्धारा बनाये गए गणना पत्रक को प्रदेश के सभी जिलो  द्धारा पसन्द किया गया हे और करीब चालीस से ज्यादा जिलो में हमारे द्धारा बनाई गई सारणी के अनुसार ही वेतन निर्धारण करने का कार्य किया जा रहा हे ! झाबुआ जिले में अध्यापको का छठा वेतनमान एक समान निर्धारण करवाने की कार्यवाही करने के लिए सहायक आयुक्त महोदय, जिला कोषालय अधिकारी महोदय  और वरिष्ठ लेखापाल जफ़र खान सर का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा हे ! हम एक बार फिर झाबुआ जिले  अध्यापको की और से छठे वेतनमान के निर्धारण करवाने पर सहयोग करने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारियों के प्रति आभार प्रकट करते हे !
    








आज एक समस्या से खुद रूबरू हुआ - अजित पाल यादव (भोपाल)

आज एक समस्या से खुद रूबरू हुआ ।
एक तरफ तो मुखिया जी कहते हैं की इतना पढाओ की निजी स्कूलों में ताले लग जाएं और दूसरी तरफ जिला शिक्षा अधिकारी मुखिया की सोच की धज्जियां उड़ा देते हैं ।
बात है किसी भी शासकीय आदेश की गलत व्याख्या करने की ।
अभी एक आदेश निकला था मूल पदसंरचना का। जिसमें किसी भी शाला हेतु शिक्षकों की नियुक्ति की अवधारणा को स्पष्ट करने की व्याख्या की थी । पर आज मैंने खुद उसकी धज्जियां उढ़ते देखी ।
आदेश के अनुसार विज्ञान समूह से गणित, कला से सामाजिक विज्ञान और भाषा से अंग्रेजी को प्राथमिकता दी गई है । पर आप ये बताओ की जहाँ इनमें से एक भी न हो और वो स्कूल 1967 से संचालित हो तो क्या कहोगे?  और तुक्का ये की नियम नहीं है । मतलब ये हुआ की शाला को और विद्यार्थी को यतीम कर दो । खुद ही अशासकीय में पहुँच जाएगा ।
ये समस्या सबको आनी है । इसलिए चैन से सोना है तो जाग जाओ । और मामा को स्वागत के अलावा जमीनी हकीकत बताओ ।
संघर्ष समिति जिंदाबाद ।
अध्यापक एकता जिंदाबाद ।
(लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)

आखिर क्यों सरकारी स्कूल खतरे में ?- अजित पाल यादव (भोपाल)


 अजित पाल यादव -  यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों पर नजर डालें तो विगत 3 वर्षें में बहुत तेज गति से अशासकीय शालाओं को मान्यता प्रदान की गई है । ये निजी शालाएं आर टी इ के अंतर्गत नि:शुल्क शिक्षा के नाम पर सरकारी विद्यालयों से लगभग शतप्रतिशत सवर्ण विद्यार्थियो को खींच चुकी हैं । अब केवल पिछड़ी और अनुसूचित जाति व जनजाति के ही बच्चे बचे हैं । यदि आप मेरी बात से असहमत हों तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें । यही स्थिति रही तो आने वाले 5-6 वर्षों में बहुत अधिक शालाओं में 10 से कम दर्ज संख्या होने वाली है । और ये शाला समाप्ति का मार्ग है ।
       शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षक पदसंरचना का यदि अध्ययन करेंगे तो ये भी ताबूत में ठुकती कील नजर आएगी । अभी 14.09.16 को म प्र शासन द्वारा पुनः आदेश जारी किया है जिसमें विषयवार वरियता जारी की है । कृपया आप सभी आदेश प्राप्त कर अध्यापक करें । यदि गणित, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान का शिक्षक नहीं भी है तो शालाओं को खाली रखा जाएगा पर हिंदी, विज्ञान संस्कृत के शिक्षक की पदस्थापना नहीं की जाएगी ।

 ये स्थिति 140 की दर्ज संख्या पर लागू कर दी गई है ।

भयावह स्थिति :-
घटती दर्ज संख्या और अतिशेष होता अध्यापक । पद्दोन्नति लगभग अकल्पनीय हो चुकी है । आज और अभी से आप अंदाजा लगा लो की नए आदेशों के अनुसार आप अपने जिले में स्वयं को किस शाला में पदस्थ पायेंगे । मेरा ये प्रश्न माध्यमिक शालाओं में वर्तमान में पदस्थ और भविष्य में पदोन्नत होने वाले सहायक अध्यापकों से है । अत्यंत विषम परिस्थिति निर्मित हो चुकी है और हम राज्य परिवहन के बहुत करीब पहुँच चुके हैं ।
इस पूरे मामले को गंभीरता से समझने वाले साथियों से आगृह है की न्यायालय के माध्यम से शासन से ये पूछा जाना चाहिए की क्या 140 से कम विद्यार्थी को हिंदी, विज्ञान, संस्कृत पढने के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है?
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

जाग चुके अध्यापक को लोरी सुनाकर सुलाने की कोशिश-वासुदेव शर्मा (मुख्यमंत्री स्वगात समारोह भाग 1)


वासुदेव शर्मा- सीएम हाऊस के सम्मान समारोह से लौट रहे अध्यापकों के चेहरों से उत्साह गायब था और प्रतिक्रिया कुछ नहीं मिला जैसी थी। मैंने सवाल यह किया कि यह सम्मान समारोह क्यों आयोजित किया गया। जबाव जोरदार था। पांच अध्यापकों की टीम में से एक बोला हक के लिए जाग चुके अध्यापक को सुलाने की कोशिश भर थी यह, लेकिन  सीएम के रणनीतिकार यहां भी फैल हो गए। अध्यापकों के पांच संगठनों में से चार इस आयोजन से बाहर रहे और अध्यापक संघर्ष समिति पहसे से ज्यादा भरोसेमंद हो गई। अब जो संघर्ष समिति में बचे हैं, वे स्कूलों को बचाने तथा शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लड़ सकेंगे।
         राज्य अध्यापक संघ के अध्यक्ष जगदीश यादव ने सम्मान समारोह में न जाने का जो साहसिक निर्णय लिया है, उसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए। आयोजन से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वे सीएम हाऊस जरूर जाएंगे। जगदीश के ऊपर दबाव भी था। आयोजकों ने अनगिनत फोन उन्हें किए। यहां-वहां से दबाव भी डलवाया। सम्मान समारोह में शामिल होने के सवाल पर जगदीश, करतार सिंह, दिनेश शुक्ल, नागेंद्र त्रिपाठी जैसे अध्यापक नेता एक दिन पहले भोपाल में बैठे भी, जहां यह निर्णय लिया कि हमें सम्मान की वजाय संघर्ष के साथ रहना चाहिए। मतलब स्पष्ट है कि जगदीश यादव और उनकी टीम अध्यापक संघर्ष समिति के साथ पूरी ताकत से खड़ी है और यही वो ताकत है जिसने संघर्ष समिति को और भरोसेमंद बनाया है।
          सम्मान समारोह के आयोजक जिनमें अधिकांश वे लोग शामिल थे, जिनका जन्म ही मुरलीधर पाटीदार की आलोचना करके हुआ और यही लोग 6 नवंबर के सम्मान समारोह में  मुरलीधर पाटीदार के भाषण पर तालियां बजा रहे थे। सम्मान समारोह के इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर गंभीरता से सोचेंगे, तब आप पाएंगे कि आयोजक अपने ही समर्थकों की नजरों में कहां पहुंच गए होंगे। इस सम्मान समारोह के बाद कद मुरलीधर पाटीदार का ही बड़ा है और नुकसान में कौन पहुंचा, सम्मान कार्यक्रम के बाद यह अध्यापक समझ चुके हैं।
           अध्यापक संघर्ष समिति के तीन सदस्यों बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राजेश नायक के बारे में सम्मान समारोह के आयोजकों की पहले ही राय थी कि यह लोग सम्मान समारोह की वजाय संघर्ष समिति के साथ रहेंगे, शायद इसीलिए इन्हें बुलाने में ज्यादा ताकत खर्च नहीं की गई। मुख्यमंत्री के सम्मान समारोह के जरिए सरकार ने जगदीश यादव, बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राजेश नायक को एक साथ कर दिया। इन्होंने भी बिना देर किए 14 नवंबर को संघर्ष समिति की बैठक बुलाकर अगली रणनीति बनाने की घोषणा कर दी है, यही सम्मान समारोह के रणनीतिकारों की सबसे बड़ी असफलता है, वे खुद ही संघर्ष के रास्ते से अलग हो चुके हैं। सीएम हाऊस से लौट रहे अध्यापकों के चेहरों की निराशा आयोजकों के फ्लाप हो जाने का सबूत भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है।)

राज्य शासन का सेवा पुस्तिका के सबन्ध में आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016

राज्य शासन का सेवा पुस्तिका  के सबन्ध में आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016 

सेवा पुस्तिका की डुप्लीकेट कॉपी कार्यलय में रखी जाए ,एक कॉपी कर्मचारी को भी प्रदान की जाये ,इंक्रीमेंट लगाने पर कर्मचारी के भी हस्ताक्षर करवाये जाएँ ,डिजिटल सेवा पुस्तिका  भी बनाई जाए , आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016 ।
आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016 पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करे 






यात्रा भत्ता ,दैनिक भत्ता भोजन भत्ता एवं ठहराव भत्ता की दरो में संशोधन आदेश दिनांक 5 नवम्बर 2016 एव 5 सितम्बर 2012

यात्रा भत्ता ,दैनिक भत्ता भोजन भत्ता  एवं ठहराव भत्ता की दरो में संशोधन आदेश दिनांक 5 नवम्बर 2016

आदेश दिनांक 5 नवम्बर 2016 को पीडीऍफ़ में देखने के लिए इस लिंक को ओपन करें

राज्य वेतन आयोग की अनुसंशा अनुसार राज्य शासन के कर्मचारियों को दे यात्रा भत्ते की दरो का पुनरीक्षण 5 सितम्बर 2012
आदेश दिनाक 5 सितम्बर 2012 पीडीऍफ़ में देखने के लिए इस लिंक को ओपन करें  


 

Wednesday, November 9, 2016

हर जिले में अलग वेतन निर्धारण और अलग नीयम देखिये कितने प्रकार से गणना की जा रही है और असमानता क्या है ।

 देखने में आ रहा है की विभिन्न जिलो में अलग तरह से वेतन निर्धारण किया जा रहा है नरसिहपुर में 2007 से गणना कर के 6 टे वेतन के आधार पर तिन और दो वेतन वृद्धि प्रदान की गयी है।  झबुआ में 2007 में 5 वे वेतन में 2 और 3 वेतन वृद्धि लगा कर 6 टा वेतन मान प्रदान किया गया है 31 दिसम्बर को भी वेतन वृद्धि प्रदान की गयी है। अलीराजपुर में 6टे वेतन मान के आधार पर प्रारंभिक वेतन प्रदान किया गया है और 31 दिसम्बर को में भी वेतन वृद्धि लगायी गयी ही। जबकि रतलाम में 31 दिसम्बर तक 5 वे वेतन मान के आधार पर गणना कर के वेतन मान  दिया गया है ,व अध्यापक को क्रमोन्नति  नही लगायी गयी है। इसी प्रकार विद्यमान वेतन के सामने तत्स्थानी वेतन देखकर और सेवा अवधि देखकर भी गणना की गयी है। कई जगह आई आर की 2013 से वसूली भी की गयी है। यंहा हमने 1998  के अध्यापक संवर्ग की गणना बताई है आप स्वयं असमानता देखें।   



पदोन्नति में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आगे बढ़ाई सुनवाई की तारीख

पदोन्नति में आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाकर 23 नवंबर कर दी है। इस मामले में मप्र सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा था, जिसके बाद तारीख आगे बढ़ा दी गई।

जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की डबल बेंच इस मामले की सुनवाई की। इसके पहले सितंबर में बेंच के एक जज के बीमार होने से सुनवाई आगे बढ़ गई थी। हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण रद्द करने और 2002 से अब तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने का आदेश दिया था। मप्र सरकार ने इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को रद्द कर चुका है। अजाक्स के अध्यक्ष जेएन कंसोटिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हमें भी इंतजार है।

दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क

सरकार : राज्य सरकार 2002 से 2016 तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है। सरकार का कहना है कि भले ही मप्र लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 गलत हों, लेकिन अब तक हुए प्रमोशन रिवर्ट न किए जाएं।

सपाक्स : अनारक्षित वर्ग के याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में तर्क देंगे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर ही हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। यदि सरकार 2002 के नियमों को गलत मान रही है, तो पिछले 14 सालों की पदोन्नति को कैसे जायज ठहरा सकती है।
                 



एनसीईआरटी सिलेबस से प्रश्न-पत्र का प्रारूप भी बदलेगा

प्रदेश के स्कूलों में एनसीईआरटी सिलेबस लागू होने के बाद स्कूली शिक्षा में कई बदलाव देखने को मिलेंगे। पाठ्यक्रम लागू होने पर पढ़ाई के साथ-साथ बोर्ड की परीक्षा पैटर्न में भी कुछ अंतर आ जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक एनसीईआरटी का सिलेबस एक्टिविटी बेस्ड है, जिससे बच्चों को सीखने में आसानी होती है।

स्कूल शिक्षा विभाग की पदेन सचिव दीप्ती गौड़ मुकर्जी के मुताबिक एनसीईआरटी का सिलेबस लागू होने के बाद बोर्ड की परीक्षा में प्रश्न-पत्र का पैटर्न चेंज होगा। प्रश्न-पत्र में वैकल्पिक प्रश्न भी शामिल किए जाएंगे। इसके साथ ही मौजूदा दौर में पूछे जाने वाले प्रश्नों की जगह अवधारणा पर आधारित प्रश्न पूछे जाएंगे।

शिक्षकों की दी जाएगी ट्रेनिंग
नया सिलेबस 2017 से लागू होगा। इसके लिए शिक्षकों को विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। स्कूल शिक्षा विभाग ने एनसीईआरटी के भोपाल स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन से इस संबंध में बातचीत भी की है। जल्द ही पहली से सातवीं तक के शिक्षकों को यहां ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके साथ ही 9वीं से 12वीं के शिक्षकों को भी इसे लेकर ट्रेनिंग दी जाएगी।

16 करोड़ का बोझ
मप्र पाठ्य पुस्तक निगम अगले शिक्षण सत्र के लिए नई किताबें छापेगा। छपाई से सरकार पर 16 करोड़ स्र्पए का बोझ आएगा।

500 और 1000 के पुराने नोट बंद ,कैसे बदलेंगे ? कन्हा चलेंगे ?ATM क्या काम करेंगे ? ई पेमेंट होगा या नहीं ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोट को मंगलवार आधी रात से अमान्य घोषित करते हुए इस निर्णय के कारण उत्पन्न स्थितियों को देखते हुए 11 नवंबर की मध्यरात्रि तक कुछ खास व्यवस्थाएं भी की हैं.

यंहा चलेंगे पुराने  नोट
इसके तहत अस्पतालों, सार्वजनिक क्षेत्र के पेट्रोल एवं सीएनजी गैस स्टेशनों, रेल यात्रा टिकट काउंटरों, शवदाह गृहों, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को 11 नवंबर की मध्यरात्रि तक छूट रहेगी. दुग्ध बिक्री केंद्रों, पेट्रोल एवं सीएनजी स्टेशनों आदि को स्टॉक एवं ब्रिकी का रजिस्टर रखना होगा. उन्होंने कहा कि 100 रुपये, 50 रुपये, 20 रुपये, 10 रुपये, 5 रुपये, एक रुपये के नोट और सभी सिक्के प्रचलन में रहेंगे और वैध होंगे.

ATM कैसे काम करेंगे 
मंगलवार आधी रात से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट अब महज कागज के टुकड़े बनकर रह गए हैं. ये सारे नोट गैरकानूनी माने जाएंगे. प्रधानमंत्री ने घोषणा करते हुए कहा कि 9 नवंबर को बैंक बंद रहेंगे और बुधवार गुरुवार को  दो दिनों तक कुछ एटीएम भी काम नहीं करेंगे.प्रधानमंत्री ने कहा कि केवल शुरुआत के दिनों में खाते से धनराशि निकालने पर प्रतिदिन 2000  हजार रुपये और प्रति सप्ताह 20 हजार रुपये की सीमा रखी गई है. पीएम मोदी ने 2000 रुपये और 500 रुपये के नए नोट जारी किए जाने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि प्रारंभ में 4000 रुपये के नोट बदले जा सकेंगे और 25 नवंबर से 4000 रुपये की सीमा में वृद्धि की जाएगी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बयान में  मध्यरात्रि से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों के प्रचलन को समाप्त करने की घोषणा की,बयान अनुसार  जरूरी व्यवस्था करने के लिए कल एक दिन बैंक जनता के लिए बंद रहेंगे. उन्‍होंने कहा कि ‘यह जानकारी गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए सभी को इसी समय एक साथ दी जा रही है.रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों को बहुत कम समय में काफी व्यवस्था करनी है. ऐसे में कल बैंक बंद रहेंगे.’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि " बुधवार को बैंक बंद रहेंगे और कुछ एटीएम बुधवार और गुरुवार को बंद रहेंगे. उन्होंने कहा कि बैंकों और डाकघरों के कर्मचारी नई  व्यवस्था को उपलब्ध समय में सफल बनाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे. मोदी ने कहा कि चेक, बैंक ड्राफ्ट या अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों के भुगतान पूर्ववत रहेंगे और यह जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि इसके कारण लोगों को कुछ परेशानियां पेश आएंगी. लेकिन मेरा आग्रह होगा कि देशहित में वे इन कठिनाइयों को नजरअंदाज करें. हर देश के इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं जब व्यक्ति उस क्षण का हिस्सा बनना चाहता है और राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनना चाहता है.ऐसे गिने-चुने मौके आते हैं और यह ऐसा एक मौका है.’मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश में गहरी जड़ें जमा चुका है.भ्रष्टाचार, जाली मुद्रा और आतंकवाद नासूर बन चुका है और अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया है. हमारे दुश्मन जाली नोटों के जरिए भारत में रैकेट चला रहे हैं ."





500 और 2000 रुपये के नए नोट जो जल्‍द किए जाएंगे जारी...

पीएम मोदी ने कहा कि प्रारंभ में एटीएम से प्रतिदिन प्रति कार्ड 2000 रुपये निकाले जा सकेंगे. नई व्यवस्था के कारण पेश आने वाली कुछ परेशानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आतंकवाद, कालाधन, जाली नोट के गोरखधंधे, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में देश की जागरुक जनता कुछ दिनों तक इस असुविधा को झेल लेगी.



.जानिए कैसे बदले जा सकते हैं 500-1000 रुपये के पुराने नोट

1. बैंकों में जमा कराएं 
अगले 50 दिनों तक इन 500 और 1000 रुपये के नोटों को आप बैंक में जाकर जमा करा सकते हैं.

2. बैंक नहीं तो डाकघर जाएं 
10 नवंबर से 30 दिसंबर तक आप चाहें तो डाकघरों में भी जाकर इनको जमा करा सकते हैं. इसलिए मौजूदा नोटों को लेकर परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है.

3. इन तारीखों का रखें ध्‍यान 
इस संबंध में 10 नवंबर और 30 दिसंबर की तारीख आपके लिए खासा महत्‍व रखती है क्‍योंकि इसी दौरान आपके अपने पुराने इन नोटों को बदलना होगा. पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इसके लिए कहा कि आपको बिल्‍कुल परेशान होने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि इस काम को करने के लिए आपके पास पूरे 50 दिन हैं.

4. बैंक की डेट निकले तो RBI है ना...
कुछ कारणों से जो लोग 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोट 30 दिसंबर तक जमा नहीं करा सकेंगे, वे लोग पहचान पत्र दिखाकर 31 मार्च, 2017 तक नोट बदलवा सकेंगे.

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Wednesday, November 30, 2016

आयुक्त लोक शिक्षण ने DEO को वेतन के आदेश जारी करने पर रोक लगायी

आयुक्त लोक शिक्षण ने जारी किया आदेश कोई भी deo शासन के आदेश के अतिरिक्त कोई दिशा निर्देश जारी नहीं करें। कुछ जिलो ने मार्गदर्शन माँगा है ।उसका निराकरण शासन स्तर से होगा ।
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें

Tuesday, November 29, 2016

,आयुक्त आदिबासी विकास ने अध्‍यापक संवर्ग को वेतनमान के आदेश 15 अक्टूबर को पृष्ठांकित किया

जनपद/ जिला पंचायत में कार्यरत अध्‍यापक संवर्ग को दिनांक01/01/2016 से निम्‍नानुसार वेतनमान स्‍वीक़त किया जाता है,आयुक्त आदिबासी विकास ने 15 अक्टूबर के आदेश को पृष्ठांकित किया।
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें



Monday, November 28, 2016

कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ मिलेगा और जायज माँगों पर होगा शीघ्र फैसला कर्मचारी संगठनों की महापंचायत में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने की घोषणा

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ दिया जायेगा। प्रदेश सरकार कर्मचारियों और उनकी दिक्कतों को भली-भाँति समझती है। कर्मचारियों की जायज़ माँगों पर शीघ्र फैसला किया जायेगा। सबको न्याय मिलेगा। श्री चौहान आज मंत्रालय पार्क में कर्मचारी संगठनों की महापंचायत को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कर्मचारियों को संकल्पित करवाया कि प्रदेश को दुनिया का सबसे अच्छा राज्य बनाने में पूरी निष्ठा और परिश्रम से कार्य करेंगे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश की सरकार एक नये भाव के साथ कार्य कर रही है। सब वर्गों की समस्यायें समझ कर, उनको दूर करने के प्रयास किये गये हैं। जनता के विकास और कर्मचारियों के कल्याण के अनेक कार्य किये हैं, आगे भी किये जायेंगे। सबका मान, सम्मान और सबका काम सरकार की रीति-नीति है। उन्होंने शिक्षकों को अल्प वेतन के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार संवेदनशील है। लाड़ली लक्ष्मी जैसी अभूतपूर्व योजनाएँ संचालित की गई हैं। कभी 500 रूपये वेतन पाने वाले शिक्षकों को आज करीब 35 हजार रूपये वेतन मिल रहा है। कर्मचारियों के न्यायोचित माँगे बिना माँग किये पूरी हो रही हैं।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कर्मचारियों को बधाई देते हुए कहा कि उनके सहयोग और परिश्रम का ही परिणाम है कि जिस राज्य की विकास दर कभी ऋणात्मक होती थी, आज वह देश में सबसे अधिक वृद्धि दर वाला राज्य है। लगातार 4 वर्षों से कृषि वृद्धि दर 20 प्रतिशत से अधिक है, जो दुनिया में अभूतपूर्व है। सिंचाई क्षमता 7.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 40 लाख हो गई है। सड़कों का जाल बिछा है। पॉवर सरप्लस है। सरकार के कार्यकाल में कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है, तो आम आदमी की प्रति व्यक्ति आय भी 13 हजार रूपये से बढ़कर 60 हजार रूपये हो गई है।
श्री चौहान ने कहा कि नोटबंदी का फैसला अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। ऐसा निर्णय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जैसे युग पुरूष ही कर सकते हैं। उनके फैसले से गरीब प्रसन्न हैं। देश की अर्थ-व्यवस्था को जाली नोटों से डुबाने की दुश्मन देश ने जो बिसात बिछाई थी, वह बिखर गई है। आतंकवाद की कमर टूटी है। काले धन की व्यवस्था को करारा झटका लगा है। इससे भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा। देश और मजबूत होकर निकलेगा। उन्होंने कहा कि कैशलेस ट्रांजेक्शन और प्लास्टिक मुद्रा समय की आवश्यकता है। इस ओर तेजी से बढ़ना होगा। उन्होंने नर्मदा जी के संरक्षण की आवश्यकता बताते हुए कहा कि नर्मदा तट के दोनों और वृक्षारोपण किया जाना है। तट के किसानों को भी फलदार वृक्षारोपण के लिये प्रेरित किया जायेगा। फल आने तक 20 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर के मान से उनके नुकसान की भरपाई की जायेगी। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा गरीब मेधावी बच्चों को प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों की फीस देने की भी योजना बनाई गई है।
राजस्व मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि प्रदेश सरकार के 11 वर्ष के कार्यकाल ने दिखाया है कि स्वर्णिम मध्यप्रदेश में क्या हो सकता है। सब वर्गों की चिंता और कल्याण के कार्य हुए हैं। जनता के लिए जनता के द्वारा जनता के शासन का स्वरूप साकार हुआ है।
सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री श्री लालसिंह आर्य ने कहा कि सरकार के ग्यारह वर्ष में खुशहाली, समानता और समरसता का वातावरण बना है। उन्होंने कर्मचारियों का आव्हान किया कि कभी भी ऐसा कोई भी कार्य नहीं करें जिससे आमजन का मन दु:खी हो।
मंत्रालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्री सुधीर नायक ने कहा कि सरकार के 11 वर्ष में कर्मचारियों को बिना माँगे मिलने लगा है। हर संवर्ग के कल्याण के कार्य हुए हैं। उन्होंने कहा कि संवाद सम्मेलन का आयोजन अब से प्रतिवर्ष दो दिवस का होगा। सम्मेलन के प्रथम दिवस कर्मचारियों के मध्य आपसी विचार-विमर्श होगा। दूसरे दिन मुख्यमंत्री के समक्ष उसे प्रस्तुत किया जायेगा। प्रांताध्यक्ष लिपिकवर्गीय कर्मचारी संघ श्री मनोज वाजपेयी ने भी संबोधित किया।
प्रारंभ में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने माँ नर्मदा और 11 कन्याओं का पूजन किया। वंदे-मातरम और मध्यप्रदेश गान का गायन सुश्री सुहासिनी जोशी और उनके दल ने किया। गढ़ाकोटा के लोक कलाकारों ने नर्मदा माँ की महिमा के लोकगीत बंबूलिया की प्रस्तुति दी। संचालन श्री सुभाष वर्मा ने किया।
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को संवर्गीय विसंगतियों पर उच्च-स्तरीय समिति का प्रतिवेदन सौंपा गया। इस अवसर पर खनिज विकास निगम के अध्यक्ष श्री शिव चौबे, राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री रमेश चंद्र शर्मा भी मौजूद थे।
          

विसंगती का निराकरण अब तक नहीं ज़िमेदार कौन ?-सियाराम पटेल

समस्त ज्येष्ठ श्रेष्ठ बुद्धीजीवी अपने आपको राष्ट्रनिर्माता या राष्ट्र का निर्माण करने वाले समस्त समूह के उन सभी नेतृत्वकर्ताओं व उनके सभी सहयोगियों को सादर वंदे।
हम कितना भी दम्भ भर लें कि मैंने ये करा दिया और वो दिया अपने समूह के लिए जिसका हम नेतृत्व कर रहे हैं, यदि समूह विशेष के लिए हमने सच्चे मन से लक्ष्य निर्धारित कर प्रयास किया है तो उस लक्ष्य विशेष के अनुरूप यदि परिणाम नही आये तो आज हम चुप क्यों और मूक दर्शक क्यों ?
शायद मेरी बात हो सकता है कुछ लोगों को पसंद न आये पर हम जिन लोगों के समर्थन के सहारे नेतृत्व करते यदि उनके भविष्य से जुड़े हुए किसी विशेष प्रयोजन को लेकर किये हुए संघर्ष का जब परिणाम आये और परिणाम भी ऐसा क़ि उस परिणाम का सही लाभ प्राप्त न हो उस स्थिति को में अर्थात सिक्स्थ पे अध्यापक संवर्ग का आर्डर 15 अक्टूबर 2016 को हुआ और उसके पालन को लेकर शासन द्वारा जारी टेबल के विरुद्ध जिला स्तर से वेतन तालिका जारी करने हेतु प्रयास करना पड़े और करा भी लें उसके बाद भी ऊहापोह की स्थिति निर्मित हो और शासन के आदेश का संपूर्ण प्रदेश में एकसमान पालन न होना या तो शासन की कार्यप्रणाली को दोषपूर्ण होना सिद्ध करता है या हमारे समस्त संघों के प्रान्त प्रमुख की कार्य प्रणाली को दोषपूर्ण सिद्ध करता है।
शासन द्वारा अध्यापक संवर्ग को प्रदत्त छटे वेतन की तालिका को जारी किये हुए डेढ़ माह हो गए और अभी भी संपूर्ण प्रदेश में समान रूप से वेतन फिक्सेशन नही हुआ तो इसके लिए जितना शासन दोषी उतना ही अध्यापक संवर्ग के समस्त संघों के प्रान्तीय अध्यक्ष भी उतने ही दोषी हैं क्योंकि किसी भी संघ विशेष के प्रांतीय नेतृत्व द्वारा डेढ़ माह की समयावधि उपरान्त भी आदेश के एकसमान वेतन फिक्सेशन में पालन न होने की स्थिति निर्मित होने पर भी कोई सकारात्मक प्रयास नही करना क्या प्रदर्शित करता है ?
आज अध्यापक संघर्ष समिति या किसी संघ विशेष के भरोषे प्रदेश के तीन लाख अध्यापक साथी के परिवार अपने भविष्य को लेकर आशान्वित है, पर जिस नेतृत्व के प्रति आज हम आशान्वित हैं और उसके द्वारा अपने संम्वर्ग के तीन लाख परिवारों के भविष्य को सुरक्षित करने हेतु कोई भी पहल न किया जाना प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
जागो साथियों जागो...
जितना दोषी शासन कही उससे ज्यादा दोषी हमारे भविष्य के निर्माता हमारे नेतृत्वकर्त्ता प्रान्त प्रमुख ही तो नही।
आपका साथी- सियाराम पटेल,
नरसिंहपुर
 

Saturday, November 26, 2016

अध्यापकों को छठवां वेतनमान दिया गया या अपमान -डी के सिंगौर

2009 में जब  प्रदेश के कई  लाख  अलग अलग केडर और  वेतनमान  वाले  कर्मचारियों  को छठवें  वेतनमान  का  लाभ दिया  गया  तो कही  भी किसी  भी जिले  या  ब्लाक  में  वेतन  निर्धारण  को  लेकर कोई   कमेटियां  नही बनीं और  न  ही  वेतन निर्धारण  को  लेकर इतनी  असमंजस की स्तिथि थी ....अध्यापक  जो  की  मात्र २ से २.५ लाख  की  संख्या  में  ही हैं और  ३ ही  कैडर  हैं  पर  इनके  वेतन  निर्धारन  को  लेकर  घमासान  मचा  हुआ  है ब्लाक  ब्लाक  और  जिले  स्तर पर ब्लाक  और  जिले  में  एकरूपता  के  साथ  वेतन  निर्धारण  को  लेकर  कमेटिया  बन  रही  हैं इतना  ही  नही  कई  कई  जिलो में  deo खुद  परम्परा से  हटकर वेतन निर्धारण  करके  भुगतान  हेतु  प्राचार्यो  को आदेशित  कर रहे  है  और मजे  की  बात  है कि उनका  वेतन  निर्धारण  पूरी  तरह  से  आदेश  की  भाषा  से हटकर  अपनी मर्जी  के  अनुसार है इतना  ही  नही  बावजूद  इसके  न  केवल  जिला  बल्कि एक  ही  ब्लाक  में  निर्धारण  के  अलग  अलग  फोर्मुले लग  रहे  हैं | रोज सोशल  मीडिया  में २-३ फिक्सेशन ये  कहकर  डाले  जा  रहे  हैं  ये  फँला जिले  का  fixaton  और  ये  फँला जिले  का  fixation ..इतना  ही  नही  साथ  ही  यह  भी  दावा  किया  जा  रहा  है  कि उनके  जिले  का  फिक्सेशन विसंगति रहित है | ये  जानते  हुए  भी  की  जारी  टेबल  के  मूल  आधार में  ही विसंगति  है फिर  भी  फिक्सेशन  हो  रहा  है  यहा  तक  कि फिक्सेशन का  कोई  फार्मूला  नही  होने  पर भी  फिक्सेशन का  काम  चल  रहा  है प्रदेश  के  सारे  संभागों के स्थानीय  निधि संपरीक्षक वेतन  निर्धारण के  सारे तरीकों को अमान्य कर रहे  हैं दिन  रात  फिक्सेशन  का ही   काम  करने  वाले  कोष  एवं  लेखा  के  अधिकारी  तक  इस  फिक्सेशन  आदेश  में खामियां बता रहे  हैं|  ताज्जुब  की  बात  हैं  कि इतने  सब  के  बाद  भी शासन  के कानों  में  जूं न  रेंगना ....सोची  समझी  चाल  ही  समझी  जा  सकती  है सरकार  के  साथ  साथ  अध्यापक  संगठनों की भूमिका भी  समझ  से  परे है प्रदेश  स्तर  पर एकरूपता  के  लिए  कोई  प्रयास  नही ...यहा  तक  कि किसी  एक  फोर्मुले  पर  सहमती  तक  नही ....कोई  हाथ  पर  हाथ  धरे  बैठा  है तो कोई  कहता  है  विसंगति  ही  नही  .... शासन  से  स्पष्टीकरण कराने  की  जगह खुद  स्पष्टीकरण देने  में  लगे  हुए  हैं | साल  भर  से  अपमान  का  सिलसिला  चल  रहा  है फिर  भी  सम्मान करना  याद  है  सरकार  और  संगठन में  सांठ  गांठ साफ़  नजर  आ  रही  है ..........  साफ़  कहें तो जान  बुझकर  ऐसा दिया  है कि लिया  ही  न  जा  सके | यह  अध्यापकों  को  छठवाँ वेतनमान  नही अपमान  हैं।(लेखक राज्य अध्यापक संघ मंडला  के जिलाध्यक्ष है ,और यह उनके निजी विचार हैं।)

Thursday, November 24, 2016

अध्यापक संवर्ग के साथ मध्यप्रदेश शासन द्वारा हुए भेदभाव का वृत्तांत एक नजर में-सियाराम पटेल


समस्त सम्मानीय साथियों
सादर वंन्दन।
1995 से कार्यरत शिक्षाकर्मी संम्वर्ग या माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 1995 में हुई भर्ती प्रक्रिया को अमान्य करने के उपरान्त  1998 से माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पुनः 1998 से कार्यरत शिक्षाकर्मी संम्वर्ग के तहत कार्यरत साथियों की नियुक्ति उपरान्त अपने हक़ की लड़ाई जब से प्रारम्भ हुई तब से एक ही मांग रही कि *समान कार्य का समान वेतन एवं शिक्षा विभाग में संविलियन* और इसी प्रमुख मांग को लेकर हम सतत संघर्षरत भी रहे।
संघर्ष के चलते हमें 2007 में बड़ी  किंतु अधूरी सफलता मिली कि शिक्षाकर्मी पदनाम बदलते हुए हमें शिक्षा विभाग में प्रदाय पाँचवे वेतन के स्केल -
सहायक शिक्षक - 4000-100-6000
शिक्षक-
5000-150-8000
व्यख्याता-
5500-175-9000 के स्थान पर
अध्यापक संम्वर्ग का गठन करते हुए
सहायक अध्यापक-
3000-100-5000
अध्यापक-
4000-125-6500
वरिष्ठ अध्यापक -
5000-175-9000
नवीन वेतनमान निर्धारित करते हुए अध्यापक संवर्ग में संविलियन कर
1998 से 2007 तक 09 वर्ष की सेवावधि की गणना कर प्रति 03 वर्ष की सेवावधि की गणना कर 750 से अधिक लाभ न हो को ध्यान में रखते हुए वर्गवार सेवावधि गणना अनुसार
सहायक अध्यापक को 03 वेतन  के हिसाब- 3300
अध्यापक को 03 वेतनवृद्धि के हिसाब से 4250
वरिष्ठ अध्यापक को 02 वेतनवृद्धि के हिसाब से 5350 पर फिक्स किया गया।
तदुपरान्त 2013 में 6थ पे के नाम पर शिक्षा विभाग के कर्मचारियों सहायक शिक्षक, शिक्षक एवं व्याख्याता को 2005- 2006 में लागू पाँचवे वेतन
सहायक शिक्षक - 4000-100-600
शिक्षक- 5000-150-8000
व्याख्याता - 5500 -175-9000 के तत्स्थानी मूलवेतन में 1.86 का गुणा कर +निर्धारित ग्रेड पे पर प्रचलित महंगाई भत्ता प्रदान कर 2006 से 6थ पे का निर्धारण कर  छटा वेतन प्रदाय करने के फार्मूले को छोड़ हमें हमारे तत्स्थानी मूल वेतन में 1.62 का गुणा कर प्राप्त होने वाले वर्गवार वेतन और सहायक शिक्षक , शिक्षक एवं व्याख्याता को प्राप्त 6थ पे के वेतन के अंतर की राशि को अंतरिम राहत की चार वार्षिक किस्तों के रूप में 2007 से 6थ पे लागु इस शर्त पर किया गया कि 2017 में अंतरिम राहत की किस्तों का समायोजन कर 2007 से गणना कर अध्यापक संवर्ग को छटा वेतन प्रदाय किया जाएगा।
2007 से इसीलिए अध्यापक संवर्ग का गठन 2007 में हुआ (नही तो 2006 से ही लागू होता)।
हमारे संघर्ष क़ि ये बहुत बड़ी किंतु अधूरी सफलता हमने प्राप्त की।
किंतु अब जब हमने अपने संघर्ष के बल पर 2016 में समान कार्य का समान वेतन की लड़ाई  जीत ली तो हमें वरिष्ठता अनुसार अर्थात
1998 (एवं2001, 2003 या इसके बाद वर्गवार नियुक्क्ति) प्राप्त साथियो के 2007 के वर्गवार तत्स्थानी मूल वेतन के 1.86 के गुणा अनुसार
सहायक अध्यापक - 3300x1.62=5350 यानि 8000+2400
अध्यापक - 4250x1.62= 6890 यानि 10070+3200
वरिष्ठ अध्यापक -
5300x1.62=8670 यानि 10890+3600  के अनुसार शुरुवात करते हुए 2007 से गणना करते हुए 6थ पे क्यों प्रदाय नही किया जा रहा है।
साथियों शासन द्वारा पुनः 2007, 2013 की तरह छलावा करते हुए हमें पुनः छलते हुए  अन्याय किया जा रहा है।
यदि हमें शासन वास्तव में समान कार्य का समान वेतन देना चाहता है तो 1998 के साथियों (सहित उसके पश्चात नियुक्त साथियों ) को   वर्गवार क्रमशः 2007 से छटे वेतन की गणना करते हुए 3 प्रतिशत वेतन वृद्धि के साथ  -
सहायक अध्यापक - 3300x1.62=5350 यानि 8000+2400
अध्यापक - 4250x1.62= 6890 यानि 10070+3200
वरिष्ठ अध्यापक -
8670x1.62 =10890+3600 कृमोन्नति प्राप्त वरिष्ठ अध्यापक को 4200 ग्रेड के साथ तत्स्थानी मूलवेतन पर वर्तमान महंगाई भत्ता सहित  प्रदान करेगा तो सही मायने में समान कार्य का समान वेतन की हमारी मांग पूरी होगी अन्यथा हम पूर्व की भाति ठगा महसूस करते रहेंगे चाहे कितना भी संघर्ष कर लें।
हमारे साथी कुछ जिलों में इस अनुसार फिक्सेशन जरूर करा रहे हैं पर जब तक वर्तमान जारी आदेश के तहत इस संबंध में मार्गदर्शन जारी नही होते हैं इस प्रकार के फिक्सेशन का कोई ओचित्य नही।
जागो साथियों जागो
आपका अपना साथी-
सियाराम पटेल
प्रदेश मीडिया प्रभारी
राज्य अध्यापक संघ म. प्र.

Tuesday, November 22, 2016

छत्तिसगढ़ में बिना परीक्षा शिक्षाकर्मी की पदोन्नति प्रधानपाठक और प्राचार्य के पद पर किये जाने का नियम बनाया गया ।

छत्तिसगढ़ प्राचार्य (पंचायत) और प्रधानपाठक (पंचायत) भर्ती और सेवा की शर्तें नियम 2013 का प्रारूप जारी किया गया है । 15 दिवस की दावे आपत्ति के बाद छत्तीसगढ़ में नियम लागू हो जाएंगे । यंहा बिना परीक्षा के पंचायत क्षेत्र में कार्यरत शिक्षाकर्मी  वर्ग 3 (सहायक शिक्षक पंचायत) शिक्षाकर्मी वर्ग 2 (शिक्षक पंचायत) और शिक्षाकर्मी वर्ग 1 (व्याख्याता पंचायत) को क्रमशः प्रधानपाठक प्राथमिक विद्यालय (पंचायत) ,प्रधान पाठक माध्यमिक विद्यालय(पंचायत) और प्राचार्य हाई स्कूल /हायरसेकेंडरी (पंचायत) के पद पर पदोन्नति प्रदान की जायेगी ।
          इस प्रकार पदोन्नति के लिए पंचायत अंतर्गत प्रधानपाठक और प्रचार्य के पद शासन स्तर से स्कुल शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा स्वरीकृत किये जायेंगे और पद स्वीकृति पश्चात नियुक्ति की कार्यवाही के लिए यह पद जिला पंचायत को सौंप दिए जाएंगे ।
       विदित रहे छत्तीसगढ़ में 2013 में राज्य शिक्षा सेवा का गठन किया गया था ।और विभिन्न पदों पर पदोन्नति के लिए  परीक्षा का प्रावधान किया गया था ।परंतु शिक्षाकर्मी संगठनों द्वारा इन नियमो के विरोध के बाद अब यह भर्ती और सेवा की शर्तें नियम बनाए गए है।इसमें  बिना परीक्षा के पात्र कर्मचारी को संबंधित पद पर नियुक्ति प्रदान की जायेगी ।
      इन नियामो में भी कुछ  कमियां रह गयी है , जैसे कि इस प्रकार पंचायत अंतर्गत नया कैडर बना कर शिक्षाकर्मियों को  संविलियन की मांग से दूर किया जा रहा है ।और इन पदों पर पदोन्नति नहीं कर के भर्ती की जा रही है। आहर्ताधारी पद पर न्यूनतम 8 वर्ष का अनुभव अनिवार्य है साथ ही नियुक्ति दिनाक से 13 वर्ष का  कार्यकाल आवश्यक है ।इस कारण संगठनों द्वारा भी इन नियमो पर भी कुछ  अपत्ति जताई गई है।
पोस्ट के साथ अधिसूचना के प्रारूप का पहला और अंतीम पेज आपके अवलोकन के लिए भेजा जा रहा है ।


Monday, November 21, 2016

फिर याचक की मुद्रा में लौटा अध्यापक....रिजवान खान बैतूल

         रिजवान खान- माह सितम्बर से लेकर अक्टूबर की शहडोल रैली तक प्रदेश भर में खम ठोककर सीना ताने घूमने वाला अपने अधिकारो के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार शासन की आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने का जस्बा रखने वाला अध्यापक आज फिर निरुत्साहित मनोबल हीन होकर याचक की मुद्रा में नज़र आता है.
           विगत वर्ष के घटनाक्रम पर दृष्टि डाले तो उसकी इस स्तिथि का कारण और निदान दोनों सामने आते है. पहले अध्यापक ने अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे विभिन्न संघो के आंदोलनों को बुरी तरह खारिज कर एकता के लिए मजबूर किया. यह आम अध्यापक का ही व्यापक दबाव था जो सभी संघ चाहे अनचाहे एक संघर्ष समिति के बैनर तले इकट्ठे हुए. इससे उत्साहित आम अध्यापक ने समिति को केवल एक माह में सफलता की वो बुलन्दियों पर पहुंचा दिया जिसका सपना सालो से संघर्षरत संघ और नेता देखते रहते है.शहडोल रैली का दबाव ऐसा बना की 24 घण्टे में गणना पत्रक जारी हो गए.
        
          इसी बिंदु पर आकर अध्यापको की आपार भीड़ और जोश को राजनैतिक लाभ के लिए भुनाने के आतुर तथाकथित लोगो ने जल्दबाजी में ऐसा मूर्खतापूर्ण कदम उठा लिया जिसकी भरपाई निकट भविष्य में सम्भव नही दिखती. अपने कृत्यों को सही साबित करने के लिए ऐसे तर्क वितर्क दिए गए जिससे अध्यापकओ की विराट एकता जो जाती धर्म वर्ग के परे सदैव रही है उसको भी छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया गया.
          आज आम अध्यापक ठगे जाने के अहसास से भरा अपने हितो के नाप पर हो रही उछलकूद को देखकर अचंभित है. सुदूर गाँवो में आम अध्यापक अलग अलग प्रकार के वेतन निर्धारण के बीच कभी डीईओ से निर्धारण समिति बनाने के लिए तो कभी बाबू से अपने क्रमोन्नति पदोन्नति की सही गणना के लिए तो कभी संकुल प्राचार्य के सामने बाबुओ की शिकायत लेकर याचक की मुद्रा में खड़ा है. जिनपर उसने विशवास किया वो या तो चुपचाप हो गए है या उलटी सीधी बचकाना बाते करके उसके दुःख को और अधिक बढ़ा ही रहे है. आगे कुछ भी सार्थक होने की

उम्मीद नज़र नही आती............
अध्यापक आंदोलन अपने अवसान की ओर बढ़ रहा है...........

                                                                                     

Saturday, November 19, 2016

नोट बंदी, क्या क्या सावधानियां बरते ग्रामीणों की सहायता किस प्रकार करें - सुरेश यादव रतलाम

सुरेश यादव रतलाम :- सम्माननीय साथियो देश में 500 और 1000 के नोट बंद करने का निर्णय एक बहुत बडा निर्णय है । इसके चलते देश का संचालन अभी केवल 14 प्रतिशत नगदी पर हो रहा है ।यह आर्थिक संक्रमण काल है । इन परिस्थीतियो में आज कई लोग परेशानियों का सामना कर रहे हैं ।
देश में 7 प्रतिशत परिवार में सरकारी खजाने से और 16 प्रतिशत परिवारों में निजी क्षेत्र से मासिक या नियमित आय होती है । इसके अतिरिक्त सभी 77 प्रतिशत परिवार  के पास नियमित आय का कोई जरिया नहीं है। कहने का आशय है की उनकी आय बाजार और कृषि पर निर्भर है । हमारे देश में केवल 60 प्रतिशत लोगो के पास ही बैंक खाता है ।इस नॉट बंदी का देश की समाजव्यवस्था  और अर्थशास्त्र  पर बहुत गहरा  प्रभाव पड़ेगा आप समाचार पत्रों में देख ही रहे होंगे ।लेकिन यह अलग विषय है ।
   हम शिक्षक हैं और हमारी गाँव गाँव तक पहुंच है ।हम इन परिस्थितियो में ग्रामीणों की किस प्रकार सहायता  सकते हैं  और हमे क्या क्या  सावधानियां बरतनी हैं । में यहाँ इस पॉस्ट के माध्यम से कहना चाहता हूँ ।
सर्वप्रथम एक सामान्य जानकारी यह है कि वित्त वर्ष 2016-17 में टेक्स छूट की सीमा 2 लाख 50 हजार है और टेक्स रिबिट 50 हजार। भारत में 2 रूपये से अधिक की मुद्रा लीगल टेंडर होती है ।इसका आशय है कि रिजर्व बैंक का गवर्नर हमे एक कागज को रुपए के रूप में सौंपता है ।

1 सर्वविदित है कि 8 नवम्बर 2016 की मध्यरात्रि से 500 और 1000 के पुराने नॉट लीगल टेंडर नहीं रहे हैं। बस कुछ स्थानों जैसे ,बस अड्डो, रेल्वे स्टेशन,सरकारी अस्पतालों ,दवाई की दुकानों ,बिजली पानी के बिल जमा करने,और पेट्रोल पम्प व गैस बुकिंग के स्थानों पर ही इनके उपयोग या इनके आधार पर भुगतान की सुविधा प्रदान की गयी है ।इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर इनके आधार पर लेंन देंन गैर कानुनी हो गया है । इस लिए अब पुराने नोट का लेन देन न करें।

2 सामान्य रूप से देखा जाता है कि ,एक छोटे परिवार में 10-15 हजार नगदी रहती है ।और एक बड़े परिवार में 40-50 हजार नगदी रहती है । वंही गृहणियों के पास या बच्चो के पास भी अपनी अपनी बचत का पैसा होता है ।लेकिन एक गृहणी (इसमें महिला कर्मचारी - अधिकारी नहीं आती)को अपने खाते में 2 लाख 50 हजार के पुराने नोट जमा करने पर आयकर विभाग की पूछताछ से मुक्ति प्रदान की गयी है अब समाचार मिला है की उनसे भी पूछताछ संभव है । नाबालिग बच्चो के खाते में जमा पैसा पालक की आय ही माना जाता है ।याद रहे 50 हजार और उस से बड़े हर लेन देन की जानकारी आयकर विभाग को पहुंचाई जाती है। आप घर में उपलब्ध पुराने नॉट को एक मुश्त ही अपने खातों में जमा कराएं बार बार बैंक में न जमा कराएं क्योकि 8 नवंबर के बाद  पुराने नॉट का लेनदेन बंद हो गया है ।इस प्रकार बैंकों में भीड़ न बढ़ाये।

3 अपने घर के  सोने के जेवर किसी लालच में आकर न बेचें । यह आप के आजीवन परिश्रम से अर्जित कि गयी सम्पत्ती है ।कुछ पैसो का लालच हमारी वर्षो की मेहनत पर पानी फेर सकता है ।

4 देखने में आ रहा है कि ग्रामीण इस नॉटबंदी के कारण ठगी का शिकार हो रहे हैं ।हम उन्हें सही जानकारियां दे कर इस ठगी के प्रति सचेत करें और बताएं कि आप किसी भी प्रकार से अपने जनधन खातों का दुरूपयोग न होने देवे और मुद्रा की खरीदी बिक्री से बचें ।

5 अब बैको में बिना जमा किये  ,2000 के पुराने नॉट बदले जा सकेंगे ।और वह भी एक व्यक्ति के एक बार इस लिए कृपया बार बार लाइन में न लगें ।खाता होने पर एक ही बार में पैसा अपने खातों में जमा कर देवे।

6 हम में से कई साथी कृषक  है और ,हंमारेे विद्यार्थी भी कृषक परिवार से होते हैं।कृषक अपने
kcc के पैसे एक मुश्त जमा कर सकते हैं।

7 किसी लालच में आकर अपने और अपने परिवार के खातों का दुरुयोग न होने देवें। यह अपराध की श्रेणी में आता है । अंतोगत्वा जवाब उसे ही देना हैं जिसका बैंक खाता है ।

8 यदी आपने 8 नवम्बर के पहले जमींन का कोई सौदा किया हो या ।कोई रकम उधार दी है या उधार ली है तो उसके दस्तावेज सुरक्षित रखें । ऐसे में आप पैसा जमा करते है तो आयकर विभाग की जानकारी मे आने पर आपसे जवाब तलब हो सकता हैं।कृपया नगदी से संबंधित सभी दस्तावेज पूर्ण और सुरक्षित रखें।

9 हम नोकरी पेशा है हमारी आय सिमित और निश्चित है ।इस लिए अपने खातों का संचालन सोच समझ कर ही करें ।

10 कृपया छोटे नोट को लगातार बाजार में चलाएं उनको जमा करके न रखें।

यह सूचना भी आम जन तक पहुंचायें की 500-1000 के पुराने नॉट बैंकों में जमा करने की सीमा 31 मार्च तक है ।

 एक कृषक kcc से सप्ताह में 25 हजार रूपये निकाल सकता है, बचत खाता धारक 20 हजार रूपये और चालू खाते से 50 हजार रूपये निकाले जा सकते हैं। किसी के घर में शादी है तो ,शादी का कार्ड दिखाकर माता पिता के बचत खातों से 2 लाख 50 रूपये तक निकाले जा सकतें हैं।
स्ममाननिय साथियो मैंने इस लेख की भूमिका में ही कहा था कि यह संक्रमण काल है और इसमें हमारे धैर्य की परीक्षा होनी है ।इस लिए  कृपया धीरज बनाये रखें ,ग्रामीणों तक सही सूचनाएं और जानकारी पहुँचाते रहें। शिक्षक की समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है । इस महत्वपूर्ण काल में अपने कर्तव्य का पालन करने से न चुकें।लोग निश्चित रूप से आप को दुवाएँ देगे।
धन्यवाद ।

Thursday, November 17, 2016

32 जिले में अध्यापको का वेतन निर्धारण नही हो पाया है !

भोपाल। ब्यूरो। भोपाल सहित प्रदेश के 32 जिलों में अध्यापकों को अक्टूबर महीने का वेतन 6वें वेतनमान के हिसाब से नहीं मिल पाया है। वजह है नई गणना के आधार पर बाबुओं द्वारा बिल न बना पाना। शासन ने 15 अक्टूबर को गणना पत्रक जारी करते हुए चालू माह से वेतनमान देने के आदेश जारी किए थे।

डेढ़ साल चले आंदोलन के बाद अध्यापकों को सरकार ने उनकी मांग के मुताबिक वेतनमान तो दिया, लेकिन उसका फायदा अभी तक नहीं मिल सका है। संकुल केंद्रों में आहरण संवितरण अधिकारी (डीडीओ) और बाबू वेतन की गणना नहीं कर पा रहे हैं, जिससे वेतन बिल बनने में देरी हो रही है। अक्टूबर में प्रदेश के महज 20 फीसदी अध्यापकों को छठवें वेतनमान का नकद लाभ मिला है, जबकि शेष को पहले जितना वेतन मिला है। प्रदेश में कुल दो लाख 84 हजार अध्यापक हैं।

ये आ रही दिक्कत

लिपिक बताते हैं कि गणना पत्रक में वेतन निर्धारण के टेबल स्पष्ट हैं, लेकिन जो अध्यापक क्रमोन्न्ति का लाभ ले चुके हैं, उनका क्या करना है, यह स्पष्ट नहीं हैं। एक संकुल में 50 से 125 तक अध्यापक हैं। जबकि लिपिक एक। उसे अध्यापकों का वेतन निर्धारित करना है और नियमित कर्मचारियों के वेतन बिल भी बनाना है। इसलिए दिक्कत हो रही है।

पत्रक में स्थिति स्पष्ट

राज्य शासन ने 15 अक्टूबर को अध्यापकों का वेतन गणना पत्रक जारी किया है। इसमें स्थिति स्पष्ट है। शासन ने पांचवें और छठवें वेतनमान का तुलनात्मक चार्ट दिया है। लिपिकों को वर्तमान मूलवेतन के सामने की तालिका में दर्शाए नए वेतन के हिसाब से वेतन की गणना करनी है। जैसे-सहायक अध्यापक का पांचवें वेतनमान में 4860 वेतन बैंड, 1250 संवर्ग वेतन था।

अब इस अध्यापक को 7440 वेतन बैंड और 2400 रुपए ग्रेड-पे दी जाना है। इसमें 125 फीसदी डीए जुड़कर वेतन तैयार किया जाता है। लोक शिक्षण के अपर संचालक वित्त मनोज श्रीवास्तव बताते हैं कि क्रमोन्नत या पदोन्नत हो चुके अध्यापकों को लेकर कहीं कोई दिक्कत है, तो लिपिक वरिष्ठ अधिकारी से बात करें।

इन जिलों में नहीं मिला नया वेतनमान

भोपाल, शहडोल, दमोह, सागर, रीवा, रायसेन, विदिशा, राजगढ़, जबलपुर, सतना, सीधी सहित 32 जिलों में अध्यापकों के वेतन की गणना में दिक्कत हो रही है। हालांकि इनमें से कुछ जिलों में एक-दो संकुल केंद्रों ने गणना कर वेतन बिल बना दिए हैं, लेकिन शेष में गणना ही नहीं हुई है। सूत्र बताते हैं कि इस मामले में लिपिक काम से बचने की कोशिश भी कर पाए हैं। 

वेतन निर्द्धारण के स्थान पर ,वेतन विसंगती दूर करने पर ध्यान दें -डी के सिंगौर

अध्यापक मेटर....अध्यापकों की एकता के चलते गणना पत्रक जारी हुआ यदि जल्दबाजी न दिखाकर एकता बनाये रखी जाती तो गणना पत्रक में अब तक सुधार भी हो चुका होता अफसोस एक अंधे गणना पत्रक में सभी आँखे फोड़ रहे हैं पर उसमे सुधार हेतु कोई प्रयास नहीँ किया जा रहा है वेतन निर्धारण करने से ज्यादा जोर उसकी विसंगतियों को दूर कराने में लगाना चाहिये
समस्या का हल आदेश में एक संशोधन से निकल सकता  है कि "कि छठवें वेतनमान की कल्पनिक गणना 2007 से करते हुए उसका निर्धारण 1-1-16 को किया जाये " आदेश में 2007 से वेतनमान की गणना न होकर सेवा अवधि की गणना हो रही है एक ओर मजे की बात लोग 2013 की I R की विसंगति का हवाला देकर इस आदेश की विसंगति कि बात करने पर मुँह बँद कराते है उस समय की विसंगति को दूर कराने क्या हुआ क्या नहीँ हुआ ये उससे जुड़े लोग जानते है पर अब जो विसंगति सामने है उसके सामने क्यों आँखे मुदां जा रहा है समझ से परे है पूरा जोर विसंगति से परिपूर्ण गणना पत्रक से वेतन लेने में लगाया जा रहा है पर उसमे सुधार कि तरफ़ किसी का ध्यान नहीँ है....प्रांतीय निकाय को इस पर ध्यान देना चाहिये लिखा सिर्फ इसलिये कि कोई पहल हो....अब पहल चाहे जो करे ।

Tuesday, November 15, 2016

अध्यापक स्थान्तरण ( संविलियन ) निति तैयार

पुरुष अध्यापकों के नियुक्ति के 18 साल बाद तबादले (अंतर निकाय संविलियन) तो होंगे, लेकिन उनकी शहरी क्षेत्रों में पोस्टिंग नहीं होगी। राज्य सरकार ने तबादला नीति में ये शर्त जोड़ दी है। हालांकि अध्यापक शहरी क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्रों में जा सकेंगे, पर ग्रामीण से शहर नहीं भेजे जाएंगे ( 2012 से ग्रामीण क्षेत्रों के अध्यापक नगरीय क्षेत्रो में नहीं आ सकते हैं ) इसी तरह शहर से शहर के लिए तबादला नहीं होगा। नीति का प्रारूप तैयार हो चुका है, जो अनुमोदन के लिए स्कूल शिक्षामंत्री को भेजा गया है। दिसंबर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसे घोषित कर सकते हैं।

सरकार अब तक महिला और विकलांग अध्यापकों के तबादले उनकी मांग पर करती रही है। पहली बार प्रशासनिक आधार पर तबादले की नीति बनाई गई है। तबादला नीति में अध्यापक संवर्ग में पांच साल की सेवा पूरी करने वाले अध्यापकों के तबादले का प्रावधान है,वर्ष 2008  में स्वेछिक आधार पर संविलियन हुआ था ।

यानी जो संविदा शिक्षक तीन-चार साल पहले अध्यापक संवर्ग में आए हैं, उन्हें तबादले के लिए इंतजार करना पड़ेगा। सरकार ने महिला, विकलांग और गंभीर बीमारियों से पीड़ित अध्यापकों को इस शर्त से बाहर रखा है। स्कूल शिक्षा विभाग ने नगरीय प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को प्रस्ताव भेजा था। इसमें से नगरीय प्रशासन की सहमति मिल गई है।

विषय के रिक्त पदों पर होंगे तबादले

तबादले में विषय का भी ध्यान रखा जाएगा। जैसे गणित विषय के अध्यापक का तबादला संबंधित स्कूल में तभी होगा, जब वहां गणित के शिक्षक का पद खाली होगा। अध्यापक को दूसरे पद के विरुद्ध आवेदन की पात्रता नहीं रहेगी।

ऑनलाइन करना होंगे आवेदन

अध्यापकों को तबादले के लिए आवेदन ऑनलाइन करना होंगे। इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग के पास सॉफ्टवेयर पहले से मौजूद है। अब तक इसके माध्यम से सिर्फ महिला और विकलांग अध्यापकों के तबादले के आवेदन आते थे। इसमें पुरुष अध्यापकों का विकल्प जोड़ा जा रहा है।

18 साल का इंतजार

अध्यापकों को 18 साल से तबादला नीति का इंतजार है। राज्य सरकार ने वर्ष 1998 में पहली बार शिक्षाकर्मी की भर्ती की थी। तब जिसे जहां जगह मिली, भर्ती हो गया। ये कर्मचारी अब पारिवारिक कारणों से अपने जिले में लौटना चाहते हैं। पिछले 10 साल से यह मांग चल रही है। इसके पहले स्वेछिक आधार पर संविलियन होते थे। 

‘शिक्षा की गुणवत्ता के लिए आज भी प्रासंगिक है गिजुभाई के विचार’’ - हीरालाल देवड़ा, शिक्षक (शिक्षाशास्त्री श्री गिजुभाई की जयंती 15 नवम्बर के अवसर पर)


च्चों को देवता मानने वाले शिक्षाशास्त्री श्री गिजुभाई
की जयंती (15 नवम्बर) के अवसर पर सादर नमन ...!!!
(15 नवम्बर 1885 - 23 जून 1939)
गिजुभाई बधेका अर्थात भारतीय शिक्षा को समर्पित एक ऐसा नाम, जिसने अपने काम से अपने  संकल्प को सार्थक किया। गिजुभाई बधेका महान शिक्षाशास्त्री थे। उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका था। अपने प्रयोगों और अनुभव के आधार पर उन्होंने निश्चय किया था कि बच्चों के सही विकास के लिए, उन्हें देश का उत्तम नागरिक बनाने के लिए, किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए। गिजुभाई  प्रत्येक बच्चे की स्वभाविक अच्छाई में गहरा विश्वास करते थे. इसका श्रेय रूसो के प्रभाव को जाता है। रूसो की तरह गिजुभाई भी मानते हैं कि सीखने का प्रमुख सिद्धांत खेल है। बच्चों का जीवन पढ़ाई से बोझिल नहीं होना चाहिए जो उनके लिए अरुचिकर और महत्वहीन है। स्वतंत्रता के माहौल में ही बच्चों की आंतरिक क्षमताओं का स्वतःस्फूर्त विकास संभव हो सकता है। उनको लगता था कि बच्चों को कभी दण्डित नहीं किया जाना चाहिए।
भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66 यह कहता है कि भारत का भविष्य उसकी शालाओं की कक्षाओं में आकार ले रहा है, तो हमें यह सोचना होगा कि वह भविष्य क्या है, कौन है और कक्षाओं में कैसे आकार ले रहा है ? वर्तमान में देश के स्कूलों की जो हालत है उसको देखकर गिजूभाई की आत्मा खुश तो नहीं होगी। सवाल है कि उनके सपने को कैसे पूरा किया जाए ? उन्होंने अपने जीवन में बच्चों के लिए जो किया वह अभूतपूर्व था। गांधीजी ने उनसे खुद कहा देखो मैं तो बच्चों के साथ इतना काम नहीं कर पाया, जितना तुमने किया।
‘‘शिक्षा में गुणवत्ता होनी चाहिए’’ यह बात आज बार-बार दोहराई जा रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब ऐसी शिक्षा है जो हर बच्चे के काम आये। इसके साथ ही हर बच्चे की क्षमताओं के संपूर्ण विकास में समान रूप से उपयोगी हो। बेहतर शिक्षा हर बच्चे की वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखती है। यह हर बच्चे को विभिन्न गतिविधियों, खेल और प्रोजेक्ट वर्क के माध्यम से सीखने का मौका देने वाली भी होती है।
एक सामान्य से सरकारी स्कूल में गिजुभाई ने जो नवाचार प्रारंभ किया था, वही तो आनंददायी बाल-केंद्रित शिक्षा है। शिक्षा परिवर्तन की सबसे अधिक प्रभावशाली प्रक्रिया है। गिजुभाई कोई नियमित शिक्षक नहीं थे और न उन्होंने शिक्षा का कोई प्रशिक्षण लिया था। गिजूभाई पेशे से तो वकील थे और गांधी जी की तरह कुछ वर्ष दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहे। वहां से वापस आने के बाद वह बंबई के हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। उसी समय उनके बेटे नरेंद्र भाई का जन्म हुआ और उसके  लालन-पालन के लिए वह शिक्षा साहित्य का अध्ययन करने लगे। उस समय 1910-15 में उन्होंने मांटेसरी का बहुत गहन अध्ययन किया और दक्षिणमूर्ति बाल मंदिर (गुजरात) में 20 साल तक बच्चों के साथ में प्रयोग किए। शिक्षक नहीं होते हुए भी उन्होंने अपने प्रयोगों से सभी को चकित किया और शिक्षण एवं शिक्षक दोनों को ही एक नई पहचान दी।
ब्रिटिश भारत में शिक्षा का स्वदेशी और पारंपरिक मॉडल लगभग लुप्त हो चुका था। अंग्रेजी प्रणाली के स्कूल जगह-जगह कायम हो गए थे और शिक्षक सरकारी नौकर के रूप में स्कूलों में शिक्षण कार्य करते थे। बहुत अधिक अंतर नहीं था उस समय के उन स्कूलों में जहाँ, गिजुभाई ने अपने प्रयोग और नवाचार किए थे और आज के उन स्कूलों में जो आज भी वैसे ही हैं जैसे गिजुभाई के जमाने के स्कूल थे। गिजुभाई के समक्ष स्कूल का कोई ऐसा मॉडल या आदर्श नहीं था, जिसे वे अपना लेते। गिजुभाई के समक्ष था एक छोटे से कस्बे का वह सरकारी स्कूल, जिसका भवन न भव्य था, न आकर्षक, न बच्चों के आनंद और किलकारी से गूंजती जगह। जिस स्कूल में गिजुभाई ने मास्टर लक्ष्मीशंकर के रूप में एक प्रयोगी शिक्षक की परिकल्पना की थी, वह स्कूल उदासीनता और उदासी की छाया से ग्रस्त था। । पूरी तरह नीरस स्कूल, जिसमें मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ कृति बालक जीवन-निर्माण के संस्कार और व्यवहार सीखने आते थे।
गिजुभाई ने स्कूल के तत्कालीन रूपक को उसकी जड़ता और गतिहीनता से मुक्त किया। प्राथमिक शिक्षा में आनन्द की नई वर्णमाला रची, बाल-गौरव की नई प्रणाली रची और शैक्षिक नवाचारों की वह दिशा एवं दृष्टि रची, जो आज भी प्रासंगिक एवं सार्थक है। एक व्यक्ति जो शिक्षक नहीं था, उसने स्वतंत्र किया था स्कूल को, उसकी  जड़ता और गतिहीनता से, उसने मुक्त किया था, और बच्चों को स्कूल के  भय से। गिजुभाई से पहले यह किसी ने सोचा भी नहीं था। बच्चे गिजुभाई के लिए बालदेवता थे । गाँधी जी और गिजुभाई दोनों वकील थे, मगर एक ने राष्ट्र की स्वतंत्रता की वकालत की, तो दूसरे ने शिक्षा की वकालत की। गिजूभाई की लंबी-लंबी मूछें थीं, महात्मा गांधी ने उनको मूँछ वाली माँ की उपाधि दी क्यूंकि उनमें बच्चों के प्रति माँ जैसी असीम ममता थी।
गिजुभाई बधेका की पुस्तक ‘दिवास्वप्न’ को शैक्षिक प्रयोगों की एक कालजयी पुस्तक है जिसमें प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए प्रयोगों का संकलन है। इस किताब ने शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े कई लोगों को प्रेरित किया है। गिजूभाई बधेका ने 20वीं शताब्दी के पहले दशकों में शिक्षा क्षेत्र में जो  प्रयोग किए, गंणवत्तापूर्ण षिक्षा हेतु हमें आज भी उसी दिषा में  चलते रहना होगा। गिजूभाई चाहते थे शिक्षा को बाल केंद्रित होने की आवश्यकता है। बदलते समय में हमारे भी लक्ष्य वहीं हैं, जो गिजुभाई के थे। ‘दिवास्वप्न’ यानि दिन में सपने देखना बहुत कठिन काम होता है उन्होंने दिन में सपने देखने की कोशिश की और एक असंभव लगने वाले काम को संभव बनाया।
गिजूभाई बधेका ने बच्चों को केंद्र में रखा। बच्चे को आनंद आता है या नहीं आता है, उनके लिए  यही मुख्य बात थी। बच्चों के आनंद के लिए उन्होंने कई प्रयोग किए, वो हारे नहीं और प्रयोग करते रहे। बच्चे सीखें, बच्चे करें, बच्चे खेलें, गिजूभाई का बच्चों के प्रति इतना लगाव था कि वह बच्चों को देवता मानते थे। आज शिक्षक यह सोचते हैं कि हमारा काम तो केवल पाठ्यपुस्तक से है। बच्चे के खुश होने या न होने या स्वच्छ होने या अस्वच्छ होने से हमारा क्या संबंध है ? लेकिन गिजूभाई ने इस नजरिये को  बदल दिया और बताया कि बच्चे का स्वस्थ और प्रसन्न रहना शिक्षा का पहला कदम है तथा इसमें शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण एवं विस्तृत है। गिजूभाई के समय गुजरात के अंदर बच्चों की बहुत ज्यादा पिटाई होती थी। ऐसा समझा जाता था कि जब तक छड़ी से मारोगे नहीं तब तक बच्चे सीखेंगे नहीं। गिजूभाई ने माता-पिता और शिक्षकों के लिए कई किताबें लिखीं और इस दृष्टि में बदलाव लाये। बच्चों के प्रति उनके भीतर समर्पण का भाव था। उनका दिल बच्चों जैसा था।
उन्होंने देखा होगा कि हमारी जो पूरी शिक्षा पद्धति थी वह बहुत ज्यादा रटंत पद्धति पर आधारित है। परीक्षा है, हाजिरी है, रचना है ये सब एक तरह के प्रतीक हैं। हमारे दिल में श्रद्धा हो या न हो, हम प्रतीकों का बहुत ध्यान रखते हैं जो कि पाखंड है। शिक्षा में आजकल प्रतीकों के ऊपर ज्यादा ध्यान है, इनका सीखने-सिखाने से कोई लेना-देना नहीं है। गिजूभाई की पुस्तक ‘दिवास्वप्न’ के प्रत्येक प्रयोग को हमारे स्कूलों में अपनाया जाए तो हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत सुधार आएगा, क्योंकि उससे गुजरे हुए विद्यार्थी अलग तरह के होंगे। उनकी सोच अलग तरह की होगी। उनका विकास अलग तरह का होगा । गिजुभाई के विचार समय से बहुत आगे थे. वे बहुत आगे की सोच रहे थे।
उनकी माने तो बच्चों को आज भी चर्चाओं के माध्यम से अपनी बात कहने और ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में भागीदारी का मौका देना चाहिए। इस प्रकार संचालित होने वाली कक्षाओं में गतिविधियों और विषयवस्तु में एक विविधता होगी।  हर बच्चे को साथ-साथ सीखने के अतिरिक्त खुद के प्रयास से भी सीखने का पर्याप्त मौका मिलेगा  और  बच्चों का आत्मविश्वास बढेगा। इस तरह  बच्चों को भी पूरा सम्मान मिलता है। गांधी ने कहा बहुत लेकिन गांधी ने कार्य दूसरे को सौंपा, गिजूभाई ने कहा कि नहीं मैं तो जिनके लिए बात कह रहा हूँ सीधा उनके पास जाऊंगा, तो वह पहले व्यक्ति थे जो स्वयं बच्चों में चले गए।
आज शिक्षा की गुणवत्ता के लिए हमें भी अपने बच्चों को समझना चाहिए। बच्चे ही देश हैं यह मान लें तो गिजूभाई सार्थक हो जाएंगे। गिजूभाई आज भी प्रासंगिक है। उनके जैसे संवेदनशील अध्यापकों की आवश्यकता हमारे समाज में आज भी है।
---०००---
हीरालाल देवड़ा, (शिक्षक)
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बडवानी,
(डाइट) जिला बडवानी मध्यप्रदेश.
9893844571
9617024140

अजीत पाल यादव ( महामंत्री ) आजाद अध्यापक संघ का अपने पदाधिकारियो के नाम खुला पत्र

प्रति,
समस्त जिला अध्यक्ष व प्रांतीय पदाधिकारी
आजाद अध्यापक संघ (म.प्र)
सादर वंदे,
        आपसे कुछ बातों पर सार्वजनिक चर्चा करना आवश्यक हो गया है ।  जैसा की विदित है की एकजुटता के दबा व और सटीक रणनीति के परिणाम स्वरूप 10 माह से लंबित गणना पत्रक जारी हुआ । इसके उपरांत भी अभी पूरी तरह से मामला नहीं निपटा है । शासन की मंशा ठीक नहीं लगती ।
       आजाद अध्यापक संघ के रजिस्ट्रेशन के पूर्व कुछ चंद साथियों द्वारा सोशल मीडिया पर अध्यापक कोर कमेटी के नाम से सभी संघों को एकजुट करने का प्रयास किया । पर असफल रहे । तदुपरांत 2015 का आंदोलन आजाद अध्यापक संघ द्वारा आरंभ किया गया । जिसको बात में सभी संघों द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ । इस आंदोलन को खड़ा करने में आस के भाई भरत पटेल और महासचिव जावेद खान की जी तोड़ मेहनत रही जिसको किसी भी कीमत पर भुलाया नहीं जा सकता । मैं व्यक्तिगत तौर पर दोनों को प्रणाम करता हूँ ।
सितंबर के आंदोलन के दौरान अस्पताल में भर्ती भरत भाई ने ही मुझसे कहा था कि सभी संघों को बुला लो हम मिलकर लडेंगे, वर्ना अकेले रह जाएंगे । भरत भाई की मंशा का सम्मान करते हुए सभी का आव्हान किया और सभी आंदोलन में कूद गए । मैं सभी का धन्यवाद देता हूँ, खासतौर पर ब्रजेश शर्मा जी और दिग्विजय  सिंह चौहान जी का  जिन्होंने मेरी एक बात पर खुला एलान किया था ।
            बाद में कुछ परिस्थितियों के चलते एकता विघटित हुई । इसके बाद फिर भरत भाई के ही कहने पर संघर्ष समिति के लिए प्रयास किया और एकजुटता कायम की । जैसा की संघर्ष समिति की मीटिंग में तय हुआ था की संविलियन के पहले टूटना और झुकना नहीं है, फिर आखिर क्यों अलग जाकर सम्मान किया गया? 

 कुछ प्रश्न हैं जिनपर आप चिंतन करना :-
(1) क्या संघर्ष समिति का हिस्सा रहते हुए आजाद अध्यापक संघ को अलग जाकर सम्मान समारोह का हिस्सा बनना चाहिए था?
(2) क्या बार बार एकजुटता कायम करके अलग जाना, अन्य संघों के साथ धोखा नहीं?
(3) क्या ये सम्मान केवल आजाद अध्यापक संघ द्वारा था?  था तो आमंत्रण तो सबको मिला था ।
(4) यदि सब आमंत्रित थे तो केवल आजाद अध्यापक संघ का कार्यक्रम कहकर क्यों प्रचारित किया गया?
(5) कार्यक्रम के पूर्व काफी आश्वासन दिए गए, पर मिला क्या?
(6) क्या आपको लगता है की बिना संघर्ष और एकजुटता के कुछ प्राप्त किया जा सकता है?
(7) क्या आपको लगता है का इन परिस्थितियों में आजाद अध्यापक संघ अकेले विरोध की रणनीति पर चलकर संघर्ष कर सकता है?
(8) क्या आपको लगता है की हम संपूर्ण अधिकार प्राप्त कर चुके हैं?
(9) क्या आपको लगता है की हम व्यक्तिवादी सोच के हो गए हैं?
(10) क्या आपको लगता है की व्यक्तिपूजा करके हम अधिकार प्राप्त कर लेंगे?
सभी साथियों से निवेदन है की समीक्षा और चिंतन करें । हमें एकजुटता पर कायम रहना होगा ।
अजीत पाल यादव   ( महामंत्री ) आजाद अध्यापक संघ

Saturday, November 12, 2016

सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक का वेतन गलत क्यों ? RTI की कोपी देखें -सुरेश यादव (रतलाम)

       मेरे द्वारा  लगतार यह बात कही जाती रही है कि ,सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक को गलत वेतन प्रदान किया गया है ।और 1998 वाले साथियो को 2-2 वेतन वृद्धि का लाभ मिलना चाहिये ।

उसके पीछे  कुछ कारण हैं ,

पहला यह की सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक को  1 जनवरी 16 में वह वेतन प्रदान किया गया है,जो सहायक शिक्षक और व्यख्याता को 1 जनवरी 2006 को प्रदान किया गया था ।
अर्थात  4000,4100,4200 और 5500,5675,5850 वेतन मान प्रदान कर के उसमे 1.86 का गुणा किया गया। और 10 स्टेप तय की गयी।

दूसरा अध्यापक को 9300+3200 प्रदान कर  हर स्टेप पर मूल वेतन और ग्रेड पे को जोड़ कर 3 प्रतिशत वेतन वृद्धि प्रदान कि गयी और 10 स्टेप तक वेतन दिया गया ।

तीसरा 2013 में जब अंतरिम राहत प्रदान की गयी थी तब  सहायक अध्यापक ,अध्यापक  और वरिष्ठ अध्यापक के वेतन में 8 स्टेप के आधार अंतर ज्ञात किया गया था ।और  मूल वेतन के साथ ग्रेड पे को जोड़कर  3 प्रतिशत के आधार पर वेतन वृद्धि प्रदान कर के  8 स्टेप तक वेतन आगे बढ़ाया गया था ।

चौथा कारण यह की जब अंतरिम राहत प्रदान की गई थी तब 8 वर्ष के आधार पर गणना की गयी थी जबकि 2008 से 2013 तक कुल 6 वर्ष ही हुए थे ।इस लिए 1998 के साथियो को 2-2वेतन वृद्धि प्रदान की जायगी।
हाँ तब वेतन की गणना गलत की गयी थी ,
        
         10230 और 7440 के स्थान पर 9300 और 5200 प्रदान किया गया था लेकिन यह अलग मामला है । उस से वेतन वृद्धि की गणना का कोई सम्बन्ध नहीं हैं।
         आप की सुविधा के लिए, 2013 मे अंतरिम राहत ज्ञात करने के लिए जो नोटशीट चली थी उसकी कॉपी इस पॉस्ट के साथ है आप अध्ययन कर सकते हैं ।
         साथ ही सहायक अध्य्यापक ,अध्यापक ,और वरिष्ठ अध्यापक  की भी एक -एक टेबल है जिस से आप सही प्रकार से समझ सकें की किस तरह की गड़बड़ की गयी है और आप को क्या हानी  हो रही है।
         हाँ क्रमोन्नति और पदोन्नति के लिए आज तक कभी कोई  टेबल नहीं बनायीं जाती इस लिए संभवतः  इस बार हमारे लिए भी नहीं बनाई गई है । इन सभी समस्याओं का एक ही हल है कि सरकार इस आदेश के एक लाइन जोड़ दे की 2007 से वेतन की काल्पनिक गणना की जायेगी । सभी समस्या अपने आप संमाप्त हो जाएंगी ।
  



Friday, November 11, 2016

अध्यापको के वेतन को लेकर सह्याक संचालक संपरीक्षा निधि ने संचालक संपरीक्षा निधि से मांगा मार्गदर्शन,पत्र ब्लॉग में


6वे वेतनमान के आदेश में वेतन निर्धारण का कोई फॉर्मूला ही नहीँ
स्थानीय संपरिक्षा निधि जबलपुर ने अध्यापकों के छठवें वेतन मान में निकाली 7 खामियां 8वी खामी पर भी उनकी नज़र थी पर जाने क्यों छुपा लिया । नये वेतनमान निर्धारण में स्थानीय संपरिक्षा निधि से अनुमोदन ज़रूरी है यदि ये बिना मार्गदर्शन के अनुमोदन नहीँ करेंगे तो अब शासन का मार्गदर्शन ज़रूर जारी होगा और बिन्दुवार होगा....यही हमारी 4 दिन तक स्थानीय संपरिक्षा निधि में चक्कर काटने   की  सफलता है । गौर करने की बात है कि स्थानीय संपरिक्षा निधि जबलपुर ने वेतन निर्धारण के मूल आधार पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया है यहाँ तक कह दिया है कि ऑर्डर में वेतन निर्धारण का कोई फॉर्मूला ही नहीँ है इससे साफ जाहिर होता है कि यदि कोई वेतन निर्धारण करता भी है तो वह मनगढ़ंत ही होगा । स्थानीय संपरिक्षा निधि ने सेवा काल की गणना 2007 से करने को गम्भीरता से लिया  है जिसके चलते मिली हुई क्रमोन्न्ती पर भी प्रश्न खड़ा हो गया है । कुल मिलाकर लगता नहीँ ये गणना पत्रक कुछ लाभ देने की नियत से बनाया गया है । यदि जल्दी और सार्थक मार्ग दर्शन नहीँ मिला तो पूरे प्रदेश में जितने जिले हैं उतने ही तरह के वेतन निर्धारण देखने को मिलेगा ।
डी के सिंगौर

Thursday, November 10, 2016

कूटनीति कर के अध्यापको के वेतन को वेतन में उलझा दिया सरकार ने - अजितपाल यादव (भोपाल)

       बेहद सरल कूटनीति होती है की अगर कोई संवर्ग मूल हक की और ध्यान केन्द्रित करने लगे तो उसे आर्थिक मामलों पर उलझा दो । और हुआ भी यही । अभी जैसे ही सरकार को लगा कि अरे ये संघर्ष समिति ने कैसा ज्ञापन दे दिया?  अरे ये तो मूल समस्याों को पकड़ रहे हैं । रोको रोको इनको ।
बस यहीं से शाकएब्जार्वर्स  का काम शुरू हुआ और स्वागत रूपी सम्मेलन और सम्मोहन  पर जाकर खत्म हुआ । दूसरी तरफ बड़ा वर्ग नाना प्रकार की गणना की टेबल, कुर्सी, सोफा में उलझा रहा और अपने ज्ञान का लोहा मनवाता रहा ।
         आप देखना की नवंबर माह के समाप्त होते होते बहुत कुछ जादूगरी हमें समझ आने वाली है  और ये समझ आते ही हम फिर खुद को भयंकर रूप से ठगा महसूस करेंगे । और फिर वही आर्थिक मामलों पर पूरा ध्यान अटक जाएगा ।

    एक अधिकारी से चर्चा का सार :-
(1)अंतरिम राहत किश्तों की वसूली (समायोजन) 2013 से होगी
(2) क्रमोन्नति प्राप्त को अगला वेतन बैंड नहीं मिलेगा
(3) सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक क 3 प्रतिशत की वेतनवृद्धि नहीं मिलेगी

           ये गणना पत्रक की भाषा अनुसार बताया गया है । इसके अलावा उनके द्वारा स्पष्ट किया गया की अब ये सारी विसंगतियाँ नगरीय व ग्रामीण एवं पंचायत विकास विभाग दूर करेगा । क्योंकि वित्त विभाग नियमित कर्मचारी के लिए स्पष्ट करता है और अध्यापक कर्मचारी नहीं है ।
           मेरा अनुमान है की एक बार फिर हमें बजट सत्र मार्च 2017 तक के लिए अटका दिया गया है और इस बार तो डाबर जन्मघुट्टी पिला कर घर भेजा गया है । मेरा सभी से अनुरोध है की सभी संघों से ऐसे शाकएब्जार्वर्स को निकाल बाहर किया जाए जो हमारे हितों के विरूद्ध शतरंज की बिसात बिछाते हैं और हमें मोहरों के रूप में इस्तेमाल करते हैं ।
    

जबलपुर में स्थानीय निधि संपरीक्षा ने नहीं किया अध्यापको के वेतन का अनुमोदन ,अध्यापकों को बैरंग लौटा दिया।

डीके सिंगोर/मंडला। अध्यापक संवर्ग को जनवरी 2016 से मिलने वाले 6पे के गणना पत्रक के आदेश को सरकार ने 10 महीने बाद जारी तो कर दिया और अनेक संकुलों मे नया वेतनमान आदेश मिल भी गया परंतु सही वेतन के निर्धारण का दायित्व निभाने की जिम्मेदारी जिस संपरीक्षा निधि कार्यालय को सौपी गई वह ,ही गणना पत्रक को समझ नहीं पा रहा है।
         जबलपुर संभाग के जिलों से सही निर्धारण कराने संपरीक्षा निधि कार्यालय जबलपुर ने अध्यापकों के गणना पत्रक के सम्बन्ध मे एक मार्गदर्शन पत्र जारी कर अध्यापकों को बैरंग लौटा दिया।

कहाँ हो रही कठिनाई
संपरीक्षा निधि कार्यालय मे विगत 5 दिनों से वेतन निर्धारण का अनुमोदन कराने जा रहे अध्यापक संघर्ष समिति के जिला अध्यक्ष डी के सिंगौर और नरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि संपरीक्षा के अधिकारी निम्न कठिनाइयों को बता रहे है-
1-सहायक अध्यापक,अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक की वेतन तालिका एक समान नियमों से नहीं बनी।
2-आदेश मे 2.1 और 2.3 मे वेतन निर्धारण को लेकर विरोधाभास है।
3-3000 -5000 वेतनमान वाले सहायक अध्यापक को क्रमोन्नति 3500-6000 के वेतनमान पर हुई जबकि तालिका मे 4000 रु का वेतनमान दिया गया है।
4-यही स्थिति क्रमोन्नत हुए अध्यापक के साथ है जारी तालिका मे उसका तदस्थानिक मूल वेतन तालिका से या तो मेल नहीं खाता या  कम है।
5-क्रमोन्नत वरिष्ठ अध्यापक के ग्रेड पे को 3600 से 4200 करने पर 4200 ग्रेड पे की तालिका ही आदेश मे मौजूद नहीं है।
6-यदि अध्यापक संवर्ग के तदस्थानिक वेतनमान के अनुरूप वेतन निर्धारण किया जाए तो एक साथ नियुक्त एक अध्यापक और अध्यापक से वरिष्ठ अध्यापक पद के वेतनमान मे पदोन्नति प्राप्त अध्यापक का वेतन गैर पदोन्नत या क्रमोन्नत अध्यापक से कम हो रहा है।
7. वेतन निर्धारण के लिये एक भी उदाहरण प्रारूप जारी नहीँ किया गया है वेतन निर्धारण को लेकर अध्यापक संकुल प्राचार्य से लेकर डी ई ओ और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगा रहे है
       लेकिन क्षेत्रीय स्थानीय निधि सम्परीक्षक  जिनका अनुमोदन अनिवार्य है के द्वारा स्पष्ट नियमों के अभाव में अनुमोदन नहीँ किये जाने से  अध्यापक एक बार फिर भोपाल की ओर रुख कर दिया है अध्यापक संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि अब वे संपरीक्षा निधि कार्यालय से प्राप्त मार्गदर्शन को लेकर DPI जाएंगे।

झबुआ का वेतंन निर्रधारण ,जिसके लिये कोषालय से सहमति मिली है ,वेतन निर्द्धारण पत्रक,अंडर टेकिंग,कार्यालयीन आदेश ,सेवा पुस्तिका ,विकल्प - अरविन्द रावल

      
अरविन्द रावल - मध्यप्रदेश में पहली बार आधिकारिक रूप से अध्यापक सवर्ग को देय छठे वेतनमान का वेतन निर्धारण झाबुआ जिले के शासकीय हाई स्कुल करडावद बड़ी के प्राचार्य श्री एस एल श्रीवास्तव एवम् लेखापाल शिक्षक श्री योगेन्द्र दीक्षित द्वारा अध्यापक अरविंद रावल का आज किया गया। छटे वेतनमान का सबसे पहले वेतन निर्धारण करने पर जिले के समस्त अध्यापको की और से प्राचार्य श्री एस एल श्रीवास्तव एव लेखापाल शिक्षक श्री योगेन्द्र दीक्षित का आभार व्यक्त किया गया और धन्यवाद ज्ञापित किया ।
             जिले के हम अध्यापक  साथी फ़िरोज़ खान, शरद गुप्ता, इलियास खान, मनीष पवार और मेरे द्धारा संशोधित गणना पत्रक जारी होने की दिनांक से ही इस पर अध्ययन करने लगे और जिले में एक समान रूप से वेतन निर्धारण हो सके इस उद्देश्य को लेकर जिले के वरिष्ठ अधिकारियो और लेखापालों से उक्त आदेश की हर तरह से व्याख्या कर समझाया गया ! हमने रतलाम के भाई सुरेश यादवजी से भी सही गणना पत्रक बनाने में सहयोग लिया ! पन्द्रह दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद हम साथियो दिन रात एक कर ने फाइनल एक टेबल बनाई जिसे जिले के अधिकारियो और लेखापालों द्धारा समझा गया ! हमारे बड़ेभाई स्वरुप श्री जफ़र खान वरिष्ठ लेखापाल द्धारा हमारे द्धारा बनाये गए गणना पत्रक सबसे पहले अध्ययन कर सहमति दी और उन्ही के नेतृत्व में हम सभी ने जिले के सभी वरिष्ठ अधिकारियो के साथ कई घण्टो की मैराथन बैठक करने बाद हमारे द्धारा बनाई गई तालिका के अनुसार झाबुआ जिले के अध्यापको का एक समान वेतन निर्धारण करने पर सहमति प्रदान की हे ! उसी परिपेक्ष्य में हाई  स्कुल करडावद बड़ी के प्राचार्य श्री एस एल श्रीवास्तव द्धारा न सिर्फ जिले में बल्कि प्रदेश सबसे पहले  अधिनस्त अध्यापको का नियमानुसार वेतन निर्धारण कर दिया गया हे और अध्यापको की सर्विस बुक अवलोकन हेतु संपरीक्षा निधि कार्यालय इंदौर भेजी जा रही हे !
           हम साथियो द्धारा बनाये गए गणना पत्रक को प्रदेश के सभी जिलो  द्धारा पसन्द किया गया हे और करीब चालीस से ज्यादा जिलो में हमारे द्धारा बनाई गई सारणी के अनुसार ही वेतन निर्धारण करने का कार्य किया जा रहा हे ! झाबुआ जिले में अध्यापको का छठा वेतनमान एक समान निर्धारण करवाने की कार्यवाही करने के लिए सहायक आयुक्त महोदय, जिला कोषालय अधिकारी महोदय  और वरिष्ठ लेखापाल जफ़र खान सर का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा हे ! हम एक बार फिर झाबुआ जिले  अध्यापको की और से छठे वेतनमान के निर्धारण करवाने पर सहयोग करने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारियों के प्रति आभार प्रकट करते हे !
    








आज एक समस्या से खुद रूबरू हुआ - अजित पाल यादव (भोपाल)

आज एक समस्या से खुद रूबरू हुआ ।
एक तरफ तो मुखिया जी कहते हैं की इतना पढाओ की निजी स्कूलों में ताले लग जाएं और दूसरी तरफ जिला शिक्षा अधिकारी मुखिया की सोच की धज्जियां उड़ा देते हैं ।
बात है किसी भी शासकीय आदेश की गलत व्याख्या करने की ।
अभी एक आदेश निकला था मूल पदसंरचना का। जिसमें किसी भी शाला हेतु शिक्षकों की नियुक्ति की अवधारणा को स्पष्ट करने की व्याख्या की थी । पर आज मैंने खुद उसकी धज्जियां उढ़ते देखी ।
आदेश के अनुसार विज्ञान समूह से गणित, कला से सामाजिक विज्ञान और भाषा से अंग्रेजी को प्राथमिकता दी गई है । पर आप ये बताओ की जहाँ इनमें से एक भी न हो और वो स्कूल 1967 से संचालित हो तो क्या कहोगे?  और तुक्का ये की नियम नहीं है । मतलब ये हुआ की शाला को और विद्यार्थी को यतीम कर दो । खुद ही अशासकीय में पहुँच जाएगा ।
ये समस्या सबको आनी है । इसलिए चैन से सोना है तो जाग जाओ । और मामा को स्वागत के अलावा जमीनी हकीकत बताओ ।
संघर्ष समिति जिंदाबाद ।
अध्यापक एकता जिंदाबाद ।
(लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)

आखिर क्यों सरकारी स्कूल खतरे में ?- अजित पाल यादव (भोपाल)


 अजित पाल यादव -  यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों पर नजर डालें तो विगत 3 वर्षें में बहुत तेज गति से अशासकीय शालाओं को मान्यता प्रदान की गई है । ये निजी शालाएं आर टी इ के अंतर्गत नि:शुल्क शिक्षा के नाम पर सरकारी विद्यालयों से लगभग शतप्रतिशत सवर्ण विद्यार्थियो को खींच चुकी हैं । अब केवल पिछड़ी और अनुसूचित जाति व जनजाति के ही बच्चे बचे हैं । यदि आप मेरी बात से असहमत हों तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें । यही स्थिति रही तो आने वाले 5-6 वर्षों में बहुत अधिक शालाओं में 10 से कम दर्ज संख्या होने वाली है । और ये शाला समाप्ति का मार्ग है ।
       शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षक पदसंरचना का यदि अध्ययन करेंगे तो ये भी ताबूत में ठुकती कील नजर आएगी । अभी 14.09.16 को म प्र शासन द्वारा पुनः आदेश जारी किया है जिसमें विषयवार वरियता जारी की है । कृपया आप सभी आदेश प्राप्त कर अध्यापक करें । यदि गणित, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान का शिक्षक नहीं भी है तो शालाओं को खाली रखा जाएगा पर हिंदी, विज्ञान संस्कृत के शिक्षक की पदस्थापना नहीं की जाएगी ।

 ये स्थिति 140 की दर्ज संख्या पर लागू कर दी गई है ।

भयावह स्थिति :-
घटती दर्ज संख्या और अतिशेष होता अध्यापक । पद्दोन्नति लगभग अकल्पनीय हो चुकी है । आज और अभी से आप अंदाजा लगा लो की नए आदेशों के अनुसार आप अपने जिले में स्वयं को किस शाला में पदस्थ पायेंगे । मेरा ये प्रश्न माध्यमिक शालाओं में वर्तमान में पदस्थ और भविष्य में पदोन्नत होने वाले सहायक अध्यापकों से है । अत्यंत विषम परिस्थिति निर्मित हो चुकी है और हम राज्य परिवहन के बहुत करीब पहुँच चुके हैं ।
इस पूरे मामले को गंभीरता से समझने वाले साथियों से आगृह है की न्यायालय के माध्यम से शासन से ये पूछा जाना चाहिए की क्या 140 से कम विद्यार्थी को हिंदी, विज्ञान, संस्कृत पढने के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है?
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

जाग चुके अध्यापक को लोरी सुनाकर सुलाने की कोशिश-वासुदेव शर्मा (मुख्यमंत्री स्वगात समारोह भाग 1)


वासुदेव शर्मा- सीएम हाऊस के सम्मान समारोह से लौट रहे अध्यापकों के चेहरों से उत्साह गायब था और प्रतिक्रिया कुछ नहीं मिला जैसी थी। मैंने सवाल यह किया कि यह सम्मान समारोह क्यों आयोजित किया गया। जबाव जोरदार था। पांच अध्यापकों की टीम में से एक बोला हक के लिए जाग चुके अध्यापक को सुलाने की कोशिश भर थी यह, लेकिन  सीएम के रणनीतिकार यहां भी फैल हो गए। अध्यापकों के पांच संगठनों में से चार इस आयोजन से बाहर रहे और अध्यापक संघर्ष समिति पहसे से ज्यादा भरोसेमंद हो गई। अब जो संघर्ष समिति में बचे हैं, वे स्कूलों को बचाने तथा शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लड़ सकेंगे।
         राज्य अध्यापक संघ के अध्यक्ष जगदीश यादव ने सम्मान समारोह में न जाने का जो साहसिक निर्णय लिया है, उसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए। आयोजन से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वे सीएम हाऊस जरूर जाएंगे। जगदीश के ऊपर दबाव भी था। आयोजकों ने अनगिनत फोन उन्हें किए। यहां-वहां से दबाव भी डलवाया। सम्मान समारोह में शामिल होने के सवाल पर जगदीश, करतार सिंह, दिनेश शुक्ल, नागेंद्र त्रिपाठी जैसे अध्यापक नेता एक दिन पहले भोपाल में बैठे भी, जहां यह निर्णय लिया कि हमें सम्मान की वजाय संघर्ष के साथ रहना चाहिए। मतलब स्पष्ट है कि जगदीश यादव और उनकी टीम अध्यापक संघर्ष समिति के साथ पूरी ताकत से खड़ी है और यही वो ताकत है जिसने संघर्ष समिति को और भरोसेमंद बनाया है।
          सम्मान समारोह के आयोजक जिनमें अधिकांश वे लोग शामिल थे, जिनका जन्म ही मुरलीधर पाटीदार की आलोचना करके हुआ और यही लोग 6 नवंबर के सम्मान समारोह में  मुरलीधर पाटीदार के भाषण पर तालियां बजा रहे थे। सम्मान समारोह के इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर गंभीरता से सोचेंगे, तब आप पाएंगे कि आयोजक अपने ही समर्थकों की नजरों में कहां पहुंच गए होंगे। इस सम्मान समारोह के बाद कद मुरलीधर पाटीदार का ही बड़ा है और नुकसान में कौन पहुंचा, सम्मान कार्यक्रम के बाद यह अध्यापक समझ चुके हैं।
           अध्यापक संघर्ष समिति के तीन सदस्यों बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राजेश नायक के बारे में सम्मान समारोह के आयोजकों की पहले ही राय थी कि यह लोग सम्मान समारोह की वजाय संघर्ष समिति के साथ रहेंगे, शायद इसीलिए इन्हें बुलाने में ज्यादा ताकत खर्च नहीं की गई। मुख्यमंत्री के सम्मान समारोह के जरिए सरकार ने जगदीश यादव, बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राजेश नायक को एक साथ कर दिया। इन्होंने भी बिना देर किए 14 नवंबर को संघर्ष समिति की बैठक बुलाकर अगली रणनीति बनाने की घोषणा कर दी है, यही सम्मान समारोह के रणनीतिकारों की सबसे बड़ी असफलता है, वे खुद ही संघर्ष के रास्ते से अलग हो चुके हैं। सीएम हाऊस से लौट रहे अध्यापकों के चेहरों की निराशा आयोजकों के फ्लाप हो जाने का सबूत भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है।)

राज्य शासन का सेवा पुस्तिका के सबन्ध में आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016

राज्य शासन का सेवा पुस्तिका  के सबन्ध में आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016 

सेवा पुस्तिका की डुप्लीकेट कॉपी कार्यलय में रखी जाए ,एक कॉपी कर्मचारी को भी प्रदान की जाये ,इंक्रीमेंट लगाने पर कर्मचारी के भी हस्ताक्षर करवाये जाएँ ,डिजिटल सेवा पुस्तिका  भी बनाई जाए , आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016 ।
आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2016 पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करे 






यात्रा भत्ता ,दैनिक भत्ता भोजन भत्ता एवं ठहराव भत्ता की दरो में संशोधन आदेश दिनांक 5 नवम्बर 2016 एव 5 सितम्बर 2012

यात्रा भत्ता ,दैनिक भत्ता भोजन भत्ता  एवं ठहराव भत्ता की दरो में संशोधन आदेश दिनांक 5 नवम्बर 2016

आदेश दिनांक 5 नवम्बर 2016 को पीडीऍफ़ में देखने के लिए इस लिंक को ओपन करें

राज्य वेतन आयोग की अनुसंशा अनुसार राज्य शासन के कर्मचारियों को दे यात्रा भत्ते की दरो का पुनरीक्षण 5 सितम्बर 2012
आदेश दिनाक 5 सितम्बर 2012 पीडीऍफ़ में देखने के लिए इस लिंक को ओपन करें  


 

Wednesday, November 9, 2016

हर जिले में अलग वेतन निर्धारण और अलग नीयम देखिये कितने प्रकार से गणना की जा रही है और असमानता क्या है ।

 देखने में आ रहा है की विभिन्न जिलो में अलग तरह से वेतन निर्धारण किया जा रहा है नरसिहपुर में 2007 से गणना कर के 6 टे वेतन के आधार पर तिन और दो वेतन वृद्धि प्रदान की गयी है।  झबुआ में 2007 में 5 वे वेतन में 2 और 3 वेतन वृद्धि लगा कर 6 टा वेतन मान प्रदान किया गया है 31 दिसम्बर को भी वेतन वृद्धि प्रदान की गयी है। अलीराजपुर में 6टे वेतन मान के आधार पर प्रारंभिक वेतन प्रदान किया गया है और 31 दिसम्बर को में भी वेतन वृद्धि लगायी गयी ही। जबकि रतलाम में 31 दिसम्बर तक 5 वे वेतन मान के आधार पर गणना कर के वेतन मान  दिया गया है ,व अध्यापक को क्रमोन्नति  नही लगायी गयी है। इसी प्रकार विद्यमान वेतन के सामने तत्स्थानी वेतन देखकर और सेवा अवधि देखकर भी गणना की गयी है। कई जगह आई आर की 2013 से वसूली भी की गयी है। यंहा हमने 1998  के अध्यापक संवर्ग की गणना बताई है आप स्वयं असमानता देखें।   



पदोन्नति में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आगे बढ़ाई सुनवाई की तारीख

पदोन्नति में आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाकर 23 नवंबर कर दी है। इस मामले में मप्र सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा था, जिसके बाद तारीख आगे बढ़ा दी गई।

जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की डबल बेंच इस मामले की सुनवाई की। इसके पहले सितंबर में बेंच के एक जज के बीमार होने से सुनवाई आगे बढ़ गई थी। हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण रद्द करने और 2002 से अब तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने का आदेश दिया था। मप्र सरकार ने इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को रद्द कर चुका है। अजाक्स के अध्यक्ष जेएन कंसोटिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हमें भी इंतजार है।

दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क

सरकार : राज्य सरकार 2002 से 2016 तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है। सरकार का कहना है कि भले ही मप्र लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 गलत हों, लेकिन अब तक हुए प्रमोशन रिवर्ट न किए जाएं।

सपाक्स : अनारक्षित वर्ग के याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में तर्क देंगे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर ही हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। यदि सरकार 2002 के नियमों को गलत मान रही है, तो पिछले 14 सालों की पदोन्नति को कैसे जायज ठहरा सकती है।
                 



एनसीईआरटी सिलेबस से प्रश्न-पत्र का प्रारूप भी बदलेगा

प्रदेश के स्कूलों में एनसीईआरटी सिलेबस लागू होने के बाद स्कूली शिक्षा में कई बदलाव देखने को मिलेंगे। पाठ्यक्रम लागू होने पर पढ़ाई के साथ-साथ बोर्ड की परीक्षा पैटर्न में भी कुछ अंतर आ जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक एनसीईआरटी का सिलेबस एक्टिविटी बेस्ड है, जिससे बच्चों को सीखने में आसानी होती है।

स्कूल शिक्षा विभाग की पदेन सचिव दीप्ती गौड़ मुकर्जी के मुताबिक एनसीईआरटी का सिलेबस लागू होने के बाद बोर्ड की परीक्षा में प्रश्न-पत्र का पैटर्न चेंज होगा। प्रश्न-पत्र में वैकल्पिक प्रश्न भी शामिल किए जाएंगे। इसके साथ ही मौजूदा दौर में पूछे जाने वाले प्रश्नों की जगह अवधारणा पर आधारित प्रश्न पूछे जाएंगे।

शिक्षकों की दी जाएगी ट्रेनिंग
नया सिलेबस 2017 से लागू होगा। इसके लिए शिक्षकों को विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। स्कूल शिक्षा विभाग ने एनसीईआरटी के भोपाल स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन से इस संबंध में बातचीत भी की है। जल्द ही पहली से सातवीं तक के शिक्षकों को यहां ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके साथ ही 9वीं से 12वीं के शिक्षकों को भी इसे लेकर ट्रेनिंग दी जाएगी।

16 करोड़ का बोझ
मप्र पाठ्य पुस्तक निगम अगले शिक्षण सत्र के लिए नई किताबें छापेगा। छपाई से सरकार पर 16 करोड़ स्र्पए का बोझ आएगा।

500 और 1000 के पुराने नोट बंद ,कैसे बदलेंगे ? कन्हा चलेंगे ?ATM क्या काम करेंगे ? ई पेमेंट होगा या नहीं ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोट को मंगलवार आधी रात से अमान्य घोषित करते हुए इस निर्णय के कारण उत्पन्न स्थितियों को देखते हुए 11 नवंबर की मध्यरात्रि तक कुछ खास व्यवस्थाएं भी की हैं.

यंहा चलेंगे पुराने  नोट
इसके तहत अस्पतालों, सार्वजनिक क्षेत्र के पेट्रोल एवं सीएनजी गैस स्टेशनों, रेल यात्रा टिकट काउंटरों, शवदाह गृहों, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को 11 नवंबर की मध्यरात्रि तक छूट रहेगी. दुग्ध बिक्री केंद्रों, पेट्रोल एवं सीएनजी स्टेशनों आदि को स्टॉक एवं ब्रिकी का रजिस्टर रखना होगा. उन्होंने कहा कि 100 रुपये, 50 रुपये, 20 रुपये, 10 रुपये, 5 रुपये, एक रुपये के नोट और सभी सिक्के प्रचलन में रहेंगे और वैध होंगे.

ATM कैसे काम करेंगे 
मंगलवार आधी रात से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट अब महज कागज के टुकड़े बनकर रह गए हैं. ये सारे नोट गैरकानूनी माने जाएंगे. प्रधानमंत्री ने घोषणा करते हुए कहा कि 9 नवंबर को बैंक बंद रहेंगे और बुधवार गुरुवार को  दो दिनों तक कुछ एटीएम भी काम नहीं करेंगे.प्रधानमंत्री ने कहा कि केवल शुरुआत के दिनों में खाते से धनराशि निकालने पर प्रतिदिन 2000  हजार रुपये और प्रति सप्ताह 20 हजार रुपये की सीमा रखी गई है. पीएम मोदी ने 2000 रुपये और 500 रुपये के नए नोट जारी किए जाने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि प्रारंभ में 4000 रुपये के नोट बदले जा सकेंगे और 25 नवंबर से 4000 रुपये की सीमा में वृद्धि की जाएगी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बयान में  मध्यरात्रि से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों के प्रचलन को समाप्त करने की घोषणा की,बयान अनुसार  जरूरी व्यवस्था करने के लिए कल एक दिन बैंक जनता के लिए बंद रहेंगे. उन्‍होंने कहा कि ‘यह जानकारी गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए सभी को इसी समय एक साथ दी जा रही है.रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों को बहुत कम समय में काफी व्यवस्था करनी है. ऐसे में कल बैंक बंद रहेंगे.’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि " बुधवार को बैंक बंद रहेंगे और कुछ एटीएम बुधवार और गुरुवार को बंद रहेंगे. उन्होंने कहा कि बैंकों और डाकघरों के कर्मचारी नई  व्यवस्था को उपलब्ध समय में सफल बनाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे. मोदी ने कहा कि चेक, बैंक ड्राफ्ट या अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों के भुगतान पूर्ववत रहेंगे और यह जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि इसके कारण लोगों को कुछ परेशानियां पेश आएंगी. लेकिन मेरा आग्रह होगा कि देशहित में वे इन कठिनाइयों को नजरअंदाज करें. हर देश के इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं जब व्यक्ति उस क्षण का हिस्सा बनना चाहता है और राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनना चाहता है.ऐसे गिने-चुने मौके आते हैं और यह ऐसा एक मौका है.’मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश में गहरी जड़ें जमा चुका है.भ्रष्टाचार, जाली मुद्रा और आतंकवाद नासूर बन चुका है और अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया है. हमारे दुश्मन जाली नोटों के जरिए भारत में रैकेट चला रहे हैं ."





500 और 2000 रुपये के नए नोट जो जल्‍द किए जाएंगे जारी...

पीएम मोदी ने कहा कि प्रारंभ में एटीएम से प्रतिदिन प्रति कार्ड 2000 रुपये निकाले जा सकेंगे. नई व्यवस्था के कारण पेश आने वाली कुछ परेशानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आतंकवाद, कालाधन, जाली नोट के गोरखधंधे, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में देश की जागरुक जनता कुछ दिनों तक इस असुविधा को झेल लेगी.



.जानिए कैसे बदले जा सकते हैं 500-1000 रुपये के पुराने नोट

1. बैंकों में जमा कराएं 
अगले 50 दिनों तक इन 500 और 1000 रुपये के नोटों को आप बैंक में जाकर जमा करा सकते हैं.

2. बैंक नहीं तो डाकघर जाएं 
10 नवंबर से 30 दिसंबर तक आप चाहें तो डाकघरों में भी जाकर इनको जमा करा सकते हैं. इसलिए मौजूदा नोटों को लेकर परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है.

3. इन तारीखों का रखें ध्‍यान 
इस संबंध में 10 नवंबर और 30 दिसंबर की तारीख आपके लिए खासा महत्‍व रखती है क्‍योंकि इसी दौरान आपके अपने पुराने इन नोटों को बदलना होगा. पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इसके लिए कहा कि आपको बिल्‍कुल परेशान होने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि इस काम को करने के लिए आपके पास पूरे 50 दिन हैं.

4. बैंक की डेट निकले तो RBI है ना...
कुछ कारणों से जो लोग 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोट 30 दिसंबर तक जमा नहीं करा सकेंगे, वे लोग पहचान पत्र दिखाकर 31 मार्च, 2017 तक नोट बदलवा सकेंगे.