Thursday, November 10, 2016

आखिर क्यों सरकारी स्कूल खतरे में ?- अजित पाल यादव (भोपाल)


 अजित पाल यादव -  यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों पर नजर डालें तो विगत 3 वर्षें में बहुत तेज गति से अशासकीय शालाओं को मान्यता प्रदान की गई है । ये निजी शालाएं आर टी इ के अंतर्गत नि:शुल्क शिक्षा के नाम पर सरकारी विद्यालयों से लगभग शतप्रतिशत सवर्ण विद्यार्थियो को खींच चुकी हैं । अब केवल पिछड़ी और अनुसूचित जाति व जनजाति के ही बच्चे बचे हैं । यदि आप मेरी बात से असहमत हों तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें । यही स्थिति रही तो आने वाले 5-6 वर्षों में बहुत अधिक शालाओं में 10 से कम दर्ज संख्या होने वाली है । और ये शाला समाप्ति का मार्ग है ।
       शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षक पदसंरचना का यदि अध्ययन करेंगे तो ये भी ताबूत में ठुकती कील नजर आएगी । अभी 14.09.16 को म प्र शासन द्वारा पुनः आदेश जारी किया है जिसमें विषयवार वरियता जारी की है । कृपया आप सभी आदेश प्राप्त कर अध्यापक करें । यदि गणित, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान का शिक्षक नहीं भी है तो शालाओं को खाली रखा जाएगा पर हिंदी, विज्ञान संस्कृत के शिक्षक की पदस्थापना नहीं की जाएगी ।

 ये स्थिति 140 की दर्ज संख्या पर लागू कर दी गई है ।

भयावह स्थिति :-
घटती दर्ज संख्या और अतिशेष होता अध्यापक । पद्दोन्नति लगभग अकल्पनीय हो चुकी है । आज और अभी से आप अंदाजा लगा लो की नए आदेशों के अनुसार आप अपने जिले में स्वयं को किस शाला में पदस्थ पायेंगे । मेरा ये प्रश्न माध्यमिक शालाओं में वर्तमान में पदस्थ और भविष्य में पदोन्नत होने वाले सहायक अध्यापकों से है । अत्यंत विषम परिस्थिति निर्मित हो चुकी है और हम राज्य परिवहन के बहुत करीब पहुँच चुके हैं ।
इस पूरे मामले को गंभीरता से समझने वाले साथियों से आगृह है की न्यायालय के माध्यम से शासन से ये पूछा जाना चाहिए की क्या 140 से कम विद्यार्थी को हिंदी, विज्ञान, संस्कृत पढने के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है?
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

No comments:

Post a Comment

Comments system

Thursday, November 10, 2016

आखिर क्यों सरकारी स्कूल खतरे में ?- अजित पाल यादव (भोपाल)


 अजित पाल यादव -  यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों पर नजर डालें तो विगत 3 वर्षें में बहुत तेज गति से अशासकीय शालाओं को मान्यता प्रदान की गई है । ये निजी शालाएं आर टी इ के अंतर्गत नि:शुल्क शिक्षा के नाम पर सरकारी विद्यालयों से लगभग शतप्रतिशत सवर्ण विद्यार्थियो को खींच चुकी हैं । अब केवल पिछड़ी और अनुसूचित जाति व जनजाति के ही बच्चे बचे हैं । यदि आप मेरी बात से असहमत हों तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें । यही स्थिति रही तो आने वाले 5-6 वर्षों में बहुत अधिक शालाओं में 10 से कम दर्ज संख्या होने वाली है । और ये शाला समाप्ति का मार्ग है ।
       शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षक पदसंरचना का यदि अध्ययन करेंगे तो ये भी ताबूत में ठुकती कील नजर आएगी । अभी 14.09.16 को म प्र शासन द्वारा पुनः आदेश जारी किया है जिसमें विषयवार वरियता जारी की है । कृपया आप सभी आदेश प्राप्त कर अध्यापक करें । यदि गणित, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान का शिक्षक नहीं भी है तो शालाओं को खाली रखा जाएगा पर हिंदी, विज्ञान संस्कृत के शिक्षक की पदस्थापना नहीं की जाएगी ।

 ये स्थिति 140 की दर्ज संख्या पर लागू कर दी गई है ।

भयावह स्थिति :-
घटती दर्ज संख्या और अतिशेष होता अध्यापक । पद्दोन्नति लगभग अकल्पनीय हो चुकी है । आज और अभी से आप अंदाजा लगा लो की नए आदेशों के अनुसार आप अपने जिले में स्वयं को किस शाला में पदस्थ पायेंगे । मेरा ये प्रश्न माध्यमिक शालाओं में वर्तमान में पदस्थ और भविष्य में पदोन्नत होने वाले सहायक अध्यापकों से है । अत्यंत विषम परिस्थिति निर्मित हो चुकी है और हम राज्य परिवहन के बहुत करीब पहुँच चुके हैं ।
इस पूरे मामले को गंभीरता से समझने वाले साथियों से आगृह है की न्यायालय के माध्यम से शासन से ये पूछा जाना चाहिए की क्या 140 से कम विद्यार्थी को हिंदी, विज्ञान, संस्कृत पढने के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है?
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

No comments:

Post a Comment