Monday, November 21, 2016

फिर याचक की मुद्रा में लौटा अध्यापक....रिजवान खान बैतूल

         रिजवान खान- माह सितम्बर से लेकर अक्टूबर की शहडोल रैली तक प्रदेश भर में खम ठोककर सीना ताने घूमने वाला अपने अधिकारो के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार शासन की आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने का जस्बा रखने वाला अध्यापक आज फिर निरुत्साहित मनोबल हीन होकर याचक की मुद्रा में नज़र आता है.
           विगत वर्ष के घटनाक्रम पर दृष्टि डाले तो उसकी इस स्तिथि का कारण और निदान दोनों सामने आते है. पहले अध्यापक ने अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे विभिन्न संघो के आंदोलनों को बुरी तरह खारिज कर एकता के लिए मजबूर किया. यह आम अध्यापक का ही व्यापक दबाव था जो सभी संघ चाहे अनचाहे एक संघर्ष समिति के बैनर तले इकट्ठे हुए. इससे उत्साहित आम अध्यापक ने समिति को केवल एक माह में सफलता की वो बुलन्दियों पर पहुंचा दिया जिसका सपना सालो से संघर्षरत संघ और नेता देखते रहते है.शहडोल रैली का दबाव ऐसा बना की 24 घण्टे में गणना पत्रक जारी हो गए.
        
          इसी बिंदु पर आकर अध्यापको की आपार भीड़ और जोश को राजनैतिक लाभ के लिए भुनाने के आतुर तथाकथित लोगो ने जल्दबाजी में ऐसा मूर्खतापूर्ण कदम उठा लिया जिसकी भरपाई निकट भविष्य में सम्भव नही दिखती. अपने कृत्यों को सही साबित करने के लिए ऐसे तर्क वितर्क दिए गए जिससे अध्यापकओ की विराट एकता जो जाती धर्म वर्ग के परे सदैव रही है उसको भी छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया गया.
          आज आम अध्यापक ठगे जाने के अहसास से भरा अपने हितो के नाप पर हो रही उछलकूद को देखकर अचंभित है. सुदूर गाँवो में आम अध्यापक अलग अलग प्रकार के वेतन निर्धारण के बीच कभी डीईओ से निर्धारण समिति बनाने के लिए तो कभी बाबू से अपने क्रमोन्नति पदोन्नति की सही गणना के लिए तो कभी संकुल प्राचार्य के सामने बाबुओ की शिकायत लेकर याचक की मुद्रा में खड़ा है. जिनपर उसने विशवास किया वो या तो चुपचाप हो गए है या उलटी सीधी बचकाना बाते करके उसके दुःख को और अधिक बढ़ा ही रहे है. आगे कुछ भी सार्थक होने की

उम्मीद नज़र नही आती............
अध्यापक आंदोलन अपने अवसान की ओर बढ़ रहा है...........

                                                                                     

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Monday, November 21, 2016

फिर याचक की मुद्रा में लौटा अध्यापक....रिजवान खान बैतूल

         रिजवान खान- माह सितम्बर से लेकर अक्टूबर की शहडोल रैली तक प्रदेश भर में खम ठोककर सीना ताने घूमने वाला अपने अधिकारो के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार शासन की आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने का जस्बा रखने वाला अध्यापक आज फिर निरुत्साहित मनोबल हीन होकर याचक की मुद्रा में नज़र आता है.
           विगत वर्ष के घटनाक्रम पर दृष्टि डाले तो उसकी इस स्तिथि का कारण और निदान दोनों सामने आते है. पहले अध्यापक ने अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे विभिन्न संघो के आंदोलनों को बुरी तरह खारिज कर एकता के लिए मजबूर किया. यह आम अध्यापक का ही व्यापक दबाव था जो सभी संघ चाहे अनचाहे एक संघर्ष समिति के बैनर तले इकट्ठे हुए. इससे उत्साहित आम अध्यापक ने समिति को केवल एक माह में सफलता की वो बुलन्दियों पर पहुंचा दिया जिसका सपना सालो से संघर्षरत संघ और नेता देखते रहते है.शहडोल रैली का दबाव ऐसा बना की 24 घण्टे में गणना पत्रक जारी हो गए.
        
          इसी बिंदु पर आकर अध्यापको की आपार भीड़ और जोश को राजनैतिक लाभ के लिए भुनाने के आतुर तथाकथित लोगो ने जल्दबाजी में ऐसा मूर्खतापूर्ण कदम उठा लिया जिसकी भरपाई निकट भविष्य में सम्भव नही दिखती. अपने कृत्यों को सही साबित करने के लिए ऐसे तर्क वितर्क दिए गए जिससे अध्यापकओ की विराट एकता जो जाती धर्म वर्ग के परे सदैव रही है उसको भी छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया गया.
          आज आम अध्यापक ठगे जाने के अहसास से भरा अपने हितो के नाप पर हो रही उछलकूद को देखकर अचंभित है. सुदूर गाँवो में आम अध्यापक अलग अलग प्रकार के वेतन निर्धारण के बीच कभी डीईओ से निर्धारण समिति बनाने के लिए तो कभी बाबू से अपने क्रमोन्नति पदोन्नति की सही गणना के लिए तो कभी संकुल प्राचार्य के सामने बाबुओ की शिकायत लेकर याचक की मुद्रा में खड़ा है. जिनपर उसने विशवास किया वो या तो चुपचाप हो गए है या उलटी सीधी बचकाना बाते करके उसके दुःख को और अधिक बढ़ा ही रहे है. आगे कुछ भी सार्थक होने की

उम्मीद नज़र नही आती............
अध्यापक आंदोलन अपने अवसान की ओर बढ़ रहा है...........

                                                                                     

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