2009 में जब प्रदेश के कई लाख अलग अलग केडर और वेतनमान वाले कर्मचारियों को छठवें वेतनमान का लाभ दिया गया तो कही भी किसी भी जिले या ब्लाक में वेतन निर्धारण को लेकर कोई कमेटियां नही बनीं और न ही वेतन निर्धारण को लेकर इतनी असमंजस की स्तिथि थी ....अध्यापक जो की मात्र २ से २.५ लाख की संख्या में ही हैं और ३ ही कैडर हैं पर इनके वेतन निर्धारन को लेकर घमासान मचा हुआ है ब्लाक ब्लाक और जिले स्तर पर ब्लाक और जिले में एकरूपता के साथ वेतन निर्धारण को लेकर कमेटिया बन रही हैं इतना ही नही कई कई जिलो में deo खुद परम्परा से हटकर वेतन निर्धारण करके भुगतान हेतु प्राचार्यो को आदेशित कर रहे है और मजे की बात है कि उनका वेतन निर्धारण पूरी तरह से आदेश की भाषा से हटकर अपनी मर्जी के अनुसार है इतना ही नही बावजूद इसके न केवल जिला बल्कि एक ही ब्लाक में निर्धारण के अलग अलग फोर्मुले लग रहे हैं | रोज सोशल मीडिया में २-३ फिक्सेशन ये कहकर डाले जा रहे हैं ये फँला जिले का fixaton और ये फँला जिले का fixation ..इतना ही नही साथ ही यह भी दावा किया जा रहा है कि उनके जिले का फिक्सेशन विसंगति रहित है | ये जानते हुए भी की जारी टेबल के मूल आधार में ही विसंगति है फिर भी फिक्सेशन हो रहा है यहा तक कि फिक्सेशन का कोई फार्मूला नही होने पर भी फिक्सेशन का काम चल रहा है प्रदेश के सारे संभागों के स्थानीय निधि संपरीक्षक वेतन निर्धारण के सारे तरीकों को अमान्य कर रहे हैं दिन रात फिक्सेशन का ही काम करने वाले कोष एवं लेखा के अधिकारी तक इस फिक्सेशन आदेश में खामियां बता रहे हैं| ताज्जुब की बात हैं कि इतने सब के बाद भी शासन के कानों में जूं न रेंगना ....सोची समझी चाल ही समझी जा सकती है सरकार के साथ साथ अध्यापक संगठनों की भूमिका भी समझ से परे है प्रदेश स्तर पर एकरूपता के लिए कोई प्रयास नही ...यहा तक कि किसी एक फोर्मुले पर सहमती तक नही ....कोई हाथ पर हाथ धरे बैठा है तो कोई कहता है विसंगति ही नही .... शासन से स्पष्टीकरण कराने की जगह खुद स्पष्टीकरण देने में लगे हुए हैं | साल भर से अपमान का सिलसिला चल रहा है फिर भी सम्मान करना याद है सरकार और संगठन में सांठ गांठ साफ़ नजर आ रही है .......... साफ़ कहें तो जान बुझकर ऐसा दिया है कि लिया ही न जा सके | यह अध्यापकों को छठवाँ वेतनमान नही अपमान हैं।(लेखक राज्य अध्यापक संघ मंडला के जिलाध्यक्ष है ,और यह उनके निजी विचार हैं।)
शिक्षा और उस से जुड़े संवर्ग की सेवाओं से जुडी जानकारीयां ,आप तक आसानी से पहुंचाने का एक प्रयास है अध्यापक जगत
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Saturday, November 26, 2016
अध्यापकों को छठवां वेतनमान दिया गया या अपमान -डी के सिंगौर
2009 में जब प्रदेश के कई लाख अलग अलग केडर और वेतनमान वाले कर्मचारियों को छठवें वेतनमान का लाभ दिया गया तो कही भी किसी भी जिले या ब्लाक में वेतन निर्धारण को लेकर कोई कमेटियां नही बनीं और न ही वेतन निर्धारण को लेकर इतनी असमंजस की स्तिथि थी ....अध्यापक जो की मात्र २ से २.५ लाख की संख्या में ही हैं और ३ ही कैडर हैं पर इनके वेतन निर्धारन को लेकर घमासान मचा हुआ है ब्लाक ब्लाक और जिले स्तर पर ब्लाक और जिले में एकरूपता के साथ वेतन निर्धारण को लेकर कमेटिया बन रही हैं इतना ही नही कई कई जिलो में deo खुद परम्परा से हटकर वेतन निर्धारण करके भुगतान हेतु प्राचार्यो को आदेशित कर रहे है और मजे की बात है कि उनका वेतन निर्धारण पूरी तरह से आदेश की भाषा से हटकर अपनी मर्जी के अनुसार है इतना ही नही बावजूद इसके न केवल जिला बल्कि एक ही ब्लाक में निर्धारण के अलग अलग फोर्मुले लग रहे हैं | रोज सोशल मीडिया में २-३ फिक्सेशन ये कहकर डाले जा रहे हैं ये फँला जिले का fixaton और ये फँला जिले का fixation ..इतना ही नही साथ ही यह भी दावा किया जा रहा है कि उनके जिले का फिक्सेशन विसंगति रहित है | ये जानते हुए भी की जारी टेबल के मूल आधार में ही विसंगति है फिर भी फिक्सेशन हो रहा है यहा तक कि फिक्सेशन का कोई फार्मूला नही होने पर भी फिक्सेशन का काम चल रहा है प्रदेश के सारे संभागों के स्थानीय निधि संपरीक्षक वेतन निर्धारण के सारे तरीकों को अमान्य कर रहे हैं दिन रात फिक्सेशन का ही काम करने वाले कोष एवं लेखा के अधिकारी तक इस फिक्सेशन आदेश में खामियां बता रहे हैं| ताज्जुब की बात हैं कि इतने सब के बाद भी शासन के कानों में जूं न रेंगना ....सोची समझी चाल ही समझी जा सकती है सरकार के साथ साथ अध्यापक संगठनों की भूमिका भी समझ से परे है प्रदेश स्तर पर एकरूपता के लिए कोई प्रयास नही ...यहा तक कि किसी एक फोर्मुले पर सहमती तक नही ....कोई हाथ पर हाथ धरे बैठा है तो कोई कहता है विसंगति ही नही .... शासन से स्पष्टीकरण कराने की जगह खुद स्पष्टीकरण देने में लगे हुए हैं | साल भर से अपमान का सिलसिला चल रहा है फिर भी सम्मान करना याद है सरकार और संगठन में सांठ गांठ साफ़ नजर आ रही है .......... साफ़ कहें तो जान बुझकर ऐसा दिया है कि लिया ही न जा सके | यह अध्यापकों को छठवाँ वेतनमान नही अपमान हैं।(लेखक राज्य अध्यापक संघ मंडला के जिलाध्यक्ष है ,और यह उनके निजी विचार हैं।)
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