Saturday, November 26, 2016

अध्यापकों को छठवां वेतनमान दिया गया या अपमान -डी के सिंगौर

2009 में जब  प्रदेश के कई  लाख  अलग अलग केडर और  वेतनमान  वाले  कर्मचारियों  को छठवें  वेतनमान  का  लाभ दिया  गया  तो कही  भी किसी  भी जिले  या  ब्लाक  में  वेतन  निर्धारण  को  लेकर कोई   कमेटियां  नही बनीं और  न  ही  वेतन निर्धारण  को  लेकर इतनी  असमंजस की स्तिथि थी ....अध्यापक  जो  की  मात्र २ से २.५ लाख  की  संख्या  में  ही हैं और  ३ ही  कैडर  हैं  पर  इनके  वेतन  निर्धारन  को  लेकर  घमासान  मचा  हुआ  है ब्लाक  ब्लाक  और  जिले  स्तर पर ब्लाक  और  जिले  में  एकरूपता  के  साथ  वेतन  निर्धारण  को  लेकर  कमेटिया  बन  रही  हैं इतना  ही  नही  कई  कई  जिलो में  deo खुद  परम्परा से  हटकर वेतन निर्धारण  करके  भुगतान  हेतु  प्राचार्यो  को आदेशित  कर रहे  है  और मजे  की  बात  है कि उनका  वेतन  निर्धारण  पूरी  तरह  से  आदेश  की  भाषा  से हटकर  अपनी मर्जी  के  अनुसार है इतना  ही  नही  बावजूद  इसके  न  केवल  जिला  बल्कि एक  ही  ब्लाक  में  निर्धारण  के  अलग  अलग  फोर्मुले लग  रहे  हैं | रोज सोशल  मीडिया  में २-३ फिक्सेशन ये  कहकर  डाले  जा  रहे  हैं  ये  फँला जिले  का  fixaton  और  ये  फँला जिले  का  fixation ..इतना  ही  नही  साथ  ही  यह  भी  दावा  किया  जा  रहा  है  कि उनके  जिले  का  फिक्सेशन विसंगति रहित है | ये  जानते  हुए  भी  की  जारी  टेबल  के  मूल  आधार में  ही विसंगति  है फिर  भी  फिक्सेशन  हो  रहा  है  यहा  तक  कि फिक्सेशन का  कोई  फार्मूला  नही  होने  पर भी  फिक्सेशन का  काम  चल  रहा  है प्रदेश  के  सारे  संभागों के स्थानीय  निधि संपरीक्षक वेतन  निर्धारण के  सारे तरीकों को अमान्य कर रहे  हैं दिन  रात  फिक्सेशन  का ही   काम  करने  वाले  कोष  एवं  लेखा  के  अधिकारी  तक  इस  फिक्सेशन  आदेश  में खामियां बता रहे  हैं|  ताज्जुब  की  बात  हैं  कि इतने  सब  के  बाद  भी शासन  के कानों  में  जूं न  रेंगना ....सोची  समझी  चाल  ही  समझी  जा  सकती  है सरकार  के  साथ  साथ  अध्यापक  संगठनों की भूमिका भी  समझ  से  परे है प्रदेश  स्तर  पर एकरूपता  के  लिए  कोई  प्रयास  नही ...यहा  तक  कि किसी  एक  फोर्मुले  पर  सहमती  तक  नही ....कोई  हाथ  पर  हाथ  धरे  बैठा  है तो कोई  कहता  है  विसंगति  ही  नही  .... शासन  से  स्पष्टीकरण कराने  की  जगह खुद  स्पष्टीकरण देने  में  लगे  हुए  हैं | साल  भर  से  अपमान  का  सिलसिला  चल  रहा  है फिर  भी  सम्मान करना  याद  है  सरकार  और  संगठन में  सांठ  गांठ साफ़  नजर  आ  रही  है ..........  साफ़  कहें तो जान  बुझकर  ऐसा दिया  है कि लिया  ही  न  जा  सके | यह  अध्यापकों  को  छठवाँ वेतनमान  नही अपमान  हैं।(लेखक राज्य अध्यापक संघ मंडला  के जिलाध्यक्ष है ,और यह उनके निजी विचार हैं।)

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Saturday, November 26, 2016

अध्यापकों को छठवां वेतनमान दिया गया या अपमान -डी के सिंगौर

2009 में जब  प्रदेश के कई  लाख  अलग अलग केडर और  वेतनमान  वाले  कर्मचारियों  को छठवें  वेतनमान  का  लाभ दिया  गया  तो कही  भी किसी  भी जिले  या  ब्लाक  में  वेतन  निर्धारण  को  लेकर कोई   कमेटियां  नही बनीं और  न  ही  वेतन निर्धारण  को  लेकर इतनी  असमंजस की स्तिथि थी ....अध्यापक  जो  की  मात्र २ से २.५ लाख  की  संख्या  में  ही हैं और  ३ ही  कैडर  हैं  पर  इनके  वेतन  निर्धारन  को  लेकर  घमासान  मचा  हुआ  है ब्लाक  ब्लाक  और  जिले  स्तर पर ब्लाक  और  जिले  में  एकरूपता  के  साथ  वेतन  निर्धारण  को  लेकर  कमेटिया  बन  रही  हैं इतना  ही  नही  कई  कई  जिलो में  deo खुद  परम्परा से  हटकर वेतन निर्धारण  करके  भुगतान  हेतु  प्राचार्यो  को आदेशित  कर रहे  है  और मजे  की  बात  है कि उनका  वेतन  निर्धारण  पूरी  तरह  से  आदेश  की  भाषा  से हटकर  अपनी मर्जी  के  अनुसार है इतना  ही  नही  बावजूद  इसके  न  केवल  जिला  बल्कि एक  ही  ब्लाक  में  निर्धारण  के  अलग  अलग  फोर्मुले लग  रहे  हैं | रोज सोशल  मीडिया  में २-३ फिक्सेशन ये  कहकर  डाले  जा  रहे  हैं  ये  फँला जिले  का  fixaton  और  ये  फँला जिले  का  fixation ..इतना  ही  नही  साथ  ही  यह  भी  दावा  किया  जा  रहा  है  कि उनके  जिले  का  फिक्सेशन विसंगति रहित है | ये  जानते  हुए  भी  की  जारी  टेबल  के  मूल  आधार में  ही विसंगति  है फिर  भी  फिक्सेशन  हो  रहा  है  यहा  तक  कि फिक्सेशन का  कोई  फार्मूला  नही  होने  पर भी  फिक्सेशन का  काम  चल  रहा  है प्रदेश  के  सारे  संभागों के स्थानीय  निधि संपरीक्षक वेतन  निर्धारण के  सारे तरीकों को अमान्य कर रहे  हैं दिन  रात  फिक्सेशन  का ही   काम  करने  वाले  कोष  एवं  लेखा  के  अधिकारी  तक  इस  फिक्सेशन  आदेश  में खामियां बता रहे  हैं|  ताज्जुब  की  बात  हैं  कि इतने  सब  के  बाद  भी शासन  के कानों  में  जूं न  रेंगना ....सोची  समझी  चाल  ही  समझी  जा  सकती  है सरकार  के  साथ  साथ  अध्यापक  संगठनों की भूमिका भी  समझ  से  परे है प्रदेश  स्तर  पर एकरूपता  के  लिए  कोई  प्रयास  नही ...यहा  तक  कि किसी  एक  फोर्मुले  पर  सहमती  तक  नही ....कोई  हाथ  पर  हाथ  धरे  बैठा  है तो कोई  कहता  है  विसंगति  ही  नही  .... शासन  से  स्पष्टीकरण कराने  की  जगह खुद  स्पष्टीकरण देने  में  लगे  हुए  हैं | साल  भर  से  अपमान  का  सिलसिला  चल  रहा  है फिर  भी  सम्मान करना  याद  है  सरकार  और  संगठन में  सांठ  गांठ साफ़  नजर  आ  रही  है ..........  साफ़  कहें तो जान  बुझकर  ऐसा दिया  है कि लिया  ही  न  जा  सके | यह  अध्यापकों  को  छठवाँ वेतनमान  नही अपमान  हैं।(लेखक राज्य अध्यापक संघ मंडला  के जिलाध्यक्ष है ,और यह उनके निजी विचार हैं।)

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