पदोन्नति में आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाकर 23 नवंबर कर दी है। इस मामले में मप्र सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा था, जिसके बाद तारीख आगे बढ़ा दी गई।
जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की डबल बेंच इस मामले की सुनवाई की। इसके पहले सितंबर में बेंच के एक जज के बीमार होने से सुनवाई आगे बढ़ गई थी। हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण रद्द करने और 2002 से अब तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने का आदेश दिया था। मप्र सरकार ने इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को रद्द कर चुका है। अजाक्स के अध्यक्ष जेएन कंसोटिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हमें भी इंतजार है।
दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क
सरकार : राज्य सरकार 2002 से 2016 तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है। सरकार का कहना है कि भले ही मप्र लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 गलत हों, लेकिन अब तक हुए प्रमोशन रिवर्ट न किए जाएं।
सपाक्स : अनारक्षित वर्ग के याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में तर्क देंगे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर ही हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। यदि सरकार 2002 के नियमों को गलत मान रही है, तो पिछले 14 सालों की पदोन्नति को कैसे जायज ठहरा सकती है।
जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की डबल बेंच इस मामले की सुनवाई की। इसके पहले सितंबर में बेंच के एक जज के बीमार होने से सुनवाई आगे बढ़ गई थी। हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण रद्द करने और 2002 से अब तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने का आदेश दिया था। मप्र सरकार ने इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को रद्द कर चुका है। अजाक्स के अध्यक्ष जेएन कंसोटिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हमें भी इंतजार है।
दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क
सरकार : राज्य सरकार 2002 से 2016 तक हुए प्रमोशन को रिवर्ट करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है। सरकार का कहना है कि भले ही मप्र लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 गलत हों, लेकिन अब तक हुए प्रमोशन रिवर्ट न किए जाएं।
सपाक्स : अनारक्षित वर्ग के याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में तर्क देंगे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर ही हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। यदि सरकार 2002 के नियमों को गलत मान रही है, तो पिछले 14 सालों की पदोन्नति को कैसे जायज ठहरा सकती है।
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