वासुदेव शर्मा- सीएम हाऊस के सम्मान समारोह से लौट रहे अध्यापकों के चेहरों से उत्साह गायब था और प्रतिक्रिया कुछ नहीं मिला जैसी थी। मैंने सवाल यह किया कि यह सम्मान समारोह क्यों आयोजित किया गया। जबाव जोरदार था। पांच अध्यापकों की टीम में से एक बोला हक के लिए जाग चुके अध्यापक को सुलाने की कोशिश भर थी यह, लेकिन सीएम के रणनीतिकार यहां भी फैल हो गए। अध्यापकों के पांच संगठनों में से चार इस आयोजन से बाहर रहे और अध्यापक संघर्ष समिति पहसे से ज्यादा भरोसेमंद हो गई। अब जो संघर्ष समिति में बचे हैं, वे स्कूलों को बचाने तथा शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लड़ सकेंगे।
राज्य अध्यापक संघ के अध्यक्ष जगदीश यादव ने सम्मान समारोह में न जाने का जो साहसिक निर्णय लिया है, उसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए। आयोजन से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वे सीएम हाऊस जरूर जाएंगे। जगदीश के ऊपर दबाव भी था। आयोजकों ने अनगिनत फोन उन्हें किए। यहां-वहां से दबाव भी डलवाया। सम्मान समारोह में शामिल होने के सवाल पर जगदीश, करतार सिंह, दिनेश शुक्ल, नागेंद्र त्रिपाठी जैसे अध्यापक नेता एक दिन पहले भोपाल में बैठे भी, जहां यह निर्णय लिया कि हमें सम्मान की वजाय संघर्ष के साथ रहना चाहिए। मतलब स्पष्ट है कि जगदीश यादव और उनकी टीम अध्यापक संघर्ष समिति के साथ पूरी ताकत से खड़ी है और यही वो ताकत है जिसने संघर्ष समिति को और भरोसेमंद बनाया है।
सम्मान समारोह के आयोजक जिनमें अधिकांश वे लोग शामिल थे, जिनका जन्म ही मुरलीधर पाटीदार की आलोचना करके हुआ और यही लोग 6 नवंबर के सम्मान समारोह में मुरलीधर पाटीदार के भाषण पर तालियां बजा रहे थे। सम्मान समारोह के इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर गंभीरता से सोचेंगे, तब आप पाएंगे कि आयोजक अपने ही समर्थकों की नजरों में कहां पहुंच गए होंगे। इस सम्मान समारोह के बाद कद मुरलीधर पाटीदार का ही बड़ा है और नुकसान में कौन पहुंचा, सम्मान कार्यक्रम के बाद यह अध्यापक समझ चुके हैं।
अध्यापक संघर्ष समिति के तीन सदस्यों बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राजेश नायक के बारे में सम्मान समारोह के आयोजकों की पहले ही राय थी कि यह लोग सम्मान समारोह की वजाय संघर्ष समिति के साथ रहेंगे, शायद इसीलिए इन्हें बुलाने में ज्यादा ताकत खर्च नहीं की गई। मुख्यमंत्री के सम्मान समारोह के जरिए सरकार ने जगदीश यादव, बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राजेश नायक को एक साथ कर दिया। इन्होंने भी बिना देर किए 14 नवंबर को संघर्ष समिति की बैठक बुलाकर अगली रणनीति बनाने की घोषणा कर दी है, यही सम्मान समारोह के रणनीतिकारों की सबसे बड़ी असफलता है, वे खुद ही संघर्ष के रास्ते से अलग हो चुके हैं। सीएम हाऊस से लौट रहे अध्यापकों के चेहरों की निराशा आयोजकों के फ्लाप हो जाने का सबूत भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है।)
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