आज एक समस्या से खुद रूबरू हुआ ।
एक तरफ तो मुखिया जी कहते हैं की इतना पढाओ की निजी स्कूलों में ताले लग जाएं और दूसरी तरफ जिला शिक्षा अधिकारी मुखिया की सोच की धज्जियां उड़ा देते हैं ।
बात है किसी भी शासकीय आदेश की गलत व्याख्या करने की ।
अभी एक आदेश निकला था मूल पदसंरचना का। जिसमें किसी भी शाला हेतु शिक्षकों की नियुक्ति की अवधारणा को स्पष्ट करने की व्याख्या की थी । पर आज मैंने खुद उसकी धज्जियां उढ़ते देखी ।
आदेश के अनुसार विज्ञान समूह से गणित, कला से सामाजिक विज्ञान और भाषा से अंग्रेजी को प्राथमिकता दी गई है । पर आप ये बताओ की जहाँ इनमें से एक भी न हो और वो स्कूल 1967 से संचालित हो तो क्या कहोगे? और तुक्का ये की नियम नहीं है । मतलब ये हुआ की शाला को और विद्यार्थी को यतीम कर दो । खुद ही अशासकीय में पहुँच जाएगा ।
ये समस्या सबको आनी है । इसलिए चैन से सोना है तो जाग जाओ । और मामा को स्वागत के अलावा जमीनी हकीकत बताओ ।
संघर्ष समिति जिंदाबाद ।
अध्यापक एकता जिंदाबाद ।
(लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
अध्यापक एकता जिंदाबाद ।
(लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
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