Thursday, September 29, 2016

केवल सरकारी विद्यालयों की ही दुर्दशा क्यों ? राहुल रूसिया

      जब से शिक्षा का अधिकार लागू हुआ है तब से हमने देखा है की शिक्षा की दुर्दशा केवल सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए ही हुई है और उनका पढ़ाई में स्तर वास्तव में गिरा है यह सोचने वाली बात है की शिक्षा के अधिकार अधिनियम के सभी प्रावधान प्राइवेट स्कूलों में भी लागू होते हैं परंतु उधर पर इतनी बुरी स्थिति नहीं है बल्कि इस अधिनियम का फायदा उधर पर छात्रों एवं स्कूलों को हुआ है तो फिर सरकारी स्कूल शिक्षा के अधिकार को अभिशाप क्यों मानते हैं यहां पर सबसे गंभीर प्रश्न यही है की जो चीज निजी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रही है वही शासकीय क्षेत्र में प्रभावहीन क्यों है.      जहां तक मेरा मानना है तो शासकीय क्षेत्र में शिक्षा का स्तर गिरने की सबसे बड़ी वजह शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन सरकार के द्वारा अभी तक स्वयं नहीं किया जाना है ना तो सरकारों ने अधिनियम के अनुसार विद्यालयों का सेटअप बनाया नाही शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण दिया और ना ही विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक भेजें बल्कि इसके उलट जो विद्यालय पहले अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे उधर पर भी शिक्षकों को जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड मैपिंग रजिस्ट्रेशन स्वच्छता अभियान led वितरण मध्यान भोजन आदि में उलझा दिया और विचारा शिक्षक चाह कर भी विद्यार्थियों को शिक्षित नहीं कर सका इसके अतिरिक्त नाम न काटने की बाधा एक ऐसी समस्या है जिससे पलायन करने वाले छात्र जबरदस्ती उसी विद्यालय में दर्ज रह जाते हैं और विचारा शिक्षक उनका नाम जबरदस्ती क्लास दर क्लास आगे बढ़ाता रहता है मेरे हिसाब से इस अधिनियम में एक दो चीजों को छोड़कर कोई भी बंधन शिक्षा की राह में और विद्यालय के स्तर में रुकावट नहीं डालता बल्कि बाधाओं को दूर करता है परंतु सरकारी संसाधन सीमित है और गैर शिक्षकीय कार्य भरमार है यदि संसाधन बढ़ा दिए जाएं और गैर शिक्षकीय कार्य शिक्षकों से ना कराए जाएं तो यह अधिनियम निश्चित रूप से शासकीय क्षेत्र में भी शिक्षा का स्तर सुधार देगा  


( लेखक स्वयं अध्यापक हैं  और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस  लेख को  तृतीय स्थान प्रदान  किया गया है  )

सरकारी शालाएं ही क्यों निशाना बनी ? - कुलदीप श्रीवास्तव डबरा

कुलदीप श्रीवास्तव -यहाँ एक बात मेरे मन में आती है कि सरकारी शालाएं ही क्यों निशाना बनी ..सरकार के लिए,दरअसल एक ऐसा समय भी था जब शिक्षा प्राप्त करना एक विशेष वर्ग के लिए ही सुनिश्चित था सेवा कार्य करने वाले लोगो के लिए शिक्षा प्राप्त करना टेडी खीर थी ...तब तक यह भी था सरकारी शालाओ में इतनी व्यवस्था ख़राब नही रही शिक्षको को भी उचित सम्मान और सुविधाये मिलती रही समस्या तब से शुरू हुई है जब शिक्षा को मौलिक अधिकारो में शामिल कर लिया गया अब हर वर्ग को शिक्षित करना राज्य और संघ की जिम्मेदारी हो गई यहाँ से आप देखते है नीतिओ में बदलाव कैसा है
        स्कूलो में मध्यान्ह भोजन निशुल्क पुस्तके और अन्य सुविधाये विशेष वर्ग को छात्रवृतिया और सरकारी नुमाइंदे प्रयोग पर प्रयोग करने लगे यहाँ तक कि शिक्षक अब शिक्षक नही रहा उसके कई नाम कर दिए और सुविधाये समय दर समय कम होती गई अब सरकार ने यह पूरी तरह से मान ही लिया कि सरकारी विद्यालय में केवल निर्धन मजदूर किसान आदि के बच्चे पढ़ते है योजनाये भी वैसे ही अपना आकार लेने लगी है और तब ख़ास वर्ग के बच्चों की शिक्षा हेतु निजी विद्यालयो की आवश्यकता महसूस हुई और धड़ल्ले से मान्यताये मिलने लगी और खुल गई दुकाने शिक्षा की पर यहाँ हो सकता है कुछ अध्यापक अपवाद हो सकते है पर अध्यापक आज भी पढ़ाना ही चाहता है पर सच्चाई तो यही है कि ये सरकारें नही चाहती है कि विद्यालयो में ऐसा कुछ हो उन्हें अपने वोट बैंक पर खतरा नजर आता होगा शिक्षा और निर्धन के बीच दूरी बनी रहे यही सोच के साथ काम कर रही है सरकारें और तभी तो अल्प वेतन विना सुविधाओ वाले अध्यापको को सरकारी काम से लाद कर घोड़े की तरह दौड़ाने का प्रयास कर रही है सरकार
   परिणाम अपेक्षित कभी नही आयेगे . इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश कोर्ट ने शिव भाई की याचिका पर निर्णय दिया था कि अधिकारियो के बच्चों को सरकारी विद्यालयो में पढ़ाना चाहिए ...सब सरकार चुप्पी साध के बैठ गई

( लेखक स्वयं अध्यापक हैं  और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस  लेख को  तृतीय स्थान प्रदान  किया गया है  )

कविता @ शिक्षा का निजीकरण -विवेक मिश्र नरसिंहपुर

शिक्षा के निजीकरण- व्यवसायीकरण की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
उद्योगपतियों, पूंजीपतियों, राजनेताओं, अधिकारियों के बोर्डिंग स्कूल चलाने की यह कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षण, परिवहन और उच्च शिक्षा हेतु लोन व्यवस्था कर बच्चों के पालकों को लूटने की फिर से तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
कापी-किताबें, पेंट-शर्ट, टाई-बैच, बस्ता-बेल्ट, जूते - मोजे,महंगे और चिन्हित दुकान से ही खरीदवाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
स्वयं के, परिजनों के और खासम-खासों के बच्चों को. स्वयं के स्कूलों में पढ़ाकर आगे बढ़ाने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
बोर्डिंग स्कूल, हाॅस्टल सुविधा, समर कैंप, एक्स्ट्रा क्लासेस, पिकनिक विजिट की महिमा न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
दूध, एमडीएम, साइकिल, गणवेश, छात्रवृत्ति, लेपटाप देने के बाद भी छात्रसंख्या में कमी जारी है....
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
२५ प्रतिशत वंचित समूह के बच्चों को निजी शालाओं में भर्ती कराकर सरकारी स्कूल बंद कराने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
यही नहीं, इन २५ प्रतिशत बच्चों पर व्यय होने वाली सरकारी राशि भी ठिकाने लगाने की पूरी कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजी स्कूलों में अमीर- गरीब बच्चों के लिए भेदभावपूर्ण दोहरी शिक्षाव्यवस्था और मापदंड अपनाने की पूरी हुई तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
हजारों शिक्षकों और उनपर आश्रित परिवारों को बेरोजगार कर भूखा मारने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
लाखों पढ़े - लिखे सुशिक्षित नौजवान पीढ़ी की रोजगार की उम्मीद पर पानी फेरने की ये तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से गुलामी वाली मानसिकता और तानाशाही रवैया अपनाने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा को संविधान के मौलिक अधिकारों से पृथक करने की सुनियोजित षड्यंत्रकारी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
विवादित नीतियां और लालफीताशाही की पेंचीदियाॅं हो रहीं निःशुल्क शिक्षा पर भारी हैं...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समुदाय, आरक्षण के आधार पर उच्च शिक्षा के शिक्षण पर पाबंदी की कुटिल नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, काला धन निवेश, विदेशी पूंजी निवेश कर मुनाफाखोरी करने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक, शिक्षाकर्मी, संविदा, गुरुजी, अतिथि आदि संवर्गो के माध्यम से "divide & rule" जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
राजीव गांधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान के बाद राज्य शिक्षा सेवा से वर्ल्ड बैंक की राशि ठिकाने लगाने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
१ली से ८वीं तक पास कराने की नीति द्वारा केवल साक्षर कर पंगु बनाने की नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
"प्रतिशत सिस्टम" हटाकर "ग्रेडिंग सिस्टम"  के द्वारा मेहनती बच्चों के वास्तविक मूल्यांकन से खिलवाड़ जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों को शिक्षा के अतिरिक्त अन्यान्य कार्यों में लगाकर परिणाम प्रभावित होने पर बदनाम करने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षा के निजीकरण द्वारा इसे संविधान के मौलिक अधिकार में उल्लेखित अपनी महती जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों के वेतन को छोड़ RTE के सभी नियमों का कागजी आंकड़ों पर पालन कराने की लीला न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक पद की गरिमा, स्वाभिमान, मान-सम्मान को कलंकित करने की सिस्टेमेटिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है..
शिक्षा बेचारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
नालंदा, तक्षशिला की बर्बादी जैसी साजिश हुए, स्कूल सरकारी हैं.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
गली, मुहल्ले, कूचों में 2 कमरों में स्कूल! मान्यता नीति न्यारी है.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...

( लेखक स्वयं अध्यापक हैं यह कविता १९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में द्वितीय स्थान पर रही है )

पंचायती राज व्यवस्था के नाम पर नए शिक्षको का शोषण क्यो ? - महेश देवड़ा कुक्षी जिला-धार


 महेश देवड़ा - 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1993 ने राज्य सरकारो को पंचायतों को ऐसे अधिकार प्रदान करने का अवसर दिया जो उन्हे स्वायत्त शासन की संस्थाओ के रूप मे कार्य करने मे अधिक समर्थ बना सके । इसके तहत आर्थिक विकास ओर सामाजिक न्याय सबके लिए सुलभ करने के उद्देश्य से संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची मे वर्णित विषयों के संबंध मे पंचायतों को जरूरी शक्तियाँ ओर प्राधिकार प्रदान किए गए । 11 वीं अनुसूची मे “शिक्षा , जिसके अंतर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक विध्यालय भी है” का विषय भी सम्मिलित है । भारत के संविधान के 73 वें संविधान संशोधन के अनुरूप प्रदेश मे भी मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 , दिनांक 25 जनवरी 1994 से लागू किया गया । परिणामतः शिक्षा संबंधी कार्य एवं उत्तरदायित्व भी पंचायतों ओर स्थानीय निकायों को सोंपने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई । इस प्रक्रिया से सबसे अधिक प्रभावित हुआ प्रदेश का शिक्षक समुदाय । 1995 मे एक आदेश से राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश के विध्यालयों मे कार्यरत नियमित शिक्षक संवर्गों को मृत संवर्ग (डाईंग केडर) घोषीत कर दिया । इसके बाद से ही प्रदेश के उच्च शिक्षित बेरोजगार युवाओ के शोषण का सिलसिला शुरू हुआ । शिक्षको के रिक्त पदो पर अल्पतम वेतन या मानदेय आधारित शिक्षाकर्मी , गुरुजी ओर संविदा शिक्षक के रूप मे भर्ती प्रारम्भ हुई । पंचायत राज अधिनियम के अनुपालन मे प्रदेश के शिक्षा विभाग ओर आदिम जाती कल्याण विभाग के समस्त स्कूलों का हस्तांतरण भी जनपद एवं जिला पंचायतों को कर दिया गया ।  साथ ही नियमित शिक्षको के रिक्त पदों के विरुद्ध जनपद एवं जिला पंचायतों के द्वारा शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति की जाने लगी । ये अलग बात है की इन शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति, पदोन्नति, नियमितिकरण एवं वेतनमान संबंधी समस्त नियम राज्य शासन द्वारा ही बनाए गए । नियमितीकरण के बाद भी इन शिक्षाकर्मियों को राज्य शासन के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से भी कम वेतनमान दिया गया । इस प्रकार पंचायत अथवा स्थानीय निकायों के कर्मचारी होने के नाम पर इन शिक्षाकर्मियों को न केवल अपमानजनक वेतन दिया गया अपितु शासकीय कर्मचारियो को मिलने वाली अन्य सुविधाओ जैसे बीमा, पेंशन, स्थानांतरण, गृह भाड़ा भत्ता जैसी मौलिक सुविधाओ से भी वंचित कर दिया गया । एक ही विध्यालय मे अनेक तरह के शिक्षको की नियुक्ति कर एक वर्ग विषमता का वातावरण निर्मित कर दिया गया । जिसका स्वाभाविक दुष्प्रभाव प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था ओर शेक्षणिक गुणवत्ता पर भी पड़ा । इस विरोधाभास ओर भेदभाव के विरुद्ध शिक्षाकर्मी निरंतर संघर्ष ओर आंदोलन करते रहे । 2007 मे राज्य सरकार ने अध्यापक संवर्ग का गठन किया ओर कर्मिकल्चर को समाप्त करने का दावा किया । पूर्व शिक्षाकर्मियों ओर संविदा शिक्षको का अध्यापक संवर्ग मे संविलियन कर नवीन वेतनमान दिया गया । परंतु सिर्फ नाम परिवर्तन से इन अध्यापको की व्यावहारिक स्थिति मे कोई बदलाव नहीं आया । नवीन वेतनमान देने से वेतन तो बढ़ा परंतु तुलनात्मक रूप से नियमित शिक्षक संवर्ग के वेतनमान से अध्यापक संवर्ग अब भी बहुत पीछे था क्योकि तब तक प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को 2006 से छठवाँ वेतनमान मिल चुका था । जबकि अध्यापक आज भी पंचायतों एवं स्थानीय निकायों के कर्मचारी होने के कारण छठवें वेतनमान से वंचित है । 2013 मे एक बड़े आंदोलन के बाद सरकार ने किश्तों मे छठवें वेतन के समतुल्य वेतन अध्यापको को देने का आदेश जारी किया । इसके बाद सितंबर 2015 मे फिर एक बार अध्यापकों ने जोरदार आंदोलन किया फलतः सरकार ने 1 जनवरी 2016 से ही अध्यापकों को छठवें वेतनमान का लाभ देने की घोषणा की । परंतु लगभग एक वर्ष होने के बाद भी मुख्यमंत्री महोदय की घोषणा पर अमल नहीं किया जा सका है । जिससे आक्रोशित अध्यापको ने पुनः एक बार संघर्ष प्रारम्भ करते हुए 25 सितंबर 2016 को प्रदेश के सभी जिलो मे विशाल तिरंगा रैलियों का आयोजन किया ओर एक बार फिर बड़े आंदोलन के संकेत भी दिये । वर्तमान अध्यापक आंदोलन का मुख्य कारण शिक्षा विभाग मे संविलियन ओर समान कार्य समान वेतन प्राप्त करना है । अध्यापको को ये आशंका है की अगर उनकी उक्त मांगे पूरी नहीं हुई तो जनवरी 2016 से देश एवं प्रदेश के सभी कर्मचारियो को मिलने वाले सातवें वेतनमान से भी वे वंचित हो जाएंगे । इन परिस्थितियों मे अध्यापको का आंदोलित होना स्वाभाविक है । 
अध्यापकों की शिक्षा विभाग मे संविलियन की मांग इस लिए है की शिक्षा विभाग मे शामिल होते ही उन्हे प्रदेश के अन्य शासकीय कर्मचारियों ओर नियमित शिक्षक संवर्गों को मिलने वाले वेतनमान ओर अन्य सुविधाएं स्वतः मिल जाएगी ओर उनकी सभी समस्याओं का स्थायी निराकरण हो जाएगा। परंतु शासन द्वारा हमेशा से इस मांग को 73 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा ओर इससे संबन्धित समस्त व्यवस्थाओं का पंचायतों एवं स्थानीय निकायों को हस्तांतरण हो जाने की बात कह कर खारिज कर दिया जाता है । ऐसे मे एक स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है की सरकार के तमाम दावो के बीच क्या प्रदेश के शिक्षा विभाग ओर आदिम जाती कल्याण विभाग के समस्त स्कूल पंचायतों ओर स्थानीय निकायों को वास्तव मे हस्तांतरित कर दिये गए है ? व्यवहार मे यह देखा गया है की इन विभागो के स्कूलों मे अध्यापकों की पदस्थापना के अलावा समस्त वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार आज भी हस्तांतरित नहीं किए गए है । पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम की भावना के अनुरूप स्कूल शिक्षा विभाग ने भी ग्रामीण क्षेत्र मे समस्त शालाओं के संचालन ओर प्रबंधन जिला पंचायतों को सोंपने का आदेश जारी किया साथ ही समस्त शालाओं के भवन , उपकरण एवं चल अचल संपत्ति तक पंचायतों को हस्तांतरित किए जाने के आदेश भी हुए है । परंतु ईनका व्यवहार मे कितना पालन हुआ है ये विचारणीय है । अब तो शालाओं मे रिक्त पदो पर नियुक्ति भी संविदा शाला शिक्षक भर्ती परीक्षा के माध्यम से ऑनलाइन केंद्रीकृत व्यवस्था से शिक्षा विभाग के ही निर्देशों से होती है  । ऐसे मे जिला एवं जनपद पंचायतों का काम महज ओपचारिक आदेश जारी करने तक रबर स्टांप के रूप मे ही है । व्यवहार मे सभी संविदा शिक्षकों एवं अध्यापको की सेवाओ पर वास्तविक नियंत्रण शिक्षा विभाग एवं आदिम जाती कल्याण विभाग का ही है । अध्यापकों के भर्ती नियम से लेकर नियुक्ति , पदोन्नति , वेतन नियमन, प्रशासकीय एवं वित्तीय नियंत्रण तक सब वास्तव मे शिक्षा विभाग ही करता है । ऐसे मे अध्यापको से नियमित शिक्षकों के समान समस्त कार्य लिया जाकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियो सा वेतन दिया जाना न्याय संगत नहीं है । 73 वें संविधान संशोधन ओर पंचायत राज अधिनियम की आड़ मे अध्यापको का ये शोषण 18 वर्षों से जारी है । उक्त संशोधन के द्वारा पंचायतों को शिक्षा संबंधी अधिकार ओर उत्तरदायित्वों का वास्तविक हस्तांतरण किया जाना था ना की प्रदेश के बेरोजगार युवको के शोषण का अंतहीन सिलसिला शुरू किया जाना था । अधिनियम के तहत शिक्षको की नियुक्ति का अधिकार भले पंचायतों को दिया गया हो पर ना तो 73वां संशोधन ओर ना मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम अध्यापको को समान वेतन देने से रोकता है । पंचायत विभाग के कर्मचारी मानते हुए भी शासन अध्यापकों को शासकीय कर्मचारियों के समान वेतनमान ओर सुविधाएं दे सकता है । शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के बाद शिक्षा के अधिकार पर तो बहुत चर्चा हुई पर अब यह भी जरूरी है की शिक्षकों के अधिकारों पर भी चर्चा हो । निःशुल्क ओर अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुक्रम मे बने नियम-2010 के भाग 6 नियम 20(3) मे भी स्पष्ट उल्लेखित है की  “सभी अध्यापको के वेतनमान ओर भत्ते, चिकीत्सकीय सुविधाएं, पेंशन, उपदान, भविष्य निधि ओर अन्य विहित फायदे, वेसी ही अर्हता ,कार्य ओर अनुभव के लिए बराबर होंगे”। अब समय आ गया है की मध्यप्रदेश सरकार इस भेदभावपूर्ण ओर शोषणकारी व्यवस्था को जड़मूल से समाप्त करे ओर संविधान के समानता के मौलिक अधिकार ओर अनुच्छेद 39 की समान कार्य के लिए समान वेतन की भावना के अनुरूप कार्य करे ना की पंचायती राज व्यवस्था के नाम पर अध्यापकों का शोषण  करे ।  (लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं 
१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस लेख को  प्रथम स्थान प्रदान  किया गया है)

Saturday, September 24, 2016

अध्यापक अब संविलियन से कम पर राजी नहीं होगा -सुरेश यादव (रतलाम)

सुरेश यादव रतलाम -18 सितम्बर को  जिस दिन से अध्यापको के सभी संघ एक जाजम पर आये है,अध्यपको के अंदर  सकारात्मक  ऊर्जा का संचार हुआ है । मंगलवार से शुक्रवार के मध्य 4 दिनों में  प्रदेश के  सभी जिलो में अध्यापक संघर्ष समिति का  गठन हो गया है ।

एक बात  जो मैंने समझी है या मेरा आकलन है 18 के बाद से हमारे अध्यापक साथी रात्री 11 बजे के बाद सोश्यल मिडिया पर सक्रिय नहीं रहते  साथ ही अब तो दिन में भी बहस से दूर है । मेरा मानना है की एकता के कारण सभी  साथी बड़े आराम से नींद ले पा रहे है ,जो कंही खो ,सी गयी थी ।
कोई किसी पर गलत टिका टिप्पणी नहीं कर रहा न कोई  किसी की आलोचना कर रहा है ।सब एक दूसरे को सम्मान दे रहे हैं  सभी का एक ही लक्ष्य है कि 25 के अंदोलन को सफल बनायें । हाँ अध्यापक के निशाने पर यदि कोई है तो वह मध्य प्रदेश के मुखिया और सरकार  है ।
अध्यापक संघर्ष के ऐतेहासिक 18 वर्षो में पहली बार ज्ञापन में शिक्षा विभाग को बचाने के मुद्दे भी सम्मिलित किये गए है ।पहले ये मुद्दे अध्यापक अंदोलन के मुख्य नारे हुआ करते थे ।यह ज्ञापन सोश्यल मिडिया में बड़े विचार विमर्श के साथ बनाया गया है।इसे आम अध्यापक का ज्ञापन भी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी  । इस 21 सूत्रीय ज्ञापन में वह सभी मुद्दे है जो आम अध्यापक के अधिकारों की पूर्ति करते है ,साथ ही इसमें गाँव गरीब की शिक्षा को बचाने ,युवाओ के रोजगार संरक्षण और निजीकरण पर रोक की मांग भी सम्मिलित है । इस ज्ञापन में व्यवस्था सुधार के जो मुद्दे है उन एक एक मुद्दे पर बड़ी कार्यशाला आयोजित की जा सकती है । आम अध्यापक संमझ गया है कि विभाग सुरक्षित रहा तो ही उसकी आजीविका चलती रहेगी ।
यह क्रांतिकारी ज्ञापन जब सरकार के नुमाइंदों तक जाएगा तो वे बगले झांकने को मजबूर हो जाएंगे ,निश्चित रुप से यह ज्ञापन अखबारों में छपेगा तो आम जन में  स्वतः हमारे प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनेगा ।यह मुद्दे बुद्दिजीवियों और शिक्षाविदो के विचार विमर्श के केंद्र बिंदु होंगे ।
सभी संगठनो के एक जाजम पर आने से आम अध्यापक इस वक्त स्वय को विजेता मान रहा है यही उसकी चैन की नीद की एक वजह है, वह मनाता है कि एक होने से ही वह  आधी जंग जित गया है ।और कल अखबारों व समाचार चैनलों में  प्रसारित समाचार से उसका उत्साह दोगुना कर दिया है ,लेकिन प्रदेश का अध्यापक इन खबरों को सच्चाई अच्छी तरह से जान चुका है वह अब सरकार के बहकावे में आने  वाला नहीं है ,वह सिर्फ आदेश पर विश्वास करेगा । आम अध्यापक की तरफ से स्पष्ट संकेत है कि बात सरकार के किसी नुमाइंदे से कोई बात नहीं अब सिर्फ आदेश हो ।यही नहीं आम अध्यापक अपने 2013 ,2015 और 2016 के अनुभव को दृषिटगत रखते हुए ।अब स्वय को संविलियन तक एक रखने का मन बना चुका है । इस  बीच यदि कोई भी एकता में बाधक बना तो अध्यापक उसे कंही का नहीं छोड़ेगा और अपनी नजरो से सदा के लिये गिरा देगा ।

सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर अध्यापकों ने तैयार किया 21 सूत्रीय मांगपत्र - वासुदेव शर्मा


वासुदेव शर्मा - 25 सितंबर को तिरंगा रैलियों के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचने वाला ज्ञापन अध्यापकों के बीच तीन-चार दिन तक चले विचार-विमर्श के बाद तैयार हो गया है। अध्यापक संघर्ष समिति की ओर से उक्त मांगपत्र को फेशबुक और वाट्स-एप पर लोड कर दिया गया है। अध्यापक संघर्ष समिति का गठन, 25 सितंबर की तिरंगा रैली का निर्णय एवं दिए जाने वाले ज्ञापन के लिए जिस तरह अध्यापकों के बीच सामूहिक विचार-विमर्श की प्रक्रिया को अपनाया गया है, इससे एक बात स्पष्ट है कि सरकारों की 15-20 साल की उपेक्षा ने हर अध्यापक को इतना सक्षम बना दिया है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया में न केवल भागीदारी करता है बल्कि उसे अमल में लाने के लिए जी-जान से जुट भी जाता है। 25 सितंबर की तिरंगा रैली के प्रति अध्यापकों के बीच जो उत्साह है, वह बताता है कि आम अध्यापक मुश्किलों एवं परेशानियों से जूझते-जूझते इतना मजबूत हो चुका है कि उसे अब तोडऩा सरकार के बस की बात नहीं रही, इसीलिए आज जब अध्यापकों को भ्रमित करने वाला समाचार अखबारो में आया, तो आम अध्यापक की ओर से उसे खारिज करते हुए कहा गया कि यह साजिश है जो 25 सितंबर की तिरंगा रैली को असफल करने के लिए रची गई है। उक्त समाचार पर अध्यापकों की प्रतिक्रिया बताती है कि वह सही और गलत का निर्णय करने में सक्षम हो चुका है, यही वो कारण है जिसने अध्यापक संघर्ष समिति के गठन के बाद साढ़े तीन लाख अध्यापकों को एक साथ उत्साहित कर दिया है।

इसी मांगपत्र से आएंगे अच्छे दिन


21 सूत्रीय मांगपत्र की हर मांग महत्वपूर्ण है। गहन विचार-विमर्श के बाद जो मांगपत्र सामने आया है, कर्मचारी वर्ग के हर तबके के बीच व्याप्त वेतन विसंगति को समाप्त करने की मांग तो करता ही है, घर-घर में बैठे बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते बनाने के लिए भी सरकार से कहता है। मांगपत्र में अध्यापकों को शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग को प्रमुखता से उठाया गया है, वहीं अतिथि शिक्षकों को गुरूजियों की तरह संविदा शिक्षक बनाने की मांग भी सरकार से करता है। इससे भी आगे जाकर मांगपत्र ने संविदा भर्ती बंद कर सीधे अध्यापक की भर्ती शुरू करने की मांग पूरी ताकत से उठाई है, इस मांग का मतलब है कि सरकार जिस संविदाकरण की नीति पर चल रही है, उसे पूरी तरह बदला जाए, जिससे संविदा की नौकरी पाने वाले बेरोजगार युवाओं के जीवन में निश्चिंतता आए। उक्त मांगपत्र की एक-एक मांग अध्यापकों के जीवन से जुड़ी मांग है, जिसमें 15-20 साल के शोषण से मुक्ति चाही गई है। जनवरी 2013 से छठवां एवं जनवरी-2016 से सातवें वेतनमान की मांग का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि इनके पूरा होने के बाद अध्यापकों को एरियर के रूप में जो राशि मिलेगी, उससे आम अध्यापक को कुछ समय के लिए आर्थिक तंगी से निजात मिलेगी।


सरकारी स्कूल ही गरीबों का सहारा


21 सूत्रीय मांगपत्र में ही सरकार से यह मांग की गई है कि वह गरीबों से उसका सहारा नहीं छीने। सरकारी स्कूल ही हैं जो दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरों की गरीब बस्तियों के बच्चों को पढ़ा लिखाकर समाज में बराबरी से जीने के लायक बनाते हैं। सरकार ने जिस तरह निजी स्कूल के लिए आने वाले हर आवेदन पर मान्यता देने की नीति बनाई है, उसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि किराने की दुकान की तरह निजी स्कूल खुल गए हैं, जिनमें न योग्य शिक्षक होते हैं और न ही अच्छी पढ़ाई होती है। चूंकि सरकार खुद निजी स्कूलों को बढ़ावा दे रही है और उनकी आर्थिक मदद कर रही है, इस कारण यह स्थिति बनी है। 25 सितंबर के मांगपत्र में 5000 की आबादी वाले गांव एवं कस्बों में निजी स्कूल को मान्यता न देने तथा जहां दे दी गई है, उसे निरस्त करने की मांग की गई है। ध्यान रहे यह ऐसी मांग है, जो सरकारी स्कूलों को बंद होने से बचाएगी तथा बड़ी संख्या में सरकार को नए सरकारी स्कूल खोलने के लिए मजबूर करेगी, जिससे शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। वैसे भी शिक्षा विभाग ही एक ऐसा विभाग है, जहां सबसे अधिक रोजगार पैदा होते हैं, जिन्हें खत्म करने पर सरकार तुली हुई है, इसीलिए वह निजी स्कूलों को मान्यता देती जा रही है।


लक्ष्य बड़ा है तो लड़ाई भी बड़ी ही होगी

18 सितंबर को भोपाल में अध्यापक संघर्ष समिति बनाकर सभी पांचों अध्यापक संगठनों के नेताओं ने संघर्ष का जो लक्ष्य तय किया है, वह बड़ा लक्ष्य है, इसीलिए उसी दिन इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ी लड़ाई की तैयारी की घोषणा भी की गई। 25 सितंबर की तिरंगा रैली इसकी शुरूआत है। इसके आगे अध्यापकों का यह आंदोलन गांव, गली, मोहल्लों, कस्बों, शहरों, कालोनियों से गुजरते हुए जब अपनी मंजिल की तरफ बढ़ेगा, तब हर वह व्यक्ति हैरान रह जाएगा जो चौड़ी सडक़ों और आलीशान बिल्डिगों को ही विकास मानकर संतुष्ट हो चुका है। 25 साल के उदारीकरण ने मानवीय विकास को ठप्प कर व्यक्तियों को मुनाफाखोरों के लिए नोट उगलने की मशीन में तब्दील कर दिया है। प्रदेश का साढ़े तीन लाख अध्यापक इस सच्चाई को समझ चुका है, इसीलिए वह मानव की बेहतर के लिए रास्ता बनाने के लिए आंदोलित हुआ है, 21 सूत्रीय मांगपत्र इसका स्पष्ट संकेत देता है। शिवराज सिंह पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना, 25 को 4 बजे तक प्रदेश के हर कौने से ज्ञापन पहुंचने वाले हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह इनके निजी विचार है )

Friday, September 23, 2016

अध्यापक अब नहीं रुकने वाले - महेश देवड़ा (कुक्षी)


महेश  देवड़ा  (कुक्षी) -ये आश्वासन ये समाचार पत्रों की खबरेे अब अध्यापक इनसे नहीं बहलता साहेब । आदेश कीजिये और अपनी बातों का मान रखिये । और 7440 दे भी रहे तो कोई अहसान नहीं कर रहे वो तो हमारा हक़ है और लेके रहेंगे । पर ख्याल ये हो की इससे तिरंगा रैली रुक जाएगी तो ग़लतफ़हमी दूर कीजिये । लाल घाटी का दमन कोई अध्यापक भुला नहीं साहब हाथ में तिरंगा लिए हमारी बहनों पर लाठियों के वार और सड़कों पर घसीटा जाना , अपने ही प्रदेश की राजधानी जाते अध्यापको को आतंकवादियों की तरह घरों से रास्तो से गिरफ़्तारी का वो मंजर आज भी खून में उबाल ले आता है । उस एक लाल घाटी का मंजर 51 जिलों में दिखाई देगा । गणना पत्रक तो छोटी बात है साहब आप तो सांतवें और संविलियन का हिसाब लगाइये । अब तो लड़ाई संविलियन पर ही रुकेगी ।
जिस तेजी से समाचार पत्रों में खबर लगवाते है माननीय उतनी संजीदगी अगर अपनी घोषणा के आदेश में दिखाते तो अब तक तो आदेश जारी हो जाता । और ये अध्यापक प्रेम हमेशा किसी आंदोलन के पहले ही क्यों उमड़ता है सोचने वाली बात है ।साथियो किसी समाचार से भ्रमित न हो अगर अपना हक चाहिए तो 25 को अध्यापक एकता का वो नजारा हो हर जिले में की सियासतदानों को वास्तव में चाणक्य की याद आ जाये । हमारा भविष्य का आंदोलन , सांतवां वेतन और शिक्षा विभाग में संविलियन सब कुछ 25 की सफलता पर निर्भर है।  अपनी पूरी ताकत लगा दो । वेतन भत्तों के लिए बहुत लड़ लिए साथियों , अबके चोट स्वाभिमान पर हुई है तो अब अध्यापक आत्मसम्मान के लिए मैदान में है । और ये आत्मसम्मान असमानता, भेदभाव और शोषण से मुक्ति पाकर ही बना रहेगा । दिखा दो सरकार को कि हम आपस में कितना भी लड़ ले पर जरुरत पड़ने पर हम पहले भी एक थे आज भी एक है और आगे भी एक होंगे ।
अध्यापक संयुक्त संघर्ष समिति ,जय अध्यापक एक
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

अध्यापकों की तिरंगा रैली को मिल रहा व्यापक समर्थन- वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा


वासुदेव शर्मा-25 सितंबर को जिला मुख्यालयों में होने वाली तिरंगा रैली में हिस्सेदारी की होड़ अध्यापकों के बीच शुरू हो गई है। मिल रही जानकारियों के आधार पर कहें तो यह आंदोलन 100 प्रतिशत भागीदारी के साथ ऐतिहासिक होने वाला है यानि अपने-अपने जिलों में साढ़े तीन लाख अध्यापक तिरंगा रैली का हिस्सा बनेंगे। तीन दिन के अल्पसमय में प्रदेश के ज्यादातर जिलों में बैठकें कर अध्यापक संघर्ष समिति का गठन कर लिया गया है, जो यह बताता है कि इस बार अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को जीतने के लिए लडऩे वाला है और इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जा भी सकता है। अध्यापकों की एकजुटता का संदेश दूसरे अल्पवेतन भोगी कर्मचारियों एवं उनके संगठनों के बीच भी जा चुका है, इन संगठनों के नेता भी चाहते हैं कि प्रदेश में सरकार द्वारा सताए जा रहे कर्मचारियों का निर्णायक आंदोलन हो और उसके साथ एकजुटता व्यक्त की जानी चाहिए।

तिरंगा रैली को संविदा कर्मचारी संघ का समर्थन
संविदा कर्मचारी संघ के प्रांतीय अध्यक्ष रमेश राठौर ने अध्यापक संगठनों की हाल ही में बनी एकजुटता को सराहते हुए कहा कि इनकी मांगेें जायज हैं और उन्हें सरकार को तत्काल पूरा करना चाहिए। 25 सितंबर को जिला मुख्यालयों पर होने वाली तिरंगा रैली के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए राठौर ने कहा कि हमारा संगठन अध्यापकों के साथ है और उनकी तिरंगा रैली को समर्थन करता है। उन्होंने हमें भरोसा दिलाया कि उनके संगठन के जिला पदाधिकारी 25 सितंबर को अध्यापकों की तिरंगा रैली का हिस्सा बनकर समर्थन करेंगे। गौरतलब है कि सरकार ने कुछ ही महीनों में 4 हजार से अधिक संविदा कर्मचारियों की छटंनी कर दी है, जिन विभागों में छंटनी की गई है उनमें स्वास्थ्य विभाग, कौशल विकास विभाग शामिल हैं। इस छंटनी के बाद प्रदेश के संविदा कर्मचारी डरे हुए है। वे अपनी नियमितीकरण की मांग को लेकर निर्णायक लड़ाई लडऩा चाहते हैं, इसके लिए 4 अक्टूबर को भोपाल में रैली भी करने वाले हैं।

अतिथि शिक्षक संघ भी तिरंगा रैली के साथ

अतिथि शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष जगदीश शास्त्री ने भी अध्यापकों की तिरंगा रैली के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए समर्थन देने की बात कही है। शास्त्री उन शिक्षकों के नेता हैं, जो उन्हीं स्कूलों में पढ़ाते हैं, जहां अध्यापक पढ़ाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने स्कूलों में शिक्षाकर्मी भर्ती किए थे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अतिथि शिक्षक। दोनों ही मुख्यमंत्रियों की व्यवस्थाओं ने शिक्षकों के शोषण का रास्ता तैयार किया है, इसके बाद भी दोनों की व्यवस्था में अंतर है। दिग्विजय सिंह ने   शिक्षाकर्मियों को नियमित होने का अधिकार दिया था, लेकिन शिवराज सिंह ने अतिथि शिक्षकों को 40 मिनट के पीरियड के बाद नौकरी से बाहर कर देने और फिर 40 मिनट के लिए रख लेने की व्यवस्था बनाई है, ऐसी व्यवस्था दुनिया के किसी भी देश के किसी भी स्कूल में नहीं है। अतिथि शिक्षकों के लिए बनाई गई इस व्यवस्था से दुखी जगदीश शास्त्री कहते हैं कि जीतने का रास्ता अध्यापकों के आंदोलनों से निकलता है, तब हमें भी जीतने की राह मिल जाएगी, इसीलिए हम पूरी तरह अध्यापकों के साथ है और उनकी तिरंगा रैली का समर्थन करते हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार है )

Thursday, September 22, 2016

हिंन्दी ( प्रथम भाषा ) की उपेक्षा व पद समाप्त कर माध्यमिक विद्यालयों को दो शिक्षकीय करने की तैयारी-सुरेश यादव (रतलाम)

सुरेश यादव -एक मित्र ने अपनी समस्या बताई की उन्होंने अपने विद्यालय का नाम  "शासकीय हाई स्कूल" के स्थान पर  "शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय " लिखा  जो हमारे अधिकारियो को नागवार गुजरा ,प्रतिप्रश्न करने पर इन्हें संतोषजनक जवाब भी नहीं मिला आप भी अच्छे से जानते है  "हाई स्कूल" हिंन्दी शब्द नहीं है , विडम्बना  देखिये हम तीन अन्य विद्यालयों को  तो हिन्दी में ही पुकारते है "प्राथमिक,माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक ", लेकिन हमारे पास हाई स्कूल का कोई हिन्दी  शब्द नहीं है। हमारे विभाग के अधिकारियों की मज़बूरी कह लें की वे सरकार द्वारा खिची लक्ष्मण रेखा तक जा सकते हैं ,कभी उल्लंघन नहीं करते । आप कल्पना कीजिये क्या कभी किसी अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इस "हाई स्कूल "के प्रयोग पर आपत्ति जताई होगी या कोई शासकीय या अर्ध शासकीय पत्र लिख कर मांग की होगी की " हाई स्कूल " के स्थान पर हिन्दी शब्द का प्रयोग किया जाए ,शायद नहीं । लेकिन हमें प्रशंसा करनी चाहिये  हमारे  अध्यापक जैसे छोटे कर्मचारी साथी की ,जिन्होंने ने विभागीय परंपराओं को तोड़ कर " हाई स्कुल " का नाम " उच्च माध्यमिक विद्यालय " लिखने का साहस किया । हिन्दी के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ने का  एक उदाहरण था ।
अब में विभाग  में हिन्दी की घोर उपेक्षा पर भी एक नजर डालते है ,हाल ही में विद्यालयों में स्वीकृत पदों के अनुसार शिक्षकों की व्यवस्था सुनिश्चित करने के विषय में आदेश आया है । माध्यमिक विद्यालयों में प्रथम तीन पदों में  गणित (पीसीएम) एवं विज्ञान ,सामाजिक विज्ञान और अंग्रेजी  के पद स्वीकृत किये गए है । साथियो यह राष्ट्र भाषा की घोर उपेक्षा ही तो है कि जिस विद्यालय में उसे प्रथम भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है वँहा उसका शिक्षक उपलब्ध नही हो पायेगा  हिन्दी भाषा  शिक्षक का पद छटवा पद होगा जो विद्यालय में  175 विद्यार्थियो के बाद ही मिल पायेगा । आप इस का जवाब  अपने स्तर पर भी खोजिये  हमारे आपके  विकासखंड में कुल कितने विद्यालय है जंहा 175 से अधिक विद्यार्थी दर्ज है ।शायद 10 या 15 प्रतिशत विद्यालय मिलेंगे अर्थात केवल 10 -15 प्रतिशत विद्यालयो में हिन्दी भाषा शिक्षक उपलब्ध रहेंगे ।
अब हम, शिक्षकों की उपलब्धता पर विमर्श करते है ,आप स्वयं अपने विकासखण्ड और जिले की स्थिति का आकलन करें की अंग्रेजी के कुल कितने शिक्षक जिले  में उपलब्ध हैं ,मैं रतलाम जिले का उदाहरण देता हूँ रातलाम में 650 से अधिक मध्यमिक  विद्यालय है और  अंग्रेजी के  कुल 15 शिक्षक ( शिक्षक और अध्यापक) पदस्थ है । कारण मात्र यह है कि अंग्रेजी भाषा शिक्षक के लिए जो योग्यता ( स्नातक में अंग्रेजी साहित्य विषय की अनिवार्यता ) निर्धारित की गयी है उस मापदंड के शिक्षक उपलब्ध ही नहीं है । में अपने विद्यार्थी जीवन की बात बताऊँ तो स्नातक  कक्षा में 450 विद्यार्थियो में से हम 4 साथी थे  अंग्रजी साहित्य विषय के बाकी सब हिन्दी या संस्कृत साहित्य ही चुनते थे । में तो मध्य प्रदेश सरकार को चुनोती देता हूँ की  संपूर्ण प्रदेश में पिछले 20 वर्षो से अंग्रेजी साहित्य विषय के साथ स्नातक करने वाले विद्यार्थियो की कुल संख्या को भी भर्ती कर ले तब भी केवल 5 -7 प्रतिशत माध्यमिक विद्यालयो में अंग्रेजी शिक्षक उपलब्ध हो पाएंगे । सरकार अपने इस   निंर्णय पर गंभीरता से  समीक्षा करें ।

सरकार समीक्षा करे की आप हिंदी विश्व विद्यालय प्रारंभ कर रहे है तकनिकी और व्यवसायिक शिक्षा हिंदी में करने की तैयारी कर रहे है ,दूसरी तरफ हिन्दी शिक्षक के पद समाप्त कर रहे हैं ।
साथियो एक लाइन में कह दू तो इस सब के पीछे सरकार का उद्देश्य यह है कि वह पुनः माध्यमिक विद्यालयों को 2 शिक्षकीय शाला करना चाहती है ,जो न सिर्फ गरीब और ग्रामीण अंचल के  विद्यार्थियों  के साथ अन्याय है वरन  काम कर रहे शिक्षकों की आजीविका पर भी संकट के समान है ।
विचार करे और यह विषय समाज के समक्ष ले जाये ।
(लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निज विचार है )

Wednesday, September 21, 2016

अब परीक्षा आम अध्यापक की है -रिजवान खान बैतूल

 रिजवान खान बैतूल - 18 सितम्बर 2016 अध्यापक इतिहास में महत्वपूर्ण दिन साबित हो सकता है. इस दिन तमाम आशंकाओ कुशंकाओ के बीच प्रदेश भर में सक्रिय अध्यापक संगठनो ने ऐतिहासिक एकता का परिचय देते हुए अध्यापक संघर्ष समिति का गठन किया. प्रदेश के कर्मचारी इतिहास में यह सम्भवतः पहला मौक़ा है जब कर्मचारी संघठन बिना नेतृत्व के एक अध्यक्षीय मण्डल के रूप में सामूहिक जिम्मेदारी के साथ कार्य करेंगे. संघ पतियो के लिए यह आसान नही था ......असल में किसी भी संगठन के लिए ऐसा करना आसान नही होता किन्तु उन्होंने जिस सूझबूझ साहस और आम अध्यापक की भावना को सर्वोपरि मानते हुए समिति का गठन किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है.
          अब गेंद आम अध्यापक के पाले में है.......... यह आम अध्यापक सोशल मीडिया और जमीनी दबाव ही था जो आज वर्तमान संघर्ष समिति बनी और तात्कालिक रूप से 25 सितम्बर को तिरंगा रैली का कार्यक्रम आम अध्यापको को दिया गया. तिरंगा रैली की आशातीत सफलता संघर्ष समिति को वो नैतिक शक्ति ऊर्जा व उत्साह देंगी जिसके बल पर वह 2018 के पूर्व इस 18 वर्षीय आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचा सके. अतः आज आम अध्यापक के पास मौक़ा है की वह तिरंगा रैली को अभूतपूर्व सफलता दिलाकर गूंगी बहरी व्यवस्था के कान में धमाका करके आंदोलन का श्री गणेश करे। ( लेखक स्वय अध्यापक खेल प्रशिक्षक है  और यह उनके निजी विचार हैं )

शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए बनी अध्यापक संघर्ष समिति का ऐलान तिरंगा लेकर लड़ेंगे अध्यापक -वासुदेव शर्मा

वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा) -उडी  में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर शुरू हुई अध्यापक संगठनों की एकता बैठक ने गंभीर विचार विमर्श के बाद अध्यापक संघर्ष समिति का गठन कर शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई हाथ में तिरंगा लेकर लडऩे का फैसला किया। तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच 25 सितंबर को जिला मुख्यालयों पर तिरंगा रैली निकालकर इस लड़ाई की शुरूआत करने की घोषणा हुई तथा सभी जिलों में अध्यापक संघर्ष समिति के गठन का निर्णय  सभी संगठनों के उपस्थिति नेताओं एवं प्रतिनिधियों ने लिया। यह था 18 सितंबर की एकता बैठक का महत्वपूर्ण निष्कर्ष। जिसे प्रदेश के साढ़े तीन लाख अध्यापकों ने दिल से स्वीकार कर 25 सितंबर की तिरंगा रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
अध्यापक संघर्ष समिति बनने के बाद गुजरे तीन दिन उपरांत जो जानकारियां आ रही हैं, वे बताती है कि अध्यापक संविलियन की इस लड़ाई को पूरी ताकत से लडऩे और जीतने के लिए तैयार है। गुजरे तीन दिन में जितने भी अध्यापक नेताओं से बात हुई, सभी का यही मानना है कि 25 सितंबर को जिलों में होने वाली तिरंगा रैली ऐतिहासिक होगी, जिसमें कम से कम 4 से 5 हजार अध्यापक परिवार के सदस्य के साथ शामिल रहेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि महिला अध्यापक अपने पति के साथ और पुरुष अध्यापक अपनी पत्नि के साथ जिलों में होने वाली तिरंगा रैली में शामिल होंगे। इसका दूसरा अर्थ यह निकाला जा सकता है कि अध्यापक संघर्ष समिति  साढ़े तीन लाख अध्यापकों की लड़ाई को सात लाख अध्यापकों की लड़ाई में बदलने की रणनीति पर चल रही है। 18 सितंबर की एकता बैठक में वक्ताओं ने  सरकार द्वारा अध्यापकों के बारे में प्रचारित किए गए झूठ का जबाव देने के लिए गांव-गांव में चौपाल लगाकर संघर्ष में जनता की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की बात रखी, जिसे भी  स्वीकार किया गया।
        सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने अध्यापकों को गुस्से में पहुंचाया ?

18 सितंबर की एकता बैठक में जितने भी वक्ता बोले, उन्होंने इसके तमाम कारणों को विस्तार से बताते हुए कहा कि 20 साल की नौकरी में सरकारों ने हमसे सिर्फ झूठ बोला है। अपने ही आदेशों की अवहेलना की हैं। 1998 की सेवा शर्तों के अनुसार हमें जो 2001 में मिल जाना चाहिए था, वह अब तक नहीं मिला है। अध्यापक मप्र सरकार का शिक्षक है, यह बात 1998 की सेवा शर्तों में स्पष्ट लिखा है, इसके बाद भी हमें  शिक्षक के समान वेतन, पेंशन एवं अन्य सुविधाओं को लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा। यही सवाल प्रदेश के अध्यापक 15 साल से सरकार से करते आ रहे हैं, लेकिन सही जबाव नहीं मिल रहा है, जिस कारण ही अध्यापकों में नाराजगी है और वे अब नियुक्ति दिनांक से शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लडऩे की तैयारी में है। 18 सितंबर की एकता बैठक में एक और बात साफ तौर पर सामने आई कि शिवराज सिंह ने अध्यापकों को जितना जलील किया है, उतना जलील दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री ने अपने कर्मचारियों को नहीं किया होगा। इसीलिए बैठक में यह चर्चा भी हुई  कि अध्यापक संघर्ष समिति से ऐसे लोगों को दूर रखा जाए, जो शिवराज सिंह की चौखट पर माथा टेकते हैं और साढ़े तीन लाख अध्यापकों को सरकार के यहां गिरवी रखना चाहते हैं। यही वे कुछ ऐसे कारण हैं जिसने प्रदेश के अध्यापकों के गुस्से को बढ़ाया है, इसीलिए आज अध्यापकों के इस गुस्से को संघर्ष में बदलना अध्यापक संघर्ष समिति के पहली और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे पूरा करने का काम नेताओं को करना है।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है )

Monday, September 19, 2016

" अब एक है हम " लेकिन चिंतन और प्रशिक्षण से ही सफल हो पायेंगे हम - राशी राठौर (देवास)


राशी राठौर ( देवास ) - सभी संघो के एकता के सूत्र मे बंधने पर सभी अध्यापकों में एक नवीन ऊर्जा का संचार हुआ है। नमन है ऐसे महान व्यक्तियों के महान व्यक्तित्व को जिन्होंने अध्यापक हित में वो कर दिखाया जो सालो से नही हो पाया। एकता की शक्ति का अदभुत और अद्वितीय प्रयास के लिए तैयार है  हम , क्योंकि "अब एक है हम "। हमारे हक की जंग को अंजाम देने के लिए जरूरी है कि हर जिले के संविदा शिक्षको जिनकी संविदा अवधी पूर्ण हो गयी है। उनका भी अतिशीघ्र संविलियन कराया जाये, ताकी वो भी अध्यापक हित के लिए होने वाले महायज्ञ मे आहूति दे सके, और हमारे  साथ बढचढ कर हिस्सा ले अपनी भूमिका निभा सके।
       
परंतु क्या एक होने मात्र से हमे सफलता प्रॉप्त हो जायेंगी यह बड़ा प्रश्न है ? क्योकि हमारा मुकाबला उस सरकार से है जो विगत 13 वर्षों  से सत्ता पर काबिज है । जो अपने अधीनस्थ कर्मचारियो के  बड़े से बड़े अंदोलन को आसानी से कुचल सकती है । आजकल के लोकतंत्र में सत्ताएं अपने विरुद्ध उठने वाली हर आवाज को बड़ी आसानी से दबा और कुचल रही है ।आप सभी जानते है की , सरकार डरती है तो अपनी बदनामी से और हार से,सरकार ने जनमानस को अपनी बात प्रबलता से पहुँचा दी है,अब  आमजन यह समझता है कि अध्यापक तो नियमित शिक्षक के समान हो गए है और हम पूर्ण  पूर्ण कर्मचारी बन गए हैं ।
         लेकिन अभी किसी साथी ने बताया था कि सरकार ने अध्यापक बना कर हमारी किन किन सुविधाओं में कमी की है ,यह बात हमारे अधिकांश साथियो को भी पता नहीं है ,हम अध्ययन और अध्यापन के व्यवसाय से तो जुड़े है लेकिन हम अपनी रोजी रोटी के विषय में अध्ययन नहीं करते ,बस यंही हम सरकार के सामने कंमजोर साबित हो जाते है      अध्यापको के पास सफल आन्दोलनों का लम्बा अनुभव है कुशल नेतृत्व है ,जो एक बडा  अन्दोलन खड़ा कर सकता  है , हमें अपनी पिछली सफलता और असफलताओं से सीखना होगा ,मुद्दों पर गंभीर चर्चा करनी चाहिए , गहन चिंतन - मनन  होना चाहिए । 
      इसके लिए  एक  सुनियोजित कार्य्रकम और प्रशिक्षण के माध्यम से अध्यापको को प्रशिक्षित  किया जाये,सोश्यल मिडिया और आई टी का भरपूर उपयोग किया जाये  ,जिस से हम अपनी बात, व मुद्दे जिसका सीधा प्रभाव शिक्षा और आम जनता  पर हो रहा है ,अपने साथियों और आम जन तक आसानी से पहुंचा सकें । इस प्रकार हम सरकार के कूप्रचार का मुकाबला कर सकेंगे   और जनता का नैतिक समर्थन प्राप्त कर  सकेंगे । निश्चित ही आने वाले चुनावी समय के दबाव में हम सफलता अर्जित कर सकेंगे  और शिक्षा विभाग को बचा पाएंगे ।( विचारक स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार है )

Saturday, September 17, 2016

ग्रामीण निकायों में कार्यरत सहायक अध्‍यापकों के नियुक्ति प्राधिकारी मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत के स्‍थान पर मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत करने के संबंध में आदेश 2016

ग्रामीण निकायों में कार्यरत सहायक अध्‍यापकों के नियुक्ति प्राधिकारी मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत के स्‍थान पर मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत करने  के संबंध में आदेश 2016
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ग्रामीण निकायों में कार्यरत सहायक अध्‍यापकों के नियुक्ति प्राधिकारी मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत के स्‍थान पर मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत करने  के संबंध में आदेश 2016

विकासखण्ड स्थित 201 माडल स्कूलों में पदों की स्वीकृति संंबधी आदेश 2016

विकासखण्ड स्थित 201 माडल स्कूलों में पदों की स्वीकृति संंबधी आदेश जारी होने से इन विद्यालयों में भर्ती होने की उम्मीद जागी है
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Thursday, September 15, 2016

हाई और हायर सेकेण्डरी स्कूलों के 52 हजार शिक्षक को प्रशिक्षण प्रयोगशाला और पुस्तकालय के लिये प्रति स्कूल 50 हजार सालना की मदद

प्रदेश में हाई और हायर सेकेण्डरी स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये स्कूल शिक्षा विभाग ने पिछले कुछ साल में प्रभावी प्रयास किये हैं। इन स्कूलों के शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रदेश में कक्षा 10 का परीक्षा परिणाम बढ़कर इस वर्ष 2015-16 में 57.32 प्रतिशत हो गया है। इसमें एक वर्ष में 7.35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। प्रदेश में कक्षा 12वीं के परीक्षा परिणाम में भी 7.27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा का परिणाम वर्ष 2015-16 में 73.94 प्रतिशत रहा है।

स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षण सत्र् 2016-17 में कक्षा 9 और 10 में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया लागू करने का निर्णय लिया है। इसके लागू होने पर भी बोर्ड की कक्षा 10 और 12 के परीक्षा परिणाम में और सुधार होगा। अब से माध्यमिक शिक्षा मंडल कक्षा 10 में जिन 6 विषय में परीक्षा लेता है, उनमें से जिन 5 विषय में विद्यार्थी के सबसे अधिक अंक होंगे, परीक्षा परिणाम की गणना के लिये उन 5 विषय को ही लिया जायेगा।

प्रदेश में हायर सेकेण्डरी स्कूलों में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रदेश में अब तक करीब 52 हजार शिक्षकों को पाँच दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण दिलवाया जा चुका है। प्रशिक्षण में गणित, विज्ञान और अंग्रेजी भाषा पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रदेश में कक्षा 9 से 12 तक 5,617 सरकारी स्कूल संचालित हो रहे हैं। प्रशासन अकादमी के माध्यम से इन स्कूलों के प्राचार्यों को नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एण्ड एडमिनिट्रेशन (एन.ई.यू.पी.ए.) के प्रशिक्षण माड्यूल पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह मॉड्यूल एनसीईआरटी द्वारा तैयार किया गया है।

कम्‍प्यूटर शिक्षा पर जोर

हायर सेकेण्डरी स्कूलों में कम्प्यूटर ट्रेनिंग पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। करीब 2,000 स्कूल में 725 मास्टर ट्रेनर तैयार लिये गये हैं। विद्यार्थी का गणित विषय मजबूत हो सके, इसके लिये 1200 स्कूल में एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा तैयार गणित किट का वितरण किया गया है। विज्ञान विषय में रूचि पैदा करने के लिये विज्ञान प्रदर्शनी जिला स्तर तक की गई है। स्कूल शिक्षा विभाग स्कूलों में प्रयोगशाला एवं लायब्रेरी सुधार के लिये प्रतिवर्ष 50 हजार रुपये प्रति स्कूल के मान से उपलब्ध करवा रहा है। शिक्षा विभाग के 224 विकासखंड से दो स्कूलों को मेंटर स्कूल के रूप में जवाबदारी दी गई है। शिक्षकों को ट्रेनिंग के दौरान दिये जाने वाले भत्तों की राशि में भी वृद्धि की गई है। कक्षा 8 के बाद कक्षा 9 में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिये अब ब्रिज कोर्स का संचालन किया जा रहा है।

नगरीय निकाय के अध्यापक की मृत्यु पर अनुग्रह राशि 50000 रुपये हुई

नगरीय निकाय के अध्यापक की मृत्यु पर अनुग्रह राशि 50000  रुपये हुई
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बिना संचालनालय की अनुमति के विभिन्न संवर्ग के शिक्षकों को अन्य शालाओं/ कार्यालयों में गैर शिक्षकीय कार्य में न लगाने बाबत्।

बिना संचालनालय की अनुमति के विभिन्न संवर्ग के शिक्षकों को


अन्य 
शालाओं/ कार्यालयों में गैर शिक्षकीय कार्य में न लगाने बाबत्।
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युक्तियुक्त करन करने के लिए समय सारणी जारी की गयी

शालाओं में स्‍वीकृत शैक्षणिक पदों के अनुरूप पदस्‍थापना सुनिश्चित करने के लिए नयी समय सारणी जारी की गयी है शालाओं में स्‍वीकृत शैक्षणिक पदों के अनुरूप पदस्‍थापना सुनिश्चित करने के लिए नयी समय सारणी जारी की गयी है
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अध्‍यापक संवर्ग में कार्यरत सेवकों के ऑनलाईन अंतर्निकाय संविलियन हेतु एज्‍यूकेशन पोर्टल अपडेट कराये जाने के संबंध

वर्ष 2016 में अध्‍यापक संवर्ग में कार्यरत सेवकों के ऑनलाईन अंतर्निकाय संविलियन हेतु एज्‍यूकेशन पोर्टल अपडेट कराये जाने के संबंध में आदेश जारी किया  गया है इसे अपडेट करने के पश्चात् आज पालन प्रतिवेदन माँगा गया है। ग्रामीण क्षेत्र के सहायक अध्यापक के नियुक्ति अधिकार अब  जिला पंचायत  को देने से ,उनका निकाय जिला पंचायत हो गया है।

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Sunday, September 11, 2016

'इस देश के शिक्षकों को पांच सितंबर को सम्मान करवाने से इंकार कर देना चाहिए' - बी बी सी हिंदी

5 सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर देश भर में गुरुजनों और शिक्षकों को याद किया जा रहा है।  दिल्ली समेत कई जगहों पर शिक्षकों को सम्मानित किया जा रहा है, सोशल मीडिया पर अपने स्कूल और कॉलेज के शिक्षकों को याद करते हुए पोस्ट लिखी जा रही हैं, कइयों में अपने शिक्षक की तस्वीर को साझा भी किया जा रहा है। लेकिन इन सबके बीच कई लोग ऐसे भी हैं जो इस विशेष दिन का इस्तेमाल शिक्षकों की बदहाली पर ध्यान खींचने के लिए कर रहे हैं।

हिंदी अखबार दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार उत्तराखंड के अल्मोड़ा में त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू नहीं होने की मांग को लेकर वहां के शिक्षकों ने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है।  वहीं बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पटना में करीब चार लाख नियोजित शिक्षक महीनों-महीनों से वेतन न मिलने की शिकायत को लेकर शिक्षक दिवस के दिन 'शिक्षक अपमान दिवस' मना रहे हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में एक संविदा शिक्षक का राष्ट्रपति के नाम पत्र छापा है जिसमें लेखक ने उन हालात का जिक्र किया है जिसके तहत एक शिक्षक बनने का सपना लेकर चला व्यक्ति महज़ 'एड हॉक' बनकर रह जाता है।



शिक्षक दिवस के उत्सवी माहौल में इस तरह की बातें यकीनन स्वाद बिगाड़ सकती हैं लेकिन एक दिन के लिए शिक्षकों और गुरुओं की मौजूदा हालात से मुंह फेर लेने से भी।  वैसे इसी दिन के लिए हिंदी के दिग्गज व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने एक निबंध लिखा था जिसका शीर्षक था 'शिक्षक सम्मान से इंकार करें..' इस लेख में परसाई लिखते हैं कि किस तरह 5 सितंबर के मौके पर अलग अलग संस्थाएं और क्लब आदि रिटायर्ड शिक्षकों को ढूंढ ढूंढकर सम्मानित करते हैं.

इस निबंध के एक संपादित हिस्से में वह लिखते हैं 'देश में पांच सितंबर को शिक्षकों को सम्मानित करने का फैशन चल पड़ा है. राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं तो यह भी सोचते हैं कि यह कार्यक्रम अच्छा रहेगा।  अखबारों में छपेगा. लोग जानेंगे कि हम गुरु की महिमा जानते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं. आप समझ लीजिए कि अगर डाकुओं का इसी तरह शान से आत्मसमर्पण होता रहा और ऐसी ही गरिमापूर्ण फिल्में बनती रहीं तो आगे चलकर डाकू सम्राट मानसिंह का जन्मदिवस दस्यु दिवस के रूप में मनाया जाएगा।  मानसिंह अपने क्षेत्र में राधाकृष्णन से कम योग्य और सम्मानित नहीं था. फिर एक 'मिलावटी दिवस' होगा, 'कालाबाजारी दिवस', 'तस्करी दिवस', 'घूसखोर दिवस' होगा. शिक्षक दिवस तो इसलिए जबरदस्ती चल रहा है क्योंकि डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति रहे. अगर वह सिर्फ महान अध्यापक मात्र रहे होते तो शिक्षक दिवस नहीं मनाया जाता.'



शिक्षकों की समस्याओं पर मानो हाथ रखते हुए इसी निबंध के एक और हिस्से में परसाई लिखते हैं 'पांच सितंबर शिक्षकों का अपमान दिवस है. झूठ है, पाखंड है. गरीब अध्यापक का उपहास है. प्रहसन है।  वेतन ठीक नहीं देंगे. सुभीते नहीं देंगे. सम्मान करके उल्लू बनाएंगे. इस देश के शिक्षकों को पांच सितंबर को सम्मान करवाने से इंकार कर देना चाहिए।  लोग बुलाएं तो शिक्षक कह दें हमें अपना सम्मान नहीं करवाना. आप जबरदस्ती करेंगे तो हम पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे.'

दिलचस्प बात यह है कि परसाई द्वारा काफी पहले लिखा जा चुका यह लेख वर्तमान दौर में काफी प्रासंगिक है. देश के विकास में शिक्षकों से जुड़ी कई समस्याएं ज्यों की त्यों हैं. आगे उम्मीद ही की जा सकती है कि अाने वाले समय में परसाई का लिखा यह निबंध अप्रासंगिक होता चला जाए, तब तक झूठा ही सही 'हैप्पी टीचर्स डे'। ( स्त्रोत  बी बी सी  हिंदी ) 

स्कर्ट की लंबाई के भी मायने... नजरिया और नजरे बदलें - सुरेश यादव रतलाम

सदी उनको अपना महानायक मानती है. मेरे लिए महानायक से बढ़कर रहे हैं.  अभिनय की संस्था हैं. वन मैन इंडस्ट्री हैं. बॉलीवुड में नंबर-1 से नंबर-10 अमिताभ ही हैं. उनके बाद ही किसी का नंबर आता है.

"आई कैन टॉक इंग्लिश. आई कैन वॉक इंग्लिश..." के साथ हंसा.
"जब तक बैठने को नहीं कहा जाए तब तक खड़े रहो...." के साथ गुस्सा आया.
"मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं लेता...." के साथ एटीट्यूड आया.
"हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है....." के साथ दादागिरी आई.
"तुम लोग मुझे ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहां इंतज़ार कर रहा हूं." से व्यवस्था से लड़ना सीखा.

जीवन के हर रंग को जितनी संजीदगी और सजीवता से अमिताभ ने ने पर्दे पर जिया है वह किसी और के वश की बात नहीं. आज 73 साल की उम्र में उनका जोश नौजवानों को मात दे रहा है.

 अमिताभ बच्चन ने अपनी पोती अराध्या और नातिन नव्या नवेली को सीख देती एक सार्वजनिक चिट्ठी लिखी है  

आप का पत्र  सार्वजानिक था तो सोचा अपनी बात भी माफ़ी के साथ कर ही दूँ 


इस बात से सहमत हूं कि स्कर्ट की लंबाई किसी का चरित्र मापने का पैमाना नहीं हो सकता. "पैमाना" भले ही न हो लेकिन स्कर्ट की लंबाई हमारे देश में "मायने" रखता है.... ज्यादा बहुत ज्यादा, "बच्चन", "नंदा", "गांधी", "अंबानी", या "बिरला" सरनेम के लिए स्कर्ट की लंबाई शायद मायने नहीं रखती हो क्योंकि यह समाज का प्रभावशाली वर्ग है. चौबीसों घंटे सुरक्षा घेरे में रहते हैं. लंबाई मापना तो दूर, गुस्ताख भी नहीं मिलेंगे जो आंख उठाकर इधर ताकें।  सही कहा है कि अराध्या और नव्या को "बच्चन" और "नंदा" सरनेम की विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है।  क्योंकि यह उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे। 

देश का मध्य वर्ग भी स्कर्ट की लंबाई को कम करना चाहता है. वह भी अपने लिए "आदर्शलोक" या "यूटोपिया" की कल्पना करता है. लेकिन वह डरता है. यहां आठ महीने की बेटियों के दरिंदे भी हैं और 60 साल की मांओं के भी, जो स्कर्ट तो छोड़िए निगाहों से कपड़ों से ढके तन में भी नग्नता ढूंढते हैं. देश की राजधानी से चंद किलोमीटर दूर कस्बों में "लोग क्या कहेंगे" का भय समाज और खासकर महिलाओं पर इतना भारी है कि "अपनी सोच और अपना फैसला" दिल में ही दम तोड़ देता है। 

नजरिए और निगाह में जब तक बदलाव नहीं आता तब तक...

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया.

वेद में ही सीमित रह जाएगा. 


हालांकि साक्षी मलिक, गीता फोगट, दीपा कर्मकार, मैरी कॉम जैसी लड़कियां व्यवस्था की जंजीरों को तोड़कर आगे निकली हैं. समाज में सिर्फ सुरक्षित माहौल देकर देखिए, कैसे देश की तस्वीर बदल जाती है। 

ना नो मन तेल होगा न राधा नाचेगी (अध्यापक स्थानतरण नीति)-कृष्णा परमार रतलाम

  कृष्णा परमार रतलाम- सरकार द्वारा अध्यापकों के लिए नई स्थानांतरण नीति बनाई जा रही है लेकिन क्या यह भी पुरानी नीतियों की तरह ही दूर के ढोल साबित तो नहीं हो जाएगी, तबादले के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें एक निश्चित समय तय किया गया है ,अध्यापकों से अॉनलाईन आवेदन लिया जावेगा एवं एक निश्चित समय पर स्थानांतरण कर दिया जाएगा इसमें भी एक पेंच फंसा दिया गया है कि जिले के अधिकारी एक माह के भीतर एनओसी देंगे और अगर नहीं दी गई तो यह मान लिया जाएगा कि इस बारे में जिले के अधिकारियों को कुछ नहीं कहना एक माह में एनओसी ना देने पर अधिकारियों से केवल जवाब तलब किया जावेगा ,जी हां केवल जवाब तलब किया जावेगा जबकि इसके विपरीत अध्यापक यदि पदस्थापना पर ज्वाईन नहीं होता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही का प्रावधान है तो क्या यह समझा जाए कि दोषी केवल अध्यापक ही है अधिकारी नहीं ?
          चलो छोड़ो अब यह तो हुई उन अध्यापकों के दिल को तसल्ली देने वाली बात जो कई वर्षों से स्थानांतरण नीति का इंतजार कर रहे हैं अपने घर जाने के लिए क्योंकि कुछ नहीं तो उन लोगों को कम से कम यह खबर कुछ तो राहत दिलाएगी कि शायद अबकि बार हम घर जा सकेंगे ।
         अब सिक्के के दूसरे पहलू पर आते हैं एक खबर और भी है स्कूल में अच्छे नंबर लाओ मनचाही जगह ट्रांसफर पाओ इस अब इसके अंतर्गत अध्यापकों को 10 प्रश्नों के सही जवाब देना होंगे अगर आपने एक भी सवाल का जवाब गलत दिया तो आप का स्थानांतरण अधर में लटका माना जाएगा और फिर एक बात और भी है आपके प्रश्नों की जांच वही अधिकारी करेंगे जिन्होंने यह स्थानांतरण निति बनाई है मतलब सब कुछ उन्हीं के हाथ में इसका सीधा साधा मतलब आप यह निकाल सकते हैं कि " ना तो नो मन तेल होगा ना राधा नाचेगी " जब की स्थानांतरण नीति में सर्वप्रथम होना यह चाहिए कि सभी अध्यापक जो वर्षों से अपने घर से दूर हैं उन्हें सबसे पहले अपने गृह जिले में स्थानांतरण का अवसर प्रदान किया जावे चाहे वह महिला हो विकलांग हो या सामान्य पुरुष हो कोई भी हो उसके बाद सरकार जैसा भी खेल स्थानांतरण नीति के अंतर्गत खेलना चाहे खेल सकती है। (लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार है ।)

Saturday, September 10, 2016

संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में अध्यापक - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा-बीते दिनों अस्तित्व में आई अध्यापक संघर्ष समिति भले ही अध्यापकों में उत्साह पैदा करने में कामयाब नहीं हुई हो, लेकिन इसके बाद अध्यापकों ने सोशल मीडिया के जरिए संघर्ष के सही रास्ते की तलाश जरूर शुरू कर दी है। अध्यापक संगठनों के बीच एकता कायम करने के लिए हुई बैठक जब एकता तक नहीं पहुंची, तब अध्यापकों में नाराजगी सामने आई। इस बार उनके निशाने पर सीधे सरकार और उनके समर्थक रहे।  एकता में बाधक कौन है? इस पर सोशल मीडिया में चले मंथन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसके लिए सरकार और उसके समर्थक संगठन तथा उनसे जुड़े लोग जिम्मेदार हैं, इसीलिए पहला निर्णय यह हुआ कि संघर्ष शुरू करने से पहले सरकार के आस-पास दिखने वालों से दूरी बनाई जाए। दूसरे, राज्य कर्मचारी संघ, बीएमएस जैसे सरकार समर्थक संगठनों की छत्रछाया से अध्यापकों की एकता बचाया जाए। यानि अध्यापक उन सबसे सतर्क रहना चाहते हैं जो संघर्ष की धार को भोथरा कर सकते हैं।  इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि वे संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में हैं, जो उन्हें संघर्ष करने वाली ताकतों के आस-पास पहुंचकर ही मिल सकता है। अध्यापकों के बीच जिलों में काम कर रहे नेता मानते हैं कि पहले भी तभी जीते थे, जब संघर्ष करने वाले लोग साथ थे और आगे भी तभी जीतेंगे, जब वे लोग साथ होंगे।
सोशल मीडिया पर ही आगामी रणनीति के तौर पर जो सहमति बनती नजर आ रही है, उसमें अध्यापकों की ओर से ही दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर करने की बात सामने आ रही है, जिसमें प्रदेश भर से चुनिंदा 400 अध्यापक नेताओं को बुलाया जाए। प्रशिक्षण शिविर के लिए अध्यापक नेताओं का चयन संगठनों से ऊपर उठकर सभी संगठनों के बीच से हो। प्रशिक्षण शिविर में देश के ख्याति प्राप्त शिक्षाविदों एवं ट्रेड यूनियन
जानकारों को बुलाया जाए, कुछ नाम भी चर्चा में आए हैं, जिनका जिक्र अगली पोस्ट में। सोशल मीडिया पर सुनाई दे रही इस तरह की चर्चा, सरकार को यह बताने के लिए काफी है कि इस बार अध्यापक संघर्ष के मैदान में निहत्था नहीं उतरेगा। सोशल मीडिया पर अध्यापकों के बीच पनपी रही यह एकता कहां तक पहुंचती, यह तो आने वाले दिनों में तय हो पाएगा, फिलहाल इतना ही पर्याप्त है कि 20 साल का अन्याय सहते-सहते अध्यापक ने हर तरफ सोचना शुरू कर दिया है यानि वह अपना रास्ता खुद बनाने के लिए तैयार हो रहा है।लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं।

"शासकीय शालाओ को एक ईमानदार और समर्पित अध्यापक टीम की दरकार है "- राशी राठोर देवास


राशी राठोर देवास -हाल ही मै कई विद्यालय बन्द कर उनका सिंविलियन समीपस्थ शाला मै कर दिया गया है व बहुत सी शाला बंद होने की कगार पर है। इस अति संवेदनशील मामले पर हर अध्यापक को अब जागने की आवश्यकता है। कही ना कही हमे अपने अन्तर्मन मै झाकने की आवश्यकता है।
      संसाधन और अध्यापक या अतिथिशिक्षक की व्यवस्था होने के बाद भी टाप करना तो दूर शासकीय शाला गुणवत्ता के मामले मै पासिंग नम्बर भी नही ला पा रही। जबकि सभी शासकीय शाला मै पदस्थ अध्यापक प्रतिस्पर्धा परीक्षा मै टाप करके ही आते है। आम के पेड मै आम ही लगते है, फिर कैसे इन प्रतिस्पर्धा प्रतियोगीताओ के विजेताओं से नयी प्रतिभाओ का सृजन नही हो पा रहा ? क्यों चले गये मेरी शाला छोडकर छात्र?? इस प्रश्न पर हर अध्यापक विचार करे ।सतत व्यापक मुल्यांकन, दक्षता संवर्धन, बेसलाइन, प्रतिभा पर्व सब मिलकर भी शाला मै प्रतिभाओं का सृजन नही कर पा रहे है। इसी तारतम्य मै अब शाला सिद्धी योजना जोड दी गयी है। निश्चित हि शाला सिद्धी योजना मै एक ईमानदार अध्यापक की आत्मा बसती है। लाखो अध्यापक-प्रशिक्षण , हजारो कार्यशाला, अनगिनत बैठक और अनाप-शनाप आर्थिक नुकसान सिर्फ इस प्रश्न का हल खोजने मै लगा है की शासकीय शाला मै ऐसा क्या -क्या करे हो की यहाँ के छात्र अन्य विद्यालय मै  ना जाये ?? सरकार इस समस्या के हल से भी अनभिज्ञ नही है, पर हल करना ही नही चाहती है। शाला सिद्धी योजना का प्रशिक्षण लेते समय एक विडियो दिखाया गया । इस विडियो मै बताया गया की एक शासकीर शाला मै ,मात्र एक अध्यापक, किराये के भवन मै कुल 5 कक्षाओ को एक साथ बहुत ही सुनियोजित तरीके से सभी संसाधनो के आभाव मै पढा रहे थे। प्रशिक्षण मै बताया गया की ऐसे ही टीएलएम से हम भी अपनी शाला मै पढाये, किन्तु वास्तव मै तो इस विडियो ने कुछ और ही संदेश दिया।वह यह कीइस विडियो की तरह एक ईमानदार अध्यापक हर शाला मै पदस्थ कर दिजिये, तो शासकीय शाला फिर से बच्चों से खचाखच भर जायेगी। इस बार गैरशैक्षणिक कार्य मै लिप्त रहने की विवशता भी नही है क्योकि हर शाला मै छात्र अनुपात मै अतीथी शिक्षक उपलब्ध है।कार्यशाला ,प्रशिक्षण,गोष्ठी, सब कुछ अध्यापकों को मानसिक रूप तैयार व प्रेरित करने हेतु आयोजित किये जाये। एक प्रेरित अध्यापक खुद अपनी अध्यापन विधी बना के वो सब कुछ कर दिखायेगा जो की अब तक  दिवास्वप्न मै था। जब शैतान इन्सान का माइन्ड वाश करके उसे आतंकवादी तक बना सकता है तो सरकार आम अध्यापक को बेहतर प्रबन्धन और शिक्षण हेतु प्रेरित तक नही कर सकती ?? करोडो रूपये प्रशिक्षण के नाम पर फूंकने की जगह हर शाला मै एक ईमानदार और समर्पित अध्यापको की टीम तैनात कर दी जाये तो शासकीय शाला के उजडते चमन मै फिर से बहार आ जायेगीं।
"आओ शाला और खुद के
को बचाने की बात करे
इस बार सफलता मिलने तक
प्रयास करे "

लेखिका स्वय अध्यापक है और यह  उनके निजी विचार हैं .

आदिवासी जिलों के 323 विद्याथी जे.ई.ई. और नीट परीक्षा में हुए कामयाब मण्डला जिले के 3 बैगा विद्यार्थी का नीट में चयन

यह आश्चयर्जनक परन्तु सत्य है कि मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए, आर्थिक अभाव से जूझते हुए प्रदेश के 20 आदिवासी बहुल जिलों के 323 विद्यार्थियों ने इस वर्ष जे.ई.ई. और एम्स, ए.आई.पी.एम.टी. और ए.आई.पी.एम.टी. (नीट) में सफलता हासिल की है। इसका उल्लेखनीय पक्ष यह है कि मण्डला, झाबुआ, धार और छिन्दवाड़ा जिले के 155 आदिवासी बच्चे इन परीक्षाओं में सफल हुए। मण्डला जिले के विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के 3 छात्र-छात्रा ने ए.आई.पी.एम.टी. (नीट) की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन तीनों बच्चों के परिवार मजदूर वर्ग से हैं।
सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाकर और आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिये की गयी विशेष शिक्षण व्यवस्था से यह परिणाम हासिल हुए हैं। वर्ष 2016-17 में जे.ई.ई. की परीक्षा में 250 छात्र-छात्राएँ सफल हुए और एआइपीएमटी (नीट) 73 विद्यार्थी ने सफलता हासिल की। इनमें 21 अनुसूचित-जनजाति के विद्यार्थी का आई.आई.टी. के लिये तथा शेष का एन.आई.टी. और अन्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में चयन हुआ। ए.आई.पी.एम.टी. (नीट) में सफल 73 में से 55 विद्यार्थी अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं। इसके पहले वर्ष 2015-16 में आरक्षित वर्ग के 153 छात्र-छात्रा इन परीक्षाओं में सफल हुए थे।
आदिवासी वर्ग के इन विद्यार्थियों की सफलता ने साबित कर दिया है कि मध्यप्रदेश के पिछड़े, आदिवासी और अंदरूनी क्षेत्रों में भी शिक्षा का प्रकाश फैल रहा है। वहाँ बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। इसी के अनुरूप सरकार भी उन्हें आवश्यक सुविधाएँ और मदद उपलब्ध करवा रही है, जिसके चलते उनकी प्रतिभा परवान चढ़ रही है और राज्य सरकार के शिक्षा व्यवस्था सुधार के प्रयासों को पंख मिल रहे हैं।
मध्यप्रदेश सरकार ने
आईआईटी/जेईई (मेन्स) प्रवेश परीक्षा के चयन में आदिवासी विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिये विभिन्न स्तर पर कई नवाचार और प्रयोग किये हैं। इन बच्चों को पढ़ाने के लिये अतिथि शिक्षकों के चयन में कड़े मापदंड निर्धारित किये गये हैं। उनके अध्यापन और परफार्मेंस का नियमित मूल्यांकन किया जाता है। विद्यार्थियों की विज्ञान विषय मे अभिरूचि पैदा हो और उन्हें विज्ञान के सिद्धांतों को समझने में आसानी हो, इसके लिये सभी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान के लिये प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं।
इसके अलावा बोर्ड परीक्षाओं की किताबों के साथ-साथ अन्य उच्च कोटि की संदर्भ पुस्तकों तथा प्रेक्टिस की व्यवस्था की गई। उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में पुस्तकालयों को अधिक सुदृढ़ बनाया गया। विद्यार्थियों को लायब्रेरी कार्ड जारी किये गये, जिससे वे लायब्रेरी की पुस्तकों का लाभ ले सकें। उन्हें विशेष रीडिंग मटेरियल भी उपलब्ध करवाया गया। राष्ट्रीय कोचिंग संस्थान FITJE, Fortune की अन्य परीक्षाओं में विद्यार्थियों को शामिल होने के अवसर उपलब्ध करवाकर नियमित अभ्यास करवाया गया। जिलों में किये गये प्रयासों की राज्य-स्तर पर निरंतर समीक्षा की गई। जिलों में अनेक नवाचार को प्रोत्साहित किया गया। इनमें मंडला जिले में 'नवरत्न' एवं 'ज्ञानार्जन' प्रोजेक्ट, डिंडोरी में 'आकांक्षा' प्रोजेक्ट, अनूपपुर जिले में 'प्रयास' तथा झाबुआ जिले में 'स्टेप' प्रोजेक्ट शामिल हैं। कलेक्टरों द्वारा चिन्हित विद्यार्थियों को प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों में कोचिंग की सुविधा उपलब्ध करवायी गई।
मण्डला जिले में ज्ञानार्जन प्रोजेक्ट में पिछले दो वर्ष में 85 विद्यार्थी का जे.ई.ई. और नीट में चयन हुआ है। पिछले वर्ष यहाँ के एक विद्यार्थी का चयन आई.आई.टी. खड़गपुर के लिये हुआ। जिले के बैगा जनजाति के छात्र रामेश्वर ग्राम सिंगारपुर, योगेन्द्र कुमार धुर्वे और कु. रश्मि धुर्वे ग्राम घुघरी का नीट में सिलेक्शन हुआ है। इनके माता-पिता मजदूरी के सहारे अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। मण्डला जिले में शिक्षण व्यवस्था में गुणवत्ता सुधार के लिये विशेष प्रयास किये गये हैं। नौ विद्यालय का चयन कर उन्हें सेंटर फॉर एक्सीलेंस बनाकर और प्रोजेक्ट नवरत्न शुरू किया गया। इसके अंतर्गत समाज को जोड़ने के लिये शाला-मित्र बनाये गये, जिनके जरिये उत्कृष्ट विद्यालयों का जीर्णोद्धार कर वहाँ बेहतर से बेहतर शिक्षण व्यवस्था की गयी।
शाला मित्र में जिले के सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, सदस्य, नगरपालिका के अध्यक्ष एवं विकासखण्ड स्तर के अधिकारी-कर्मचारी और शिक्षकों ने एक-एक दिन का वेतन दिया। साथ ही जिले के नागरिक, व्यवसायी और कान्ट्रेक्टर भी शाला-मित्र बनकर शिक्षा में उत्कृष्टता लाने में सहयोग दे रहे हैं।

Monday, September 5, 2016

रतलाम में अध्यापको ने शिक्षक दिवस पर डॉ राधाकृष्णन की प्रतिमा को ज्ञापन सौंपा और पूर्ण शिक्षक बनने का संकल्प लिया

राज्य अध्यापक संघ रतलाम द्वारा  शिक्षक दिवस की शाम को  डॉ राधाकृष्णन की प्रतिमा को ज्ञापन सौंपा और पूर्ण शिक्षक बनने का संकल्प  लिया । संघ द्वारा ज्ञापन में  प्रदेश  सरकार की नीतियों के द्वारा  शिक्षको की दुर्दशा उल्लेख किया गया था। इस अवसर पर जिलाध्यक्ष  डॉ मुनिद्र  दुबे ,प्रकाश शुक्ला ,रजनीश चौहान ,नरेंद्र सिंह पंवार ,मुकेश मालवीय ,निर्मल सिंह चौहान ,विजय पाण्डेय ,श्री शर्मा ,राजिव लवानिया और सुरेश यादव उपस्थित थे .। 

सरकार से एक लाख की सहायता लेने से इनकार करने वाली अध्यापक की बेवा को राज्य अध्यापक संघ ने एक लाख की सहायता प्रदान की

जगह जगह मनाये  जा  रहे  शिक्षक  दिवस  कार्यक्रमों के बीच  आज  मंडला में  अनुकम्पा नियुक्ति  के  बदले 1 लाख लेने  से  इंकार  करने वाली दिवंगत  अध्यापक श्री सुरेश दास सोनवानी की धर्मपत्नी श्रीमंती अमिरा सोनवानी  को  राज्य अध्यापक संघ  मंडला ने 1 लाख  रूपये  की  सहायता  राशि प्रदान की |
  श्रीमती सोनवानी को विभागीय अधिकारियों द्वारा  नियमो का हवाला देकर अनुकम्पा नियुक्ती देनें से  स्पष्ट मना  कर दिया गया था। विदित रहे श्रीमती सोनवानी ने रोते बिलखते वरिष्ठअधिकारियों से  कहा था की एक लाख में उनका गुजारा नही चल सकता ।
इस से क्षुब्ध होकर राज्य अध्यापक संघ ने अपने साथियों के माध्यम से 1लाख रूपये एकत्र कर के श्रीमति सोनवानी  को आज जिलाधीश मंडला कार्यालय के समक्ष श्रीमंती सोनवानी को सहायता प्रदान की गयी । .

शिवराज सिंह यह तो अन्याय की इंतिहा है ? - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)-स्कूलों में पढ़ाने वाली इन बेटियों का गुनाह क्या है शिवराज सिंह, जो इनसे बंधुआ श्रमिकों जैसा सलूक किया जा रहा है। यह बेटियां आपसे ज्यादा पढ़ी लिखी हैं। इनकी आवाज में आपसे ज्यादा मिठास है। यह बेटियां अपनी-अपनी बस्तियों, स्कूलों में आपसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इनके चेहरों की मुस्कराहट बताती है कि यह खुशियां बांटने के लिए ही आई हैं।  यह बेटियां हर दिन 40, 50 या 100 किलोमीटर की मुश्किल यात्रा तय कर स्कूल पहुंचती हैं, तो आप समझ सकते हैं कि यह आपसे भी ज्यादा मेहनती और परिश्रमी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह केे गोद लिए जिला विदिशा की इन बेटियों की इस तस्वीर  के जरिए आपको यह बताना चाहते हैं कि प्रदेश में ऐसी बीसियों हजार बेटियां हैं, जिनसे  आप स्कूलों में काम लेे रहे हैं, लेकिन बदले में उतना भी नहीं दे रहे, जितना वे खर्च करके अपने-अपने स्कूल पहुंचती हैं। यह बेटियां आपके ही प्रदेश की अतिथि शिक्षक हैं। स्कूलों में यह व्यवस्था आपने ही शुरू की है। इसीलिए आपसे ही यह सवाल है कि आपको अपने ही प्रदेश के युवा मासूम बेटे-बेटियों को गुलाम या बंधुआ बनाने का अधिकार किसने दिया। आपको अतिथि शिक्षक की व्यवस्था बनानी ही थी, तो कम से कम उसमें यह प्रावधान तो किया ही जा सकता था कि इन्हें मप्र सरकार का घोषित न्यूनतम वेतन मिले तथा यह तब तक स्कूलों में पढ़ाएं जब तक स्कूल रहें। लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया?
     आपको याद दिला दें। आपसे से पहले दिग्विजय सिंह ने भी शिक्षाकर्मी के रूप में ऐसी ही व्यवस्था की थी। हालांकि तब की अटल बिहारी सरकार के स्पष्ट निर्देश थे कि सरकारी खर्चे कम करें, भले ही कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़े। दिग्विजय सिंह ने ऐसा किया भी, लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षाकर्मी को निश्चित वेतन और काम की निरंतरता का अधिकार देकर ही नौकरी पर रखा। आपने तो अतिथि शिक्षकों के साथ ऐसा कुछ नहीं किया। अपने तो अपने ही प्रदेश के बेटे-बेटियों को ऐसे लालची अधिकारियों के हवाले कर दिया जो 50 से 70 हजार वेतन लेने के बाद भी मध्यान्ह भोजन के धनिया तक में कमीशन ले लेते थे। स्कूलों में बैठे यह अधिकारी अतिथि शिक्षकों को पीरियड के हिसाब से तय पारिश्रमिक का भुगतान ईमानदारी से करेंगे, ऐसा आपने कैसे सोच लिया था, जो इन्हें उनके रहमो करम पर छोड़़ दिया।    मुख्यमंत्रीजी आपकी सरकार अतिथि शिक्षकों के साथ जो सलूक कर रही है, वैसा सलूक कभी राजा-माराजे अपनी प्रजा गुलाम, बंधुआ बनाकर किया करते थे। यही बेटियां स्कूलों में बच्चों को पढ़ाती है कि इंसान को गुलाम और बंधुआ बनाने वाली व्यवस्था इतिहास के गर्त में जा चुकी है, इन्हें बच्चों को यह समझा दिया कि आप उस व्यवस्था को जिंदा कर रहे हैं, तब क्या होगा, कभी सोचा? यह बेटे-बेटियां, जिन्हें आप 5-7 हजार रुपए महीना नियमित नहीं दे सकते, उन्होंने स्कूलों में बच्चों को आपके बारे में पढ़ाने शुरू कर दिया, तब क्या होगा, जरा विचार कीजिए। इन्होंने बच्चों को बता दिया कि गांव के गरीब किसान का बेटा शिवराज जो कभी पैदल चला करता था, आज उनके पास नोट गिनने की मशीनें हैं, तब स्कूलों के बच्चे भी आपसे नफरत करने लगेंगे। इस स्थिति से बचना है, तो कम से कम अतिथि शिक्षकों के साथ न्याय कीजिए। वे सालों से   संघर्ष कर रहे हैं, साल में दो-चार बार भोपाल आते हैं, लेकिन आप इनसे मिलते तक नहीं है, यह भी तो ठीक नहीं।
जिस तरह शिक्षाकर्मी रखने वाले दिग्विजय सिंह राजनीति में हाशिए पर हैं, कहीं अतिथि शिक्षक रखकर आप भी राजनीतिक हाशिए पर न पहुंच जाएं, इससे बचने के लिए ही सही अतिथि शिक्षकों की सुनिए और उनसे बात कीजिए।आज उन्होंने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है, कल कहीं आपका बहिष्कार कर दिया, तब क्या होगा? जरा सोचिए?(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं ।)


Saturday, September 3, 2016

विभिन्‍न माडल स्‍कूलों में शिक्षकों के रिक्‍त पदों पर स्‍थानीय स्‍तर से व्‍यवस्‍था के संबंध में

विभिन्‍न माडल स्‍कूलों में शिक्षकों के रिक्‍त पदों पर स्‍थानीय स्‍तर से व्‍यवस्‍था के संबंध में ,सभी जिलाधीश  से अनुरोध किया गया है ,पत्र  में कहा गया है की ,शिक्षकों की नियुक्तियां प्रक्रियाधीन हैं ,इस लिए मुख्यालय स्तर  पर निकटस्थ शालाओ में  कार्यरत ऐसे  शिक्षको को जिनके पास अपर्याप्त काम  है उन्हें मॉडल स्कुल में अध्यापन के लिए निर्देशित किया जाए । शिक्षको - अध्यापको को स्थानीय निधि से यात्रा व्यव भी प्रदान किया जा सकता है।
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जिला एवं विकासखण्‍ड स्‍तर के 313 उ.मा.वि. में एन.एस.क्‍यू. एफ. योजना अंतर्गत व्‍यवसायिक शिक्षा पाठयक्रम के संबंध में शासन आदेश

  जिला एवं विकासखण्‍ड स्‍तर के 313 उ.मा.वि. में एन.एस.क्‍यू. एफ. योजना अंतर्गत व्‍यवसायिक शिक्षा पाठयक्रम प्रारम्भ करने के संबंध में शासन ने आदेश जारी किया  है।  इसमें कक्षा 9 और 10 में तृतीय  भाषा के स्थान पर व कक्षा 11 और 12 में द्वितीय भाषा के स्थान पर एक व्यवसायिक पाठ्यक्रम चयनित किया जा सकेगा ,कुल 9 व्यवसायिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जा रहे है इसमें प्रत्येक विद्यालय में केवल 2 पाठ्यक्रम  संचालित किये जाएंगे। पाठ्यक्रम इस प्रकार हैं  बैंकिंग एवं फायनेनशियल सर्विस ,ब्यूटी और  वेलनेस ,इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी ,हेल्थ केयर ,आईटी-आइटिस ,फिजिकल एजुकेशन और स्पोर्ट्स ,रिटेल ,ट्रेवल और टूरिज्म ,सुरक्षा ।
     उक्त पाठ्यक्रम में 9 वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 1 का प्रमाण पत्र ,10  वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 2 का प्रमाण पत्र ,11 वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 3  का प्रमाण पत्र ,
12 वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 4  का प्रमाण पत्र ,प्रदान किया जाएगा आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें

                       





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Thursday, September 29, 2016

केवल सरकारी विद्यालयों की ही दुर्दशा क्यों ? राहुल रूसिया

      जब से शिक्षा का अधिकार लागू हुआ है तब से हमने देखा है की शिक्षा की दुर्दशा केवल सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए ही हुई है और उनका पढ़ाई में स्तर वास्तव में गिरा है यह सोचने वाली बात है की शिक्षा के अधिकार अधिनियम के सभी प्रावधान प्राइवेट स्कूलों में भी लागू होते हैं परंतु उधर पर इतनी बुरी स्थिति नहीं है बल्कि इस अधिनियम का फायदा उधर पर छात्रों एवं स्कूलों को हुआ है तो फिर सरकारी स्कूल शिक्षा के अधिकार को अभिशाप क्यों मानते हैं यहां पर सबसे गंभीर प्रश्न यही है की जो चीज निजी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रही है वही शासकीय क्षेत्र में प्रभावहीन क्यों है.      जहां तक मेरा मानना है तो शासकीय क्षेत्र में शिक्षा का स्तर गिरने की सबसे बड़ी वजह शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन सरकार के द्वारा अभी तक स्वयं नहीं किया जाना है ना तो सरकारों ने अधिनियम के अनुसार विद्यालयों का सेटअप बनाया नाही शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण दिया और ना ही विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक भेजें बल्कि इसके उलट जो विद्यालय पहले अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे उधर पर भी शिक्षकों को जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड मैपिंग रजिस्ट्रेशन स्वच्छता अभियान led वितरण मध्यान भोजन आदि में उलझा दिया और विचारा शिक्षक चाह कर भी विद्यार्थियों को शिक्षित नहीं कर सका इसके अतिरिक्त नाम न काटने की बाधा एक ऐसी समस्या है जिससे पलायन करने वाले छात्र जबरदस्ती उसी विद्यालय में दर्ज रह जाते हैं और विचारा शिक्षक उनका नाम जबरदस्ती क्लास दर क्लास आगे बढ़ाता रहता है मेरे हिसाब से इस अधिनियम में एक दो चीजों को छोड़कर कोई भी बंधन शिक्षा की राह में और विद्यालय के स्तर में रुकावट नहीं डालता बल्कि बाधाओं को दूर करता है परंतु सरकारी संसाधन सीमित है और गैर शिक्षकीय कार्य भरमार है यदि संसाधन बढ़ा दिए जाएं और गैर शिक्षकीय कार्य शिक्षकों से ना कराए जाएं तो यह अधिनियम निश्चित रूप से शासकीय क्षेत्र में भी शिक्षा का स्तर सुधार देगा  


( लेखक स्वयं अध्यापक हैं  और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस  लेख को  तृतीय स्थान प्रदान  किया गया है  )

सरकारी शालाएं ही क्यों निशाना बनी ? - कुलदीप श्रीवास्तव डबरा

कुलदीप श्रीवास्तव -यहाँ एक बात मेरे मन में आती है कि सरकारी शालाएं ही क्यों निशाना बनी ..सरकार के लिए,दरअसल एक ऐसा समय भी था जब शिक्षा प्राप्त करना एक विशेष वर्ग के लिए ही सुनिश्चित था सेवा कार्य करने वाले लोगो के लिए शिक्षा प्राप्त करना टेडी खीर थी ...तब तक यह भी था सरकारी शालाओ में इतनी व्यवस्था ख़राब नही रही शिक्षको को भी उचित सम्मान और सुविधाये मिलती रही समस्या तब से शुरू हुई है जब शिक्षा को मौलिक अधिकारो में शामिल कर लिया गया अब हर वर्ग को शिक्षित करना राज्य और संघ की जिम्मेदारी हो गई यहाँ से आप देखते है नीतिओ में बदलाव कैसा है
        स्कूलो में मध्यान्ह भोजन निशुल्क पुस्तके और अन्य सुविधाये विशेष वर्ग को छात्रवृतिया और सरकारी नुमाइंदे प्रयोग पर प्रयोग करने लगे यहाँ तक कि शिक्षक अब शिक्षक नही रहा उसके कई नाम कर दिए और सुविधाये समय दर समय कम होती गई अब सरकार ने यह पूरी तरह से मान ही लिया कि सरकारी विद्यालय में केवल निर्धन मजदूर किसान आदि के बच्चे पढ़ते है योजनाये भी वैसे ही अपना आकार लेने लगी है और तब ख़ास वर्ग के बच्चों की शिक्षा हेतु निजी विद्यालयो की आवश्यकता महसूस हुई और धड़ल्ले से मान्यताये मिलने लगी और खुल गई दुकाने शिक्षा की पर यहाँ हो सकता है कुछ अध्यापक अपवाद हो सकते है पर अध्यापक आज भी पढ़ाना ही चाहता है पर सच्चाई तो यही है कि ये सरकारें नही चाहती है कि विद्यालयो में ऐसा कुछ हो उन्हें अपने वोट बैंक पर खतरा नजर आता होगा शिक्षा और निर्धन के बीच दूरी बनी रहे यही सोच के साथ काम कर रही है सरकारें और तभी तो अल्प वेतन विना सुविधाओ वाले अध्यापको को सरकारी काम से लाद कर घोड़े की तरह दौड़ाने का प्रयास कर रही है सरकार
   परिणाम अपेक्षित कभी नही आयेगे . इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश कोर्ट ने शिव भाई की याचिका पर निर्णय दिया था कि अधिकारियो के बच्चों को सरकारी विद्यालयो में पढ़ाना चाहिए ...सब सरकार चुप्पी साध के बैठ गई

( लेखक स्वयं अध्यापक हैं  और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस  लेख को  तृतीय स्थान प्रदान  किया गया है  )

कविता @ शिक्षा का निजीकरण -विवेक मिश्र नरसिंहपुर

शिक्षा के निजीकरण- व्यवसायीकरण की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
उद्योगपतियों, पूंजीपतियों, राजनेताओं, अधिकारियों के बोर्डिंग स्कूल चलाने की यह कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षण, परिवहन और उच्च शिक्षा हेतु लोन व्यवस्था कर बच्चों के पालकों को लूटने की फिर से तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
कापी-किताबें, पेंट-शर्ट, टाई-बैच, बस्ता-बेल्ट, जूते - मोजे,महंगे और चिन्हित दुकान से ही खरीदवाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
स्वयं के, परिजनों के और खासम-खासों के बच्चों को. स्वयं के स्कूलों में पढ़ाकर आगे बढ़ाने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
बोर्डिंग स्कूल, हाॅस्टल सुविधा, समर कैंप, एक्स्ट्रा क्लासेस, पिकनिक विजिट की महिमा न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
दूध, एमडीएम, साइकिल, गणवेश, छात्रवृत्ति, लेपटाप देने के बाद भी छात्रसंख्या में कमी जारी है....
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
२५ प्रतिशत वंचित समूह के बच्चों को निजी शालाओं में भर्ती कराकर सरकारी स्कूल बंद कराने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
यही नहीं, इन २५ प्रतिशत बच्चों पर व्यय होने वाली सरकारी राशि भी ठिकाने लगाने की पूरी कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजी स्कूलों में अमीर- गरीब बच्चों के लिए भेदभावपूर्ण दोहरी शिक्षाव्यवस्था और मापदंड अपनाने की पूरी हुई तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
हजारों शिक्षकों और उनपर आश्रित परिवारों को बेरोजगार कर भूखा मारने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
लाखों पढ़े - लिखे सुशिक्षित नौजवान पीढ़ी की रोजगार की उम्मीद पर पानी फेरने की ये तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से गुलामी वाली मानसिकता और तानाशाही रवैया अपनाने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा को संविधान के मौलिक अधिकारों से पृथक करने की सुनियोजित षड्यंत्रकारी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
विवादित नीतियां और लालफीताशाही की पेंचीदियाॅं हो रहीं निःशुल्क शिक्षा पर भारी हैं...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समुदाय, आरक्षण के आधार पर उच्च शिक्षा के शिक्षण पर पाबंदी की कुटिल नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, काला धन निवेश, विदेशी पूंजी निवेश कर मुनाफाखोरी करने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक, शिक्षाकर्मी, संविदा, गुरुजी, अतिथि आदि संवर्गो के माध्यम से "divide & rule" जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
राजीव गांधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान के बाद राज्य शिक्षा सेवा से वर्ल्ड बैंक की राशि ठिकाने लगाने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
१ली से ८वीं तक पास कराने की नीति द्वारा केवल साक्षर कर पंगु बनाने की नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
"प्रतिशत सिस्टम" हटाकर "ग्रेडिंग सिस्टम"  के द्वारा मेहनती बच्चों के वास्तविक मूल्यांकन से खिलवाड़ जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों को शिक्षा के अतिरिक्त अन्यान्य कार्यों में लगाकर परिणाम प्रभावित होने पर बदनाम करने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षा के निजीकरण द्वारा इसे संविधान के मौलिक अधिकार में उल्लेखित अपनी महती जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों के वेतन को छोड़ RTE के सभी नियमों का कागजी आंकड़ों पर पालन कराने की लीला न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक पद की गरिमा, स्वाभिमान, मान-सम्मान को कलंकित करने की सिस्टेमेटिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है..
शिक्षा बेचारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
नालंदा, तक्षशिला की बर्बादी जैसी साजिश हुए, स्कूल सरकारी हैं.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
गली, मुहल्ले, कूचों में 2 कमरों में स्कूल! मान्यता नीति न्यारी है.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...

( लेखक स्वयं अध्यापक हैं यह कविता १९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में द्वितीय स्थान पर रही है )

पंचायती राज व्यवस्था के नाम पर नए शिक्षको का शोषण क्यो ? - महेश देवड़ा कुक्षी जिला-धार


 महेश देवड़ा - 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1993 ने राज्य सरकारो को पंचायतों को ऐसे अधिकार प्रदान करने का अवसर दिया जो उन्हे स्वायत्त शासन की संस्थाओ के रूप मे कार्य करने मे अधिक समर्थ बना सके । इसके तहत आर्थिक विकास ओर सामाजिक न्याय सबके लिए सुलभ करने के उद्देश्य से संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची मे वर्णित विषयों के संबंध मे पंचायतों को जरूरी शक्तियाँ ओर प्राधिकार प्रदान किए गए । 11 वीं अनुसूची मे “शिक्षा , जिसके अंतर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक विध्यालय भी है” का विषय भी सम्मिलित है । भारत के संविधान के 73 वें संविधान संशोधन के अनुरूप प्रदेश मे भी मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 , दिनांक 25 जनवरी 1994 से लागू किया गया । परिणामतः शिक्षा संबंधी कार्य एवं उत्तरदायित्व भी पंचायतों ओर स्थानीय निकायों को सोंपने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई । इस प्रक्रिया से सबसे अधिक प्रभावित हुआ प्रदेश का शिक्षक समुदाय । 1995 मे एक आदेश से राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश के विध्यालयों मे कार्यरत नियमित शिक्षक संवर्गों को मृत संवर्ग (डाईंग केडर) घोषीत कर दिया । इसके बाद से ही प्रदेश के उच्च शिक्षित बेरोजगार युवाओ के शोषण का सिलसिला शुरू हुआ । शिक्षको के रिक्त पदो पर अल्पतम वेतन या मानदेय आधारित शिक्षाकर्मी , गुरुजी ओर संविदा शिक्षक के रूप मे भर्ती प्रारम्भ हुई । पंचायत राज अधिनियम के अनुपालन मे प्रदेश के शिक्षा विभाग ओर आदिम जाती कल्याण विभाग के समस्त स्कूलों का हस्तांतरण भी जनपद एवं जिला पंचायतों को कर दिया गया ।  साथ ही नियमित शिक्षको के रिक्त पदों के विरुद्ध जनपद एवं जिला पंचायतों के द्वारा शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति की जाने लगी । ये अलग बात है की इन शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति, पदोन्नति, नियमितिकरण एवं वेतनमान संबंधी समस्त नियम राज्य शासन द्वारा ही बनाए गए । नियमितीकरण के बाद भी इन शिक्षाकर्मियों को राज्य शासन के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से भी कम वेतनमान दिया गया । इस प्रकार पंचायत अथवा स्थानीय निकायों के कर्मचारी होने के नाम पर इन शिक्षाकर्मियों को न केवल अपमानजनक वेतन दिया गया अपितु शासकीय कर्मचारियो को मिलने वाली अन्य सुविधाओ जैसे बीमा, पेंशन, स्थानांतरण, गृह भाड़ा भत्ता जैसी मौलिक सुविधाओ से भी वंचित कर दिया गया । एक ही विध्यालय मे अनेक तरह के शिक्षको की नियुक्ति कर एक वर्ग विषमता का वातावरण निर्मित कर दिया गया । जिसका स्वाभाविक दुष्प्रभाव प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था ओर शेक्षणिक गुणवत्ता पर भी पड़ा । इस विरोधाभास ओर भेदभाव के विरुद्ध शिक्षाकर्मी निरंतर संघर्ष ओर आंदोलन करते रहे । 2007 मे राज्य सरकार ने अध्यापक संवर्ग का गठन किया ओर कर्मिकल्चर को समाप्त करने का दावा किया । पूर्व शिक्षाकर्मियों ओर संविदा शिक्षको का अध्यापक संवर्ग मे संविलियन कर नवीन वेतनमान दिया गया । परंतु सिर्फ नाम परिवर्तन से इन अध्यापको की व्यावहारिक स्थिति मे कोई बदलाव नहीं आया । नवीन वेतनमान देने से वेतन तो बढ़ा परंतु तुलनात्मक रूप से नियमित शिक्षक संवर्ग के वेतनमान से अध्यापक संवर्ग अब भी बहुत पीछे था क्योकि तब तक प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को 2006 से छठवाँ वेतनमान मिल चुका था । जबकि अध्यापक आज भी पंचायतों एवं स्थानीय निकायों के कर्मचारी होने के कारण छठवें वेतनमान से वंचित है । 2013 मे एक बड़े आंदोलन के बाद सरकार ने किश्तों मे छठवें वेतन के समतुल्य वेतन अध्यापको को देने का आदेश जारी किया । इसके बाद सितंबर 2015 मे फिर एक बार अध्यापकों ने जोरदार आंदोलन किया फलतः सरकार ने 1 जनवरी 2016 से ही अध्यापकों को छठवें वेतनमान का लाभ देने की घोषणा की । परंतु लगभग एक वर्ष होने के बाद भी मुख्यमंत्री महोदय की घोषणा पर अमल नहीं किया जा सका है । जिससे आक्रोशित अध्यापको ने पुनः एक बार संघर्ष प्रारम्भ करते हुए 25 सितंबर 2016 को प्रदेश के सभी जिलो मे विशाल तिरंगा रैलियों का आयोजन किया ओर एक बार फिर बड़े आंदोलन के संकेत भी दिये । वर्तमान अध्यापक आंदोलन का मुख्य कारण शिक्षा विभाग मे संविलियन ओर समान कार्य समान वेतन प्राप्त करना है । अध्यापको को ये आशंका है की अगर उनकी उक्त मांगे पूरी नहीं हुई तो जनवरी 2016 से देश एवं प्रदेश के सभी कर्मचारियो को मिलने वाले सातवें वेतनमान से भी वे वंचित हो जाएंगे । इन परिस्थितियों मे अध्यापको का आंदोलित होना स्वाभाविक है । 
अध्यापकों की शिक्षा विभाग मे संविलियन की मांग इस लिए है की शिक्षा विभाग मे शामिल होते ही उन्हे प्रदेश के अन्य शासकीय कर्मचारियों ओर नियमित शिक्षक संवर्गों को मिलने वाले वेतनमान ओर अन्य सुविधाएं स्वतः मिल जाएगी ओर उनकी सभी समस्याओं का स्थायी निराकरण हो जाएगा। परंतु शासन द्वारा हमेशा से इस मांग को 73 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा ओर इससे संबन्धित समस्त व्यवस्थाओं का पंचायतों एवं स्थानीय निकायों को हस्तांतरण हो जाने की बात कह कर खारिज कर दिया जाता है । ऐसे मे एक स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है की सरकार के तमाम दावो के बीच क्या प्रदेश के शिक्षा विभाग ओर आदिम जाती कल्याण विभाग के समस्त स्कूल पंचायतों ओर स्थानीय निकायों को वास्तव मे हस्तांतरित कर दिये गए है ? व्यवहार मे यह देखा गया है की इन विभागो के स्कूलों मे अध्यापकों की पदस्थापना के अलावा समस्त वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार आज भी हस्तांतरित नहीं किए गए है । पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम की भावना के अनुरूप स्कूल शिक्षा विभाग ने भी ग्रामीण क्षेत्र मे समस्त शालाओं के संचालन ओर प्रबंधन जिला पंचायतों को सोंपने का आदेश जारी किया साथ ही समस्त शालाओं के भवन , उपकरण एवं चल अचल संपत्ति तक पंचायतों को हस्तांतरित किए जाने के आदेश भी हुए है । परंतु ईनका व्यवहार मे कितना पालन हुआ है ये विचारणीय है । अब तो शालाओं मे रिक्त पदो पर नियुक्ति भी संविदा शाला शिक्षक भर्ती परीक्षा के माध्यम से ऑनलाइन केंद्रीकृत व्यवस्था से शिक्षा विभाग के ही निर्देशों से होती है  । ऐसे मे जिला एवं जनपद पंचायतों का काम महज ओपचारिक आदेश जारी करने तक रबर स्टांप के रूप मे ही है । व्यवहार मे सभी संविदा शिक्षकों एवं अध्यापको की सेवाओ पर वास्तविक नियंत्रण शिक्षा विभाग एवं आदिम जाती कल्याण विभाग का ही है । अध्यापकों के भर्ती नियम से लेकर नियुक्ति , पदोन्नति , वेतन नियमन, प्रशासकीय एवं वित्तीय नियंत्रण तक सब वास्तव मे शिक्षा विभाग ही करता है । ऐसे मे अध्यापको से नियमित शिक्षकों के समान समस्त कार्य लिया जाकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियो सा वेतन दिया जाना न्याय संगत नहीं है । 73 वें संविधान संशोधन ओर पंचायत राज अधिनियम की आड़ मे अध्यापको का ये शोषण 18 वर्षों से जारी है । उक्त संशोधन के द्वारा पंचायतों को शिक्षा संबंधी अधिकार ओर उत्तरदायित्वों का वास्तविक हस्तांतरण किया जाना था ना की प्रदेश के बेरोजगार युवको के शोषण का अंतहीन सिलसिला शुरू किया जाना था । अधिनियम के तहत शिक्षको की नियुक्ति का अधिकार भले पंचायतों को दिया गया हो पर ना तो 73वां संशोधन ओर ना मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम अध्यापको को समान वेतन देने से रोकता है । पंचायत विभाग के कर्मचारी मानते हुए भी शासन अध्यापकों को शासकीय कर्मचारियों के समान वेतनमान ओर सुविधाएं दे सकता है । शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के बाद शिक्षा के अधिकार पर तो बहुत चर्चा हुई पर अब यह भी जरूरी है की शिक्षकों के अधिकारों पर भी चर्चा हो । निःशुल्क ओर अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुक्रम मे बने नियम-2010 के भाग 6 नियम 20(3) मे भी स्पष्ट उल्लेखित है की  “सभी अध्यापको के वेतनमान ओर भत्ते, चिकीत्सकीय सुविधाएं, पेंशन, उपदान, भविष्य निधि ओर अन्य विहित फायदे, वेसी ही अर्हता ,कार्य ओर अनुभव के लिए बराबर होंगे”। अब समय आ गया है की मध्यप्रदेश सरकार इस भेदभावपूर्ण ओर शोषणकारी व्यवस्था को जड़मूल से समाप्त करे ओर संविधान के समानता के मौलिक अधिकार ओर अनुच्छेद 39 की समान कार्य के लिए समान वेतन की भावना के अनुरूप कार्य करे ना की पंचायती राज व्यवस्था के नाम पर अध्यापकों का शोषण  करे ।  (लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं 
१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस लेख को  प्रथम स्थान प्रदान  किया गया है)

Saturday, September 24, 2016

अध्यापक अब संविलियन से कम पर राजी नहीं होगा -सुरेश यादव (रतलाम)

सुरेश यादव रतलाम -18 सितम्बर को  जिस दिन से अध्यापको के सभी संघ एक जाजम पर आये है,अध्यपको के अंदर  सकारात्मक  ऊर्जा का संचार हुआ है । मंगलवार से शुक्रवार के मध्य 4 दिनों में  प्रदेश के  सभी जिलो में अध्यापक संघर्ष समिति का  गठन हो गया है ।

एक बात  जो मैंने समझी है या मेरा आकलन है 18 के बाद से हमारे अध्यापक साथी रात्री 11 बजे के बाद सोश्यल मिडिया पर सक्रिय नहीं रहते  साथ ही अब तो दिन में भी बहस से दूर है । मेरा मानना है की एकता के कारण सभी  साथी बड़े आराम से नींद ले पा रहे है ,जो कंही खो ,सी गयी थी ।
कोई किसी पर गलत टिका टिप्पणी नहीं कर रहा न कोई  किसी की आलोचना कर रहा है ।सब एक दूसरे को सम्मान दे रहे हैं  सभी का एक ही लक्ष्य है कि 25 के अंदोलन को सफल बनायें । हाँ अध्यापक के निशाने पर यदि कोई है तो वह मध्य प्रदेश के मुखिया और सरकार  है ।
अध्यापक संघर्ष के ऐतेहासिक 18 वर्षो में पहली बार ज्ञापन में शिक्षा विभाग को बचाने के मुद्दे भी सम्मिलित किये गए है ।पहले ये मुद्दे अध्यापक अंदोलन के मुख्य नारे हुआ करते थे ।यह ज्ञापन सोश्यल मिडिया में बड़े विचार विमर्श के साथ बनाया गया है।इसे आम अध्यापक का ज्ञापन भी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी  । इस 21 सूत्रीय ज्ञापन में वह सभी मुद्दे है जो आम अध्यापक के अधिकारों की पूर्ति करते है ,साथ ही इसमें गाँव गरीब की शिक्षा को बचाने ,युवाओ के रोजगार संरक्षण और निजीकरण पर रोक की मांग भी सम्मिलित है । इस ज्ञापन में व्यवस्था सुधार के जो मुद्दे है उन एक एक मुद्दे पर बड़ी कार्यशाला आयोजित की जा सकती है । आम अध्यापक संमझ गया है कि विभाग सुरक्षित रहा तो ही उसकी आजीविका चलती रहेगी ।
यह क्रांतिकारी ज्ञापन जब सरकार के नुमाइंदों तक जाएगा तो वे बगले झांकने को मजबूर हो जाएंगे ,निश्चित रुप से यह ज्ञापन अखबारों में छपेगा तो आम जन में  स्वतः हमारे प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनेगा ।यह मुद्दे बुद्दिजीवियों और शिक्षाविदो के विचार विमर्श के केंद्र बिंदु होंगे ।
सभी संगठनो के एक जाजम पर आने से आम अध्यापक इस वक्त स्वय को विजेता मान रहा है यही उसकी चैन की नीद की एक वजह है, वह मनाता है कि एक होने से ही वह  आधी जंग जित गया है ।और कल अखबारों व समाचार चैनलों में  प्रसारित समाचार से उसका उत्साह दोगुना कर दिया है ,लेकिन प्रदेश का अध्यापक इन खबरों को सच्चाई अच्छी तरह से जान चुका है वह अब सरकार के बहकावे में आने  वाला नहीं है ,वह सिर्फ आदेश पर विश्वास करेगा । आम अध्यापक की तरफ से स्पष्ट संकेत है कि बात सरकार के किसी नुमाइंदे से कोई बात नहीं अब सिर्फ आदेश हो ।यही नहीं आम अध्यापक अपने 2013 ,2015 और 2016 के अनुभव को दृषिटगत रखते हुए ।अब स्वय को संविलियन तक एक रखने का मन बना चुका है । इस  बीच यदि कोई भी एकता में बाधक बना तो अध्यापक उसे कंही का नहीं छोड़ेगा और अपनी नजरो से सदा के लिये गिरा देगा ।

सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर अध्यापकों ने तैयार किया 21 सूत्रीय मांगपत्र - वासुदेव शर्मा


वासुदेव शर्मा - 25 सितंबर को तिरंगा रैलियों के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचने वाला ज्ञापन अध्यापकों के बीच तीन-चार दिन तक चले विचार-विमर्श के बाद तैयार हो गया है। अध्यापक संघर्ष समिति की ओर से उक्त मांगपत्र को फेशबुक और वाट्स-एप पर लोड कर दिया गया है। अध्यापक संघर्ष समिति का गठन, 25 सितंबर की तिरंगा रैली का निर्णय एवं दिए जाने वाले ज्ञापन के लिए जिस तरह अध्यापकों के बीच सामूहिक विचार-विमर्श की प्रक्रिया को अपनाया गया है, इससे एक बात स्पष्ट है कि सरकारों की 15-20 साल की उपेक्षा ने हर अध्यापक को इतना सक्षम बना दिया है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया में न केवल भागीदारी करता है बल्कि उसे अमल में लाने के लिए जी-जान से जुट भी जाता है। 25 सितंबर की तिरंगा रैली के प्रति अध्यापकों के बीच जो उत्साह है, वह बताता है कि आम अध्यापक मुश्किलों एवं परेशानियों से जूझते-जूझते इतना मजबूत हो चुका है कि उसे अब तोडऩा सरकार के बस की बात नहीं रही, इसीलिए आज जब अध्यापकों को भ्रमित करने वाला समाचार अखबारो में आया, तो आम अध्यापक की ओर से उसे खारिज करते हुए कहा गया कि यह साजिश है जो 25 सितंबर की तिरंगा रैली को असफल करने के लिए रची गई है। उक्त समाचार पर अध्यापकों की प्रतिक्रिया बताती है कि वह सही और गलत का निर्णय करने में सक्षम हो चुका है, यही वो कारण है जिसने अध्यापक संघर्ष समिति के गठन के बाद साढ़े तीन लाख अध्यापकों को एक साथ उत्साहित कर दिया है।

इसी मांगपत्र से आएंगे अच्छे दिन


21 सूत्रीय मांगपत्र की हर मांग महत्वपूर्ण है। गहन विचार-विमर्श के बाद जो मांगपत्र सामने आया है, कर्मचारी वर्ग के हर तबके के बीच व्याप्त वेतन विसंगति को समाप्त करने की मांग तो करता ही है, घर-घर में बैठे बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते बनाने के लिए भी सरकार से कहता है। मांगपत्र में अध्यापकों को शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग को प्रमुखता से उठाया गया है, वहीं अतिथि शिक्षकों को गुरूजियों की तरह संविदा शिक्षक बनाने की मांग भी सरकार से करता है। इससे भी आगे जाकर मांगपत्र ने संविदा भर्ती बंद कर सीधे अध्यापक की भर्ती शुरू करने की मांग पूरी ताकत से उठाई है, इस मांग का मतलब है कि सरकार जिस संविदाकरण की नीति पर चल रही है, उसे पूरी तरह बदला जाए, जिससे संविदा की नौकरी पाने वाले बेरोजगार युवाओं के जीवन में निश्चिंतता आए। उक्त मांगपत्र की एक-एक मांग अध्यापकों के जीवन से जुड़ी मांग है, जिसमें 15-20 साल के शोषण से मुक्ति चाही गई है। जनवरी 2013 से छठवां एवं जनवरी-2016 से सातवें वेतनमान की मांग का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि इनके पूरा होने के बाद अध्यापकों को एरियर के रूप में जो राशि मिलेगी, उससे आम अध्यापक को कुछ समय के लिए आर्थिक तंगी से निजात मिलेगी।


सरकारी स्कूल ही गरीबों का सहारा


21 सूत्रीय मांगपत्र में ही सरकार से यह मांग की गई है कि वह गरीबों से उसका सहारा नहीं छीने। सरकारी स्कूल ही हैं जो दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरों की गरीब बस्तियों के बच्चों को पढ़ा लिखाकर समाज में बराबरी से जीने के लायक बनाते हैं। सरकार ने जिस तरह निजी स्कूल के लिए आने वाले हर आवेदन पर मान्यता देने की नीति बनाई है, उसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि किराने की दुकान की तरह निजी स्कूल खुल गए हैं, जिनमें न योग्य शिक्षक होते हैं और न ही अच्छी पढ़ाई होती है। चूंकि सरकार खुद निजी स्कूलों को बढ़ावा दे रही है और उनकी आर्थिक मदद कर रही है, इस कारण यह स्थिति बनी है। 25 सितंबर के मांगपत्र में 5000 की आबादी वाले गांव एवं कस्बों में निजी स्कूल को मान्यता न देने तथा जहां दे दी गई है, उसे निरस्त करने की मांग की गई है। ध्यान रहे यह ऐसी मांग है, जो सरकारी स्कूलों को बंद होने से बचाएगी तथा बड़ी संख्या में सरकार को नए सरकारी स्कूल खोलने के लिए मजबूर करेगी, जिससे शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। वैसे भी शिक्षा विभाग ही एक ऐसा विभाग है, जहां सबसे अधिक रोजगार पैदा होते हैं, जिन्हें खत्म करने पर सरकार तुली हुई है, इसीलिए वह निजी स्कूलों को मान्यता देती जा रही है।


लक्ष्य बड़ा है तो लड़ाई भी बड़ी ही होगी

18 सितंबर को भोपाल में अध्यापक संघर्ष समिति बनाकर सभी पांचों अध्यापक संगठनों के नेताओं ने संघर्ष का जो लक्ष्य तय किया है, वह बड़ा लक्ष्य है, इसीलिए उसी दिन इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ी लड़ाई की तैयारी की घोषणा भी की गई। 25 सितंबर की तिरंगा रैली इसकी शुरूआत है। इसके आगे अध्यापकों का यह आंदोलन गांव, गली, मोहल्लों, कस्बों, शहरों, कालोनियों से गुजरते हुए जब अपनी मंजिल की तरफ बढ़ेगा, तब हर वह व्यक्ति हैरान रह जाएगा जो चौड़ी सडक़ों और आलीशान बिल्डिगों को ही विकास मानकर संतुष्ट हो चुका है। 25 साल के उदारीकरण ने मानवीय विकास को ठप्प कर व्यक्तियों को मुनाफाखोरों के लिए नोट उगलने की मशीन में तब्दील कर दिया है। प्रदेश का साढ़े तीन लाख अध्यापक इस सच्चाई को समझ चुका है, इसीलिए वह मानव की बेहतर के लिए रास्ता बनाने के लिए आंदोलित हुआ है, 21 सूत्रीय मांगपत्र इसका स्पष्ट संकेत देता है। शिवराज सिंह पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना, 25 को 4 बजे तक प्रदेश के हर कौने से ज्ञापन पहुंचने वाले हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह इनके निजी विचार है )

Friday, September 23, 2016

अध्यापक अब नहीं रुकने वाले - महेश देवड़ा (कुक्षी)


महेश  देवड़ा  (कुक्षी) -ये आश्वासन ये समाचार पत्रों की खबरेे अब अध्यापक इनसे नहीं बहलता साहेब । आदेश कीजिये और अपनी बातों का मान रखिये । और 7440 दे भी रहे तो कोई अहसान नहीं कर रहे वो तो हमारा हक़ है और लेके रहेंगे । पर ख्याल ये हो की इससे तिरंगा रैली रुक जाएगी तो ग़लतफ़हमी दूर कीजिये । लाल घाटी का दमन कोई अध्यापक भुला नहीं साहब हाथ में तिरंगा लिए हमारी बहनों पर लाठियों के वार और सड़कों पर घसीटा जाना , अपने ही प्रदेश की राजधानी जाते अध्यापको को आतंकवादियों की तरह घरों से रास्तो से गिरफ़्तारी का वो मंजर आज भी खून में उबाल ले आता है । उस एक लाल घाटी का मंजर 51 जिलों में दिखाई देगा । गणना पत्रक तो छोटी बात है साहब आप तो सांतवें और संविलियन का हिसाब लगाइये । अब तो लड़ाई संविलियन पर ही रुकेगी ।
जिस तेजी से समाचार पत्रों में खबर लगवाते है माननीय उतनी संजीदगी अगर अपनी घोषणा के आदेश में दिखाते तो अब तक तो आदेश जारी हो जाता । और ये अध्यापक प्रेम हमेशा किसी आंदोलन के पहले ही क्यों उमड़ता है सोचने वाली बात है ।साथियो किसी समाचार से भ्रमित न हो अगर अपना हक चाहिए तो 25 को अध्यापक एकता का वो नजारा हो हर जिले में की सियासतदानों को वास्तव में चाणक्य की याद आ जाये । हमारा भविष्य का आंदोलन , सांतवां वेतन और शिक्षा विभाग में संविलियन सब कुछ 25 की सफलता पर निर्भर है।  अपनी पूरी ताकत लगा दो । वेतन भत्तों के लिए बहुत लड़ लिए साथियों , अबके चोट स्वाभिमान पर हुई है तो अब अध्यापक आत्मसम्मान के लिए मैदान में है । और ये आत्मसम्मान असमानता, भेदभाव और शोषण से मुक्ति पाकर ही बना रहेगा । दिखा दो सरकार को कि हम आपस में कितना भी लड़ ले पर जरुरत पड़ने पर हम पहले भी एक थे आज भी एक है और आगे भी एक होंगे ।
अध्यापक संयुक्त संघर्ष समिति ,जय अध्यापक एक
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

अध्यापकों की तिरंगा रैली को मिल रहा व्यापक समर्थन- वासुदेव शर्मा छिंदवाड़ा


वासुदेव शर्मा-25 सितंबर को जिला मुख्यालयों में होने वाली तिरंगा रैली में हिस्सेदारी की होड़ अध्यापकों के बीच शुरू हो गई है। मिल रही जानकारियों के आधार पर कहें तो यह आंदोलन 100 प्रतिशत भागीदारी के साथ ऐतिहासिक होने वाला है यानि अपने-अपने जिलों में साढ़े तीन लाख अध्यापक तिरंगा रैली का हिस्सा बनेंगे। तीन दिन के अल्पसमय में प्रदेश के ज्यादातर जिलों में बैठकें कर अध्यापक संघर्ष समिति का गठन कर लिया गया है, जो यह बताता है कि इस बार अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को जीतने के लिए लडऩे वाला है और इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जा भी सकता है। अध्यापकों की एकजुटता का संदेश दूसरे अल्पवेतन भोगी कर्मचारियों एवं उनके संगठनों के बीच भी जा चुका है, इन संगठनों के नेता भी चाहते हैं कि प्रदेश में सरकार द्वारा सताए जा रहे कर्मचारियों का निर्णायक आंदोलन हो और उसके साथ एकजुटता व्यक्त की जानी चाहिए।

तिरंगा रैली को संविदा कर्मचारी संघ का समर्थन
संविदा कर्मचारी संघ के प्रांतीय अध्यक्ष रमेश राठौर ने अध्यापक संगठनों की हाल ही में बनी एकजुटता को सराहते हुए कहा कि इनकी मांगेें जायज हैं और उन्हें सरकार को तत्काल पूरा करना चाहिए। 25 सितंबर को जिला मुख्यालयों पर होने वाली तिरंगा रैली के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए राठौर ने कहा कि हमारा संगठन अध्यापकों के साथ है और उनकी तिरंगा रैली को समर्थन करता है। उन्होंने हमें भरोसा दिलाया कि उनके संगठन के जिला पदाधिकारी 25 सितंबर को अध्यापकों की तिरंगा रैली का हिस्सा बनकर समर्थन करेंगे। गौरतलब है कि सरकार ने कुछ ही महीनों में 4 हजार से अधिक संविदा कर्मचारियों की छटंनी कर दी है, जिन विभागों में छंटनी की गई है उनमें स्वास्थ्य विभाग, कौशल विकास विभाग शामिल हैं। इस छंटनी के बाद प्रदेश के संविदा कर्मचारी डरे हुए है। वे अपनी नियमितीकरण की मांग को लेकर निर्णायक लड़ाई लडऩा चाहते हैं, इसके लिए 4 अक्टूबर को भोपाल में रैली भी करने वाले हैं।

अतिथि शिक्षक संघ भी तिरंगा रैली के साथ

अतिथि शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष जगदीश शास्त्री ने भी अध्यापकों की तिरंगा रैली के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए समर्थन देने की बात कही है। शास्त्री उन शिक्षकों के नेता हैं, जो उन्हीं स्कूलों में पढ़ाते हैं, जहां अध्यापक पढ़ाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने स्कूलों में शिक्षाकर्मी भर्ती किए थे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अतिथि शिक्षक। दोनों ही मुख्यमंत्रियों की व्यवस्थाओं ने शिक्षकों के शोषण का रास्ता तैयार किया है, इसके बाद भी दोनों की व्यवस्था में अंतर है। दिग्विजय सिंह ने   शिक्षाकर्मियों को नियमित होने का अधिकार दिया था, लेकिन शिवराज सिंह ने अतिथि शिक्षकों को 40 मिनट के पीरियड के बाद नौकरी से बाहर कर देने और फिर 40 मिनट के लिए रख लेने की व्यवस्था बनाई है, ऐसी व्यवस्था दुनिया के किसी भी देश के किसी भी स्कूल में नहीं है। अतिथि शिक्षकों के लिए बनाई गई इस व्यवस्था से दुखी जगदीश शास्त्री कहते हैं कि जीतने का रास्ता अध्यापकों के आंदोलनों से निकलता है, तब हमें भी जीतने की राह मिल जाएगी, इसीलिए हम पूरी तरह अध्यापकों के साथ है और उनकी तिरंगा रैली का समर्थन करते हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार है )

Thursday, September 22, 2016

हिंन्दी ( प्रथम भाषा ) की उपेक्षा व पद समाप्त कर माध्यमिक विद्यालयों को दो शिक्षकीय करने की तैयारी-सुरेश यादव (रतलाम)

सुरेश यादव -एक मित्र ने अपनी समस्या बताई की उन्होंने अपने विद्यालय का नाम  "शासकीय हाई स्कूल" के स्थान पर  "शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय " लिखा  जो हमारे अधिकारियो को नागवार गुजरा ,प्रतिप्रश्न करने पर इन्हें संतोषजनक जवाब भी नहीं मिला आप भी अच्छे से जानते है  "हाई स्कूल" हिंन्दी शब्द नहीं है , विडम्बना  देखिये हम तीन अन्य विद्यालयों को  तो हिन्दी में ही पुकारते है "प्राथमिक,माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक ", लेकिन हमारे पास हाई स्कूल का कोई हिन्दी  शब्द नहीं है। हमारे विभाग के अधिकारियों की मज़बूरी कह लें की वे सरकार द्वारा खिची लक्ष्मण रेखा तक जा सकते हैं ,कभी उल्लंघन नहीं करते । आप कल्पना कीजिये क्या कभी किसी अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इस "हाई स्कूल "के प्रयोग पर आपत्ति जताई होगी या कोई शासकीय या अर्ध शासकीय पत्र लिख कर मांग की होगी की " हाई स्कूल " के स्थान पर हिन्दी शब्द का प्रयोग किया जाए ,शायद नहीं । लेकिन हमें प्रशंसा करनी चाहिये  हमारे  अध्यापक जैसे छोटे कर्मचारी साथी की ,जिन्होंने ने विभागीय परंपराओं को तोड़ कर " हाई स्कुल " का नाम " उच्च माध्यमिक विद्यालय " लिखने का साहस किया । हिन्दी के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ने का  एक उदाहरण था ।
अब में विभाग  में हिन्दी की घोर उपेक्षा पर भी एक नजर डालते है ,हाल ही में विद्यालयों में स्वीकृत पदों के अनुसार शिक्षकों की व्यवस्था सुनिश्चित करने के विषय में आदेश आया है । माध्यमिक विद्यालयों में प्रथम तीन पदों में  गणित (पीसीएम) एवं विज्ञान ,सामाजिक विज्ञान और अंग्रेजी  के पद स्वीकृत किये गए है । साथियो यह राष्ट्र भाषा की घोर उपेक्षा ही तो है कि जिस विद्यालय में उसे प्रथम भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है वँहा उसका शिक्षक उपलब्ध नही हो पायेगा  हिन्दी भाषा  शिक्षक का पद छटवा पद होगा जो विद्यालय में  175 विद्यार्थियो के बाद ही मिल पायेगा । आप इस का जवाब  अपने स्तर पर भी खोजिये  हमारे आपके  विकासखंड में कुल कितने विद्यालय है जंहा 175 से अधिक विद्यार्थी दर्ज है ।शायद 10 या 15 प्रतिशत विद्यालय मिलेंगे अर्थात केवल 10 -15 प्रतिशत विद्यालयो में हिन्दी भाषा शिक्षक उपलब्ध रहेंगे ।
अब हम, शिक्षकों की उपलब्धता पर विमर्श करते है ,आप स्वयं अपने विकासखण्ड और जिले की स्थिति का आकलन करें की अंग्रेजी के कुल कितने शिक्षक जिले  में उपलब्ध हैं ,मैं रतलाम जिले का उदाहरण देता हूँ रातलाम में 650 से अधिक मध्यमिक  विद्यालय है और  अंग्रेजी के  कुल 15 शिक्षक ( शिक्षक और अध्यापक) पदस्थ है । कारण मात्र यह है कि अंग्रेजी भाषा शिक्षक के लिए जो योग्यता ( स्नातक में अंग्रेजी साहित्य विषय की अनिवार्यता ) निर्धारित की गयी है उस मापदंड के शिक्षक उपलब्ध ही नहीं है । में अपने विद्यार्थी जीवन की बात बताऊँ तो स्नातक  कक्षा में 450 विद्यार्थियो में से हम 4 साथी थे  अंग्रजी साहित्य विषय के बाकी सब हिन्दी या संस्कृत साहित्य ही चुनते थे । में तो मध्य प्रदेश सरकार को चुनोती देता हूँ की  संपूर्ण प्रदेश में पिछले 20 वर्षो से अंग्रेजी साहित्य विषय के साथ स्नातक करने वाले विद्यार्थियो की कुल संख्या को भी भर्ती कर ले तब भी केवल 5 -7 प्रतिशत माध्यमिक विद्यालयो में अंग्रेजी शिक्षक उपलब्ध हो पाएंगे । सरकार अपने इस   निंर्णय पर गंभीरता से  समीक्षा करें ।

सरकार समीक्षा करे की आप हिंदी विश्व विद्यालय प्रारंभ कर रहे है तकनिकी और व्यवसायिक शिक्षा हिंदी में करने की तैयारी कर रहे है ,दूसरी तरफ हिन्दी शिक्षक के पद समाप्त कर रहे हैं ।
साथियो एक लाइन में कह दू तो इस सब के पीछे सरकार का उद्देश्य यह है कि वह पुनः माध्यमिक विद्यालयों को 2 शिक्षकीय शाला करना चाहती है ,जो न सिर्फ गरीब और ग्रामीण अंचल के  विद्यार्थियों  के साथ अन्याय है वरन  काम कर रहे शिक्षकों की आजीविका पर भी संकट के समान है ।
विचार करे और यह विषय समाज के समक्ष ले जाये ।
(लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निज विचार है )

Wednesday, September 21, 2016

अब परीक्षा आम अध्यापक की है -रिजवान खान बैतूल

 रिजवान खान बैतूल - 18 सितम्बर 2016 अध्यापक इतिहास में महत्वपूर्ण दिन साबित हो सकता है. इस दिन तमाम आशंकाओ कुशंकाओ के बीच प्रदेश भर में सक्रिय अध्यापक संगठनो ने ऐतिहासिक एकता का परिचय देते हुए अध्यापक संघर्ष समिति का गठन किया. प्रदेश के कर्मचारी इतिहास में यह सम्भवतः पहला मौक़ा है जब कर्मचारी संघठन बिना नेतृत्व के एक अध्यक्षीय मण्डल के रूप में सामूहिक जिम्मेदारी के साथ कार्य करेंगे. संघ पतियो के लिए यह आसान नही था ......असल में किसी भी संगठन के लिए ऐसा करना आसान नही होता किन्तु उन्होंने जिस सूझबूझ साहस और आम अध्यापक की भावना को सर्वोपरि मानते हुए समिति का गठन किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है.
          अब गेंद आम अध्यापक के पाले में है.......... यह आम अध्यापक सोशल मीडिया और जमीनी दबाव ही था जो आज वर्तमान संघर्ष समिति बनी और तात्कालिक रूप से 25 सितम्बर को तिरंगा रैली का कार्यक्रम आम अध्यापको को दिया गया. तिरंगा रैली की आशातीत सफलता संघर्ष समिति को वो नैतिक शक्ति ऊर्जा व उत्साह देंगी जिसके बल पर वह 2018 के पूर्व इस 18 वर्षीय आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचा सके. अतः आज आम अध्यापक के पास मौक़ा है की वह तिरंगा रैली को अभूतपूर्व सफलता दिलाकर गूंगी बहरी व्यवस्था के कान में धमाका करके आंदोलन का श्री गणेश करे। ( लेखक स्वय अध्यापक खेल प्रशिक्षक है  और यह उनके निजी विचार हैं )

शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए बनी अध्यापक संघर्ष समिति का ऐलान तिरंगा लेकर लड़ेंगे अध्यापक -वासुदेव शर्मा

वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा) -उडी  में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर शुरू हुई अध्यापक संगठनों की एकता बैठक ने गंभीर विचार विमर्श के बाद अध्यापक संघर्ष समिति का गठन कर शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई हाथ में तिरंगा लेकर लडऩे का फैसला किया। तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच 25 सितंबर को जिला मुख्यालयों पर तिरंगा रैली निकालकर इस लड़ाई की शुरूआत करने की घोषणा हुई तथा सभी जिलों में अध्यापक संघर्ष समिति के गठन का निर्णय  सभी संगठनों के उपस्थिति नेताओं एवं प्रतिनिधियों ने लिया। यह था 18 सितंबर की एकता बैठक का महत्वपूर्ण निष्कर्ष। जिसे प्रदेश के साढ़े तीन लाख अध्यापकों ने दिल से स्वीकार कर 25 सितंबर की तिरंगा रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
अध्यापक संघर्ष समिति बनने के बाद गुजरे तीन दिन उपरांत जो जानकारियां आ रही हैं, वे बताती है कि अध्यापक संविलियन की इस लड़ाई को पूरी ताकत से लडऩे और जीतने के लिए तैयार है। गुजरे तीन दिन में जितने भी अध्यापक नेताओं से बात हुई, सभी का यही मानना है कि 25 सितंबर को जिलों में होने वाली तिरंगा रैली ऐतिहासिक होगी, जिसमें कम से कम 4 से 5 हजार अध्यापक परिवार के सदस्य के साथ शामिल रहेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि महिला अध्यापक अपने पति के साथ और पुरुष अध्यापक अपनी पत्नि के साथ जिलों में होने वाली तिरंगा रैली में शामिल होंगे। इसका दूसरा अर्थ यह निकाला जा सकता है कि अध्यापक संघर्ष समिति  साढ़े तीन लाख अध्यापकों की लड़ाई को सात लाख अध्यापकों की लड़ाई में बदलने की रणनीति पर चल रही है। 18 सितंबर की एकता बैठक में वक्ताओं ने  सरकार द्वारा अध्यापकों के बारे में प्रचारित किए गए झूठ का जबाव देने के लिए गांव-गांव में चौपाल लगाकर संघर्ष में जनता की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की बात रखी, जिसे भी  स्वीकार किया गया।
        सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने अध्यापकों को गुस्से में पहुंचाया ?

18 सितंबर की एकता बैठक में जितने भी वक्ता बोले, उन्होंने इसके तमाम कारणों को विस्तार से बताते हुए कहा कि 20 साल की नौकरी में सरकारों ने हमसे सिर्फ झूठ बोला है। अपने ही आदेशों की अवहेलना की हैं। 1998 की सेवा शर्तों के अनुसार हमें जो 2001 में मिल जाना चाहिए था, वह अब तक नहीं मिला है। अध्यापक मप्र सरकार का शिक्षक है, यह बात 1998 की सेवा शर्तों में स्पष्ट लिखा है, इसके बाद भी हमें  शिक्षक के समान वेतन, पेंशन एवं अन्य सुविधाओं को लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा। यही सवाल प्रदेश के अध्यापक 15 साल से सरकार से करते आ रहे हैं, लेकिन सही जबाव नहीं मिल रहा है, जिस कारण ही अध्यापकों में नाराजगी है और वे अब नियुक्ति दिनांक से शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लडऩे की तैयारी में है। 18 सितंबर की एकता बैठक में एक और बात साफ तौर पर सामने आई कि शिवराज सिंह ने अध्यापकों को जितना जलील किया है, उतना जलील दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री ने अपने कर्मचारियों को नहीं किया होगा। इसीलिए बैठक में यह चर्चा भी हुई  कि अध्यापक संघर्ष समिति से ऐसे लोगों को दूर रखा जाए, जो शिवराज सिंह की चौखट पर माथा टेकते हैं और साढ़े तीन लाख अध्यापकों को सरकार के यहां गिरवी रखना चाहते हैं। यही वे कुछ ऐसे कारण हैं जिसने प्रदेश के अध्यापकों के गुस्से को बढ़ाया है, इसीलिए आज अध्यापकों के इस गुस्से को संघर्ष में बदलना अध्यापक संघर्ष समिति के पहली और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे पूरा करने का काम नेताओं को करना है।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है )

Monday, September 19, 2016

" अब एक है हम " लेकिन चिंतन और प्रशिक्षण से ही सफल हो पायेंगे हम - राशी राठौर (देवास)


राशी राठौर ( देवास ) - सभी संघो के एकता के सूत्र मे बंधने पर सभी अध्यापकों में एक नवीन ऊर्जा का संचार हुआ है। नमन है ऐसे महान व्यक्तियों के महान व्यक्तित्व को जिन्होंने अध्यापक हित में वो कर दिखाया जो सालो से नही हो पाया। एकता की शक्ति का अदभुत और अद्वितीय प्रयास के लिए तैयार है  हम , क्योंकि "अब एक है हम "। हमारे हक की जंग को अंजाम देने के लिए जरूरी है कि हर जिले के संविदा शिक्षको जिनकी संविदा अवधी पूर्ण हो गयी है। उनका भी अतिशीघ्र संविलियन कराया जाये, ताकी वो भी अध्यापक हित के लिए होने वाले महायज्ञ मे आहूति दे सके, और हमारे  साथ बढचढ कर हिस्सा ले अपनी भूमिका निभा सके।
       
परंतु क्या एक होने मात्र से हमे सफलता प्रॉप्त हो जायेंगी यह बड़ा प्रश्न है ? क्योकि हमारा मुकाबला उस सरकार से है जो विगत 13 वर्षों  से सत्ता पर काबिज है । जो अपने अधीनस्थ कर्मचारियो के  बड़े से बड़े अंदोलन को आसानी से कुचल सकती है । आजकल के लोकतंत्र में सत्ताएं अपने विरुद्ध उठने वाली हर आवाज को बड़ी आसानी से दबा और कुचल रही है ।आप सभी जानते है की , सरकार डरती है तो अपनी बदनामी से और हार से,सरकार ने जनमानस को अपनी बात प्रबलता से पहुँचा दी है,अब  आमजन यह समझता है कि अध्यापक तो नियमित शिक्षक के समान हो गए है और हम पूर्ण  पूर्ण कर्मचारी बन गए हैं ।
         लेकिन अभी किसी साथी ने बताया था कि सरकार ने अध्यापक बना कर हमारी किन किन सुविधाओं में कमी की है ,यह बात हमारे अधिकांश साथियो को भी पता नहीं है ,हम अध्ययन और अध्यापन के व्यवसाय से तो जुड़े है लेकिन हम अपनी रोजी रोटी के विषय में अध्ययन नहीं करते ,बस यंही हम सरकार के सामने कंमजोर साबित हो जाते है      अध्यापको के पास सफल आन्दोलनों का लम्बा अनुभव है कुशल नेतृत्व है ,जो एक बडा  अन्दोलन खड़ा कर सकता  है , हमें अपनी पिछली सफलता और असफलताओं से सीखना होगा ,मुद्दों पर गंभीर चर्चा करनी चाहिए , गहन चिंतन - मनन  होना चाहिए । 
      इसके लिए  एक  सुनियोजित कार्य्रकम और प्रशिक्षण के माध्यम से अध्यापको को प्रशिक्षित  किया जाये,सोश्यल मिडिया और आई टी का भरपूर उपयोग किया जाये  ,जिस से हम अपनी बात, व मुद्दे जिसका सीधा प्रभाव शिक्षा और आम जनता  पर हो रहा है ,अपने साथियों और आम जन तक आसानी से पहुंचा सकें । इस प्रकार हम सरकार के कूप्रचार का मुकाबला कर सकेंगे   और जनता का नैतिक समर्थन प्राप्त कर  सकेंगे । निश्चित ही आने वाले चुनावी समय के दबाव में हम सफलता अर्जित कर सकेंगे  और शिक्षा विभाग को बचा पाएंगे ।( विचारक स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार है )

Saturday, September 17, 2016

ग्रामीण निकायों में कार्यरत सहायक अध्‍यापकों के नियुक्ति प्राधिकारी मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत के स्‍थान पर मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत करने के संबंध में आदेश 2016

ग्रामीण निकायों में कार्यरत सहायक अध्‍यापकों के नियुक्ति प्राधिकारी मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत के स्‍थान पर मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत करने  के संबंध में आदेश 2016
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ग्रामीण निकायों में कार्यरत सहायक अध्‍यापकों के नियुक्ति प्राधिकारी मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत के स्‍थान पर मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत करने  के संबंध में आदेश 2016

विकासखण्ड स्थित 201 माडल स्कूलों में पदों की स्वीकृति संंबधी आदेश 2016

विकासखण्ड स्थित 201 माडल स्कूलों में पदों की स्वीकृति संंबधी आदेश जारी होने से इन विद्यालयों में भर्ती होने की उम्मीद जागी है
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Thursday, September 15, 2016

हाई और हायर सेकेण्डरी स्कूलों के 52 हजार शिक्षक को प्रशिक्षण प्रयोगशाला और पुस्तकालय के लिये प्रति स्कूल 50 हजार सालना की मदद

प्रदेश में हाई और हायर सेकेण्डरी स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये स्कूल शिक्षा विभाग ने पिछले कुछ साल में प्रभावी प्रयास किये हैं। इन स्कूलों के शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रदेश में कक्षा 10 का परीक्षा परिणाम बढ़कर इस वर्ष 2015-16 में 57.32 प्रतिशत हो गया है। इसमें एक वर्ष में 7.35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। प्रदेश में कक्षा 12वीं के परीक्षा परिणाम में भी 7.27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा का परिणाम वर्ष 2015-16 में 73.94 प्रतिशत रहा है।

स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षण सत्र् 2016-17 में कक्षा 9 और 10 में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया लागू करने का निर्णय लिया है। इसके लागू होने पर भी बोर्ड की कक्षा 10 और 12 के परीक्षा परिणाम में और सुधार होगा। अब से माध्यमिक शिक्षा मंडल कक्षा 10 में जिन 6 विषय में परीक्षा लेता है, उनमें से जिन 5 विषय में विद्यार्थी के सबसे अधिक अंक होंगे, परीक्षा परिणाम की गणना के लिये उन 5 विषय को ही लिया जायेगा।

प्रदेश में हायर सेकेण्डरी स्कूलों में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रदेश में अब तक करीब 52 हजार शिक्षकों को पाँच दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण दिलवाया जा चुका है। प्रशिक्षण में गणित, विज्ञान और अंग्रेजी भाषा पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रदेश में कक्षा 9 से 12 तक 5,617 सरकारी स्कूल संचालित हो रहे हैं। प्रशासन अकादमी के माध्यम से इन स्कूलों के प्राचार्यों को नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एण्ड एडमिनिट्रेशन (एन.ई.यू.पी.ए.) के प्रशिक्षण माड्यूल पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह मॉड्यूल एनसीईआरटी द्वारा तैयार किया गया है।

कम्‍प्यूटर शिक्षा पर जोर

हायर सेकेण्डरी स्कूलों में कम्प्यूटर ट्रेनिंग पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। करीब 2,000 स्कूल में 725 मास्टर ट्रेनर तैयार लिये गये हैं। विद्यार्थी का गणित विषय मजबूत हो सके, इसके लिये 1200 स्कूल में एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा तैयार गणित किट का वितरण किया गया है। विज्ञान विषय में रूचि पैदा करने के लिये विज्ञान प्रदर्शनी जिला स्तर तक की गई है। स्कूल शिक्षा विभाग स्कूलों में प्रयोगशाला एवं लायब्रेरी सुधार के लिये प्रतिवर्ष 50 हजार रुपये प्रति स्कूल के मान से उपलब्ध करवा रहा है। शिक्षा विभाग के 224 विकासखंड से दो स्कूलों को मेंटर स्कूल के रूप में जवाबदारी दी गई है। शिक्षकों को ट्रेनिंग के दौरान दिये जाने वाले भत्तों की राशि में भी वृद्धि की गई है। कक्षा 8 के बाद कक्षा 9 में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिये अब ब्रिज कोर्स का संचालन किया जा रहा है।

नगरीय निकाय के अध्यापक की मृत्यु पर अनुग्रह राशि 50000 रुपये हुई

नगरीय निकाय के अध्यापक की मृत्यु पर अनुग्रह राशि 50000  रुपये हुई
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बिना संचालनालय की अनुमति के विभिन्न संवर्ग के शिक्षकों को अन्य शालाओं/ कार्यालयों में गैर शिक्षकीय कार्य में न लगाने बाबत्।

बिना संचालनालय की अनुमति के विभिन्न संवर्ग के शिक्षकों को


अन्य 
शालाओं/ कार्यालयों में गैर शिक्षकीय कार्य में न लगाने बाबत्।
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युक्तियुक्त करन करने के लिए समय सारणी जारी की गयी

शालाओं में स्‍वीकृत शैक्षणिक पदों के अनुरूप पदस्‍थापना सुनिश्चित करने के लिए नयी समय सारणी जारी की गयी है शालाओं में स्‍वीकृत शैक्षणिक पदों के अनुरूप पदस्‍थापना सुनिश्चित करने के लिए नयी समय सारणी जारी की गयी है
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अध्‍यापक संवर्ग में कार्यरत सेवकों के ऑनलाईन अंतर्निकाय संविलियन हेतु एज्‍यूकेशन पोर्टल अपडेट कराये जाने के संबंध

वर्ष 2016 में अध्‍यापक संवर्ग में कार्यरत सेवकों के ऑनलाईन अंतर्निकाय संविलियन हेतु एज्‍यूकेशन पोर्टल अपडेट कराये जाने के संबंध में आदेश जारी किया  गया है इसे अपडेट करने के पश्चात् आज पालन प्रतिवेदन माँगा गया है। ग्रामीण क्षेत्र के सहायक अध्यापक के नियुक्ति अधिकार अब  जिला पंचायत  को देने से ,उनका निकाय जिला पंचायत हो गया है।

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Sunday, September 11, 2016

'इस देश के शिक्षकों को पांच सितंबर को सम्मान करवाने से इंकार कर देना चाहिए' - बी बी सी हिंदी

5 सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर देश भर में गुरुजनों और शिक्षकों को याद किया जा रहा है।  दिल्ली समेत कई जगहों पर शिक्षकों को सम्मानित किया जा रहा है, सोशल मीडिया पर अपने स्कूल और कॉलेज के शिक्षकों को याद करते हुए पोस्ट लिखी जा रही हैं, कइयों में अपने शिक्षक की तस्वीर को साझा भी किया जा रहा है। लेकिन इन सबके बीच कई लोग ऐसे भी हैं जो इस विशेष दिन का इस्तेमाल शिक्षकों की बदहाली पर ध्यान खींचने के लिए कर रहे हैं।

हिंदी अखबार दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार उत्तराखंड के अल्मोड़ा में त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू नहीं होने की मांग को लेकर वहां के शिक्षकों ने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है।  वहीं बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पटना में करीब चार लाख नियोजित शिक्षक महीनों-महीनों से वेतन न मिलने की शिकायत को लेकर शिक्षक दिवस के दिन 'शिक्षक अपमान दिवस' मना रहे हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में एक संविदा शिक्षक का राष्ट्रपति के नाम पत्र छापा है जिसमें लेखक ने उन हालात का जिक्र किया है जिसके तहत एक शिक्षक बनने का सपना लेकर चला व्यक्ति महज़ 'एड हॉक' बनकर रह जाता है।



शिक्षक दिवस के उत्सवी माहौल में इस तरह की बातें यकीनन स्वाद बिगाड़ सकती हैं लेकिन एक दिन के लिए शिक्षकों और गुरुओं की मौजूदा हालात से मुंह फेर लेने से भी।  वैसे इसी दिन के लिए हिंदी के दिग्गज व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने एक निबंध लिखा था जिसका शीर्षक था 'शिक्षक सम्मान से इंकार करें..' इस लेख में परसाई लिखते हैं कि किस तरह 5 सितंबर के मौके पर अलग अलग संस्थाएं और क्लब आदि रिटायर्ड शिक्षकों को ढूंढ ढूंढकर सम्मानित करते हैं.

इस निबंध के एक संपादित हिस्से में वह लिखते हैं 'देश में पांच सितंबर को शिक्षकों को सम्मानित करने का फैशन चल पड़ा है. राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं तो यह भी सोचते हैं कि यह कार्यक्रम अच्छा रहेगा।  अखबारों में छपेगा. लोग जानेंगे कि हम गुरु की महिमा जानते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं. आप समझ लीजिए कि अगर डाकुओं का इसी तरह शान से आत्मसमर्पण होता रहा और ऐसी ही गरिमापूर्ण फिल्में बनती रहीं तो आगे चलकर डाकू सम्राट मानसिंह का जन्मदिवस दस्यु दिवस के रूप में मनाया जाएगा।  मानसिंह अपने क्षेत्र में राधाकृष्णन से कम योग्य और सम्मानित नहीं था. फिर एक 'मिलावटी दिवस' होगा, 'कालाबाजारी दिवस', 'तस्करी दिवस', 'घूसखोर दिवस' होगा. शिक्षक दिवस तो इसलिए जबरदस्ती चल रहा है क्योंकि डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति रहे. अगर वह सिर्फ महान अध्यापक मात्र रहे होते तो शिक्षक दिवस नहीं मनाया जाता.'



शिक्षकों की समस्याओं पर मानो हाथ रखते हुए इसी निबंध के एक और हिस्से में परसाई लिखते हैं 'पांच सितंबर शिक्षकों का अपमान दिवस है. झूठ है, पाखंड है. गरीब अध्यापक का उपहास है. प्रहसन है।  वेतन ठीक नहीं देंगे. सुभीते नहीं देंगे. सम्मान करके उल्लू बनाएंगे. इस देश के शिक्षकों को पांच सितंबर को सम्मान करवाने से इंकार कर देना चाहिए।  लोग बुलाएं तो शिक्षक कह दें हमें अपना सम्मान नहीं करवाना. आप जबरदस्ती करेंगे तो हम पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे.'

दिलचस्प बात यह है कि परसाई द्वारा काफी पहले लिखा जा चुका यह लेख वर्तमान दौर में काफी प्रासंगिक है. देश के विकास में शिक्षकों से जुड़ी कई समस्याएं ज्यों की त्यों हैं. आगे उम्मीद ही की जा सकती है कि अाने वाले समय में परसाई का लिखा यह निबंध अप्रासंगिक होता चला जाए, तब तक झूठा ही सही 'हैप्पी टीचर्स डे'। ( स्त्रोत  बी बी सी  हिंदी ) 

स्कर्ट की लंबाई के भी मायने... नजरिया और नजरे बदलें - सुरेश यादव रतलाम

सदी उनको अपना महानायक मानती है. मेरे लिए महानायक से बढ़कर रहे हैं.  अभिनय की संस्था हैं. वन मैन इंडस्ट्री हैं. बॉलीवुड में नंबर-1 से नंबर-10 अमिताभ ही हैं. उनके बाद ही किसी का नंबर आता है.

"आई कैन टॉक इंग्लिश. आई कैन वॉक इंग्लिश..." के साथ हंसा.
"जब तक बैठने को नहीं कहा जाए तब तक खड़े रहो...." के साथ गुस्सा आया.
"मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं लेता...." के साथ एटीट्यूड आया.
"हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है....." के साथ दादागिरी आई.
"तुम लोग मुझे ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहां इंतज़ार कर रहा हूं." से व्यवस्था से लड़ना सीखा.

जीवन के हर रंग को जितनी संजीदगी और सजीवता से अमिताभ ने ने पर्दे पर जिया है वह किसी और के वश की बात नहीं. आज 73 साल की उम्र में उनका जोश नौजवानों को मात दे रहा है.

 अमिताभ बच्चन ने अपनी पोती अराध्या और नातिन नव्या नवेली को सीख देती एक सार्वजनिक चिट्ठी लिखी है  

आप का पत्र  सार्वजानिक था तो सोचा अपनी बात भी माफ़ी के साथ कर ही दूँ 


इस बात से सहमत हूं कि स्कर्ट की लंबाई किसी का चरित्र मापने का पैमाना नहीं हो सकता. "पैमाना" भले ही न हो लेकिन स्कर्ट की लंबाई हमारे देश में "मायने" रखता है.... ज्यादा बहुत ज्यादा, "बच्चन", "नंदा", "गांधी", "अंबानी", या "बिरला" सरनेम के लिए स्कर्ट की लंबाई शायद मायने नहीं रखती हो क्योंकि यह समाज का प्रभावशाली वर्ग है. चौबीसों घंटे सुरक्षा घेरे में रहते हैं. लंबाई मापना तो दूर, गुस्ताख भी नहीं मिलेंगे जो आंख उठाकर इधर ताकें।  सही कहा है कि अराध्या और नव्या को "बच्चन" और "नंदा" सरनेम की विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है।  क्योंकि यह उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे। 

देश का मध्य वर्ग भी स्कर्ट की लंबाई को कम करना चाहता है. वह भी अपने लिए "आदर्शलोक" या "यूटोपिया" की कल्पना करता है. लेकिन वह डरता है. यहां आठ महीने की बेटियों के दरिंदे भी हैं और 60 साल की मांओं के भी, जो स्कर्ट तो छोड़िए निगाहों से कपड़ों से ढके तन में भी नग्नता ढूंढते हैं. देश की राजधानी से चंद किलोमीटर दूर कस्बों में "लोग क्या कहेंगे" का भय समाज और खासकर महिलाओं पर इतना भारी है कि "अपनी सोच और अपना फैसला" दिल में ही दम तोड़ देता है। 

नजरिए और निगाह में जब तक बदलाव नहीं आता तब तक...

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया.

वेद में ही सीमित रह जाएगा. 


हालांकि साक्षी मलिक, गीता फोगट, दीपा कर्मकार, मैरी कॉम जैसी लड़कियां व्यवस्था की जंजीरों को तोड़कर आगे निकली हैं. समाज में सिर्फ सुरक्षित माहौल देकर देखिए, कैसे देश की तस्वीर बदल जाती है। 

ना नो मन तेल होगा न राधा नाचेगी (अध्यापक स्थानतरण नीति)-कृष्णा परमार रतलाम

  कृष्णा परमार रतलाम- सरकार द्वारा अध्यापकों के लिए नई स्थानांतरण नीति बनाई जा रही है लेकिन क्या यह भी पुरानी नीतियों की तरह ही दूर के ढोल साबित तो नहीं हो जाएगी, तबादले के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें एक निश्चित समय तय किया गया है ,अध्यापकों से अॉनलाईन आवेदन लिया जावेगा एवं एक निश्चित समय पर स्थानांतरण कर दिया जाएगा इसमें भी एक पेंच फंसा दिया गया है कि जिले के अधिकारी एक माह के भीतर एनओसी देंगे और अगर नहीं दी गई तो यह मान लिया जाएगा कि इस बारे में जिले के अधिकारियों को कुछ नहीं कहना एक माह में एनओसी ना देने पर अधिकारियों से केवल जवाब तलब किया जावेगा ,जी हां केवल जवाब तलब किया जावेगा जबकि इसके विपरीत अध्यापक यदि पदस्थापना पर ज्वाईन नहीं होता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही का प्रावधान है तो क्या यह समझा जाए कि दोषी केवल अध्यापक ही है अधिकारी नहीं ?
          चलो छोड़ो अब यह तो हुई उन अध्यापकों के दिल को तसल्ली देने वाली बात जो कई वर्षों से स्थानांतरण नीति का इंतजार कर रहे हैं अपने घर जाने के लिए क्योंकि कुछ नहीं तो उन लोगों को कम से कम यह खबर कुछ तो राहत दिलाएगी कि शायद अबकि बार हम घर जा सकेंगे ।
         अब सिक्के के दूसरे पहलू पर आते हैं एक खबर और भी है स्कूल में अच्छे नंबर लाओ मनचाही जगह ट्रांसफर पाओ इस अब इसके अंतर्गत अध्यापकों को 10 प्रश्नों के सही जवाब देना होंगे अगर आपने एक भी सवाल का जवाब गलत दिया तो आप का स्थानांतरण अधर में लटका माना जाएगा और फिर एक बात और भी है आपके प्रश्नों की जांच वही अधिकारी करेंगे जिन्होंने यह स्थानांतरण निति बनाई है मतलब सब कुछ उन्हीं के हाथ में इसका सीधा साधा मतलब आप यह निकाल सकते हैं कि " ना तो नो मन तेल होगा ना राधा नाचेगी " जब की स्थानांतरण नीति में सर्वप्रथम होना यह चाहिए कि सभी अध्यापक जो वर्षों से अपने घर से दूर हैं उन्हें सबसे पहले अपने गृह जिले में स्थानांतरण का अवसर प्रदान किया जावे चाहे वह महिला हो विकलांग हो या सामान्य पुरुष हो कोई भी हो उसके बाद सरकार जैसा भी खेल स्थानांतरण नीति के अंतर्गत खेलना चाहे खेल सकती है। (लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार है ।)

Saturday, September 10, 2016

संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में अध्यापक - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा-बीते दिनों अस्तित्व में आई अध्यापक संघर्ष समिति भले ही अध्यापकों में उत्साह पैदा करने में कामयाब नहीं हुई हो, लेकिन इसके बाद अध्यापकों ने सोशल मीडिया के जरिए संघर्ष के सही रास्ते की तलाश जरूर शुरू कर दी है। अध्यापक संगठनों के बीच एकता कायम करने के लिए हुई बैठक जब एकता तक नहीं पहुंची, तब अध्यापकों में नाराजगी सामने आई। इस बार उनके निशाने पर सीधे सरकार और उनके समर्थक रहे।  एकता में बाधक कौन है? इस पर सोशल मीडिया में चले मंथन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसके लिए सरकार और उसके समर्थक संगठन तथा उनसे जुड़े लोग जिम्मेदार हैं, इसीलिए पहला निर्णय यह हुआ कि संघर्ष शुरू करने से पहले सरकार के आस-पास दिखने वालों से दूरी बनाई जाए। दूसरे, राज्य कर्मचारी संघ, बीएमएस जैसे सरकार समर्थक संगठनों की छत्रछाया से अध्यापकों की एकता बचाया जाए। यानि अध्यापक उन सबसे सतर्क रहना चाहते हैं जो संघर्ष की धार को भोथरा कर सकते हैं।  इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि वे संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में हैं, जो उन्हें संघर्ष करने वाली ताकतों के आस-पास पहुंचकर ही मिल सकता है। अध्यापकों के बीच जिलों में काम कर रहे नेता मानते हैं कि पहले भी तभी जीते थे, जब संघर्ष करने वाले लोग साथ थे और आगे भी तभी जीतेंगे, जब वे लोग साथ होंगे।
सोशल मीडिया पर ही आगामी रणनीति के तौर पर जो सहमति बनती नजर आ रही है, उसमें अध्यापकों की ओर से ही दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर करने की बात सामने आ रही है, जिसमें प्रदेश भर से चुनिंदा 400 अध्यापक नेताओं को बुलाया जाए। प्रशिक्षण शिविर के लिए अध्यापक नेताओं का चयन संगठनों से ऊपर उठकर सभी संगठनों के बीच से हो। प्रशिक्षण शिविर में देश के ख्याति प्राप्त शिक्षाविदों एवं ट्रेड यूनियन
जानकारों को बुलाया जाए, कुछ नाम भी चर्चा में आए हैं, जिनका जिक्र अगली पोस्ट में। सोशल मीडिया पर सुनाई दे रही इस तरह की चर्चा, सरकार को यह बताने के लिए काफी है कि इस बार अध्यापक संघर्ष के मैदान में निहत्था नहीं उतरेगा। सोशल मीडिया पर अध्यापकों के बीच पनपी रही यह एकता कहां तक पहुंचती, यह तो आने वाले दिनों में तय हो पाएगा, फिलहाल इतना ही पर्याप्त है कि 20 साल का अन्याय सहते-सहते अध्यापक ने हर तरफ सोचना शुरू कर दिया है यानि वह अपना रास्ता खुद बनाने के लिए तैयार हो रहा है।लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं।

"शासकीय शालाओ को एक ईमानदार और समर्पित अध्यापक टीम की दरकार है "- राशी राठोर देवास


राशी राठोर देवास -हाल ही मै कई विद्यालय बन्द कर उनका सिंविलियन समीपस्थ शाला मै कर दिया गया है व बहुत सी शाला बंद होने की कगार पर है। इस अति संवेदनशील मामले पर हर अध्यापक को अब जागने की आवश्यकता है। कही ना कही हमे अपने अन्तर्मन मै झाकने की आवश्यकता है।
      संसाधन और अध्यापक या अतिथिशिक्षक की व्यवस्था होने के बाद भी टाप करना तो दूर शासकीय शाला गुणवत्ता के मामले मै पासिंग नम्बर भी नही ला पा रही। जबकि सभी शासकीय शाला मै पदस्थ अध्यापक प्रतिस्पर्धा परीक्षा मै टाप करके ही आते है। आम के पेड मै आम ही लगते है, फिर कैसे इन प्रतिस्पर्धा प्रतियोगीताओ के विजेताओं से नयी प्रतिभाओ का सृजन नही हो पा रहा ? क्यों चले गये मेरी शाला छोडकर छात्र?? इस प्रश्न पर हर अध्यापक विचार करे ।सतत व्यापक मुल्यांकन, दक्षता संवर्धन, बेसलाइन, प्रतिभा पर्व सब मिलकर भी शाला मै प्रतिभाओं का सृजन नही कर पा रहे है। इसी तारतम्य मै अब शाला सिद्धी योजना जोड दी गयी है। निश्चित हि शाला सिद्धी योजना मै एक ईमानदार अध्यापक की आत्मा बसती है। लाखो अध्यापक-प्रशिक्षण , हजारो कार्यशाला, अनगिनत बैठक और अनाप-शनाप आर्थिक नुकसान सिर्फ इस प्रश्न का हल खोजने मै लगा है की शासकीय शाला मै ऐसा क्या -क्या करे हो की यहाँ के छात्र अन्य विद्यालय मै  ना जाये ?? सरकार इस समस्या के हल से भी अनभिज्ञ नही है, पर हल करना ही नही चाहती है। शाला सिद्धी योजना का प्रशिक्षण लेते समय एक विडियो दिखाया गया । इस विडियो मै बताया गया की एक शासकीर शाला मै ,मात्र एक अध्यापक, किराये के भवन मै कुल 5 कक्षाओ को एक साथ बहुत ही सुनियोजित तरीके से सभी संसाधनो के आभाव मै पढा रहे थे। प्रशिक्षण मै बताया गया की ऐसे ही टीएलएम से हम भी अपनी शाला मै पढाये, किन्तु वास्तव मै तो इस विडियो ने कुछ और ही संदेश दिया।वह यह कीइस विडियो की तरह एक ईमानदार अध्यापक हर शाला मै पदस्थ कर दिजिये, तो शासकीय शाला फिर से बच्चों से खचाखच भर जायेगी। इस बार गैरशैक्षणिक कार्य मै लिप्त रहने की विवशता भी नही है क्योकि हर शाला मै छात्र अनुपात मै अतीथी शिक्षक उपलब्ध है।कार्यशाला ,प्रशिक्षण,गोष्ठी, सब कुछ अध्यापकों को मानसिक रूप तैयार व प्रेरित करने हेतु आयोजित किये जाये। एक प्रेरित अध्यापक खुद अपनी अध्यापन विधी बना के वो सब कुछ कर दिखायेगा जो की अब तक  दिवास्वप्न मै था। जब शैतान इन्सान का माइन्ड वाश करके उसे आतंकवादी तक बना सकता है तो सरकार आम अध्यापक को बेहतर प्रबन्धन और शिक्षण हेतु प्रेरित तक नही कर सकती ?? करोडो रूपये प्रशिक्षण के नाम पर फूंकने की जगह हर शाला मै एक ईमानदार और समर्पित अध्यापको की टीम तैनात कर दी जाये तो शासकीय शाला के उजडते चमन मै फिर से बहार आ जायेगीं।
"आओ शाला और खुद के
को बचाने की बात करे
इस बार सफलता मिलने तक
प्रयास करे "

लेखिका स्वय अध्यापक है और यह  उनके निजी विचार हैं .

आदिवासी जिलों के 323 विद्याथी जे.ई.ई. और नीट परीक्षा में हुए कामयाब मण्डला जिले के 3 बैगा विद्यार्थी का नीट में चयन

यह आश्चयर्जनक परन्तु सत्य है कि मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए, आर्थिक अभाव से जूझते हुए प्रदेश के 20 आदिवासी बहुल जिलों के 323 विद्यार्थियों ने इस वर्ष जे.ई.ई. और एम्स, ए.आई.पी.एम.टी. और ए.आई.पी.एम.टी. (नीट) में सफलता हासिल की है। इसका उल्लेखनीय पक्ष यह है कि मण्डला, झाबुआ, धार और छिन्दवाड़ा जिले के 155 आदिवासी बच्चे इन परीक्षाओं में सफल हुए। मण्डला जिले के विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के 3 छात्र-छात्रा ने ए.आई.पी.एम.टी. (नीट) की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन तीनों बच्चों के परिवार मजदूर वर्ग से हैं।
सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाकर और आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिये की गयी विशेष शिक्षण व्यवस्था से यह परिणाम हासिल हुए हैं। वर्ष 2016-17 में जे.ई.ई. की परीक्षा में 250 छात्र-छात्राएँ सफल हुए और एआइपीएमटी (नीट) 73 विद्यार्थी ने सफलता हासिल की। इनमें 21 अनुसूचित-जनजाति के विद्यार्थी का आई.आई.टी. के लिये तथा शेष का एन.आई.टी. और अन्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में चयन हुआ। ए.आई.पी.एम.टी. (नीट) में सफल 73 में से 55 विद्यार्थी अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं। इसके पहले वर्ष 2015-16 में आरक्षित वर्ग के 153 छात्र-छात्रा इन परीक्षाओं में सफल हुए थे।
आदिवासी वर्ग के इन विद्यार्थियों की सफलता ने साबित कर दिया है कि मध्यप्रदेश के पिछड़े, आदिवासी और अंदरूनी क्षेत्रों में भी शिक्षा का प्रकाश फैल रहा है। वहाँ बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। इसी के अनुरूप सरकार भी उन्हें आवश्यक सुविधाएँ और मदद उपलब्ध करवा रही है, जिसके चलते उनकी प्रतिभा परवान चढ़ रही है और राज्य सरकार के शिक्षा व्यवस्था सुधार के प्रयासों को पंख मिल रहे हैं।
मध्यप्रदेश सरकार ने
आईआईटी/जेईई (मेन्स) प्रवेश परीक्षा के चयन में आदिवासी विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिये विभिन्न स्तर पर कई नवाचार और प्रयोग किये हैं। इन बच्चों को पढ़ाने के लिये अतिथि शिक्षकों के चयन में कड़े मापदंड निर्धारित किये गये हैं। उनके अध्यापन और परफार्मेंस का नियमित मूल्यांकन किया जाता है। विद्यार्थियों की विज्ञान विषय मे अभिरूचि पैदा हो और उन्हें विज्ञान के सिद्धांतों को समझने में आसानी हो, इसके लिये सभी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान के लिये प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं।
इसके अलावा बोर्ड परीक्षाओं की किताबों के साथ-साथ अन्य उच्च कोटि की संदर्भ पुस्तकों तथा प्रेक्टिस की व्यवस्था की गई। उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में पुस्तकालयों को अधिक सुदृढ़ बनाया गया। विद्यार्थियों को लायब्रेरी कार्ड जारी किये गये, जिससे वे लायब्रेरी की पुस्तकों का लाभ ले सकें। उन्हें विशेष रीडिंग मटेरियल भी उपलब्ध करवाया गया। राष्ट्रीय कोचिंग संस्थान FITJE, Fortune की अन्य परीक्षाओं में विद्यार्थियों को शामिल होने के अवसर उपलब्ध करवाकर नियमित अभ्यास करवाया गया। जिलों में किये गये प्रयासों की राज्य-स्तर पर निरंतर समीक्षा की गई। जिलों में अनेक नवाचार को प्रोत्साहित किया गया। इनमें मंडला जिले में 'नवरत्न' एवं 'ज्ञानार्जन' प्रोजेक्ट, डिंडोरी में 'आकांक्षा' प्रोजेक्ट, अनूपपुर जिले में 'प्रयास' तथा झाबुआ जिले में 'स्टेप' प्रोजेक्ट शामिल हैं। कलेक्टरों द्वारा चिन्हित विद्यार्थियों को प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों में कोचिंग की सुविधा उपलब्ध करवायी गई।
मण्डला जिले में ज्ञानार्जन प्रोजेक्ट में पिछले दो वर्ष में 85 विद्यार्थी का जे.ई.ई. और नीट में चयन हुआ है। पिछले वर्ष यहाँ के एक विद्यार्थी का चयन आई.आई.टी. खड़गपुर के लिये हुआ। जिले के बैगा जनजाति के छात्र रामेश्वर ग्राम सिंगारपुर, योगेन्द्र कुमार धुर्वे और कु. रश्मि धुर्वे ग्राम घुघरी का नीट में सिलेक्शन हुआ है। इनके माता-पिता मजदूरी के सहारे अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। मण्डला जिले में शिक्षण व्यवस्था में गुणवत्ता सुधार के लिये विशेष प्रयास किये गये हैं। नौ विद्यालय का चयन कर उन्हें सेंटर फॉर एक्सीलेंस बनाकर और प्रोजेक्ट नवरत्न शुरू किया गया। इसके अंतर्गत समाज को जोड़ने के लिये शाला-मित्र बनाये गये, जिनके जरिये उत्कृष्ट विद्यालयों का जीर्णोद्धार कर वहाँ बेहतर से बेहतर शिक्षण व्यवस्था की गयी।
शाला मित्र में जिले के सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, सदस्य, नगरपालिका के अध्यक्ष एवं विकासखण्ड स्तर के अधिकारी-कर्मचारी और शिक्षकों ने एक-एक दिन का वेतन दिया। साथ ही जिले के नागरिक, व्यवसायी और कान्ट्रेक्टर भी शाला-मित्र बनकर शिक्षा में उत्कृष्टता लाने में सहयोग दे रहे हैं।

Monday, September 5, 2016

रतलाम में अध्यापको ने शिक्षक दिवस पर डॉ राधाकृष्णन की प्रतिमा को ज्ञापन सौंपा और पूर्ण शिक्षक बनने का संकल्प लिया

राज्य अध्यापक संघ रतलाम द्वारा  शिक्षक दिवस की शाम को  डॉ राधाकृष्णन की प्रतिमा को ज्ञापन सौंपा और पूर्ण शिक्षक बनने का संकल्प  लिया । संघ द्वारा ज्ञापन में  प्रदेश  सरकार की नीतियों के द्वारा  शिक्षको की दुर्दशा उल्लेख किया गया था। इस अवसर पर जिलाध्यक्ष  डॉ मुनिद्र  दुबे ,प्रकाश शुक्ला ,रजनीश चौहान ,नरेंद्र सिंह पंवार ,मुकेश मालवीय ,निर्मल सिंह चौहान ,विजय पाण्डेय ,श्री शर्मा ,राजिव लवानिया और सुरेश यादव उपस्थित थे .। 

सरकार से एक लाख की सहायता लेने से इनकार करने वाली अध्यापक की बेवा को राज्य अध्यापक संघ ने एक लाख की सहायता प्रदान की

जगह जगह मनाये  जा  रहे  शिक्षक  दिवस  कार्यक्रमों के बीच  आज  मंडला में  अनुकम्पा नियुक्ति  के  बदले 1 लाख लेने  से  इंकार  करने वाली दिवंगत  अध्यापक श्री सुरेश दास सोनवानी की धर्मपत्नी श्रीमंती अमिरा सोनवानी  को  राज्य अध्यापक संघ  मंडला ने 1 लाख  रूपये  की  सहायता  राशि प्रदान की |
  श्रीमती सोनवानी को विभागीय अधिकारियों द्वारा  नियमो का हवाला देकर अनुकम्पा नियुक्ती देनें से  स्पष्ट मना  कर दिया गया था। विदित रहे श्रीमती सोनवानी ने रोते बिलखते वरिष्ठअधिकारियों से  कहा था की एक लाख में उनका गुजारा नही चल सकता ।
इस से क्षुब्ध होकर राज्य अध्यापक संघ ने अपने साथियों के माध्यम से 1लाख रूपये एकत्र कर के श्रीमति सोनवानी  को आज जिलाधीश मंडला कार्यालय के समक्ष श्रीमंती सोनवानी को सहायता प्रदान की गयी । .

शिवराज सिंह यह तो अन्याय की इंतिहा है ? - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)-स्कूलों में पढ़ाने वाली इन बेटियों का गुनाह क्या है शिवराज सिंह, जो इनसे बंधुआ श्रमिकों जैसा सलूक किया जा रहा है। यह बेटियां आपसे ज्यादा पढ़ी लिखी हैं। इनकी आवाज में आपसे ज्यादा मिठास है। यह बेटियां अपनी-अपनी बस्तियों, स्कूलों में आपसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इनके चेहरों की मुस्कराहट बताती है कि यह खुशियां बांटने के लिए ही आई हैं।  यह बेटियां हर दिन 40, 50 या 100 किलोमीटर की मुश्किल यात्रा तय कर स्कूल पहुंचती हैं, तो आप समझ सकते हैं कि यह आपसे भी ज्यादा मेहनती और परिश्रमी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह केे गोद लिए जिला विदिशा की इन बेटियों की इस तस्वीर  के जरिए आपको यह बताना चाहते हैं कि प्रदेश में ऐसी बीसियों हजार बेटियां हैं, जिनसे  आप स्कूलों में काम लेे रहे हैं, लेकिन बदले में उतना भी नहीं दे रहे, जितना वे खर्च करके अपने-अपने स्कूल पहुंचती हैं। यह बेटियां आपके ही प्रदेश की अतिथि शिक्षक हैं। स्कूलों में यह व्यवस्था आपने ही शुरू की है। इसीलिए आपसे ही यह सवाल है कि आपको अपने ही प्रदेश के युवा मासूम बेटे-बेटियों को गुलाम या बंधुआ बनाने का अधिकार किसने दिया। आपको अतिथि शिक्षक की व्यवस्था बनानी ही थी, तो कम से कम उसमें यह प्रावधान तो किया ही जा सकता था कि इन्हें मप्र सरकार का घोषित न्यूनतम वेतन मिले तथा यह तब तक स्कूलों में पढ़ाएं जब तक स्कूल रहें। लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया?
     आपको याद दिला दें। आपसे से पहले दिग्विजय सिंह ने भी शिक्षाकर्मी के रूप में ऐसी ही व्यवस्था की थी। हालांकि तब की अटल बिहारी सरकार के स्पष्ट निर्देश थे कि सरकारी खर्चे कम करें, भले ही कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़े। दिग्विजय सिंह ने ऐसा किया भी, लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षाकर्मी को निश्चित वेतन और काम की निरंतरता का अधिकार देकर ही नौकरी पर रखा। आपने तो अतिथि शिक्षकों के साथ ऐसा कुछ नहीं किया। अपने तो अपने ही प्रदेश के बेटे-बेटियों को ऐसे लालची अधिकारियों के हवाले कर दिया जो 50 से 70 हजार वेतन लेने के बाद भी मध्यान्ह भोजन के धनिया तक में कमीशन ले लेते थे। स्कूलों में बैठे यह अधिकारी अतिथि शिक्षकों को पीरियड के हिसाब से तय पारिश्रमिक का भुगतान ईमानदारी से करेंगे, ऐसा आपने कैसे सोच लिया था, जो इन्हें उनके रहमो करम पर छोड़़ दिया।    मुख्यमंत्रीजी आपकी सरकार अतिथि शिक्षकों के साथ जो सलूक कर रही है, वैसा सलूक कभी राजा-माराजे अपनी प्रजा गुलाम, बंधुआ बनाकर किया करते थे। यही बेटियां स्कूलों में बच्चों को पढ़ाती है कि इंसान को गुलाम और बंधुआ बनाने वाली व्यवस्था इतिहास के गर्त में जा चुकी है, इन्हें बच्चों को यह समझा दिया कि आप उस व्यवस्था को जिंदा कर रहे हैं, तब क्या होगा, कभी सोचा? यह बेटे-बेटियां, जिन्हें आप 5-7 हजार रुपए महीना नियमित नहीं दे सकते, उन्होंने स्कूलों में बच्चों को आपके बारे में पढ़ाने शुरू कर दिया, तब क्या होगा, जरा विचार कीजिए। इन्होंने बच्चों को बता दिया कि गांव के गरीब किसान का बेटा शिवराज जो कभी पैदल चला करता था, आज उनके पास नोट गिनने की मशीनें हैं, तब स्कूलों के बच्चे भी आपसे नफरत करने लगेंगे। इस स्थिति से बचना है, तो कम से कम अतिथि शिक्षकों के साथ न्याय कीजिए। वे सालों से   संघर्ष कर रहे हैं, साल में दो-चार बार भोपाल आते हैं, लेकिन आप इनसे मिलते तक नहीं है, यह भी तो ठीक नहीं।
जिस तरह शिक्षाकर्मी रखने वाले दिग्विजय सिंह राजनीति में हाशिए पर हैं, कहीं अतिथि शिक्षक रखकर आप भी राजनीतिक हाशिए पर न पहुंच जाएं, इससे बचने के लिए ही सही अतिथि शिक्षकों की सुनिए और उनसे बात कीजिए।आज उन्होंने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है, कल कहीं आपका बहिष्कार कर दिया, तब क्या होगा? जरा सोचिए?(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं ।)


Saturday, September 3, 2016

विभिन्‍न माडल स्‍कूलों में शिक्षकों के रिक्‍त पदों पर स्‍थानीय स्‍तर से व्‍यवस्‍था के संबंध में

विभिन्‍न माडल स्‍कूलों में शिक्षकों के रिक्‍त पदों पर स्‍थानीय स्‍तर से व्‍यवस्‍था के संबंध में ,सभी जिलाधीश  से अनुरोध किया गया है ,पत्र  में कहा गया है की ,शिक्षकों की नियुक्तियां प्रक्रियाधीन हैं ,इस लिए मुख्यालय स्तर  पर निकटस्थ शालाओ में  कार्यरत ऐसे  शिक्षको को जिनके पास अपर्याप्त काम  है उन्हें मॉडल स्कुल में अध्यापन के लिए निर्देशित किया जाए । शिक्षको - अध्यापको को स्थानीय निधि से यात्रा व्यव भी प्रदान किया जा सकता है।
आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें



जिला एवं विकासखण्‍ड स्‍तर के 313 उ.मा.वि. में एन.एस.क्‍यू. एफ. योजना अंतर्गत व्‍यवसायिक शिक्षा पाठयक्रम के संबंध में शासन आदेश

  जिला एवं विकासखण्‍ड स्‍तर के 313 उ.मा.वि. में एन.एस.क्‍यू. एफ. योजना अंतर्गत व्‍यवसायिक शिक्षा पाठयक्रम प्रारम्भ करने के संबंध में शासन ने आदेश जारी किया  है।  इसमें कक्षा 9 और 10 में तृतीय  भाषा के स्थान पर व कक्षा 11 और 12 में द्वितीय भाषा के स्थान पर एक व्यवसायिक पाठ्यक्रम चयनित किया जा सकेगा ,कुल 9 व्यवसायिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जा रहे है इसमें प्रत्येक विद्यालय में केवल 2 पाठ्यक्रम  संचालित किये जाएंगे। पाठ्यक्रम इस प्रकार हैं  बैंकिंग एवं फायनेनशियल सर्विस ,ब्यूटी और  वेलनेस ,इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी ,हेल्थ केयर ,आईटी-आइटिस ,फिजिकल एजुकेशन और स्पोर्ट्स ,रिटेल ,ट्रेवल और टूरिज्म ,सुरक्षा ।
     उक्त पाठ्यक्रम में 9 वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 1 का प्रमाण पत्र ,10  वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 2 का प्रमाण पत्र ,11 वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 3  का प्रमाण पत्र ,
12 वि  में सफल होने पर नेशनल सर्टिफिकेट फॉर वर्क प्रिप्रियेशन लेवल 4  का प्रमाण पत्र ,प्रदान किया जाएगा आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें