Thursday, September 29, 2016

कविता @ शिक्षा का निजीकरण -विवेक मिश्र नरसिंहपुर

शिक्षा के निजीकरण- व्यवसायीकरण की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
उद्योगपतियों, पूंजीपतियों, राजनेताओं, अधिकारियों के बोर्डिंग स्कूल चलाने की यह कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षण, परिवहन और उच्च शिक्षा हेतु लोन व्यवस्था कर बच्चों के पालकों को लूटने की फिर से तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
कापी-किताबें, पेंट-शर्ट, टाई-बैच, बस्ता-बेल्ट, जूते - मोजे,महंगे और चिन्हित दुकान से ही खरीदवाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
स्वयं के, परिजनों के और खासम-खासों के बच्चों को. स्वयं के स्कूलों में पढ़ाकर आगे बढ़ाने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
बोर्डिंग स्कूल, हाॅस्टल सुविधा, समर कैंप, एक्स्ट्रा क्लासेस, पिकनिक विजिट की महिमा न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
दूध, एमडीएम, साइकिल, गणवेश, छात्रवृत्ति, लेपटाप देने के बाद भी छात्रसंख्या में कमी जारी है....
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
२५ प्रतिशत वंचित समूह के बच्चों को निजी शालाओं में भर्ती कराकर सरकारी स्कूल बंद कराने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
यही नहीं, इन २५ प्रतिशत बच्चों पर व्यय होने वाली सरकारी राशि भी ठिकाने लगाने की पूरी कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजी स्कूलों में अमीर- गरीब बच्चों के लिए भेदभावपूर्ण दोहरी शिक्षाव्यवस्था और मापदंड अपनाने की पूरी हुई तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
हजारों शिक्षकों और उनपर आश्रित परिवारों को बेरोजगार कर भूखा मारने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
लाखों पढ़े - लिखे सुशिक्षित नौजवान पीढ़ी की रोजगार की उम्मीद पर पानी फेरने की ये तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से गुलामी वाली मानसिकता और तानाशाही रवैया अपनाने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा को संविधान के मौलिक अधिकारों से पृथक करने की सुनियोजित षड्यंत्रकारी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
विवादित नीतियां और लालफीताशाही की पेंचीदियाॅं हो रहीं निःशुल्क शिक्षा पर भारी हैं...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समुदाय, आरक्षण के आधार पर उच्च शिक्षा के शिक्षण पर पाबंदी की कुटिल नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, काला धन निवेश, विदेशी पूंजी निवेश कर मुनाफाखोरी करने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक, शिक्षाकर्मी, संविदा, गुरुजी, अतिथि आदि संवर्गो के माध्यम से "divide & rule" जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
राजीव गांधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान के बाद राज्य शिक्षा सेवा से वर्ल्ड बैंक की राशि ठिकाने लगाने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
१ली से ८वीं तक पास कराने की नीति द्वारा केवल साक्षर कर पंगु बनाने की नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
"प्रतिशत सिस्टम" हटाकर "ग्रेडिंग सिस्टम"  के द्वारा मेहनती बच्चों के वास्तविक मूल्यांकन से खिलवाड़ जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों को शिक्षा के अतिरिक्त अन्यान्य कार्यों में लगाकर परिणाम प्रभावित होने पर बदनाम करने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षा के निजीकरण द्वारा इसे संविधान के मौलिक अधिकार में उल्लेखित अपनी महती जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों के वेतन को छोड़ RTE के सभी नियमों का कागजी आंकड़ों पर पालन कराने की लीला न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक पद की गरिमा, स्वाभिमान, मान-सम्मान को कलंकित करने की सिस्टेमेटिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है..
शिक्षा बेचारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
नालंदा, तक्षशिला की बर्बादी जैसी साजिश हुए, स्कूल सरकारी हैं.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
गली, मुहल्ले, कूचों में 2 कमरों में स्कूल! मान्यता नीति न्यारी है.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...

( लेखक स्वयं अध्यापक हैं यह कविता १९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में द्वितीय स्थान पर रही है )

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Thursday, September 29, 2016

कविता @ शिक्षा का निजीकरण -विवेक मिश्र नरसिंहपुर

शिक्षा के निजीकरण- व्यवसायीकरण की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
उद्योगपतियों, पूंजीपतियों, राजनेताओं, अधिकारियों के बोर्डिंग स्कूल चलाने की यह कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षण, परिवहन और उच्च शिक्षा हेतु लोन व्यवस्था कर बच्चों के पालकों को लूटने की फिर से तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
कापी-किताबें, पेंट-शर्ट, टाई-बैच, बस्ता-बेल्ट, जूते - मोजे,महंगे और चिन्हित दुकान से ही खरीदवाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
स्वयं के, परिजनों के और खासम-खासों के बच्चों को. स्वयं के स्कूलों में पढ़ाकर आगे बढ़ाने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
बोर्डिंग स्कूल, हाॅस्टल सुविधा, समर कैंप, एक्स्ट्रा क्लासेस, पिकनिक विजिट की महिमा न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
दूध, एमडीएम, साइकिल, गणवेश, छात्रवृत्ति, लेपटाप देने के बाद भी छात्रसंख्या में कमी जारी है....
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
२५ प्रतिशत वंचित समूह के बच्चों को निजी शालाओं में भर्ती कराकर सरकारी स्कूल बंद कराने की कूटनीतिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
यही नहीं, इन २५ प्रतिशत बच्चों पर व्यय होने वाली सरकारी राशि भी ठिकाने लगाने की पूरी कूटनीतिक तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजी स्कूलों में अमीर- गरीब बच्चों के लिए भेदभावपूर्ण दोहरी शिक्षाव्यवस्था और मापदंड अपनाने की पूरी हुई तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
हजारों शिक्षकों और उनपर आश्रित परिवारों को बेरोजगार कर भूखा मारने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
लाखों पढ़े - लिखे सुशिक्षित नौजवान पीढ़ी की रोजगार की उम्मीद पर पानी फेरने की ये तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से गुलामी वाली मानसिकता और तानाशाही रवैया अपनाने की हो चुकी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा को संविधान के मौलिक अधिकारों से पृथक करने की सुनियोजित षड्यंत्रकारी तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
विवादित नीतियां और लालफीताशाही की पेंचीदियाॅं हो रहीं निःशुल्क शिक्षा पर भारी हैं...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समुदाय, आरक्षण के आधार पर उच्च शिक्षा के शिक्षण पर पाबंदी की कुटिल नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
निजीकरण से शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, काला धन निवेश, विदेशी पूंजी निवेश कर मुनाफाखोरी करने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक, शिक्षाकर्मी, संविदा, गुरुजी, अतिथि आदि संवर्गो के माध्यम से "divide & rule" जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
राजीव गांधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान के बाद राज्य शिक्षा सेवा से वर्ल्ड बैंक की राशि ठिकाने लगाने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
१ली से ८वीं तक पास कराने की नीति द्वारा केवल साक्षर कर पंगु बनाने की नीति जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
"प्रतिशत सिस्टम" हटाकर "ग्रेडिंग सिस्टम"  के द्वारा मेहनती बच्चों के वास्तविक मूल्यांकन से खिलवाड़ जारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों को शिक्षा के अतिरिक्त अन्यान्य कार्यों में लगाकर परिणाम प्रभावित होने पर बदनाम करने की तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षा के निजीकरण द्वारा इसे संविधान के मौलिक अधिकार में उल्लेखित अपनी महती जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की तैयारी है..
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षकों के वेतन को छोड़ RTE के सभी नियमों का कागजी आंकड़ों पर पालन कराने की लीला न्यारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
शिक्षक पद की गरिमा, स्वाभिमान, मान-सम्मान को कलंकित करने की सिस्टेमेटिक तैयारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है..
शिक्षा बेचारी है...
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
नालंदा, तक्षशिला की बर्बादी जैसी साजिश हुए, स्कूल सरकारी हैं.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...
गली, मुहल्ले, कूचों में 2 कमरों में स्कूल! मान्यता नीति न्यारी है.
चिंता न करें... आज हमारी तो कल सबकी बारी है...

( लेखक स्वयं अध्यापक हैं यह कविता १९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में द्वितीय स्थान पर रही है )

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