सदी उनको अपना महानायक मानती है. मेरे लिए महानायक से बढ़कर रहे हैं. अभिनय की संस्था हैं. वन मैन इंडस्ट्री हैं. बॉलीवुड में नंबर-1 से नंबर-10 अमिताभ ही हैं. उनके बाद ही किसी का नंबर आता है.
"आई कैन टॉक इंग्लिश. आई कैन वॉक इंग्लिश..." के साथ हंसा.
"जब तक बैठने को नहीं कहा जाए तब तक खड़े रहो...." के साथ गुस्सा आया.
"मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं लेता...." के साथ एटीट्यूड आया.
"हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है....." के साथ दादागिरी आई.
"तुम लोग मुझे ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहां इंतज़ार कर रहा हूं." से व्यवस्था से लड़ना सीखा.
जीवन के हर रंग को जितनी संजीदगी और सजीवता से अमिताभ ने ने पर्दे पर जिया है वह किसी और के वश की बात नहीं. आज 73 साल की उम्र में उनका जोश नौजवानों को मात दे रहा है.
अमिताभ बच्चन ने अपनी पोती अराध्या और नातिन नव्या नवेली को सीख देती एक सार्वजनिक चिट्ठी लिखी है
आप का पत्र सार्वजानिक था तो सोचा अपनी बात भी माफ़ी के साथ कर ही दूँ
इस बात से सहमत हूं कि स्कर्ट की लंबाई किसी का चरित्र मापने का पैमाना नहीं हो सकता. "पैमाना" भले ही न हो लेकिन स्कर्ट की लंबाई हमारे देश में "मायने" रखता है.... ज्यादा बहुत ज्यादा, "बच्चन", "नंदा", "गांधी", "अंबानी", या "बिरला" सरनेम के लिए स्कर्ट की लंबाई शायद मायने नहीं रखती हो क्योंकि यह समाज का प्रभावशाली वर्ग है. चौबीसों घंटे सुरक्षा घेरे में रहते हैं. लंबाई मापना तो दूर, गुस्ताख भी नहीं मिलेंगे जो आंख उठाकर इधर ताकें। सही कहा है कि अराध्या और नव्या को "बच्चन" और "नंदा" सरनेम की विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है। क्योंकि यह उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे।
देश का मध्य वर्ग भी स्कर्ट की लंबाई को कम करना चाहता है. वह भी अपने लिए "आदर्शलोक" या "यूटोपिया" की कल्पना करता है. लेकिन वह डरता है. यहां आठ महीने की बेटियों के दरिंदे भी हैं और 60 साल की मांओं के भी, जो स्कर्ट तो छोड़िए निगाहों से कपड़ों से ढके तन में भी नग्नता ढूंढते हैं. देश की राजधानी से चंद किलोमीटर दूर कस्बों में "लोग क्या कहेंगे" का भय समाज और खासकर महिलाओं पर इतना भारी है कि "अपनी सोच और अपना फैसला" दिल में ही दम तोड़ देता है।
नजरिए और निगाह में जब तक बदलाव नहीं आता तब तक...
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया.
वेद में ही सीमित रह जाएगा.
हालांकि साक्षी मलिक, गीता फोगट, दीपा कर्मकार, मैरी कॉम जैसी लड़कियां व्यवस्था की जंजीरों को तोड़कर आगे निकली हैं. समाज में सिर्फ सुरक्षित माहौल देकर देखिए, कैसे देश की तस्वीर बदल जाती है।
"आई कैन टॉक इंग्लिश. आई कैन वॉक इंग्लिश..." के साथ हंसा.
"जब तक बैठने को नहीं कहा जाए तब तक खड़े रहो...." के साथ गुस्सा आया.
"मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं लेता...." के साथ एटीट्यूड आया.
"हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है....." के साथ दादागिरी आई.
"तुम लोग मुझे ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहां इंतज़ार कर रहा हूं." से व्यवस्था से लड़ना सीखा.
जीवन के हर रंग को जितनी संजीदगी और सजीवता से अमिताभ ने ने पर्दे पर जिया है वह किसी और के वश की बात नहीं. आज 73 साल की उम्र में उनका जोश नौजवानों को मात दे रहा है.
अमिताभ बच्चन ने अपनी पोती अराध्या और नातिन नव्या नवेली को सीख देती एक सार्वजनिक चिट्ठी लिखी है
आप का पत्र सार्वजानिक था तो सोचा अपनी बात भी माफ़ी के साथ कर ही दूँ
इस बात से सहमत हूं कि स्कर्ट की लंबाई किसी का चरित्र मापने का पैमाना नहीं हो सकता. "पैमाना" भले ही न हो लेकिन स्कर्ट की लंबाई हमारे देश में "मायने" रखता है.... ज्यादा बहुत ज्यादा, "बच्चन", "नंदा", "गांधी", "अंबानी", या "बिरला" सरनेम के लिए स्कर्ट की लंबाई शायद मायने नहीं रखती हो क्योंकि यह समाज का प्रभावशाली वर्ग है. चौबीसों घंटे सुरक्षा घेरे में रहते हैं. लंबाई मापना तो दूर, गुस्ताख भी नहीं मिलेंगे जो आंख उठाकर इधर ताकें। सही कहा है कि अराध्या और नव्या को "बच्चन" और "नंदा" सरनेम की विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है। क्योंकि यह उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे।
देश का मध्य वर्ग भी स्कर्ट की लंबाई को कम करना चाहता है. वह भी अपने लिए "आदर्शलोक" या "यूटोपिया" की कल्पना करता है. लेकिन वह डरता है. यहां आठ महीने की बेटियों के दरिंदे भी हैं और 60 साल की मांओं के भी, जो स्कर्ट तो छोड़िए निगाहों से कपड़ों से ढके तन में भी नग्नता ढूंढते हैं. देश की राजधानी से चंद किलोमीटर दूर कस्बों में "लोग क्या कहेंगे" का भय समाज और खासकर महिलाओं पर इतना भारी है कि "अपनी सोच और अपना फैसला" दिल में ही दम तोड़ देता है।
नजरिए और निगाह में जब तक बदलाव नहीं आता तब तक...
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया.
वेद में ही सीमित रह जाएगा.
हालांकि साक्षी मलिक, गीता फोगट, दीपा कर्मकार, मैरी कॉम जैसी लड़कियां व्यवस्था की जंजीरों को तोड़कर आगे निकली हैं. समाज में सिर्फ सुरक्षित माहौल देकर देखिए, कैसे देश की तस्वीर बदल जाती है।
Sahi kaha najre badlo najriya apne aap badal jayega sundar lekh
ReplyDeleteSahi kaha najre badlo najriya apne aap badal jayega sundar lekh
ReplyDeleteShandaar
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