रिजवान खान बैतूल - 18 सितम्बर 2016 अध्यापक इतिहास में महत्वपूर्ण दिन साबित हो सकता है. इस दिन तमाम आशंकाओ कुशंकाओ के बीच प्रदेश भर में सक्रिय अध्यापक संगठनो ने ऐतिहासिक एकता का परिचय देते हुए अध्यापक संघर्ष समिति का गठन किया. प्रदेश के कर्मचारी इतिहास में यह सम्भवतः पहला मौक़ा है जब कर्मचारी संघठन बिना नेतृत्व के एक अध्यक्षीय मण्डल के रूप में सामूहिक जिम्मेदारी के साथ कार्य करेंगे. संघ पतियो के लिए यह आसान नही था ......असल में किसी भी संगठन के लिए ऐसा करना आसान नही होता किन्तु उन्होंने जिस सूझबूझ साहस और आम अध्यापक की भावना को सर्वोपरि मानते हुए समिति का गठन किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है.
अब गेंद आम अध्यापक के पाले में है.......... यह आम अध्यापक सोशल मीडिया और जमीनी दबाव ही था जो आज वर्तमान संघर्ष समिति बनी और तात्कालिक रूप से 25 सितम्बर को तिरंगा रैली का कार्यक्रम आम अध्यापको को दिया गया. तिरंगा रैली की आशातीत सफलता संघर्ष समिति को वो नैतिक शक्ति ऊर्जा व उत्साह देंगी जिसके बल पर वह 2018 के पूर्व इस 18 वर्षीय आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचा सके. अतः आज आम अध्यापक के पास मौक़ा है की वह तिरंगा रैली को अभूतपूर्व सफलता दिलाकर गूंगी बहरी व्यवस्था के कान में धमाका करके आंदोलन का श्री गणेश करे। ( लेखक स्वय अध्यापक खेल प्रशिक्षक है और यह उनके निजी विचार हैं )
अब गेंद आम अध्यापक के पाले में है.......... यह आम अध्यापक सोशल मीडिया और जमीनी दबाव ही था जो आज वर्तमान संघर्ष समिति बनी और तात्कालिक रूप से 25 सितम्बर को तिरंगा रैली का कार्यक्रम आम अध्यापको को दिया गया. तिरंगा रैली की आशातीत सफलता संघर्ष समिति को वो नैतिक शक्ति ऊर्जा व उत्साह देंगी जिसके बल पर वह 2018 के पूर्व इस 18 वर्षीय आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचा सके. अतः आज आम अध्यापक के पास मौक़ा है की वह तिरंगा रैली को अभूतपूर्व सफलता दिलाकर गूंगी बहरी व्यवस्था के कान में धमाका करके आंदोलन का श्री गणेश करे। ( लेखक स्वय अध्यापक खेल प्रशिक्षक है और यह उनके निजी विचार हैं )
No comments:
Post a Comment