सुरेश यादव -एक मित्र ने अपनी समस्या बताई की उन्होंने अपने विद्यालय का नाम "शासकीय हाई स्कूल" के स्थान पर "शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय " लिखा जो हमारे अधिकारियो को नागवार गुजरा ,प्रतिप्रश्न करने पर इन्हें संतोषजनक जवाब भी नहीं मिला आप भी अच्छे से जानते है "हाई स्कूल" हिंन्दी शब्द नहीं है , विडम्बना देखिये हम तीन अन्य विद्यालयों को तो हिन्दी में ही पुकारते है "प्राथमिक,माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक ", लेकिन हमारे पास हाई स्कूल का कोई हिन्दी शब्द नहीं है। हमारे विभाग के अधिकारियों की मज़बूरी कह लें की वे सरकार द्वारा खिची लक्ष्मण रेखा तक जा सकते हैं ,कभी उल्लंघन नहीं करते । आप कल्पना कीजिये क्या कभी किसी अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इस "हाई स्कूल "के प्रयोग पर आपत्ति जताई होगी या कोई शासकीय या अर्ध शासकीय पत्र लिख कर मांग की होगी की " हाई स्कूल " के स्थान पर हिन्दी शब्द का प्रयोग किया जाए ,शायद नहीं । लेकिन हमें प्रशंसा करनी चाहिये हमारे अध्यापक जैसे छोटे कर्मचारी साथी की ,जिन्होंने ने विभागीय परंपराओं को तोड़ कर " हाई स्कुल " का नाम " उच्च माध्यमिक विद्यालय " लिखने का साहस किया । हिन्दी के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ने का एक उदाहरण था ।
अब में विभाग में हिन्दी की घोर उपेक्षा पर भी एक नजर डालते है ,हाल ही में विद्यालयों में स्वीकृत पदों के अनुसार शिक्षकों की व्यवस्था सुनिश्चित करने के विषय में आदेश आया है । माध्यमिक विद्यालयों में प्रथम तीन पदों में गणित (पीसीएम) एवं विज्ञान ,सामाजिक विज्ञान और अंग्रेजी के पद स्वीकृत किये गए है । साथियो यह राष्ट्र भाषा की घोर उपेक्षा ही तो है कि जिस विद्यालय में उसे प्रथम भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है वँहा उसका शिक्षक उपलब्ध नही हो पायेगा हिन्दी भाषा शिक्षक का पद छटवा पद होगा जो विद्यालय में 175 विद्यार्थियो के बाद ही मिल पायेगा । आप इस का जवाब अपने स्तर पर भी खोजिये हमारे आपके विकासखंड में कुल कितने विद्यालय है जंहा 175 से अधिक विद्यार्थी दर्ज है ।शायद 10 या 15 प्रतिशत विद्यालय मिलेंगे अर्थात केवल 10 -15 प्रतिशत विद्यालयो में हिन्दी भाषा शिक्षक उपलब्ध रहेंगे ।
अब हम, शिक्षकों की उपलब्धता पर विमर्श करते है ,आप स्वयं अपने विकासखण्ड और जिले की स्थिति का आकलन करें की अंग्रेजी के कुल कितने शिक्षक जिले में उपलब्ध हैं ,मैं रतलाम जिले का उदाहरण देता हूँ रातलाम में 650 से अधिक मध्यमिक विद्यालय है और अंग्रेजी के कुल 15 शिक्षक ( शिक्षक और अध्यापक) पदस्थ है । कारण मात्र यह है कि अंग्रेजी भाषा शिक्षक के लिए जो योग्यता ( स्नातक में अंग्रेजी साहित्य विषय की अनिवार्यता ) निर्धारित की गयी है उस मापदंड के शिक्षक उपलब्ध ही नहीं है । में अपने विद्यार्थी जीवन की बात बताऊँ तो स्नातक कक्षा में 450 विद्यार्थियो में से हम 4 साथी थे अंग्रजी साहित्य विषय के बाकी सब हिन्दी या संस्कृत साहित्य ही चुनते थे । में तो मध्य प्रदेश सरकार को चुनोती देता हूँ की संपूर्ण प्रदेश में पिछले 20 वर्षो से अंग्रेजी साहित्य विषय के साथ स्नातक करने वाले विद्यार्थियो की कुल संख्या को भी भर्ती कर ले तब भी केवल 5 -7 प्रतिशत माध्यमिक विद्यालयो में अंग्रेजी शिक्षक उपलब्ध हो पाएंगे । सरकार अपने इस निंर्णय पर गंभीरता से समीक्षा करें ।
सरकार समीक्षा करे की आप हिंदी विश्व विद्यालय प्रारंभ कर रहे है तकनिकी और व्यवसायिक शिक्षा हिंदी में करने की तैयारी कर रहे है ,दूसरी तरफ हिन्दी शिक्षक के पद समाप्त कर रहे हैं ।
साथियो एक लाइन में कह दू तो इस सब के पीछे सरकार का उद्देश्य यह है कि वह पुनः माध्यमिक विद्यालयों को 2 शिक्षकीय शाला करना चाहती है ,जो न सिर्फ गरीब और ग्रामीण अंचल के विद्यार्थियों के साथ अन्याय है वरन काम कर रहे शिक्षकों की आजीविका पर भी संकट के समान है ।
विचार करे और यह विषय समाज के समक्ष ले जाये ।
(लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निज विचार है )
(लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निज विचार है )
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