Sunday, September 11, 2016

ना नो मन तेल होगा न राधा नाचेगी (अध्यापक स्थानतरण नीति)-कृष्णा परमार रतलाम

  कृष्णा परमार रतलाम- सरकार द्वारा अध्यापकों के लिए नई स्थानांतरण नीति बनाई जा रही है लेकिन क्या यह भी पुरानी नीतियों की तरह ही दूर के ढोल साबित तो नहीं हो जाएगी, तबादले के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें एक निश्चित समय तय किया गया है ,अध्यापकों से अॉनलाईन आवेदन लिया जावेगा एवं एक निश्चित समय पर स्थानांतरण कर दिया जाएगा इसमें भी एक पेंच फंसा दिया गया है कि जिले के अधिकारी एक माह के भीतर एनओसी देंगे और अगर नहीं दी गई तो यह मान लिया जाएगा कि इस बारे में जिले के अधिकारियों को कुछ नहीं कहना एक माह में एनओसी ना देने पर अधिकारियों से केवल जवाब तलब किया जावेगा ,जी हां केवल जवाब तलब किया जावेगा जबकि इसके विपरीत अध्यापक यदि पदस्थापना पर ज्वाईन नहीं होता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही का प्रावधान है तो क्या यह समझा जाए कि दोषी केवल अध्यापक ही है अधिकारी नहीं ?
          चलो छोड़ो अब यह तो हुई उन अध्यापकों के दिल को तसल्ली देने वाली बात जो कई वर्षों से स्थानांतरण नीति का इंतजार कर रहे हैं अपने घर जाने के लिए क्योंकि कुछ नहीं तो उन लोगों को कम से कम यह खबर कुछ तो राहत दिलाएगी कि शायद अबकि बार हम घर जा सकेंगे ।
         अब सिक्के के दूसरे पहलू पर आते हैं एक खबर और भी है स्कूल में अच्छे नंबर लाओ मनचाही जगह ट्रांसफर पाओ इस अब इसके अंतर्गत अध्यापकों को 10 प्रश्नों के सही जवाब देना होंगे अगर आपने एक भी सवाल का जवाब गलत दिया तो आप का स्थानांतरण अधर में लटका माना जाएगा और फिर एक बात और भी है आपके प्रश्नों की जांच वही अधिकारी करेंगे जिन्होंने यह स्थानांतरण निति बनाई है मतलब सब कुछ उन्हीं के हाथ में इसका सीधा साधा मतलब आप यह निकाल सकते हैं कि " ना तो नो मन तेल होगा ना राधा नाचेगी " जब की स्थानांतरण नीति में सर्वप्रथम होना यह चाहिए कि सभी अध्यापक जो वर्षों से अपने घर से दूर हैं उन्हें सबसे पहले अपने गृह जिले में स्थानांतरण का अवसर प्रदान किया जावे चाहे वह महिला हो विकलांग हो या सामान्य पुरुष हो कोई भी हो उसके बाद सरकार जैसा भी खेल स्थानांतरण नीति के अंतर्गत खेलना चाहे खेल सकती है। (लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार है ।)

No comments:

Post a Comment

Comments system

Sunday, September 11, 2016

ना नो मन तेल होगा न राधा नाचेगी (अध्यापक स्थानतरण नीति)-कृष्णा परमार रतलाम

  कृष्णा परमार रतलाम- सरकार द्वारा अध्यापकों के लिए नई स्थानांतरण नीति बनाई जा रही है लेकिन क्या यह भी पुरानी नीतियों की तरह ही दूर के ढोल साबित तो नहीं हो जाएगी, तबादले के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें एक निश्चित समय तय किया गया है ,अध्यापकों से अॉनलाईन आवेदन लिया जावेगा एवं एक निश्चित समय पर स्थानांतरण कर दिया जाएगा इसमें भी एक पेंच फंसा दिया गया है कि जिले के अधिकारी एक माह के भीतर एनओसी देंगे और अगर नहीं दी गई तो यह मान लिया जाएगा कि इस बारे में जिले के अधिकारियों को कुछ नहीं कहना एक माह में एनओसी ना देने पर अधिकारियों से केवल जवाब तलब किया जावेगा ,जी हां केवल जवाब तलब किया जावेगा जबकि इसके विपरीत अध्यापक यदि पदस्थापना पर ज्वाईन नहीं होता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही का प्रावधान है तो क्या यह समझा जाए कि दोषी केवल अध्यापक ही है अधिकारी नहीं ?
          चलो छोड़ो अब यह तो हुई उन अध्यापकों के दिल को तसल्ली देने वाली बात जो कई वर्षों से स्थानांतरण नीति का इंतजार कर रहे हैं अपने घर जाने के लिए क्योंकि कुछ नहीं तो उन लोगों को कम से कम यह खबर कुछ तो राहत दिलाएगी कि शायद अबकि बार हम घर जा सकेंगे ।
         अब सिक्के के दूसरे पहलू पर आते हैं एक खबर और भी है स्कूल में अच्छे नंबर लाओ मनचाही जगह ट्रांसफर पाओ इस अब इसके अंतर्गत अध्यापकों को 10 प्रश्नों के सही जवाब देना होंगे अगर आपने एक भी सवाल का जवाब गलत दिया तो आप का स्थानांतरण अधर में लटका माना जाएगा और फिर एक बात और भी है आपके प्रश्नों की जांच वही अधिकारी करेंगे जिन्होंने यह स्थानांतरण निति बनाई है मतलब सब कुछ उन्हीं के हाथ में इसका सीधा साधा मतलब आप यह निकाल सकते हैं कि " ना तो नो मन तेल होगा ना राधा नाचेगी " जब की स्थानांतरण नीति में सर्वप्रथम होना यह चाहिए कि सभी अध्यापक जो वर्षों से अपने घर से दूर हैं उन्हें सबसे पहले अपने गृह जिले में स्थानांतरण का अवसर प्रदान किया जावे चाहे वह महिला हो विकलांग हो या सामान्य पुरुष हो कोई भी हो उसके बाद सरकार जैसा भी खेल स्थानांतरण नीति के अंतर्गत खेलना चाहे खेल सकती है। (लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार है ।)

No comments:

Post a Comment