Thursday, September 29, 2016

केवल सरकारी विद्यालयों की ही दुर्दशा क्यों ? राहुल रूसिया

      जब से शिक्षा का अधिकार लागू हुआ है तब से हमने देखा है की शिक्षा की दुर्दशा केवल सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए ही हुई है और उनका पढ़ाई में स्तर वास्तव में गिरा है यह सोचने वाली बात है की शिक्षा के अधिकार अधिनियम के सभी प्रावधान प्राइवेट स्कूलों में भी लागू होते हैं परंतु उधर पर इतनी बुरी स्थिति नहीं है बल्कि इस अधिनियम का फायदा उधर पर छात्रों एवं स्कूलों को हुआ है तो फिर सरकारी स्कूल शिक्षा के अधिकार को अभिशाप क्यों मानते हैं यहां पर सबसे गंभीर प्रश्न यही है की जो चीज निजी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रही है वही शासकीय क्षेत्र में प्रभावहीन क्यों है.      जहां तक मेरा मानना है तो शासकीय क्षेत्र में शिक्षा का स्तर गिरने की सबसे बड़ी वजह शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन सरकार के द्वारा अभी तक स्वयं नहीं किया जाना है ना तो सरकारों ने अधिनियम के अनुसार विद्यालयों का सेटअप बनाया नाही शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण दिया और ना ही विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक भेजें बल्कि इसके उलट जो विद्यालय पहले अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे उधर पर भी शिक्षकों को जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड मैपिंग रजिस्ट्रेशन स्वच्छता अभियान led वितरण मध्यान भोजन आदि में उलझा दिया और विचारा शिक्षक चाह कर भी विद्यार्थियों को शिक्षित नहीं कर सका इसके अतिरिक्त नाम न काटने की बाधा एक ऐसी समस्या है जिससे पलायन करने वाले छात्र जबरदस्ती उसी विद्यालय में दर्ज रह जाते हैं और विचारा शिक्षक उनका नाम जबरदस्ती क्लास दर क्लास आगे बढ़ाता रहता है मेरे हिसाब से इस अधिनियम में एक दो चीजों को छोड़कर कोई भी बंधन शिक्षा की राह में और विद्यालय के स्तर में रुकावट नहीं डालता बल्कि बाधाओं को दूर करता है परंतु सरकारी संसाधन सीमित है और गैर शिक्षकीय कार्य भरमार है यदि संसाधन बढ़ा दिए जाएं और गैर शिक्षकीय कार्य शिक्षकों से ना कराए जाएं तो यह अधिनियम निश्चित रूप से शासकीय क्षेत्र में भी शिक्षा का स्तर सुधार देगा  


( लेखक स्वयं अध्यापक हैं  और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस  लेख को  तृतीय स्थान प्रदान  किया गया है  )

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Thursday, September 29, 2016

केवल सरकारी विद्यालयों की ही दुर्दशा क्यों ? राहुल रूसिया

      जब से शिक्षा का अधिकार लागू हुआ है तब से हमने देखा है की शिक्षा की दुर्दशा केवल सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए ही हुई है और उनका पढ़ाई में स्तर वास्तव में गिरा है यह सोचने वाली बात है की शिक्षा के अधिकार अधिनियम के सभी प्रावधान प्राइवेट स्कूलों में भी लागू होते हैं परंतु उधर पर इतनी बुरी स्थिति नहीं है बल्कि इस अधिनियम का फायदा उधर पर छात्रों एवं स्कूलों को हुआ है तो फिर सरकारी स्कूल शिक्षा के अधिकार को अभिशाप क्यों मानते हैं यहां पर सबसे गंभीर प्रश्न यही है की जो चीज निजी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रही है वही शासकीय क्षेत्र में प्रभावहीन क्यों है.      जहां तक मेरा मानना है तो शासकीय क्षेत्र में शिक्षा का स्तर गिरने की सबसे बड़ी वजह शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन सरकार के द्वारा अभी तक स्वयं नहीं किया जाना है ना तो सरकारों ने अधिनियम के अनुसार विद्यालयों का सेटअप बनाया नाही शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण दिया और ना ही विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक भेजें बल्कि इसके उलट जो विद्यालय पहले अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे उधर पर भी शिक्षकों को जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड मैपिंग रजिस्ट्रेशन स्वच्छता अभियान led वितरण मध्यान भोजन आदि में उलझा दिया और विचारा शिक्षक चाह कर भी विद्यार्थियों को शिक्षित नहीं कर सका इसके अतिरिक्त नाम न काटने की बाधा एक ऐसी समस्या है जिससे पलायन करने वाले छात्र जबरदस्ती उसी विद्यालय में दर्ज रह जाते हैं और विचारा शिक्षक उनका नाम जबरदस्ती क्लास दर क्लास आगे बढ़ाता रहता है मेरे हिसाब से इस अधिनियम में एक दो चीजों को छोड़कर कोई भी बंधन शिक्षा की राह में और विद्यालय के स्तर में रुकावट नहीं डालता बल्कि बाधाओं को दूर करता है परंतु सरकारी संसाधन सीमित है और गैर शिक्षकीय कार्य भरमार है यदि संसाधन बढ़ा दिए जाएं और गैर शिक्षकीय कार्य शिक्षकों से ना कराए जाएं तो यह अधिनियम निश्चित रूप से शासकीय क्षेत्र में भी शिक्षा का स्तर सुधार देगा  


( लेखक स्वयं अध्यापक हैं  और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस  लेख को  तृतीय स्थान प्रदान  किया गया है  )

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