Wednesday, September 21, 2016

शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए बनी अध्यापक संघर्ष समिति का ऐलान तिरंगा लेकर लड़ेंगे अध्यापक -वासुदेव शर्मा

वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा) -उडी  में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर शुरू हुई अध्यापक संगठनों की एकता बैठक ने गंभीर विचार विमर्श के बाद अध्यापक संघर्ष समिति का गठन कर शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई हाथ में तिरंगा लेकर लडऩे का फैसला किया। तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच 25 सितंबर को जिला मुख्यालयों पर तिरंगा रैली निकालकर इस लड़ाई की शुरूआत करने की घोषणा हुई तथा सभी जिलों में अध्यापक संघर्ष समिति के गठन का निर्णय  सभी संगठनों के उपस्थिति नेताओं एवं प्रतिनिधियों ने लिया। यह था 18 सितंबर की एकता बैठक का महत्वपूर्ण निष्कर्ष। जिसे प्रदेश के साढ़े तीन लाख अध्यापकों ने दिल से स्वीकार कर 25 सितंबर की तिरंगा रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
अध्यापक संघर्ष समिति बनने के बाद गुजरे तीन दिन उपरांत जो जानकारियां आ रही हैं, वे बताती है कि अध्यापक संविलियन की इस लड़ाई को पूरी ताकत से लडऩे और जीतने के लिए तैयार है। गुजरे तीन दिन में जितने भी अध्यापक नेताओं से बात हुई, सभी का यही मानना है कि 25 सितंबर को जिलों में होने वाली तिरंगा रैली ऐतिहासिक होगी, जिसमें कम से कम 4 से 5 हजार अध्यापक परिवार के सदस्य के साथ शामिल रहेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि महिला अध्यापक अपने पति के साथ और पुरुष अध्यापक अपनी पत्नि के साथ जिलों में होने वाली तिरंगा रैली में शामिल होंगे। इसका दूसरा अर्थ यह निकाला जा सकता है कि अध्यापक संघर्ष समिति  साढ़े तीन लाख अध्यापकों की लड़ाई को सात लाख अध्यापकों की लड़ाई में बदलने की रणनीति पर चल रही है। 18 सितंबर की एकता बैठक में वक्ताओं ने  सरकार द्वारा अध्यापकों के बारे में प्रचारित किए गए झूठ का जबाव देने के लिए गांव-गांव में चौपाल लगाकर संघर्ष में जनता की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की बात रखी, जिसे भी  स्वीकार किया गया।
        सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने अध्यापकों को गुस्से में पहुंचाया ?

18 सितंबर की एकता बैठक में जितने भी वक्ता बोले, उन्होंने इसके तमाम कारणों को विस्तार से बताते हुए कहा कि 20 साल की नौकरी में सरकारों ने हमसे सिर्फ झूठ बोला है। अपने ही आदेशों की अवहेलना की हैं। 1998 की सेवा शर्तों के अनुसार हमें जो 2001 में मिल जाना चाहिए था, वह अब तक नहीं मिला है। अध्यापक मप्र सरकार का शिक्षक है, यह बात 1998 की सेवा शर्तों में स्पष्ट लिखा है, इसके बाद भी हमें  शिक्षक के समान वेतन, पेंशन एवं अन्य सुविधाओं को लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा। यही सवाल प्रदेश के अध्यापक 15 साल से सरकार से करते आ रहे हैं, लेकिन सही जबाव नहीं मिल रहा है, जिस कारण ही अध्यापकों में नाराजगी है और वे अब नियुक्ति दिनांक से शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लडऩे की तैयारी में है। 18 सितंबर की एकता बैठक में एक और बात साफ तौर पर सामने आई कि शिवराज सिंह ने अध्यापकों को जितना जलील किया है, उतना जलील दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री ने अपने कर्मचारियों को नहीं किया होगा। इसीलिए बैठक में यह चर्चा भी हुई  कि अध्यापक संघर्ष समिति से ऐसे लोगों को दूर रखा जाए, जो शिवराज सिंह की चौखट पर माथा टेकते हैं और साढ़े तीन लाख अध्यापकों को सरकार के यहां गिरवी रखना चाहते हैं। यही वे कुछ ऐसे कारण हैं जिसने प्रदेश के अध्यापकों के गुस्से को बढ़ाया है, इसीलिए आज अध्यापकों के इस गुस्से को संघर्ष में बदलना अध्यापक संघर्ष समिति के पहली और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे पूरा करने का काम नेताओं को करना है।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है )

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Wednesday, September 21, 2016

शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए बनी अध्यापक संघर्ष समिति का ऐलान तिरंगा लेकर लड़ेंगे अध्यापक -वासुदेव शर्मा

वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा) -उडी  में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर शुरू हुई अध्यापक संगठनों की एकता बैठक ने गंभीर विचार विमर्श के बाद अध्यापक संघर्ष समिति का गठन कर शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई हाथ में तिरंगा लेकर लडऩे का फैसला किया। तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच 25 सितंबर को जिला मुख्यालयों पर तिरंगा रैली निकालकर इस लड़ाई की शुरूआत करने की घोषणा हुई तथा सभी जिलों में अध्यापक संघर्ष समिति के गठन का निर्णय  सभी संगठनों के उपस्थिति नेताओं एवं प्रतिनिधियों ने लिया। यह था 18 सितंबर की एकता बैठक का महत्वपूर्ण निष्कर्ष। जिसे प्रदेश के साढ़े तीन लाख अध्यापकों ने दिल से स्वीकार कर 25 सितंबर की तिरंगा रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
अध्यापक संघर्ष समिति बनने के बाद गुजरे तीन दिन उपरांत जो जानकारियां आ रही हैं, वे बताती है कि अध्यापक संविलियन की इस लड़ाई को पूरी ताकत से लडऩे और जीतने के लिए तैयार है। गुजरे तीन दिन में जितने भी अध्यापक नेताओं से बात हुई, सभी का यही मानना है कि 25 सितंबर को जिलों में होने वाली तिरंगा रैली ऐतिहासिक होगी, जिसमें कम से कम 4 से 5 हजार अध्यापक परिवार के सदस्य के साथ शामिल रहेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि महिला अध्यापक अपने पति के साथ और पुरुष अध्यापक अपनी पत्नि के साथ जिलों में होने वाली तिरंगा रैली में शामिल होंगे। इसका दूसरा अर्थ यह निकाला जा सकता है कि अध्यापक संघर्ष समिति  साढ़े तीन लाख अध्यापकों की लड़ाई को सात लाख अध्यापकों की लड़ाई में बदलने की रणनीति पर चल रही है। 18 सितंबर की एकता बैठक में वक्ताओं ने  सरकार द्वारा अध्यापकों के बारे में प्रचारित किए गए झूठ का जबाव देने के लिए गांव-गांव में चौपाल लगाकर संघर्ष में जनता की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की बात रखी, जिसे भी  स्वीकार किया गया।
        सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने अध्यापकों को गुस्से में पहुंचाया ?

18 सितंबर की एकता बैठक में जितने भी वक्ता बोले, उन्होंने इसके तमाम कारणों को विस्तार से बताते हुए कहा कि 20 साल की नौकरी में सरकारों ने हमसे सिर्फ झूठ बोला है। अपने ही आदेशों की अवहेलना की हैं। 1998 की सेवा शर्तों के अनुसार हमें जो 2001 में मिल जाना चाहिए था, वह अब तक नहीं मिला है। अध्यापक मप्र सरकार का शिक्षक है, यह बात 1998 की सेवा शर्तों में स्पष्ट लिखा है, इसके बाद भी हमें  शिक्षक के समान वेतन, पेंशन एवं अन्य सुविधाओं को लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा। यही सवाल प्रदेश के अध्यापक 15 साल से सरकार से करते आ रहे हैं, लेकिन सही जबाव नहीं मिल रहा है, जिस कारण ही अध्यापकों में नाराजगी है और वे अब नियुक्ति दिनांक से शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को निर्णायक तरीके से लडऩे की तैयारी में है। 18 सितंबर की एकता बैठक में एक और बात साफ तौर पर सामने आई कि शिवराज सिंह ने अध्यापकों को जितना जलील किया है, उतना जलील दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री ने अपने कर्मचारियों को नहीं किया होगा। इसीलिए बैठक में यह चर्चा भी हुई  कि अध्यापक संघर्ष समिति से ऐसे लोगों को दूर रखा जाए, जो शिवराज सिंह की चौखट पर माथा टेकते हैं और साढ़े तीन लाख अध्यापकों को सरकार के यहां गिरवी रखना चाहते हैं। यही वे कुछ ऐसे कारण हैं जिसने प्रदेश के अध्यापकों के गुस्से को बढ़ाया है, इसीलिए आज अध्यापकों के इस गुस्से को संघर्ष में बदलना अध्यापक संघर्ष समिति के पहली और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे पूरा करने का काम नेताओं को करना है।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है )

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