Saturday, September 24, 2016

सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर अध्यापकों ने तैयार किया 21 सूत्रीय मांगपत्र - वासुदेव शर्मा


वासुदेव शर्मा - 25 सितंबर को तिरंगा रैलियों के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचने वाला ज्ञापन अध्यापकों के बीच तीन-चार दिन तक चले विचार-विमर्श के बाद तैयार हो गया है। अध्यापक संघर्ष समिति की ओर से उक्त मांगपत्र को फेशबुक और वाट्स-एप पर लोड कर दिया गया है। अध्यापक संघर्ष समिति का गठन, 25 सितंबर की तिरंगा रैली का निर्णय एवं दिए जाने वाले ज्ञापन के लिए जिस तरह अध्यापकों के बीच सामूहिक विचार-विमर्श की प्रक्रिया को अपनाया गया है, इससे एक बात स्पष्ट है कि सरकारों की 15-20 साल की उपेक्षा ने हर अध्यापक को इतना सक्षम बना दिया है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया में न केवल भागीदारी करता है बल्कि उसे अमल में लाने के लिए जी-जान से जुट भी जाता है। 25 सितंबर की तिरंगा रैली के प्रति अध्यापकों के बीच जो उत्साह है, वह बताता है कि आम अध्यापक मुश्किलों एवं परेशानियों से जूझते-जूझते इतना मजबूत हो चुका है कि उसे अब तोडऩा सरकार के बस की बात नहीं रही, इसीलिए आज जब अध्यापकों को भ्रमित करने वाला समाचार अखबारो में आया, तो आम अध्यापक की ओर से उसे खारिज करते हुए कहा गया कि यह साजिश है जो 25 सितंबर की तिरंगा रैली को असफल करने के लिए रची गई है। उक्त समाचार पर अध्यापकों की प्रतिक्रिया बताती है कि वह सही और गलत का निर्णय करने में सक्षम हो चुका है, यही वो कारण है जिसने अध्यापक संघर्ष समिति के गठन के बाद साढ़े तीन लाख अध्यापकों को एक साथ उत्साहित कर दिया है।

इसी मांगपत्र से आएंगे अच्छे दिन


21 सूत्रीय मांगपत्र की हर मांग महत्वपूर्ण है। गहन विचार-विमर्श के बाद जो मांगपत्र सामने आया है, कर्मचारी वर्ग के हर तबके के बीच व्याप्त वेतन विसंगति को समाप्त करने की मांग तो करता ही है, घर-घर में बैठे बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते बनाने के लिए भी सरकार से कहता है। मांगपत्र में अध्यापकों को शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग को प्रमुखता से उठाया गया है, वहीं अतिथि शिक्षकों को गुरूजियों की तरह संविदा शिक्षक बनाने की मांग भी सरकार से करता है। इससे भी आगे जाकर मांगपत्र ने संविदा भर्ती बंद कर सीधे अध्यापक की भर्ती शुरू करने की मांग पूरी ताकत से उठाई है, इस मांग का मतलब है कि सरकार जिस संविदाकरण की नीति पर चल रही है, उसे पूरी तरह बदला जाए, जिससे संविदा की नौकरी पाने वाले बेरोजगार युवाओं के जीवन में निश्चिंतता आए। उक्त मांगपत्र की एक-एक मांग अध्यापकों के जीवन से जुड़ी मांग है, जिसमें 15-20 साल के शोषण से मुक्ति चाही गई है। जनवरी 2013 से छठवां एवं जनवरी-2016 से सातवें वेतनमान की मांग का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि इनके पूरा होने के बाद अध्यापकों को एरियर के रूप में जो राशि मिलेगी, उससे आम अध्यापक को कुछ समय के लिए आर्थिक तंगी से निजात मिलेगी।


सरकारी स्कूल ही गरीबों का सहारा


21 सूत्रीय मांगपत्र में ही सरकार से यह मांग की गई है कि वह गरीबों से उसका सहारा नहीं छीने। सरकारी स्कूल ही हैं जो दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरों की गरीब बस्तियों के बच्चों को पढ़ा लिखाकर समाज में बराबरी से जीने के लायक बनाते हैं। सरकार ने जिस तरह निजी स्कूल के लिए आने वाले हर आवेदन पर मान्यता देने की नीति बनाई है, उसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि किराने की दुकान की तरह निजी स्कूल खुल गए हैं, जिनमें न योग्य शिक्षक होते हैं और न ही अच्छी पढ़ाई होती है। चूंकि सरकार खुद निजी स्कूलों को बढ़ावा दे रही है और उनकी आर्थिक मदद कर रही है, इस कारण यह स्थिति बनी है। 25 सितंबर के मांगपत्र में 5000 की आबादी वाले गांव एवं कस्बों में निजी स्कूल को मान्यता न देने तथा जहां दे दी गई है, उसे निरस्त करने की मांग की गई है। ध्यान रहे यह ऐसी मांग है, जो सरकारी स्कूलों को बंद होने से बचाएगी तथा बड़ी संख्या में सरकार को नए सरकारी स्कूल खोलने के लिए मजबूर करेगी, जिससे शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। वैसे भी शिक्षा विभाग ही एक ऐसा विभाग है, जहां सबसे अधिक रोजगार पैदा होते हैं, जिन्हें खत्म करने पर सरकार तुली हुई है, इसीलिए वह निजी स्कूलों को मान्यता देती जा रही है।


लक्ष्य बड़ा है तो लड़ाई भी बड़ी ही होगी

18 सितंबर को भोपाल में अध्यापक संघर्ष समिति बनाकर सभी पांचों अध्यापक संगठनों के नेताओं ने संघर्ष का जो लक्ष्य तय किया है, वह बड़ा लक्ष्य है, इसीलिए उसी दिन इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ी लड़ाई की तैयारी की घोषणा भी की गई। 25 सितंबर की तिरंगा रैली इसकी शुरूआत है। इसके आगे अध्यापकों का यह आंदोलन गांव, गली, मोहल्लों, कस्बों, शहरों, कालोनियों से गुजरते हुए जब अपनी मंजिल की तरफ बढ़ेगा, तब हर वह व्यक्ति हैरान रह जाएगा जो चौड़ी सडक़ों और आलीशान बिल्डिगों को ही विकास मानकर संतुष्ट हो चुका है। 25 साल के उदारीकरण ने मानवीय विकास को ठप्प कर व्यक्तियों को मुनाफाखोरों के लिए नोट उगलने की मशीन में तब्दील कर दिया है। प्रदेश का साढ़े तीन लाख अध्यापक इस सच्चाई को समझ चुका है, इसीलिए वह मानव की बेहतर के लिए रास्ता बनाने के लिए आंदोलित हुआ है, 21 सूत्रीय मांगपत्र इसका स्पष्ट संकेत देता है। शिवराज सिंह पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना, 25 को 4 बजे तक प्रदेश के हर कौने से ज्ञापन पहुंचने वाले हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह इनके निजी विचार है )

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सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर अध्यापकों ने तैयार किया 21 सूत्रीय मांगपत्र - वासुदेव शर्मा


वासुदेव शर्मा - 25 सितंबर को तिरंगा रैलियों के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचने वाला ज्ञापन अध्यापकों के बीच तीन-चार दिन तक चले विचार-विमर्श के बाद तैयार हो गया है। अध्यापक संघर्ष समिति की ओर से उक्त मांगपत्र को फेशबुक और वाट्स-एप पर लोड कर दिया गया है। अध्यापक संघर्ष समिति का गठन, 25 सितंबर की तिरंगा रैली का निर्णय एवं दिए जाने वाले ज्ञापन के लिए जिस तरह अध्यापकों के बीच सामूहिक विचार-विमर्श की प्रक्रिया को अपनाया गया है, इससे एक बात स्पष्ट है कि सरकारों की 15-20 साल की उपेक्षा ने हर अध्यापक को इतना सक्षम बना दिया है कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया में न केवल भागीदारी करता है बल्कि उसे अमल में लाने के लिए जी-जान से जुट भी जाता है। 25 सितंबर की तिरंगा रैली के प्रति अध्यापकों के बीच जो उत्साह है, वह बताता है कि आम अध्यापक मुश्किलों एवं परेशानियों से जूझते-जूझते इतना मजबूत हो चुका है कि उसे अब तोडऩा सरकार के बस की बात नहीं रही, इसीलिए आज जब अध्यापकों को भ्रमित करने वाला समाचार अखबारो में आया, तो आम अध्यापक की ओर से उसे खारिज करते हुए कहा गया कि यह साजिश है जो 25 सितंबर की तिरंगा रैली को असफल करने के लिए रची गई है। उक्त समाचार पर अध्यापकों की प्रतिक्रिया बताती है कि वह सही और गलत का निर्णय करने में सक्षम हो चुका है, यही वो कारण है जिसने अध्यापक संघर्ष समिति के गठन के बाद साढ़े तीन लाख अध्यापकों को एक साथ उत्साहित कर दिया है।

इसी मांगपत्र से आएंगे अच्छे दिन


21 सूत्रीय मांगपत्र की हर मांग महत्वपूर्ण है। गहन विचार-विमर्श के बाद जो मांगपत्र सामने आया है, कर्मचारी वर्ग के हर तबके के बीच व्याप्त वेतन विसंगति को समाप्त करने की मांग तो करता ही है, घर-घर में बैठे बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते बनाने के लिए भी सरकार से कहता है। मांगपत्र में अध्यापकों को शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग को प्रमुखता से उठाया गया है, वहीं अतिथि शिक्षकों को गुरूजियों की तरह संविदा शिक्षक बनाने की मांग भी सरकार से करता है। इससे भी आगे जाकर मांगपत्र ने संविदा भर्ती बंद कर सीधे अध्यापक की भर्ती शुरू करने की मांग पूरी ताकत से उठाई है, इस मांग का मतलब है कि सरकार जिस संविदाकरण की नीति पर चल रही है, उसे पूरी तरह बदला जाए, जिससे संविदा की नौकरी पाने वाले बेरोजगार युवाओं के जीवन में निश्चिंतता आए। उक्त मांगपत्र की एक-एक मांग अध्यापकों के जीवन से जुड़ी मांग है, जिसमें 15-20 साल के शोषण से मुक्ति चाही गई है। जनवरी 2013 से छठवां एवं जनवरी-2016 से सातवें वेतनमान की मांग का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि इनके पूरा होने के बाद अध्यापकों को एरियर के रूप में जो राशि मिलेगी, उससे आम अध्यापक को कुछ समय के लिए आर्थिक तंगी से निजात मिलेगी।


सरकारी स्कूल ही गरीबों का सहारा


21 सूत्रीय मांगपत्र में ही सरकार से यह मांग की गई है कि वह गरीबों से उसका सहारा नहीं छीने। सरकारी स्कूल ही हैं जो दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरों की गरीब बस्तियों के बच्चों को पढ़ा लिखाकर समाज में बराबरी से जीने के लायक बनाते हैं। सरकार ने जिस तरह निजी स्कूल के लिए आने वाले हर आवेदन पर मान्यता देने की नीति बनाई है, उसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि किराने की दुकान की तरह निजी स्कूल खुल गए हैं, जिनमें न योग्य शिक्षक होते हैं और न ही अच्छी पढ़ाई होती है। चूंकि सरकार खुद निजी स्कूलों को बढ़ावा दे रही है और उनकी आर्थिक मदद कर रही है, इस कारण यह स्थिति बनी है। 25 सितंबर के मांगपत्र में 5000 की आबादी वाले गांव एवं कस्बों में निजी स्कूल को मान्यता न देने तथा जहां दे दी गई है, उसे निरस्त करने की मांग की गई है। ध्यान रहे यह ऐसी मांग है, जो सरकारी स्कूलों को बंद होने से बचाएगी तथा बड़ी संख्या में सरकार को नए सरकारी स्कूल खोलने के लिए मजबूर करेगी, जिससे शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। वैसे भी शिक्षा विभाग ही एक ऐसा विभाग है, जहां सबसे अधिक रोजगार पैदा होते हैं, जिन्हें खत्म करने पर सरकार तुली हुई है, इसीलिए वह निजी स्कूलों को मान्यता देती जा रही है।


लक्ष्य बड़ा है तो लड़ाई भी बड़ी ही होगी

18 सितंबर को भोपाल में अध्यापक संघर्ष समिति बनाकर सभी पांचों अध्यापक संगठनों के नेताओं ने संघर्ष का जो लक्ष्य तय किया है, वह बड़ा लक्ष्य है, इसीलिए उसी दिन इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ी लड़ाई की तैयारी की घोषणा भी की गई। 25 सितंबर की तिरंगा रैली इसकी शुरूआत है। इसके आगे अध्यापकों का यह आंदोलन गांव, गली, मोहल्लों, कस्बों, शहरों, कालोनियों से गुजरते हुए जब अपनी मंजिल की तरफ बढ़ेगा, तब हर वह व्यक्ति हैरान रह जाएगा जो चौड़ी सडक़ों और आलीशान बिल्डिगों को ही विकास मानकर संतुष्ट हो चुका है। 25 साल के उदारीकरण ने मानवीय विकास को ठप्प कर व्यक्तियों को मुनाफाखोरों के लिए नोट उगलने की मशीन में तब्दील कर दिया है। प्रदेश का साढ़े तीन लाख अध्यापक इस सच्चाई को समझ चुका है, इसीलिए वह मानव की बेहतर के लिए रास्ता बनाने के लिए आंदोलित हुआ है, 21 सूत्रीय मांगपत्र इसका स्पष्ट संकेत देता है। शिवराज सिंह पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना, 25 को 4 बजे तक प्रदेश के हर कौने से ज्ञापन पहुंचने वाले हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह इनके निजी विचार है )

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