Monday, September 5, 2016

शिवराज सिंह यह तो अन्याय की इंतिहा है ? - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)-स्कूलों में पढ़ाने वाली इन बेटियों का गुनाह क्या है शिवराज सिंह, जो इनसे बंधुआ श्रमिकों जैसा सलूक किया जा रहा है। यह बेटियां आपसे ज्यादा पढ़ी लिखी हैं। इनकी आवाज में आपसे ज्यादा मिठास है। यह बेटियां अपनी-अपनी बस्तियों, स्कूलों में आपसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इनके चेहरों की मुस्कराहट बताती है कि यह खुशियां बांटने के लिए ही आई हैं।  यह बेटियां हर दिन 40, 50 या 100 किलोमीटर की मुश्किल यात्रा तय कर स्कूल पहुंचती हैं, तो आप समझ सकते हैं कि यह आपसे भी ज्यादा मेहनती और परिश्रमी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह केे गोद लिए जिला विदिशा की इन बेटियों की इस तस्वीर  के जरिए आपको यह बताना चाहते हैं कि प्रदेश में ऐसी बीसियों हजार बेटियां हैं, जिनसे  आप स्कूलों में काम लेे रहे हैं, लेकिन बदले में उतना भी नहीं दे रहे, जितना वे खर्च करके अपने-अपने स्कूल पहुंचती हैं। यह बेटियां आपके ही प्रदेश की अतिथि शिक्षक हैं। स्कूलों में यह व्यवस्था आपने ही शुरू की है। इसीलिए आपसे ही यह सवाल है कि आपको अपने ही प्रदेश के युवा मासूम बेटे-बेटियों को गुलाम या बंधुआ बनाने का अधिकार किसने दिया। आपको अतिथि शिक्षक की व्यवस्था बनानी ही थी, तो कम से कम उसमें यह प्रावधान तो किया ही जा सकता था कि इन्हें मप्र सरकार का घोषित न्यूनतम वेतन मिले तथा यह तब तक स्कूलों में पढ़ाएं जब तक स्कूल रहें। लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया?
     आपको याद दिला दें। आपसे से पहले दिग्विजय सिंह ने भी शिक्षाकर्मी के रूप में ऐसी ही व्यवस्था की थी। हालांकि तब की अटल बिहारी सरकार के स्पष्ट निर्देश थे कि सरकारी खर्चे कम करें, भले ही कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़े। दिग्विजय सिंह ने ऐसा किया भी, लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षाकर्मी को निश्चित वेतन और काम की निरंतरता का अधिकार देकर ही नौकरी पर रखा। आपने तो अतिथि शिक्षकों के साथ ऐसा कुछ नहीं किया। अपने तो अपने ही प्रदेश के बेटे-बेटियों को ऐसे लालची अधिकारियों के हवाले कर दिया जो 50 से 70 हजार वेतन लेने के बाद भी मध्यान्ह भोजन के धनिया तक में कमीशन ले लेते थे। स्कूलों में बैठे यह अधिकारी अतिथि शिक्षकों को पीरियड के हिसाब से तय पारिश्रमिक का भुगतान ईमानदारी से करेंगे, ऐसा आपने कैसे सोच लिया था, जो इन्हें उनके रहमो करम पर छोड़़ दिया।    मुख्यमंत्रीजी आपकी सरकार अतिथि शिक्षकों के साथ जो सलूक कर रही है, वैसा सलूक कभी राजा-माराजे अपनी प्रजा गुलाम, बंधुआ बनाकर किया करते थे। यही बेटियां स्कूलों में बच्चों को पढ़ाती है कि इंसान को गुलाम और बंधुआ बनाने वाली व्यवस्था इतिहास के गर्त में जा चुकी है, इन्हें बच्चों को यह समझा दिया कि आप उस व्यवस्था को जिंदा कर रहे हैं, तब क्या होगा, कभी सोचा? यह बेटे-बेटियां, जिन्हें आप 5-7 हजार रुपए महीना नियमित नहीं दे सकते, उन्होंने स्कूलों में बच्चों को आपके बारे में पढ़ाने शुरू कर दिया, तब क्या होगा, जरा विचार कीजिए। इन्होंने बच्चों को बता दिया कि गांव के गरीब किसान का बेटा शिवराज जो कभी पैदल चला करता था, आज उनके पास नोट गिनने की मशीनें हैं, तब स्कूलों के बच्चे भी आपसे नफरत करने लगेंगे। इस स्थिति से बचना है, तो कम से कम अतिथि शिक्षकों के साथ न्याय कीजिए। वे सालों से   संघर्ष कर रहे हैं, साल में दो-चार बार भोपाल आते हैं, लेकिन आप इनसे मिलते तक नहीं है, यह भी तो ठीक नहीं।
जिस तरह शिक्षाकर्मी रखने वाले दिग्विजय सिंह राजनीति में हाशिए पर हैं, कहीं अतिथि शिक्षक रखकर आप भी राजनीतिक हाशिए पर न पहुंच जाएं, इससे बचने के लिए ही सही अतिथि शिक्षकों की सुनिए और उनसे बात कीजिए।आज उन्होंने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है, कल कहीं आपका बहिष्कार कर दिया, तब क्या होगा? जरा सोचिए?(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं ।)


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शिवराज सिंह यह तो अन्याय की इंतिहा है ? - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)-स्कूलों में पढ़ाने वाली इन बेटियों का गुनाह क्या है शिवराज सिंह, जो इनसे बंधुआ श्रमिकों जैसा सलूक किया जा रहा है। यह बेटियां आपसे ज्यादा पढ़ी लिखी हैं। इनकी आवाज में आपसे ज्यादा मिठास है। यह बेटियां अपनी-अपनी बस्तियों, स्कूलों में आपसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इनके चेहरों की मुस्कराहट बताती है कि यह खुशियां बांटने के लिए ही आई हैं।  यह बेटियां हर दिन 40, 50 या 100 किलोमीटर की मुश्किल यात्रा तय कर स्कूल पहुंचती हैं, तो आप समझ सकते हैं कि यह आपसे भी ज्यादा मेहनती और परिश्रमी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह केे गोद लिए जिला विदिशा की इन बेटियों की इस तस्वीर  के जरिए आपको यह बताना चाहते हैं कि प्रदेश में ऐसी बीसियों हजार बेटियां हैं, जिनसे  आप स्कूलों में काम लेे रहे हैं, लेकिन बदले में उतना भी नहीं दे रहे, जितना वे खर्च करके अपने-अपने स्कूल पहुंचती हैं। यह बेटियां आपके ही प्रदेश की अतिथि शिक्षक हैं। स्कूलों में यह व्यवस्था आपने ही शुरू की है। इसीलिए आपसे ही यह सवाल है कि आपको अपने ही प्रदेश के युवा मासूम बेटे-बेटियों को गुलाम या बंधुआ बनाने का अधिकार किसने दिया। आपको अतिथि शिक्षक की व्यवस्था बनानी ही थी, तो कम से कम उसमें यह प्रावधान तो किया ही जा सकता था कि इन्हें मप्र सरकार का घोषित न्यूनतम वेतन मिले तथा यह तब तक स्कूलों में पढ़ाएं जब तक स्कूल रहें। लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया?
     आपको याद दिला दें। आपसे से पहले दिग्विजय सिंह ने भी शिक्षाकर्मी के रूप में ऐसी ही व्यवस्था की थी। हालांकि तब की अटल बिहारी सरकार के स्पष्ट निर्देश थे कि सरकारी खर्चे कम करें, भले ही कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़े। दिग्विजय सिंह ने ऐसा किया भी, लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षाकर्मी को निश्चित वेतन और काम की निरंतरता का अधिकार देकर ही नौकरी पर रखा। आपने तो अतिथि शिक्षकों के साथ ऐसा कुछ नहीं किया। अपने तो अपने ही प्रदेश के बेटे-बेटियों को ऐसे लालची अधिकारियों के हवाले कर दिया जो 50 से 70 हजार वेतन लेने के बाद भी मध्यान्ह भोजन के धनिया तक में कमीशन ले लेते थे। स्कूलों में बैठे यह अधिकारी अतिथि शिक्षकों को पीरियड के हिसाब से तय पारिश्रमिक का भुगतान ईमानदारी से करेंगे, ऐसा आपने कैसे सोच लिया था, जो इन्हें उनके रहमो करम पर छोड़़ दिया।    मुख्यमंत्रीजी आपकी सरकार अतिथि शिक्षकों के साथ जो सलूक कर रही है, वैसा सलूक कभी राजा-माराजे अपनी प्रजा गुलाम, बंधुआ बनाकर किया करते थे। यही बेटियां स्कूलों में बच्चों को पढ़ाती है कि इंसान को गुलाम और बंधुआ बनाने वाली व्यवस्था इतिहास के गर्त में जा चुकी है, इन्हें बच्चों को यह समझा दिया कि आप उस व्यवस्था को जिंदा कर रहे हैं, तब क्या होगा, कभी सोचा? यह बेटे-बेटियां, जिन्हें आप 5-7 हजार रुपए महीना नियमित नहीं दे सकते, उन्होंने स्कूलों में बच्चों को आपके बारे में पढ़ाने शुरू कर दिया, तब क्या होगा, जरा विचार कीजिए। इन्होंने बच्चों को बता दिया कि गांव के गरीब किसान का बेटा शिवराज जो कभी पैदल चला करता था, आज उनके पास नोट गिनने की मशीनें हैं, तब स्कूलों के बच्चे भी आपसे नफरत करने लगेंगे। इस स्थिति से बचना है, तो कम से कम अतिथि शिक्षकों के साथ न्याय कीजिए। वे सालों से   संघर्ष कर रहे हैं, साल में दो-चार बार भोपाल आते हैं, लेकिन आप इनसे मिलते तक नहीं है, यह भी तो ठीक नहीं।
जिस तरह शिक्षाकर्मी रखने वाले दिग्विजय सिंह राजनीति में हाशिए पर हैं, कहीं अतिथि शिक्षक रखकर आप भी राजनीतिक हाशिए पर न पहुंच जाएं, इससे बचने के लिए ही सही अतिथि शिक्षकों की सुनिए और उनसे बात कीजिए।आज उन्होंने शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया है, कल कहीं आपका बहिष्कार कर दिया, तब क्या होगा? जरा सोचिए?(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं ।)


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