कुलदीप श्रीवास्तव -यहाँ एक बात मेरे मन में आती है कि सरकारी शालाएं ही क्यों निशाना बनी ..सरकार के लिए,दरअसल एक ऐसा समय भी था जब शिक्षा प्राप्त करना एक विशेष वर्ग के लिए ही सुनिश्चित था सेवा कार्य करने वाले लोगो के लिए शिक्षा प्राप्त करना टेडी खीर थी ...तब तक यह भी था सरकारी शालाओ में इतनी व्यवस्था ख़राब नही रही शिक्षको को भी उचित सम्मान और सुविधाये मिलती रही समस्या तब से शुरू हुई है जब शिक्षा को मौलिक अधिकारो में शामिल कर लिया गया अब हर वर्ग को शिक्षित करना राज्य और संघ की जिम्मेदारी हो गई यहाँ से आप देखते है नीतिओ में बदलाव कैसा है
स्कूलो में मध्यान्ह भोजन निशुल्क पुस्तके और अन्य सुविधाये विशेष वर्ग को छात्रवृतिया और सरकारी नुमाइंदे प्रयोग पर प्रयोग करने लगे यहाँ तक कि शिक्षक अब शिक्षक नही रहा उसके कई नाम कर दिए और सुविधाये समय दर समय कम होती गई अब सरकार ने यह पूरी तरह से मान ही लिया कि सरकारी विद्यालय में केवल निर्धन मजदूर किसान आदि के बच्चे पढ़ते है योजनाये भी वैसे ही अपना आकार लेने लगी है और तब ख़ास वर्ग के बच्चों की शिक्षा हेतु निजी विद्यालयो की आवश्यकता महसूस हुई और धड़ल्ले से मान्यताये मिलने लगी और खुल गई दुकाने शिक्षा की पर यहाँ हो सकता है कुछ अध्यापक अपवाद हो सकते है पर अध्यापक आज भी पढ़ाना ही चाहता है पर सच्चाई तो यही है कि ये सरकारें नही चाहती है कि विद्यालयो में ऐसा कुछ हो उन्हें अपने वोट बैंक पर खतरा नजर आता होगा शिक्षा और निर्धन के बीच दूरी बनी रहे यही सोच के साथ काम कर रही है सरकारें और तभी तो अल्प वेतन विना सुविधाओ वाले अध्यापको को सरकारी काम से लाद कर घोड़े की तरह दौड़ाने का प्रयास कर रही है सरकार
परिणाम अपेक्षित कभी नही आयेगे . इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश कोर्ट ने शिव भाई की याचिका पर निर्णय दिया था कि अधिकारियो के बच्चों को सरकारी विद्यालयो में पढ़ाना चाहिए ...सब सरकार चुप्पी साध के बैठ गई
( लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस लेख को तृतीय स्थान प्रदान किया गया है )
परिणाम अपेक्षित कभी नही आयेगे . इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश कोर्ट ने शिव भाई की याचिका पर निर्णय दिया था कि अधिकारियो के बच्चों को सरकारी विद्यालयो में पढ़ाना चाहिए ...सब सरकार चुप्पी साध के बैठ गई
( लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं ,१९८५ के बाद शिक्षा में बदलाव विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस लेख को तृतीय स्थान प्रदान किया गया है )
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