Saturday, September 10, 2016

संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में अध्यापक - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा-बीते दिनों अस्तित्व में आई अध्यापक संघर्ष समिति भले ही अध्यापकों में उत्साह पैदा करने में कामयाब नहीं हुई हो, लेकिन इसके बाद अध्यापकों ने सोशल मीडिया के जरिए संघर्ष के सही रास्ते की तलाश जरूर शुरू कर दी है। अध्यापक संगठनों के बीच एकता कायम करने के लिए हुई बैठक जब एकता तक नहीं पहुंची, तब अध्यापकों में नाराजगी सामने आई। इस बार उनके निशाने पर सीधे सरकार और उनके समर्थक रहे।  एकता में बाधक कौन है? इस पर सोशल मीडिया में चले मंथन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसके लिए सरकार और उसके समर्थक संगठन तथा उनसे जुड़े लोग जिम्मेदार हैं, इसीलिए पहला निर्णय यह हुआ कि संघर्ष शुरू करने से पहले सरकार के आस-पास दिखने वालों से दूरी बनाई जाए। दूसरे, राज्य कर्मचारी संघ, बीएमएस जैसे सरकार समर्थक संगठनों की छत्रछाया से अध्यापकों की एकता बचाया जाए। यानि अध्यापक उन सबसे सतर्क रहना चाहते हैं जो संघर्ष की धार को भोथरा कर सकते हैं।  इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि वे संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में हैं, जो उन्हें संघर्ष करने वाली ताकतों के आस-पास पहुंचकर ही मिल सकता है। अध्यापकों के बीच जिलों में काम कर रहे नेता मानते हैं कि पहले भी तभी जीते थे, जब संघर्ष करने वाले लोग साथ थे और आगे भी तभी जीतेंगे, जब वे लोग साथ होंगे।
सोशल मीडिया पर ही आगामी रणनीति के तौर पर जो सहमति बनती नजर आ रही है, उसमें अध्यापकों की ओर से ही दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर करने की बात सामने आ रही है, जिसमें प्रदेश भर से चुनिंदा 400 अध्यापक नेताओं को बुलाया जाए। प्रशिक्षण शिविर के लिए अध्यापक नेताओं का चयन संगठनों से ऊपर उठकर सभी संगठनों के बीच से हो। प्रशिक्षण शिविर में देश के ख्याति प्राप्त शिक्षाविदों एवं ट्रेड यूनियन
जानकारों को बुलाया जाए, कुछ नाम भी चर्चा में आए हैं, जिनका जिक्र अगली पोस्ट में। सोशल मीडिया पर सुनाई दे रही इस तरह की चर्चा, सरकार को यह बताने के लिए काफी है कि इस बार अध्यापक संघर्ष के मैदान में निहत्था नहीं उतरेगा। सोशल मीडिया पर अध्यापकों के बीच पनपी रही यह एकता कहां तक पहुंचती, यह तो आने वाले दिनों में तय हो पाएगा, फिलहाल इतना ही पर्याप्त है कि 20 साल का अन्याय सहते-सहते अध्यापक ने हर तरफ सोचना शुरू कर दिया है यानि वह अपना रास्ता खुद बनाने के लिए तैयार हो रहा है।लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं।

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Saturday, September 10, 2016

संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में अध्यापक - वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा)


वासुदेव शर्मा-बीते दिनों अस्तित्व में आई अध्यापक संघर्ष समिति भले ही अध्यापकों में उत्साह पैदा करने में कामयाब नहीं हुई हो, लेकिन इसके बाद अध्यापकों ने सोशल मीडिया के जरिए संघर्ष के सही रास्ते की तलाश जरूर शुरू कर दी है। अध्यापक संगठनों के बीच एकता कायम करने के लिए हुई बैठक जब एकता तक नहीं पहुंची, तब अध्यापकों में नाराजगी सामने आई। इस बार उनके निशाने पर सीधे सरकार और उनके समर्थक रहे।  एकता में बाधक कौन है? इस पर सोशल मीडिया में चले मंथन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसके लिए सरकार और उसके समर्थक संगठन तथा उनसे जुड़े लोग जिम्मेदार हैं, इसीलिए पहला निर्णय यह हुआ कि संघर्ष शुरू करने से पहले सरकार के आस-पास दिखने वालों से दूरी बनाई जाए। दूसरे, राज्य कर्मचारी संघ, बीएमएस जैसे सरकार समर्थक संगठनों की छत्रछाया से अध्यापकों की एकता बचाया जाए। यानि अध्यापक उन सबसे सतर्क रहना चाहते हैं जो संघर्ष की धार को भोथरा कर सकते हैं।  इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि वे संघर्ष के सही रास्ते की तलाश में हैं, जो उन्हें संघर्ष करने वाली ताकतों के आस-पास पहुंचकर ही मिल सकता है। अध्यापकों के बीच जिलों में काम कर रहे नेता मानते हैं कि पहले भी तभी जीते थे, जब संघर्ष करने वाले लोग साथ थे और आगे भी तभी जीतेंगे, जब वे लोग साथ होंगे।
सोशल मीडिया पर ही आगामी रणनीति के तौर पर जो सहमति बनती नजर आ रही है, उसमें अध्यापकों की ओर से ही दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर करने की बात सामने आ रही है, जिसमें प्रदेश भर से चुनिंदा 400 अध्यापक नेताओं को बुलाया जाए। प्रशिक्षण शिविर के लिए अध्यापक नेताओं का चयन संगठनों से ऊपर उठकर सभी संगठनों के बीच से हो। प्रशिक्षण शिविर में देश के ख्याति प्राप्त शिक्षाविदों एवं ट्रेड यूनियन
जानकारों को बुलाया जाए, कुछ नाम भी चर्चा में आए हैं, जिनका जिक्र अगली पोस्ट में। सोशल मीडिया पर सुनाई दे रही इस तरह की चर्चा, सरकार को यह बताने के लिए काफी है कि इस बार अध्यापक संघर्ष के मैदान में निहत्था नहीं उतरेगा। सोशल मीडिया पर अध्यापकों के बीच पनपी रही यह एकता कहां तक पहुंचती, यह तो आने वाले दिनों में तय हो पाएगा, फिलहाल इतना ही पर्याप्त है कि 20 साल का अन्याय सहते-सहते अध्यापक ने हर तरफ सोचना शुरू कर दिया है यानि वह अपना रास्ता खुद बनाने के लिए तैयार हो रहा है।लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं।

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