Monday, August 15, 2016

आजादी का अहसास कराते हैं जनांदोलन-वासुदेव शर्मा छिन्दवाड़ा ( 70वें स्वतंत्रता दिवस पर ) गैर राजनीतिक ताकतों के आन्दोलन के संदर्भ में


आजादी का अहसास कराते हैं जनांदोलन
वासुदेव शर्मा छिन्दवाड़ा-जनता को गैरराजनीतिक ताकतों के इर्द-गिर्द संगठित करने की हो रही कोशिशें राजनीतिक ताकतों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। गैरराजनीतिक ताकतें समाज में राजनीतिक वातावरण को समाप्त करती हैं तथा जनांदोलनों को उभरने से रोकती हैं। इससे आगे जाकर यह ताकतें जनता के सवालों एवं आजादी के महत्व पर भी भ्रम फैलाने का काम करती हैं। यह ताकतें जनता के जरूरी सवालों को भी अपने अपने तरीके से परिभाषित कर कुतर्कों के जरिए यह बताने की कोशिश करती हैं कि जनता जिन परेशानियों का सामना कर रही है, उसके लिए वही जिम्मेदार है। यह ऐसा कुतर्क है, जो सरकार के जनविरोधी रवैए से ध्यान हटाने के लिए दिया जाता है। यह तर्क वे ताकतें अधिक देती हैं, जो खुद को गैरराजनीतिक कहती हैं। यह ताकतें ऐसा क्यों करती हैं? स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हर किसी को इसे समझने की जरूरत है?

समाज में बढ़ रही असमानता, बेरोजगारी, गरीबी, दरिद्रता, ऊंच-नीच जैसी समस्याओं को राजनीतिक नजरिए से ही समझकर उनके समाधान तक पहुंचा जा सकता है। आजादी के बाद देश ने जो प्रगति की है, उसका श्रेय भारत की राजनीति को ही जाता है, फिर वह राजनीति भले ही विभिन्न विचारों से क्यों न संचालित होती रही हो। समाज में राजनीतिक वातावरण मौजूद रहता है, तब विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को उभरने के अवसर मिलते हैं। यह ऐसी स्थिति होती है, जो समाज के हर तबके को उसकी पसंद की राजनीति के चयन का अधिकार देती है। समाज में राजनीतिक वातावरण होता है, तब जनसंघर्षों, जनांदोलन की परिस्थितियां भी मौजूद रहती हैं और लोग खुद की बात को हुकूमतों तक पहुंचाने के लिए इसी रास्ते का सहारा लेते हैं। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का रास्ता, ऐसा रास्ता होता है, जो समाज को राजनीतिक शिक्षा देता है, विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को समझने का मौका उपलब्ध कराता है तथा जनता को अपनी पसंद की राजनीति के करीब पहुंचाता है।
       आजादी, जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों से ही हासिल हुई है, इसीलिए देश की प्रगति में इसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जनता के संगठित संघषों की ही ताकत का परिणाम था कि अंग्रेजों की ताकतवर हुकमतों को भी अंत में यह अहसास हो गया था कि संगठित जनता की आवाज को कुचला नहीं जा सकता, इसीलिए अंग्रेजी हुकूमत दमन के तमाम हथियारों को डालकर जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों के आगे झुकी और देश छोड़कर जाने को मजबूर हुई। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों ने ही भारत को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिए, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया।  जिस देश में  जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का इतना बड़ा योगदान रहा हो, उस देश में गैरराजनीतिक ताकतों के बढ़ते बर्चस्व को हल्के में नहीं लेना चाहिए। गैरराजनीतिक ताकतें समाज का पहला नुकसान यही कर रही हैं कि वे जनांदोलनों के महत्व को समाप्त कर जनता को  संघर्ष के रास्ते पर चलने से रोक रही हैं। गैरराजनीतिक ताकतें ऐसा करने में सफल हुई, तब जनता से उसकी जुवान ही छिन जाएगी और वह चंद ताकतवर व्यक्तियों, नेताओं एवं अधिकारियों पर निर्भर हो जाएगी।  यह स्थिति गुलामी जैसी होगी, इसीलिए 69वें स्वतंत्रता दिवस पर जनता को इस स्थिति  से बचाने का संकल्प भी लेना होगा।
       चूंकि गैरराजनीतिक ताकतें समाज में अलग-अलग नामों से काम करती हैं। यह ताकतें समाज सेवा के नाम पर सरकार की तमाम योजनाओं को संचालित करते हुए खुद को स्थापित करने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी को ही समाज में अविश्वसनीय बनाने का काम करती हैं। यह ताकतें इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि वे राजनीतिक गतिविधियों को ठप्प कर देती हैं, अन्ना एवं रामदेव के आंदोलनों के दौरान ऐसा देखने में आया भी। गैरराजनीतिक ताकतें सांस्कृतिक संगठनों का चोला पहनकर भी जनता के बीच पहुंचती हैं, यह ताकतें जनता को उनके बुनियादी सवालों पर होने वाले संघर्षों से दूर कर सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजनों की तरफ ले जाने का काम करती हैं, इसका नतीजा यह होता है कि जनता अपने जरूरी सवालों पर सोचने-विचारने की वजाय अपनी माली हालत के लिए अपने पिछले कर्मों का फल मानकर जिस हाल में है उसे अपनी नियत मानकर स्वीकार कर लेती है। जनता जिस हाल में है, उसी में जीती रही और इससे आगे न सोचे, गैर राजनीतिक ताकतें इसीके लिए काम करती हैं। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों में जनता की कम होती भागीदारी, राजनीतिक कार्यक्रमों के प्रति उसकी बेरुखी बताती है कि गैरराजनीतिक ताकतों ने समाज के बहुमत हिस्से को निराशा में पहुंचा दिया है, जिस कारण जनता लोकतांत्रिक रास्ते से दूर होती जा रही है।
      सामाजिक असमानता, गरीबी, बेकारी, महंगाई ऐसे सवाल हैं, जिन्होंने जनता के बहुमत हिस्से को प्रभावित किया है। किसानों की माली हालत, बढ़ती बेरोजगारी, महंगी होती शिक्षा, महंगा होती स्वास्थ्य सुविधाएं, खाने-पीने की जरूरी चीजों का आए दिन महंगा होना, कर्मचारियों के बीच व्याप्त वेतनविसंगतियों की समस्याओं के लिए सीधे-सीधे सरकारें और उन सरकारों की नीतियां ही जिम्मेदार है, ऐसे में जब इन समस्याओं से दो-चार होते लोग इनके समाधान के रास्ते गैरराजनीतिक नजरिए से खोजेंगे, तब न तो समस्याओं के समाधान तक पहुंचा जा सकता है और न ही इन समस्याएं से मुक्ति मिल सकती हैं। जनता के हर तबके को प्रभावित कर रही इन समस्याओं के समाधान का रास्ता राजनीतिक रास्ते पर चलकर ही निकाला जा सकता है, इसके लिए जरूरी है कि जनता के बीच से जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का निर्माण हो।  जनसंघर्षों एवं जनांदोलनों में बोले जाने वाली भाषा, लगाए जाने वाले नारे, संघर्षों के संगठनकर्ताओं की राजनीतिक विचारधारा को सामने लाते हैं, इस तरह जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों के जरिए जनता को विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को समझने का मौका मिलता है। कौनसी राजनीति उसके करीब है, यह समझने का  बेहतरीन मौका होते हैं जनांदोलनों। आज जब समाज का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में सरकारों की नीतियों से असंतुष्ट हो, तब जनता के लिए जनांदोलनों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इन्हीं जनांदोलनों से भारत की जनता को आजादी मिली और यही जनांदोलन जनता के जीवन को खुशहाल बनाने के रास्ते पर ले जाएंगे।  आईए; स्वतंत्रता दिवसे के मौके पर जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों को विकसित करने का संकल्प लें।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं (यह उनके निजी विचार हैं )

Friday, August 12, 2016

एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ?-अरविन्द रावल झबुआ

अरविन्द रावल-एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ? कुछ हमारे अध्यापक साथियो ने और शासन के लोगो के सहयोग से आज अध्यापक की जान की कीमत एक लाख रूपये तय वाला आदेश जारी हुआ हे। सरकार के इस आदेश के बाद मृत अध्यापक साथी के परिवार के लोगो  की अहर्ता नही होने की स्थिति में अनुकम्पा के नाम पर एक लाख रूपये देकर शासन इतिश्री कर लेगा। हमारे जिन साथियो ने एक लाख रूपये अनुकम्पा के नाम पर मृत अध्यापक के परिवार को देने का सुझाव शासन को दिया हे निश्चित ही उन लोगो को परिवार की पीड़ा क्या होती हे इसका एहसास नही होगा। अगर मेरे यह साथी शासन के लोगो को यह सुझाव देते की मृत अध्यापक के परिवार में यदि अहर्ता योग्य पात्र कोई व्यक्ति नही हे तो उन्हें शासन परिवार के लालन पालन हेतू पहले अनुकम्पा की तहत सविदा 3 के पद पर नोकरी दे और योग्य अहर्ता प्राप्त करने हेतू दो चार साल का टाइम पीरियड देने की बात प्रमुखता से रखना थी। यदि किसी मृत् अध्यापक परिवार में कोई अहर्ता प्राप्त करने में असमर्थ व्यक्ति हे तो सरकार उसे भृत्य के पद पर अनुकम्पा में नोकरी दे। ताकि मृत अध्यापक साथी के परिवार का सदस्य बहेतर ढंग से अपने परिवार का पालन कर सके।साथियो एक लाख रूपये में इस महँगाई के दौर में आज होता क्या हे ? एक लाख रूपये में न तो आज बच्चों की शिक्षा पूरी होती हे और न ही हाथ पीले किये जा सकते हे।  हमारे साथी खुद को अव्वल साबित करने के चक्कर में अपनों का ही बुरा करवा बेठे हे। इस आदेश का सभी साथियो को मिलकर विरोध करना चाहिए । हमें इसे निरस्त करवाकर मृत अध्यापक साथी के परिवार के पालन हेतु अहर्ता होने या न होने की स्थिति में किसी भी पद पर पर नोकरी दी जाये ऐसा आदेश जारी करवाने का प्रयास सामूहिक रूप से अब किया जाना चाहिए।अभी हम अध्यापको को सरकार से बहुत सारी लड़ाई लड़ना बाकी हे । आगामी दस पन्द्रह सालो के अंदर कोई एक लाख से ज्यादा अध्यापक  रिटायर हो जाने वाले हे। इसी तरह से दुक्डो में बिखर कर लड़ते रहेगे तो खाली हाथ घर लौटने के कुछ हासिल नही होगा। शासन से जो भी लड़ाई जितना हे तो हमारे पास दो चार सालो का वक्त ही हे। उसके बाद हम फिर कुछ करने की स्थिति में नही रहेगे। हमने टुकड़ो में बटकर रहने का परिणाम आज देख लिया इस आदेश को पाकर। कितने बड़े दुःख का विषय हे की हमारी ताकत देश की आधी आर्मी के बराबर होने के बाद भी हमे एक एक आदेश को निकलवाने में एक एक साल लग जाते हे और फिर उनकी विसंगतियो को सुधरवाने में इतना समय लगता हे तो हम पेंशन और  अन्य सुविधाओ की लड़ाई लड़ेंगे कब और उनको प्राप्त कब करेगे ?
अभी भी हमारे पास वक्त शेष हे यदि हम सभी अध्यापक नेता एकजुट हो जाये तो हम सरकार से अपनी शक्ति के बल पर सब कुछ पा सकते हे। इस समय अध्यापको को एक सशक्त दूरदर्शी नेतृत्त्व की आवश्यकता हे जो अध्यापक और उसके परिवार के उज्ज्वल भविष्य की सोच को लेकर कार्य करे।लेखक स्वयं  अध्यापक हैं और यह उनकी निजी राय है .           

Thursday, August 11, 2016

अर्जित अवकाश प्रदान कि‍ये जाने के संबंध में ,नियम 2008

ग्रीष्‍मावकाश में शासकीय कार्य कि‍ये जाने के एवज में अर्जित अवकाश प्रदान कि‍ये जाने के संबंध में ,नियम 2008 ,एक दिन काम करने के लिए एक दिन का अर्जित अवकाश अधिकतम  30 दिवस खाते में दर्ज किया जाएगा ,प्राप्त 10 अर्जित अवकाश के नकदीकरण की पात्रता समाप्त कर दी गयी। अर्जित अवकाश के नकदीकरण  की पात्रता अन्य कर्मचारियों के समान  कर दी गयी हैं । आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए आदेश की इस लिंक ओपन करें।






आम अध्यापक और अध्यापको के नेतृत्व से विनम्र अपील ,अब समस्या का समाधान आवश्यक है - सुरेश यदाव रतलाम


सुरेश यादव रतलाम - गत वर्ष सितम्बर माह में आंदोलन हुआ था ,तब से अब तक सिर्फ और सिर्फ सरकार ने अखबारों में अपनी वाह- वाही करवाई है की उसने अध्यापको को सामान वेतन दे दिया जबकि वास्तविकता क्या है आप सभी जानते हैं हम वँही के वँही हैं । अध्यापक निराश है उसके हाथ तो रीते ही हैं,कभी संवाद और कभी असंवाद धड़कनो को और बड़ा देता है । संपूर्ण अध्यापक  समाज भी वर्तमान में वेतन निर्धारण के लिए गणना पत्रक को लेकर आशंकित और चिंतित हैं।
      

  श्री भरत पटेल के नेतृत्व में 25 जुलाई 2016 को डीपीआई में अधिकारियों से चर्चा की गयी । तब भरत भाई की तरफ से कहा गया कि , वार्ता सफल रही है और हमारी मांग अनुसार ही प्रस्ताव बनाकर विभाग ,शासन को भेज देगा।  इसके बाद भरत पटेल जी के नेतृत्व में शिक्षा मंत्री से 3 अगस्त को वार्ता हुई उस दिन यह प्रचारित-प्रसारित  किया गया कि वार्ता असफल रही। सरकार ने तीन प्रस्ताव दिए लेकिन हमें मंजूर नहीं है ।      

 भारत भाई ,लेकिन सरकार के तीन प्रस्ताव हैं क्या ? अध्यापक हित में आवश्यक है की  आप तो कम से कम अपना प्रस्ताव  सार्वजनिक करें ,साथ ही सरकार के 3 प्रस्ताव भी सार्वजनिक करें । जिस से अध्यापक उन प्रस्तावों को देख सके , समझ सकें और प्रदेश के अध्यापको में आम राय बन सके। क्योकि अध्यापक की समस्या  सिर्फ 7440 +2400,9300+3200,10230+3600 मिल जाने भर  से हल नही  हो जायेगी ।       

 साथियो सरकार ने 1125.10 करोड़ रूपये का अतिरिक्त भार बताया है । उसमे 141.85 करोड़ रूपये वित्त वर्ष 15 -16 के लिए ,वित्त वर्ष 16-17 के लिए 704.40 करोड़ और वित्त वर्ष 17-18 के लिए 278.85 करोड़  स्वीकृत किये है ।सरकार ने 2016-17 और,2017-18 तक का आंकलन कर लिया है ।       

 2016 में 32500 संविदा शिक्षक अध्यापक बनेगे ,वंही 2017 में 12000 संविदा शिक्षक अध्यापक बनेगे ,(अनुत्तीर्ण गुरूजी सहित)। सरकार ने सम्भवतः 2017 तक सभी पर आने वाले व्यय का आंकलन कर लिया है 2017  में प्रदेश में 228500 अध्यापक होगे ।           

 ्तअब 3 अगस्त  के  बाद संवाद समाप्त हो गया लगता है । कोई रास्ता भी नजर नहीं आ रहा है ।लेकिन  इस परिदृश्य  में  साफ़ साफ़  नजर आ रहा है कि  ,अध्यापक अब  निराश हो चला है,उसका कटा वेतन भी प्राप्त नहीं हुआ है और इस कारण  सरकार से लंबी लड़ाई लड़ने की क्षमता भी कम हो गयी  है । 

      

 सरकार भी मुख्य समस्या को लंबा खिंच कर अन्य समस्याओं को हल करने से बच रही है और संतान देखभाल अवकाश की तरह मनगढ़ंत विवाद भी उत्पन्न कर रही है ,जिसमें  सरकार अपनी गलत जिद को सही साबित करने के लिए और गलतियां करती जा रही है ।    


  अब सर्व श्री जगदीश यादव  ,ब्रजेश शर्मा  ,मनोहर दुबे और राकेश नायक जी से आग्रह  है कि वे ,सरकार से वार्ता कर कुछ हल निकालें । और सर्व प्रथम 2015 की हड़ताल का वेतन भुगतान करवायें का प्रयास प्रारंभ करें  । आप के पास अनुभव है ,सभी जानते है  हर वक्त  जोश से काम नहीं चलता होश अत्यन्त आवश्यक  है ।
      

 वार्ता कर हल निकालने की बात इस लिए ,क्योकी हम  पडोसी दुश्मन मुल्क से लड़ाई नहीं लड़ रहे  हैं  ,कर्मचारी हैं ,और कर्मचारी अंदोलन की विशेषता ही यह है कि जिस से हमें जंग लड़नी  है बात भी उसी सरकार से करनी है।  और जिस से हम लड़ रहे हैं, उसी सरकार के अधीन काम भी करना है । और कोई भी अंदोलन तभी सफल माना जाता है जब उस से जुड़े  कर्मचारियों का लाभ हो सके।     

 आज समाचारो में यह  भी है ,की " राज्य सभा में प्रस्ताव पारित हुआ की कश्मीर की जनता से सरकार और राजनीतिक दलों को  बात करनी चाहिए "  क्योंकि संवाद से ही समस्या का हल होगा । और हम तो राम और कृष्ण को मानने वाले हैं  ,जिन्होंने धर्मयुद्ध के पहले भी संवाद पर बल दिया ।भले ही उन्हें जानकारी थी की संवाद का कोई हल नहीं निकलेगा।     

 मेरा आप सभी वरिष्ठजनो से आग्रह है कि , सरकार से संवाद स्थापित कर पहले तो यह जानकारी लेवें की सरकार की कुल कितनी राशी खर्च करने की क्षमता है । उसके बाद  यह तय करें की उतनी राशी में प्रदेश के अध्यापक को  अधिकतम क्या आर्थिक लाभ हो सकता है । 

  आप सभी वरिष्ठ जनो को मेरी तरफ से यह भी प्रस्ताव है कि , इन संभावनाओं पर भी विचार करें की ,"अंतरिम राहत में सुधार कर के 2013 के आदेश अनुसार लाभ प्रदान किया जाए ,उस से तत्काल  मिल रहे वेतन पर सहायक अध्यापक को 4700,4800,5000 अध्यापक को 2050,2250,2600 और वरिष्ठ अध्यापक को 3350,3550,3750 का लाभ होगा।  और भविष्य में इसका लाभ यह होगा की , हमारा वेतन निर्धारण 2007 से व्यवस्थित तरीके से हो पायेगा ,इस प्रकार 7 वां वेतन मान जो की राज्य में 2018 में मिलने की सम्भवना है भी हमें सही तरीके से मिल पायेगा  ।        

 साथियो हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है की  , " पास के लाभ की अपेक्षा दूर की हानि पर भी विचार करना चाहिए ।" इस लिए आम अध्यापको से अपील है की ,परिस्थियों को समझें कोई भी आंदोलन तभी सफल माना जायेगा जब  तत्काल कुछ आर्थिक लाभ  हो और उसके दूरगामी  परिणाम निकले । यूँ जय जय कार  से कुछ नहीं होगा,हाँ हम अपने और दूसरों के कान को खुश कर सकतें हैं। 

 लेखक स्वयं अध्यापक है  और यह उनकी निजी राय  हैं। 

Wednesday, August 10, 2016

शिक्षक ,अध्यापको की बी .एड. एवं एम एड की प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ


शासकीय प्रगत शैक्षिक अध्ययन संस्थान,शिक्षक-शिक्षा महाविद्यालय तथा राज्य विज्ञान शिक्षा में संचलित बी .एड. एवं बी . एड. (विज्ञान) एम्.एड. एवं एम्. एड. (विज्ञान) द्विवर्षीय पाठ्यक्रम 2016 हेतु प्रवेश के संबंध में ,प्रक्रिया जारी कर दी गयी है। 



NSDL( नवीन पेंशन योजना ) सम्बन्ध में राज्य अध्यापक संघ और शिक्षा विभाग के मध्य आज DPI में बैठक सम्पन्न

                  NSDL( नवीन पेंशन योजना ) सम्बन्ध में  राज्य अध्यापक संघ और शिक्षा विभाग के मध्य आज DPI  में बैठक सम्पन्न 

 NSDL  मुम्बई से आए अधिकारियों श्री  हेगड़े ,लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त नीरज दुबे   लोक शिक्षण संचालनालय के वित्त अधिकारी श्री  मनोज श्रीवास्तव, उप संचालक श्री  सी बी  धोटे , अध्यापक सेल के श्री  रिजवी ,राज्य अध्यापक संघ की तरफ से  डीके सिंगौर जिलाध्यक्ष मंडला और नरेंद्र त्रिपाठी जिलाध्यक्ष  जबलपुर ,शामिल रहे।   राज्य अध्यापक संघ के प्रयास को बड़ी सफलता  मिली है ,

अध्यापक संवर्ग का कटोत्रा कोषालय से करने पर सैद्धान्तिक  सहमती बन गयी है।  अध्यापक संवर्ग के निधन पर  जिले से ही आवेदन  ऑनलाइन होंगे ,10 दिन में मिलेंगी राशि  
। मृत्यु या अन्य मामलो के  लगभग 185 मामलो को प्रमुखता से जल्द निपटाया जाएगा ।  शिक्षा विभाग के अध्यापको का 668 करोड़ NSDL  में फरवरी 16 तक का जल्द ही जमा किया जा  रहा है।   PRAN खाता  जारी होने के 10 साल बाद 25% -राशि निकालने पर सैद्धान्तिक सहमति ( प्रक्रिया में बदलाव किया जाएगा ) बनी।  अध्यापक बनने मे देरी तथा बीच माहों मे कटौती न होने पर पुनः जमा करने की प्रक्रिया को ट्रायबल जैसे एजुकेशन मे भी किया जाएगा। जमा में विलम्ब के ब्याज के लिये शासन को लिखा जायेगा। NSDL के हेगड़े जी ने बताया कि 15600 अध्यापकों जिनके प्रान नंबर जारी है कि अनेक जानकारियां जैसे मोब नं, आधार कार्ड आदि नहीं है उन्हें deactivate किया जाएगा जिसपर आयुक्त नीरज दुबे ने आपत्ति की,तब ये निर्णय बना कि ऐसे लोगो की सूची प्रकाशित करते हुए समय दिया जाएगा कि वे आवश्यक दस्तावेज जमा कर दे।नियमित कर्मचारियो के समान ,प्रत्येक कार्य की समय सिमा और जिमेदारी तय की जायेगी। इस सहित अन्य विषयो पर चर्चा हुई 

      राज्य अध्यापक संघ ने 26 जुलाई को इस संबंध का ज्ञापन सौपा और उन्होंने उसी दिन मीटिंग करने का आश्वासन दिया और  आज उन्होंने मीटिंग  बुला कर अध्यापको की  समस्याओं को न केवल सुना बल्कि तुरंत निर्णय भी लिया।

विदित रहे  राज्य अध्यापक संघ के जिलाध्यक्ष श्री  डी के सिंगौर  ने इस मामले मे माननीय  जबलपुर हाई कोर्ट मे WP 8339/2016 दायर कर अधिकारियों को ऐसा निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया।


Monday, August 8, 2016

माँ तो माँ होती है पगले - प्रगति पटेल नरसिंहपुर


प्रगति पटेल "अंशु" -आज  सबेरे सबेरे हमारे बगल में रहने वाले कक्का जी जो सभी समाचारों पर पैनी नजर रखते हैं अचानक आ गये और पूछने लगे कि ये संतान पालन अवकाश का क्या चक्कर है बड़ी खबरें आ रही हैं ।
हमने बताया- कि ये ऐसा अवकाश है जो महिला अध्यापकों को छोड़ कर सभी विभाग की महिला कर्मचारियों को दिया गया है जिसमें  वह अपने 18 साल की आयु के बच्चों की देखभाल के लिए 2 वर्ष के लिए ले सकती हैं ।
कक्का जी कुछ सोचते हुए बोले-क्यों क्या अध्यापक महिलाओं के बच्चे अन्य से अलग है या शासन अध्यापक महिलाओं के बच्चों के लिए स्कूलों  में  कोई नयी केयरिग व्यवस्था शुरू करने जा रही है।
हमने कहा- ऐसा नहीं है ।
कक्का जी बोले-ऐसा नहीं है तो क्यों यह भेदभाव वैसे भी अध्यापकों को वेतन भी इतना नहीं मिलता कि वह बच्चों की देखभाल के लिए किसी को रख सकें ।
हमने कहा -शासन हम लोगों को पात्र नहीं समझती।
कक्का जी बोले-क्यों नहीं है पात्र जब हम अपात्रो को विधायक सांसद और सी एम बना सकते हैं तो इस  अवकाश की पात्रतासभी महिला कर्मचारियों को होनी चाहिए ।
हमने कहा-हां सही है इसलिए तो हम सभी प्रयास रत हैं कि हमें भी यह अवकाश मिले ।
कक्का जी बोले - करते रहो प्रयास मिलेगा जरुर क्योंकि यह आदेश निकालने वालों को भी तो एक माँ ने ही जन्म दिया होगा तो उन्हें समझ में जरुर आयेगा - मां तो माँ होती है पगले।
लेखिका स्वयं अध्यापक है एवं यह  इनके निजी विचार है ।

Thursday, August 4, 2016

"शिक्षक दिवस 2016" के उपलक्ष्य मे विभिन्न कार्यक्रमो का आयोजन करने के सम्बन्ध में निर्देश जारी ,अध्यापक साथी अधिक संख्या में इन कार्यक्रमो में भाग लेवे

"शिक्षक दिवस 5 सितम्बर 2016" के उपलक्ष्य मे विभिन्न कार्यक्रमो का आयोजन करने के सम्बन्ध में निर्देश जारी किये गए है ,शिक्षा विभाग विभिन्न प्रतियोगिताएं करवा रहा है ,सभी अध्यापक साथी अधिक  संख्या में इन कार्यक्रमो में भाग लेवे जिस से ,समाज में यह सन्देश जाए की अध्यापक संवर्ग अपने क्षेत्र  में  पारंगत है और उत्कृष्ट सेवा प्रदान कर अच्छे समाज  का निर्माण कर  रहा है।
पीडीएफ में आदेश प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें






Wednesday, August 3, 2016

माँ होकर भी, ममता से क्यो वंचित ? - '' कविता '' सुनिल भारी (कन्नौद)


मप्र शासन मे " चाइल्ड केयर लीव " के लाभ से वंचित शिक्षिकाओ (अध्यापक बहनो)की मनोदशा को दर्शाती कन्नौद, जिला देवास के ,अध्यापक कवि सुनिल भारी की  एक रचना....
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शिक्षिका की ममता , खुद की गाथा यूं कहती है,
माँ होकर भी, ममता से क्यो वंचित रहती है,
जो कर्तव्य की प्रतिमा सी,शिक्षक धर्म निभाती है,
नन्हे लाल को पलने मे सुलाकर विद्यालय जाती है
कैसे निष्ठुर बन जाती ,छोड़कर अपने लाल को,
किस हाल मे होगा,सोचा करती अपने गोपाल को,
चिंता करती, कितना जागा कितना सोया होगा,
कब प्यास लगी होगी, कितनी बार वह रोया होगा,
रोते रोते सोया, वह पलना शायद ही सूखा होगा,
मध्याह्न भोजन यहाँ , वह वहां भूखा ही होगा,
वह शिक्षिका है, राष्ट्रनिर्मात्री भी कहलाती है,
बेटे को याद करते, अक्सर आँखे भर जाती है,
ममता से गहरा सागर क्या, ऊँचा आकाश नही,
क्यो शिक्षिका को चाइल्डकेयर अवकाश नही,
पूरा हक दो पालनपोषण का,खुद के लाल का,
जरूर मिले, चाइल्ड केयर लीव दो साल का,
यह एक अनमोल तोहफा दे दो, सुनो जी सरकार,
राखी पर बहिना को दे दो यह सुंदर सा उपहार,
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सुनिल भारी (कन्नौद)
जिला देवास,मप्र

9098004500


Tuesday, August 2, 2016

NSDL (अध्यापक संवर्ग ) के कार्य के लिए नियम एवं समय सीमा तय की जा रही हैं -सूत्र

NSDL .मामले में हाईकौर्ट में लगाये केस  का कुछ असर होता नजर  आ रहा है शिक्षा विभाग में पदस्थ ,सूत्रों  के अनुसार .DDO स्तर से पैसा सीधे NSDL में भेजने की  तैयारी चल रही। लोक शिक्षण संचालनालय  जल्द ही  400  करोड़ NSDL में जमा करने जा रहा है हालाकि 668  करोड़ जमा होना है। मृत्यु के  प्रकरण में अंतिम भुगतान के आवेदन  भी जिला स्तर से ही ऑनलाइन होंगे और आपत्ति  लगने पर सीधे जिला स्तर पर ही जानकारी मिल सकेगी और निराकरण हो सकेगा । जानकारी के लिए बता दे कि इस मामले पर राज्य अध्यापक संघ के जिला शाखा मण्डला अध्यक्ष डीके सिंगौर द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की गई थी। याचिका क्र डब्लू.पी. 8339/2016 पर 10 मई को माननीय न्यायाधिपति राजेन्द्र मेनन की कोर्ट में सुनवाई हुईं।

       राज्य अध्यापक संघ की ओर से एडव्होकेट रोहित सोहगोरा ने पैरवी करते हुये कोर्ट को बताया कि अध्यापक सवंर्ग के लिये लागू अंशदायी पेंशन योजना के अंतर्गत प्रतिमाह 10 प्रतिशत राशि अध्यापकों के खाते से काटकर और उतनी ही राशि शासन द्वारा मिलाकर कुल वेतन की 20 प्रतिशत राशि प्रतिमाह नियमित रूप से एनएसडीएल में जमा करने का प्रावधान है लेकिन 15 माह से अध्यापकों का अंशदान एनएसडीएल में जमा नहीं हुआ है।सभी 8 प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुये 6 सप्ताह के अंदर जवाब पेश करने को कहा है। जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर ने बताया कि संघ रिज्वाइंडर फाइल कर गुमशुदा कटोत्रा के समायोजन पर भी वित्त विभाग के प्रावधान के अनुसार ब्याज जमा कराने की मांग की थी। याचिका की में इसी सप्ताह सुनवाई हो सकती है।   शिक्षा विभाग इस सम्बन्ध में नियम और समय सिमा निर्धारित कर  रहा है।  विभागीय सूत्रों के अनुसार  कोर्ट में जवाब देने के पहले नियम बना दिए जाएंगे ।
    विदित रहे
 नियम और समय सिमा  नियमित कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए तय की गयी है ऐसे ही नियम अध्यापक संवर्ग के लिए भी बनाये जा सकते हैं। 








प्राधानाध्यापक एवं प्राचार्य द्वारा दो कालखण्ड अध्यापन करवाने विषयक

प्राधानाध्यापक (प्राथमिक/ माध्यमिक शाला ) एवं प्राचार्य ( हाईस्कूल / हायर सेकेण्ड्री स्कूल ) द्वारा दो कालखण्ड अध्यापन करवाने  विषयक ,आदेश पुनः जारी कर दिया गया है
आदेश की पीडीएफ कॉपी प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करे।



2 अगस्त काे फिर मंत्रालय में वार्ता में सम्मिलित होने से पहले अध्यापक हित में अपने प्रस्ताव तो सार्वजनिक करें

जो साथी 25 जुलाई की तारीख से कह रहे हैं कि प्रशासनिक अधिकारियों से उनकी वार्ता सफल हुई है ।और प्रस्ताव उनके मन मुक़ाबिक ही बना कर भेजा गया है ।वे कल 2 अगस्त काे फिर मंत्रालय में वार्ता में सम्मिलित होने से पहले अध्यापक हित में अपने प्रस्ताव तो सार्वजनिक करें।साथ ही कल वार्ता में सम्मिलित होने वाले सभी वार्ताकार इस बात का ध्यान रखें कि यदि 2007 से 2 वेतन वृर्द्धि लगाकर (1998 में नियुक्त साथियो की ) 6टवा वेतन मान की गणना नहीं की गयी और 1 सितम्बर 2013 को सेवा पुस्तिका में दर्ज हो भले ही नगद लाभ 1 जनवरी 2016 से मिले । यह नहीं मिले तो सभी वार्ताकार कल एक का काम करें की अन्य कुछ भी लेकर न आएं। एक काम कर लेवे , अंतरिम राहत में। सुधार करवा लें और 2013 के आदेश अनुसार 2017 में ही वेतन मान स्वीकार कर लें ।में मेरे गणना पत्रक भी सार्वजनिक कर रहा हूँ इसमें 119 प्रतिशत महंगाई भत्ते से गणना कि गयी है । 1 जनवरी 2016 को यह मिलना चाहिए ।अन्यथा कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं ।आप सभी जानते है यदि अंतरिम राहत में सुधार होता है तो सहायक अध्यापक जो 4700,4800,5000 का लाभ ,वरिष्ठ अध्यापक को 3350,3550,3750 का लाभ होगा और अध्यापक को2050, 2250,2600 का लांभ होगा ।सभी साथी समझें तत्काल लांभ की अपेक्षा लंबे समय में मिलने वाला लांभ की तरफ देखना चाहिये ।सुरेश यादव रतलाम एक आम अध्यापक । 9926809650




छात्रवृत्ति के आहरण एवं संवितरण अधिकार विकासखंड शिक्षा अधिकारीयों को स्थानांतरित करने विषयक

समेकित छात्रवृत्ति योजना अंतर्गत आहरण एवं संवितरण अधिकार विकासखंड शिक्षा अधिकारीयों को स्थानांतरित करने विषयक आदेश जारी
आदेश पीडीऍफ़ में देखने के लिए इस लिंक को ओपन करें



राज्य अध्यापक संघ मंडला की मांग ,शिक्षको के नाम बिना जांच के सार्वजानिक न करें

मंडला - शुक्रवार को राज्य अध्यापक संघ के पदाधिकारी जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर की अगुवाई में कलेक्टर मण्डला श्रीमति प्रीति मैथिल से मुलाकात की और बताया कि लापरवाह शिक्षकों की शिकायत आम जनता द्वारा आपके दूरभाष में करने के प्रावधान के चलते बिना जांच के और बिना दोष सिद्ध हुये ही शिक्षकों के नाम समाचार पत्र और सोशल मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित किये जा रहे हैं जो कि अनुचित है। 
राज्य अध्यापक संघ को प्रशासन के इस निर्णय से आपत्ति नहीं है, लेकिन जब तक जांच न हो और दोष सिद्ध न हो शिक्षक अध्यापक का नाम समाचार पत्रों में प्रकाशित नहीं होना चाहिये क्योंकि कई मामलों में शिक्षक निर्दोष भी रहते हैं। आपसी रंजिश, द्वैषता और अनुचित लाभ नहीं मिलने आदि के कारण भी लोगों के द्वारा शिक्षकों की शिकायत कर दी जाती है। सोशल मीडिया के चलते भी निर्दोष शिक्षक का बहुत ज्यादा दुष्प्रचार हो जाता है। 

कलेक्टर को अवगत कराया गया कि नैझर में पदस्थ अध्यापक चरण लाल झारिया के मामले में ऐसा ही हुआ है अतिथि शिक्षक नहीं रखे जाने पर ग्राम के व्यक्ति द्वारा झूठी शिकायत की गई और उसका नाम समाचार पत्रों और फेसबुक में समाचार प्रसारित किया गया। कलेक्टर ने संघ के तर्क से सहमत होते हुये कहा कि पहले तो समाचार पत्र और सोशल मीडिया में नाम देने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है और यदि ऐसा हुआ है तो अब बिना जांच और दोष सिद्व हुये नाम प्रचारित नहीं किया जायेगा। 

संघ ने फ्लेक्स में महिला शिक्षिकाओं के मोबाइल नम्बर न लिखे जाने केे आग्रह को अस्वीकार कर दिया। संघ ने मण्डला में बच्चों को यूनिफार्म वितरण का मुद्दा भी उठाया। कलेक्टर ने वितरित की जाने वाली यूनिफार्म का सेम्पल मंगाया है। कलेक्टर ने अध्यापकों से कई मुद्दो पर चर्चा की और बच्चों की पढ़ाई की ओर जोर देने हेतु निर्देशित किया। प्रतिनिधि मण्डल में डी.के.सिंगौर,राकेश चौरसिया, प्रकाश सिंगौर, सुनील नामदेव,राजकुमार रजक,मंशाराम झारिया, चंद्रशेखर तिवारी लखन शुक्ला,बंसंत मिश्रा,श्याम सिंगरौरे,मोनू विश्वकर्मा,हरिलाल वरकडे़,ओमकार सिंह थे। 

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Monday, August 15, 2016

आजादी का अहसास कराते हैं जनांदोलन-वासुदेव शर्मा छिन्दवाड़ा ( 70वें स्वतंत्रता दिवस पर ) गैर राजनीतिक ताकतों के आन्दोलन के संदर्भ में


आजादी का अहसास कराते हैं जनांदोलन
वासुदेव शर्मा छिन्दवाड़ा-जनता को गैरराजनीतिक ताकतों के इर्द-गिर्द संगठित करने की हो रही कोशिशें राजनीतिक ताकतों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। गैरराजनीतिक ताकतें समाज में राजनीतिक वातावरण को समाप्त करती हैं तथा जनांदोलनों को उभरने से रोकती हैं। इससे आगे जाकर यह ताकतें जनता के सवालों एवं आजादी के महत्व पर भी भ्रम फैलाने का काम करती हैं। यह ताकतें जनता के जरूरी सवालों को भी अपने अपने तरीके से परिभाषित कर कुतर्कों के जरिए यह बताने की कोशिश करती हैं कि जनता जिन परेशानियों का सामना कर रही है, उसके लिए वही जिम्मेदार है। यह ऐसा कुतर्क है, जो सरकार के जनविरोधी रवैए से ध्यान हटाने के लिए दिया जाता है। यह तर्क वे ताकतें अधिक देती हैं, जो खुद को गैरराजनीतिक कहती हैं। यह ताकतें ऐसा क्यों करती हैं? स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हर किसी को इसे समझने की जरूरत है?

समाज में बढ़ रही असमानता, बेरोजगारी, गरीबी, दरिद्रता, ऊंच-नीच जैसी समस्याओं को राजनीतिक नजरिए से ही समझकर उनके समाधान तक पहुंचा जा सकता है। आजादी के बाद देश ने जो प्रगति की है, उसका श्रेय भारत की राजनीति को ही जाता है, फिर वह राजनीति भले ही विभिन्न विचारों से क्यों न संचालित होती रही हो। समाज में राजनीतिक वातावरण मौजूद रहता है, तब विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को उभरने के अवसर मिलते हैं। यह ऐसी स्थिति होती है, जो समाज के हर तबके को उसकी पसंद की राजनीति के चयन का अधिकार देती है। समाज में राजनीतिक वातावरण होता है, तब जनसंघर्षों, जनांदोलन की परिस्थितियां भी मौजूद रहती हैं और लोग खुद की बात को हुकूमतों तक पहुंचाने के लिए इसी रास्ते का सहारा लेते हैं। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का रास्ता, ऐसा रास्ता होता है, जो समाज को राजनीतिक शिक्षा देता है, विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को समझने का मौका उपलब्ध कराता है तथा जनता को अपनी पसंद की राजनीति के करीब पहुंचाता है।
       आजादी, जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों से ही हासिल हुई है, इसीलिए देश की प्रगति में इसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जनता के संगठित संघषों की ही ताकत का परिणाम था कि अंग्रेजों की ताकतवर हुकमतों को भी अंत में यह अहसास हो गया था कि संगठित जनता की आवाज को कुचला नहीं जा सकता, इसीलिए अंग्रेजी हुकूमत दमन के तमाम हथियारों को डालकर जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों के आगे झुकी और देश छोड़कर जाने को मजबूर हुई। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों ने ही भारत को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिए, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया।  जिस देश में  जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का इतना बड़ा योगदान रहा हो, उस देश में गैरराजनीतिक ताकतों के बढ़ते बर्चस्व को हल्के में नहीं लेना चाहिए। गैरराजनीतिक ताकतें समाज का पहला नुकसान यही कर रही हैं कि वे जनांदोलनों के महत्व को समाप्त कर जनता को  संघर्ष के रास्ते पर चलने से रोक रही हैं। गैरराजनीतिक ताकतें ऐसा करने में सफल हुई, तब जनता से उसकी जुवान ही छिन जाएगी और वह चंद ताकतवर व्यक्तियों, नेताओं एवं अधिकारियों पर निर्भर हो जाएगी।  यह स्थिति गुलामी जैसी होगी, इसीलिए 69वें स्वतंत्रता दिवस पर जनता को इस स्थिति  से बचाने का संकल्प भी लेना होगा।
       चूंकि गैरराजनीतिक ताकतें समाज में अलग-अलग नामों से काम करती हैं। यह ताकतें समाज सेवा के नाम पर सरकार की तमाम योजनाओं को संचालित करते हुए खुद को स्थापित करने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी को ही समाज में अविश्वसनीय बनाने का काम करती हैं। यह ताकतें इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि वे राजनीतिक गतिविधियों को ठप्प कर देती हैं, अन्ना एवं रामदेव के आंदोलनों के दौरान ऐसा देखने में आया भी। गैरराजनीतिक ताकतें सांस्कृतिक संगठनों का चोला पहनकर भी जनता के बीच पहुंचती हैं, यह ताकतें जनता को उनके बुनियादी सवालों पर होने वाले संघर्षों से दूर कर सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजनों की तरफ ले जाने का काम करती हैं, इसका नतीजा यह होता है कि जनता अपने जरूरी सवालों पर सोचने-विचारने की वजाय अपनी माली हालत के लिए अपने पिछले कर्मों का फल मानकर जिस हाल में है उसे अपनी नियत मानकर स्वीकार कर लेती है। जनता जिस हाल में है, उसी में जीती रही और इससे आगे न सोचे, गैर राजनीतिक ताकतें इसीके लिए काम करती हैं। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों में जनता की कम होती भागीदारी, राजनीतिक कार्यक्रमों के प्रति उसकी बेरुखी बताती है कि गैरराजनीतिक ताकतों ने समाज के बहुमत हिस्से को निराशा में पहुंचा दिया है, जिस कारण जनता लोकतांत्रिक रास्ते से दूर होती जा रही है।
      सामाजिक असमानता, गरीबी, बेकारी, महंगाई ऐसे सवाल हैं, जिन्होंने जनता के बहुमत हिस्से को प्रभावित किया है। किसानों की माली हालत, बढ़ती बेरोजगारी, महंगी होती शिक्षा, महंगा होती स्वास्थ्य सुविधाएं, खाने-पीने की जरूरी चीजों का आए दिन महंगा होना, कर्मचारियों के बीच व्याप्त वेतनविसंगतियों की समस्याओं के लिए सीधे-सीधे सरकारें और उन सरकारों की नीतियां ही जिम्मेदार है, ऐसे में जब इन समस्याओं से दो-चार होते लोग इनके समाधान के रास्ते गैरराजनीतिक नजरिए से खोजेंगे, तब न तो समस्याओं के समाधान तक पहुंचा जा सकता है और न ही इन समस्याएं से मुक्ति मिल सकती हैं। जनता के हर तबके को प्रभावित कर रही इन समस्याओं के समाधान का रास्ता राजनीतिक रास्ते पर चलकर ही निकाला जा सकता है, इसके लिए जरूरी है कि जनता के बीच से जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का निर्माण हो।  जनसंघर्षों एवं जनांदोलनों में बोले जाने वाली भाषा, लगाए जाने वाले नारे, संघर्षों के संगठनकर्ताओं की राजनीतिक विचारधारा को सामने लाते हैं, इस तरह जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों के जरिए जनता को विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को समझने का मौका मिलता है। कौनसी राजनीति उसके करीब है, यह समझने का  बेहतरीन मौका होते हैं जनांदोलनों। आज जब समाज का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में सरकारों की नीतियों से असंतुष्ट हो, तब जनता के लिए जनांदोलनों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इन्हीं जनांदोलनों से भारत की जनता को आजादी मिली और यही जनांदोलन जनता के जीवन को खुशहाल बनाने के रास्ते पर ले जाएंगे।  आईए; स्वतंत्रता दिवसे के मौके पर जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों को विकसित करने का संकल्प लें।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं (यह उनके निजी विचार हैं )

Friday, August 12, 2016

एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ?-अरविन्द रावल झबुआ

अरविन्द रावल-एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ? कुछ हमारे अध्यापक साथियो ने और शासन के लोगो के सहयोग से आज अध्यापक की जान की कीमत एक लाख रूपये तय वाला आदेश जारी हुआ हे। सरकार के इस आदेश के बाद मृत अध्यापक साथी के परिवार के लोगो  की अहर्ता नही होने की स्थिति में अनुकम्पा के नाम पर एक लाख रूपये देकर शासन इतिश्री कर लेगा। हमारे जिन साथियो ने एक लाख रूपये अनुकम्पा के नाम पर मृत अध्यापक के परिवार को देने का सुझाव शासन को दिया हे निश्चित ही उन लोगो को परिवार की पीड़ा क्या होती हे इसका एहसास नही होगा। अगर मेरे यह साथी शासन के लोगो को यह सुझाव देते की मृत अध्यापक के परिवार में यदि अहर्ता योग्य पात्र कोई व्यक्ति नही हे तो उन्हें शासन परिवार के लालन पालन हेतू पहले अनुकम्पा की तहत सविदा 3 के पद पर नोकरी दे और योग्य अहर्ता प्राप्त करने हेतू दो चार साल का टाइम पीरियड देने की बात प्रमुखता से रखना थी। यदि किसी मृत् अध्यापक परिवार में कोई अहर्ता प्राप्त करने में असमर्थ व्यक्ति हे तो सरकार उसे भृत्य के पद पर अनुकम्पा में नोकरी दे। ताकि मृत अध्यापक साथी के परिवार का सदस्य बहेतर ढंग से अपने परिवार का पालन कर सके।साथियो एक लाख रूपये में इस महँगाई के दौर में आज होता क्या हे ? एक लाख रूपये में न तो आज बच्चों की शिक्षा पूरी होती हे और न ही हाथ पीले किये जा सकते हे।  हमारे साथी खुद को अव्वल साबित करने के चक्कर में अपनों का ही बुरा करवा बेठे हे। इस आदेश का सभी साथियो को मिलकर विरोध करना चाहिए । हमें इसे निरस्त करवाकर मृत अध्यापक साथी के परिवार के पालन हेतु अहर्ता होने या न होने की स्थिति में किसी भी पद पर पर नोकरी दी जाये ऐसा आदेश जारी करवाने का प्रयास सामूहिक रूप से अब किया जाना चाहिए।अभी हम अध्यापको को सरकार से बहुत सारी लड़ाई लड़ना बाकी हे । आगामी दस पन्द्रह सालो के अंदर कोई एक लाख से ज्यादा अध्यापक  रिटायर हो जाने वाले हे। इसी तरह से दुक्डो में बिखर कर लड़ते रहेगे तो खाली हाथ घर लौटने के कुछ हासिल नही होगा। शासन से जो भी लड़ाई जितना हे तो हमारे पास दो चार सालो का वक्त ही हे। उसके बाद हम फिर कुछ करने की स्थिति में नही रहेगे। हमने टुकड़ो में बटकर रहने का परिणाम आज देख लिया इस आदेश को पाकर। कितने बड़े दुःख का विषय हे की हमारी ताकत देश की आधी आर्मी के बराबर होने के बाद भी हमे एक एक आदेश को निकलवाने में एक एक साल लग जाते हे और फिर उनकी विसंगतियो को सुधरवाने में इतना समय लगता हे तो हम पेंशन और  अन्य सुविधाओ की लड़ाई लड़ेंगे कब और उनको प्राप्त कब करेगे ?
अभी भी हमारे पास वक्त शेष हे यदि हम सभी अध्यापक नेता एकजुट हो जाये तो हम सरकार से अपनी शक्ति के बल पर सब कुछ पा सकते हे। इस समय अध्यापको को एक सशक्त दूरदर्शी नेतृत्त्व की आवश्यकता हे जो अध्यापक और उसके परिवार के उज्ज्वल भविष्य की सोच को लेकर कार्य करे।लेखक स्वयं  अध्यापक हैं और यह उनकी निजी राय है .           

Thursday, August 11, 2016

अर्जित अवकाश प्रदान कि‍ये जाने के संबंध में ,नियम 2008

ग्रीष्‍मावकाश में शासकीय कार्य कि‍ये जाने के एवज में अर्जित अवकाश प्रदान कि‍ये जाने के संबंध में ,नियम 2008 ,एक दिन काम करने के लिए एक दिन का अर्जित अवकाश अधिकतम  30 दिवस खाते में दर्ज किया जाएगा ,प्राप्त 10 अर्जित अवकाश के नकदीकरण की पात्रता समाप्त कर दी गयी। अर्जित अवकाश के नकदीकरण  की पात्रता अन्य कर्मचारियों के समान  कर दी गयी हैं । आदेश पीडीऍफ़ में प्राप्त करने के लिए आदेश की इस लिंक ओपन करें।






आम अध्यापक और अध्यापको के नेतृत्व से विनम्र अपील ,अब समस्या का समाधान आवश्यक है - सुरेश यदाव रतलाम


सुरेश यादव रतलाम - गत वर्ष सितम्बर माह में आंदोलन हुआ था ,तब से अब तक सिर्फ और सिर्फ सरकार ने अखबारों में अपनी वाह- वाही करवाई है की उसने अध्यापको को सामान वेतन दे दिया जबकि वास्तविकता क्या है आप सभी जानते हैं हम वँही के वँही हैं । अध्यापक निराश है उसके हाथ तो रीते ही हैं,कभी संवाद और कभी असंवाद धड़कनो को और बड़ा देता है । संपूर्ण अध्यापक  समाज भी वर्तमान में वेतन निर्धारण के लिए गणना पत्रक को लेकर आशंकित और चिंतित हैं।
      

  श्री भरत पटेल के नेतृत्व में 25 जुलाई 2016 को डीपीआई में अधिकारियों से चर्चा की गयी । तब भरत भाई की तरफ से कहा गया कि , वार्ता सफल रही है और हमारी मांग अनुसार ही प्रस्ताव बनाकर विभाग ,शासन को भेज देगा।  इसके बाद भरत पटेल जी के नेतृत्व में शिक्षा मंत्री से 3 अगस्त को वार्ता हुई उस दिन यह प्रचारित-प्रसारित  किया गया कि वार्ता असफल रही। सरकार ने तीन प्रस्ताव दिए लेकिन हमें मंजूर नहीं है ।      

 भारत भाई ,लेकिन सरकार के तीन प्रस्ताव हैं क्या ? अध्यापक हित में आवश्यक है की  आप तो कम से कम अपना प्रस्ताव  सार्वजनिक करें ,साथ ही सरकार के 3 प्रस्ताव भी सार्वजनिक करें । जिस से अध्यापक उन प्रस्तावों को देख सके , समझ सकें और प्रदेश के अध्यापको में आम राय बन सके। क्योकि अध्यापक की समस्या  सिर्फ 7440 +2400,9300+3200,10230+3600 मिल जाने भर  से हल नही  हो जायेगी ।       

 साथियो सरकार ने 1125.10 करोड़ रूपये का अतिरिक्त भार बताया है । उसमे 141.85 करोड़ रूपये वित्त वर्ष 15 -16 के लिए ,वित्त वर्ष 16-17 के लिए 704.40 करोड़ और वित्त वर्ष 17-18 के लिए 278.85 करोड़  स्वीकृत किये है ।सरकार ने 2016-17 और,2017-18 तक का आंकलन कर लिया है ।       

 2016 में 32500 संविदा शिक्षक अध्यापक बनेगे ,वंही 2017 में 12000 संविदा शिक्षक अध्यापक बनेगे ,(अनुत्तीर्ण गुरूजी सहित)। सरकार ने सम्भवतः 2017 तक सभी पर आने वाले व्यय का आंकलन कर लिया है 2017  में प्रदेश में 228500 अध्यापक होगे ।           

 ्तअब 3 अगस्त  के  बाद संवाद समाप्त हो गया लगता है । कोई रास्ता भी नजर नहीं आ रहा है ।लेकिन  इस परिदृश्य  में  साफ़ साफ़  नजर आ रहा है कि  ,अध्यापक अब  निराश हो चला है,उसका कटा वेतन भी प्राप्त नहीं हुआ है और इस कारण  सरकार से लंबी लड़ाई लड़ने की क्षमता भी कम हो गयी  है । 

      

 सरकार भी मुख्य समस्या को लंबा खिंच कर अन्य समस्याओं को हल करने से बच रही है और संतान देखभाल अवकाश की तरह मनगढ़ंत विवाद भी उत्पन्न कर रही है ,जिसमें  सरकार अपनी गलत जिद को सही साबित करने के लिए और गलतियां करती जा रही है ।    


  अब सर्व श्री जगदीश यादव  ,ब्रजेश शर्मा  ,मनोहर दुबे और राकेश नायक जी से आग्रह  है कि वे ,सरकार से वार्ता कर कुछ हल निकालें । और सर्व प्रथम 2015 की हड़ताल का वेतन भुगतान करवायें का प्रयास प्रारंभ करें  । आप के पास अनुभव है ,सभी जानते है  हर वक्त  जोश से काम नहीं चलता होश अत्यन्त आवश्यक  है ।
      

 वार्ता कर हल निकालने की बात इस लिए ,क्योकी हम  पडोसी दुश्मन मुल्क से लड़ाई नहीं लड़ रहे  हैं  ,कर्मचारी हैं ,और कर्मचारी अंदोलन की विशेषता ही यह है कि जिस से हमें जंग लड़नी  है बात भी उसी सरकार से करनी है।  और जिस से हम लड़ रहे हैं, उसी सरकार के अधीन काम भी करना है । और कोई भी अंदोलन तभी सफल माना जाता है जब उस से जुड़े  कर्मचारियों का लाभ हो सके।     

 आज समाचारो में यह  भी है ,की " राज्य सभा में प्रस्ताव पारित हुआ की कश्मीर की जनता से सरकार और राजनीतिक दलों को  बात करनी चाहिए "  क्योंकि संवाद से ही समस्या का हल होगा । और हम तो राम और कृष्ण को मानने वाले हैं  ,जिन्होंने धर्मयुद्ध के पहले भी संवाद पर बल दिया ।भले ही उन्हें जानकारी थी की संवाद का कोई हल नहीं निकलेगा।     

 मेरा आप सभी वरिष्ठजनो से आग्रह है कि , सरकार से संवाद स्थापित कर पहले तो यह जानकारी लेवें की सरकार की कुल कितनी राशी खर्च करने की क्षमता है । उसके बाद  यह तय करें की उतनी राशी में प्रदेश के अध्यापक को  अधिकतम क्या आर्थिक लाभ हो सकता है । 

  आप सभी वरिष्ठ जनो को मेरी तरफ से यह भी प्रस्ताव है कि , इन संभावनाओं पर भी विचार करें की ,"अंतरिम राहत में सुधार कर के 2013 के आदेश अनुसार लाभ प्रदान किया जाए ,उस से तत्काल  मिल रहे वेतन पर सहायक अध्यापक को 4700,4800,5000 अध्यापक को 2050,2250,2600 और वरिष्ठ अध्यापक को 3350,3550,3750 का लाभ होगा।  और भविष्य में इसका लाभ यह होगा की , हमारा वेतन निर्धारण 2007 से व्यवस्थित तरीके से हो पायेगा ,इस प्रकार 7 वां वेतन मान जो की राज्य में 2018 में मिलने की सम्भवना है भी हमें सही तरीके से मिल पायेगा  ।        

 साथियो हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है की  , " पास के लाभ की अपेक्षा दूर की हानि पर भी विचार करना चाहिए ।" इस लिए आम अध्यापको से अपील है की ,परिस्थियों को समझें कोई भी आंदोलन तभी सफल माना जायेगा जब  तत्काल कुछ आर्थिक लाभ  हो और उसके दूरगामी  परिणाम निकले । यूँ जय जय कार  से कुछ नहीं होगा,हाँ हम अपने और दूसरों के कान को खुश कर सकतें हैं। 

 लेखक स्वयं अध्यापक है  और यह उनकी निजी राय  हैं। 

Wednesday, August 10, 2016

शिक्षक ,अध्यापको की बी .एड. एवं एम एड की प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ


शासकीय प्रगत शैक्षिक अध्ययन संस्थान,शिक्षक-शिक्षा महाविद्यालय तथा राज्य विज्ञान शिक्षा में संचलित बी .एड. एवं बी . एड. (विज्ञान) एम्.एड. एवं एम्. एड. (विज्ञान) द्विवर्षीय पाठ्यक्रम 2016 हेतु प्रवेश के संबंध में ,प्रक्रिया जारी कर दी गयी है। 



NSDL( नवीन पेंशन योजना ) सम्बन्ध में राज्य अध्यापक संघ और शिक्षा विभाग के मध्य आज DPI में बैठक सम्पन्न

                  NSDL( नवीन पेंशन योजना ) सम्बन्ध में  राज्य अध्यापक संघ और शिक्षा विभाग के मध्य आज DPI  में बैठक सम्पन्न 

 NSDL  मुम्बई से आए अधिकारियों श्री  हेगड़े ,लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त नीरज दुबे   लोक शिक्षण संचालनालय के वित्त अधिकारी श्री  मनोज श्रीवास्तव, उप संचालक श्री  सी बी  धोटे , अध्यापक सेल के श्री  रिजवी ,राज्य अध्यापक संघ की तरफ से  डीके सिंगौर जिलाध्यक्ष मंडला और नरेंद्र त्रिपाठी जिलाध्यक्ष  जबलपुर ,शामिल रहे।   राज्य अध्यापक संघ के प्रयास को बड़ी सफलता  मिली है ,

अध्यापक संवर्ग का कटोत्रा कोषालय से करने पर सैद्धान्तिक  सहमती बन गयी है।  अध्यापक संवर्ग के निधन पर  जिले से ही आवेदन  ऑनलाइन होंगे ,10 दिन में मिलेंगी राशि  
। मृत्यु या अन्य मामलो के  लगभग 185 मामलो को प्रमुखता से जल्द निपटाया जाएगा ।  शिक्षा विभाग के अध्यापको का 668 करोड़ NSDL  में फरवरी 16 तक का जल्द ही जमा किया जा  रहा है।   PRAN खाता  जारी होने के 10 साल बाद 25% -राशि निकालने पर सैद्धान्तिक सहमति ( प्रक्रिया में बदलाव किया जाएगा ) बनी।  अध्यापक बनने मे देरी तथा बीच माहों मे कटौती न होने पर पुनः जमा करने की प्रक्रिया को ट्रायबल जैसे एजुकेशन मे भी किया जाएगा। जमा में विलम्ब के ब्याज के लिये शासन को लिखा जायेगा। NSDL के हेगड़े जी ने बताया कि 15600 अध्यापकों जिनके प्रान नंबर जारी है कि अनेक जानकारियां जैसे मोब नं, आधार कार्ड आदि नहीं है उन्हें deactivate किया जाएगा जिसपर आयुक्त नीरज दुबे ने आपत्ति की,तब ये निर्णय बना कि ऐसे लोगो की सूची प्रकाशित करते हुए समय दिया जाएगा कि वे आवश्यक दस्तावेज जमा कर दे।नियमित कर्मचारियो के समान ,प्रत्येक कार्य की समय सिमा और जिमेदारी तय की जायेगी। इस सहित अन्य विषयो पर चर्चा हुई 

      राज्य अध्यापक संघ ने 26 जुलाई को इस संबंध का ज्ञापन सौपा और उन्होंने उसी दिन मीटिंग करने का आश्वासन दिया और  आज उन्होंने मीटिंग  बुला कर अध्यापको की  समस्याओं को न केवल सुना बल्कि तुरंत निर्णय भी लिया।

विदित रहे  राज्य अध्यापक संघ के जिलाध्यक्ष श्री  डी के सिंगौर  ने इस मामले मे माननीय  जबलपुर हाई कोर्ट मे WP 8339/2016 दायर कर अधिकारियों को ऐसा निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया।


Monday, August 8, 2016

माँ तो माँ होती है पगले - प्रगति पटेल नरसिंहपुर


प्रगति पटेल "अंशु" -आज  सबेरे सबेरे हमारे बगल में रहने वाले कक्का जी जो सभी समाचारों पर पैनी नजर रखते हैं अचानक आ गये और पूछने लगे कि ये संतान पालन अवकाश का क्या चक्कर है बड़ी खबरें आ रही हैं ।
हमने बताया- कि ये ऐसा अवकाश है जो महिला अध्यापकों को छोड़ कर सभी विभाग की महिला कर्मचारियों को दिया गया है जिसमें  वह अपने 18 साल की आयु के बच्चों की देखभाल के लिए 2 वर्ष के लिए ले सकती हैं ।
कक्का जी कुछ सोचते हुए बोले-क्यों क्या अध्यापक महिलाओं के बच्चे अन्य से अलग है या शासन अध्यापक महिलाओं के बच्चों के लिए स्कूलों  में  कोई नयी केयरिग व्यवस्था शुरू करने जा रही है।
हमने कहा- ऐसा नहीं है ।
कक्का जी बोले-ऐसा नहीं है तो क्यों यह भेदभाव वैसे भी अध्यापकों को वेतन भी इतना नहीं मिलता कि वह बच्चों की देखभाल के लिए किसी को रख सकें ।
हमने कहा -शासन हम लोगों को पात्र नहीं समझती।
कक्का जी बोले-क्यों नहीं है पात्र जब हम अपात्रो को विधायक सांसद और सी एम बना सकते हैं तो इस  अवकाश की पात्रतासभी महिला कर्मचारियों को होनी चाहिए ।
हमने कहा-हां सही है इसलिए तो हम सभी प्रयास रत हैं कि हमें भी यह अवकाश मिले ।
कक्का जी बोले - करते रहो प्रयास मिलेगा जरुर क्योंकि यह आदेश निकालने वालों को भी तो एक माँ ने ही जन्म दिया होगा तो उन्हें समझ में जरुर आयेगा - मां तो माँ होती है पगले।
लेखिका स्वयं अध्यापक है एवं यह  इनके निजी विचार है ।

Thursday, August 4, 2016

"शिक्षक दिवस 2016" के उपलक्ष्य मे विभिन्न कार्यक्रमो का आयोजन करने के सम्बन्ध में निर्देश जारी ,अध्यापक साथी अधिक संख्या में इन कार्यक्रमो में भाग लेवे

"शिक्षक दिवस 5 सितम्बर 2016" के उपलक्ष्य मे विभिन्न कार्यक्रमो का आयोजन करने के सम्बन्ध में निर्देश जारी किये गए है ,शिक्षा विभाग विभिन्न प्रतियोगिताएं करवा रहा है ,सभी अध्यापक साथी अधिक  संख्या में इन कार्यक्रमो में भाग लेवे जिस से ,समाज में यह सन्देश जाए की अध्यापक संवर्ग अपने क्षेत्र  में  पारंगत है और उत्कृष्ट सेवा प्रदान कर अच्छे समाज  का निर्माण कर  रहा है।
पीडीएफ में आदेश प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करें






Wednesday, August 3, 2016

माँ होकर भी, ममता से क्यो वंचित ? - '' कविता '' सुनिल भारी (कन्नौद)


मप्र शासन मे " चाइल्ड केयर लीव " के लाभ से वंचित शिक्षिकाओ (अध्यापक बहनो)की मनोदशा को दर्शाती कन्नौद, जिला देवास के ,अध्यापक कवि सुनिल भारी की  एक रचना....
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शिक्षिका की ममता , खुद की गाथा यूं कहती है,
माँ होकर भी, ममता से क्यो वंचित रहती है,
जो कर्तव्य की प्रतिमा सी,शिक्षक धर्म निभाती है,
नन्हे लाल को पलने मे सुलाकर विद्यालय जाती है
कैसे निष्ठुर बन जाती ,छोड़कर अपने लाल को,
किस हाल मे होगा,सोचा करती अपने गोपाल को,
चिंता करती, कितना जागा कितना सोया होगा,
कब प्यास लगी होगी, कितनी बार वह रोया होगा,
रोते रोते सोया, वह पलना शायद ही सूखा होगा,
मध्याह्न भोजन यहाँ , वह वहां भूखा ही होगा,
वह शिक्षिका है, राष्ट्रनिर्मात्री भी कहलाती है,
बेटे को याद करते, अक्सर आँखे भर जाती है,
ममता से गहरा सागर क्या, ऊँचा आकाश नही,
क्यो शिक्षिका को चाइल्डकेयर अवकाश नही,
पूरा हक दो पालनपोषण का,खुद के लाल का,
जरूर मिले, चाइल्ड केयर लीव दो साल का,
यह एक अनमोल तोहफा दे दो, सुनो जी सरकार,
राखी पर बहिना को दे दो यह सुंदर सा उपहार,
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सुनिल भारी (कन्नौद)
जिला देवास,मप्र

9098004500


Tuesday, August 2, 2016

NSDL (अध्यापक संवर्ग ) के कार्य के लिए नियम एवं समय सीमा तय की जा रही हैं -सूत्र

NSDL .मामले में हाईकौर्ट में लगाये केस  का कुछ असर होता नजर  आ रहा है शिक्षा विभाग में पदस्थ ,सूत्रों  के अनुसार .DDO स्तर से पैसा सीधे NSDL में भेजने की  तैयारी चल रही। लोक शिक्षण संचालनालय  जल्द ही  400  करोड़ NSDL में जमा करने जा रहा है हालाकि 668  करोड़ जमा होना है। मृत्यु के  प्रकरण में अंतिम भुगतान के आवेदन  भी जिला स्तर से ही ऑनलाइन होंगे और आपत्ति  लगने पर सीधे जिला स्तर पर ही जानकारी मिल सकेगी और निराकरण हो सकेगा । जानकारी के लिए बता दे कि इस मामले पर राज्य अध्यापक संघ के जिला शाखा मण्डला अध्यक्ष डीके सिंगौर द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की गई थी। याचिका क्र डब्लू.पी. 8339/2016 पर 10 मई को माननीय न्यायाधिपति राजेन्द्र मेनन की कोर्ट में सुनवाई हुईं।

       राज्य अध्यापक संघ की ओर से एडव्होकेट रोहित सोहगोरा ने पैरवी करते हुये कोर्ट को बताया कि अध्यापक सवंर्ग के लिये लागू अंशदायी पेंशन योजना के अंतर्गत प्रतिमाह 10 प्रतिशत राशि अध्यापकों के खाते से काटकर और उतनी ही राशि शासन द्वारा मिलाकर कुल वेतन की 20 प्रतिशत राशि प्रतिमाह नियमित रूप से एनएसडीएल में जमा करने का प्रावधान है लेकिन 15 माह से अध्यापकों का अंशदान एनएसडीएल में जमा नहीं हुआ है।सभी 8 प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुये 6 सप्ताह के अंदर जवाब पेश करने को कहा है। जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर ने बताया कि संघ रिज्वाइंडर फाइल कर गुमशुदा कटोत्रा के समायोजन पर भी वित्त विभाग के प्रावधान के अनुसार ब्याज जमा कराने की मांग की थी। याचिका की में इसी सप्ताह सुनवाई हो सकती है।   शिक्षा विभाग इस सम्बन्ध में नियम और समय सिमा निर्धारित कर  रहा है।  विभागीय सूत्रों के अनुसार  कोर्ट में जवाब देने के पहले नियम बना दिए जाएंगे ।
    विदित रहे
 नियम और समय सिमा  नियमित कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए तय की गयी है ऐसे ही नियम अध्यापक संवर्ग के लिए भी बनाये जा सकते हैं। 








प्राधानाध्यापक एवं प्राचार्य द्वारा दो कालखण्ड अध्यापन करवाने विषयक

प्राधानाध्यापक (प्राथमिक/ माध्यमिक शाला ) एवं प्राचार्य ( हाईस्कूल / हायर सेकेण्ड्री स्कूल ) द्वारा दो कालखण्ड अध्यापन करवाने  विषयक ,आदेश पुनः जारी कर दिया गया है
आदेश की पीडीएफ कॉपी प्राप्त करने के लिए इस लिंक को ओपन करे।



2 अगस्त काे फिर मंत्रालय में वार्ता में सम्मिलित होने से पहले अध्यापक हित में अपने प्रस्ताव तो सार्वजनिक करें

जो साथी 25 जुलाई की तारीख से कह रहे हैं कि प्रशासनिक अधिकारियों से उनकी वार्ता सफल हुई है ।और प्रस्ताव उनके मन मुक़ाबिक ही बना कर भेजा गया है ।वे कल 2 अगस्त काे फिर मंत्रालय में वार्ता में सम्मिलित होने से पहले अध्यापक हित में अपने प्रस्ताव तो सार्वजनिक करें।साथ ही कल वार्ता में सम्मिलित होने वाले सभी वार्ताकार इस बात का ध्यान रखें कि यदि 2007 से 2 वेतन वृर्द्धि लगाकर (1998 में नियुक्त साथियो की ) 6टवा वेतन मान की गणना नहीं की गयी और 1 सितम्बर 2013 को सेवा पुस्तिका में दर्ज हो भले ही नगद लाभ 1 जनवरी 2016 से मिले । यह नहीं मिले तो सभी वार्ताकार कल एक का काम करें की अन्य कुछ भी लेकर न आएं। एक काम कर लेवे , अंतरिम राहत में। सुधार करवा लें और 2013 के आदेश अनुसार 2017 में ही वेतन मान स्वीकार कर लें ।में मेरे गणना पत्रक भी सार्वजनिक कर रहा हूँ इसमें 119 प्रतिशत महंगाई भत्ते से गणना कि गयी है । 1 जनवरी 2016 को यह मिलना चाहिए ।अन्यथा कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं ।आप सभी जानते है यदि अंतरिम राहत में सुधार होता है तो सहायक अध्यापक जो 4700,4800,5000 का लाभ ,वरिष्ठ अध्यापक को 3350,3550,3750 का लाभ होगा और अध्यापक को2050, 2250,2600 का लांभ होगा ।सभी साथी समझें तत्काल लांभ की अपेक्षा लंबे समय में मिलने वाला लांभ की तरफ देखना चाहिये ।सुरेश यादव रतलाम एक आम अध्यापक । 9926809650




छात्रवृत्ति के आहरण एवं संवितरण अधिकार विकासखंड शिक्षा अधिकारीयों को स्थानांतरित करने विषयक

समेकित छात्रवृत्ति योजना अंतर्गत आहरण एवं संवितरण अधिकार विकासखंड शिक्षा अधिकारीयों को स्थानांतरित करने विषयक आदेश जारी
आदेश पीडीऍफ़ में देखने के लिए इस लिंक को ओपन करें



राज्य अध्यापक संघ मंडला की मांग ,शिक्षको के नाम बिना जांच के सार्वजानिक न करें

मंडला - शुक्रवार को राज्य अध्यापक संघ के पदाधिकारी जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर की अगुवाई में कलेक्टर मण्डला श्रीमति प्रीति मैथिल से मुलाकात की और बताया कि लापरवाह शिक्षकों की शिकायत आम जनता द्वारा आपके दूरभाष में करने के प्रावधान के चलते बिना जांच के और बिना दोष सिद्ध हुये ही शिक्षकों के नाम समाचार पत्र और सोशल मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित किये जा रहे हैं जो कि अनुचित है। 
राज्य अध्यापक संघ को प्रशासन के इस निर्णय से आपत्ति नहीं है, लेकिन जब तक जांच न हो और दोष सिद्ध न हो शिक्षक अध्यापक का नाम समाचार पत्रों में प्रकाशित नहीं होना चाहिये क्योंकि कई मामलों में शिक्षक निर्दोष भी रहते हैं। आपसी रंजिश, द्वैषता और अनुचित लाभ नहीं मिलने आदि के कारण भी लोगों के द्वारा शिक्षकों की शिकायत कर दी जाती है। सोशल मीडिया के चलते भी निर्दोष शिक्षक का बहुत ज्यादा दुष्प्रचार हो जाता है। 

कलेक्टर को अवगत कराया गया कि नैझर में पदस्थ अध्यापक चरण लाल झारिया के मामले में ऐसा ही हुआ है अतिथि शिक्षक नहीं रखे जाने पर ग्राम के व्यक्ति द्वारा झूठी शिकायत की गई और उसका नाम समाचार पत्रों और फेसबुक में समाचार प्रसारित किया गया। कलेक्टर ने संघ के तर्क से सहमत होते हुये कहा कि पहले तो समाचार पत्र और सोशल मीडिया में नाम देने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है और यदि ऐसा हुआ है तो अब बिना जांच और दोष सिद्व हुये नाम प्रचारित नहीं किया जायेगा। 

संघ ने फ्लेक्स में महिला शिक्षिकाओं के मोबाइल नम्बर न लिखे जाने केे आग्रह को अस्वीकार कर दिया। संघ ने मण्डला में बच्चों को यूनिफार्म वितरण का मुद्दा भी उठाया। कलेक्टर ने वितरित की जाने वाली यूनिफार्म का सेम्पल मंगाया है। कलेक्टर ने अध्यापकों से कई मुद्दो पर चर्चा की और बच्चों की पढ़ाई की ओर जोर देने हेतु निर्देशित किया। प्रतिनिधि मण्डल में डी.के.सिंगौर,राकेश चौरसिया, प्रकाश सिंगौर, सुनील नामदेव,राजकुमार रजक,मंशाराम झारिया, चंद्रशेखर तिवारी लखन शुक्ला,बंसंत मिश्रा,श्याम सिंगरौरे,मोनू विश्वकर्मा,हरिलाल वरकडे़,ओमकार सिंह थे।