Friday, August 12, 2016

एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ?-अरविन्द रावल झबुआ

अरविन्द रावल-एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ? कुछ हमारे अध्यापक साथियो ने और शासन के लोगो के सहयोग से आज अध्यापक की जान की कीमत एक लाख रूपये तय वाला आदेश जारी हुआ हे। सरकार के इस आदेश के बाद मृत अध्यापक साथी के परिवार के लोगो  की अहर्ता नही होने की स्थिति में अनुकम्पा के नाम पर एक लाख रूपये देकर शासन इतिश्री कर लेगा। हमारे जिन साथियो ने एक लाख रूपये अनुकम्पा के नाम पर मृत अध्यापक के परिवार को देने का सुझाव शासन को दिया हे निश्चित ही उन लोगो को परिवार की पीड़ा क्या होती हे इसका एहसास नही होगा। अगर मेरे यह साथी शासन के लोगो को यह सुझाव देते की मृत अध्यापक के परिवार में यदि अहर्ता योग्य पात्र कोई व्यक्ति नही हे तो उन्हें शासन परिवार के लालन पालन हेतू पहले अनुकम्पा की तहत सविदा 3 के पद पर नोकरी दे और योग्य अहर्ता प्राप्त करने हेतू दो चार साल का टाइम पीरियड देने की बात प्रमुखता से रखना थी। यदि किसी मृत् अध्यापक परिवार में कोई अहर्ता प्राप्त करने में असमर्थ व्यक्ति हे तो सरकार उसे भृत्य के पद पर अनुकम्पा में नोकरी दे। ताकि मृत अध्यापक साथी के परिवार का सदस्य बहेतर ढंग से अपने परिवार का पालन कर सके।साथियो एक लाख रूपये में इस महँगाई के दौर में आज होता क्या हे ? एक लाख रूपये में न तो आज बच्चों की शिक्षा पूरी होती हे और न ही हाथ पीले किये जा सकते हे।  हमारे साथी खुद को अव्वल साबित करने के चक्कर में अपनों का ही बुरा करवा बेठे हे। इस आदेश का सभी साथियो को मिलकर विरोध करना चाहिए । हमें इसे निरस्त करवाकर मृत अध्यापक साथी के परिवार के पालन हेतु अहर्ता होने या न होने की स्थिति में किसी भी पद पर पर नोकरी दी जाये ऐसा आदेश जारी करवाने का प्रयास सामूहिक रूप से अब किया जाना चाहिए।अभी हम अध्यापको को सरकार से बहुत सारी लड़ाई लड़ना बाकी हे । आगामी दस पन्द्रह सालो के अंदर कोई एक लाख से ज्यादा अध्यापक  रिटायर हो जाने वाले हे। इसी तरह से दुक्डो में बिखर कर लड़ते रहेगे तो खाली हाथ घर लौटने के कुछ हासिल नही होगा। शासन से जो भी लड़ाई जितना हे तो हमारे पास दो चार सालो का वक्त ही हे। उसके बाद हम फिर कुछ करने की स्थिति में नही रहेगे। हमने टुकड़ो में बटकर रहने का परिणाम आज देख लिया इस आदेश को पाकर। कितने बड़े दुःख का विषय हे की हमारी ताकत देश की आधी आर्मी के बराबर होने के बाद भी हमे एक एक आदेश को निकलवाने में एक एक साल लग जाते हे और फिर उनकी विसंगतियो को सुधरवाने में इतना समय लगता हे तो हम पेंशन और  अन्य सुविधाओ की लड़ाई लड़ेंगे कब और उनको प्राप्त कब करेगे ?
अभी भी हमारे पास वक्त शेष हे यदि हम सभी अध्यापक नेता एकजुट हो जाये तो हम सरकार से अपनी शक्ति के बल पर सब कुछ पा सकते हे। इस समय अध्यापको को एक सशक्त दूरदर्शी नेतृत्त्व की आवश्यकता हे जो अध्यापक और उसके परिवार के उज्ज्वल भविष्य की सोच को लेकर कार्य करे।लेखक स्वयं  अध्यापक हैं और यह उनकी निजी राय है .           

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Friday, August 12, 2016

एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ?-अरविन्द रावल झबुआ

अरविन्द रावल-एक अध्यापक की जान की कीमत क्या एक लाख रूपये ही हे ? कुछ हमारे अध्यापक साथियो ने और शासन के लोगो के सहयोग से आज अध्यापक की जान की कीमत एक लाख रूपये तय वाला आदेश जारी हुआ हे। सरकार के इस आदेश के बाद मृत अध्यापक साथी के परिवार के लोगो  की अहर्ता नही होने की स्थिति में अनुकम्पा के नाम पर एक लाख रूपये देकर शासन इतिश्री कर लेगा। हमारे जिन साथियो ने एक लाख रूपये अनुकम्पा के नाम पर मृत अध्यापक के परिवार को देने का सुझाव शासन को दिया हे निश्चित ही उन लोगो को परिवार की पीड़ा क्या होती हे इसका एहसास नही होगा। अगर मेरे यह साथी शासन के लोगो को यह सुझाव देते की मृत अध्यापक के परिवार में यदि अहर्ता योग्य पात्र कोई व्यक्ति नही हे तो उन्हें शासन परिवार के लालन पालन हेतू पहले अनुकम्पा की तहत सविदा 3 के पद पर नोकरी दे और योग्य अहर्ता प्राप्त करने हेतू दो चार साल का टाइम पीरियड देने की बात प्रमुखता से रखना थी। यदि किसी मृत् अध्यापक परिवार में कोई अहर्ता प्राप्त करने में असमर्थ व्यक्ति हे तो सरकार उसे भृत्य के पद पर अनुकम्पा में नोकरी दे। ताकि मृत अध्यापक साथी के परिवार का सदस्य बहेतर ढंग से अपने परिवार का पालन कर सके।साथियो एक लाख रूपये में इस महँगाई के दौर में आज होता क्या हे ? एक लाख रूपये में न तो आज बच्चों की शिक्षा पूरी होती हे और न ही हाथ पीले किये जा सकते हे।  हमारे साथी खुद को अव्वल साबित करने के चक्कर में अपनों का ही बुरा करवा बेठे हे। इस आदेश का सभी साथियो को मिलकर विरोध करना चाहिए । हमें इसे निरस्त करवाकर मृत अध्यापक साथी के परिवार के पालन हेतु अहर्ता होने या न होने की स्थिति में किसी भी पद पर पर नोकरी दी जाये ऐसा आदेश जारी करवाने का प्रयास सामूहिक रूप से अब किया जाना चाहिए।अभी हम अध्यापको को सरकार से बहुत सारी लड़ाई लड़ना बाकी हे । आगामी दस पन्द्रह सालो के अंदर कोई एक लाख से ज्यादा अध्यापक  रिटायर हो जाने वाले हे। इसी तरह से दुक्डो में बिखर कर लड़ते रहेगे तो खाली हाथ घर लौटने के कुछ हासिल नही होगा। शासन से जो भी लड़ाई जितना हे तो हमारे पास दो चार सालो का वक्त ही हे। उसके बाद हम फिर कुछ करने की स्थिति में नही रहेगे। हमने टुकड़ो में बटकर रहने का परिणाम आज देख लिया इस आदेश को पाकर। कितने बड़े दुःख का विषय हे की हमारी ताकत देश की आधी आर्मी के बराबर होने के बाद भी हमे एक एक आदेश को निकलवाने में एक एक साल लग जाते हे और फिर उनकी विसंगतियो को सुधरवाने में इतना समय लगता हे तो हम पेंशन और  अन्य सुविधाओ की लड़ाई लड़ेंगे कब और उनको प्राप्त कब करेगे ?
अभी भी हमारे पास वक्त शेष हे यदि हम सभी अध्यापक नेता एकजुट हो जाये तो हम सरकार से अपनी शक्ति के बल पर सब कुछ पा सकते हे। इस समय अध्यापको को एक सशक्त दूरदर्शी नेतृत्त्व की आवश्यकता हे जो अध्यापक और उसके परिवार के उज्ज्वल भविष्य की सोच को लेकर कार्य करे।लेखक स्वयं  अध्यापक हैं और यह उनकी निजी राय है .           

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