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Monday, August 15, 2016
आजादी का अहसास कराते हैं जनांदोलन-वासुदेव शर्मा छिन्दवाड़ा ( 70वें स्वतंत्रता दिवस पर ) गैर राजनीतिक ताकतों के आन्दोलन के संदर्भ में
आजादी का अहसास कराते हैं जनांदोलन
वासुदेव शर्मा छिन्दवाड़ा-जनता को गैरराजनीतिक ताकतों के इर्द-गिर्द संगठित करने की हो रही कोशिशें राजनीतिक ताकतों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। गैरराजनीतिक ताकतें समाज में राजनीतिक वातावरण को समाप्त करती हैं तथा जनांदोलनों को उभरने से रोकती हैं। इससे आगे जाकर यह ताकतें जनता के सवालों एवं आजादी के महत्व पर भी भ्रम फैलाने का काम करती हैं। यह ताकतें जनता के जरूरी सवालों को भी अपने अपने तरीके से परिभाषित कर कुतर्कों के जरिए यह बताने की कोशिश करती हैं कि जनता जिन परेशानियों का सामना कर रही है, उसके लिए वही जिम्मेदार है। यह ऐसा कुतर्क है, जो सरकार के जनविरोधी रवैए से ध्यान हटाने के लिए दिया जाता है। यह तर्क वे ताकतें अधिक देती हैं, जो खुद को गैरराजनीतिक कहती हैं। यह ताकतें ऐसा क्यों करती हैं? स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हर किसी को इसे समझने की जरूरत है?
समाज में बढ़ रही असमानता, बेरोजगारी, गरीबी, दरिद्रता, ऊंच-नीच जैसी समस्याओं को राजनीतिक नजरिए से ही समझकर उनके समाधान तक पहुंचा जा सकता है। आजादी के बाद देश ने जो प्रगति की है, उसका श्रेय भारत की राजनीति को ही जाता है, फिर वह राजनीति भले ही विभिन्न विचारों से क्यों न संचालित होती रही हो। समाज में राजनीतिक वातावरण मौजूद रहता है, तब विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को उभरने के अवसर मिलते हैं। यह ऐसी स्थिति होती है, जो समाज के हर तबके को उसकी पसंद की राजनीति के चयन का अधिकार देती है। समाज में राजनीतिक वातावरण होता है, तब जनसंघर्षों, जनांदोलन की परिस्थितियां भी मौजूद रहती हैं और लोग खुद की बात को हुकूमतों तक पहुंचाने के लिए इसी रास्ते का सहारा लेते हैं। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का रास्ता, ऐसा रास्ता होता है, जो समाज को राजनीतिक शिक्षा देता है, विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को समझने का मौका उपलब्ध कराता है तथा जनता को अपनी पसंद की राजनीति के करीब पहुंचाता है।
आजादी, जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों से ही हासिल हुई है, इसीलिए देश की प्रगति में इसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जनता के संगठित संघषों की ही ताकत का परिणाम था कि अंग्रेजों की ताकतवर हुकमतों को भी अंत में यह अहसास हो गया था कि संगठित जनता की आवाज को कुचला नहीं जा सकता, इसीलिए अंग्रेजी हुकूमत दमन के तमाम हथियारों को डालकर जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों के आगे झुकी और देश छोड़कर जाने को मजबूर हुई। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों ने ही भारत को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिए, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया। जिस देश में जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का इतना बड़ा योगदान रहा हो, उस देश में गैरराजनीतिक ताकतों के बढ़ते बर्चस्व को हल्के में नहीं लेना चाहिए। गैरराजनीतिक ताकतें समाज का पहला नुकसान यही कर रही हैं कि वे जनांदोलनों के महत्व को समाप्त कर जनता को संघर्ष के रास्ते पर चलने से रोक रही हैं। गैरराजनीतिक ताकतें ऐसा करने में सफल हुई, तब जनता से उसकी जुवान ही छिन जाएगी और वह चंद ताकतवर व्यक्तियों, नेताओं एवं अधिकारियों पर निर्भर हो जाएगी। यह स्थिति गुलामी जैसी होगी, इसीलिए 69वें स्वतंत्रता दिवस पर जनता को इस स्थिति से बचाने का संकल्प भी लेना होगा।
चूंकि गैरराजनीतिक ताकतें समाज में अलग-अलग नामों से काम करती हैं। यह ताकतें समाज सेवा के नाम पर सरकार की तमाम योजनाओं को संचालित करते हुए खुद को स्थापित करने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी को ही समाज में अविश्वसनीय बनाने का काम करती हैं। यह ताकतें इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि वे राजनीतिक गतिविधियों को ठप्प कर देती हैं, अन्ना एवं रामदेव के आंदोलनों के दौरान ऐसा देखने में आया भी। गैरराजनीतिक ताकतें सांस्कृतिक संगठनों का चोला पहनकर भी जनता के बीच पहुंचती हैं, यह ताकतें जनता को उनके बुनियादी सवालों पर होने वाले संघर्षों से दूर कर सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजनों की तरफ ले जाने का काम करती हैं, इसका नतीजा यह होता है कि जनता अपने जरूरी सवालों पर सोचने-विचारने की वजाय अपनी माली हालत के लिए अपने पिछले कर्मों का फल मानकर जिस हाल में है उसे अपनी नियत मानकर स्वीकार कर लेती है। जनता जिस हाल में है, उसी में जीती रही और इससे आगे न सोचे, गैर राजनीतिक ताकतें इसीके लिए काम करती हैं। जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों में जनता की कम होती भागीदारी, राजनीतिक कार्यक्रमों के प्रति उसकी बेरुखी बताती है कि गैरराजनीतिक ताकतों ने समाज के बहुमत हिस्से को निराशा में पहुंचा दिया है, जिस कारण जनता लोकतांत्रिक रास्ते से दूर होती जा रही है।
सामाजिक असमानता, गरीबी, बेकारी, महंगाई ऐसे सवाल हैं, जिन्होंने जनता के बहुमत हिस्से को प्रभावित किया है। किसानों की माली हालत, बढ़ती बेरोजगारी, महंगी होती शिक्षा, महंगा होती स्वास्थ्य सुविधाएं, खाने-पीने की जरूरी चीजों का आए दिन महंगा होना, कर्मचारियों के बीच व्याप्त वेतनविसंगतियों की समस्याओं के लिए सीधे-सीधे सरकारें और उन सरकारों की नीतियां ही जिम्मेदार है, ऐसे में जब इन समस्याओं से दो-चार होते लोग इनके समाधान के रास्ते गैरराजनीतिक नजरिए से खोजेंगे, तब न तो समस्याओं के समाधान तक पहुंचा जा सकता है और न ही इन समस्याएं से मुक्ति मिल सकती हैं। जनता के हर तबके को प्रभावित कर रही इन समस्याओं के समाधान का रास्ता राजनीतिक रास्ते पर चलकर ही निकाला जा सकता है, इसके लिए जरूरी है कि जनता के बीच से जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों का निर्माण हो। जनसंघर्षों एवं जनांदोलनों में बोले जाने वाली भाषा, लगाए जाने वाले नारे, संघर्षों के संगठनकर्ताओं की राजनीतिक विचारधारा को सामने लाते हैं, इस तरह जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों के जरिए जनता को विभिन्न विचारधाराओं की राजनीति को समझने का मौका मिलता है। कौनसी राजनीति उसके करीब है, यह समझने का बेहतरीन मौका होते हैं जनांदोलनों। आज जब समाज का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में सरकारों की नीतियों से असंतुष्ट हो, तब जनता के लिए जनांदोलनों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इन्हीं जनांदोलनों से भारत की जनता को आजादी मिली और यही जनांदोलन जनता के जीवन को खुशहाल बनाने के रास्ते पर ले जाएंगे। आईए; स्वतंत्रता दिवसे के मौके पर जनांदोलनों एवं जनसंघर्षों को विकसित करने का संकल्प लें।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं (यह उनके निजी विचार हैं )
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