Saturday, October 15, 2016

नारी को बंदिशो की बेडी नही,बुलन्दियों को छूने का सबल दिजिये - राशी राठौर देवास


राशी राठौर देवास - छोटे से गाँव की शाला से निकलकर महाविद्यालय की देहलीज तक, रसोई घर से निकलकर कार्यालय तक भारतीय नारी का संघर्ष पूर्व समय की तरह चुनौती पूर्ण ही बना रहा है। इस संघर्ष को समाज समय समय पर और जटील ही बनाता रहा है। ये बंदिशे, सीमाऐ, ये प्रतिबंध ये फायदे के कायदे ,सारी चुनौतियों को मात देते  हुऐ भी नारी घर और बहार सफलता का वरण कर रही है !!  यदि समाज ने बन्दिशो की बेडियो की जगह सबल दिया होता तो नारी आज सफलता के चरम पर होती। क्या इतने प्रयास ,इतना संघर्ष,इतनी सफलता भी पर्याप्त नही है ये समझने के लिए की महिलाओं को अब दोयम दर्जे का नागरिक ना  माना जाये। क्या अब भी उसकी स्कर्ट के साइज पर टिप्पणी करना आवश्यक लगता है ? क्या अब भी उसकी जीन्स पर छिटाकशी उचित प्रतीत होती है। आज की आधुनिक नारी नैतिक, बौध्दिक, सामाजिक,पारिवारिक हर क्षैत्र मै खुद को सक्षम साबित कर चुकी है।कदम-कदम पर नारी की व्यवहार का आंकलन ही नही सुझाव भी बतौर नियम उस पर थौपे जाते है। नारी को क्या पहनना है,क्या खाना है, कैसे चलना है,कैसे बैठना है,किससे बात करना है, ये सब मानक उसके लिए निर्धारित किये जा चुके। कई बार तो इन्ही मानको के आधार पर उसका चरित्र तक का भी सर्टिफिकेट जबरन थमा दिया जाता है। किन्तु इन्हीं मानको से समाज एक वर्ग को खुली छूट दी गयी है। जिसका प्रतिफल वर्तमान समाज बढते अपराध है। मुख्यत नारी के प्रति बढते अपराध। पेड बचाओ, जल बचाव, के साथ ही आज हमे बेटी बचाओ भी कहना पड रहा है। ईश्वर की महान कृति मानव और उसी कृति का एक भाग नारी को भी अब प्राकृतिक संसाधनो की भांति बचाने के कयास लगाये जा रहै है। समाज से दरकार है की एक स्वस्थ वातावरण नारी विकास के लिए निर्मित करे। जहाँ वह अपनी प्रतिभा के अनुरूप अपने भविष्य निर्माण स्वयं कर समाज को गौरवान्वित कर सके।(लेखक स्वयं  अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

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Saturday, October 15, 2016

नारी को बंदिशो की बेडी नही,बुलन्दियों को छूने का सबल दिजिये - राशी राठौर देवास


राशी राठौर देवास - छोटे से गाँव की शाला से निकलकर महाविद्यालय की देहलीज तक, रसोई घर से निकलकर कार्यालय तक भारतीय नारी का संघर्ष पूर्व समय की तरह चुनौती पूर्ण ही बना रहा है। इस संघर्ष को समाज समय समय पर और जटील ही बनाता रहा है। ये बंदिशे, सीमाऐ, ये प्रतिबंध ये फायदे के कायदे ,सारी चुनौतियों को मात देते  हुऐ भी नारी घर और बहार सफलता का वरण कर रही है !!  यदि समाज ने बन्दिशो की बेडियो की जगह सबल दिया होता तो नारी आज सफलता के चरम पर होती। क्या इतने प्रयास ,इतना संघर्ष,इतनी सफलता भी पर्याप्त नही है ये समझने के लिए की महिलाओं को अब दोयम दर्जे का नागरिक ना  माना जाये। क्या अब भी उसकी स्कर्ट के साइज पर टिप्पणी करना आवश्यक लगता है ? क्या अब भी उसकी जीन्स पर छिटाकशी उचित प्रतीत होती है। आज की आधुनिक नारी नैतिक, बौध्दिक, सामाजिक,पारिवारिक हर क्षैत्र मै खुद को सक्षम साबित कर चुकी है।कदम-कदम पर नारी की व्यवहार का आंकलन ही नही सुझाव भी बतौर नियम उस पर थौपे जाते है। नारी को क्या पहनना है,क्या खाना है, कैसे चलना है,कैसे बैठना है,किससे बात करना है, ये सब मानक उसके लिए निर्धारित किये जा चुके। कई बार तो इन्ही मानको के आधार पर उसका चरित्र तक का भी सर्टिफिकेट जबरन थमा दिया जाता है। किन्तु इन्हीं मानको से समाज एक वर्ग को खुली छूट दी गयी है। जिसका प्रतिफल वर्तमान समाज बढते अपराध है। मुख्यत नारी के प्रति बढते अपराध। पेड बचाओ, जल बचाव, के साथ ही आज हमे बेटी बचाओ भी कहना पड रहा है। ईश्वर की महान कृति मानव और उसी कृति का एक भाग नारी को भी अब प्राकृतिक संसाधनो की भांति बचाने के कयास लगाये जा रहै है। समाज से दरकार है की एक स्वस्थ वातावरण नारी विकास के लिए निर्मित करे। जहाँ वह अपनी प्रतिभा के अनुरूप अपने भविष्य निर्माण स्वयं कर समाज को गौरवान्वित कर सके।(लेखक स्वयं  अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )

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