Wednesday, May 4, 2016

अध्यापको को विचार करना चाहिए. कहां से चले थे.....कहां है..... और आगे कहां जा रहे है :- रिज़वान खान

           आज अध्यापको को कुछ बातो पर विचार करना चाहिए. हम कहां से चले थे.....कहां है..... और आगे कहां जा रहे है. देश का अनुभव है की एक राजनैतिक दल के तथाकथित परिवारवाद का विरोध करते करते सारे राजनैतिक दल कब स्वयं परिवारवाद में आकण्ठ डूब गए पता ही नही चला. कही हम भी कालचक्र की उसी परिघटना की पुनरावृत्ति करते तो नही दिख पड़ रहे है.
                 सोशल मीडिया पर तलवारे खिंची हुई है तर्क वितर्क कुतर्क से बात कही आगे बढ़कर व्यक्तिगत टिप्पणियॉ को पार कर इस आभासी दुनिया के बाहर हिसाब किताब कर लेने आतुर दिख पड़ती है. ऐसे वातावरण में जब स्वतन्त्र स्वर नक्कारखाने की तूती बन अपनी इज्जत बचाने के लिए जद्दोजहद करने लगते है .......नई उमर की कच्ची तरुणाई अपने पिता की आयु के वरिष्ठों को जुतियाने लतियाने को लालायित नजर आती है ........पशुओ और उनकी भाव भंगिमाओं पर आधारित भाषा उपमा और अलंकार के सहारे नये तरह का व्याकरण रचा जा रहा है तब भी कुछ सार्थक होने की आशा करना अपने मन को समझाने के सिवा कुछ नही है. राष्ट्रपिता ने कहा था की अनुचित साधन के द्वारा प्राप्त किया गया साध्य राष्ट्र की आत्मा को सन्तुष्ट नही कर सकता. अपने इन क्रिया कलापो के बाद यदि हम विसंगति रहित वेतन पाने में सफल हो भी गए तो क्या स्वयं से नजरे मिला पाएंगे.
           बन्धुओ हम सब गलतियों के पुतले है कोई परिपूर्ण नही है. एक दूसरे को समझाते बुझाते ही जीवन यात्रा करनी है. आमतौर पर कटु शब्दों का प्रयोग नही करता किन्तु विगत दिनों के वातावरण से किंचित मै भी प्रभावित हो गया. कुछ गलत लिख दिया हो तो क्षमा करे। 

           पुनश्च:-  राजनीति निर्मम होंते होते कब हमसे मानवीय मूल्यों के विपरीत आचरण करवा लेती है हमे पता ही नही चलता.

         रिज़वान खान लेखक बैतूल जिले  में खेल अनुदेशक (अध्यापक )  है, यह लेखक के निजी विचार है ,


No comments:

Post a Comment

Comments system

Wednesday, May 4, 2016

अध्यापको को विचार करना चाहिए. कहां से चले थे.....कहां है..... और आगे कहां जा रहे है :- रिज़वान खान

           आज अध्यापको को कुछ बातो पर विचार करना चाहिए. हम कहां से चले थे.....कहां है..... और आगे कहां जा रहे है. देश का अनुभव है की एक राजनैतिक दल के तथाकथित परिवारवाद का विरोध करते करते सारे राजनैतिक दल कब स्वयं परिवारवाद में आकण्ठ डूब गए पता ही नही चला. कही हम भी कालचक्र की उसी परिघटना की पुनरावृत्ति करते तो नही दिख पड़ रहे है.
                 सोशल मीडिया पर तलवारे खिंची हुई है तर्क वितर्क कुतर्क से बात कही आगे बढ़कर व्यक्तिगत टिप्पणियॉ को पार कर इस आभासी दुनिया के बाहर हिसाब किताब कर लेने आतुर दिख पड़ती है. ऐसे वातावरण में जब स्वतन्त्र स्वर नक्कारखाने की तूती बन अपनी इज्जत बचाने के लिए जद्दोजहद करने लगते है .......नई उमर की कच्ची तरुणाई अपने पिता की आयु के वरिष्ठों को जुतियाने लतियाने को लालायित नजर आती है ........पशुओ और उनकी भाव भंगिमाओं पर आधारित भाषा उपमा और अलंकार के सहारे नये तरह का व्याकरण रचा जा रहा है तब भी कुछ सार्थक होने की आशा करना अपने मन को समझाने के सिवा कुछ नही है. राष्ट्रपिता ने कहा था की अनुचित साधन के द्वारा प्राप्त किया गया साध्य राष्ट्र की आत्मा को सन्तुष्ट नही कर सकता. अपने इन क्रिया कलापो के बाद यदि हम विसंगति रहित वेतन पाने में सफल हो भी गए तो क्या स्वयं से नजरे मिला पाएंगे.
           बन्धुओ हम सब गलतियों के पुतले है कोई परिपूर्ण नही है. एक दूसरे को समझाते बुझाते ही जीवन यात्रा करनी है. आमतौर पर कटु शब्दों का प्रयोग नही करता किन्तु विगत दिनों के वातावरण से किंचित मै भी प्रभावित हो गया. कुछ गलत लिख दिया हो तो क्षमा करे। 

           पुनश्च:-  राजनीति निर्मम होंते होते कब हमसे मानवीय मूल्यों के विपरीत आचरण करवा लेती है हमे पता ही नही चलता.

         रिज़वान खान लेखक बैतूल जिले  में खेल अनुदेशक (अध्यापक )  है, यह लेखक के निजी विचार है ,


No comments:

Post a Comment