शिक्षा और उस से जुड़े संवर्ग की सेवाओं से जुडी जानकारीयां ,आप तक आसानी से पहुंचाने का एक प्रयास है अध्यापक जगत
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Tuesday, May 10, 2016
दारू के ठेकों के बाद अब जूते चप्पल संभालने का काम मिल गया :- राजिव लवानिया
दारू के ठेकों के बाद अब जूते चप्पल संभालने का काम मिल गया। अगला काम शायद शौचालयों में या फिर उससे भी भी बुरी कोई जगह होगी वहां का होगा। आज सरकारी तंत्र ने दिखा दिया की कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। खासकर शिक्षक समाज के लिए। इसके लिए पढ़ाने के अलावा सब काम जरुरी होते जा रहे हैं। क्योंकि पढाई तो अब शिक्षको से करवानी नहीं हे उनको तो केवल ऐसा बना देना हे की वो किसी लायक न रहें, समाज में उनकी कोई इज्जत न रहे। सरकारी मास्टर की असली ओकात लोगो को दिखानी हे। ताकि जल्दी से जल्दी सरकारी स्कूलो से लोगो का मोह भंग हो जाये। लोग प्राइवेट की तरफ तेजी से दौड़ते जाएँ सरकार की जेब भरती जाए। फिर चाहे शिक्षक जेसे सम्मानित पद को लोग गालियां बकने को तैयार रहें। एक बात और सोचने वाली जे की इसमें इस केडर के लोगो को शामिल किया गया जो डाईंग हे। और जहाँ तक मेरी जानकारी हे इसी कारन इसको तुरंत वापस भी ले लिया गया। इसकी जगह अगर इसमें अध्यापक संवर्ग होता तो शयद निरस्त नहीं होता। लेकिन जिस तरह अध्यापक वर्ग ने इसका विरोध किया हे ऐसा विरोध हर आदेश के लिए होना चाहिए।
अब आगे अध्यापक वर्ग को सोचना हे की उसे अपनी इज्जत बचानी हे या नहीं। अब भी अगर सरकार की मंशा नहीं समझ आरही तो फिर जो ऊपर लिखा हे उसके लिए तैयार रहो। और एक आखरी बात ये काम बिना किसी ऊपरी आदेश के नहीं निकला होगा। इसमें अब कुछ और नहीं बचा हे अध्यापक वर्ग का विनाश एक कदम और आगे बड़ गया। राजिव लवानिया
यह लेखक के निजी विचार है लेखक राज्य अध्यापक संघ के जिला सचिव है
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