Sunday, October 9, 2016

छात्रों के साथ शिक्षकों की दर्ज संख्या भी गिर रही हैं कई सरकारी स्कूलों में तो कहीं बना ली बढ़त - सचिन गुप्ता (खितौली)

दर्ज संख्या में गिरावट की मुख्य वजहें हैं ।
1. जनमानस में सरकारी स्कूल के प्रति नकारात्मक रवैया।
2.RTE के तहत् 25% छात्रों का निजी विधालयों में जाना।
3. अँग्रेजी के प्रति पालकों, अभिभावकों,छात्रों का बढता रूझान।
4. प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों में उदासीनता ,नीरसता का माहौल निर्मित हो जाना।

दर्ज संख्या में गिरावट का प्रभाव
1. युक्तियुक्तकरण
2. एकशिक्षकीय व शिक्षकविहीन शाला हो जाना
3. हर वर्ष शिक्षकों के अंदर युक्तियुक्तकरण भय व्याप्त रहना।
4. सरकारी विधालय के बंद होने की स्थिति निर्मित होना।

और तो और अब वंचित, कमजोर वर्ग के मन में भी यही धारणा बन गयी है कि सरकारी स्कूल में अध्यापन कार्य की जगह शिक्षकों के पास अन्य सरकारी काम होने की वजह से शिक्षक छात्रों को समय नहीं दे पा रहे और जो बाकी समय शेष बचता है उसमें शिक्षक अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक ,शैक्षणिक , राजनैतिक ,समसामयिक, अध्यापक आंदोलन के प्रभाव व परिणाम , मध्यांन्ह, दुग्ध वितरण आदि अनेक विषयों के विचार विमर्श (गप्पों) में मसगूल रहकर शेष समय का आधा भाग निकाल देता है और फिर बाकी बचे समय में अध्यापन कार्य करके अपनी खानापूर्ति कर देते हैं ।

इन्हीं सब वजहों से पालकों अभिभावकों के मन में सरकारी स्कुल के प्रति मानसिकता नकारात्मक हो गयी है।
दर्ज संख्या में गिरावट का दुष्परिणाम आज शिक्षक के सामने युक्तियुक्तकरण बन के खडा है । इस समस्या से आज शिक्षक समुदाय युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के भँवरजाल में फँसकर अधिकारियों के लिए आदेश रूपी बाँलीबाल बन कर रह गया है जिसे जब मन चाहा  आदेश रूपी हाथ मारकर इस तरफ से उस तरफ भेज दिया । कई स्कूल युक्तियुक्तकरण से एक शिक्षकीय हो गए 2-3 स्कूल खुद मेरे संकुल में उदाहरण है।
इसके अतिरिक्त एक ही परिसर में लग रहें प्राथमिक और माध्यमिक विधालयों का एकीकरण भी हो रहा है।जहाँ दर्ज संख्या 20 से कम है शायद वो विधालय बंद हो जाएँ ।
मतलब साफ है सरकारी विधालयों की छँटनी चालू हो चुकी है।अगर यही करना था तो हर एक-दो किमी की परिधि में प्राथमिक, माध्यमिक विधालय को खोलने की उपयोगिता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है क्योंकि एक दो किमी के दायरे में स्कूल खोलने से ही सबसे पहली बार कम दर्ज संख्या में ही छात्रों का अध्ययन अध्यापन कार्य शुरू हुआ था या तो शासन तब गलत थी जब हर जगह स्कूल खोल रही थी या फिर अब ,जब स्कूलों के सामने बंद होने का संकट गहराया हुआ है।
आखिर अतिशेष का दंष झेल रहे शिक्षक सरकारी स्कूलों के बंद होने की स्थिति में जाएगा कहाँ और आगामी दिनों में ग्रामीण परिवेश में सरकारी इन सभी वजहों से आज शिक्षक अतिशेष का दंष झेल रहें हैं और आगामी दिनों में ग्रामीण परिवेश के लोग सरकारी स्कूल के बंद होने की दिशा में वहाँ के छात्रों का क्या होगा बेशक आप उनका दाखिला कहीं भी करा देंगे पर उसे नियमित विधालय लाने में अंततः हार जाएँगे।कुल मिलाकर नुकसान छात्र, शिक्षक और शिक्षा का होगा ।
प्रथम भाषा (राष्ट्र) को अंतिम क्रम में रखने से हमारी राष्ट्र भाषा के प्रति शासन की मंशा क्या है साफ झलकता है।
भाषा भावनाओं को व्यक्त करने का एक साधन मात्र ही नहीं है बल्कि भाषा की समझ होने पर ही हम हिंदी भाषी गणित , विज्ञान,तकनीकी व अन्य विषयों पर अपनी पकड मजबूत बना पाते हैं,हालाँकि आज के समय में अँग्रेजी ने जनमानस पर अपनी बढत बना ली है और इसके बिना तकनीकी ज्ञान अधूरा रह जाएगा लेकिन बात है भाषा को अंतिम क्रम में रखने की तो यह सरासर गलत है भाषायी ज्ञान होने पर ही हम हर विषयों में दक्ष हो पाते हैं।
माध्यमिक विधालय की पद संरचना पूर्व से ही समझ से परे रही है जहाँ कला,विज्ञान,भाषा संकाय को शामिल करके तीन शिक्षकों को 6-8 का अध्यापन कार्य सौपा गया जबकि भाषा संकाय से चयनित हुए कई साथियों के साथ हुयी वार्तालाप से अनुभव हुआ कि हिन्दी से चयनित हुए शिक्षकों को अँग्रेजी ,संस्कृत पढाने में कठिनाई हो रही है तो वही अँग्रेजी काज्ञान रखने वाला शिक्षक साथी हिन्दी ,संस्कृत पढाने में असहज महसूस कर रहा है
अंततः भाषायी ज्ञान देने के लिए कम से कम तीनों भाषा के पृथक शिक्षक होने चाहिए वैसे तो हर विषय के लिए एक अलग शिक्षक हो तो काफी अनुकूल परिणाम सामने आ सकते हैं।


( लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके  निजी विचार हैं ,
शुक्रवार और शनिवार का विषय था  प्राथमिक शालाओ में गिरती छात्र संख्या ,के कारण बंद होते विद्यालय  और अतिशेष होते शिक्षक ,एवं माध्यमिक विद्यालय मे नविन पद संरचना का प्रभाव और प्रथम (राष्ट्र) भाषा को अंतिम क्रम पर रखना कितना सही है। इस विषय पर आप का लेख  प्रथम स्थान  पर चयनित किया  गया है  )



No comments:

Post a Comment

Comments system

Sunday, October 9, 2016

छात्रों के साथ शिक्षकों की दर्ज संख्या भी गिर रही हैं कई सरकारी स्कूलों में तो कहीं बना ली बढ़त - सचिन गुप्ता (खितौली)

दर्ज संख्या में गिरावट की मुख्य वजहें हैं ।
1. जनमानस में सरकारी स्कूल के प्रति नकारात्मक रवैया।
2.RTE के तहत् 25% छात्रों का निजी विधालयों में जाना।
3. अँग्रेजी के प्रति पालकों, अभिभावकों,छात्रों का बढता रूझान।
4. प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों में उदासीनता ,नीरसता का माहौल निर्मित हो जाना।

दर्ज संख्या में गिरावट का प्रभाव
1. युक्तियुक्तकरण
2. एकशिक्षकीय व शिक्षकविहीन शाला हो जाना
3. हर वर्ष शिक्षकों के अंदर युक्तियुक्तकरण भय व्याप्त रहना।
4. सरकारी विधालय के बंद होने की स्थिति निर्मित होना।

और तो और अब वंचित, कमजोर वर्ग के मन में भी यही धारणा बन गयी है कि सरकारी स्कूल में अध्यापन कार्य की जगह शिक्षकों के पास अन्य सरकारी काम होने की वजह से शिक्षक छात्रों को समय नहीं दे पा रहे और जो बाकी समय शेष बचता है उसमें शिक्षक अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक ,शैक्षणिक , राजनैतिक ,समसामयिक, अध्यापक आंदोलन के प्रभाव व परिणाम , मध्यांन्ह, दुग्ध वितरण आदि अनेक विषयों के विचार विमर्श (गप्पों) में मसगूल रहकर शेष समय का आधा भाग निकाल देता है और फिर बाकी बचे समय में अध्यापन कार्य करके अपनी खानापूर्ति कर देते हैं ।

इन्हीं सब वजहों से पालकों अभिभावकों के मन में सरकारी स्कुल के प्रति मानसिकता नकारात्मक हो गयी है।
दर्ज संख्या में गिरावट का दुष्परिणाम आज शिक्षक के सामने युक्तियुक्तकरण बन के खडा है । इस समस्या से आज शिक्षक समुदाय युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के भँवरजाल में फँसकर अधिकारियों के लिए आदेश रूपी बाँलीबाल बन कर रह गया है जिसे जब मन चाहा  आदेश रूपी हाथ मारकर इस तरफ से उस तरफ भेज दिया । कई स्कूल युक्तियुक्तकरण से एक शिक्षकीय हो गए 2-3 स्कूल खुद मेरे संकुल में उदाहरण है।
इसके अतिरिक्त एक ही परिसर में लग रहें प्राथमिक और माध्यमिक विधालयों का एकीकरण भी हो रहा है।जहाँ दर्ज संख्या 20 से कम है शायद वो विधालय बंद हो जाएँ ।
मतलब साफ है सरकारी विधालयों की छँटनी चालू हो चुकी है।अगर यही करना था तो हर एक-दो किमी की परिधि में प्राथमिक, माध्यमिक विधालय को खोलने की उपयोगिता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है क्योंकि एक दो किमी के दायरे में स्कूल खोलने से ही सबसे पहली बार कम दर्ज संख्या में ही छात्रों का अध्ययन अध्यापन कार्य शुरू हुआ था या तो शासन तब गलत थी जब हर जगह स्कूल खोल रही थी या फिर अब ,जब स्कूलों के सामने बंद होने का संकट गहराया हुआ है।
आखिर अतिशेष का दंष झेल रहे शिक्षक सरकारी स्कूलों के बंद होने की स्थिति में जाएगा कहाँ और आगामी दिनों में ग्रामीण परिवेश में सरकारी इन सभी वजहों से आज शिक्षक अतिशेष का दंष झेल रहें हैं और आगामी दिनों में ग्रामीण परिवेश के लोग सरकारी स्कूल के बंद होने की दिशा में वहाँ के छात्रों का क्या होगा बेशक आप उनका दाखिला कहीं भी करा देंगे पर उसे नियमित विधालय लाने में अंततः हार जाएँगे।कुल मिलाकर नुकसान छात्र, शिक्षक और शिक्षा का होगा ।
प्रथम भाषा (राष्ट्र) को अंतिम क्रम में रखने से हमारी राष्ट्र भाषा के प्रति शासन की मंशा क्या है साफ झलकता है।
भाषा भावनाओं को व्यक्त करने का एक साधन मात्र ही नहीं है बल्कि भाषा की समझ होने पर ही हम हिंदी भाषी गणित , विज्ञान,तकनीकी व अन्य विषयों पर अपनी पकड मजबूत बना पाते हैं,हालाँकि आज के समय में अँग्रेजी ने जनमानस पर अपनी बढत बना ली है और इसके बिना तकनीकी ज्ञान अधूरा रह जाएगा लेकिन बात है भाषा को अंतिम क्रम में रखने की तो यह सरासर गलत है भाषायी ज्ञान होने पर ही हम हर विषयों में दक्ष हो पाते हैं।
माध्यमिक विधालय की पद संरचना पूर्व से ही समझ से परे रही है जहाँ कला,विज्ञान,भाषा संकाय को शामिल करके तीन शिक्षकों को 6-8 का अध्यापन कार्य सौपा गया जबकि भाषा संकाय से चयनित हुए कई साथियों के साथ हुयी वार्तालाप से अनुभव हुआ कि हिन्दी से चयनित हुए शिक्षकों को अँग्रेजी ,संस्कृत पढाने में कठिनाई हो रही है तो वही अँग्रेजी काज्ञान रखने वाला शिक्षक साथी हिन्दी ,संस्कृत पढाने में असहज महसूस कर रहा है
अंततः भाषायी ज्ञान देने के लिए कम से कम तीनों भाषा के पृथक शिक्षक होने चाहिए वैसे तो हर विषय के लिए एक अलग शिक्षक हो तो काफी अनुकूल परिणाम सामने आ सकते हैं।


( लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके  निजी विचार हैं ,
शुक्रवार और शनिवार का विषय था  प्राथमिक शालाओ में गिरती छात्र संख्या ,के कारण बंद होते विद्यालय  और अतिशेष होते शिक्षक ,एवं माध्यमिक विद्यालय मे नविन पद संरचना का प्रभाव और प्रथम (राष्ट्र) भाषा को अंतिम क्रम पर रखना कितना सही है। इस विषय पर आप का लेख  प्रथम स्थान  पर चयनित किया  गया है  )



No comments:

Post a Comment