Sunday, October 9, 2016

अधिनायक बादी योजनाओ या पाठ्यक्रम का विरोध करें शिक्षक - विजय तिवारी (सुवासरा)

विजय तिवारी -शुक्रवार और शनिवार के विषय , प्राथमिक विद्यालय में कम हो रहे प्रवेश के जिम्मेदार विद्यालय के  की परिस्तिथियों के साथ साथ शिक्षक भी हे ।। जिन्होंने कभी भी किसी भी सरकारी अधिनायक बादी योजनाओ या पाठ्यक्रम का विरोध नही किया ।। जिसका परिणाम आज की स्थिति  हे और आज भी यही हो रहा शासन प्रशासन द्वारा जो भी कार्य या पाठ्य योजना हमे दी जाती हे उसे हम सहर्ष स्वीकार करते जा रहे हे। जिसे शासन हमारी स्वीकृति मानकर योजना की सफलता का श्रेय लेता हे ।। हमारे अग्रज शिक्षको ने सरकारी नौकरी को आपना अधिकार मान कर कभी भी किसी परिवर्तन का विरोध नही किया और ना ही अपने आप में परिवर्तन उचित समझा जिसका ही नतीजा कर्मी वर्ग की भर्ती का चालू होना भी हे ।। परन्तु वर्तमान समय में सरकारी नोकरियो का सतत अकाल होता जा रहा हे और हमे यह मुगालता भी नही पालना चाहिये की सरकारी नौकरी में लगने के बाद किसी को बाहर नही किया जा सकता ।। हमारे सामने कई विभागों के स्ंविदा कर्मी को कार्य से प्रथक किया जाना एक उदाहरण हे ।।यदि समय के साथ शिक्षको में स्वयं को हर विषय के लिये अपडेट किया होता तो यह स्तिथि नही होती ।। आज भी यही हो रहा हे हम अपने मूल कार्य को side work मान कर चल रहे हे ।। जबकि यही कार्य हमारी आजीविका हे ।। ठीक इसके विपरीत अशासकीय विद्यालय नित नए आकर्षण व् कलेवर के साथ पालक व् छात्रो को आकर्षित कर रहे हे ।।  25% की योजना भी हमारे विद्यालयो को बन्द कराने का एक जरिया साबित हो रहा हे ।।क्योकि विगत कुछ वर्षो में ग्रामीण क्षेत्रो  तक आशासकीय विद्यालयो की पहुँच होचुकी हे और ग्रामीण क्षेत्र के पालको की आशासकीय विद्यालयो तक ।। इस लेख में मैंने शासकीय विद्यालयो को हमारे या अपने विद्यालय कह कर सम्बोधित किया क्योकि ये ही हमारी आजीविका का आधार हे और हमारी योग्यता का परिचय भी ।। इस लिये विद्यालयो के साथ साथ दूसरा विषय हिंदी भाषा का था वह भी हमारी भाषा हे । इन दोनों को बचाने व् सम्मान दिलाने के लिये हमे यकीनन दिल से प्रयास की आवश्यकता हे ।। किसी बहाने की नही ।। क्यों समाज हम शिक्षको के निर्देशन से चला हे और आगे भी चलता रहेगा .

( लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके  निजी विचार हैं ,शुक्रवार और शनिवार का विषय था  प्राथमिक शालाओ में गिरती छात्र संख्या ,के कारण बंद होते विद्यालय  और अतिशेष होते शिक्षक ,एवं माध्यमिक विद्यालय मे नविन पद संरचना का प्रभाव और प्रथम (राष्ट्र) भाषा को अंतिम क्रम पर रखना कितना सही है। इस विषय पर आप का लेख  तृतीय  स्थान  पर चयनित किया  गया है  )

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Sunday, October 9, 2016

अधिनायक बादी योजनाओ या पाठ्यक्रम का विरोध करें शिक्षक - विजय तिवारी (सुवासरा)

विजय तिवारी -शुक्रवार और शनिवार के विषय , प्राथमिक विद्यालय में कम हो रहे प्रवेश के जिम्मेदार विद्यालय के  की परिस्तिथियों के साथ साथ शिक्षक भी हे ।। जिन्होंने कभी भी किसी भी सरकारी अधिनायक बादी योजनाओ या पाठ्यक्रम का विरोध नही किया ।। जिसका परिणाम आज की स्थिति  हे और आज भी यही हो रहा शासन प्रशासन द्वारा जो भी कार्य या पाठ्य योजना हमे दी जाती हे उसे हम सहर्ष स्वीकार करते जा रहे हे। जिसे शासन हमारी स्वीकृति मानकर योजना की सफलता का श्रेय लेता हे ।। हमारे अग्रज शिक्षको ने सरकारी नौकरी को आपना अधिकार मान कर कभी भी किसी परिवर्तन का विरोध नही किया और ना ही अपने आप में परिवर्तन उचित समझा जिसका ही नतीजा कर्मी वर्ग की भर्ती का चालू होना भी हे ।। परन्तु वर्तमान समय में सरकारी नोकरियो का सतत अकाल होता जा रहा हे और हमे यह मुगालता भी नही पालना चाहिये की सरकारी नौकरी में लगने के बाद किसी को बाहर नही किया जा सकता ।। हमारे सामने कई विभागों के स्ंविदा कर्मी को कार्य से प्रथक किया जाना एक उदाहरण हे ।।यदि समय के साथ शिक्षको में स्वयं को हर विषय के लिये अपडेट किया होता तो यह स्तिथि नही होती ।। आज भी यही हो रहा हे हम अपने मूल कार्य को side work मान कर चल रहे हे ।। जबकि यही कार्य हमारी आजीविका हे ।। ठीक इसके विपरीत अशासकीय विद्यालय नित नए आकर्षण व् कलेवर के साथ पालक व् छात्रो को आकर्षित कर रहे हे ।।  25% की योजना भी हमारे विद्यालयो को बन्द कराने का एक जरिया साबित हो रहा हे ।।क्योकि विगत कुछ वर्षो में ग्रामीण क्षेत्रो  तक आशासकीय विद्यालयो की पहुँच होचुकी हे और ग्रामीण क्षेत्र के पालको की आशासकीय विद्यालयो तक ।। इस लेख में मैंने शासकीय विद्यालयो को हमारे या अपने विद्यालय कह कर सम्बोधित किया क्योकि ये ही हमारी आजीविका का आधार हे और हमारी योग्यता का परिचय भी ।। इस लिये विद्यालयो के साथ साथ दूसरा विषय हिंदी भाषा का था वह भी हमारी भाषा हे । इन दोनों को बचाने व् सम्मान दिलाने के लिये हमे यकीनन दिल से प्रयास की आवश्यकता हे ।। किसी बहाने की नही ।। क्यों समाज हम शिक्षको के निर्देशन से चला हे और आगे भी चलता रहेगा .

( लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके  निजी विचार हैं ,शुक्रवार और शनिवार का विषय था  प्राथमिक शालाओ में गिरती छात्र संख्या ,के कारण बंद होते विद्यालय  और अतिशेष होते शिक्षक ,एवं माध्यमिक विद्यालय मे नविन पद संरचना का प्रभाव और प्रथम (राष्ट्र) भाषा को अंतिम क्रम पर रखना कितना सही है। इस विषय पर आप का लेख  तृतीय  स्थान  पर चयनित किया  गया है  )

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