वैसे तो यह संभव नहीं है कि सरकार 2016 में संविदा शिक्षक से
अध्यापक बनने वालों को छठवें वेतनमान के लाभ से वंचित कर दे।
यह इसीलिए भी संभव नहीं है कि सरकार नियम कायदों से
चलती है, किसी की सनक से नहीं। चूंकि सरकार अध्यापक संवर्ग
को छठवें वेतनमान के दायरे में नियमों के तहत ला चुकी है
इसीलिए छठवें वेतनमान का लाभ हर किसी को मिलेगा, यह
सत्य है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह शिवराज सिंह की सरकार
की मनमानी और तानाशाही ही कही जाएगी और इस
तानाशाही को सिर्फ और सिर्फ आंदोलन और संघर्ष के जरिए
ही रोका जा सकता है, इसीलिए 2016 में अध्यापक संवर्ग में
शामिल होने वाले संविदा शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वह
अध्यापक संघर्ष समिति के आंदोलनों में आगे आकर शामिल हों।
चूंकि शिवराज सिंह की सरकार अप्रैल एवं मार्च 2016 में प्रदेश
के विभिन्न विभागों से 10,000 संविदाकर्मियों की छंटनी कर
चुकी है, इसीलिए ऐसी किसी संभावना से इंकार नहीं किया
जा सकता कि अध्यापक संवर्ग सरकार के हमले का शिकार न
हो। 2016 में अध्यापक बने संविदा शिक्षकों के बारे में सामने
आई जानकारी चौंकाने वाली है, इसीलिए आज सभी को
चौकन्ने रहने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि शहडोल से लेकर
विधानसभा घेराव के प्रस्तावित आंदोलनों में हर अध्यापक की
हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाए। जितने अधिक अध्यापक
आंदोलन का हिस्सा बनेंगे, उतना ही अधिक सरकार और
मुख्यमंत्री डरेंगे और डरी हुई सरकार छठवें वेतन से वंचित नहीं कर
सकती।
जिस तरह सरकार ने 10,000 संविदाकर्मियों की छंटनी कर दी
और इनके संगठनों के नेताओं ने चुपचाप इसे स्वीकार कर लिया है,
हो सकता है इससे सरकार में हिम्मत आ गई हो और वह दूसरे संवर्ग
को भी निशाने पर लेने की सोच रही हो। 16 अक्टूबर को
शहडोल और 13 नवंबर को भोपाल में ताकत दिखाकर
अध्यापकों को सरकार की इस सोच को बदलने का काम भी
करना है, यह समय डरने का नहीं बल्कि सरकार को डराने का है
और सरकार डरती है एकता से, जो अध्यापकों में बन चुकी है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं )
अध्यापक बनने वालों को छठवें वेतनमान के लाभ से वंचित कर दे।
यह इसीलिए भी संभव नहीं है कि सरकार नियम कायदों से
चलती है, किसी की सनक से नहीं। चूंकि सरकार अध्यापक संवर्ग
को छठवें वेतनमान के दायरे में नियमों के तहत ला चुकी है
इसीलिए छठवें वेतनमान का लाभ हर किसी को मिलेगा, यह
सत्य है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह शिवराज सिंह की सरकार
की मनमानी और तानाशाही ही कही जाएगी और इस
तानाशाही को सिर्फ और सिर्फ आंदोलन और संघर्ष के जरिए
ही रोका जा सकता है, इसीलिए 2016 में अध्यापक संवर्ग में
शामिल होने वाले संविदा शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वह
अध्यापक संघर्ष समिति के आंदोलनों में आगे आकर शामिल हों।
चूंकि शिवराज सिंह की सरकार अप्रैल एवं मार्च 2016 में प्रदेश
के विभिन्न विभागों से 10,000 संविदाकर्मियों की छंटनी कर
चुकी है, इसीलिए ऐसी किसी संभावना से इंकार नहीं किया
जा सकता कि अध्यापक संवर्ग सरकार के हमले का शिकार न
हो। 2016 में अध्यापक बने संविदा शिक्षकों के बारे में सामने
आई जानकारी चौंकाने वाली है, इसीलिए आज सभी को
चौकन्ने रहने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि शहडोल से लेकर
विधानसभा घेराव के प्रस्तावित आंदोलनों में हर अध्यापक की
हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाए। जितने अधिक अध्यापक
आंदोलन का हिस्सा बनेंगे, उतना ही अधिक सरकार और
मुख्यमंत्री डरेंगे और डरी हुई सरकार छठवें वेतन से वंचित नहीं कर
सकती।
जिस तरह सरकार ने 10,000 संविदाकर्मियों की छंटनी कर दी
और इनके संगठनों के नेताओं ने चुपचाप इसे स्वीकार कर लिया है,
हो सकता है इससे सरकार में हिम्मत आ गई हो और वह दूसरे संवर्ग
को भी निशाने पर लेने की सोच रही हो। 16 अक्टूबर को
शहडोल और 13 नवंबर को भोपाल में ताकत दिखाकर
अध्यापकों को सरकार की इस सोच को बदलने का काम भी
करना है, यह समय डरने का नहीं बल्कि सरकार को डराने का है
और सरकार डरती है एकता से, जो अध्यापकों में बन चुकी है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं )
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