राशी राठौर देवास - एक जनवरी 2016 के बाद बने अध्यापक मतलब 2013 के संविदा शिक्षक को छटवे वेतनमान से वंचित रखने की खबर हर संविदा साथी पर आसमानी बिजली बनकर गिरी।संविदा शिक्षक अध्यापको के साथ सरकार से ही वादा निभाओ कहता रहा उसे क्या पता था की अचानक स्थिति बदल जायेगी है और जिनके विश्वास के बल पर चल पडे है वो ही मोन धारण कर लेंगे । 2013 के संविदा को तो अब सरकार और अध्यापक संघर्ष समिति दोनों से ही वादा निभाओ कहना है।
" फूट डालो और शासन करो " नीती अंग्रेज तो चले गये पर यह नीती यंही छोड गये। इसी नीती से इस बार संविदा का शिकार करने का विचार है। एक तीर से कई शिकार - अध्यापको मै फूट, अध्यापको के संख्या बल का बिखराव, 2013 और उसके पहले के अध्यापको मे आपसी संघर्ष और शिक्षा विभाग लक्ष्य से दूरी बढाना। यदि यही करना है तो समान कार्य और समान वेतन क्या होता है फिर ? कम से कम इसे तो समान कार्य और समान वेतन नही कह सकते। शिक्षको के बाद शिक्षा कर्मी की भर्ती करके। शिक्षाकर्मी को हर सुविधा से वंचित कर दिया था। इस समय सबसे बडी भूल शिक्षको ने की इस नाजायज व्यवस्था का विरोध नही करके। आज शिक्षको की प्रजाति ही विलुप्ति की कगार पर पहुंच गयी है। अध्यापक संघर्ष समिति को मौन तोडकर सरकार के इस षडयंत्र को विफल करना चाहिए। चाणक्य ने कहा है " हमे दूसरो की गलती से भी सिखना चाहिए, क्योंकि खुद गलती करके सीखने के लिए ये जीवन बहुत छोटा है।" कम से कम वर्तमान अध्यापक संघर्ष समिति द्वारा इस गलती को पूर्व के शिक्षकों की भांती दोहराना नही चाहिए। जब मित्र कहा है तो फिर कर्ण सी मित्रता अध्यापक संघर्ष समिति ने संविदा शिक्षक के साथ निभानी चाहिए। कंधे से कंधा मिला कर सरकार का पुरजोर विरोध होना चाहिये ।
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