Sunday, October 9, 2016

सिर्फ वेतन भत्तों की लड़ाई यही वरन विभाग बचाने की भी लड़ाई है - सुरेश यादव रतलाम

 सुरेश यादव रतलाम - कल दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपार्ट के अनुसार प्रदेश के 10  हजार संविदा कर्मचारियों की छंटनी ( सरकार की तरफ से पैसो की कमी या कुछ वजह बता कर सेवा समाप्त करना) कर दी गयी है । इसमें में से  चार हजार  तो सीर्फ स्वास्थ्य विभाग के संविदा कर्मचारी है ,जो ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत काम कर रहे थे । इसी प्रकार अगस्त माह में प्रदेश की लगभग पाँच  हजार नर्स ,ANM  और  MPW .( बहुउद्देशिय स्वास्थ्य कार्यकर्ता ) को 60 वर्ष की आयु पूर्ण करने के चलते अचानक सेवा निवृत्ति  कर दिया गया । जबकि  सेवा शर्तो में सेवा निवृत्ति की आयु 65 वर्ष थी ,लेकिन एक नया आदेश जारी कर  पाँच  हजार कर्मचारियों को अचानक सेवा निवृत्ती दे दि गयी ।
        कुल मिलाकर के  स्वास्थ्य विभाग के 9000 कर्मचारियों को दबे पांव घर भेज दिया और कंही कोई हलचल , विरोध के स्वर नजर नहीं आये ,जानते है क्यों क्योकि सावस्थ्य सेवाओं को सरकार द्वारा अपनी नीतियो द्वारा पहले बदनाम किया गया फिर बर्बाद कर दिया गया और अब बंद करने की कागार पर ले जाकर ,कर्मचारियों की छंटनी  प्रारंभ कर दी गयी  । जैसे की रोडवेज को बंद कर दिया गया था । असलियत यह है कि प्रदेश में अब 9 नए  मेडिकल कॉलेज खुल रहे है सभी PPP  मॉडल पर खुल रहे है । पिछले दरवाजे से पूंजीवादियो की दखल  और दबे पांव निजीकरण । आप जानते है ,सावस्थ्य विभाग के नो हजार कर्मचारियों को एक दम से घर भेज दिया जाता है और कंही कोई विरोध के स्वर नहीं सुनाई देते  क्यों ,क्योकि समाज मुंह मोड़ चूका है । सावस्थ्य सेवाओं को  ,सरकार ने इतना बदनाम कर के रख दिया है ।
        इसकी एक वजह यह भी रही की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारी संगठन अपने वेतन और सेवा शर्तों की बात तो करते रहे लेकिन समाज को यह बताने में असफल रहे की दूर दराज के गावो में एक ANM और MPW  की स्वास्थ्य सेवाओं में  क्या भूमिका है।  और दूसरी वजह उन्होने अपने विभाग पर हो रहे निजीकरण के हमले को लेकर कभी मुद्दा नहीं बनाया ।
          मुझे याद है में सविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की हड़ताल में गया था पास में ही ANM और MPW  की हड़ताल भी हो रही थी दोनों टेंट पास पास ही लगे हुए थे । मेने दोनों जगह अपने संबोधन में कहा था कि " आप अपने वेतन भत्तों के लिए तो लड़ रहे है लेकिन सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य को निजी हाथों में देने का सैद्धान्तिक निर्णय ले चुकी है। (अलीराजपुर जिले में सावस्थ्य सेवाओं को  निजी हाथो में सौंप दिया गया था  )  मैंने कहा था कि हमें मिलकर लड़ाई लड़नी चाहिए ,हमारी सेवा में भी 25 प्रतिशत बच्चों  को निजी विद्यालय में भेज कर क धीमें जहर की तरह निजीकरण की शुरुवात कर दी  है ,जो हमारे विभाग की जड़ो खोखला कर रहा है (छात्रों की दर्ज संख्या में कमी ) ।  मैंने कहा था कि शिक्षा और स्वास्थ्य तो आम नागरिक का मौलिक अधिकार होना चाहिए और यदि सिस्टम में  कंही कोई  बिमारी है तो ,उसका इलाज किया जाना चहिये ,प्रत्येक बिमारी का इलाज निजीकरण तो नहीं है।  क्या एक व्यापारी  बिना लाभ के कोई सेवा देगा ? क्या यह सम्भव है ,की दूरस्थ अंचल में  कोई व्यापारी ANM  बहनों की तरह या MPW भाइयो की तरह  सेवा देगा ? उसका उद्देश्य तो अपना व्यापर बढ़ाना होगा । मैंने कहा था की जब हमारी नोकरी बचेगी तभी तो हम वेतन भत्तों की बात करेगे ,इस लिए समाज को साथ लाओ ।उसे अपने मोल का अंदाजा  करवाओ  "
           साथियो बात हमारे विभाग की भी । क्या आप जानते है शिक्षणिक सत्र 2015-16 में और वर्तमान सत्र में लगभग 2500 शालाऐं  (5000 शिक्षक) कम दर्ज संख्या के कारण बंद कर के पास की शालाओं  में मर्ज कर दि गई   ?  इसके अतिरिक्त प्राथमिक शालाओं के लगभग 10 हजार शिक्षक अभी होने वाले यूक्तियुक्तकरण मे अतिशेष होने वाले  हैं , इस प्रकार प्राथमिक शालाओं के कुल 15 हजार शिक्षक अतिशेष हो जाएंगे ,जबकि रिक्त स्थान लगभग 5000 ही बचे हैं (हमारी भी अचानक से छंटनी  हो जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ) ।  एक अन्य खतरा जो अभी हम तक नहीं पहुंचा है वह है ।माध्यमिक शालाओं  की नविन पद संरचना जिसके चलते 2 तिहाई शालाओं पर एक शिक्षकीय शाला  होने का खतरा मंडराने लगा है ।
           सरकार ने अपनी नीतियों के द्वारा  पहले प्राथमिक शालाओं से आमजन का मोह भंग किया , अब धीमे धीमे बंद भी कर दिया ,क्या कंही किसी गाँव में विद्यालय बंद होने पर आमजन का विरोध नजर आया ?  अब इस प्रकार नई पद संरचना के कारण माध्यमिक शालाओे को एक शिक्षकीय कर के विद्यार्थियों को शालाओ से दूर किया जाएगा ।
          साथियो अब बात हामारे वेतन भत्तों की भी कर ली जाये । कल ही एक समाचार आया की 1 जनवरी 2016 के बाद अध्यापक बने साथियो को 6 टे वेतन का लाभ नहीं मिलेगा । वैसे यह संभव तो नहीं है लेकिन जब सरकार शिक्षा विभाग को बर्बाद करने का ठान ही चुकी है तो ,कब क्या कर दे कह नहीं सकते । इस लिये आप हम सब मिल कर ईस लड़ाई को लडे ,क्योकि अब लड़ाई  सिर्फ वेतन भत्तों की लड़ाई यही वरन विभाग बचाने की भी लड़ाई है। यदि विभाग और हमारी नोकरी बचेगी तभी तो हम वेतन भत्तों की बात कर पायेगें। यह लड़ाई हमारी आने वाली पीढ़ियों के अधिकार की लड़ायी है क्योकि शिक्षा विभाग ही तो सबसे अधिक रोजगार सृजन वाला  विभाग है । हमारे कई  साथी इस विषय पर भी गहन चिंतन मनन कर रहेै हैं  और मुद्दे आप तक पंहुचा रहे हैं । अभी हमने पहली बार हमारे ज्ञापन में विभाग की व्यस्था में सुधार कें लिए भी मांग की है (  परिवीक्षा में भर्ती आरम्भ की जाए ।  निजीकरण के  प्रयास बन्द किये जावें। पच्चीस प्रतिशत सीटें में शुल्क अशासकीय विद्यालकी द्वारा ही प्रदान किया जाए।   कम दर्ज संख्या के फलस्वरूप बन्द/मर्ज किये जाने के पूर्व उक्त शाला के शिक्षकों को कम से कम , तीन शैक्षणिक वर्षों का समय दर्ज संख्या बढ़ाने हेतु दिया जाये। 5000 तक की आबादी वाले गांव एवं कस्बे में निजी विद्यालय खोलने की अनुमति न दी जावे। माध्यमिक शालाओं में  2010 की पद संरचना लागु की जाए। प्रदेश के विद्यालयों में N C E R T का पाठ्यक्रम लागु किया जाये । ) यह मुद्दे अब आमजन में चर्चा के मुद्दे है । आप सभी साथियो से अनुरोध है कि इस आर पार की नहीं " पार ही पार  "  की लड़ाई को जीतना है । और शिक्षा विभाग में संविलियन करवाना है । एकता बनाये रखें और संघर्ष समिति पर विश्वास कायम रखें । यह हिन्द ,इंकलाब जिंदाबाद। 
याद रखें 
16 अक्टूबर शहडोल
23 अक्टूबर विकासखंड 
06 नवम्बर जिला13 नवम्बर भोपाल

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Sunday, October 9, 2016

सिर्फ वेतन भत्तों की लड़ाई यही वरन विभाग बचाने की भी लड़ाई है - सुरेश यादव रतलाम

 सुरेश यादव रतलाम - कल दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपार्ट के अनुसार प्रदेश के 10  हजार संविदा कर्मचारियों की छंटनी ( सरकार की तरफ से पैसो की कमी या कुछ वजह बता कर सेवा समाप्त करना) कर दी गयी है । इसमें में से  चार हजार  तो सीर्फ स्वास्थ्य विभाग के संविदा कर्मचारी है ,जो ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत काम कर रहे थे । इसी प्रकार अगस्त माह में प्रदेश की लगभग पाँच  हजार नर्स ,ANM  और  MPW .( बहुउद्देशिय स्वास्थ्य कार्यकर्ता ) को 60 वर्ष की आयु पूर्ण करने के चलते अचानक सेवा निवृत्ति  कर दिया गया । जबकि  सेवा शर्तो में सेवा निवृत्ति की आयु 65 वर्ष थी ,लेकिन एक नया आदेश जारी कर  पाँच  हजार कर्मचारियों को अचानक सेवा निवृत्ती दे दि गयी ।
        कुल मिलाकर के  स्वास्थ्य विभाग के 9000 कर्मचारियों को दबे पांव घर भेज दिया और कंही कोई हलचल , विरोध के स्वर नजर नहीं आये ,जानते है क्यों क्योकि सावस्थ्य सेवाओं को सरकार द्वारा अपनी नीतियो द्वारा पहले बदनाम किया गया फिर बर्बाद कर दिया गया और अब बंद करने की कागार पर ले जाकर ,कर्मचारियों की छंटनी  प्रारंभ कर दी गयी  । जैसे की रोडवेज को बंद कर दिया गया था । असलियत यह है कि प्रदेश में अब 9 नए  मेडिकल कॉलेज खुल रहे है सभी PPP  मॉडल पर खुल रहे है । पिछले दरवाजे से पूंजीवादियो की दखल  और दबे पांव निजीकरण । आप जानते है ,सावस्थ्य विभाग के नो हजार कर्मचारियों को एक दम से घर भेज दिया जाता है और कंही कोई विरोध के स्वर नहीं सुनाई देते  क्यों ,क्योकि समाज मुंह मोड़ चूका है । सावस्थ्य सेवाओं को  ,सरकार ने इतना बदनाम कर के रख दिया है ।
        इसकी एक वजह यह भी रही की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारी संगठन अपने वेतन और सेवा शर्तों की बात तो करते रहे लेकिन समाज को यह बताने में असफल रहे की दूर दराज के गावो में एक ANM और MPW  की स्वास्थ्य सेवाओं में  क्या भूमिका है।  और दूसरी वजह उन्होने अपने विभाग पर हो रहे निजीकरण के हमले को लेकर कभी मुद्दा नहीं बनाया ।
          मुझे याद है में सविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की हड़ताल में गया था पास में ही ANM और MPW  की हड़ताल भी हो रही थी दोनों टेंट पास पास ही लगे हुए थे । मेने दोनों जगह अपने संबोधन में कहा था कि " आप अपने वेतन भत्तों के लिए तो लड़ रहे है लेकिन सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य को निजी हाथों में देने का सैद्धान्तिक निर्णय ले चुकी है। (अलीराजपुर जिले में सावस्थ्य सेवाओं को  निजी हाथो में सौंप दिया गया था  )  मैंने कहा था कि हमें मिलकर लड़ाई लड़नी चाहिए ,हमारी सेवा में भी 25 प्रतिशत बच्चों  को निजी विद्यालय में भेज कर क धीमें जहर की तरह निजीकरण की शुरुवात कर दी  है ,जो हमारे विभाग की जड़ो खोखला कर रहा है (छात्रों की दर्ज संख्या में कमी ) ।  मैंने कहा था कि शिक्षा और स्वास्थ्य तो आम नागरिक का मौलिक अधिकार होना चाहिए और यदि सिस्टम में  कंही कोई  बिमारी है तो ,उसका इलाज किया जाना चहिये ,प्रत्येक बिमारी का इलाज निजीकरण तो नहीं है।  क्या एक व्यापारी  बिना लाभ के कोई सेवा देगा ? क्या यह सम्भव है ,की दूरस्थ अंचल में  कोई व्यापारी ANM  बहनों की तरह या MPW भाइयो की तरह  सेवा देगा ? उसका उद्देश्य तो अपना व्यापर बढ़ाना होगा । मैंने कहा था की जब हमारी नोकरी बचेगी तभी तो हम वेतन भत्तों की बात करेगे ,इस लिए समाज को साथ लाओ ।उसे अपने मोल का अंदाजा  करवाओ  "
           साथियो बात हमारे विभाग की भी । क्या आप जानते है शिक्षणिक सत्र 2015-16 में और वर्तमान सत्र में लगभग 2500 शालाऐं  (5000 शिक्षक) कम दर्ज संख्या के कारण बंद कर के पास की शालाओं  में मर्ज कर दि गई   ?  इसके अतिरिक्त प्राथमिक शालाओं के लगभग 10 हजार शिक्षक अभी होने वाले यूक्तियुक्तकरण मे अतिशेष होने वाले  हैं , इस प्रकार प्राथमिक शालाओं के कुल 15 हजार शिक्षक अतिशेष हो जाएंगे ,जबकि रिक्त स्थान लगभग 5000 ही बचे हैं (हमारी भी अचानक से छंटनी  हो जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ) ।  एक अन्य खतरा जो अभी हम तक नहीं पहुंचा है वह है ।माध्यमिक शालाओं  की नविन पद संरचना जिसके चलते 2 तिहाई शालाओं पर एक शिक्षकीय शाला  होने का खतरा मंडराने लगा है ।
           सरकार ने अपनी नीतियों के द्वारा  पहले प्राथमिक शालाओं से आमजन का मोह भंग किया , अब धीमे धीमे बंद भी कर दिया ,क्या कंही किसी गाँव में विद्यालय बंद होने पर आमजन का विरोध नजर आया ?  अब इस प्रकार नई पद संरचना के कारण माध्यमिक शालाओे को एक शिक्षकीय कर के विद्यार्थियों को शालाओ से दूर किया जाएगा ।
          साथियो अब बात हामारे वेतन भत्तों की भी कर ली जाये । कल ही एक समाचार आया की 1 जनवरी 2016 के बाद अध्यापक बने साथियो को 6 टे वेतन का लाभ नहीं मिलेगा । वैसे यह संभव तो नहीं है लेकिन जब सरकार शिक्षा विभाग को बर्बाद करने का ठान ही चुकी है तो ,कब क्या कर दे कह नहीं सकते । इस लिये आप हम सब मिल कर ईस लड़ाई को लडे ,क्योकि अब लड़ाई  सिर्फ वेतन भत्तों की लड़ाई यही वरन विभाग बचाने की भी लड़ाई है। यदि विभाग और हमारी नोकरी बचेगी तभी तो हम वेतन भत्तों की बात कर पायेगें। यह लड़ाई हमारी आने वाली पीढ़ियों के अधिकार की लड़ायी है क्योकि शिक्षा विभाग ही तो सबसे अधिक रोजगार सृजन वाला  विभाग है । हमारे कई  साथी इस विषय पर भी गहन चिंतन मनन कर रहेै हैं  और मुद्दे आप तक पंहुचा रहे हैं । अभी हमने पहली बार हमारे ज्ञापन में विभाग की व्यस्था में सुधार कें लिए भी मांग की है (  परिवीक्षा में भर्ती आरम्भ की जाए ।  निजीकरण के  प्रयास बन्द किये जावें। पच्चीस प्रतिशत सीटें में शुल्क अशासकीय विद्यालकी द्वारा ही प्रदान किया जाए।   कम दर्ज संख्या के फलस्वरूप बन्द/मर्ज किये जाने के पूर्व उक्त शाला के शिक्षकों को कम से कम , तीन शैक्षणिक वर्षों का समय दर्ज संख्या बढ़ाने हेतु दिया जाये। 5000 तक की आबादी वाले गांव एवं कस्बे में निजी विद्यालय खोलने की अनुमति न दी जावे। माध्यमिक शालाओं में  2010 की पद संरचना लागु की जाए। प्रदेश के विद्यालयों में N C E R T का पाठ्यक्रम लागु किया जाये । ) यह मुद्दे अब आमजन में चर्चा के मुद्दे है । आप सभी साथियो से अनुरोध है कि इस आर पार की नहीं " पार ही पार  "  की लड़ाई को जीतना है । और शिक्षा विभाग में संविलियन करवाना है । एकता बनाये रखें और संघर्ष समिति पर विश्वास कायम रखें । यह हिन्द ,इंकलाब जिंदाबाद। 
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16 अक्टूबर शहडोल
23 अक्टूबर विकासखंड 
06 नवम्बर जिला13 नवम्बर भोपाल

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