Saturday, October 1, 2016

1998 के बाद शिक्षा के मायने बदल गये - सचिन गुप्ता

 सचिन गुप्ता -यही वह समय है जब शिक्षक को आम जनता 500-1000 हजार रूपये का मास्टर कहकर पुकारने लगी और पहली बार शिक्षक को उसकी योग्यता से न नवाजकर उसकी तनख्वाह से उसकी सामाजिक और शैक्षणिक क्षमता का आँकलन किया जाने लगा 
         परिणाम हुआ शिक्षक और शिक्षा दोनो का स्तर गिरना ,जहाँ एक ओर शिक्षक अपनी समस्याओ को लेकर धरना प्रदर्शन आंदोलन करने लगा वही दूसरी ओर शिक्षा प्रभावित होने लगी और ऊपर से समय समय पर शासन प्रशासन की दमनकारी जवाबी कार्यवाही ने आग मे घी डालने का काम किया जबकि सरकार को उनकी माँगे पूरी करके शिक्षा की बाधाओ को दूर करने मे अध्यापको का साथ लेना चाहिए था
        वही दूसरी ओर शिक्षक शिक्षक मे क ई मतभेद सामने आने लगे शिक्षक मानसिक रूप से शासन प्रशासन अधिकारी अपने वरिष्ठ नियमित शासकीय शिक्षको के द्वारा उनके व्यंगो का सामना करने के लिए तैयार हो गया
        इतनी समस्याओ के बावजूद भी शैक्षणिक कार्य मे लगा रहा लेकिन समयानुसार उसका शोषण सरकारे करती रही जिसका असर शिक्षा व शिक्षक की पारिवारिक स्थिति पर भी हुआ
लेकिन उम्मीद यही है कि शिक्षक और शिक्षा दोनो की स्थितियाँ जल्द सुधरेगी

( लेखक स्वय अध्यापक  है और यह उनके निजी  विचार हैं " १९९८ के बाद नियुक्त शिक्षको का शिक्षा पर और स्वय उनके जिवन  पर प्रभाव " विषय पर  2 दिवसीय  विमर्श  में सयुक्त रूप से दुसरे  स्थान पर इस रचना को रखा गया )

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Saturday, October 1, 2016

1998 के बाद शिक्षा के मायने बदल गये - सचिन गुप्ता

 सचिन गुप्ता -यही वह समय है जब शिक्षक को आम जनता 500-1000 हजार रूपये का मास्टर कहकर पुकारने लगी और पहली बार शिक्षक को उसकी योग्यता से न नवाजकर उसकी तनख्वाह से उसकी सामाजिक और शैक्षणिक क्षमता का आँकलन किया जाने लगा 
         परिणाम हुआ शिक्षक और शिक्षा दोनो का स्तर गिरना ,जहाँ एक ओर शिक्षक अपनी समस्याओ को लेकर धरना प्रदर्शन आंदोलन करने लगा वही दूसरी ओर शिक्षा प्रभावित होने लगी और ऊपर से समय समय पर शासन प्रशासन की दमनकारी जवाबी कार्यवाही ने आग मे घी डालने का काम किया जबकि सरकार को उनकी माँगे पूरी करके शिक्षा की बाधाओ को दूर करने मे अध्यापको का साथ लेना चाहिए था
        वही दूसरी ओर शिक्षक शिक्षक मे क ई मतभेद सामने आने लगे शिक्षक मानसिक रूप से शासन प्रशासन अधिकारी अपने वरिष्ठ नियमित शासकीय शिक्षको के द्वारा उनके व्यंगो का सामना करने के लिए तैयार हो गया
        इतनी समस्याओ के बावजूद भी शैक्षणिक कार्य मे लगा रहा लेकिन समयानुसार उसका शोषण सरकारे करती रही जिसका असर शिक्षा व शिक्षक की पारिवारिक स्थिति पर भी हुआ
लेकिन उम्मीद यही है कि शिक्षक और शिक्षा दोनो की स्थितियाँ जल्द सुधरेगी

( लेखक स्वय अध्यापक  है और यह उनके निजी  विचार हैं " १९९८ के बाद नियुक्त शिक्षको का शिक्षा पर और स्वय उनके जिवन  पर प्रभाव " विषय पर  2 दिवसीय  विमर्श  में सयुक्त रूप से दुसरे  स्थान पर इस रचना को रखा गया )

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