वासुदेव शर्मा (छिंदवाड़ा) - 18 साल से संघर्ष कर रहे अध्यापक समुदाय के बीच से ऐसी भी आवाजें आ रही हैं कि सालों से होते आ रहे अन्याय को एक-दो दिन में ही समाप्त कराया जा सकता है। इससे एक बात स्पष्ट है कि अध्यापक अन्याय के खिलाफ पूरे जोश एवं जुनून के साथ लडऩा चाहता है और तब तक लडऩा चाहता है जब तक कि जीत हासिल न हो जाए। संघर्ष से जो हासिल होता है, वह जीत ही होती है, इसीलिए आंदोलनों से जीत का विश्वास और भरोसा सही है। लेकिन यहां सवाल यह है कि यह जीत एक दिन में मिलेगी या इसके लिए अनवरत संघर्ष करना होगा। इतना तय है कि शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए लड़ रहा अध्यापक सरकार के हलक से छठवां एवं सातवां वेतनमान जरूर निकाल लाएगा। यह बात दावे से इसीलिए कही जा सकती है कि इस बार अध्यापक जोश, जुनून एवं अनुभव के साथ मैदान में उतरा है।
अध्यापक संघर्ष समिति में आजाद अध्यापक संघ का जोश, राज्य अध्यापक संघ का जुनून और शासकीय अध्यापक संघ, अध्यापक संविदा शिक्षक संघ एवं अध्यापक कांग्रेस का अनुभव समाया हुआ है इसीलिए अध्यापक संघर्ष समिति को जोश, जुनून एवं अनुभव का संगम कहना सही रहेगा। अध्यापक संघर्ष समिति के रूप में तीन लाख अध्यापकों को ऐसा मंच मिला है, जिसका हर पाया इतना मजबूत है कि उसे अब शिवराज सिंह की सरकार हिला नहीं सकती। अध्यापक संघर्ष समिति बनने के बाद एक और अच्छा काम यह हुआ है कि अध्यापकों के आंदोलन का नेतृत्व करने योग्य दूसरी पंक्ति की कतार भी सामने आ गई है, जो इतनी सुलझी हुई है कि वह 18 सितंबर के लक्ष्य को हासिल किए बिना न तो खुद इधर-उधर होगी और न ही किसी को इधर-उधर होने देगी। सोशल मीडिया पर आ रही तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद उसका निष्कर्ष यही निकल रहा है कि अध्यापक शहडोल में सरकार को चेताएगा और भोपाल में उसके सामने सीना तानकर खड़ा नजर आएगा।
18 सितंबर को अध्यापक संघर्ष समिति की घोषणा के वक्त तय किया गया लक्ष्य था सरकार को यह बताना कि प्रदेश का अध्यापक सरकार की तिकड़मों से हारा नहीं है बल्कि पहले से अधिक ऊर्जा के साथ मैदान में आने वाला है। 25 सितंबर को प्रदेश में तिरंगा रैलियों का ऐलान इसी मकसद से किया गया, जो ऐतिहासिक रूप से सफल रहा। तिरंगा रैलियों में अध्यापकों के जोश, जुनून देखने लायक था, यही वजह रही होगी कि अध्यापकों के गुस्से से सरकार डरी भी और उसी दिन विसंगति रहित गणपत्रक जारी करने के संकेत मीडिया के जरिए देकर अध्यापको के गुस्से को थामने की कोशिश भी की गई। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
2 अक्टूबर को भोपाल में अध्यापक संघर्ष समिति अध्यक्षमंडल के सदस्य भरत पटेल, जगदीश यादव, बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राकेश नायक एक साथ बैठे और एक स्वर से ऐलान किया कि सरकार तिकड़मबाजी छोडक़र अध्यापकों की लंबित मांगों का तत्काल निराकरण करे और 25 सितंबर को सौंपे गए 21 सूत्रीय मांगपत्र की मांगों का समाधान करे। जोश, जुनून और अनुभव से तैयार हुई अध्यापक संघर्ष समिति के अध्यक्षमंडल ने उसी दिन तीन लाख अध्यापकों की इच्छा के अनुसार 13 नवंबर को विधानसभा के घेराव की घोषणा की। 16 अक्टूबर को शहडोल में प्रदर्शन कर सरकार को चेतावनी देने, इसके बाद 23 अक्टूबर को ब्लाक स्तर पर धरने, रैलियां, 6 नवंबर को जिला स्तर पर रैली एवं धरने की घोषणा अध्यक्षमंडल के सदस्यों ने एक स्वर से की। 2 अक्टूबर को घोषित हुए इस कार्यक्रम से सरकार चिंतित है, उसकी चिंता इस बात से सामने आ जाती है कि उसने महीनों से लटके गणना पत्रक पर काम करना शुरू कर दिया है हो सकता है शहडोल से पहले वह जारी हो जाए, लेकिन अध्यापक जिस जोश, जुनून और उत्साह से संघर्ष के मैदान में उतरे हैं, उससे इतना स्पष्ट है कि वे सरकार से शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग पर दो टूक बात करने के बाद ही संतुष्ट होंगे। जैसे-जैसे 16 अक्टूबर की तारीख करीब आती जा रही है, वैसे-वैसे अध्यापकों का उत्साह बढ़ता जा रहा है, वे हजारों की संख्या में शहडोल पहुंचने वाले हैं और लाखों की संख्या में पहुंचकर 13 नवंबर का विधानसभा घेराव करेंगे। चूंकि अध्यापक अपने अनुभव से यह समझ चुका है कि बिना लड़े कुछ नहीं मिलने वाला, इसीलिए वह इस बार सिर्फ और सिर्फ लडऩे के लिए एकजुट हुआ है, उसकी यही एकजुटता उसे जीत दिलाएगी, यह भरोसा भी उसे हो चुका है।
अध्यापक संघर्ष समिति में आजाद अध्यापक संघ का जोश, राज्य अध्यापक संघ का जुनून और शासकीय अध्यापक संघ, अध्यापक संविदा शिक्षक संघ एवं अध्यापक कांग्रेस का अनुभव समाया हुआ है इसीलिए अध्यापक संघर्ष समिति को जोश, जुनून एवं अनुभव का संगम कहना सही रहेगा। अध्यापक संघर्ष समिति के रूप में तीन लाख अध्यापकों को ऐसा मंच मिला है, जिसका हर पाया इतना मजबूत है कि उसे अब शिवराज सिंह की सरकार हिला नहीं सकती। अध्यापक संघर्ष समिति बनने के बाद एक और अच्छा काम यह हुआ है कि अध्यापकों के आंदोलन का नेतृत्व करने योग्य दूसरी पंक्ति की कतार भी सामने आ गई है, जो इतनी सुलझी हुई है कि वह 18 सितंबर के लक्ष्य को हासिल किए बिना न तो खुद इधर-उधर होगी और न ही किसी को इधर-उधर होने देगी। सोशल मीडिया पर आ रही तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद उसका निष्कर्ष यही निकल रहा है कि अध्यापक शहडोल में सरकार को चेताएगा और भोपाल में उसके सामने सीना तानकर खड़ा नजर आएगा।
18 सितंबर को अध्यापक संघर्ष समिति की घोषणा के वक्त तय किया गया लक्ष्य था सरकार को यह बताना कि प्रदेश का अध्यापक सरकार की तिकड़मों से हारा नहीं है बल्कि पहले से अधिक ऊर्जा के साथ मैदान में आने वाला है। 25 सितंबर को प्रदेश में तिरंगा रैलियों का ऐलान इसी मकसद से किया गया, जो ऐतिहासिक रूप से सफल रहा। तिरंगा रैलियों में अध्यापकों के जोश, जुनून देखने लायक था, यही वजह रही होगी कि अध्यापकों के गुस्से से सरकार डरी भी और उसी दिन विसंगति रहित गणपत्रक जारी करने के संकेत मीडिया के जरिए देकर अध्यापको के गुस्से को थामने की कोशिश भी की गई। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
2 अक्टूबर को भोपाल में अध्यापक संघर्ष समिति अध्यक्षमंडल के सदस्य भरत पटेल, जगदीश यादव, बृजेश शर्मा, मनोहर दुबे एवं राकेश नायक एक साथ बैठे और एक स्वर से ऐलान किया कि सरकार तिकड़मबाजी छोडक़र अध्यापकों की लंबित मांगों का तत्काल निराकरण करे और 25 सितंबर को सौंपे गए 21 सूत्रीय मांगपत्र की मांगों का समाधान करे। जोश, जुनून और अनुभव से तैयार हुई अध्यापक संघर्ष समिति के अध्यक्षमंडल ने उसी दिन तीन लाख अध्यापकों की इच्छा के अनुसार 13 नवंबर को विधानसभा के घेराव की घोषणा की। 16 अक्टूबर को शहडोल में प्रदर्शन कर सरकार को चेतावनी देने, इसके बाद 23 अक्टूबर को ब्लाक स्तर पर धरने, रैलियां, 6 नवंबर को जिला स्तर पर रैली एवं धरने की घोषणा अध्यक्षमंडल के सदस्यों ने एक स्वर से की। 2 अक्टूबर को घोषित हुए इस कार्यक्रम से सरकार चिंतित है, उसकी चिंता इस बात से सामने आ जाती है कि उसने महीनों से लटके गणना पत्रक पर काम करना शुरू कर दिया है हो सकता है शहडोल से पहले वह जारी हो जाए, लेकिन अध्यापक जिस जोश, जुनून और उत्साह से संघर्ष के मैदान में उतरे हैं, उससे इतना स्पष्ट है कि वे सरकार से शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग पर दो टूक बात करने के बाद ही संतुष्ट होंगे। जैसे-जैसे 16 अक्टूबर की तारीख करीब आती जा रही है, वैसे-वैसे अध्यापकों का उत्साह बढ़ता जा रहा है, वे हजारों की संख्या में शहडोल पहुंचने वाले हैं और लाखों की संख्या में पहुंचकर 13 नवंबर का विधानसभा घेराव करेंगे। चूंकि अध्यापक अपने अनुभव से यह समझ चुका है कि बिना लड़े कुछ नहीं मिलने वाला, इसीलिए वह इस बार सिर्फ और सिर्फ लडऩे के लिए एकजुट हुआ है, उसकी यही एकजुटता उसे जीत दिलाएगी, यह भरोसा भी उसे हो चुका है।
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