Sunday, June 12, 2016

सरकारी विद्यालयों से किनारा करते छात्र !!-राशी राठौर देवास

राशी राठौर देवास-सरकारी प्राथमिक पाठशाला मै छात्रों का आंकड़ा प्रतिवर्ष सिमट रहा है। छात्रों की घटती संख्या से स्कूलो मै तैनात शिक्षको के माथे पर चिंता की लकीरें तन गई है वही विभाग भी इस बात को लेकर चिंतित है की किस प्रकार सरकारी विद्यालयों मै छात्रों की संख्या बढायी जाये।मुफ्त भोजन, दूध, किताबे, गणवेश , साइकिल, छात्रवृति, पुस्तकालय, सुव्यवस्थित भवन, पर्याप्त खेल सामग्री सबकुछ मुफ्त!! उच्चशिक्षित, कुशल व प्रशिक्षित योग्यताधारी शिक्षक जो प्रतिस्पर्धा परीक्षा से निखर कर आये हुऐ शिक्षको द्वारा शिक्षण देने पर भी सरकारी पाठशाला मै घटती छात्रों की संख्या चिंतनीय है। छात्र निजी पाठशाला की और रूख कर रहै है। सरकारी पाठशाला किसी भी मामले मै आज निजी पाठशाला से कम नही है। साधन व गुणवत्ता दोनो मामलो मै निजी पाठशाला के बराबर ही है। किन्तु एक अंतर है वो है माध्यम का। अंग्रेजी माध्यम की सनक इस कदर हम हिन्दी भाषीयो पर हावी है की हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम मै ही शिक्षा दिलवाने की कोशिश करता हे,क्योंकि हिन्दी तो उसे खुद भी आती है।उसके बच्चे ने तो फर्राटेदार अंग्रेजी ही बोलना है। किसी भी सरकारी प्राथमिक पाठशाला के शिक्षक के बच्चे सरकारी प्राथमिक पाठशाला मै शिक्षा ग्रहण नही करते, क्योकी माध्यम अंग्रेजी नही है। निजीक्षैत्र मै भी हिन्दी माध्यम की पाठशाला विलुप्ति की कगार पर है यदि कुछ एक हिन्दी माध्यम की निजीप्राथमिक पाठशाला बची है उनकी वित्तीय स्थिति चिंताजनक है।
       आज अंग्रेजी माध्यम मै शिक्षा के प्रति सनक कही ना कही रोजगार की विवशता से भी जुडी है।एक साधारण नौकरी के लिए भी अंग्रेजी अनिवार्य आवश्यकता है इसकी अनदेखी भी नही कर सकते।अंग्रेजी भाषा,  नौकरी, साक्षात्कार, परीक्षा प्रश्न पत्रो से आगे बढकर दैनिक बोलचाल मै भी अपनी जगह बना चुकी है।
      आज सरकारी पाठशाला से भी आमजन को उसी समसामयिक परिवर्तन की मांग है।समय रहते ये परिवर्तन हो जाये तो बेहतर है क्योंकि अनूकूलन से ही अस्तित्व बना रह सकता है। (लेखिका स्वयं अध्यापक हैं यह इनके निजी विचार हैं।)

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Sunday, June 12, 2016

सरकारी विद्यालयों से किनारा करते छात्र !!-राशी राठौर देवास

राशी राठौर देवास-सरकारी प्राथमिक पाठशाला मै छात्रों का आंकड़ा प्रतिवर्ष सिमट रहा है। छात्रों की घटती संख्या से स्कूलो मै तैनात शिक्षको के माथे पर चिंता की लकीरें तन गई है वही विभाग भी इस बात को लेकर चिंतित है की किस प्रकार सरकारी विद्यालयों मै छात्रों की संख्या बढायी जाये।मुफ्त भोजन, दूध, किताबे, गणवेश , साइकिल, छात्रवृति, पुस्तकालय, सुव्यवस्थित भवन, पर्याप्त खेल सामग्री सबकुछ मुफ्त!! उच्चशिक्षित, कुशल व प्रशिक्षित योग्यताधारी शिक्षक जो प्रतिस्पर्धा परीक्षा से निखर कर आये हुऐ शिक्षको द्वारा शिक्षण देने पर भी सरकारी पाठशाला मै घटती छात्रों की संख्या चिंतनीय है। छात्र निजी पाठशाला की और रूख कर रहै है। सरकारी पाठशाला किसी भी मामले मै आज निजी पाठशाला से कम नही है। साधन व गुणवत्ता दोनो मामलो मै निजी पाठशाला के बराबर ही है। किन्तु एक अंतर है वो है माध्यम का। अंग्रेजी माध्यम की सनक इस कदर हम हिन्दी भाषीयो पर हावी है की हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम मै ही शिक्षा दिलवाने की कोशिश करता हे,क्योंकि हिन्दी तो उसे खुद भी आती है।उसके बच्चे ने तो फर्राटेदार अंग्रेजी ही बोलना है। किसी भी सरकारी प्राथमिक पाठशाला के शिक्षक के बच्चे सरकारी प्राथमिक पाठशाला मै शिक्षा ग्रहण नही करते, क्योकी माध्यम अंग्रेजी नही है। निजीक्षैत्र मै भी हिन्दी माध्यम की पाठशाला विलुप्ति की कगार पर है यदि कुछ एक हिन्दी माध्यम की निजीप्राथमिक पाठशाला बची है उनकी वित्तीय स्थिति चिंताजनक है।
       आज अंग्रेजी माध्यम मै शिक्षा के प्रति सनक कही ना कही रोजगार की विवशता से भी जुडी है।एक साधारण नौकरी के लिए भी अंग्रेजी अनिवार्य आवश्यकता है इसकी अनदेखी भी नही कर सकते।अंग्रेजी भाषा,  नौकरी, साक्षात्कार, परीक्षा प्रश्न पत्रो से आगे बढकर दैनिक बोलचाल मै भी अपनी जगह बना चुकी है।
      आज सरकारी पाठशाला से भी आमजन को उसी समसामयिक परिवर्तन की मांग है।समय रहते ये परिवर्तन हो जाये तो बेहतर है क्योंकि अनूकूलन से ही अस्तित्व बना रह सकता है। (लेखिका स्वयं अध्यापक हैं यह इनके निजी विचार हैं।)

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