Saturday, June 11, 2016

अध्यापक हित में एक मुरली को साधो तो सब समाधान हो जाय- अरविन्द रावल. झाबुआ

 अरविन्द रावल. झाबुआ- एक बहुत ही शानदार युक्ति हे कि एक साधे तो सब सध जाय, सब साधे तो एक न सधे कोई। इस युक्ति के बाद मेरे लाखो अध्यापक साथी समझ चुके होंगे की इसका अर्थ क्या हे ? जब तक हम एक व्यक्ति के नेतृत्त्व में एकजुट एकमत नही हो जाते तब तक हमारी समस्याएं यथावत ही रहने वाली हे। हम अलग अलग नेतृत्त्व में बटकर कभी भी सरकार से अपनी मांगें नही मंगवा सकते हे। सरकार तो चाहती ही हे कि अध्यापको के रोज टुकड़े हो ताकि आपस में ही उलझ कर इनकी शक्ति क्षीण हो जाये। सरकार को यह भी पता हे जिस दिन प्रदेश का अध्यापक एकजुट हो गया तो फिर उसकी समस्याओ का निदान होने में  24 घण्टे भी नही लगेंगे। प्रदेश सरकार और राजनितिक दल अध्यापको के आसरे एक बहुत बड़ा वोट बैंक देख रहे है। सबका यही सोचना हे कि जब तक अध्यापको की समस्याएं रहेगी तब तक सत्ता स्वार्थ के समीकरण इनके आसरे कायम रहेगे। इसलिए कोई भी सरकार एकदम से एक ही बार में अध्यापको की मांगो का निराकरण नही कर रही हे। पिछले दो दशक में देखा जाये तो राजनेताओ ने अपने तुच्छ स्वार्थ के चलते अध्यापको में आपसी कलह और गुटबाज़ी करवाकर अध्यापको का भला करने की बजाय अपना ही स्वार्थ ज्यादा सिद्ध किया हे।पिछले एक दशक से ज्यादा समय से प्रायः यह देखने में आ रहा हे की प्रदेश का अध्यापक गुटबाजी में उलझ कर अपना आर्थिक नुकसान तो स्वयं कर रहा हे । गुटबाजी में बटकर अध्यापक यह तक भूल गया की उसकी असली लड़ाई तो सरकार से हे न की अपने ही लोगो से हे। लेकिन विडम्बना यह हे की आज का अध्यापक सरकार से लड़ने की बजाय अपनों से लड़ने में ज्यादा रूचि दिखा रहा हे। सरकार अब तक अपने मकसद में इसलिए कायम हे की प्रदेश का अध्यापक आपसी कलह में ही व्यस्त हे। प्रदेश का अध्यापक आज टुकड़ो में बटकर अपनों से ही लड़ने में व्यस्त हे और उसकी समस्याओ का यहा अम्बार लगा हुआ हे। सिर्फ छटा वेतनमान मिल जाने से कोई अध्यापको की लड़ाई खत्म नही होने वाली हे बल्कि अभी तो बड़ी बड़ी समस्याओ जेसे शिक्षा विभाग में सविलियन,  नियमित पेंशन और रिटायरमेंट के बाद अपने हक का पैसे लेने तक के लिए हमे सरकार से लड़ना होगा। अगर ऐसे ही कलह और गुटबाज़ी के हालात रहे तो हजारो संग़ठन और नेताओ के बनाने के बाद भी अध्यापको की समस्याएं जस की तस ही रहेगी ?प्रदेश के अध्यापक यदि अपना आर्थिक हित चाहते हे तो वे आपसी राग द्वेष से ऊपर उठकर सोचे की उसका हित आपस में लड़कर हे या सरकार से लड़कर पूरा होगा। आज के राजनीतिक परिदृश्य में अध्यापको की सारी समस्याओ का समाधान सिर्फ मुख्यमंत्रीजी के हस्तक्षेप के बिना संभव हे ही नही और मोजुदा परिदृश्य में अध्यापको के पास मुरलीधर पाटीदार को छोड़ कोई भी ऐसा नेता हे नही जो मुख्यमंत्रीजी से चाहे जब सीधे मिल कर संवाद कर अध्यापको की मांगो का निराकरण करवा सकता हो। इस सत्य को सभी अध्यापक और अध्यापको के नेता भली भाँति जानते हे किन्तु स्वार्थ की चाह में स्वीकारते नही हे। जब तक इस सत्य को हम सभी एक स्वर में स्वीकारेंगे नही तब तक सरकार से समाधान की आस रखना भी बेमानी लगती हे।आज प्रदेश के कर्मचारी इतिहास में सबसे चर्चित कोई नाम हे तो वह राज्य अध्यापक संघ के मुरलीधर पाटीदार का हे जिसने दो दशक पहले 500 रुपये पाने वाले शिक्षाकर्मी के हक की लड़ाई लड़कर समूची सरकार को ही स्तब्ध कर दिया था। प्रदेश की कोई भी सरकार यह नही चाहती थी की अध्यापको की समस्याओ का निराकरण हो। शासन शुरू से ही विसंगतियो में अध्यापको को उलझाकर अपना उल्लू ही सीधा करते आई हे। पूर्व सरकारो ने इस अध्यापक नेता का प्रभाव कम करने के लिए संघ में फुट डलवाकर उसके एक दो नही दर्जनभर अलग अलग टुकड़े करवाये किन्तु मुरलीधर का वजूद ख़त्म होने की बजाय और बढ़ता ही गया हे जो आज सब देख भी रहे हे।यदि हम सभी का उद्देश्य निस्वार्थ रूप से अध्यापक हित ही हे तो फिर क्यों नही हम एकजुट होकर मुरलीधर पाटीदार को ही अपना नेता स्वीकार करके उनसे सरकार से मांगो का शीघ्र निराकरण करवाये। हम क्यों अलग अलग गुटो में बटकर समय और शक्ति का हास् कर रहे हे ? हम क्यों प्रभावहीन अलग अलग अध्यापक नेताओ को साधने के चक्कर में अपना वक्त बर्बाद कर रहे हे ? प्रदेश के अध्यापको का उद्देश्य यदि अपने अपने संघ के नेता को विधायक या सासंद बनाना हे तो फिर खूब आपस में एक दूसरे को गालिया दे और टुकड़ो में बटे रहे, और यदि प्रदेश के अध्यापको का उद्देश्य सिर्फ अपना आर्थिक भला करना हे तो सबको साधना छोड़कर केवल मुरली को साधे तो बिना आंदोलन के भी हम अपनी समस्याओ का निराकरण सरकार से करवा सकते हे। मेरा अध्यापको के सभी संघो के नेताओ और प्रदेश के लाखो अध्यापको से निवेदन है की अध्यापक हित एकजुट होकर मुरलीधर पाटीदार को ही इतनी ताकत प्रदान करे की वह सीधे प्रदेश के मुखिया से शीघ्र मांगो का निराकरण करवाये।मुरलीधर पाटीदार को गाली देने से या आपस में ही लड़ने से कुछ भी हासिल नही होगा।पाटीदार का लोहा सरकार और विपक्ष भी मानती हे इसलिए तो आज विधायक बनने के बाद अकेले मुरलीधर ने अध्यापक हित में इतने प्रश्न अपनी सरकार के मंत्रियो से पूछे हे की दो दशक के अध्यापको के इतिहास में नही पूछे गए हे। अध्यापको के प्रति निस्वार्थ भाव से काम करने की लगन के चलते उनकी ही पार्टी के लोग कभी कभी पाटीदार को अपना कम विपक्ष का विधायक ज्यादा समझने लगते हे। आज भी सरकार और उसके मुख्यमंत्री मुरली को विधायक बन जाने के बाद भी अध्यापको के नेता के रूप में ही ज्यादा देखती हे। विड़ंगतिपूर्ण छटे वेतनमान के गणना पत्रक को  एक ही मुलाकत में मुख्यमंत्रीजी से मिलकर स्थगित करवाना यह मुरली के बुते की और उसके वजूद की ही बात थी। जो लोग अध्यापको को गुमराह करके खुद को अध्यापको का नेता बनकर मुरलीधार पाटीदार पर अध्यापको को बेचने का आरोप लगाते हे गालिया देते हे हम ऐसे तमाम् लोगो से आज भी कहते हे की ठोस प्रमाण सिद्ध किये बिना पाटीदार को कोसना बन्द करे।मुरलीधर पाटीदार विधायक के रूप में  सरकार के अंदर आज हे यह प्रदेश के लाखो अध्यापको के लिए बड़े गर्व की बात हे। प्रदेश के अध्यापको की यह कामना भी हे की मुरलीधर पाटीदार निकट भविष्य में अध्यापक हित हेतु सरकार में मंत्री भी बने।  अध्यापको के मुद्दे को कल तक सदन में उठाने वाला एक भी विधायक नही था। सदन में अध्यापको के मुद्दे को सरकार के सम्मुख लाने हेतु कितनी गरज की हे विधायको की इसे शायद टीनशेड पर भुखे बैठने वाला अध्यापक कभी भूल नही सकता हे। प्रदेश के लाखो अध्यापको को यदि सरकार से अपनी आर्थिक जंग जितना हे तो टुकड़ो में बटे हुए संघो को मुरली के नेतृत्त्व में एक कर एकजुट होना होगा। मुरलीधर पाटीदार आज भी अध्यापको के हित के लिए अपनी विधायकी को भी दाव पर लगाने की बात करते हे। आज भी वे हर मंच से अपने को अध्यापक नेता पहले कहलाना पसन्द करते हे। प्रदेश के अध्यापको से एक बार फिर निवेदन हे कि टुकड़ो में बटकर अलग अलग नेताओ को साधने के चक्कर को छोड़कर हमे अध्यापक हित में एकजुट होकर एक नेतृत्त्व को ही साधना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में मुरलीधर पाटीदार से बेहतर नेतृत्त्व अध्यापको के पास हे ही नही। अतः प्रदेश के अध्यापको को अध्यापक हित में मुरलीधर पाटीदार के विधायक बनने का उनकी शक्ति का फायदा उठाकर उनके नेतृत्त्व में सरकार से अपना आर्थिक भला करवाना चाहिए।
 (यह लेखक की निजी राय है)         

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Saturday, June 11, 2016

अध्यापक हित में एक मुरली को साधो तो सब समाधान हो जाय- अरविन्द रावल. झाबुआ

 अरविन्द रावल. झाबुआ- एक बहुत ही शानदार युक्ति हे कि एक साधे तो सब सध जाय, सब साधे तो एक न सधे कोई। इस युक्ति के बाद मेरे लाखो अध्यापक साथी समझ चुके होंगे की इसका अर्थ क्या हे ? जब तक हम एक व्यक्ति के नेतृत्त्व में एकजुट एकमत नही हो जाते तब तक हमारी समस्याएं यथावत ही रहने वाली हे। हम अलग अलग नेतृत्त्व में बटकर कभी भी सरकार से अपनी मांगें नही मंगवा सकते हे। सरकार तो चाहती ही हे कि अध्यापको के रोज टुकड़े हो ताकि आपस में ही उलझ कर इनकी शक्ति क्षीण हो जाये। सरकार को यह भी पता हे जिस दिन प्रदेश का अध्यापक एकजुट हो गया तो फिर उसकी समस्याओ का निदान होने में  24 घण्टे भी नही लगेंगे। प्रदेश सरकार और राजनितिक दल अध्यापको के आसरे एक बहुत बड़ा वोट बैंक देख रहे है। सबका यही सोचना हे कि जब तक अध्यापको की समस्याएं रहेगी तब तक सत्ता स्वार्थ के समीकरण इनके आसरे कायम रहेगे। इसलिए कोई भी सरकार एकदम से एक ही बार में अध्यापको की मांगो का निराकरण नही कर रही हे। पिछले दो दशक में देखा जाये तो राजनेताओ ने अपने तुच्छ स्वार्थ के चलते अध्यापको में आपसी कलह और गुटबाज़ी करवाकर अध्यापको का भला करने की बजाय अपना ही स्वार्थ ज्यादा सिद्ध किया हे।पिछले एक दशक से ज्यादा समय से प्रायः यह देखने में आ रहा हे की प्रदेश का अध्यापक गुटबाजी में उलझ कर अपना आर्थिक नुकसान तो स्वयं कर रहा हे । गुटबाजी में बटकर अध्यापक यह तक भूल गया की उसकी असली लड़ाई तो सरकार से हे न की अपने ही लोगो से हे। लेकिन विडम्बना यह हे की आज का अध्यापक सरकार से लड़ने की बजाय अपनों से लड़ने में ज्यादा रूचि दिखा रहा हे। सरकार अब तक अपने मकसद में इसलिए कायम हे की प्रदेश का अध्यापक आपसी कलह में ही व्यस्त हे। प्रदेश का अध्यापक आज टुकड़ो में बटकर अपनों से ही लड़ने में व्यस्त हे और उसकी समस्याओ का यहा अम्बार लगा हुआ हे। सिर्फ छटा वेतनमान मिल जाने से कोई अध्यापको की लड़ाई खत्म नही होने वाली हे बल्कि अभी तो बड़ी बड़ी समस्याओ जेसे शिक्षा विभाग में सविलियन,  नियमित पेंशन और रिटायरमेंट के बाद अपने हक का पैसे लेने तक के लिए हमे सरकार से लड़ना होगा। अगर ऐसे ही कलह और गुटबाज़ी के हालात रहे तो हजारो संग़ठन और नेताओ के बनाने के बाद भी अध्यापको की समस्याएं जस की तस ही रहेगी ?प्रदेश के अध्यापक यदि अपना आर्थिक हित चाहते हे तो वे आपसी राग द्वेष से ऊपर उठकर सोचे की उसका हित आपस में लड़कर हे या सरकार से लड़कर पूरा होगा। आज के राजनीतिक परिदृश्य में अध्यापको की सारी समस्याओ का समाधान सिर्फ मुख्यमंत्रीजी के हस्तक्षेप के बिना संभव हे ही नही और मोजुदा परिदृश्य में अध्यापको के पास मुरलीधर पाटीदार को छोड़ कोई भी ऐसा नेता हे नही जो मुख्यमंत्रीजी से चाहे जब सीधे मिल कर संवाद कर अध्यापको की मांगो का निराकरण करवा सकता हो। इस सत्य को सभी अध्यापक और अध्यापको के नेता भली भाँति जानते हे किन्तु स्वार्थ की चाह में स्वीकारते नही हे। जब तक इस सत्य को हम सभी एक स्वर में स्वीकारेंगे नही तब तक सरकार से समाधान की आस रखना भी बेमानी लगती हे।आज प्रदेश के कर्मचारी इतिहास में सबसे चर्चित कोई नाम हे तो वह राज्य अध्यापक संघ के मुरलीधर पाटीदार का हे जिसने दो दशक पहले 500 रुपये पाने वाले शिक्षाकर्मी के हक की लड़ाई लड़कर समूची सरकार को ही स्तब्ध कर दिया था। प्रदेश की कोई भी सरकार यह नही चाहती थी की अध्यापको की समस्याओ का निराकरण हो। शासन शुरू से ही विसंगतियो में अध्यापको को उलझाकर अपना उल्लू ही सीधा करते आई हे। पूर्व सरकारो ने इस अध्यापक नेता का प्रभाव कम करने के लिए संघ में फुट डलवाकर उसके एक दो नही दर्जनभर अलग अलग टुकड़े करवाये किन्तु मुरलीधर का वजूद ख़त्म होने की बजाय और बढ़ता ही गया हे जो आज सब देख भी रहे हे।यदि हम सभी का उद्देश्य निस्वार्थ रूप से अध्यापक हित ही हे तो फिर क्यों नही हम एकजुट होकर मुरलीधर पाटीदार को ही अपना नेता स्वीकार करके उनसे सरकार से मांगो का शीघ्र निराकरण करवाये। हम क्यों अलग अलग गुटो में बटकर समय और शक्ति का हास् कर रहे हे ? हम क्यों प्रभावहीन अलग अलग अध्यापक नेताओ को साधने के चक्कर में अपना वक्त बर्बाद कर रहे हे ? प्रदेश के अध्यापको का उद्देश्य यदि अपने अपने संघ के नेता को विधायक या सासंद बनाना हे तो फिर खूब आपस में एक दूसरे को गालिया दे और टुकड़ो में बटे रहे, और यदि प्रदेश के अध्यापको का उद्देश्य सिर्फ अपना आर्थिक भला करना हे तो सबको साधना छोड़कर केवल मुरली को साधे तो बिना आंदोलन के भी हम अपनी समस्याओ का निराकरण सरकार से करवा सकते हे। मेरा अध्यापको के सभी संघो के नेताओ और प्रदेश के लाखो अध्यापको से निवेदन है की अध्यापक हित एकजुट होकर मुरलीधर पाटीदार को ही इतनी ताकत प्रदान करे की वह सीधे प्रदेश के मुखिया से शीघ्र मांगो का निराकरण करवाये।मुरलीधर पाटीदार को गाली देने से या आपस में ही लड़ने से कुछ भी हासिल नही होगा।पाटीदार का लोहा सरकार और विपक्ष भी मानती हे इसलिए तो आज विधायक बनने के बाद अकेले मुरलीधर ने अध्यापक हित में इतने प्रश्न अपनी सरकार के मंत्रियो से पूछे हे की दो दशक के अध्यापको के इतिहास में नही पूछे गए हे। अध्यापको के प्रति निस्वार्थ भाव से काम करने की लगन के चलते उनकी ही पार्टी के लोग कभी कभी पाटीदार को अपना कम विपक्ष का विधायक ज्यादा समझने लगते हे। आज भी सरकार और उसके मुख्यमंत्री मुरली को विधायक बन जाने के बाद भी अध्यापको के नेता के रूप में ही ज्यादा देखती हे। विड़ंगतिपूर्ण छटे वेतनमान के गणना पत्रक को  एक ही मुलाकत में मुख्यमंत्रीजी से मिलकर स्थगित करवाना यह मुरली के बुते की और उसके वजूद की ही बात थी। जो लोग अध्यापको को गुमराह करके खुद को अध्यापको का नेता बनकर मुरलीधार पाटीदार पर अध्यापको को बेचने का आरोप लगाते हे गालिया देते हे हम ऐसे तमाम् लोगो से आज भी कहते हे की ठोस प्रमाण सिद्ध किये बिना पाटीदार को कोसना बन्द करे।मुरलीधर पाटीदार विधायक के रूप में  सरकार के अंदर आज हे यह प्रदेश के लाखो अध्यापको के लिए बड़े गर्व की बात हे। प्रदेश के अध्यापको की यह कामना भी हे की मुरलीधर पाटीदार निकट भविष्य में अध्यापक हित हेतु सरकार में मंत्री भी बने।  अध्यापको के मुद्दे को कल तक सदन में उठाने वाला एक भी विधायक नही था। सदन में अध्यापको के मुद्दे को सरकार के सम्मुख लाने हेतु कितनी गरज की हे विधायको की इसे शायद टीनशेड पर भुखे बैठने वाला अध्यापक कभी भूल नही सकता हे। प्रदेश के लाखो अध्यापको को यदि सरकार से अपनी आर्थिक जंग जितना हे तो टुकड़ो में बटे हुए संघो को मुरली के नेतृत्त्व में एक कर एकजुट होना होगा। मुरलीधर पाटीदार आज भी अध्यापको के हित के लिए अपनी विधायकी को भी दाव पर लगाने की बात करते हे। आज भी वे हर मंच से अपने को अध्यापक नेता पहले कहलाना पसन्द करते हे। प्रदेश के अध्यापको से एक बार फिर निवेदन हे कि टुकड़ो में बटकर अलग अलग नेताओ को साधने के चक्कर को छोड़कर हमे अध्यापक हित में एकजुट होकर एक नेतृत्त्व को ही साधना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में मुरलीधर पाटीदार से बेहतर नेतृत्त्व अध्यापको के पास हे ही नही। अतः प्रदेश के अध्यापको को अध्यापक हित में मुरलीधर पाटीदार के विधायक बनने का उनकी शक्ति का फायदा उठाकर उनके नेतृत्त्व में सरकार से अपना आर्थिक भला करवाना चाहिए।
 (यह लेखक की निजी राय है)         

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