Monday, May 16, 2016

अध्यापकों की परेशानी का सबब :- डी के सिंगौर मण्डला

अध्यापकों की परेशानी का सबब  पाटीदार  विधायक क्या बन गये कई अध्यापक नेताओं ने विधायक बनने के सपने संजो लिए है और वे अध्यापक हितों की बजाये राजनैतिक स्वार्थ साधने में ज्यादा ध्यान दे रहे है  पर वे यह नही देख रहे कि पाटीदार यूँ ही विधायक नही बन गये हैं उनकी संघर्ष गाथा जाने बगैर उन जैसा लाभ लेने की सोच रहे है आज के शॉर्टकट फेसबुकिया नेता न तो कभी पाटीदार जैसा लाभ ले पायंगे और न ही अध्यापक हित में कुछ कर पाएंगे् पाटीदार जी ने उस दौर से संघर्ष शुरू किया जब लोगों के पास घरों में लैंडलाइन फोन तक की  सुविधा भी नही थी भोपाल  जाने के लिए किराये के पैसे भी नही होते थे तब इस आदमी ने महीनों परिवार से दूर रहकर मप्र छत्तीसगढ़ सहित ट्रेन के जनरल डिब्बे मै बैठकर ब्लाक ब्लाक  दौरे किये अधिकारीयों और नेताओं की झिडकिया सही १२-१२ दिनों तक कई बार आमरण अनशन किया लाठियां खाई जेल गये कइयों मामले अभी भी उनके उपर चल रहे है विपरीत परिस्थतियों में अध्यापकों का स्तर शून्य से उठाकर यहाँ तक लाया २० वर्ष के कठिन संघर्ष के बाद वे विधायक बने है पर अब कुछ अध्यापक नेता उनकी तर्ज पर राजनैतिक  लाभ लेने के  लिए बेहद उतावले हो गये है और व्हाट्स एप और फेसबुक  को बढ़िया और शॉर्टकट जरिया मानकर दुसरे संगठन और अध्यापक नेताओं को गलत साबित करके अपने आप को उपुयुक्त और श्रेष्ठ बताने में दिन रात लगे हुए है कई तो जो आम अध्यापक थे वे तक संघ के पदाधिकारी की दौड़ में सिर्फ  इसलिए कूद पड़े है कि पहले पाटीदार बन जाये और फिर...| यह स्तिथि ही अध्यापक हितों के लिए घातक बनी हुई है और अध्यापकों की परेशानी का असल सबब यही है पाटीदार जी का विधायक बनने का जो खामियाजा है वह वो नही है जो सोच रहे है असल खामियाजा यही है कि उनके विधायक बनने के बाद कई में राजनैतिक महत्वकांक्षा प्रबल हो गई है और आज जो अध्यापक अपने सामने संकट महसूस कर रहे हैं उसका कारण यही है कि आज उनके बीच विश्वसनीय और समर्पित नेता नहीं है |  अब हो रहे आंदोलनों और बैठकों में अध्यापकों की कम उपस्तिथि का यही बड़ा कारण है कि अध्यापक नेता दिन रात दुसरे संगठन और नेताओं की बुराई कर करके संगठन  और अध्यापक नेताओं के प्रति अविश्वास भरा माहौल पैदा कर रहे है| जो बीज वो बो रहे है वो अध्यापकों हितों में कांटे बनकर उग रहे हैं| अब सच कहा  जाये तो सोचने की बारी आम अध्यापक की ही है अब उसे चाहिए की वह ऐसें हर अध्यापक नेता का बहिष्कार करे जो अध्यापक हित में तो कुछ नहीं करते सिर्फ दुसरे संगठन और नेताओं की बुराई में दिन रात लगे रहते हैऔर लड़ने वालों के खिलाफ अविश्वास पैदा करता रहते है | और इनको सबक सिखाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इन्हें सोशल मीडिया पर फॉलो न किया जाये|  जो जमीन से जुड़कर संघर्ष कर रहे है उन्हें फॉलो करे और उनका हौसला बढ़ाएं| थोड़ी बहुत कमी सभी में रहती है उसे न कुरेदे आज  हमें न आजाद मिलेगा और न भगत सिंह| हमारी नैया पार यही लालू मोदी और राहुल जैसे नेता ही लगायेंगे| हकीकत यही है इसे समझे | धन्यबाद|
डी के सिंगौर मण्डला
लेखक के निजी विचार हैं।


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Monday, May 16, 2016

अध्यापकों की परेशानी का सबब :- डी के सिंगौर मण्डला

अध्यापकों की परेशानी का सबब  पाटीदार  विधायक क्या बन गये कई अध्यापक नेताओं ने विधायक बनने के सपने संजो लिए है और वे अध्यापक हितों की बजाये राजनैतिक स्वार्थ साधने में ज्यादा ध्यान दे रहे है  पर वे यह नही देख रहे कि पाटीदार यूँ ही विधायक नही बन गये हैं उनकी संघर्ष गाथा जाने बगैर उन जैसा लाभ लेने की सोच रहे है आज के शॉर्टकट फेसबुकिया नेता न तो कभी पाटीदार जैसा लाभ ले पायंगे और न ही अध्यापक हित में कुछ कर पाएंगे् पाटीदार जी ने उस दौर से संघर्ष शुरू किया जब लोगों के पास घरों में लैंडलाइन फोन तक की  सुविधा भी नही थी भोपाल  जाने के लिए किराये के पैसे भी नही होते थे तब इस आदमी ने महीनों परिवार से दूर रहकर मप्र छत्तीसगढ़ सहित ट्रेन के जनरल डिब्बे मै बैठकर ब्लाक ब्लाक  दौरे किये अधिकारीयों और नेताओं की झिडकिया सही १२-१२ दिनों तक कई बार आमरण अनशन किया लाठियां खाई जेल गये कइयों मामले अभी भी उनके उपर चल रहे है विपरीत परिस्थतियों में अध्यापकों का स्तर शून्य से उठाकर यहाँ तक लाया २० वर्ष के कठिन संघर्ष के बाद वे विधायक बने है पर अब कुछ अध्यापक नेता उनकी तर्ज पर राजनैतिक  लाभ लेने के  लिए बेहद उतावले हो गये है और व्हाट्स एप और फेसबुक  को बढ़िया और शॉर्टकट जरिया मानकर दुसरे संगठन और अध्यापक नेताओं को गलत साबित करके अपने आप को उपुयुक्त और श्रेष्ठ बताने में दिन रात लगे हुए है कई तो जो आम अध्यापक थे वे तक संघ के पदाधिकारी की दौड़ में सिर्फ  इसलिए कूद पड़े है कि पहले पाटीदार बन जाये और फिर...| यह स्तिथि ही अध्यापक हितों के लिए घातक बनी हुई है और अध्यापकों की परेशानी का असल सबब यही है पाटीदार जी का विधायक बनने का जो खामियाजा है वह वो नही है जो सोच रहे है असल खामियाजा यही है कि उनके विधायक बनने के बाद कई में राजनैतिक महत्वकांक्षा प्रबल हो गई है और आज जो अध्यापक अपने सामने संकट महसूस कर रहे हैं उसका कारण यही है कि आज उनके बीच विश्वसनीय और समर्पित नेता नहीं है |  अब हो रहे आंदोलनों और बैठकों में अध्यापकों की कम उपस्तिथि का यही बड़ा कारण है कि अध्यापक नेता दिन रात दुसरे संगठन और नेताओं की बुराई कर करके संगठन  और अध्यापक नेताओं के प्रति अविश्वास भरा माहौल पैदा कर रहे है| जो बीज वो बो रहे है वो अध्यापकों हितों में कांटे बनकर उग रहे हैं| अब सच कहा  जाये तो सोचने की बारी आम अध्यापक की ही है अब उसे चाहिए की वह ऐसें हर अध्यापक नेता का बहिष्कार करे जो अध्यापक हित में तो कुछ नहीं करते सिर्फ दुसरे संगठन और नेताओं की बुराई में दिन रात लगे रहते हैऔर लड़ने वालों के खिलाफ अविश्वास पैदा करता रहते है | और इनको सबक सिखाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इन्हें सोशल मीडिया पर फॉलो न किया जाये|  जो जमीन से जुड़कर संघर्ष कर रहे है उन्हें फॉलो करे और उनका हौसला बढ़ाएं| थोड़ी बहुत कमी सभी में रहती है उसे न कुरेदे आज  हमें न आजाद मिलेगा और न भगत सिंह| हमारी नैया पार यही लालू मोदी और राहुल जैसे नेता ही लगायेंगे| हकीकत यही है इसे समझे | धन्यबाद|
डी के सिंगौर मण्डला
लेखक के निजी विचार हैं।


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