Monday, May 16, 2016

घरेलू बजट यानी जीने की आसान राह :- वसीम अहमद


     सरकारी बजट का शोर शराबा खत्म हुआ। कुछ कमियां रह गईं, जिसके लिए अगले बजट का इंतजार करना होगा। यहां गौर करने वाली बात है कि सरकारी बजट के मामले में अबकी बार नहीं तो अगली बार की नीति चल सकती है, लेकिन पारिवारिक बजट में इसकी गुंजाइश नहीं होती, लिहाजा इसकी तैयारी होनी चाहिए। 
        ध्यान रहे  किसी भी बजट के दो हिस्से होते हैं- आय और खर्च। पारिवारिक हिसाब-किताब का बजट भी एस ही होता है । हां, एक अंतर जरूर होता है- सरकारी बजट में भारी-भरकम घाटे का जिक्र होता है। इसके विपरीत पारिवारिक बजट में कर्ज का ज्यादा बोझ नहीं होता और हमें बचत करनी होती  है ।
      असलियत में , बजट भविष्य की आय और खर्चों की एक योजना भर है, जिसका इस्तेमाल खर्च और बचत के दिशा-निर्देश के तौर पर किया जा सकता है। हालांकि हममें से कई अपने-अपने खर्चों को व्यवस्थित करने के लिए बजट बनाते हैं।लेकिन  हमारे आसपास ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो नियमित तौर पर क्षमता से अधिक खर्च करते हैं। आय के हिसाब से सीमित दायरे में खर्च करने का सबसे अच्छा तरीका अपने खर्चों को गहराई से समझना और यह पक्का करना है कि हर हाल में आमदनी से कम खर्च हो। अच्छे मासिक बजट से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि बिलों का भुगतान समय पर किया जा रहा है, आकस्मिक जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त रकम सुरक्षित है और तमाम  मासिक वित्तीय लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं।
जरूरत की सभी जानकारियां अक्सर पहले से मौजूद होती हैं। अपना बजट दुरुस्त करने का काम आसानी से शुरू किया जा सकता है।
खर्चों का हिसाब लगाएं
खर्चों का हिसाब लगाने का सबसे अच्छा तरीका यह पता करना होता है कि आप आम तौर पर एक माह में कितनी रकम खर्च करते हैं। खर्चों का ब्योरा तैयार करने के लिए आप इन्हें दो हिस्सों में बांट सकते हैं। मसलन, निश्चित और कभी-कभार होने वाले खर्च। निश्चित खर्च उन्हें कहते हैं, जिनमें हर माह बदलाव नहीं होता। मकान का किराया या मकान की किश्त और इंश्योरेंस के प्रीमियम ऐसे ही खर्च हैं।
    इसके उलट कम-ज्यादा (फ्लेक्सिबल) होने वाले खर्च की रकम हर माह समान नहीं होती। खाने-पीने की चीजों और मनोरंजन पर होने वाले खर्च इस श्रेणी में आते हैं। यदि एक या एक से अधिक जरूरतों के लिए खर्च की रकम हर माह ज्यादा घटती-बढ़ती है, तो ऐसे में तीन महीनों के कुल खर्चों का औसत निकाल लें।
आय व खर्च में अंतर का पता करें
हर माह होने वाली आय और खर्चों का हिसाब लगाने के बाद आमदनी की कुल रकम में से खर्च की राशि घटा लें। ऐसा करने पर यदि वाकई
थोड़ी रकम बचती है, तो आप बधाई के पात्र हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि आपकी कुल आय मुकम्मल खर्चों के मुकाबले ज्यादा है, लेकिन यदि खर्च की कुल रकम पूरी आमदनी से ज्यादा बैठती है, तो यह चिंता वाली बात होगी। ऐसे में आपको खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी, ताकि यह पक्का किया जा सके कि आप आय की सीमा में ही जीवनयापन कर रहे हैं। याद रखें आय से अधिक खर्च कर्ज में डालता है।
भारी पड़ेगी अनुशासनहीनता
कुल मिलाकर अब आपने अपना बजट बना लिया। अब अगला चरण बजट के साथ अनुशासन बरतना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके खर्च, आमदनी और बचत का निश्चित अनुपात बना रहे। यदि कभी लगे कि आप बजट के मुताबिक खर्चों के मामले में अनुशासन नहीं बरत पा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि उसके ताने-बाने में पर्याप्त लचीला रुख नहीं अपनाया गया है। ऐसे में आपको बजट की समीक्षा करनी पड़ेगी। इसमें थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन अंततः इससे संतुलन बनेगा और जीवन सरल हो जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया उबाऊ और नीरस लग सकती है, लेकिन अनुभव दर्शाते हैं कि जिन लोगों ने बजट बनाया और पूरी ईमानदारी से उस पर अमल किया, उन्होंने बड़ी आसानी से वित्तीय लक्ष्य हासिल कर लिए।
वर्षों से  सरकार का बजट घाटे में रहा है। इसके विपरीत पारिवारिक बजट हमेशा सरप्लस यानी खर्च से ज्यादा आय वाला होना चाहिए और इसके साथ कभी समझौता नहीं किया जा सकता। पक्का करें कि निजी बजट 'अबकी बार' सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए, न कि सरकार की तरह 'अगली बार' सिद्धांत पर। ध्यान रखें कि सरकार इंतजार कर सकती है, । लेकिन, अबकी निजी वित्तीय जरूरतों के मामले में इंतजार की गुंजाइश बिलकुल नहीं होती।
  लेखक श्री वसीम अहमद ( रतलाम ) वित्तीय प्रबंधन  के जानकार है व  AMFI प्रमाणित वित्त  सलाहकार हैं 
अगले अंक में हम वित्तय लक्ष्य  निर्धारण  और प्रबंधन पर जानकारी देंगे। 

  



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Monday, May 16, 2016

घरेलू बजट यानी जीने की आसान राह :- वसीम अहमद


     सरकारी बजट का शोर शराबा खत्म हुआ। कुछ कमियां रह गईं, जिसके लिए अगले बजट का इंतजार करना होगा। यहां गौर करने वाली बात है कि सरकारी बजट के मामले में अबकी बार नहीं तो अगली बार की नीति चल सकती है, लेकिन पारिवारिक बजट में इसकी गुंजाइश नहीं होती, लिहाजा इसकी तैयारी होनी चाहिए। 
        ध्यान रहे  किसी भी बजट के दो हिस्से होते हैं- आय और खर्च। पारिवारिक हिसाब-किताब का बजट भी एस ही होता है । हां, एक अंतर जरूर होता है- सरकारी बजट में भारी-भरकम घाटे का जिक्र होता है। इसके विपरीत पारिवारिक बजट में कर्ज का ज्यादा बोझ नहीं होता और हमें बचत करनी होती  है ।
      असलियत में , बजट भविष्य की आय और खर्चों की एक योजना भर है, जिसका इस्तेमाल खर्च और बचत के दिशा-निर्देश के तौर पर किया जा सकता है। हालांकि हममें से कई अपने-अपने खर्चों को व्यवस्थित करने के लिए बजट बनाते हैं।लेकिन  हमारे आसपास ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो नियमित तौर पर क्षमता से अधिक खर्च करते हैं। आय के हिसाब से सीमित दायरे में खर्च करने का सबसे अच्छा तरीका अपने खर्चों को गहराई से समझना और यह पक्का करना है कि हर हाल में आमदनी से कम खर्च हो। अच्छे मासिक बजट से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि बिलों का भुगतान समय पर किया जा रहा है, आकस्मिक जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त रकम सुरक्षित है और तमाम  मासिक वित्तीय लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं।
जरूरत की सभी जानकारियां अक्सर पहले से मौजूद होती हैं। अपना बजट दुरुस्त करने का काम आसानी से शुरू किया जा सकता है।
खर्चों का हिसाब लगाएं
खर्चों का हिसाब लगाने का सबसे अच्छा तरीका यह पता करना होता है कि आप आम तौर पर एक माह में कितनी रकम खर्च करते हैं। खर्चों का ब्योरा तैयार करने के लिए आप इन्हें दो हिस्सों में बांट सकते हैं। मसलन, निश्चित और कभी-कभार होने वाले खर्च। निश्चित खर्च उन्हें कहते हैं, जिनमें हर माह बदलाव नहीं होता। मकान का किराया या मकान की किश्त और इंश्योरेंस के प्रीमियम ऐसे ही खर्च हैं।
    इसके उलट कम-ज्यादा (फ्लेक्सिबल) होने वाले खर्च की रकम हर माह समान नहीं होती। खाने-पीने की चीजों और मनोरंजन पर होने वाले खर्च इस श्रेणी में आते हैं। यदि एक या एक से अधिक जरूरतों के लिए खर्च की रकम हर माह ज्यादा घटती-बढ़ती है, तो ऐसे में तीन महीनों के कुल खर्चों का औसत निकाल लें।
आय व खर्च में अंतर का पता करें
हर माह होने वाली आय और खर्चों का हिसाब लगाने के बाद आमदनी की कुल रकम में से खर्च की राशि घटा लें। ऐसा करने पर यदि वाकई
थोड़ी रकम बचती है, तो आप बधाई के पात्र हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि आपकी कुल आय मुकम्मल खर्चों के मुकाबले ज्यादा है, लेकिन यदि खर्च की कुल रकम पूरी आमदनी से ज्यादा बैठती है, तो यह चिंता वाली बात होगी। ऐसे में आपको खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी, ताकि यह पक्का किया जा सके कि आप आय की सीमा में ही जीवनयापन कर रहे हैं। याद रखें आय से अधिक खर्च कर्ज में डालता है।
भारी पड़ेगी अनुशासनहीनता
कुल मिलाकर अब आपने अपना बजट बना लिया। अब अगला चरण बजट के साथ अनुशासन बरतना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके खर्च, आमदनी और बचत का निश्चित अनुपात बना रहे। यदि कभी लगे कि आप बजट के मुताबिक खर्चों के मामले में अनुशासन नहीं बरत पा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि उसके ताने-बाने में पर्याप्त लचीला रुख नहीं अपनाया गया है। ऐसे में आपको बजट की समीक्षा करनी पड़ेगी। इसमें थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन अंततः इससे संतुलन बनेगा और जीवन सरल हो जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया उबाऊ और नीरस लग सकती है, लेकिन अनुभव दर्शाते हैं कि जिन लोगों ने बजट बनाया और पूरी ईमानदारी से उस पर अमल किया, उन्होंने बड़ी आसानी से वित्तीय लक्ष्य हासिल कर लिए।
वर्षों से  सरकार का बजट घाटे में रहा है। इसके विपरीत पारिवारिक बजट हमेशा सरप्लस यानी खर्च से ज्यादा आय वाला होना चाहिए और इसके साथ कभी समझौता नहीं किया जा सकता। पक्का करें कि निजी बजट 'अबकी बार' सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए, न कि सरकार की तरह 'अगली बार' सिद्धांत पर। ध्यान रखें कि सरकार इंतजार कर सकती है, । लेकिन, अबकी निजी वित्तीय जरूरतों के मामले में इंतजार की गुंजाइश बिलकुल नहीं होती।
  लेखक श्री वसीम अहमद ( रतलाम ) वित्तीय प्रबंधन  के जानकार है व  AMFI प्रमाणित वित्त  सलाहकार हैं 
अगले अंक में हम वित्तय लक्ष्य  निर्धारण  और प्रबंधन पर जानकारी देंगे। 

  



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