Friday, April 15, 2016

कामोजर शासन की गलती और निशाने पर अध्यापक नेता

में विगत 2009 से फेसबुक ,के माध्यम से सोश्यल मिडिया पर सक्रीय हूँ । समाजिक और राजनेतिक विषयो लिखता हूँ ।  वर्ष 2003 से सेवा  में  आते ही संविदा शिक्षक और अध्यापक  संवर्ग की समस्याओ को हल करवाने कें लिये स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर के आंदोलनों का हिस्सा रहा हूँ । 2012-13 के अंदोलन के दौरान में फेसबुक पर भी अध्यापक हित के लिए  ,"राज्य अध्यापक संघ रतलाम " की फेसबुक आई डी बना उस पर काम करने लगा ।

स्वाभाविक रूप से आंदोलनों की भूमिका तैयार करने और सुचानाओ के आदान प्रदान करने के लिए  सोश्यल मिडिया एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है । लेकिन इसी माध्यम से अध्यापको के एक अन्य पहलु से भी रूबरू हुआ हूँ । हम अध्यापक, आज तक की सभी असफलताओं और वर्तमान की लेट लतीफी का ठीकरा अपने ही नेतृव पर फोड़ते है जबकि सफलताओ का पूरा श्रेय सराकर और उसके नेतृत्व को देने लगते  है ,लेकिन होना इसके उलट चहिये । कुछ टिपण्णीयाँ तो शिक्षकीय मर्यादा और गरिमा को भी तार तार कर देती है ।

मैं उन विषयो पर बात नहीं करते हुवे वास्तविक विषय पर आता हूँ । साथियों आप सभी को जानकारी है ,की अध्यापक आंदोलन एक दिन की संपत्ति नहीं  है । 18 वर्षो की कठोर तपस्या है ,अध्यापक ने शून्य से शिखर का सफर तय किया है ,इसके लिए अध्यापक नेतृत्व को सम्पूर्ण श्रेय जाता है ।वंही आज तक के लंबित विषयो कें लिये सरकार की जिमेदारी है ।

मेरा मानना है की सोश्यल मिडिया पर प्रदेश के अध्यापको में से  99 प्रतिशत अध्यापक ऐसे  है जो ,अध्यापको की लंबीत समस्याओ  कें लिय  अध्यापको के नेतृत्व को ही जिम्मेदार मानते है । और यदि वे किसी और की जिम्मेदार  मानते भी है तो उनका आक्रोश अफसरों तक  जा कर ठहर जाता है लेकिन समस्याओ के लिए  सरकार और उसके नेतृत्व को इक्का दुक्का लोग ही जिमेदार मानते हैं।

यही नहीं यदि हम या हमारे कोई साथी  सरकार को जिम्मेदार ठहरा दे ,तो हमारे अध्यापक साथी  उनकी ही धज्जियां उडा देते हैं।

साथियो में आप का ध्यान ,स्वास्थ्य मंत्री गौरीशंकर  शेजवार के हालिया बयान की तरफ ले जाता हूँ जिसमे उन्होंने कहा था की ,"डॉक्टर और अफसर मेरी नहीं सुनते।" इसके पहले भी सरकार के कई मंत्री  और लगभग हर विधायक अफसरों द्वारा अपनी अवेहलना की शिकायत ,सार्वजनिक मंचो पर कर चुके है ,जब सरकार के मंत्रीयो की यह पीड़ा है ,तो अध्यापक नेताओ की कौन सुनेगा ।

यहि नहीं प्रदेश में वर्तमान सरकार के गठन को लगभग ढाई वर्ष हो गए है  और इस आधे कार्यकाल के बाद भी , मंत्रियों के एक तिहाई पद रिक्त है ।  यह सब सरकार की असफलता की ही पहचान है ,इतना सब देखने के बाद भी हमारे  अध्यापक  साथी अपने नेताओ को ही जिम्मेदार मानेंगे ? अब आप ही सोचिये इस सरकार में हमारे मंत्रियों की नहीं चलती जो की विभाग के संवेधानिक मुखिया होते है ,तो अध्यापक नेताओ की क्या बिसात ।

वैसे इन सब हालात के जिम्मेदार भी हम ही  हैं । हमारे अध्यापको का रवैया सत्तारूढ़ दल के निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह है ,जो सरकार के नेतृत्व के बारे में एक भी शब्द नहीं सुनना चाहते ,तो सरकार हमारी समस्याओ की और ध्यान क्यों देगी । उसे तो बिना खर्च किये इतने निष्ठवान कार्यकर्ता मिल गए ।

साथियों यदि हम अपनी समस्याओ का हल करवाना चाहते है तो हर मंच पर सरकार और उसकी कर्मचारी विरोधी नीतियों की आलोचना करे। इस प्रकार सरकार तक भी यह सन्देश जायेगा  की अध्यापक वर्ग हम से असन्तुष्ट है ।
फिर देखिये समस्याओ का समाधान किस प्रकार होता है ।

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Friday, April 15, 2016

कामोजर शासन की गलती और निशाने पर अध्यापक नेता

में विगत 2009 से फेसबुक ,के माध्यम से सोश्यल मिडिया पर सक्रीय हूँ । समाजिक और राजनेतिक विषयो लिखता हूँ ।  वर्ष 2003 से सेवा  में  आते ही संविदा शिक्षक और अध्यापक  संवर्ग की समस्याओ को हल करवाने कें लिये स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर के आंदोलनों का हिस्सा रहा हूँ । 2012-13 के अंदोलन के दौरान में फेसबुक पर भी अध्यापक हित के लिए  ,"राज्य अध्यापक संघ रतलाम " की फेसबुक आई डी बना उस पर काम करने लगा ।

स्वाभाविक रूप से आंदोलनों की भूमिका तैयार करने और सुचानाओ के आदान प्रदान करने के लिए  सोश्यल मिडिया एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है । लेकिन इसी माध्यम से अध्यापको के एक अन्य पहलु से भी रूबरू हुआ हूँ । हम अध्यापक, आज तक की सभी असफलताओं और वर्तमान की लेट लतीफी का ठीकरा अपने ही नेतृव पर फोड़ते है जबकि सफलताओ का पूरा श्रेय सराकर और उसके नेतृत्व को देने लगते  है ,लेकिन होना इसके उलट चहिये । कुछ टिपण्णीयाँ तो शिक्षकीय मर्यादा और गरिमा को भी तार तार कर देती है ।

मैं उन विषयो पर बात नहीं करते हुवे वास्तविक विषय पर आता हूँ । साथियों आप सभी को जानकारी है ,की अध्यापक आंदोलन एक दिन की संपत्ति नहीं  है । 18 वर्षो की कठोर तपस्या है ,अध्यापक ने शून्य से शिखर का सफर तय किया है ,इसके लिए अध्यापक नेतृत्व को सम्पूर्ण श्रेय जाता है ।वंही आज तक के लंबित विषयो कें लिये सरकार की जिमेदारी है ।

मेरा मानना है की सोश्यल मिडिया पर प्रदेश के अध्यापको में से  99 प्रतिशत अध्यापक ऐसे  है जो ,अध्यापको की लंबीत समस्याओ  कें लिय  अध्यापको के नेतृत्व को ही जिम्मेदार मानते है । और यदि वे किसी और की जिम्मेदार  मानते भी है तो उनका आक्रोश अफसरों तक  जा कर ठहर जाता है लेकिन समस्याओ के लिए  सरकार और उसके नेतृत्व को इक्का दुक्का लोग ही जिमेदार मानते हैं।

यही नहीं यदि हम या हमारे कोई साथी  सरकार को जिम्मेदार ठहरा दे ,तो हमारे अध्यापक साथी  उनकी ही धज्जियां उडा देते हैं।

साथियो में आप का ध्यान ,स्वास्थ्य मंत्री गौरीशंकर  शेजवार के हालिया बयान की तरफ ले जाता हूँ जिसमे उन्होंने कहा था की ,"डॉक्टर और अफसर मेरी नहीं सुनते।" इसके पहले भी सरकार के कई मंत्री  और लगभग हर विधायक अफसरों द्वारा अपनी अवेहलना की शिकायत ,सार्वजनिक मंचो पर कर चुके है ,जब सरकार के मंत्रीयो की यह पीड़ा है ,तो अध्यापक नेताओ की कौन सुनेगा ।

यहि नहीं प्रदेश में वर्तमान सरकार के गठन को लगभग ढाई वर्ष हो गए है  और इस आधे कार्यकाल के बाद भी , मंत्रियों के एक तिहाई पद रिक्त है ।  यह सब सरकार की असफलता की ही पहचान है ,इतना सब देखने के बाद भी हमारे  अध्यापक  साथी अपने नेताओ को ही जिम्मेदार मानेंगे ? अब आप ही सोचिये इस सरकार में हमारे मंत्रियों की नहीं चलती जो की विभाग के संवेधानिक मुखिया होते है ,तो अध्यापक नेताओ की क्या बिसात ।

वैसे इन सब हालात के जिम्मेदार भी हम ही  हैं । हमारे अध्यापको का रवैया सत्तारूढ़ दल के निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह है ,जो सरकार के नेतृत्व के बारे में एक भी शब्द नहीं सुनना चाहते ,तो सरकार हमारी समस्याओ की और ध्यान क्यों देगी । उसे तो बिना खर्च किये इतने निष्ठवान कार्यकर्ता मिल गए ।

साथियों यदि हम अपनी समस्याओ का हल करवाना चाहते है तो हर मंच पर सरकार और उसकी कर्मचारी विरोधी नीतियों की आलोचना करे। इस प्रकार सरकार तक भी यह सन्देश जायेगा  की अध्यापक वर्ग हम से असन्तुष्ट है ।
फिर देखिये समस्याओ का समाधान किस प्रकार होता है ।

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