Friday, April 15, 2016

अध्यापक साथियो जाग जाओ :-रिज़वान खान

सम्मानीय अध्यापक साथियो
जाग जाओ नही तो हमेशा के लिए सुला दिए जाओगे.........

सोशल मीडिया पर चल रहे विसंगति प्रसंग से पिछले दिनों दूर रहा किन्तु जहाँ बात पापी पेट की होती है वहां ज्यादा समय तक उदासीन नहो रहा जा सकता क्योकि......मर के भी चैन ना पायेगा तो जाएगा कहाँ...............

आज जब सर्व संघ यह मान चुके है की वेतन में महा विसंगति अवश्यम्भावी है ( कुछ भाई लोग विसंगति के जनक अधिकारी महोदय से मिलकर निराश हो लौटे है ) ऐसी स्तिथि में अब आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. यह भी सत्य है की आंदोलन हमेशा अंतिम विकल्प होना चाहिए किन्तु आंदोलित मनोस्तिथी में हमेशा रहना चाहिए. अध्यापक वर्षो से इसी आंदोलित मनोस्तिथि में रहा है. इसी मनोस्तिथी, आक्रमक तेवरो और एक बड़बोले नेता का कैरियर खत्म करने और दूसरे को डिमोशन करके मंत्री बंनाने का तगमा लिए होने के कारण शासन हम पर हाथ डालने से पहले सोचता अवश्य है. पिछली बार लाल घाटी में उसने प्रयास किया मगर जो फजीहत हुई उससे वह अभी तक उबर नही पाया है. 

अध्यापको शिक्षाकर्मियों को आज तक जो भी मिला अपने आंदोलनों और संख्या बल के कारण ही मिला. यही संख्या बल है जो माननीय सी एम् को मुम्बई से प्रेस कांफ्रेंस करना पड़ता है. जिनके पास संख्या बल नही है उन संगठनो की पिछले दिनों हुई हड़ताल के बाद उनकी नौकरी पर ही ख़तरा मंडरा रहा है. स्वास्थ्य विभाग में कार्य का मूल्यांकन और पद समाप्त किये जा रहे है दूसरी ओर पटवारीयो के तो अधिकार में ही कटौती कर दी गई है. त्री स्तरीय पंचायत व्यवस्था का तो एक स्तर ही समाप्त करने की बात चल रही है. किन्तु संख्या बल तभो तक प्रभावी होता है जब तक बल में एकता रहे............. "अगर टूट गए बिखर गए तो कुचल दिए जाओगे". मप्र का कर्मचारी इतिहास है की 1990 के बाद से जब सामाजिक वर्गो के नाम पर कर्मचारी संघ बने तो उसके बाद से आज तक कर्मचारी कोई व्यापक आंदोलन करके सरकार से अपनी मांगे नही मंगवा सके. आज भो वही स्तिथी है की उनको हड़ताल के पहले आपस में विशवास बनाने के लिए भो मेहनत करनी पड़ रही है.

इतना सब लिखने का आशय यह है की अपनी डफली अपना राग वाले संघ नेता समझ ले की इस बार यदि विसंगति पूर्ण वेतनमान को कमजोर आंदोलन या फूट के चलते अध्यापको ने स्वीकार कर लिया तो आने वाले समय में उनकी हैसियत भी चार लोगो को लेकर ज्ञापन देने वाले नेताओ से ज्यादा नही बचेगी. अध्यापक लगातार 17 वर्षो से लड़ते लड़ते अब बेजार होने लगा है. सत्रह से पन्द्रह साल पुराने पचास के पेटे में जा रहे विसंगति से सर्वाधिक प्रभावित लोग अब थकने लगे है और नए लोगो पर विसंगति का असर कम है. इसलिए इस छठे वेतन का निर्धारण यदि नियमित कर्मचारियों के समान नियमानुसार नही हुआ तो आगे सातवे वेतन तक पहुंचते पहुंचते कुछ हाथ नही लगेगा. 

अब समय आ गया हे की हम पुरानी बाते भूल कर सत्रह वर्ष पुराने आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचाए. किसने कब आंदोलन तोड़ा.......किसने छोड़ा......... किसने कथित धोखा दिया इन बातो में उलझे तो कुछ नही बनेगा उलटे जग हंसाइ होगी. सब का सहयोग लेना होगा. वर्तमान में मोर्चा अच्छा काम कर रहा है किन्तु मेरा व्यक्तिगत मत है की रास और आस के बिना ना प्रभावी आंदोलन हो सकेगा ना ही वैसा राजनैतिक दबाव बनेगा जिसके बल पर हम मांगे मनवाते रहे है. अतः सभी नए पुराने जुझारू जांबाजो को साथ आकर तत्काल रणनीति बनाने की आवश्यकता है. आपका साथी रिज़वान खान
    लेखक बैतुल जिले में खेल प्रशिक्षक है ,उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार है। 

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Friday, April 15, 2016

अध्यापक साथियो जाग जाओ :-रिज़वान खान

सम्मानीय अध्यापक साथियो
जाग जाओ नही तो हमेशा के लिए सुला दिए जाओगे.........

सोशल मीडिया पर चल रहे विसंगति प्रसंग से पिछले दिनों दूर रहा किन्तु जहाँ बात पापी पेट की होती है वहां ज्यादा समय तक उदासीन नहो रहा जा सकता क्योकि......मर के भी चैन ना पायेगा तो जाएगा कहाँ...............

आज जब सर्व संघ यह मान चुके है की वेतन में महा विसंगति अवश्यम्भावी है ( कुछ भाई लोग विसंगति के जनक अधिकारी महोदय से मिलकर निराश हो लौटे है ) ऐसी स्तिथि में अब आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. यह भी सत्य है की आंदोलन हमेशा अंतिम विकल्प होना चाहिए किन्तु आंदोलित मनोस्तिथी में हमेशा रहना चाहिए. अध्यापक वर्षो से इसी आंदोलित मनोस्तिथि में रहा है. इसी मनोस्तिथी, आक्रमक तेवरो और एक बड़बोले नेता का कैरियर खत्म करने और दूसरे को डिमोशन करके मंत्री बंनाने का तगमा लिए होने के कारण शासन हम पर हाथ डालने से पहले सोचता अवश्य है. पिछली बार लाल घाटी में उसने प्रयास किया मगर जो फजीहत हुई उससे वह अभी तक उबर नही पाया है. 

अध्यापको शिक्षाकर्मियों को आज तक जो भी मिला अपने आंदोलनों और संख्या बल के कारण ही मिला. यही संख्या बल है जो माननीय सी एम् को मुम्बई से प्रेस कांफ्रेंस करना पड़ता है. जिनके पास संख्या बल नही है उन संगठनो की पिछले दिनों हुई हड़ताल के बाद उनकी नौकरी पर ही ख़तरा मंडरा रहा है. स्वास्थ्य विभाग में कार्य का मूल्यांकन और पद समाप्त किये जा रहे है दूसरी ओर पटवारीयो के तो अधिकार में ही कटौती कर दी गई है. त्री स्तरीय पंचायत व्यवस्था का तो एक स्तर ही समाप्त करने की बात चल रही है. किन्तु संख्या बल तभो तक प्रभावी होता है जब तक बल में एकता रहे............. "अगर टूट गए बिखर गए तो कुचल दिए जाओगे". मप्र का कर्मचारी इतिहास है की 1990 के बाद से जब सामाजिक वर्गो के नाम पर कर्मचारी संघ बने तो उसके बाद से आज तक कर्मचारी कोई व्यापक आंदोलन करके सरकार से अपनी मांगे नही मंगवा सके. आज भो वही स्तिथी है की उनको हड़ताल के पहले आपस में विशवास बनाने के लिए भो मेहनत करनी पड़ रही है.

इतना सब लिखने का आशय यह है की अपनी डफली अपना राग वाले संघ नेता समझ ले की इस बार यदि विसंगति पूर्ण वेतनमान को कमजोर आंदोलन या फूट के चलते अध्यापको ने स्वीकार कर लिया तो आने वाले समय में उनकी हैसियत भी चार लोगो को लेकर ज्ञापन देने वाले नेताओ से ज्यादा नही बचेगी. अध्यापक लगातार 17 वर्षो से लड़ते लड़ते अब बेजार होने लगा है. सत्रह से पन्द्रह साल पुराने पचास के पेटे में जा रहे विसंगति से सर्वाधिक प्रभावित लोग अब थकने लगे है और नए लोगो पर विसंगति का असर कम है. इसलिए इस छठे वेतन का निर्धारण यदि नियमित कर्मचारियों के समान नियमानुसार नही हुआ तो आगे सातवे वेतन तक पहुंचते पहुंचते कुछ हाथ नही लगेगा. 

अब समय आ गया हे की हम पुरानी बाते भूल कर सत्रह वर्ष पुराने आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचाए. किसने कब आंदोलन तोड़ा.......किसने छोड़ा......... किसने कथित धोखा दिया इन बातो में उलझे तो कुछ नही बनेगा उलटे जग हंसाइ होगी. सब का सहयोग लेना होगा. वर्तमान में मोर्चा अच्छा काम कर रहा है किन्तु मेरा व्यक्तिगत मत है की रास और आस के बिना ना प्रभावी आंदोलन हो सकेगा ना ही वैसा राजनैतिक दबाव बनेगा जिसके बल पर हम मांगे मनवाते रहे है. अतः सभी नए पुराने जुझारू जांबाजो को साथ आकर तत्काल रणनीति बनाने की आवश्यकता है. आपका साथी रिज़वान खान
    लेखक बैतुल जिले में खेल प्रशिक्षक है ,उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार है। 

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