सरकारी शाला से उत्कृष्ट परिणाम की अपेक्षा उचित है। प्रशासनिक अधिकारी और मैदानी स्तर के शिक्षक मिलजुलकर ही इस लक्ष्य को हासिल कर सकते है। शिक्षको की कमी से जूझ रही सरकारी शाला की स्थिति समाचार पत्रों के माध्यम से समय समय पर उजागर होती रही है। 70 हजार अतिथी शिक्षक प्रदेश की विभिन्न शालाओं की शैक्षणिक व्यवस्था संभाल रहे है।ये अतिथी शिक्षक टीचींग स्कील की कोई प्रतिस्पर्धा परीक्षा उत्तीर्ण नही है। गणित और अंग्रेजी विषय के हालात तो इतने खस्ता है की ग्रामीण क्षेत्रों के परमानेंट टीचर भी अल्फाबेट लिख दे तो वो चार लाइन मै फिक्स ना हो पाये। ग्रामीण क्षेत्रों मै शहर से जाने वाले अतिथी शिक्षक होते है जो मात्र बोनस मार्क और परमानेंट होने की चाह मै ही काम धका रहे है।प्रभारी का भी इन पर कोई जोर नहीं होता है। इनका सीधा कहना है 150 रू तो मिलते है जिसमै से 50 रू किराये मै लग जाते। 100 रू मै कुछ नही होता। अतिथी शिक्षक की वैकल्पिक व्यवस्था, विगत कई वर्षों से स्थायी हो गयी है। उत्कृष्ट परिणाम लेना हांडी मै चाॅवल पकाने का काम नहीं है की एक चाॅवल पक गया तो सब पक गये।प्रशासन को समझना होगा की शाला स्तर पर उत्कृष्ट परिणाम नही आने के कारण भिन्न-भिन्न हो सकते है। एजुकेशन पोर्टल पर विद्यार्थी की जानकारी और हितग्राही को लाभ दिलाने का जिन्न तो पूरे सत्र प्रभारी का पीछा नही छोडता। समग्र आई डी के डिलीट और गलत होने के खेल मै प्रभारी सत्र भर फुटबॉल बनकर कभी पंचायत, कभी जनपद कभी कियोस्क की किक खाते खाते गंभीर अवस्था मै पहुच जाते है। जब तक शाला मै दक्ष और गैरशैक्षणिक कार्य से मुक्त शिक्षक ना होंगे तब चाहै जितने प्रयास किये जाये सफल नही हो पायेगें।
सरकार को प्रयोग करके देखना चाहिए कुछ शाला का चयन कर एक या दो वर्ष के लिए उन्हें गैरशैक्षणिक कार्यो से मुक्त रखे।निश्चित ही परिणाम और ज्यादा निखर कर सामने आयेंगे।
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
सरकार को प्रयोग करके देखना चाहिए कुछ शाला का चयन कर एक या दो वर्ष के लिए उन्हें गैरशैक्षणिक कार्यो से मुक्त रखे।निश्चित ही परिणाम और ज्यादा निखर कर सामने आयेंगे।
(लेखक स्वय अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
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