Saturday, November 5, 2016

सामाजिक और नैतिक पतन रोकने के लिए व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का समावेश आवश्यक है -सुरेश यादव(रतलाम)

सुरेश यादव(रतलाम)- महाराष्ट्र के बुलढाणा में छात्रावास की मासूम बालिकाओ से शारीरिक शोषण का मामला सामने आया है ,इसमें शिक्षकों पर ही शोषण के आरोप लगाये गये हैं । 2 वर्ष पूर्व बस्तर में भी ऐसी ही एक घटना सामने आयी थी जँहा छात्रावास के शिक्षकों पर ही बच्चियों कें शारीरिक शोषण के आरोप लगाए गए थे ।
        5 नवम्बर  को ही रतलाम के जावरा में 9 वीं कक्षा के एक छात्र द्वारा ,विद्यालय कि गणवेश नहीं पहनने पर शिक्षक की फटकार के  चलते शिक्षक को गोली मार दी गयी । कुछ दिनों पहले दिल्ली में स्कूली छात्रों द्वारा होमवर्क नहीं करने पर शिक्षक की फटकार के चलते अपने शिक्षक की हत्या कर दी गयी थी ।
          उक्त घटनाक्रम ने ,न सिर्फ गुरु शिष्य के रिश्तों पर प्रश्न चिन्ह लगाया है । मानवीय सम्बंधो और संवेदनाओं को भी तार तार किया है।
          दूसरी तरफ
         
          लगभग 2 माह पूर्व की एक घटना में रतलाम की एक बच्ची ने अपने पिता द्वारा शारीरिक शोषण की  घटना अपने परिजनों को नहीं बता कर सीधे शिक्षकों को बताई ।  उत्तर प्रदेश के एक गाँव में अपने शिक्षक के स्थान्तरण पर बच्चों का फुट फुट कर रोना हम सोश्यल मिडिया पर देख चुके है । बाद में शिक्षक दिवस के अवसर पर  रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम में उसी विद्यालय और गाँव की रिपोर्ट भी प्रसारित की थी।
          इन घटनाओ में  बच्चो का शिक्षक के प्रति प्रेम और विश्वास नजर आता है ।
      लेंकिन संपूर्ण परिदृश्य एक  समान नही है । बच्चे घर के अतिरिक्त सबसे अधिक समय विद्यालयो में ही व्यतीत करते है, और वे अपने पालकों के अतिरिक्त सबसे अधिक विश्वास शिक्षक पर ही करते है ।
       आज का युग इंस्टेंट युग है,हम हर काम का त्वरित परिणाम चाहते है ,बच्चों पर पलकों द्वारा सफलता के लिए भारी दबाव बनाया जाता  है , बच्चे मानसिक रूप से मजबूत नहीं हो पा रहे है, उनका बचपन खो गया है , उनमे कई मानसिक विकार उतपन्न हो रहे हैं ।
        हम सिर्फ भौतिक ,व्यावसायिक और आर्थिक सफलता को ही सफल जीवन का पैमाना  मान रहे है । समाज में नैतिक और सामाजिक मूल्यों  के आधार पर सफलता का आकलन नहीं किया जाता इस लिए इनका अवमूल्यन हो रहा है ।
         वेदों और शास्त्रों में गुरु को ईश्वर प्राप्ति का मार्गदर्शक बताया गया है यही नहीं गुरु की तुलना ईश्वर से भी की गयी है । तो रामायण के किषकिन्धा कांड में गुरु शिष्य के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए ,गुरु को पिता के समान और शिष्य को पुत्र-पुत्री के समान कहा गया है ।
       इतनी समृद्ध परम्पराओ और उच्च नैतिक मूल्यों वाले समाज में नैतिक और सामाजिक मूल्यों का पतन चिंता का विषय है । इस लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का समावेश अत्यावश्यक हो गया है । शिक्षा से जुड़े हर तबके को इस विषय में गंभीर चिंतन करना चाहिए ।
    (लेखक सव्य अध्यापक है और यह उनके निजी विचार है )

2 comments:

  1. आपका लेख आज की परिस्थितियों में बिल्कुल सटीक है नैतिक शिक्षा पर आधारित पाठ्यक्रम अत्यंत आवश्यक है परिवारो में ऐसा माहौल नही मिल पाता बच्चों को जो आज से कुछ वर्षो पूर्व उपलब्ध था व्यस्तता और आपाधापी में नैतिक मूल्य कही धुंधले हो गए है शिक्षा का उद्देश्य एक सफल व्यवसायी इंजीनियर वकील डॉक्टर इत्यादि बनाना मात्र हो गया है....भला मानुष बनाने और बनने में किसी भी रूचि नही ....आपका लेख समाज को जाग्रत करने के लिए बहुत श्रेष्ठ है ...आप जब भी लिखते है बहुत अच्छा लिखते है

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Saturday, November 5, 2016

सामाजिक और नैतिक पतन रोकने के लिए व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का समावेश आवश्यक है -सुरेश यादव(रतलाम)

सुरेश यादव(रतलाम)- महाराष्ट्र के बुलढाणा में छात्रावास की मासूम बालिकाओ से शारीरिक शोषण का मामला सामने आया है ,इसमें शिक्षकों पर ही शोषण के आरोप लगाये गये हैं । 2 वर्ष पूर्व बस्तर में भी ऐसी ही एक घटना सामने आयी थी जँहा छात्रावास के शिक्षकों पर ही बच्चियों कें शारीरिक शोषण के आरोप लगाए गए थे ।
        5 नवम्बर  को ही रतलाम के जावरा में 9 वीं कक्षा के एक छात्र द्वारा ,विद्यालय कि गणवेश नहीं पहनने पर शिक्षक की फटकार के  चलते शिक्षक को गोली मार दी गयी । कुछ दिनों पहले दिल्ली में स्कूली छात्रों द्वारा होमवर्क नहीं करने पर शिक्षक की फटकार के चलते अपने शिक्षक की हत्या कर दी गयी थी ।
          उक्त घटनाक्रम ने ,न सिर्फ गुरु शिष्य के रिश्तों पर प्रश्न चिन्ह लगाया है । मानवीय सम्बंधो और संवेदनाओं को भी तार तार किया है।
          दूसरी तरफ
         
          लगभग 2 माह पूर्व की एक घटना में रतलाम की एक बच्ची ने अपने पिता द्वारा शारीरिक शोषण की  घटना अपने परिजनों को नहीं बता कर सीधे शिक्षकों को बताई ।  उत्तर प्रदेश के एक गाँव में अपने शिक्षक के स्थान्तरण पर बच्चों का फुट फुट कर रोना हम सोश्यल मिडिया पर देख चुके है । बाद में शिक्षक दिवस के अवसर पर  रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम में उसी विद्यालय और गाँव की रिपोर्ट भी प्रसारित की थी।
          इन घटनाओ में  बच्चो का शिक्षक के प्रति प्रेम और विश्वास नजर आता है ।
      लेंकिन संपूर्ण परिदृश्य एक  समान नही है । बच्चे घर के अतिरिक्त सबसे अधिक समय विद्यालयो में ही व्यतीत करते है, और वे अपने पालकों के अतिरिक्त सबसे अधिक विश्वास शिक्षक पर ही करते है ।
       आज का युग इंस्टेंट युग है,हम हर काम का त्वरित परिणाम चाहते है ,बच्चों पर पलकों द्वारा सफलता के लिए भारी दबाव बनाया जाता  है , बच्चे मानसिक रूप से मजबूत नहीं हो पा रहे है, उनका बचपन खो गया है , उनमे कई मानसिक विकार उतपन्न हो रहे हैं ।
        हम सिर्फ भौतिक ,व्यावसायिक और आर्थिक सफलता को ही सफल जीवन का पैमाना  मान रहे है । समाज में नैतिक और सामाजिक मूल्यों  के आधार पर सफलता का आकलन नहीं किया जाता इस लिए इनका अवमूल्यन हो रहा है ।
         वेदों और शास्त्रों में गुरु को ईश्वर प्राप्ति का मार्गदर्शक बताया गया है यही नहीं गुरु की तुलना ईश्वर से भी की गयी है । तो रामायण के किषकिन्धा कांड में गुरु शिष्य के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए ,गुरु को पिता के समान और शिष्य को पुत्र-पुत्री के समान कहा गया है ।
       इतनी समृद्ध परम्पराओ और उच्च नैतिक मूल्यों वाले समाज में नैतिक और सामाजिक मूल्यों का पतन चिंता का विषय है । इस लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का समावेश अत्यावश्यक हो गया है । शिक्षा से जुड़े हर तबके को इस विषय में गंभीर चिंतन करना चाहिए ।
    (लेखक सव्य अध्यापक है और यह उनके निजी विचार है )

2 comments:

  1. आपका लेख आज की परिस्थितियों में बिल्कुल सटीक है नैतिक शिक्षा पर आधारित पाठ्यक्रम अत्यंत आवश्यक है परिवारो में ऐसा माहौल नही मिल पाता बच्चों को जो आज से कुछ वर्षो पूर्व उपलब्ध था व्यस्तता और आपाधापी में नैतिक मूल्य कही धुंधले हो गए है शिक्षा का उद्देश्य एक सफल व्यवसायी इंजीनियर वकील डॉक्टर इत्यादि बनाना मात्र हो गया है....भला मानुष बनाने और बनने में किसी भी रूचि नही ....आपका लेख समाज को जाग्रत करने के लिए बहुत श्रेष्ठ है ...आप जब भी लिखते है बहुत अच्छा लिखते है

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