श्रीराम राठौर -साथियों सादर वंदे.......RTE (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के प्रावधान अनुसार वंचित और कमजोर वर्ग के बच्चों का अशासकीय शालाओं की न्यूनतम कक्षा में 25% (न्यूनतम) प्रवेश के संबंध में बात करने से पहले यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं इस विषय पर यदि दोनों पहलुओं को साथ लेकर चला जाए तभी हम सही निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।
मेरे विचार से सर्वप्रथम इसकी बिंदुवार पक्ष विपक्ष के साथ समीक्षा कर ली जाये.....
25% निःशुल्क प्रवेशित बच्चों का शासकीय विद्यालयों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा उनके कारणों के संबंध में यदि विस्तृत रूप से चिंतन किया जाये तो निम्न तथ्य सामने आते है......
1) शासकीय शालाओं में प्रवेश की कमी :- अशासकीय शालाओं में न्यूनतम कक्षाओं में 25% निःशुल्क प्रवेश के कारण हमारे शास.विद्यालयो में साल-दर-साल नव प्रवेशी बच्चों का अकाल सा पड़ गया है, इस प्रवेश रूपी अकाल को हम समुदाय से अपना जीवित संपर्क कर अपनी शाला की विशेषता बता कर और हमारे कार्यो से दूर कर सकते है 25% फ्री का शासकीय विद्यालयों पर पड़ने वाला यह मुख्य प्रभाव है।
2) यह योजना शासकीय शालाओं का निजीकरण की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है,शासकीय शाला की न्यूनतम कक्षा से साल दर साल बच्चो की संख्या उसी अनुपात में अगली कक्षाओ में आगे भी बढती चली जाती है विगत तीन चार वर्षो में 25% न्यूनतम तथा इससे भी अधिक बच्चों का प्रवेश निजी विद्यालयों में प्रवेश दिया जाकर शासन द्वारा इसकी फीस प्रतिपूर्ति भी की गई परन्तु इस वर्ष शासन द्वारा निजी विद्यालयों हेतु इस प्रक्रिया को ऑनलाइन के माध्यम से किया जाकर विभिन्न कठिन प्रावधान भी इसमें जोड़े गए जो की शास.शालाओ और हमारे पक्ष में रहा है यह हमारे लिए एक अच्छा संकेत भी है।
3) एक प्रश्न यह भी उठता है की 25% फ्री बच्चों पर खर्च की जाने वाली राशि का उपयोग निश्चित रुप से शासकीय विद्यालयों में होना चाहिए था जिससे शासकीय विद्यालयों की अपूर्ण व्यवस्थाओं को पूर्ण किया जा सकता था वैसे शासन हमेशा पूर्ण व्यवस्था के झूठे दावे करता रहता है इस सम्बन्ध में भी हमें शासन का ध्यान आकृष्ट करना चाहिए।
25% निःशुल्क प्रवेशित बच्चों का शासकीय विद्यालयों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा उनके कारणों के संबंध में यदि विस्तृत रूप से चिंतन किया जाये तो निम्न तथ्य सामने आते है......
1) शासकीय शालाओं में प्रवेश की कमी :- अशासकीय शालाओं में न्यूनतम कक्षाओं में 25% निःशुल्क प्रवेश के कारण हमारे शास.विद्यालयो में साल-दर-साल नव प्रवेशी बच्चों का अकाल सा पड़ गया है, इस प्रवेश रूपी अकाल को हम समुदाय से अपना जीवित संपर्क कर अपनी शाला की विशेषता बता कर और हमारे कार्यो से दूर कर सकते है 25% फ्री का शासकीय विद्यालयों पर पड़ने वाला यह मुख्य प्रभाव है।
2) यह योजना शासकीय शालाओं का निजीकरण की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है,शासकीय शाला की न्यूनतम कक्षा से साल दर साल बच्चो की संख्या उसी अनुपात में अगली कक्षाओ में आगे भी बढती चली जाती है विगत तीन चार वर्षो में 25% न्यूनतम तथा इससे भी अधिक बच्चों का प्रवेश निजी विद्यालयों में प्रवेश दिया जाकर शासन द्वारा इसकी फीस प्रतिपूर्ति भी की गई परन्तु इस वर्ष शासन द्वारा निजी विद्यालयों हेतु इस प्रक्रिया को ऑनलाइन के माध्यम से किया जाकर विभिन्न कठिन प्रावधान भी इसमें जोड़े गए जो की शास.शालाओ और हमारे पक्ष में रहा है यह हमारे लिए एक अच्छा संकेत भी है।
3) एक प्रश्न यह भी उठता है की 25% फ्री बच्चों पर खर्च की जाने वाली राशि का उपयोग निश्चित रुप से शासकीय विद्यालयों में होना चाहिए था जिससे शासकीय विद्यालयों की अपूर्ण व्यवस्थाओं को पूर्ण किया जा सकता था वैसे शासन हमेशा पूर्ण व्यवस्था के झूठे दावे करता रहता है इस सम्बन्ध में भी हमें शासन का ध्यान आकृष्ट करना चाहिए।
समुदाय पर 25% फ्री भर्ती के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी हमें चिंतन और मनन करना होगा...
1) आज वर्तमान में अशासकीय विद्यालयों की चकाचौध के कारण कमजोर वंचित समूह के लोग भी अपने बच्चो का प्रवेश अशासकीय शालाओ में कराना चाहते है RTE में 25% का प्रावधान भी समुदाय की भावना को ध्यान में रखकर किया गया है, कही न कही हम भी इसके लिए जबाबदार है हमें समुदाय को हमारी और हमारी शालाओ का प्रचार प्रसार कर स्वयं की योग्यता को साबित करना ही पडेगा।
2) वंचित वर्ग के लोग जो अपने बच्चो को अच्छे सर्वसुविधा युक्त अशासकीय शाला में 25% के माध्यम से प्रवेश दिलाते है वो शाला के अन्य खर्च जैसे गणवेश पुस्तकें टिफिन और आवागमन के साधन आदि वहन नहीं कर पाते कही न कही ये बात समाज में कुंठा की भावना एवं बच्चो एवं पालको में हीन भावना पैदा करती है यह 25% फ्री योजना का एक कमजोर बिंदु है।
3) बड़े और सर्वसुविधायुक्त अशासकीय विधालय 25% भर्ती के संबंध में सहयोग की भावना नहीं रखते तथा छोटे ऐसे विद्यालय जिनकी फीस RTE वाले फ्री बच्चो से कम है वे विद्यालय इस योजना में अधिक रुचि लेते है, अशासकीय शालाओ के इस प्रकार के रवैये से भी कही न कही समुदाय भ्रम में पड़ रहा है।
1) आज वर्तमान में अशासकीय विद्यालयों की चकाचौध के कारण कमजोर वंचित समूह के लोग भी अपने बच्चो का प्रवेश अशासकीय शालाओ में कराना चाहते है RTE में 25% का प्रावधान भी समुदाय की भावना को ध्यान में रखकर किया गया है, कही न कही हम भी इसके लिए जबाबदार है हमें समुदाय को हमारी और हमारी शालाओ का प्रचार प्रसार कर स्वयं की योग्यता को साबित करना ही पडेगा।
2) वंचित वर्ग के लोग जो अपने बच्चो को अच्छे सर्वसुविधा युक्त अशासकीय शाला में 25% के माध्यम से प्रवेश दिलाते है वो शाला के अन्य खर्च जैसे गणवेश पुस्तकें टिफिन और आवागमन के साधन आदि वहन नहीं कर पाते कही न कही ये बात समाज में कुंठा की भावना एवं बच्चो एवं पालको में हीन भावना पैदा करती है यह 25% फ्री योजना का एक कमजोर बिंदु है।
3) बड़े और सर्वसुविधायुक्त अशासकीय विधालय 25% भर्ती के संबंध में सहयोग की भावना नहीं रखते तथा छोटे ऐसे विद्यालय जिनकी फीस RTE वाले फ्री बच्चो से कम है वे विद्यालय इस योजना में अधिक रुचि लेते है, अशासकीय शालाओ के इस प्रकार के रवैये से भी कही न कही समुदाय भ्रम में पड़ रहा है।
निष्कर्ष:- साथियों सारे बिन्दुओ पर विचार करने के पश्चात यह कहना उचित होगा समाज को इस योजना में लाभ के साथ साथ अप्रत्यक्ष रूप से हानि भी हो रही है, साथ ही कहीं ना कहीं इस मामले में कमजोर पक्ष के रूप में हम लोग भी नजर आते हैं निश्चित रूप से समुदाय को हम हमारी विशेषताएँ नहीं समझा पा रहे है, और नहीं समुदाय से आपसी सामंजस्य भी बैठा पा रहे है और न ही वर्तमान में पालको से हमारा जीवित संपर्क ही रहा है।
एक बात और भी सामने आती है साथियो, हमारे द्वारा होने वाले आंदोलनों में भी 25% फ्री बच्चो का मुद्दा तथा शास.विद्यालयों का निजीकरण का मुद्दा भी हमें सम्मिलित करना चाहिए तथा हम शिक्षकों को समुदाय से अशासकीय विद्यालयों के प्रति समुदाय की भावना को भी हमारे उत्कृष्ट कार्यो के द्वारा बदलना ही पड़ेगा। साथियों यह तो निश्चित है कि यदि हम अपने कर्तव्य पर 100%खरे उतरे तो शासन 25% फ्री भर्ती के साथ ही ऐसे और भी सैकड़ों प्रयोग हमारे विद्यालय और हमारे समाज पर कर ले तो भी इस तरह के कपटता पूर्वक रवैये में कभी भी सफल नहीं हो सकती क्योंकि हम राष्ट्रनिर्माता और युगद्रष्टा की भूमिका में है,आज भी समाज हमारा अनुसरण करता है। हमारे अस्तित्व को बचाने और हमारी शक्ति को पहचानने की आवश्यकता और जरूरत मात्र है, सरकार का यह जो RTE की कमान से निकला हुआ 25% का तीर है निश्चित रुप से हम इस तीर को मोड़ सकते हैं इतना सामर्थ और शक्ति तो हमारे अन्दर मौजूद है।।
एक बात और भी सामने आती है साथियो, हमारे द्वारा होने वाले आंदोलनों में भी 25% फ्री बच्चो का मुद्दा तथा शास.विद्यालयों का निजीकरण का मुद्दा भी हमें सम्मिलित करना चाहिए तथा हम शिक्षकों को समुदाय से अशासकीय विद्यालयों के प्रति समुदाय की भावना को भी हमारे उत्कृष्ट कार्यो के द्वारा बदलना ही पड़ेगा। साथियों यह तो निश्चित है कि यदि हम अपने कर्तव्य पर 100%खरे उतरे तो शासन 25% फ्री भर्ती के साथ ही ऐसे और भी सैकड़ों प्रयोग हमारे विद्यालय और हमारे समाज पर कर ले तो भी इस तरह के कपटता पूर्वक रवैये में कभी भी सफल नहीं हो सकती क्योंकि हम राष्ट्रनिर्माता और युगद्रष्टा की भूमिका में है,आज भी समाज हमारा अनुसरण करता है। हमारे अस्तित्व को बचाने और हमारी शक्ति को पहचानने की आवश्यकता और जरूरत मात्र है, सरकार का यह जो RTE की कमान से निकला हुआ 25% का तीर है निश्चित रुप से हम इस तीर को मोड़ सकते हैं इतना सामर्थ और शक्ति तो हमारे अन्दर मौजूद है।।
(लेखक स्वयं अध्यापक और यह उनके निजी विचार है ।)RTE अन्तर्गत वंचित तबके के बच्चों को निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत स्थान पर प्रवेश का सरकारी विद्यालयो और समाज पर प्रभाव )
संयुक्त रूप से प्रथम स्थान पर पर यह लेख चयनित किया गया।
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