Friday, October 7, 2016

इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है - नरेन्द्र कुमार पासी ( रतलाम )

नरेन्द्र कुमार पासी - इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है | यह किसी की अस्मिता से जुड़ा प्रश्न नही होना चाहिए | क्यों की आज भारत का बहुत बड़ा वर्ग किसान है या गरीब है या दलित समुदाय से आता है | ऐसे में जब उनके बच्चो को शिक्षा न मिले तो उनके दिलो पर क्या बीतती होगी | यह सहज अहसास कर पाना बड़ा ही कठिन सवाल ?आज जहाँ सरकार द्वारा शिक्षा के अनेको प्रावधान कियेगए फिर भी हम आज शिक्षा के अधिकार से ही वंचित है | संविधान के अनुच्छेद 41 A के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत मान्यता दी गई थी जिसके अनुसार, "राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर, शिक्षा और बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता के मामले में सार्वजनिक सहायता करने के लिए काम करते हैं, सही हासिल करने के लिए प्रभावीव्यवस्था करे “ /हालांकि संविधान निर्माणी सभा के अनेको सदस्य और स्वतः बाबा साहब अम्बेडकर यह चाहते थे कि समान शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार में शामिल हो और न्यायिक आदेश से लागू होने की व्यवस्था हो। परन्तु उस समय केन्द्र सरकार के मुखिया और निंयत्रको का यह तर्क था कि सरकार का खर्च और साधन इतने विकसित नही है कि इसे वैधानिक अधिकार या कानून के रुप में लागू कियाजा सके। अतः कुछ समय ढांचे के विकास को चाहिये और इसलिये अन्य मुद्दों की तरह इसे भी नीति निर्देशक मुद्दों के खण्ड में शामिल किया जाये जो कि सरकारों के लिये आदर्श हो और कुछ समय पश्चात जब आधार रुप ढांचे का विकास हो जाये तब अन्य मुद्देां के साथ समानशिक्षा के मुद्दे को भी मूल अधिकार के रुप में शामिल किया जा सकता है। पर अफ़सोस व दुखद यहाँ रहा की इसका कोई ठोस नियम या आदेश न बन सका | इसके पीछे तर्क था की भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नही की इस खर्च को झेल चुके |एक यह भी अनुमान लगाया गया की आने वाली सरकारे 10-20-30 वर्षो में इसका नियम व आदेश बना लेंगे पर आज आजादी के 68 वर्ष बीत चुके है फिर भी हम लोगो को शिक्षा का समान अधिकार नही दे पाये | निजी स्कूलो के नाम पर आर्य समाज ईसाई मिशनरी संस्थायें, इस्लामिक मदरसा, गुरुद्वारा प्रंबधक सभायें जैसी अन्य धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से शिक्षा के प्रसार के लिये स्कूल कालेज आदि खोले गये थे परन्तु यह सामाजिक हित में और गरीब लोगो को भी शिक्षा देने के लिये न्यूनतम फीस आदि के आधार पर शुरुकिये गये थे।इनमें व्यापार या मुनाफा नही था और न ही निजी मालकियत थी बल्कि इनके पीछे समाज सेवा शिक्षा का विकास और परोपकार की भावना थी। परन्तु कुछ वर्षो के पश्चात समाज के ताकतवर सपन्न और प्रभावी लोगो ने अपने बच्चों के लिये पृथक और मंहगे स्कूल शुरु कराये जैसे दून स्कूल डेली कालेज और ऐसी ही अन्य शिक्षण संस्थाओं को राजा महाराजा या उद्योगपतियों के पैसे से खड़ा करना आंरम्भ हुआ तथा शिक्षा को अमीर और गरीब-बड़े और छोटे ताकतवर और कमजोर राजा और रंक के बीच बांट दिया गया। पुराने राजाओं, धनपतियों और राज सत्ता पर बैठे नेताओं तथा अफसर शाहो के बच्चे इन बड़ेस्कूलों में पढ़ाये जाने लगे जहां पढ़ाई का माध्यम सत्ता प्रतिष्ठान की भाषा अंग्रेजी हो गई और उच्चवर्गीय और उच्च वर्णीय ढ़ाचे को स्थाई तौर पर बरकरार रखने के लिये शिक्षण संस्थाओं में भाषा महत्वपूर्ण माध्यम बन गई।डा.राममनोहर लोहिया ने नारा दिया था ’’राष्ट्रपति हो या चपरासी की संतान सबकी शिक्षा एक समान’’ लोहिया इस बात को जानते थे कि अगर अफसर और चपरासी का बेटा, सम्पन्न और गरीब का बेटा , उद्योगपति और किसान का बेटा, बड़ी जात और दलित का बेटा जब एक ही स्कूल में साथ-साथ पढ़ेगे तो भेद-भाव मिटेगा |राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी तथा सबको समान अवसर प्राप्त होगे,जिससे योग्यता और क्षमता का विकास भी उसी के अनुसार होगा। यह बड़ा विचित्र है कि हमारे देश के कुछ नौजवान और कुछ लेाग जो आरक्षण को समानता का विरोधी मानते है आरक्षण तो मिटाना चाहते है| आरक्षण मुक्त भारत का नारा लगाते है परन्तु समान शिक्षा की बात नही करते। वे यह तो कहते है कि 68 साल आरक्षण को हो गये इसे खत्म करना चाहिये परन्तु वो यह नही कहते कि 68 साल हो गये कि अब नीति निर्देशक मुद्दों को संवैधानिक प्रावधान बनना चाहिये तथा सबको समान शिक्षा का अवसर मिलना चाहिये।असमान शिक्षा भी एक प्रकार का आरक्षण है जिसमें सम्पन्न और ताकतवर के बच्चो को पद और पैसे के आधार पर शिक्षा के विशेष अवसर है। इसका आधार योग्यता नही है बल्कि मात्र आर्थिक या सत्ता प्रतिष्ठान की ताकत ही योग्यता है। यह नौजवान मित्र बड़े-बड़े डोनेशन वाली (जो वस्तुतः भ्रष्ट व काला धन होता है) उस शिक्षा प्रणाली का भी विरोध नही करते जिसमें लाखो करोड़ रुपये देकर अयोग्य छात्र डाक्टर, इंजीनियर आदि बन जाते है और इसीलिये समाज के एक बड़े हिस्से में उनकी मांग और नीयत संदिग्ध रहती है। अब देश में सरकारी शिक्षण संस्थाये और विशेषतः प्राथमिक शिक्षा मैदान के बाहर नजर आती है। नये सरकारी स्कूल खुलने के बजाय बंद हो रहे है। परोपकार के नाम पर शुरु किये जाने वाली धार्मिक और सामाजिक संगठनों के द्वारा चलाये जाने वाले स्कूल बंद हो रहे है| कहने को तो सरकार ने शिक्षा का कानून RTE 2009 में पारित कर दिया है , निजी शिक्षक संस्थाओ को 25 प्रतिशत स्थान गरीबो के बच्चो को आरक्षित रखने का प्रावधान कर दिया है। पर यहतो कानून की किताबो में ही सिकुड़ कर रह गया है | स्कूलो में प्रवेश भी मिल जाये पर विद्यालय में लगने वाली वर्दी (यूनिफार्म) महँगी किताबे ,कापियां ,स्कूलकी दुरी की वजह से साधन याने स्कूल प्रबंधन की चलने वाली महँगी किराये वाली बस (BUS) ,एवं विद्यालय में लगने वाली शिक्षण शुल्क के अलावा अन्य लगने वाली शुल्क की भरपाई कौन करेगा ,,कोर्स में अनेक प्रकार के प्रोजेक्ट बनाने के लिए सहायक सामग्री स्टेशनरी कम्प्यूटर ,प्रिंटर आदि कहाँ से लाये जाये ,यह सारी बाते या समस्याए एक गरीब परिवार नही झेल सकता |भारत की 15 वी जनगणना(वर्ष 2015) के अनुसार देश में साक्षरता 74.04 फीसदी है| जिसमे पुरुष साक्षरता 82.14 फीसदी और महिला साक्षरता 65.46 फीसदी हो गई | परइस बात का ध्यान रहे की शिक्षित होना और साक्षर होना दोनों में भिन्नता है | अब समय आ गया है जब”” शिक्षा कीही नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात होनी चाहिये”” |यही कारण है कि””सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा”” हमारा नारा है।जब सभी नेता ,अभिनेता ,लोकसेवक ,जज ,अफसर ,लिपिक,चपरासी,किसान ,दलित आदि जब सभी के बच्चे एक ही स्कूल में एक ही छत के नीचे एक ही अध्यापक से शिक्षा ग्रहण करेंगे |तभी हम सभी समान शिक्षा का अधिकार दे पाएंगे |आज मध्यप्रदेश में शिक्षा की हालत बहुत ही दयनीय है जिसके कारण आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो गया है| सरकारी स्कुलो का रुख खासकर प्रायमरी स्तर पर केवल गरीब के बच्चे मध्यान भोजन के लिए या छात्रवृत्ति के लिए नाम मात्र को स्कूल पहुँच रहे है | वही शिक्षको में अनेक कटेगिरी का निर्माण शासन ने कर रखा है /अतिथि , गुरूजी, संविदा शिक्षक ,शिक्षाकर्मी ,नियमित शिक्षक ,पद एक ,कक्षाए भी पढ़ाने को एक ,पर दुर्भाग्य कीइनका वेतन अलग-अलग है |ऐसे में मानसिक तनाव झेल रहा मध्यप्रदेश का शिक्षक अपने नियमतीकरण के लिए कही स्कूल बंद ,कही हड़ताल ,कही ज्ञापन ,कही जेल में बंद रहकर सरकार की नीतियों व वादा खिलाफी के प्रति अपनी जंग जारी रखे हुए है ,,,ऐसे में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा,विद्यालयों का सही सञ्चालन हो पाना आज “”दूर की कौड़ी साबित”” हो रहा है |

सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की कमी के कारण :---------------------------------------------------
01. विद्यालयों को सही संचालित करने में सरकार की इच्छाशक्ति की कमी |
02. नेताओ के द्वारा आपने वोटर्स तैयार करने के लिए शैक्षणिक घोषणाए |
03. गुणवत्तापूर्ण शिक्षक/ शिक्षिका की कमी
04. शिक्षक/शिक्षिका को अन्य शैक्षणिक कार्यो में उलझाये हुए रखना |
05. शिक्षको को पुरे वर्ष स्कूल के बाहर जनगणना, मतदाता सूचि का संधारण,ग्राम सर्वे ,BPL सूचि तैयार करना ,पशु गणना ,मध्यान भोजन कीजानकारिया जुटानाआदि अनेक ऐसी ही योजनाओ को राष्ट्रिय कार्य का नामदेकर शिक्षक/शिक्षिका से करवाया जाता है |
06. गुणवत्तापूर्ण व नियमानुसार एवं सर्व सुविधायुक्त विद्यालय ईमारतका न होना |
07 .विद्यालयों में पानी ,साफ-सफाई,रौशनी,साफसुथरे लैट्रिन-बाथरूमोका न होना |
08. विद्यालय का सही प्रबंधन न होना |
09. विद्यालयों में होने वाली मानिटरिंग को सही अन्जाम न देना ,,यह केवल खानापूर्ति तक सीमित रहा गया है |
10. अधिकारियों का अपनी जेब गरम करने से फुर्सत नही जिसकारण विद्यालयों की सुविधा एवं पढाई लिखाई पर ध्यान देनेका ढुलमुल रवैया |

यदि सभी नेता ,अभिनेता ,लोकसेवक ,जज ,अफसर,लिपिक,चपरासी, किसान ,दलित आदि जब सभी के बच्चे एक ही स्कूल में एक ही छत के नीचे एक ही अध्यापक से शिक्षा ग्रहण करेंगे तो इसके परिणाम भी बेहद रोचक होंगे |साथही भारत देश का जो एक बड़ा तबका जो की शिक्षा से अछूता या कहे शिक्षा के नाम पर साक्षर तो है पर शिक्षित नही है |ऐसे बदलाव से समाज पर भी गहरा और भविष्य में सामाजिक भेदभाव मिटाने में कभी सहायक सिद्ध होगा |

समाज पर प्रभाव :---------------------
01. सभी छात्र एक जैसी वर्दी (यूनिफार्म) पहनेगें तो न कोई आमिर दिखेगा न ही कोई गरीब दिखेगा
02. सभी छात्र एक जैसी किताबो का अध्ययन करेंगे जिससेसभी का ज्ञान बुद्धि-लब्धि के हिसाब से एक जैसा होगा|
03. सरकार के द्वारा स्कुलो में उपलब्ध करवाए गए पढाई–लिखाई के साधन भी एक जैसे होंगे |
04. सबसे अहम बात की गरीब बच्चो को पढाई करने में हीन भावना का शिकार भी नही होना पढ़ेगा |
05. कक्षा में एक अध्यापक सभी छात्रो को एक जैसा ही पढ़ेगा ,यह नही होगा की ये गरीब छात्र है की यह अमीर छात्र है |किसी एक पक्ष को इंगित नही करेगा |
06. अमीर छात्रो को अलग से कोई अन्य भाषा नही पढ़ाई जाएगी ,जैसा की बड़े निजी विद्यालयों में होता है |सभी को एक ही पाठ्यक्रम से पढाया जायेगा |
07. एक साथ स्कूलो में बैठक व्यवस्था होगी | क्यों की अमीर गरीब का भेदभाव अभी भी समाज में व्याप्त है |
08. जब सभी नेता ,अभिनेता ,लोकसेवक ,जज ,अफसर , व्यापारीके पुत्र/पुत्री जब सरकारी स्कूलो में पढेंगे तो आपने आप ही सभी स्कुलो पर विशेष ध्यान देना शुरूकर देंगे और स्कुलो की खस्ता हालत या लचर व्यवस्था में सुधार आना शुरू हो जायेगा |
09. शिक्षको को सही वेतनमान और सही समय पर पगार(पेमेंट) मिलना शुरू हो जाएगी |
10. वर्तमान में जो हम भारत की साक्षरता 74 प्रतिशत बताते है यही शिक्षा में परिवर्तित हो जाएगी ,फिर हर वर्ग का छात्र देश के प्रति देशप्रेम और देश के संसाधनों कोगुणवत्तापूर्ण उपयोग के बारे में सोचेगायह इलाहबाद हाई कोर्ट का बहुत ही सराहनीय कदम है|
इससे समाज ही नही देश में भी शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव आएंगे | 

लेखक सवयं अध्यापक है और यह इनके निजी विचार है -यह लेख बुधवार और गुरूवार को शिक्षा विमर्श में चर्चा के विषय 
'  माननीय ईलाहबाद उच्च न्यायालय का आदेश जिसमे प्रत्येक लोकसेवक "अफसर ,कर्मचारी ,विधायक और सांसद " को अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में पढ़ाने का आदेश  ' में प्रथम स्थान पर चुना गया है . 

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Friday, October 7, 2016

इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है - नरेन्द्र कुमार पासी ( रतलाम )

नरेन्द्र कुमार पासी - इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है | यह किसी की अस्मिता से जुड़ा प्रश्न नही होना चाहिए | क्यों की आज भारत का बहुत बड़ा वर्ग किसान है या गरीब है या दलित समुदाय से आता है | ऐसे में जब उनके बच्चो को शिक्षा न मिले तो उनके दिलो पर क्या बीतती होगी | यह सहज अहसास कर पाना बड़ा ही कठिन सवाल ?आज जहाँ सरकार द्वारा शिक्षा के अनेको प्रावधान कियेगए फिर भी हम आज शिक्षा के अधिकार से ही वंचित है | संविधान के अनुच्छेद 41 A के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत मान्यता दी गई थी जिसके अनुसार, "राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर, शिक्षा और बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता के मामले में सार्वजनिक सहायता करने के लिए काम करते हैं, सही हासिल करने के लिए प्रभावीव्यवस्था करे “ /हालांकि संविधान निर्माणी सभा के अनेको सदस्य और स्वतः बाबा साहब अम्बेडकर यह चाहते थे कि समान शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार में शामिल हो और न्यायिक आदेश से लागू होने की व्यवस्था हो। परन्तु उस समय केन्द्र सरकार के मुखिया और निंयत्रको का यह तर्क था कि सरकार का खर्च और साधन इतने विकसित नही है कि इसे वैधानिक अधिकार या कानून के रुप में लागू कियाजा सके। अतः कुछ समय ढांचे के विकास को चाहिये और इसलिये अन्य मुद्दों की तरह इसे भी नीति निर्देशक मुद्दों के खण्ड में शामिल किया जाये जो कि सरकारों के लिये आदर्श हो और कुछ समय पश्चात जब आधार रुप ढांचे का विकास हो जाये तब अन्य मुद्देां के साथ समानशिक्षा के मुद्दे को भी मूल अधिकार के रुप में शामिल किया जा सकता है। पर अफ़सोस व दुखद यहाँ रहा की इसका कोई ठोस नियम या आदेश न बन सका | इसके पीछे तर्क था की भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नही की इस खर्च को झेल चुके |एक यह भी अनुमान लगाया गया की आने वाली सरकारे 10-20-30 वर्षो में इसका नियम व आदेश बना लेंगे पर आज आजादी के 68 वर्ष बीत चुके है फिर भी हम लोगो को शिक्षा का समान अधिकार नही दे पाये | निजी स्कूलो के नाम पर आर्य समाज ईसाई मिशनरी संस्थायें, इस्लामिक मदरसा, गुरुद्वारा प्रंबधक सभायें जैसी अन्य धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से शिक्षा के प्रसार के लिये स्कूल कालेज आदि खोले गये थे परन्तु यह सामाजिक हित में और गरीब लोगो को भी शिक्षा देने के लिये न्यूनतम फीस आदि के आधार पर शुरुकिये गये थे।इनमें व्यापार या मुनाफा नही था और न ही निजी मालकियत थी बल्कि इनके पीछे समाज सेवा शिक्षा का विकास और परोपकार की भावना थी। परन्तु कुछ वर्षो के पश्चात समाज के ताकतवर सपन्न और प्रभावी लोगो ने अपने बच्चों के लिये पृथक और मंहगे स्कूल शुरु कराये जैसे दून स्कूल डेली कालेज और ऐसी ही अन्य शिक्षण संस्थाओं को राजा महाराजा या उद्योगपतियों के पैसे से खड़ा करना आंरम्भ हुआ तथा शिक्षा को अमीर और गरीब-बड़े और छोटे ताकतवर और कमजोर राजा और रंक के बीच बांट दिया गया। पुराने राजाओं, धनपतियों और राज सत्ता पर बैठे नेताओं तथा अफसर शाहो के बच्चे इन बड़ेस्कूलों में पढ़ाये जाने लगे जहां पढ़ाई का माध्यम सत्ता प्रतिष्ठान की भाषा अंग्रेजी हो गई और उच्चवर्गीय और उच्च वर्णीय ढ़ाचे को स्थाई तौर पर बरकरार रखने के लिये शिक्षण संस्थाओं में भाषा महत्वपूर्ण माध्यम बन गई।डा.राममनोहर लोहिया ने नारा दिया था ’’राष्ट्रपति हो या चपरासी की संतान सबकी शिक्षा एक समान’’ लोहिया इस बात को जानते थे कि अगर अफसर और चपरासी का बेटा, सम्पन्न और गरीब का बेटा , उद्योगपति और किसान का बेटा, बड़ी जात और दलित का बेटा जब एक ही स्कूल में साथ-साथ पढ़ेगे तो भेद-भाव मिटेगा |राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी तथा सबको समान अवसर प्राप्त होगे,जिससे योग्यता और क्षमता का विकास भी उसी के अनुसार होगा। यह बड़ा विचित्र है कि हमारे देश के कुछ नौजवान और कुछ लेाग जो आरक्षण को समानता का विरोधी मानते है आरक्षण तो मिटाना चाहते है| आरक्षण मुक्त भारत का नारा लगाते है परन्तु समान शिक्षा की बात नही करते। वे यह तो कहते है कि 68 साल आरक्षण को हो गये इसे खत्म करना चाहिये परन्तु वो यह नही कहते कि 68 साल हो गये कि अब नीति निर्देशक मुद्दों को संवैधानिक प्रावधान बनना चाहिये तथा सबको समान शिक्षा का अवसर मिलना चाहिये।असमान शिक्षा भी एक प्रकार का आरक्षण है जिसमें सम्पन्न और ताकतवर के बच्चो को पद और पैसे के आधार पर शिक्षा के विशेष अवसर है। इसका आधार योग्यता नही है बल्कि मात्र आर्थिक या सत्ता प्रतिष्ठान की ताकत ही योग्यता है। यह नौजवान मित्र बड़े-बड़े डोनेशन वाली (जो वस्तुतः भ्रष्ट व काला धन होता है) उस शिक्षा प्रणाली का भी विरोध नही करते जिसमें लाखो करोड़ रुपये देकर अयोग्य छात्र डाक्टर, इंजीनियर आदि बन जाते है और इसीलिये समाज के एक बड़े हिस्से में उनकी मांग और नीयत संदिग्ध रहती है। अब देश में सरकारी शिक्षण संस्थाये और विशेषतः प्राथमिक शिक्षा मैदान के बाहर नजर आती है। नये सरकारी स्कूल खुलने के बजाय बंद हो रहे है। परोपकार के नाम पर शुरु किये जाने वाली धार्मिक और सामाजिक संगठनों के द्वारा चलाये जाने वाले स्कूल बंद हो रहे है| कहने को तो सरकार ने शिक्षा का कानून RTE 2009 में पारित कर दिया है , निजी शिक्षक संस्थाओ को 25 प्रतिशत स्थान गरीबो के बच्चो को आरक्षित रखने का प्रावधान कर दिया है। पर यहतो कानून की किताबो में ही सिकुड़ कर रह गया है | स्कूलो में प्रवेश भी मिल जाये पर विद्यालय में लगने वाली वर्दी (यूनिफार्म) महँगी किताबे ,कापियां ,स्कूलकी दुरी की वजह से साधन याने स्कूल प्रबंधन की चलने वाली महँगी किराये वाली बस (BUS) ,एवं विद्यालय में लगने वाली शिक्षण शुल्क के अलावा अन्य लगने वाली शुल्क की भरपाई कौन करेगा ,,कोर्स में अनेक प्रकार के प्रोजेक्ट बनाने के लिए सहायक सामग्री स्टेशनरी कम्प्यूटर ,प्रिंटर आदि कहाँ से लाये जाये ,यह सारी बाते या समस्याए एक गरीब परिवार नही झेल सकता |भारत की 15 वी जनगणना(वर्ष 2015) के अनुसार देश में साक्षरता 74.04 फीसदी है| जिसमे पुरुष साक्षरता 82.14 फीसदी और महिला साक्षरता 65.46 फीसदी हो गई | परइस बात का ध्यान रहे की शिक्षित होना और साक्षर होना दोनों में भिन्नता है | अब समय आ गया है जब”” शिक्षा कीही नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात होनी चाहिये”” |यही कारण है कि””सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा”” हमारा नारा है।जब सभी नेता ,अभिनेता ,लोकसेवक ,जज ,अफसर ,लिपिक,चपरासी,किसान ,दलित आदि जब सभी के बच्चे एक ही स्कूल में एक ही छत के नीचे एक ही अध्यापक से शिक्षा ग्रहण करेंगे |तभी हम सभी समान शिक्षा का अधिकार दे पाएंगे |आज मध्यप्रदेश में शिक्षा की हालत बहुत ही दयनीय है जिसके कारण आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो गया है| सरकारी स्कुलो का रुख खासकर प्रायमरी स्तर पर केवल गरीब के बच्चे मध्यान भोजन के लिए या छात्रवृत्ति के लिए नाम मात्र को स्कूल पहुँच रहे है | वही शिक्षको में अनेक कटेगिरी का निर्माण शासन ने कर रखा है /अतिथि , गुरूजी, संविदा शिक्षक ,शिक्षाकर्मी ,नियमित शिक्षक ,पद एक ,कक्षाए भी पढ़ाने को एक ,पर दुर्भाग्य कीइनका वेतन अलग-अलग है |ऐसे में मानसिक तनाव झेल रहा मध्यप्रदेश का शिक्षक अपने नियमतीकरण के लिए कही स्कूल बंद ,कही हड़ताल ,कही ज्ञापन ,कही जेल में बंद रहकर सरकार की नीतियों व वादा खिलाफी के प्रति अपनी जंग जारी रखे हुए है ,,,ऐसे में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा,विद्यालयों का सही सञ्चालन हो पाना आज “”दूर की कौड़ी साबित”” हो रहा है |

सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की कमी के कारण :---------------------------------------------------
01. विद्यालयों को सही संचालित करने में सरकार की इच्छाशक्ति की कमी |
02. नेताओ के द्वारा आपने वोटर्स तैयार करने के लिए शैक्षणिक घोषणाए |
03. गुणवत्तापूर्ण शिक्षक/ शिक्षिका की कमी
04. शिक्षक/शिक्षिका को अन्य शैक्षणिक कार्यो में उलझाये हुए रखना |
05. शिक्षको को पुरे वर्ष स्कूल के बाहर जनगणना, मतदाता सूचि का संधारण,ग्राम सर्वे ,BPL सूचि तैयार करना ,पशु गणना ,मध्यान भोजन कीजानकारिया जुटानाआदि अनेक ऐसी ही योजनाओ को राष्ट्रिय कार्य का नामदेकर शिक्षक/शिक्षिका से करवाया जाता है |
06. गुणवत्तापूर्ण व नियमानुसार एवं सर्व सुविधायुक्त विद्यालय ईमारतका न होना |
07 .विद्यालयों में पानी ,साफ-सफाई,रौशनी,साफसुथरे लैट्रिन-बाथरूमोका न होना |
08. विद्यालय का सही प्रबंधन न होना |
09. विद्यालयों में होने वाली मानिटरिंग को सही अन्जाम न देना ,,यह केवल खानापूर्ति तक सीमित रहा गया है |
10. अधिकारियों का अपनी जेब गरम करने से फुर्सत नही जिसकारण विद्यालयों की सुविधा एवं पढाई लिखाई पर ध्यान देनेका ढुलमुल रवैया |

यदि सभी नेता ,अभिनेता ,लोकसेवक ,जज ,अफसर,लिपिक,चपरासी, किसान ,दलित आदि जब सभी के बच्चे एक ही स्कूल में एक ही छत के नीचे एक ही अध्यापक से शिक्षा ग्रहण करेंगे तो इसके परिणाम भी बेहद रोचक होंगे |साथही भारत देश का जो एक बड़ा तबका जो की शिक्षा से अछूता या कहे शिक्षा के नाम पर साक्षर तो है पर शिक्षित नही है |ऐसे बदलाव से समाज पर भी गहरा और भविष्य में सामाजिक भेदभाव मिटाने में कभी सहायक सिद्ध होगा |

समाज पर प्रभाव :---------------------
01. सभी छात्र एक जैसी वर्दी (यूनिफार्म) पहनेगें तो न कोई आमिर दिखेगा न ही कोई गरीब दिखेगा
02. सभी छात्र एक जैसी किताबो का अध्ययन करेंगे जिससेसभी का ज्ञान बुद्धि-लब्धि के हिसाब से एक जैसा होगा|
03. सरकार के द्वारा स्कुलो में उपलब्ध करवाए गए पढाई–लिखाई के साधन भी एक जैसे होंगे |
04. सबसे अहम बात की गरीब बच्चो को पढाई करने में हीन भावना का शिकार भी नही होना पढ़ेगा |
05. कक्षा में एक अध्यापक सभी छात्रो को एक जैसा ही पढ़ेगा ,यह नही होगा की ये गरीब छात्र है की यह अमीर छात्र है |किसी एक पक्ष को इंगित नही करेगा |
06. अमीर छात्रो को अलग से कोई अन्य भाषा नही पढ़ाई जाएगी ,जैसा की बड़े निजी विद्यालयों में होता है |सभी को एक ही पाठ्यक्रम से पढाया जायेगा |
07. एक साथ स्कूलो में बैठक व्यवस्था होगी | क्यों की अमीर गरीब का भेदभाव अभी भी समाज में व्याप्त है |
08. जब सभी नेता ,अभिनेता ,लोकसेवक ,जज ,अफसर , व्यापारीके पुत्र/पुत्री जब सरकारी स्कूलो में पढेंगे तो आपने आप ही सभी स्कुलो पर विशेष ध्यान देना शुरूकर देंगे और स्कुलो की खस्ता हालत या लचर व्यवस्था में सुधार आना शुरू हो जायेगा |
09. शिक्षको को सही वेतनमान और सही समय पर पगार(पेमेंट) मिलना शुरू हो जाएगी |
10. वर्तमान में जो हम भारत की साक्षरता 74 प्रतिशत बताते है यही शिक्षा में परिवर्तित हो जाएगी ,फिर हर वर्ग का छात्र देश के प्रति देशप्रेम और देश के संसाधनों कोगुणवत्तापूर्ण उपयोग के बारे में सोचेगायह इलाहबाद हाई कोर्ट का बहुत ही सराहनीय कदम है|
इससे समाज ही नही देश में भी शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव आएंगे | 

लेखक सवयं अध्यापक है और यह इनके निजी विचार है -यह लेख बुधवार और गुरूवार को शिक्षा विमर्श में चर्चा के विषय 
'  माननीय ईलाहबाद उच्च न्यायालय का आदेश जिसमे प्रत्येक लोकसेवक "अफसर ,कर्मचारी ,विधायक और सांसद " को अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में पढ़ाने का आदेश  ' में प्रथम स्थान पर चुना गया है . 

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